“नँइ बाबू साहेब, तलाशी तँ एक-एक वस्तुक हएत, पुलिस पार्टी आबि रहल अछि...एस.पीए साहेबकेँ और्डर छै,
साहेब अपनहि आबि रहल
छै... झट द’ जनी-जातिकेँ ल’ एक कात भ’ जैयौ...!” सभ साल परबी ल’ जाइबला हुनकर गाम चांवरडीहक चौकीदार अजोधी ; नमोनारायण सिंहकेँ कहि रहल छलनि।
कहै कहां छलनि महराज ! धिरा रहल छलनि, धमका रहल छलनि; बाप-दादाक बनाएल घरकेँ तुरंते खाली
करैक फरमान सुना रहल छलनि।
चांवरडीह गाम धरि छैक बेस झमठगर । बारहो बरन बसै छल अछि अहि दू धारक बीच,
लमछुरका जमीनपर बसल
ई गाममे। बीच गाम देने सडक; जे आब तँ धारपर पुल भ’ जेबाक कारणे सीधे जिला मुख्यालय तक
जाइ छैक, मुदा
तहिया कतए पाबी ? तहिया एक पेडिया कि सुर्खी बला सडकक चलनसार छलै। साफ-साफ कहीं तँ अंग्रेजक अमलदारी
छलै। बाबू साहेबक गाम, ताहूमे नमोनारायणक स्वर्गीय पिता जीकेँ तहसीलदारसँ घुठ्ठी सोहार,
तैं अमला-फैला,
कर-कचहरी सभ ठां बाबू
जयनारायण सिंहक जयजयकार होति रहै ताहि दिन चांवरडीहमे। भरि चौमासा तँ एतए आएब असंभवे
छलै जे नीको समए सालमे तहिया, गाम आएब बड दुरूह रहै। तखन भरि बरसात नावक सवारी रहै। गरीबो
लोकके एकटा घसकट्टीयो, नाव जरूर होइ छल।
मुदा सभ एक्के बेर दमदमाकेँ पहुंचि गेलै....दू जीपमे भरि क’ सिपाही रहै। ओकर संग हवलदार
आ एकटा डी.एस.पी.। सभ हथियार बन्द , जेना कोनो पैघ डकैतकेँ पकडैले आएल हुए। नमोनारायण अवाक्
भेल आंगनक मोखा लग जे ठाढ भेलासँ किम्हर पडे़ता कि की करता से किछु फुरेबे नहि करनि।
ताबे एकटा सिपाही पाछांसँ हिनकर गंजी पकडि़ क’ अपना दिस टनैत पुछलकनि- ”
तोरे नाम नमोनारायण
छियह...? चलए
एस.पी. साहेब बजबै छथुन।“
नमोनारायण सर्द पडि़ गेला, नमोनारायणक मुँह कारी भ’ गेलनि, नमोनारायण मुँहमे धान दैथ तँ लाबा
होनि । जहिना गंजी धोतीमे छला तहिना सिपाहीक पाछां-पाछां विदा भेला बड़ए गाछतर,
जाहिठाम काल्हियेसँ
ज़िलाक एस.पी. कैम्प केने छै । वैह चतरलका बडक गाछ तँ एखनहु छैहे गवाही सभ कथुक। अही
गाछ लगसँ सवर्ण आ महादलित टोला अलग-अलग होइ छै । अही बड़क गाछक चलते लोक चांवरडीहक
दलित बस्तीके ‘बडतर टोल’ कहैत रहै। नमोनारयणक स्वर्गीय पिता, जे अहि कुकांडक नायक छला, से तँ गेला सुरपुर धाम। बांचल छथिन
हुनकर एकमात्र सुपुत्र, जे बलिदानी छागर जेकाँ बढि रहल छथिन ओन्न जतए नहि जानि कैक युगक
तामस, घृणा
आ बदलाक भावनासँ भरल एस.पी. प्रतीक्षा क’ रहल छनि। पहिने तँ चांवरडीहक आम ग्रामीणे जेकाँ हिनको
पता नहि रहनि जे ई सभ कियैक भ’ रहल छनि, पुलिस एकाएक हिनकर घर-आंगनक एना तलाशी कियैक ल’ रहल अछि?
मुदा एस.पी.क नाम आ ई जनिते जे एस.पी. वैह घनश्यामक जमाए भास्कर छियै; सभ बात बिजली जकां दिमागमे
छिटकि उठलनि...आइसँ पच्चीस बरख पहिलुका घटना एना लागए लगलनि जेना काल्हुक घटना हो !
ओ सभ बात हिनका आ हिनकर किछु बूढ़ दियादेटा के ने बूझल छनि? गामक लोक ई सभ कतएसँ जनलकै?
खाएर, आब तँ जाइये रहला अछि । आखिर
कोन कारणसँ पुलिस घरक ओ दशा क’ रहल छनि आ हिनकर चोर-डकैत जकाँ पेशी भ’ रहल छनि, सेहो तँ लोककेँ बुझए जोगर
होइतै? मुदा
जेना भ’ क’
पुलिस घर ढुकलनि आ
जेना भ’ क’
सर्च क’ रहल छनि....राम-राम ! से
कि ई कोनो अपराधी छला अछि ? होथि कि नहि होथि; पुलिस तँ एखन तेहने व्यवहार क’ रहल छनि; जेना चोर-डकैतक घरक तलाशी
लेल जाइ छैक, तहिना एक-एकटा वस्तु-जात खोलि-खालि क’, एत्ते तक जे कोठीक चाउर तक निकालि
क’ तलाशी ल’
रहल रहनि। ओ बड गाछ
दिस जाइयो रहल छथि आ सोचि रहल छथि जे घनश्यमवाक ओ जमाए भास्कर एस.पी. बनत, आ बनबो करत तँ अही िजलामे
आओत, ई तँ कहियो
सपनोमे ने सोचने रहथिन। ...एह बातो आझुक छियै ? जोडबै तँ कैक युग बीत जेतै!
कोसिक झमारल चांवरडीह गाम, बारहो मास तीसो दिन अबै-जाइमे बड़ तकलीफ होइ लोककेँ। भूलिये-भटकि
क’ कोनो सर-कुटुम्ब
अबए। आजुक हाल देखि क’ तँ अहांकेँ परतीते ने हएत जे वैह चांवरडीह छियै! रोग-बेरामी,
पर-परसौत जँ गडबडायल
तँ जाबे अहां चर्राइन कि सहरसा पहुंचब गे, रोगी भगवान लग दाखिल भेल रहत। ताहि दिनुका बात भेलै जखन
कोसी, जंगल
आ अंग्रेज सन जालियाक शासन रहै...मुंॅह देखि क’ मुंगबा परसैबला ! तहिया पुलिस थाना,
कोर्ट कचहरी जे रहथि
से जयनारायण सिंह छला। हुनकर फैसला पहिल आ अंतिम होइ छलै तहिया अहि गाममे !
अही गाममे ओ वर बनि क’ आएल रहै...यैह बडक गाछ तर ओ कुर्सीपर...आंॅखिमे काजर,
गलामे बेली फूलक मौलाएल
जाइत माला पहिरने बैसल रहै...बगलक खाटपर ओकर पिता आ पित्ती बैसल रहथिन । घनश्याम,
ओकर होइबला ससूर पीयर
धोती आ गोलगला पहिरने अपन फूल सनक बेटी फुलमतियाक होइबला वरकेँ देख क’ मोन हुलसि आएल छलनि चांवरडीह
गामक अधवयसू आ अपन समाजक प्रतिष्ठित सदस्य; घनश्यामके । ओ हलसल-फुलसल अपन आंगन
दिस जा रहल छला जे अपन मोनक आह्लाद अपन लोक, जनी-जातिकेँ कहथि आ वर-वरियाती लए
पान-सुपारी-बीडी-सिगरेट आदि आनथि।
मोन गदगदायमान छलनिहें जे बडतर; जतए वर-बरियातीक डेरा माने जनवासा रहए, ओत्तएसँ उठलै हल्ला...मचए
लगलै गर्द आ गूंजए लगलै आर्तनाद निरपराधक ।
“मार सारकेँ ! घेर क’ मार सभकेँ..क्यो बचौ नहि, देखिहें नमोनारायण ! एह, खटियापर मटोमाट केहन अछि
? सुनरा! ला
फरसा आ छफाटि ले सबहक कुल्हा !!” जयनारायण सिंह अपन चानीक मूठि लागल डंटाकेँ चलाइयो रहल छला आ
गरजियो रहल छला। ठीक कोनो राक्षस सन लागि रहल छला। जखन ओ एकरा लग, माने भास्कर लग पहुंचल रहथि
तँ माला पहिरने, थरथर कंपैत भास्कर धधकैत जयनारायणक आंॅखि दिस बड कातर भावे देखने रहनि आ कल जोडि
क’ ठाढ होइते
रहै जे चानीक मूठ बला लाठीक समधानल वार पीठपर भेलै आ तकर बाद की भेलै...कोना ओ पडा
क’ ककरो घरमे
शरण लेलक...कोना ओकर बिआह भेलै...टूटल हाथ-पैर लेने ओ आ ओकर बाप-पित्ती कोना अहल भोरिये
कनिया संग ल’ क’ नावपर
पड़एला... सभ ओकरा सपना सन लगैत अएलै अछि एखन धरि ।
पढिते रहय तँ एक बेर फेर एतए आएल तँ पता चलल रहै जे जे कनियांॅसँ एकर बिआह भेलै,
ओकरापर नमोनारायणक
नज़रि बहुत दिनसँ गडल रहनि, तेँ ओना तांडव मचौने छला ओकर बिआहक राति। कहां दन तीन दिन तक
अहि टोलक लोक थर-थर कंपैत घरमे सुटकल रहल। ओ तँ सुकुर भेलै जे वर-वरिआती संगे ओ राता-राती
निकलि गेल...ने तँ जान बांचब मोस्किल रहै ओइ राति । ओही दिन ओ संकल्प केने रह जे ओ
पढत, खूब पढत
आ पुलिसक नौकरी करत।...साल दू सालपर ओ चांवरडीह आबै...छुट्टा सांढ जकां सभ कथूपर मुंॅह
मारैत पहिने जयनारायणकेँ देखैत रहै आ तकर बाद ओकर बेटा नमोनारायणकेँ, जे एखन सुटुकपिल्ली सन सिपाहीक
पाछां-पाछां बलिदानी छागर सन बढल जा रहला अछि, जिम्हर अहि पलक प्रतीक्षा कैक युगसँ
करैत अबैबला एस.पी. भास्कर ,सन्नद्ध बैसल अछि।
मुदा ई घटना कोनो आजुक छियै ? पच्चीस वर्ष पहिने भेल अपराधक सजाए, ओकरा आइ देल जेतै ? ओकरो अइ घटनाक पश्चाताप भेल
रहै। समए बदलल रहै, युग बदललै, नमोनारायणकेँ विचारो बदलल रहनि। ई तँ सपनोमे नै सोचने रहथिन जे घटना चक्र अहि तरहें
घुमतै। बाबुओकेँ मुइना तँ आब पंद्रह वर्ष भेल हेतनि।...पता नहि, पुलिसकेँ आंगनमे घुसिते ओकर
माए आ कनियांॅ कतए गेलै ! की पता ? ओहू राति ककरो कहांॅ पता चललै जे वर-वरियाती कि कनियांॅ कतए
गेलै? कुम्हर
पडेलै? भरि
गाम तँ जयनारायण सिंहक सिंहगर्जना सुनैत रहलै-- “...मैट्रिक पास जमाय छै तँ की ?
आगि मूतत ?
एत्तेटा साधंस जे हमरा
सबहक सामने खाट-कुर्सीपर बैसत...एत्ते धू-धू-पू-पूसँ बेटीक बिआह करत? से की हम सभ मोसम्मात ?
कि ई सभ बाबू साहेब
बनि गेल ..? खच्चर नहितन...।“
संग सिपाहीक जाइत ओ फिर क’ अपन द्वार, आंगन आ बरंडा दिस तकलनि...घरक सभ सामान ओइपर रिद्द-छिद्द भेल
छलै...बक्सा...अलमीरा... पलंग...ओकर कनियांबला ड्रेसिंग टेबुल...ओकर, माइक आ बाबूक पुरना पेटी,
ओकर भी.आइ.पी. सभ मुंॅह
बेने...ओकरा देखल नहि गेलै ! आखिर ओकरा कोन अपराधक सजाए भेट रहल छै...जे आइसँ पच्चीस
वर्ष पहिने भेल छलै ? ओ आगां-आगां जाइत सिपाहीक पीठ दिस ताक’ लागल कि तखनहि माइक आवाज़ सुनाइ पडलै--”बौआ, हमहूं अबै छिय’ !”
नमोनारायण पाछां पलटि क’ घरक सभ वस्तु-जातकेँ देखैक बदला उज्जर साडीमे डोलैत मायक काया
देखै मोनमे होइ छनि जे ‘ई कथी लए संग लागि गेली ?’ फेर भेलनि जे कहीं-कदाच माएकेँ देखि
क’ जँ एस.पीके
दया आबि जाइ, भास्करक मोन पघिल जाइ...!
भरि गामक लोक अपन-अपन दरवाजापर सँ अपन-अपन डांडपर हाथ धेने अइ घटना क्रमके,
अपन-अपन ढंगसँ देखि
रहल छल, अर्थ
लगा रहल छल। खाली बूढ-बुढानुस, दर-देयादकेँ पछिला सभ बात फटसँ मोन पडि़ एलै...जयनारायण सिंहक
चानीक मूठ बला लाठी मोन पडि एलै....
नमोनारायणक सांढ जेकां सभ हक खेतमे मुंॅह मारैक लुतुक मोन पडलै...ओकर बापक कारस्तानी
सभ मोन पडलै। जखन बापे गुंडइ सिखाबे तँ बेटाकेँ की कहल जाए ? मुदा ई जरूर जे ई सभ भेना
बहुत दिन, पचीसो साल भेलै...आब गडल मुर्दा उखाडल जेतै ? नमोनारायण दुनू बाप-पुते तहिया जे
केने रहै, तकर सजाए आब देतै भास्कर एस. पी. ?
नै देबाक चाही ? जहिना खूनक घोंट पुश्त-दरपुश्त पिबैत आएल, तहिना पिबैत रहए ? कि ओइ राति ई दुनू बापं-पूत
पशुतोक सब सीमाक उल्लंघन नहि केने रहथि जखन कि वर बनि क’ ई गाम आएल भास्करकेँ दुनू बाप-पूत
मिल क’ बरियातीक
संगे अइ लेल मारि पीट क’बेइज्जत-बेइज्जत केलखिन जे ओ लोकनि खाटपर आ वर कुर्सीपर कियैक
बैसल अछि? ई चांवरडीह छियै, बाबू साहेबक बस्ती...ताहि ठाम ई मजाल? लगलै जे हिनके दुनू गोटेक ज़मिन्दारीमे बसल हो सभ क्यो
!
तेँ गामक लोक डांडपर हाथ देने, आगां-आगां सिपाही, तकर पाछां ओ, आ सभसँ पाछां हुनकर विधवा माएकेँ
दलित-टोला जाइत देखैत रहल। मुदा, ने क्यो सबदल आ ने क्यो संग देलकनि !
बुझले अछि जे नमोनारायणकेँ देखितंहि एस.पी. केँ की भेल हेतै । पचीस वर्ष बीतल होइ
कि
पचास...ई सभ बिसरैबला बात छै ? तेँ नमोनारायणकेँ सरि भ’ क’ एस.पी.क हाथो जोड़ल नहि भेल रहनि
जे अशोक-चक्रक मूठि लागल एस.पी.क हंटर सटाक पीठपर लागल रहनि...जाबे ई किछु सोचथि
कि दोसरो
हंटर बजरलनि, जे हुनकर पीठपर गुणाक चिह्न बना देने छलनि आ जे हुनका मार्मिक चोट पहुंचबैए
पर्याप्त छलनि। हुनकर चित्कारसँ ओहि ठाम उपस्थित हुनकर सभ गौंआक मोन दहलि गेलै
तँ कोन आश्चर्य ! मुदा कठोरसँ कठोर अपराधीकेँ मनोबल तोडबाक, तोडि क’ सत्य बोकरेबाके ट्रेनिंग भेटल छैक
ओकरा; तैं ओकर
कडकदार आवाज़ गूंजैत अछि--”हवलदार ! अइ डारिसँ उल्टा लटका एकरा !”
भूमिपर भास्कर एस.पी.क पैर गरेछने माइक काया थरथरा उठैत छनि, संभवतः दांती लागि जाइ छनि
कत्तौसँ एकटा महिला सिपाही प्रगट होइत अछि आ माइक परिचर्चामे लागि जाइत अछि।मुदा नमोनारायणक
डांडमे रस्सा बन्हा गेल अछि...बस आब हिनका लटकैले जाइबला अछि।हिनकर मुंहमे गर्दा उडि
रहल छनि...
...चेहरा कारी भ’ आएल छलनि...बुद्धि काज नहि क’ रहल छलनि...सिट्टी-पिट्टी गुम। पीठ परहक चोटक संग अबैबला कष्टक
कल्पने करैत चौन्ह अबैत रहनि।
“कियै, हमरो अहिना चोट लागल रहै रे नमोनारायण...एखन तँ किछु भेबे ने केलौए...तोहर लाठीक
मारिसँ तँ हमर पित्ती दुइयो मासने बचला...हमर बापक माथक दर्द कहियोने छुटलनि...तोरा
तँ साले...!”
ताबे चांवरडीह गामक एक्का-दुक्का ग्रामीण बडतर एकठ्ठा हुअ’ लागल छलै...हिनकर मसियौत
दौडि क’ गेल
आ निहोरा-मिनती क’ क’ घंश्यामकेँ
खिंचने आएल। ओहो सामनेक दृष्य देखि भीडमे अवाक् भेल ठाढ...।पहिने सत्तो निकलला तकर
बाद धीरे-धीरे सभ हाथ जोडने कातर भावसँ देखैत।
”मर, तँ
अहांकेँ एत्तए केँ बजेलक ? गैरलाइसेंसी हथियार एकर घरसँ बरामद भेलैए, एकरा जेल हेतै !”
एस.पी. तत्ते जोरसँ बजला जाहिसँ गामक लोक ठीकसँ सुनि लियै। उत्तरमे क्यो किछु नहि
बाजल। बजै जोग किछु शेषो नहि रहै। सब बस गुम भ’ क’ भास्कर एस.पी.के देखि रहल छल। ओ पहिने
अपन ससुर घनश्यामक नत दृष्टि आ बादमे अपन सासुरक सभ गोटाक क्षमाक मूक गोहारि अनुभव
केलक...आगांमे पडलि नमोनारायणक माइक उज्जर साडीमे लपेटल काया छलैक।ओ चारूकात नजरि घुमा
क’ देखलक...अइ
ठाम अत्यंत कातर भावसँ ओकर प्रत्येक क्रिया-कलापकेँ देखैत आन क्यो नहि, ओकरसासुरक लोक अछि ,जकरा ओ बच्चेसँ देखैत आबि
रहल अछि । अनकठ्ठल चुप्पी कि निगूढ शांतिकेँ भंग करैत भास्कर एस.पी.क स्वर बडतर फेर
गूंजल--”हवलदार
! खोलि दहिंक...आब एकरा ककरो अपमान करबाक साधंस नहि हेतै ।“
***
(ई कथा “कृतं न् मन्ये” श्री आर.बी. राम सेवा निवृत्त आइ.जी. के सस्नेह एवं सादर ! लेखक।)
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