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Monday, April 9, 2012

डॉ.शंभु कुमार सिंह- अवसरक निर्माण



(1)

धनमाक थुथूने देखि हम बुझि गेलहुँ, जे आई फेर ओकर कुहबा पाबनि भेल छैक।
प्रो. साहेबक ओहिठाम नोकरी करबाक ई धनमाक चरिम मास छलैक। ओकर बड़का भाय सेहो हिनकहि ओहिठाम दू बरखसँ नोकरी करैत रहैक, पछिले मास ओकर ट्राँसफर प्रो. साहेबक छोट भाए लग झरिया भऽ गेलैक। धनमाक भाइये तीन माससँ ओकरा ट्रेनिंग दैत छलैक बर्तन-बासनसँ लऽ कऽ रसोई बनाएब, बारहनि पोछा, कपड़ा-लत्ता साफ करब आदि-आदि। सभ लूरि तँ धनमा सीखि नेने रहए, खाली ओकरा तरकारीमे नून देबाक ठेकान नहि रहैक आ ताहि कारणेँ ओकरा कहियो-कहियो कुहबा पाबनि सहए पड़ैक।
बारह बरखक धनमा देखएमे एकदम गोर-नार। उज्जर दग-दग अँगाकेँ जखन ओ सिलेठिया रंगक हाफ-पेन्टक तर बिना बेल्टहिक डोराडोरि चढ़ा अंडरसेटिंग करैक तँ बुझाइक जे कोनो अंगरेजी स्कूलक चटिया हो। छौँड़ा चौथा किलास धरि पढ़लो रहैक, बाप कहलकै गरीबक बेटा आब एहिसँ बेसी पढ़ि कऽ की करतैक? जो नोकरी कर गऽ घरमे दू पाइक मदति भऽ जाएत।

ने जानि किएक हमरा धनमासँ सिनेह भऽ गेल छल। तेँ जहिया-जहिया हम प्रो. साहेबक बासापर रातिकेँ ठहरी, भरिपोख धनमासँ गप्प-सप्प करी। नेना जाति, पहिल बेर घरसँ निकलल रहैक, से जखन-जखन ओकरा अपन माए-बापक यादि आबैक ओ कपसि-कपसि कऽ कानए लागए। ओकर कानब आ मनोदशा देखि हमरा ओकरापर दया आबि जाइत छल। ओकरा प्रति दया हेबाक कारण हमरा आ धनमामे एकटा सामानता रहैक। धनमो अपन परिवारक लेल नोकरी करैत रहए आ हमहुँ अपन परिवारक खातिर नोकरी करैत छलहुँ। अंतर यैह छलैक जे धनमाक उमिर रहय 13बरख आ हम रही 25 बरखक। धनमा अपन सभटा दरमाहा अपन- माए-बापकेँ दऽ दैत छल आ हम दरमाहामे सँ किछु बचा कऽ पढ़ितो छलहुँ। एखन हम एम.ए. क छात्र रही।
ओना तँ धनमा सभ दिन ड्राइंग हॉलमे सूतैत छल मुदा ओहिदिन ओ हमरहि पलंगक नीचाँ अपन पटिया-दरी बिछा पड़ि रहल। जखन राति नि:शब्‍द भऽ गेलैक, प्रो. साहेब आब सूति गेल हेताह, ई जानि धनमा हमरा टोकलक। अइँ यौ भाइजी, टाटाक नून आर नूनसँ बेसी नूनगर होइत छैक की?”
नहि तऽ!
नहि यौ भाइजी हम से नहि मानब, एहिसँ पहिने हमरा ओहिठाम कैप्टन कूकनून अबैत रहैक, तरकारीमे दू चम्मच दियैक तखनो मालिक आ मलिकाइन किछु नहि बाजए। ई सार टाटाक नून जहियासँ आएल छैक हमरा एकर अंदाजे नहि रहैए। डेढ़ चम्मच दिऔक तखनो जहर आ एक चम्मच दऽ दिऔक तखनो जहर। अही नूनक खातिर हम एतेक मारि खाइत छी।
अच्छा एकटा बात कह धनमा, “तोरा ओहिठाम टाटाक नून कहियासँ अबैत छौक?”
एक माससँ।
एहि एक मासमे तोरा कैक बेर मारि लागलौ?”
अही बेर।
बस । एकर माने भेलैक जे गलती तोहर छौक नूनक नहि।
आ हमरा मालिकक कोनो गलती नहि? ओ नहि बुझि सकैत छथि जे धिया-पुता छैक एक दिन गलतीए भऽ गेलैक तँ की हेतैक, एहन छोट-सन गलतीक लेल एहन मारि? हुनक बेटो तँ हमरे तुरिया छैक, ओकरा किएक नहि मारै छथिन? जानै छी भाइजी काल्हिए गणेश हमर 30 टा टका चोरा कऽ आइसक्रीम खा लेलक, मुदा चोरि-सन अपराधक बाबजुदो मालिक ओकरा किछु नहि कहलथिन।
तोहर 30 टका चोरा लेलकौक! तोरा कतसँ टका एलौ?”
हुँ-हुँ भाइजी, हमरा 93 गो टका छैक। मालिकक ओहिठाम जे पर-पाहुन सभ अबैत छथिन से हुनका सभक अटैची आ बैग जे नीचाँ धरि लऽ जाइत छियैक तँ ओ सभ कहियो-कहियो हमरा पाँच-दस टका दऽ दैत छथि। हम ई टका अपना मालिकीनिकेँ दऽ दैत छियैक राखए लेल। ओहि घरमे टेबुलपर एसनो वला एकटा उजरा डिब्बा देखने छिऐक? ओहिमे हमर सभटा टका रहैत छैक। 100 सए टका पूरि जतैक तँ हम अपना छोटकी बहिन लऽ फराक कीनबै। काल्हि गणेश ओहिमेसँ टका चोरा नेने छलैक।
अच्छा कोनो बात नहि, प्रो. साहेब गणेशकेँ किछु नहि कहलथिन एकर माने भेलैक जे आगू चलि कऽ ओकर संस्कार खराब भऽ जेतैक। तोँ चोरि नहि करैत छैँ एहि लेल तोहर संस्कार नीक भऽ जेतौक। एखन तो नेना छैँ ई सभ बात नहि बुझबेँ।
हँ यौ भाइजी, हम सभ बात बुझै छियै। गणेश पढ़ै-लिखै छैक ओकर संस्कार कतबो खराब हेतैक तैयो ओ बाबूए कहौताह आ धनमा धनमे रहि जाएत।
एहन बात नहि छैक धनमा, गुलटोपीकेँ चिन्हैत छही? ओ कतेक पढ़ल-लिखल छैक से जानैत छही? नहि ने! ओ औंठा छाप छैक, औंठा छाप, आ केहन चमचम करैत गाड़ीपर चढ़ैत छैक? ओकर मुंसी बी.ए.पास छैक। गुलटोपी ठिकेदार छियै। लोकमे बस मेहनति, लगन आ इमानदारी हेबाक चाही ओ कहियो किछु कऽ सकैत अछि। ई सभ बात तोँ एखन नहि बुझि सकबेँ कने आर चेठनगर भऽ जो तखन अपनहि बुधि भऽ जेतौक।
..............................
अइँ यौ भाइजी! अहुँ गरीब छियै?”
के कहलकौ?”
प्रो. साहेब बाजैत रहथिन जे विवेक बड्ड गरीब छैक। कमा कऽ घरो देखै छैक आ पढ़बो करै छैक।
हँ, ठीके कहलथुन।
तँ अहाँ मैथिली किएक पढ़ैत छी, साइंस किएक नहि पढ़ैत छी? साइंस पढ़िकए लोक डागदर, इंजीनियर बनैत छैक। प्रो. साहेब कहैत रहथिन बेचारा साइंस कतएसँ पढ़तैक? ट्यूशनक टका कतएसँ आनतैक तैँ मैथिली पढ़ैत छैक।अइं यौ भाइजी मैथिली बड़ खराप विषए होइत छैक?
नहि रौ बकलेल। भाषा कोनहुँ खराप नहि होइत छैक। भाषाक विषएमे सोचएबला खराप होइत छैक। अच्छा एकटा बात बता तोरा जँ मैथिली बाजए नहि आबितौक तँ तू हमरासँ बात कऽ सकितेँ?”
नहि यौ भाइजी! प्रो. साहेब फूसि बाजैत रहथिन। मैथिली सन सरस आ नीक आन कोनो भाषा भइयेँ नहि सकैये। हुनका देखैत छियैन जे ओ प्रो. सभक संगे मैथिली बाजैत-बाजैत अंगरेजीमे किदन कहाँ गिटिर-पिटिर, गिटिर-पिटर बाजए लागैत छथिन।
अच्छा ई बताउ मैथिली पढ़ि कऽ अहाँ प्रो. बनि सकै छी?
हँ, किएक तहि!
तखन तँ अहाँ प्रो. अवश्ये बनब भाइजी।
धुर, पकलाहा नहितन।
भाइजी एकटा बात आर कहू, “गरीब लोक कहियो धनिक बनि सकैत अछि?”
एकदम बनि सकैत अछि?”
धनमा कने काल चुप रहल, आ चुप्पे-चुप सुति रहल।

(2)
हम साल भरिसँ दिल्लीक एकटा प्राइवेट कम्पनीमे काज करैत छी। प्रेमनगरसँ लाजपतनगर धरि प्रायः बससँ आन-जान होइत अछि, कहियो काल लोकल ट्रेनसँ सेहो चलि जाइत छी। आइ कम्पनीमे कने बेसी काल रुकए पड़ल से भूखसँ छोहाटल रही, तेँ पापड़-पापड़क शब्द सुनि पापड़वलाकेँ बजेलिए ऐ पापड़वाले! एक पापड़ देना।पापड़ वला सोझाँ आएल, पापड़ देलक। पाइ देबए लागलिऐक की ओ पापड़ वला हमरा पएरपर खसि पड़ल आ बड़ दुखी स्वरेँ बाजल—“भाइजी हमरा नहि चिन्हलियै? हम धनमा।धियानसँ देखलहुँ ओ धनमे छल। हमरा कने ग्लानिओ भेल। हम तत्क्षण उठि धनमाकेँ हृदय लगा लेलिऐक दुनू गोटे भाव-विभोर भऽ गेलहुँ। हम धनमाकेँ अपन कातमे बैसाबैत पूछलिऐक, “कह धनमा की हाल-चाल, एतए कोना?”
ओ बाजल भाइजी अपनेकेँ स्मरण अछि हमर ओ मारि? ओ राति? हम ओतए मारि खाइत-2 तंग भऽ गेल रही। तरकारीमे नून बेसी भऽ गेल तँ मारि, नून कम भऽ गेल तँ मारि, कपड़ामे दाग रहि गेल तँ मारि......। भाइजी अंतिम रातिकेँ जे हमरा अपनेसँ भेंट भेल छल तकर परातेक बात छियै, प्रो. साहेबक डेराक नीचाँ जे चाहक दोकान रहैक हलाल खानक, तकरहि बेटा दिल्लीमे दरजीक काज करैत रहैक, ओकरेसँ हमर भेंट भेल तँ ओ कहलक—“चल हमरा संगे दिल्ली, ओतए कपड़ामे काज-बुटाम लगबिहेँ बैसल-2, खेनाय-पिनाय आ पाँच सए टका महिना देबौ।हमरा लग भाड़ा जोगड़ पाइ रहबे करए, ओहिदिन भागि गेलहुँ ओतएसँ। तीन मास धरि ओकरहि दोकानपर रहलहुँ। ओहि दोकानक बगलहिमे एकटा पापड़बला रहैक जकरा ओहिठामसँ नितदिन देखिऐक हमरे सभक तुरक बच्चा सभ थाकक-थाक सेदल पापड़ लऽ जाइक। एक दिन हम ओहि दोकानपर गेलिऐक तँ भाइसाहेब (पापड़वला) हमरा कहलक- पापड़ बेचोगे? देखते हो ये लोग तुम्हारी ही उम्र के हैं 100 रुपया रोज कमाता है। पूंजी भी तुम्हारी नहीं लगेगी, बस यहाँ से सेंका हुआ पापड़ ले जाओ, दिन भर घूम-घूमकर बेचो और शाम को पैसा जमा कर दो। एक पापड़ का तुमको 50 पैसा देना होगा उस पापड़ को दो रुपये में बेचो। मतलब एक पापड़ पर तुमको 1.50 पैसा बचेगा, जितना बेचोगे उतना ही कमाओगे।हमरा ई बिजनेस जँचि गेल। हम दोसरहि दिनसँ पापड़ बेचए लागलहुँ। पहिने किछु दिनतँ करोलेबाग धरि रहैत छलहुँ, मुदा आब तँ ततेक ने उडाँत भऽ गेल छी जे दिल्लीक साइते कोनो एहन कोन हेतैक जतए हम नहि गेल छी। एखन हमर दूटा बिजनेस चलैए भाइजी। भोर 8 बजेसँ 11 बजे धरि राम मनोहर लोहिया अस्पतालक गेटपर नारियर बेचैत छी, ओहुमे एक पीसपर सरपट आठ अनाक बचत छैक। दू सए पीस तँ निदान बिकिए जाइत छैक। सए टका रोज हमरा ओहिसँ अबैत अछि। साँझ चारि बजेसँ राति नओ बजे धरि बस, ट्रेन, पार्क सभमे पापड़ बेचैत छी तँ ओतहुँ निदान 4-5 सए पीस पापड़ बेचिये लैत छी।
हम मोने-मोन हिसाब लगबए लागलहुँ, “नारियरमे 100 सए टका आ पापड़मे 400 डयोढे 600 टका। एकर माने धनमाक कमाइ एखन 700 सँ 800 टका रोज छैक।
धनमा आगू बाजलभाइजी, हम तीन साल धरि ने घरमे कोनो चिठ्ठी-पत्री देलिऐक आ ने ककरो जानए देलिऐक जे हम कतए छी। हमर माए-बाप आ गाम समाजक लोक बुझए जे धनमा मारि-हरि गेल।
तीन सालक बाद गाम गेलहुँ। ओतए दू कोठलीक पक्का ढोकलहुँ। तीन बिगहा खेत किना, देलिऐक बाउकेँ। एक जोड़ बड़द आ एकटा पम्पिंगसेट सेहो कीनि देलिऐक। अगिला मास एकटा टेक्टर किनए चाहैत छी। हमर बड़का भाय आब गामहिमे रहिकए खेती-बारी करैए। ओकरो प्रो. साहेबक भायक ओहिठामसँ चाकरी छोड़ा देलिऐक। हमर बहिन मिल्लत स्कूल दरिभंगामे पढ़ैत अछि। ओ एखन दसमामे छैक। पढ़एमे बड़ चन्सगर, सभ साल अपन कक्षामे फस्टे करैत छैक। कहैत छैक हम डाकदर बनब। हमरा विश्वास अछि भाइजी हम ओकरा डागदर बना देबैक। धनमा आगू बाजल—“अहाँ अप्पन कहू भाइजी अपने एतए कोना?”
हम एतए एक बरखसँ छी, एकटा प्राइवेट कम्पनीमे काज कऽ रहल छी। 5000 हजार टका दरमाहा अछि हमर।
बस पाँच हजार! एहिमे कोना गुजर करै छी यौ भाइजी?”
रौ धनेसर तोरा बुझल छौक ने जे हम मैथिलीसँ एम.ए. केने रही। मैथिलीक सर्टिफिकेट लऽ कऽ सौंसे दिल्ली धांगि देलिऐक? एतए भाषा नहि टेक्निकल ज्ञान चाही।
धनमा कनेकाल चुप भऽ गेल..... ओ बाजल-- भाइजी अहाँ तेँ तेहन ने बात हमरा कहि देलिऐक जे हमरा किछु फुरिते नहि अि‍छ? आब आइ हम अहाँकेँ नहि छोड़ब, अहाँकेँ हमरा बासापर जाए पड़त।

धनमा हमरा विवश कऽ देलक, ओहि दिन हम करोले बाग टीसनपर उतरि गेलहुँ।
धनमाक बासा करोलबाग टीसनसँ लगीचे रहैक।
ओहि छोट-सन घरक एक हिसमे रसोई बनएबाक बरतन-बासन रहैक, दोसर दिसमे ओकर कपड़ालत्ता, ओछाओन आदि आ शेष भागमे एकटा बड़काटा रैक रहैक जाहिमे किताब सभ ढाँसल। ओकरा ओछाओनपर सेहो कैकटा मैथिलीक पत्र-पत्रिका सभ छिड़िआइल रहैक, से देख हमरा कने अचरज भेल। धनमा हमर मनोदशाकेँ भाँपि लेलक। ओ बाजल—“भाइजी ई हमरे डेरा थिक निश्चिन्त रहू। हम अहाँकेँ एतय नहि अनितहुँ, अहाँ जतबे बाजि देलियैक जे मैथिलीसँ एम.ए.....। भाइजी हमरा अहाँक ओ उपदेश सभ एखन घरि स्मरण अछि। अही ने हमरा एकदिन कहने रही जे, प्रेमचंद गणितमे फेल भऽ गेल छलाह, जयशंकर प्रसाद पचमे धरि पढ़ने छलाह, गुलटेन औंठा छाप अछि आ...., भाषा कोनो नहि खराप होइत छैक, मेहनति, लगन, इमानदारीसँ.......। भाइजी अहाँ मैथिलीक धनेसार कामतिकेँ जनैत छियैन?”
हँ, हुनकर किछु रचना सभ पढ़ने छी, चेहरासँ हम हुनका नहि चिन्हैत छियनि।
ओ बाजल तऽ लिअ आइ चेहरो देखिए लिअ हमही छी अहाँक धनेसर कामति। भाइजी हम अहीसँ प्रेरणा लऽ कऽ आइ स्वाध्यायक बलेँ मैथिली साहित्य मध्य धनेसर कामतिक नामे ख्यात् छी। यौ आइ हम प्रतिमास ओतेक टका कमा लैत छी जतेक प्रो. साहेबक दरमाहा छनि। भाइजी अहाँ पढ़ल-लिखल लोक छी, 5000 केँ 50000 मे कोना बदलल जाए? से अहाँ सोचि सकैत छी। माफ करब भाइजी! छोट मुँह पैघ बात। हमरा जनिते अहाँ अवसरक प्रतीक्षा कऽ रहल छी, किछु नहि भेटत, किछु नहि कऽ सकब, भाइजी अवसरक निर्माण करू, निर्माण.....।
हम मोने-मोन सोचए लेल बाध्य भऽ गेलहुँ जे 18 बरखक अनपढ़ (?) धनमा नीक आकि हमरा सन 30 वर्षीय मैथिलीक स्नातकोत्तर?

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