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Sunday, April 8, 2012

अतहतह :: जगदीश मण्‍डल


अतहतह

तीन बजे भोरे झामलाल बैग नेने गरजैत चौकपर पहुँचल। ओना एकादशीक चान डुमि‍‍ गेल रहै मुदा सुरूजक लालीसँ दि‍शा फरि‍च्‍छ हुअए लगल रहए। झामलालकेँ चौकपर अबैसँ पहि‍ने भुटुकि‍लाल ि‍डबि‍अा बारि‍ चाहक चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ नेने रहए। पाँच बजे चूल्हि‍‍‍मे आगि‍ पजारैबला अढ़ाइये बजे पजारैक सुरसार करए लगल रहए। तेकर कारण भेल रहै जे पनरह दि‍नसँ राहड़ि‍क दालि‍मे रोटी गुड़ि‍ कनै खेने रहए। तइ खाति‍र राति‍मे खाइये काल दुनू परानीक बीच झगड़ा भऽ गेलै। बि‍नु खेनहि‍ पीढ़ीपर सँ खि‍सि‍या क उठि‍ गेल। माटि‍येसँ चारि‍ घुस्‍सा दाँतमे लगा, कुड़ुड़ क झामलाल दोकानपर पहुँचि‍ बाजल- भुटुकि‍ भाय, रतुका सोठि‍आएल छि‍अ। खेबाक ि‍कछु नै रखने छह?
‍अच्‍छा पहि‍ने अाधा-अाधा कप चाह पीब‍ लि‍अ। जहि‍ना अहाँ सोठि‍आएल छी तहि‍ना हमहूँ छी। आन चीज की‍ भेटत। बि‍स्‍कुट सबमे कोनो लज्‍जैत रहै छै मुदा छाल्ही अछि
चलह हुन्‍डे दाम कहि‍ दहक?
सबटा अहीं लऽ लेबै आ अपने?
पाइ हम्‍मर आ खाइमे दुनू गोटे अाधा-अधी।‍ अाधा-अधी सुनि‍ भुटुकि‍लाल उछलि‍ कऽ बाजल- अाधा कि‍लोसँ बेसि‍ये हएत मुदा अहाँ एक्के पौआक पाइ दि‍अ।‍
एहनो बुड़ि‍बक जकाँ कि‍यो बजैए। बैग खोलि‍ कऽ देखि‍ लहक। एक कि‍लोक पाइ आ सवा सौ रुपैया ऊपरसँ देबह। खाली भरि‍ दि‍न संग पुरह।‍
‍हम तँ पेट-बोनि‍याँ आदमी छी भाय। जतऽ पेट भरत ततऽ रहब।
चौकक खर्च हम देलि‍यह आ मालि‍क तँू भेलह। मुदा पहि‍ने खा लए कि‍एक तँ भरि‍ दि‍न बहऽ पड़तह।‍

अाधा-अाधा छाल्‍हीमे सँ उठा-उठा मुँहोमे दैत आ गप्‍पो करैत टटके छाल्ही बूझि‍ पड़ै छह।‍
कौल्हुके छी।‍
छाल्हीक रस तँ तेसर दि‍नसँ बनब शुरू होइ छै। मुदा टटकोक अपन रस छै। आइ गामक झंडा गारि‍ देलि‍यह।‍
से की, से की? बगुला जकाँ मुँह उठा-उठा भुटुकि‍लाल झामलालसँ पुछलक। पानि‍ पीब‍ झामलाल बाजल- हमरा तँ बुझि‍ते छह जे बैग आ मोटरेसाइकिलमे कारोबार अछि। मुदा कहुना-कहुना सालमे पाँच लाख पीटि‍ये दैत हेबै। बान्‍हल तँ अछि नै‍। दसटा कम्‍पनीक एजेंसी रखने छी जेकर जाल सगरे देशमे छै। एते पहुँचि‍ सेहो बनौने छी। जहि‍ना आइ खच्‍चरपुरबलाक खचरपनी झाँड़ि‍ मुता-मुता भरेलौं तहि‍ना ओकर आगि‍-पानि‍ कथा-कुटुमैति‍यो ढाठि‍ देबै। तइले नअो परै आकि‍ छह।‍
ठीके कहै छी भाय, एहेन-एहेन अगि‍लह सभकेँ अहि‍ना हुअए।‍

चाह पीब‍ झामलाल बाजल- भाय, पर सँ जे पान सए नम्‍बर पत्ती देल पान खइतौं तँ आरो बुलन्‍दी आबि‍ जइतै‍।
भाय, पान तँ तेहन खुआ दैतौं  जे जेहेन बुलन्‍दी चाही तहूसँ सातबर बेसी आबि‍ जाइत। मुदा पानबला छौड़बा अछि मौगि‍याह। वसन्ती नीन छोड़ि‍ कऽ औत। सात बजेसँ पहि‍ने थोड़े औत। ताबे सुपारी आ तमाकुलक पत्ती दऽ काज चला लि‍अ।‍
तोहूँ भारी इस्‍की छह। आइ तोरे दरबारमे आसन जमेबह। जेना-जेना तँू कहबह तेना-तेना करब। मुदा एकटा बात अखने दुआरे कहि‍ दइ छि‍अ जे बि‍रड़ोमे झंडा उड़ि‍या देलि‍ऐ मुदा ओकरा तँ बाँसमे लगा जमीनमे गाड़ए पड़त, की ने?
अहाँ खाली बैगक ताला खोलि‍ कऽ रखने रहू, एक्के घंटामे चौकक चकचकी देखा दइ छी।‍
उत्‍साहि‍त भऽ झामलाल- भाय, तोरे सबहक असि‍रवादसँ दूटा पाइयो देखै छी आ दूटा लोकोक लगमे रहै छी। मुदा कमेनाइये-खेनाइयेटा तँ जि‍नगी नै ने छि‍ऐ। फेर‍ दोहरा कऽ सुन्‍दरपुरमे जन्‍म लेब। तँए जहि‍ना गामक झंडा अकासमे उड़ि‍आएल तहि‍ना बचबैले जे करए पड़त, से करब।‍
अच्‍छा छोड़ू अगि‍ला बात, अखन‍ की करब से वि‍चारू।‍
तोहीं बाजह?
दूटा चाहबला छी। दूटा पानबला अछि। तीनटा मजरूटी अछि। भरि‍ दि‍नक खर्च उठा लि‍अ।‍
मजरूटी की कहलहक?
मैजरि‍टी‍, एक मजरूटी गाँजा पि‍आकक अछि। दोसर ताड़ी-पोलि‍थीनबला अछि। आ तेसर इंग्‍लीस पि‍आकक अछि
तीनूमे कत्ते खर्च हेतह?
अहाँ खाली बैगक मुँहमे हाथ देने ने रहि‍औ। सभ गप ने कऽ लेब।‍
सभ तँ फूट-फूट बैसत तखन‍ रतुका बात कहबै केना?
मामूली लोक सबहक मजरूटी छै। कलाकार सबहक छै। जखने चाहक दोकानपर औत आ भरि‍ दि‍नक मौज-मस्‍ती गछि‍ लेबह तखने चौकक ताल देखि‍ लेबह।‍
कि‍छु कहबहक नै?
कहबै आकि‍ मंत्र देबै। दुइयेटा मंत्र दइक काज छै। अकासमे झंडा उड़ि‍ गेल आ खच्‍चरपुरबलाक सभ खचड़पनी घोंसारि‍ देलि‍ऐ। माटि‍ दइ छि‍ऐ जे जतऽ फड़ि‍यबैक मन होय फड़ि‍या लि‍अ हमरा समाजसँ।

घंटे भरि‍क पछाति‍ चौकक जुआनी आबि‍ गेल। गाँजाक मंचसँ फगुआ शुरू भेल- एक दि‍स खेले कृष्‍ण कन्‍हैया, एक दि‍स राधा जोड़ी हो।‍ तँ ताड़ीक मंचसँ महराइक धुन- कि‍सकी मैया बाघि‍न जनमे जो रूदल पर फेरे हाथ।‍ तेसर मंचसँ अंग्रेजी डान्‍स शुरू भेल।
सात बजैत-बजैत चौकपर गदमि‍शान हुअए लगल। रवि‍शंकर चाह पीबैले अबैत रहथि‍ आकि‍ दस लग्‍गी पाछूएसँ चौकक मस्‍ती देखलनि‍। गाछक नि‍च्‍चाँमे ठाढ़ भऽ हि‍यासए लगलथि‍ तँ देखलनि‍ जे सौंसे गामक लोक  नाचि‍-गाबि‍ रहल अछि। मुदा लगले जेना पवनसुत ि‍कछु कहि‍ देलकनि‍। मुस्‍की दैत भुटुकि‍ लालक चाहक दोकान सोझे पहुँचि‍ भुटुकि‍ लालकेँ पुछलखि‍न- भुटुकि‍ भाय, बड़ चहल-पहल देखै छि‍ऐ की‍ बात छि‍ऐ?
पहि‍ने चाह पीबू ने। गप कतौ पड़ाएल जाइ छै। नि‍चेनसँ चाहो पीबू आ गप्‍पो सुनू।‍
कनि‍यो तँ‍ इशारोमे कहह।
एतबे बूझि‍ लि‍अ जे खच्‍चरपुर बलाकेँ मुता-मुता भरेलौं।‍
भुटुकि‍लालक बात सुनि‍ रवि‍शंकर अचंभि‍त भऽ गेलाह जे आखि‍र बात की‍ छि‍ऐ? तइ बीच झामलाल कहए लगलनि‍- भाय, मास दि‍नक कमाइक फल छी। जड़ि‍येसँ कहि‍ दइ छी। तैइतीसम दि‍नक गप छी। एक लाख रुपैयाक पार्टीक काज कए कऽ आएले रही। बारहसँ ऊपर दि‍न चढ़ि‍ गेल रहए। कपड़ा खोलि‍ कलपर बाल्‍टी-लोटा रखि‍ लताम गाछक नि‍च्‍चाँ ठाढ़ भऽ ऊपर ि‍हयासैत रही। तइका‍ल हि‍रदे काका दछि‍नबरि‍या बाधसँ अबैत रहथि‍। नजरि‍ पड़ि‍ते कहलि‍यनि‍- काका, गोड़ लगै छी। बड़ रौद छै, कनी ठंढा लि‍अ। जहि‍ना कहलि‍यनि‍ तहि‍ना ओहो लतामेक गाछ लग आबि‍ गेलाह। लताम देखलाहा आँखि‍ हि‍रदे काकाक मुँहक सुरखी देखि‍ मुँहसँ नि‍कलल- काका, एना हकोपरास किअ‍ए छी। सुक्‍खल मुँहक मुस्‍की दैत बजलाह- नै बौआ, नै कोनो। रौदमे सँ एलौंहेँ ने।‍
दूटा लताम खाउ?
नै बौआ, नै खाएब।‍
दूटा अंगने नेने जाउ।‍
अंगनाक नाओं सुनि‍ औटोमेटि‍क बम जकाँ कखैन छाती फाटि‍ गेलनि‍, से नै बुझलौं। मुदा आँखि‍सँ टघरैत नोर गालपर चमकए लगलनि‍। मन गरमाएले रहए। कहलि‍यनि‍- काका, जहि‍ना परि‍वारमे भैया, काका, बाबा, होइए, तहि‍ना ने समाजोमे होइए। वि‍रान किअ‍ए बुझै छी। अहाँ सबहक असि‍रवादसँ कमाइयोक आ दस गोटेकेँ चि‍न्‍हैइयोक लूरि‍ भऽ गेल अछि। बाजू अहाँ किअ‍ए एते पीड़ि‍त छी जँ उठैबला हएत तँ जरूर....।‍
नोर पोछैत काका बजलाह- बौआ, देखैयेटा ले बूझि‍ पड़ै छि‍यह जे मनुक्‍ख छि‍अ। मुदा से नै, मुइल मनुक्‍ख छी। अपनो परि‍वारक रच्‍छा करै जोकर नै छी। तहन तँ देखा-देखी आँखि‍ तकै छी।‍
‍खुलि‍ कऽ बाजू, काका?”
‍बौआ, जुगमे हमसब महापापी छी, ि‍कएक तँ भगवान पाँचटा बेटी दऽ देलनि‍। चारि‍टाक तँ कोनो धरानी खेत बेचि‍‍- बेचि‍‍ पार लगेलौं। सात बीघाक कि‍सान मात्र पनरह कट्ठापर आबि‍ गेल छी। तेहेन हवा-पानि‍ देखै छी जे ओहूसँ पाँचमक पार लागत आकि नै।‍
हृदय काकाक बात सुि‍न अवाक् भऽ गेलौं। जेना बकारे बन्न भऽ गेल। छाती असथि‍र करैत पुछलि‍यनि‍- कक्का, कत्ते खर्च हएत?
‍बौआ, गरथाह बात केना बाजब। आँखि‍क नोर पौछैत पुन: बजलाह- बौआ, ई पाँचम बेटी तत्ते दुलारू अछि जे हृदैमे सटल अछि। एक तँ कोड़ि‍-पच्‍छू बेटी, तइपर सँ माइक तते सि‍नेही जे सुग्‍गा जकाँ कि‍छु बाजत। जेठकीकेँ दादि‍ये पोसलकै। कहि‍यो ओकरा कोरा कऽ नै लेलि‍ऐ। जखन टेल्हुक भेल तखन‍सँ संगे मेला-तेला लऽ जाए लगलि‍ऐ। छोटकी बेटी माइक तेहेन दुलारू बेटी अछि जे साइयोसँ उपरे नाओं रखने छथि‍न।‍
कक्का, छोड़ू ई सब। अपन बहि‍न बूझि‍ बि‍आह पार लगा देब। जेहने जेठकी बेटीक परि‍वार अछि तेहने परि‍वार भजि‍आउ। खर्चक चि‍न्‍ता जुनि‍ करब। ई पहि‍ल दि‍नक गप छी।‍

ओना तँ गामे-गाम अतहतह होइते अछि मुदा खच्‍चरपुर बलाकेँ तँ कोनो सीमे-नाङरि‍ नै छै। साल पाँचटा बि‍आहमे अभरल। तते दोस-महीम भऽ गेल अछि जे एकटा बि‍आहक खर्च नौत पुराइमे होइए। तइले नै कोनो। दस सेरे नै नि‍तराइ दस सगे नि‍तराइ। पाँचो बि‍आहमे ओकरा सबहक‍ खच्‍चरपनी देख‍लि‍ऐ से एँड़ि‍सँ टि‍कासन तक नेसि‍‍ देने अछि। मुदा कोनो बि‍आहमे कोनो समाज (बरि‍याती-घरवारी) तँ नै छलौं तँए आँत-मसोसि‍ कऽ रहि‍ गेलौं। गर चढ़ा खच्‍चरपुरेमे कथा ठीक केलौं। कक्कोकेँ पसि‍न भेलनि‍। लेन-देन तँए भऽ गेल। समए बना ओहू गामक समाज आ अपनो समाजक बैसार केलौं। बैसारेमे बजलौं- ‍अखन धरि‍क काज दुनू घरबारीक छलनि‍ मुदा आब समाजक भऽ गेल। चाहै छी जे आन गाम जकाँ थूका-थूकी बि‍आहमे नै हुअए। तँए कि‍छु समस्‍या अछि जइपर अखने वि‍चार वि‍मर्श भऽ जाए।(१) बि‍आह पद्धति‍क अनुकूल हुअए आकि‍ जयमाला कऽ हुअए। (२) पलाउक चलनि‍ भऽ गेल से मखानक खीर खाएब आकि‍ पलाउ? (३) खेला-पीला उत्तर लगले वि‍दा भऽ जाएब आकि‍ आराम कऽ कऽ?”

प्रश्न सुि‍न चुप्‍पी पसरल। जहि‍ना चूल्हि‍‍‍मे खोरनासँ जारनि‍ घुसकाैल जाइ छै तहि‍ना घुसकौलौं- कन्‍यागत समाजक कन्‍हापर भार देने छथि‍न तँए समाज चाहै छथि‍ जे आन-आन गाम जकाँ बरि‍याती-घरवारीक बीच कोनो तरहक राग-द्वेष नै हुअए। कि‍एक तँ बरि‍याती घरवारीकेँ नि‍च्‍चाँ देखबए चाहैथि‍ आ घरवारी बरियातीकेँ। जइसँ जहि‍ना खेतमे कोनो चीजक बीआ छीटल जाइत अछि, तहि‍ना हम सभ झगड़ाक बीआ समाजमे छीटि‍ देने छी, जे दुखद बात छी। नै चाहब जे समाजमे एना हुअए। बि‍आह सृष्‍टि‍क सि‍रजनक प्रक्रि‍याक अंग छी तँए एे संग छेड़-छाड़ अनुचि‍त। अपने लोकनि‍ जे कहि‍ देब ओइ‍ अनुकूल बि‍आह हएत। घमरथन शुरू भेल। घमरथनक कारण भेल कि‍छु देखौआ काज आ कि‍छु चोरौआ। मुदा सुमति‍ एलनि‍, कहलनि‍, जे लड़का-लड़कीक बि‍आह सामाजि‍क पद्धति‍क अनुकूल हुअए। ई भार अहाँपर रहल। जहि‍ना कोनो काजक प्रक्रि‍या होइ छै तहि‍ना भोजनक प्रक्रि‍याक अंग अारामो छी। जानल बात अछि जे नि‍यमि‍त भोजनसँ भि‍न्न भोजन बरि‍यातीमे होइ छै, तँए आराम आरो जरूरी अछि। प्रात:काल नअो बजेमे चाह-पान खा असि‍रवाद दैत आपस हएब। पलाउ आ खीर खेनि‍हार दुनू रहताह। बाजा-बूजीक बेवस्‍था घरवारीक। नै चाहब जे रस्‍ता-बाटमे अनगौआँ सभसँ झंझट हुअए। मोटा-मोटी यएह बुझू जे सएक धतपत बरि‍याती रहताह, जि‍नका लेल अहाँ दू-ठाम बेवस्‍था करब। अहूँ सभ बुझि‍ते छि‍ऐ आ हमहूँ सभ बुझि‍ते छि‍ऐ। एक भागक जे बरि‍याती रहताह हुनका लेल जहि‍ना भाेजनक वृहत् बेवस्‍था रहतनि‍ तहि‍ना अारामोक हेबाक चाही। ई नै जे मधमन्नी जहल जकाँ मुड़ी-पएर दुनूक पति‍यानी लगि‍ जाए। पुछलि‍यनि‍- जखन‍ दरबाजापर पहुँचबै तखन‍ कोन रूपे शुरू करबै? कहलनि‍- जे सभ भाँग खेनि‍हार छथि‍ ओ सभ घरेपर भाँग खेता आ रस्‍ते-बाटमे कतौ झाड़ा-झपटा करताह। पएर धोबसँ शुरू करब। एम्‍हर बरि‍यातीक सनोमान शुरू हएत आ ओम्‍हर आंगनमे बि‍आहक प्रक्रि‍या शुरू हएत। आठ बजे दरबज्‍जापर पहुँचि‍ जाएब। दस बजेमे खुआ-पि‍आ कऽ आराम करए छोड़ि‍ देबै। हँसैत सभ नि‍र्णए कऽ लेलनि‍। वि‍दा भेलौं।‍

रस्‍तामे झगड़ाक जड़ि‍ ताकए लगलौं। एते तँ बि‍सबास रहबे करए जे जहि‍ना चोर फँसबैले सि‍पाही घेराबंदी करैत अछि तहि‍ना जाल तँ लगबै पड़त। मन पड़ल दोसक गप। दोस कहने रहथि‍ जे अपना सभ कारोबारी छी, तँए कोट-कचहरीसँ सदति‍ काल बॅचैत रहक चाही। नै तँ अनेरे ओझरा जाएब। कारोबार कारोबारे रहि‍ जाएत। मुदा उखरि‍मे मुड़ी देलौं तँ मुसराक डर केने काज चलत। तहन तँ जहाँ धरि‍ संभव हएत तहाँ धरि‍ बँचब। अखनो समाजमे कहाँ कि‍यो खुलि‍ कऽ ताड़ी-दारू करै छथि‍। चोरनुकबा जरूर करै छथि‍। मुदा की हुनका सभकेँ अपना आँखि‍मे लाज नै छन्हि? जरूर छन्हि। मुदा जे होउ, जि‍नगी भरि‍ जहलेमे किअ‍ए नै रहऽ पड़ै मुदा खच्‍चरपुरबला सभकेँ सि‍खाएब जरूर। तेहेन कऽ नाङरि‍ सुरड़बै जे इलाकामे मुँह उठाएब मुसकि‍ल भऽ जेतनि‍। बेसीसँ बेसी दसटा बदमास गाममे हएत पचासटा आनि‍ कऽ रखि‍ देबै। मुदा सि‍खेबै जरूर।
आठ बजे गामक सीमामे बरि‍याती प्रवेश कऽ गेल। हमहूँ सभ साकांच रही। दरबज्‍जापर पहुँचि‍ते स्‍वागतक संग बैसारक कार्यक्रम शुरू भेल। दाय-माय वरकेँ अरि‍आति‍ आंगन लऽ गेलीह। बरि‍यातीक बीच प्‍लेटमे फ्राइ कएल मखान पहुँचि‍ गेलनि‍। दुनू समाजक (बरि‍याती-घरवारी) बीच मखानक मि‍ठासक संग गप-सप्‍प शुरू भेल। गाममे कत्ते सार्वजनि‍क स्‍थल...., कोन-कोन शि‍क्षण-संस्‍थान...., अस्‍पतालक की स्‍थि‍ति‍...., गाममे कत्ते कि‍सान परि‍वार....., कत्ते नोकरि‍हारा....., जोतसीम जमीन कत्ते...., बोरि‍ंगक संख्‍या कत्ते....., खेतीसँ अलग कारोबारी परि‍वार कत्ते....., कत्ते  परि‍वार गामसँ पड़ाइन कऽ रहला अछि आ‍ कत्ते दोखतरीपर आबि‍-आबि‍ बैस रहला अछि....। बड़ी जुमा कऽ महावीर जी लंकासँ आम फेकने रहथि‍ से ने तँ खास भेल‍ अछि। मुदा कि‍छु गोटेकेँ भाँगक मातल मनमे उठए लगलनि‍ जे मखानोक लाबा पानि‍यें पीब‍ भेल। ओ तँ अपने जि‍नगी भरि‍ पानि‍येमे रहल अछि तँ तइमे नीक जे दू घोंट बेसि‍ये कऽ पानि‍ पीब‍ लेब। बि‍ना मुंगबे मन थोड़े मानत। पेटेटा भरने नै ने होइ छै, मनो ने भरक चाही। मुदा फेर‍ मनमे उठनि‍ जे अखन कोनो उसरि‍ गेल।
अंगनाक ओसारपर बैस‍ हृदय काका आँखि‍ खि‍रा-खि‍रा तकैत तँ देखैत पाँचो बेटीक सि‍नेह। जेठकी बहि‍न माइक पीठपर अंगनाक चीज-बौसकेँ उठा-उठा घरमे रखैत तँ घरसँ नि‍कालि‍ आंगनमे रखैत। मझि‍ली तँ चारू बहि‍न‍क लेधे-गोधक आइ-पाइमे भि‍नसरसँ अखन‍ धरि‍ लगल अछि। सझि‍लि‍येकेँ की कहबै, बेचारीकेँ लगले हाथमे नीपौन देखै छी तँ लगले सि‍नुर-पि‍ठार। चारि‍मकेँ तँ गीति‍हारि‍येक आगू-पाछू करैत-करैत नाको-दम भेल छै। घुमैत नजरि‍ हृदय कक्काक बेटी-जमाएपर गेलनि‍। ओना देखि‍ये कऽ केने रहथि।‍ तँए देखैक ओ रूप नै‍। देखैक रूप रहनि‍ मौलाइल गाछक पोनगल सरारि‍मे खि‍लैत फूलकेँ। हारल मनुखक जीत। जे कहि‍यो कन्‍यादानकेँ उच्‍च कोटि‍क श्रेणीमे गनल जाइत छल ओ आइ समाजमे बेटि‍याह वंश बूझि‍ बि‍आहसँ वंचि‍त भऽ रहला अछि। वाह रे हमर समाज।

हम अपना काजक पाछू तबाह। पच्‍चीसो काजकर्त्तापर मलेटरीक नजरि‍। तीन कदम आगू तँ एक कदम पाछू भऽ सावधान। ओना अगुआएल-पछुआएल बरि‍याती समयेपर गाममे प्रवेश कऽ गेल छलाह मुदा समाजक दरबज्‍जापर जहाँ-तहाँ छि‍ड़ि‍आएल। दू-चारि‍ मि‍लि‍-मि‍लि‍ अड्डा जमौने। जइ पाछू एक-एक काजकर्त्ता लगल। ताड़ी जकाँ तँ इंग्‍लीसक गोष्‍ठी नम्‍हर नै ने होइत अछि। रंग-बि‍रंगक पीनि‍हार रंग-बि‍रंगक वस्‍तु।
साढ़े नअो बजे बरि‍याती भोजन कऽ ओछाइन पकड़ि‍ लेखा-जोखा करए लगलाह। हराएल-बरि‍यातीक खोज शुरू भेल। साढ़े दस बजे घरवारी बरि‍यातीक बीच समझौता भेल जे जते समए आगू बढ़ि‍ गेल ओइ‍सँ पछि‍लाकेँ छोड़ि‍ भोजने हुअए। सएह भेल। मुदा कमाल भऽ गेल। भोजन शुरू भेल, पेशाब करैले उठब शुरू भेल। पेशाब खोलैबला बा पानि‍मे मि‍ला टीपि‍-टापि‍ कऽ दस गोटेकेँ पि‍आ देल गेल। एक गोटेकेँ देखि‍ छोड़ि देलौं, दोसरोकेँ छोड़ि‍ देलौं। मुदा जहि‍ना चुट्टीक धारी चलैत तहि‍ना अछि‍ जखन‍ शुरू भेल अाकि‍ बुढ़हा झामलाल सबहक बीच जा कहलि‍यनि‍ जे अखन धरि‍ घरबैया समाजसँ कोनो ति‍रोट भेल हुअए से कहू? एक्के-दुइये पान-सात गोटे उपदेश दैत बजलाह- अखन जे हवा-बि‍हाड़ि‍ उठि‍ गेल अछि तइमे अहाँलोकनि‍केँ धन्‍यवाद दैत छी। हमहूँ सभ यएह गप करै छलौं जे गणेशजीक भक्‍त सभने छेनाक मि‍ठाइ खाइ छथि‍ मुदा ओ तँ अखन धरि‍ लड़ुए खाइ छथि‍। जुग बढ़ि‍ गेने लोको उधि‍आ जाएत। जे सुआद खाजा-मुंगबाक अछि ओ डि‍ब्‍बाबला रसगुल्‍लाक हएत। ओ तँ भाँज पुराएब छी। कहलि‍यनि‍- जा धरि‍ अपने लोकनि‍ ऐठाम छी ताधरि‍क नीक-अधलाहक जबाबदेह घरवारी हेताह मुदा अहाँ सभ जे उकठ करब, तहन.....। की भेल, की भेल? दोसर बरियाती सबहक छि‍छा-बीछा चलि‍ कऽ देखि‍यनु? वामा करे पड़ि‍ जे जाँघ कुड़ि‍यबैत रहथि‍ से उठले ने होइन। मुदा कासपरक दहीक ढकार फुर्ती आनि‍ देलकनि। सभ कि‍यो उठि‍ दोसर पंडालमे पहुँचलाह तँ देखलनि‍ जे एना किअ‍ए रेलबे स्‍टेशनक टि‍कट खि‍रकी जकाँ दुनू दि‍सुक पाँती‍ लगल अछि। मुदा से दसे-बारहे गोरेकेँ देखै छी। खेबा-पीबाक वस्‍तुमे जँ कि‍छु गड़वड़ी रहि‍तए तँ यहागंजा होइतै। सेहो ने देखै छी। एक-दोसरासँ आँखि‍ मि‍ला प्रश्न पुछैत तँ मुड़ी डोला जबाब भेटनि‍। मुदा कि‍छुओ दोख जाबे ककरो नै अछि ताबे एना भऽ किअ‍ए रहल अछि। अान ठाम कहाँ भेल। मुदा बि‍ना आधारे कोनो बात मानि‍यो लेब से उचि‍त-नै‍। आमपर फेकल गोला जकाँ जे लागि‍यो सकैए आ हुसि‍यो सकैए। इम्‍हर आराम करैले सेहो मन कछमछाइन। दोहरौि‍लयनि‍- जँ अपने लोकनि‍ समाजक सीमा रेखा तोड़ि‍ घि‍नबए चाहब तँ समाजोकेँ ई अधि‍कार बनै छै जे सीमाक सि‍पाही जकाँ अपन मातृभूमि‍क रच्‍छा करए। कबछुआ जकाँ भकभका कऽ तँ लगलनि‍ मुदा घि‍नबैक कारण बुझबे ने करथि‍। खि‍सि‍या कऽ एकगोटे बजलाह- कोन-कहाँ बोतल पीब‍-पीब‍ बरि‍याती औताह आ सभ कि‍छु (समाजि‍क गुण)केँ खेने-पीने चलि‍ जेताह। एको क्षण ई सभ जीबै नै देताह। कहि‍ छोटका भाएकेँ कहलखि‍न- बौआ, जि‍नका जे मन फुड़तनि‍ से करताह। अपन इज्‍जत-आबरू अपना हाथमे लऽ चलह। एक्के-दुइये ससरि‍-ससरि‍ घरमुँहा हुअए लगलाह।‍
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