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Saturday, April 7, 2012

दोहरी मारि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



दस सालसँ डायबीटीज आ साढ़े-सात सालसँ ब्‍लड-पेसरक शि‍कार सरसठि‍म सालक प्रोफेसर गुलाब पाँच साल पहि‍ने कओलेजसँ सेवा-नि‍वृत्त भेल छलाह। सूर्यास्‍तक समए, सोफापर आेंगठि‍ पाँचो आलमारीक पोथीपर नजरि‍ खि‍ड़बैत रहथि‍। पत्नी -लालमनि‍- चाह नेने कोठरीक मुँह टपि‍ते छेलीह आकि‍ भुक दऽ मड़कड़ी बड़ि‍‍ उठल। ओना अन्‍हारक आक्रमण तइ रूपे नै भेल छलैक मुदा कीड़ी-फति‍ंगीक‍ आवाहन बाहरसँ घर (कोठरी) दि‍स हुअए लगल छलैक। टुटल अगि‍ला दाँतक मुँहसँ मुस्‍की दैत लालमनि‍ पति‍ दि‍स कप बढ़बैत बजलीह- कॉफी सधि‍ गेल छलए। पहि‍लुके चाह पत्ती घरमे छलै सएह बनेलौं। मुदा चाहक गंध केनादन लागल।‍

पत्नीक बात सुनि‍ गुलाबक मन अमता गेलनि‍। मुदा जहि‍ना पाकल अमतीक खट-मधुर सुआद होइत अछि‍ तहि‍ना प्रोफेसर गुलाब अपन चौहु टुटल मुँहसँ मुस्‍कि‍या देलनि‍। मुदा मन कलपि‍ उठलनि‍। एहेन समए भऽ गेल जे एक कप चाहोपर.....। ठीके बूढ़-बुढ़ानुसक कहब छन्हि- करनी देखब मरनी बेर।‍ पत्नीक हाथसँ कप पकड़ि‍ मुँहमे लगौलनि‍। मुँहमे चाह अबि‍ते ठोर बि‍जैक गेलनि‍। हाँइ-हाँइ कऽ चाह तँ घोंटि‍ गेलाह मुदा जाकरी पत्तीक सुआद मनकेँ हौंड़ देलकनि‍। चाहक कप टेबुलपर रखि‍ उठि‍ कऽ ठाढ़ होइते रहथि‍ आकि बूझि‍ पड़लनि‍ जे उल्‍टी हएत। दुनू हाथसँ छाती दाबि‍ पुन: सोफापर बैस गेलाह।
चौसठि‍ वर्षीय लालमनि‍ गैस्‍टि‍कसँ आक्रान्‍त। पेटक गैससँ मन अस-बि‍स करैत। जोरसँ ढकार भेलनि‍। मन हल्‍लुक होइते पति‍क पीठ ससारए लगलीह। रसे-रसे प्रोफेसर गुलाबक मन खनहन हुअए लगलनि‍। मन खनहन होइते पत्नीकेँ पुछलखि‍न- मन बेसी गड़बड़ तँ ने अछि।‍
दुनि‍याँक रागसँ ऊपर उठि‍ लालमनि‍ चहकि‍ उठलीह- की गड़बड़ आ की‍ नीक, कोनो की तेहैया बोखार छी जे तीन दि‍न जाइते चलि‍ जाएत। नि‍रकटौबलि‍ भऽ कऽ छुटि‍ जाएत। गोटीक चाह करैए। जाइ छी एकटा गोटी खा लेब, ठीक भऽ जाएत।‍ से कहि‍ लालमनि‍ दोसर काेठरीक रस्‍ता धेलनि‍। प्रोफेसर गुलाबक नजरि‍ चाहक कपपर गेलनि‍। मुदा चाहक कपपर नजरि‍ नै अटकि‍ पोथीक आलमारीपर पहुँचि‍ गेलनि‍। अखनुक जे जि‍नगी अछि से आइ धरि‍ किअ‍ए ने बुझलौं? जँ अपने नै बुझलौं तँ जि‍नगी भरि‍ पढ़ौलि‍ऐ की? आकि‍ दि‍मक बनि‍ पोथीकेँ माटि‍ बनौलि‍ऐ? तइ बीच ब्‍लड-पेसरक जोर पबि‍ते गरजलाह- एकटा गोटी खाइमे कत्ते देरी लगैए।‍

पति‍क बात सुनि‍ लालमनि‍ बूझि‍ गेलीह जे ब्‍लड पेसरक झोंक छियनि‍। धड़फड़ाइते कोठरीमे आबि‍ मुस्‍की दैत आलमारीसँ गोटी नि‍कालए बढ़लीह। गोटी नि‍कालि‍, गि‍लासमे जगसँ पानि‍ लऽ पति‍क हाथमे दैते रहथि‍ आकि‍ सि‍रमाक बगलमे मोबाइल टनटनाएल। गुलाब हाँइ-हाँइ कऽ गोटी मुँहमे लैत पानि‍ गुलगुलबैत मोबाइलपर हाथ बढ़ौलनि‍। मोबाइल उठा नम्‍बर देखलनि‍। लीलाकान्‍तक (बेटाक) देखि‍ पत्नी दि‍स मोबाइल बढ़बैत बजलाह- ननुगर बेटाक फोन छी। लि‍अ....।‍
कहि‍ प्रोफेसर गुलाब अपनाकेँ बेटा रूपमे देखलनि‍। मन पड़लनि‍ माए-बाप। की जि‍नगी छल की आइ अछि। जा धरि‍ पि‍ता जीबैत छलाह परोपट्टाक कि‍सानक समाज रूपी समुद्रमे बसल छलाह। माल-जालसँ लऽ कऽ बीआ-बालि‍ धरि‍क कारोबार छलनि‍। लेब-देब छलनि‍। सोझे लेब-लेब नै छलनि‍। लेब-लेबसँ बेसी देब-देब छलनि‍। खीरा-झि‍ंगुनी आकि‍ नव कोनो अन्न, फल-फलहरी होय, बीआक मूल्‍य कहाँ लइ छेलखि‍न। मुदा हमरा कोन दुरमति‍या चढ़ि‍ गेल जे एक तँ कओलेजक नोकरी भेटल तइपर सँ पि‍ताक देल घर-घराड़ी धरि‍ उजाड़ि‍ देलौं। की हम दरमाहाक पाइसँ जीवन नै चला सकै छलौं। तरे-तर अपन पछि‍ला वि‍चारपर सेवा-नि‍वृत्त‍ प्रोफेसर गुलाब गरमा गेलाह। मुदा जहि‍ना खढ़-पातक धधरा धुधुआ कऽ उठैत आ लगले पझा कऽ तेहन छाउर बनि‍ जाइत जेकरा हवाक सि‍हकी‍यो उड़ि‍या दैत, तहि‍ना लगले मन खढ़क झोली जकाँ ठंढा गेलनि‍। मन घुरलनि‍, कि‍छु मजबुरि‍यो भेल। एक तँ परोपट्टामे बहरबैया जमीनपर लड़ाइ सुनगि‍ गेल, दोसर अपन पि‍ति‍यौत कारी भायकेँ बटाइ खेत करए कहलि‍यनि‍ तँ कहलनि‍ जे एक बाबाक अरजल सम्‍पति‍‍ (जमीन) छी, सेहो कीनल नै दान देल, तइ जमीनक उपजा बाँटि‍ बटेदार बनब। अहाँ कि‍यो आन छी? जहि‍ना सभ दि‍नसँ एक परि‍वार बनल रहल अछि तहि‍ना रहत। जखने हम बाँटि‍ कऽ देब तखने बटेदार भऽ जाएब। कि‍सान जँ बटेदार भऽ जाए तँ ओकर प्रति‍ष्‍ठा बँचलै केना? पावनि‍-ति‍हारसँ लऽ कऽ काज-उद्यम (परि‍वारि‍क यज्ञ काज) धरि‍ जहि‍या गाममे रहब अपन परि‍वारक समांग जकाँ रहब। मौका-मुसीबत (कोट-कचहरी, कओलेज, अस्‍पताल)मे दरभंगा जाएब तँ अपन घर जकाँ हमहूँ रहब। कहलनि‍ तँ वि‍चारणीय बात मुदा से उचि‍त भेल? बाजारक चमक-दमक देखि‍ अपनो मन उधि‍आएल। महग बूझि‍ घराड़ि‍‍यो बेचि‍‍ मकान बना शेष बैंकमे रखि‍ लेलौं। फेर‍ मन घुरलनि‍, की आजुक बाजारवादक नींव हमहीं सभ ने तँ देलौं। आइ की देखै छी, भरि‍ मन चाहो नै पीब‍ सकलौं। हुनके (पत्नि‍‍ये) कि‍ दोख देबनि‍, तीन दि‍नसँ बाजारमे करफू लागल अछि। दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी सभ बन्न अछि। सौंसे बाजार भकोभन लगैए। बंदूकधारी पुलि‍स आ पुलि‍सक गाड़ी छोड़ि‍ सड़कपर अछिये की‍‍? पनरहे दि‍न मेहतरक हड़ताल भेल, गंदगीसँ बाजार भरि‍ गेल। बेमारीक प्रकोप बढ़ि‍ गेल। तहि‍ना पानि‍क अछि। ताड़ी-दारू, चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण तँ आम भऽ गेल अछि। एक दि‍स गाम छोड़लौं, दोसर दि‍स बेटा-पुतोहु राँि‍चयेमे सभ बेवस्‍था कऽ लेलक। दुनू परानी रोगसँ अथबल बनल छी, केना दि‍न कटत? की अछैते औरूदे परान ति‍यागि‍ ली? हे भगवान जनि‍हह तूँ?
जहि‍ना पूसक ओस सदति‍ काल प्रकृति‍केँ ठंढ़ बनौने रहैए तहि‍ना हृदए शीतल भऽ गेलनि‍। पत्नी दि‍स आँखि‍ उठा कऽ देखलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जहि‍ना हमर मन जि‍नगीसँ नि‍राश भऽ कानि‍ रहल अछि तहि‍ना हुनकर (पत्नीक) मन बेटाक फोन सुनैले कोढ़ी सदृश बि‍हँुसि‍ रहल छन्हि। मन आरो व्‍यथि‍त भऽ गेलनि‍। जहि‍ना श्‍मशानक बरि‍यातीक मन खाएब-पीब‍सँ हटि‍ मृत्‍यूक घाटपर बैस‍ गंगा (नदी, सरोवर) मे डूब दऽ पवि‍त्र होइले कछमछाइत तहि‍ना प्रोफेसर गुलाबबाबूक मन जि‍नगीक घाटपर बौआ गेलनि‍। पुष्‍कर (राजस्‍थान) जकाँ अनेको घाट। उन्‍मत्त मन आलमारीक पोथी दि‍स पड़लनि‍। सतरहम शताब्‍दी धरि‍ अर्थशास्‍त्र-राजनीति‍शास्‍त्र सझि‍या भाए छल। संगे-संग जीवन-यापन करैत छल। से भीन भऽ गेल। हम सभ खुट्टा गाड़ि‍ राजनीति‍शास्‍त्रकेँ धेलौं। गामसँ लऽ कऽ दुि‍नयाँ भरि‍केँ अधि‍कार-कर्तव्‍य सि‍खबै छि‍ऐ मुदा जइ अबस्‍थामे अखन दुनू परानी जीब‍ रहल छी ओ कोन अधि‍कार-कर्तव्‍य छी? की बारह बजे राति‍मे डॉक्‍टर ऐठाम जा सकै छी? जँ से नै हएत तँ की रोग (बेमारी) हमरा मुकदमाक तारीक जकाँ भरि‍ राति‍क मोहलत दऽ देत?
जि‍नगीक काँट-कूश फानि‍ लालमनि‍ मोबाइल कानमे सटौने पति‍सँ फूट भऽ सुनैक वि‍चार केलनि‍। मुदा मुँहसँ नि‍कलि‍ गेलनि‍- बौआ, नूनू।‍
हँ, हँ। पाँचम दि‍न बौआ- कल्‍पनाथक मूड़न छी।
टावर हटने लाइन कटि‍ गेलनि‍। मुदा लालमनि‍ से नै बूझि‍ सकलीह। बूझि‍ पड़नि‍ जे कम जोरसँ बजने नै सुनैत अछि। छातीसँ जोर लगा जोर-जोरसँ बाजए लगली- सभ प्राणी नीके छह कि‍ ने?
प्राणीक नाओं सुनि‍ कोठीक चाउर जकाँ गुलाबबाबूक मन गुमसरए लगलनि‍। जहि‍ना सड़ल आ नीकक बीच अपन-अपन सेनाक बीच रणभूमिक‍ दृश्‍य होइत अछि‍ तहि‍ना गुलाबो बाबूकेँ भेलनि‍। मुदा जहि‍ना बेटा-पुतोहुपर खौंझ उठल तहि‍ना पत्नीक अनभि‍ज्ञता (मोबाइल नै बुझब) पर हँसी सेहो लगलनि‍। पत्नीक हॅसी दौगल आबि‍ हृदैकेँ सुतल आदमी जकाँ डोलबए लगलनि‍। मुँहसँ नि‍कललनि‍- सभ प्राणीक कुशलमे अपनो लगा कऽ कहलि‍यनि‍ आकि‍ अपनाकेँ छोड़ि‍ कऽ।‍
बाजि‍ तँ गेलाह मुदा लगले मन धि‍क्कारए लगलनि‍। पत्नी अज्ञानी रहि‍ गेलीह, तइमे हमर कोनो दोख नै? दि‍नमे डेरासँ बाहर रहै छी मुदा बाकी समए....।
अपने कएल लोककेँ काज अबै छै। जते अपना दि‍स देखथि‍‍ तते ओझरी लगए लगलनि‍। एक कालखंडक पढ़ल-लि‍खल कर्त्ता (परि‍वारसँ लऽ कऽ समाज धरि‍) रहि‍तो‍ आइ धरि‍ एकरा (‍ वि‍षयकेँ) बुझैक कोन बात, जे मनोमे नै उठलनि‍। मन कानए लगलनि‍।
अपने रोपल गाछी भुताहि‍ भऽ गेलनि‍। दलकैत मनमे भाव उठलनि‍- गाछी तँ फूल-फलसँ लऽ कऽ बगुर धरि‍क होइत अछि‍ मुदा कहबैत तँ सभ गाछि‍ये अछि‍। तहि‍ना तँ जि‍नगी‍यो अछि। भदबरि‍या अन्‍हार जकाँ इजोत कतौ देखबे ने करथि‍। तइ बीच पत्नी मोबाइल बढ़बैत कहलखि‍न‍- देखि‍यौ ते, की भऽ गेलै। बजबे ने करैए।‍
पत्नीक बात सुि‍न पुन: गुलाब बाबूक मनमे आशा जगलनि‍। हाथमे मोबाइल लऽ कहलखि‍न- टाबर चलि‍ गेल। तँए नै आबाज अबैए। फेर टाबर आओत तँ अवाजो आओत।‍
लालमनि‍ टाबर बुझबे ने करथि‍। बजलीह तँ कि‍छु नै मुदा जहि‍ना दोकानसँ कोनो वस्‍तु झोरामे अनैत काल, झोरा मसकि‍ गेलासँ वस्‍तु गि‍रए लगैत तहि‍ना मनसँ पति‍पर भेल आक्रोश सस‍रए लगलनि‍। गुलाब बाबूक मनमे एलनि‍, पाँचम दि‍न पोता- कल्‍पनाथक मूड़न छी। मूड़न की छी संस्‍कार छी। संस्‍कार तँ समाजमे भेटैत छै, देल जाइ छै। राँची समाज आ मि‍थि‍ला समाज तँ एक नै छी। तहूमे शहरक समाज तँ आरो गजपट भऽ गेल अछि। पुन: मोबाइलमे रि‍ंग भेल। रि‍ंग होइते पत्नीकेँ कहलखि‍न- आबि‍ गेल टाबर। लि‍अ।‍
पाँचम दि‍न कल्‍पनाथक मूड़न बैष्‍णो देवी स्‍थान (कश्‍मीर)मे रखने छी। अहाँ दुनू गोटे (माता-पि‍ता) भोरुके गाड़ी पकड़ि‍ चलि‍ आउ। परसूक्का टि‍कट बनबा देने छी।‍
बेटाक फोन सुनि‍ प्रोफेसर गुलाबक छाती छहोछि‍त्त भऽ गेलनि‍। मुँह मलि‍न, नोरसँ ढबकल आँखि‍, देहक पानि‍ उतरल, मन्‍हुआएल स्‍वरमे लालमनि‍केँ कहलखि‍न- कनी मोबाइल लाउ।‍
मोबाइल दइसँ पहि‍ने लालमनि‍ बेटाकेँ कहलनि‍- बाउ, बाबूसँ गप्‍प करह।‍
बौआ।‍
हँ बाबू। अपने असि‍रवाद देबै.....।‍
पोताकेँ असि‍रवाद देबाक बात सुनि‍ गुलाब बाबूकेँ वकार नै फूटलनि‍। हि‍चुकि‍क अबाज सुनि‍ लीलाधर पुछलकनि‍- अपने कनइ किअ‍ए.......।‍
खखसैत गुलाब बाबू बजलाह- मोबाइल छोड़ि‍ असि‍रवादो केना दऽ सकब। तीन दि‍नसँ‍ बाजारमे करफू लागल अछि। सि‍पाहीसँ सड़क भरल अछि। एहेन स्‍थि‍ति‍मे घरसँ केना नि‍कलब।

कओलेजोमे छुट्टी लऽ नेने छी। टि‍कटो कटा नेने छी तहन.....?

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