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Saturday, April 7, 2012

फागु :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कौआ डकैसँ पहि‍ने कतौ-कतौ गाछपर परुकि‍क बोल फूटल कि‍ रघुनी बाबाक नीन टुटलनि‍। जहि‍ना अर्द्ध-चेत  अवस्‍थामे कि‍छु बजा जाइत तहि‍ना मुँहसँ नि‍कललनि‍-
आइ फगुआ छी। राति‍ भरि‍क हँसैत चान सुर्जक लालि‍मा धरि‍ अरि‍आति‍ आबि‍ चुकल अछि‍। कते सुन्नर राति‍-दि‍नक संग मि‍लि‍ रहल अछि‍। जे जीबए से खेलए फागु
बजैत-बजैत चेतना चेत गेलनि‍। चेतते मन दोहरौलकनि‍-
जे जीबए से खेलए फागु।
मुदा जीवि‍त-मृत्‍युक बीच एहेन लट्टा-पट्टी अछि‍ जे के मरल के जीबैए, बि‍लगाएब कठि‍न अछि‍। कि‍यो जीवि‍त-मृत्‍यु बुझबे ने करैत तँ कि‍यो बुझि‍तो मानबे नै करैत। कि‍यो जँ बुझबो करैत तँ काते हटौने रहैत। शि‍वजीक सीमा खि‍ंचब कठि‍न अछि‍। पौह फटि‍ते जहि‍ना सुर्जक आगमन हुअए लगैत तहि‍ना रघुनी बाबाक अलि‍साएल मन जि‍नगी दि‍सि नजरि‍ उठौलकनि‍।

जहि‍ना कोनो ि‍वद्यार्थीक पहि‍ल कलम कोनो प्रश्नमे अॅटकि‍ जाइत तहि‍ना रघुनी बाबाक मन अॅटकि‍ गेलनि‍। ओछाइनपर पड़ले-पड़ल कर (करोट) घुमलाह। मनमे उठलनि‍, अनाड़ि‍यो-धुनाड़ि‍यो कोदारि‍सँ परती खेत तामि‍ लइए। कहाँ ओकरा हर जकाँ लूरि‍ सि‍खए पड़ै छै। मुदा बि‍ना लूरि‍ये तँ कोदारि‍यो नै पारल जा सकैए। अँटकल मनमे उठलनि‍, कि‍छु लूरि‍ देखि‍यो कऽ भऽ जाइत, कि‍छु हाथ पकड़ि‍ सि‍खाओल जाइत आ कि‍छु रगड़ि‍-रगड़ि‍ कऽ सि‍खए पड़ैत छै। ठमकलाह। पुन: मोनमे उठलनि‍, जहि‍ना पानि‍ माटि‍क ऊपर छि‍छलि‍ धारा बनि‍ आगू बढ़ैत, तहि‍ना तँ सुर्जोक कि‍रि‍ण छि‍छलैत पूबसँ पछि‍म चलैत अछि‍। अॅटकै कहाँ अछि‍। हँ अॅटकैए। खाधि‍मे पानि‍ अॅटकैए, तामल खेतक गोलामे सुर्जक कि‍रि‍ण अॅटकैए। मोनमे संचार भेलनि‍। दि‍नक सगुन उचाड़ए लगलाह। फगुआक दि‍न छी। फागुनक वि‍दाइ सेहो छी। आइये राति‍मे चैतक आगमन सेहो हएत। मोन मधुएलनि‍। पावनि‍क दि‍न छी। वसन्‍ती पावनि‍। पुआ-मलपुआ खाएब, रंग-अबीर खेलब, होलीक संग वि‍रहा वसन्‍त, ढोल-डम्‍फाक संग गेबो करब आ नचबो करब। मोन पसीज गेलनि‍।
एक दि‍नक भोजे की आ एक दि‍नक राजे की।
ठमकल मोन पाछू बढ़लनि‍। वसन्‍तक मध्‍य, होली पावनि‍। माघक इजोरि‍या पंचमी होलीसँ एक मास बीस दि‍न पूर्व वसन्‍तक जन्‍म भेल। मुदा चैत-बैशाखकेँ वसन्‍त मानने तँ पूर्व पक्षे हेरा जाइत अछि‍। जँ मध्‍य मानब तैयो पचास-साठि‍क दूरी बनि‍ जाइत अछि‍। ओझराएल मोन मुड़छि‍ कऽ तुड़ुछि‍ गेलनि‍। भने दस बर्खसँ होली मनाएबे छोड़ि‍ देने छी। लऽ दऽ कऽ भाजने टा शेष बचैए। सेहो दि‍नेक फल छी। मुदा फलो तँ कअए तरहक होइए- मि‍ठो होइए, खट्टो होइए आ षट-मधुर सेहो होइए। तीनू संगो रहैए आ अलगो-अलगो रहैए। जामंतो प्रकारक भोजनमे तीनूक अपन-अपन महत छै। भोजमे जएह अचार अपन वि‍शेष मतह बनौने अछि‍, वएह असगरमे दाँतकेँ कोति‍या कात कऽ दैत अछि‍। जे काज करैसँ हनछि‍न करए लगैए। मोनकेँ घुमि‍ते उपकलनि‍, वसन्‍तक आगमनक दि‍न। आइये सरस्‍वती पूजा सेहो छी आ हरबाह गृहस्‍तक हर परतीपर ठाढ़ करत। ठाढ़े नै करत अढ़ाइ मोड़ घुमबो करत। अढ़ाइये मोड़क बोइनि‍यो तहि‍ना। सभ परानी खेबो करत आ जते धानसँ हरक नाश डुमतै तते लैयो जाएत। पसारी भाथीक आगि‍मे धान-मरूआ लाबा फोड़ि‍ सालक समए गुनत। मुदा सेहो होइ कहाँ छै? हेबो केना करतै, गाए-महि‍सि‍क मास एक्कैस-बाइस दि‍नक होइ छै आ मनुक्‍खक भऽ जाइ छै तीस दि‍नक। जहन कि‍ दुनू संगे रहैए। संगे लक्ष्‍मी बनैए, संगे ऐरावत। रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍- अनेरे कोन फेड़मे पड़ै छी। पावनि‍क दि‍न छी हँसी-खुशीसँ उठब खाएब-पीब मौज-मस्‍ती करब। जे गति‍ सबहक से गति‍ हमरो। तइले अनेरे एते मगज-मारी करैक कोन जरूरति‍। राम-श्‍याम करैत रघुनी बाबा ओछाइनसँ उठैक वि‍चार केलनि‍। तखने गाम दि‍सि‍सँ पीह-पाहक अवाज कानमे पड़लनि‍। भोरहरबा नढ़ि‍याक अवाज जकाँ अकानए लगलाह जे कि‍ कहै छै।
रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍, ओह, अनेरे पावनि‍ छोड़लौं। जाबे जि‍बै छी ताबेए ने। मरि‍ जाएब तँ के देखत आ केकरो देखब। मोनमे फेरि‍ उपकलनि‍, कि‍अए नै पावनि‍ छोड़ी? जइ होली पावनि‍क नाओंपर इज्‍जत-आबरूक, धन-सम्‍पति‍क लूट हुअए ओ पावनि‍ कि‍अए करब। मुदा भुताहि‍ गाछ बूझि‍ कि‍यो आमक गाछ तर जाएब छोड़ि‍ देत तँ आम केना खाएत? जामुनपर सहजहि‍ जम बैसलै अछि‍। बेल फड़नहि‍ कौआकेँ की? खैर जानह जओ जानह जाँत। गामक बात गौआँ जानह। मुदा परि‍वार तँ अपन छी। परि‍वारक नीक-बेजाएक तँ जबाब दि‍अए पड़त। मुँहो चोरा कऽ रहब नीक नै। कते दि‍न जीबे करब। आइसँ फेरि‍ फगुआ खेलब। मुदा खेलब कतए? परि‍वारक संग खेलब...।
रघुनी बाबाक मोन नीक जकाँ असथि‍रो नै भेल छलनि‍ आकि‍ दादी आबि‍ टोकलकनि‍-
सौंसे गामक लोक हर-बि‍र्ड़ो करैए आ अहाँले भोरो ने भेल। आबो उठब कि‍ सूतले रहब?”
जहि‍ना नोनगर बि‍स्‍कुट खेलापर चाह पीबैक मोन होइत तहि‍ना रघुनी बाबाब मोन भेलनि‍। घोकचल भौंहुक बीचक करि‍या तीर तनैत बजलाह-
जखन अहाँ आबि‍ये गेलौं तखन कि‍अए ने गाछक जड़ि‍येमे पानि‍ ढारी जे डारि‍-पात सगतरि‍ पहुँचतै। अहीं संग फगुआ खेलब।
बाबाक बात दादीक हृदैकेँ बेधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत उत्तर देलखि‍न-
अखन जे तीस-पेंइतीस गोरेक फुलवाड़ी लगल अछि‍ ओ केकर छि‍ऐ? जहि‍ना कृष्‍ण वृन्‍दावनमे फागु खेलाइत छलाह तइसँ कि‍ कम हमर अछि‍।
मुस्‍की दैत रघुनी बाबा कहलखि‍न-
अखनो धरि‍ मोनमे बेइमानी अछि‍ये जे अपन कहलि‍ऐ आ हमर छोड़ि‍ देलि‍ऐ?”
अड़हुलक कली सदृश तीर साधि‍ दादी दगलनि‍-
अहाँकेँ आन बुझै छी जे फुटा कऽ कहि‍तौं।
अच्‍छा छोड़ू ऐ सभकेँ। परि‍वारमे सभकेँ कहि‍ दि‍यौ जे दुपहर तक सभ कि‍यो नहा-खा तैयार भऽ जाए। बेरू पहर दुनू गोरे केना जुआनी बि‍तेलौं से सौंसे परि‍वारकेँ सुना देबै।
बाबाक बात सुनि‍ते दादीक आँखि‍ मधुआ गेलनि‍। बजलीह-
आबक लोककेँ नि‍महतै। मन अछि‍ कि‍ नै जे दुरागमनक तेसरे दि‍न पटुआ काटए पू-भर गेल रही।। ऐठाम रौदी भऽ गेल रहै आ डेढ़ बख्रक पछाति‍ आएल रही।
दादीक बात सुनि‍ते रघुनी बाबा उठि‍ कऽ बैसैत बजलाह-
अझुका लोकक मने बदलि‍ गेल अछि‍। जेकर देखा-देखीसँ बालो-बच्‍चा प्रभावि‍त भऽ रहल अछि‍।
बजैत-बजैत जहि‍ना दादी-दुनि‍याँ बि‍सरि‍ गेली तहि‍ना सुनैत-सुनैत कथा-वक्‍ता-श्रोता जकाँ रघुनी बाबा जि‍नगीक बोनमे बोना गेला। एक मन औनाए लगलनि‍ तँ दोसर मन गाबए लगलनि‍-
सदा आनन्‍द रहे अही दुआरे मोहन खेलै होरी हो।
दादी दरबज्‍जासँ आंगन दि‍सि‍ गुनगुनाइत बढ़लीह-
कि‍यो लुटाबए अपन महि‍मा।

जुआनीक रंगमे रंगि‍ रघुनी बाबा गाम दि‍सि‍ वि‍दा भेला। दरबज्‍जाक बाट टपि‍ गामक बाटपर पहुँचते मोनमे उठलनि‍- देखा चाही, कत्ते नवतुरि‍या सभ देहपर रंग फेकैए आ कत्ते जुआन-जहान अकाससँ अबीर उड़बैए। मुदा लगले मोनमे उठि‍ गेलनि‍, लोको लाज तँ छी। धि‍या-पुता केना रंग देत? कि‍अए ने देत, खेलाएत तँ अपनामे, मुदा छि‍च्‍चा उड़ि‍ जे पड़त आेकरा कि‍ कहबै।
एका-एकी दादी परि‍वारक सभकेँ अपने मुँहेँ कहलनि‍। बाबाक समाद दादी भरि‍ मोन बॅटलनि‍। नीक-बेजाए दुनूक समीक्षा हुअए लगल। अन्‍त-अन्‍त यएह सभ बुझलक जे कहि‍यो ने से पावनि‍ दि‍न। बूढ़-पुरानक हुकुम छि‍यनि‍, तँए यादि‍ स्‍वरुप सुनि‍ लेब नीके हएत। के कहलक अगि‍ला होली देखता आकि‍ नै। जँ देखबो करताह तँ के कहलक जे पाँखि‍ तोड़ि‍ कऽ देखताह आकि‍ ओछाइन धेने देखताह तेकर कोन ठेकान। मुदा ईहो बात मोने-मोन उठैत जे वएह देखताह हमहीं नै देखि‍ऐ। कमसँ कम तँ ई हएत कि‍ने जे सौंसे परि‍वार एकठाम बैसि‍ पवनि‍क दि‍न बि‍ताएब। दादीकेँ पोती कहि‍यो देलकनि‍ जे आइ भानसो तोरे करऽ पड़तौं।

समैसँ कि‍छु पहि‍नहि‍ परि‍वारक सभ कि‍यो दरबज्‍जापर पहुँचल। बाबा-दादीक बात तँए महादेव-पार्वतीक फागु सबहक मोनमे घुमैत सबहक मुँह बन्न। सभ बाबा-दादीक बात सुनैले कान पाथि‍ नजरि‍ अॅटकौने। रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍ जे ति‍ल-तण्‍डुल जँ फेंटा जाए तँ बि‍लगाएल जा सकैए मुदा जौं पानि‍-माटि‍ फेंटा जाएत तखन केना बि‍लगाओल जाएत। तीन खाड़ी बीच परि‍वार अछि‍। सबहक अपन-अपन स्‍तर अछि,‍ अपन-अपन जि‍नगी अछि‍। जि‍नगि‍येमे खुशि‍यो अबैत जाइत रहैत अछि‍। मुदा जहि‍ना लोक अपना नीक लेल सभ कि‍छु करैए तहि‍ना ने परि‍वारो लेल करैए। भलहिं परि‍वार पैघसँ छोटे कि‍अए ने भऽ गेल हुअए। फगुआ दि‍नक उमकीमे मोन उमकि‍ गेलनि‍। जहि‍ना बर्खा पानि‍मे धि‍या-पुता उमकैए तहि‍ना बबो-दादीक मोन उमकए लगलनि‍। दादीकेँ बाबा टीप देलखि‍न-
जइ साल दुरागमन भेल रहए आ परदेश गेल रही, से मोन अछि‍ आ कि‍ बि‍सरि‍ गेलौं?”
बाबाक प्रश्नक उत्तर दादी केना नै देथि‍न। बाबाक ने रोच (धाख) मुदा परि‍वारक तँ गारजने। नि‍चलासँ ऊपर छि‍हे। सि‍नेमा कलाकार जकाँ दादी पोजमे बजलीह-
लोक सुख बि‍सरि‍ जाइ छै, दुख मोने रहै छै। कि‍अए ने मोन रहत।
दादीक पोज देखि‍ छोटकी पर-पुतोहु अपन हालक दुरागमन बूझि‍ बाबाक प्रश्नपर जोर देलक। पुतोहुक टॉट बोली सुनि‍ दादीक मोनमे उठलनि‍ जे मुँहजोर पुतोहु अछि‍ एकटा उत्तर देबै तँ दोसर दोहरा देत। मुँह नोचि‍ कऽ खा जाएत। तइसँ नीक जे अपने मुँहे कहए दि‍यनि‍।
दादीकेँ हारि‍ मानैत बूझि‍ रघुनी बाबा लपकि‍ प्रश्न पकड़ि‍ बाजए लगलाह-
कनि‍याँ, नव-कबरि‍ये रही। मोछ-दाढ़ीक पम्‍ह अबि‍ते रहए। तीन सालसँ परदेश खटैत रही। जेठ मास दुरागमन भेले रहए। दुरागमनक तेसरे दि‍न मेड़ि‍या सभ पू-भर जेबाक समए बनौलक। अपनो घरमे चूड़ा-भुसबा रहबे करए बटखरचा लऽ लेलौं। भाड़ा-भुड़ी ले गोरलगाइबला रूपैया रहबे करए। तेसरा दि‍न चलि‍ गेलौं।
जि‍ज्ञासा करैत पुतोहु पुछलकनि‍-
पएरे गेलखि‍न आ कि‍ गाड़ी-सवारीसँ।
जना गुड़ घावसँ पीज नि‍कलै काल सुआस पड़ै छै तहि‍ना बाबाक मोनमे सेहो भेलनि‍। वि‍ह्वल होइत बजलाह-
कनि‍याँ, नि‍रमली तक रेलगाड़ीसँ गेलौं। तेकर बाद पूब दि‍सक रस्‍ता धेने कोसी घाटपर पहुँचलौं।
धार केना टपलखि‍न?”
कनि‍याँ, जेठुआ समए रहै। धारक पेट खाली भऽ गेल रहै मुदा तैयो अगम पानि‍ तँ रहबे करै। ओना फुलाइक समए भऽ गेल रहै मुदा फुलाएल नै रहै। बेसी नाव भदबरि‍यामे डुमै। एकबेर एहि‍ना भेल जे अपने गौआँक मेड़ि‍या घुमैकाल डूमि‍ गेलै।
उत्सुक होइत पुतोहु पुछलकनि‍-
कते गोरे रहथि‍?”
तेरह-चौदह गोरे अपना गामक रहथि‍ आर गोटे आन-आन गामक। चालि‍स-पेंइतालि‍स गोरे नावपर चढ़ल रहथि‍।
कते दि‍न पू-भर कमाइ ले गेलखि‍न?”
मोन पाड़ैत रघुनी बाबा बजलाह-
तेकर ठेकान अछि‍। मुदा तैयो बीस-पच्‍चीस बर्ख तँ गेलै हएब।
कअए दि‍ने पहुँचै छेलखि‍न?”
आइ बोर तीनि‍ये दि‍नमे रंगैली पहुँचि‍ गेलौं। बजारसँ थोड़बे हटि‍ कऽ पकड़ा गेल। चि‍न्‍हरबे गि‍रहत रहए।
जौं ओइठीम काज नै पकड़ैतनि‍ तखन कि‍ करि‍तथि‍न?”
पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक जुआनी मोनमे उठलनि‍। जोशमे बजलाह-
की करि‍ति‍ऐ! कोनो कि‍ ओतबे देखल-सुनल रहए। मोरंगमे नै काज भेटि‍तए तँ आगू बढ़ि‍ जैति‍ऐ। सि‍लीगुड़ी असाम, ढाका तक ठेका दैति‍ऐ। मुदा काज केने बि‍ना नै अबि‍ति‍ऐ।
कोन काज करै छेलखि‍न?”
काजक नाओं सुनि‍ बाबाक मोन बौरा गेलनि‍। बजलाह-
कनि‍याँ, काजक कोनो ठेकान अछि‍। गि‍रहस्‍तौआ सभ काजक लूरि‍ अछि‍। ओना धन रोपनी-कटनी आ पटुआ कटैले जाइ छलौं।
कते दि‍न रहै छेलखि‍न?”
सालमे दू-बेर जाइ छलौं। घुमा-फि‍रा कऽ छअ मास लगि‍ जाइ छलए। धन कटनीमे तँ एक-लगना काज रहै छलए। मुदा पटुआ समैमे काज छि‍ड़ि‍या जाइ छलए।
मुँहपर एकटा आंगुर लैत पुतोहु पुछलकनि‍-
एक-लगना काज केकरा कहै छथि‍न?”
पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक गुरुमन जागि‍ उठलनि‍। नजरि‍पर नजरि‍ दैत कहए लगलखि‍न-
एक-लगना काज ओ भेल जे क्रमबद्घ चलैए। एकक बाद एक काज अबैए। जेना भानस करै काल चुल्हि‍ पजारि‍ बरतन चढ़बै छी। अदहन दइ छि‍ऐ। पानि‍ गरम होइए तखन सि‍दहा लगबै छी। यएह क्रम एक-गलना भेल। मुदा जखन रोटि‍यो पकाएब रहत, तरकारि‍यो बनाएब रहत आ भातो रान्‍हब रहत तखन ओ काज छि‍ड़ि‍या जाएत। छि‍ड़ि‍आएल काजमे अधि‍क भनसि‍यो आ चुल्हि‍योक जरूरति‍ पड़ि‍ जाइ छै। नै जँ भनसि‍या असगरुआ रहल तँ छि‍गड़ी तानमे पड़ि‍ गेल।
एक-लगना काज केना करै छेलखि‍न?”
पटुऐक कही छी। पहि‍ने ओकरा कटलौं। काटि‍ कऽ जमा कऽ देलि‍ऐ। ती-चारि‍ दि‍नमे पत्ता झड़ि‍ जाइ छलै। तखन ओकरा अॅटि‍याहा बोझ बनबै छलौं। पानि‍ ठेकि‍ना उघि‍ कऽ लऽ जाइ छलौं। पानि‍मे बाँसक खुट्टी पाटि‍‍ कऽ, तीन-चारि‍ छल्ली लगा दइ छेलौं एक-दोसराकेँ दबबो केलक आ ऊपरसँ माटि‍क चेका चढ़ा दइ छलौं। पानि‍क तरमे सभ डुमि‍ जाइ छलै। गोरलाक बीस-पच्‍चीस दि‍नमे सीझ जाइ छलै। तखन ओकरा मुंगरीसँ झाड़ि‍-झाड़ि‍ साफ करै छलौं।
पटुआमे भरि‍गर काज की होइ छै?”
प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक आँखि ढबढबा गेलनि‍। आँखि‍ ढबढबाइते पानि‍ पड़ल खजुरी जकाँ मधुर भऽ गेलनि‍। कहलनि‍-
कनि‍याँ, अखन अहाँ बाल-बोध छी। दुनि‍याँक तीत-मीठ नै बुझलि‍ऐए मुदा कहै छी। काजे जि‍नगी छी। तँए काजसँ सटबाक कोशि‍क हरदम करी। हरदम करैक मतलब ई नै जे भरि‍ दि‍न देहे धुनी। जहि‍ना राजमि‍स्‍त्री मकानक नक्‍शा बना मकान बनबैए तहि‍ना काजोक छै। छोटे-काज नमहर लग लऽ जाइ छै आ आगू मुँहे टुसि‍कि‍येबो करै छै।
प्रश्न छूटि‍ गेलनि‍ बाबा?”
कनि‍याँ, की कहब? तरकारी तँ ओलो छी जे गाछमे एकेटा होइए, जा कऽ खट दे उखाड़ि‍ लेब। उखाड़ैमे जते समए लागल ओइसँ कम समैमे सजमनि‍ तोड़ल जा सकैए। मुदा सैकड़ो फड़नि‍हार सजमनि‍ बि‍ना देखने-सुनने टेबि‍ केना सकै छी। टेबब असान काज तँ नै। मोनमे दूटाक तुलना करब छी। तहूमे कि‍छु एहेन होइत जे कमे उमेरमे फुफुआ कऽ नमहर भऽ जाइत आ कि‍छु लुलुआ कऽ बौना भऽ जाइत। जँ छोट जानि‍, छोड़ैत जाएब तँ ओ तरेतर जुआ जाएत, मेहनति‍ डूि‍म जाएत। तँए हल्‍लुको काज भारी होइए।
बाबा, फेर भसि‍या गेलखि‍न?”
नै कनि‍याँ, भसि‍आइ कहाँ छी। होइए जे हृदए फाड़ि‍ अहाँ सभक बीच छि‍ड़ि‍या दी आ अहाँ सभ ति‍ति‍र जकाँ सभ पीबि‍ ली। मर्द बनि‍ जखन काज करए नि‍कललौं, तखन भरि‍गर की आ हल्‍लुक की। मुदा एकटा बात धि‍यानमे जरूर राखक चाही जे कोन काजमे कते जोखि‍म उठबए पड़त। जइ काजमे जते जोखि‍म होय ओइमे ओते सतर्क रही। तर्के रास्‍ता बनबैए। पटुआ काजमे सभसँ भरि‍गर अछि‍ पटुआ झाड़ि‍ सोन बनौनाइ। जहि‍ना एक-दोसर जि‍नगी पबैत तहि‍ना डाँड़ भरि‍ सड़ल पानि‍मे जइमे जोंक-ठेंगीक संग वि‍षैला साँप सेहो रहैत। चानि‍पर टहटहौआ रौद, नि‍च्‍चा डाँड़ भरि‍ पानि‍। सर्द-गर्मक बीच शरीर। तइपर एक-लगना ठाढ़ भऽ कखनो एकटंगा ठहुन बना पटुआ जड़ि‍ जोड़ल जाइत, तँ कखनो वामा हाथमे उठा दहि‍ना हाथे मुंगरीसँ झाड़ल जाइत। माछी-मच्‍छड़क तँ ठेकाने कोन।
सि‍नेहासि‍क्‍त होइत पुतोहु पुछलकनि‍-
कते दि‍नक पछाति‍ घुड़लखि‍न?”
डेढ़ बर्खपर घुमलौं। आेइ साल रौदी भऽ गेल रहै। रूपैया पठा दि‍ऐ आ अपने कमाय।
अनदि‍ना, बि‍ना सि‍जनक समैमे कोन काज करै छेलखि‍न?”
कनि‍याँ, वएह समान सभ जेना- पटुआ, तोरी, धान इत्‍यादि‍ देहातमे उपजै आ तैयार भऽ कऽ बजार अबै-छलै। बजारोमे काज बढ़ि‍ जाइ छलै। उठा काज करै छलौं।

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