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Sunday, April 8, 2012

डंका :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


डंका

चुड़लाइ, तिलकुट आ चूड़ा-मुरही गमछाक एक भागमे बान्हि दोसर भाग दहिना हाथे पकड़ि लटकौने जीवानन्द उत्तर मुँहेक रास्ता डेग झाड़ने जाइत रहए। दरबज्जाक ओसारक दछि‍‍नबरिया अखड़े चौकीपर बाँहिक सोंगरक कान्हपर माथ अड़कौने भैयाकाका रस्ते दिस देखैत रहथि कि नजरि पड़िते जीवानन्दकेँ किछु पूछए चाहलनि मुदा मन रोकए लगलनि। सोगाएल मन। मुदा जीवानन्दक आकर्षित रूप देखि‍ मन धिक्कारलकनि‍ जे सभ दिन एक ठाम बैस नीक-बेजाएक, गप-सप्‍प करैत एलौं। आइ तँ सहजहि तिलासंक्रान्ति सन पावनि छी। तहन जँ नै टोकब तँ केहेन हएत। गंभीर मन मुदा मुस्की दैत पुछलखिन- कतऽ एत्ते हड़बड़ाएल जाइ छह जीवानन्द?”
भैयाकाकाक टोकबकेँ अनठा आगू बढ़ि जाएब जीबानन्द उचित नै बूझि रस्तेपर ठाढ़ भऽ कहलकनि- की कहू काका, बेरक पावनि रीब-रि‍बेमे रहि गेल।
जीवानन्दक परेशानी मिलल बात सुनि भैयाकाकाक मनमे गुदगुदी लगलनि। जहिना आत्मा खूटा (रस्सी) सदृश ब्रह्यसँ मिलैत तहिना भैयाकाकाक मन जीवानन्दक बेथा-कथा सुनैले सुरसुरेलनि। चौवन्नियाँ मुस्की दैत पुछलखिन- तिलासंक्रान्ति सन खाइ-पीबैबला पावनि, तहन तोरा केना रि‍ब-रि‍बेमे जा रहल छह?”
भैयाकाकाक बातमे जीवानन्द ओझरा गेल। मनमे उपकलै नीक काज भेने खुशीसँ हँसी लगैत अछि मुदा अधलाह काज भेने की हँसी नै लगै छै? रस्तापर ठाढ़ भेल जीवानन्दकेँ किछु फुड़बे ने करै। जहिना खेतमे हाल कम रहने अंकुड़ नै जनमैत, तहिना जीवानन्दोकेँ भेल। असमंजसमे पड़ल मन सोचलकै जे भोरसँ अखन धरिक अपने बात सुना दियनि। जँ किछु कहबनि नै तँ मनमे हेतनि जे कोनो उकड़ू काज केने अछि। मुस्कुराइत कहए लगलनि- काका की पूछै छी, चारि बजे भोरे पोखरिक घाट परक पी-पाह सुनि निन्न टूटि गेल। उठैक विचार करिते रही आकि पत्नी आबि कऽ कहलनि जे रतुपारवाली दीदीकेँ भरिसक दर्द उपकि गेलनि। पूर मासो छियनि। भरिसक वएह कुहड़ैत छथि। सुनिते मन खुशी भऽ गेल जे खूब पावनि हएत? मुदा अपन दियाद नै रहने असथिर भेलौं। उठि कऽ गेलौं तँ देखलिऐ जनानी सभ घेड़ने। मुदा हमरा देखि‍ते सिबावाली काकी कहलनि जे बौआ गामपर नै समहरतह, डाकडर लग लऽ जाहक।डाक्टरक नाओं सुनि लगमे गेलौं तँ देखलिऐ जे गाए-महींस जकाँ देहो-टाँग छिड़ियौने आ अड़ऽ-बोऽऽऽ करैत। एको क्षण विलंब करब उचित नै बूझि खाटक ओरियान केलौं आ तमोरिया लए गेलौं। ककर मुँह देखि‍ कऽ उठलौं जे अखन धरि‍ दू कप चाहेटा पीने छी। दतमनियो पछुआएले अछि।
की भेलनि?”
बेटा।
बेसी तबाही ने तँ भेलह?”
एह की कहू काका, जनीजाति तेहन भाैनी होइत अछि जे एकबर हेतै आ सातबर भभटपन करत। जखन खाटपर चढ़बैत रहि‍यनि‍ तहन तेना ने हाथ- पएर कठुआ लेलनि जे बूझि पड़ल दाँती लगि गेलनि। मुदा मुँहमे बोल रहबे करनि। पकड़ि-पकड़ि हाथ-पएर सरियौलियनि। मन तेहन लहरि गेल जे हुअए दू ऍंड़ उपरोसँ लगा दियनि। मुदा फेर भेल जे अधिक दर्द भेने लोकक बुद्धियो बाइ‍त जाए छै। हो न हो कहीं सएह भऽ गेल होइन।
मुस्की दैत भैयाकाका- डॉक्टर लग ने तँ बेसी भँङठी लगलह?”
नै। संयोग नीक रहल जे एकमुहरी काज सुढ़ियाइत गेल। साते बजे निकास भऽ गेलनि। मुदा तते ने काजक ओझरी रहए जे सम्हारैत-सम्हारैत डेढ़ बजे विदा भेलौं।
पवनौट कत्तए लऽ कऽ जाइ छह?”
तीन पुस्तसँ यूनूसक परिवारसँ आवा-जाही अछि। आइ भोरे हुनकर छोटकी बेटी एक मुजेला तरकारी दऽ गेल छलए। सभ साल दइ छथि‍। अपने कारोबार छन्हि। ओना पावनि सभमे सेहो पवनौट दइ छथि। तहिना हमहूँ दइ छियनि। सएह छी। आन बेर आठे-नअो बजे दऽ अबै छलियनि। मुदा आइ तँ दोसरे भाँजमे पड़ि गेलौं।
हमर तिल-चाउर कखैन खेबह, आकि अपने ताले-बेताल रहबह?”
की कहू काका, मरैयोक पलखति नइए। निचेन भऽ कऽ आएब। अखन ओहो बच्चा सभ बाट तकैत हएत। सभ भोरे नहाएल आ हम दतमनियो नै केलौंहेँ।
अच्छा जाह। बाट तकबह?” कहि‍‍ भैयाकाका चुप भऽ गेला।
तेहन माया-जालक झमेल अछि जे विचारकेँ घुसका-फुसका दैत अछि, जइसँ समैक झूठा बनि जाइ छी। काजक अपन गति छै। समैक गतिसँ मि‍लि‍ कऽ चलैले ओकरा केना छोड़ब?” कहि‍ आगू बढ़ल रस्तेपर जीवानन्दकेँ यूनूसक कोरैला बेटा आ छोटकी बेटी देखलक। देखि‍ते दुनू दुआरपर सँ आंगन जाए माएकेँ कहलक- जीवानन्द कक्का अबै छथिन। बड़ीटा मोटरी हाथमे छन्हि।हाटक कोबी सरियौनाइ छोड़ि माए (यूनूसक पत्नी) अंगनाक मुँहथरिपर आबि, देखलनि। तइ बीच भाए-बहि‍नकेँ कहलक- बड़का लाइ हम लेबौ।
बेटाक बात सुनि माए किछु बाजलि नै। मुस्किया कऽ रहि गेल। जीवानन्दकेँ पहुँचि‍ते माए बेटीकेँ कहलक- कक्का एलखुन, प्लास्‍टि‍क वला ओछाइन बइसै लए ओछा दहुन।
हाथक गमछा दैत जीवानन्द कहलक- नै दाइ, अखन‍ नै बैसब। झब दए गमछा अजबारि कऽ लाबह।

जीवानन्दकेँ गेलोपर भैयाकाकाक नजरि जीवानन्देक बात मरैयोक पलखति नै अछि पर नचैत। पावनियो रहने दतमनि करैक पलखति जेकरा नै छै, ओकरा लेल पावनिये की? मन आगू बढ़लनि- ई दुनियाँ विचित्र रंगमंच छी। जेहने कलाकार तेहने ई रंगमंच। सुपात्रक लेल जँ इन्द्रासन सदृश अछि तँ कुपात्रक लेल गंध करैत नर्क जकाँ सेहो अछि। वीरक लेल वीरभूमि, तपस्वीक लेल तपोभूमि, साधकक लेल साधना भूमि तँ चोर-डकैतक लेल सोनाक चिड़ै। मधु चढ़ौनिहारक लेल मधुशाला तँ इज्जतखोर लेल वेश्यालय सेहो छी। पार्ट खेलेनिहार सेहो अजीब अछि। कतौ पुरुख महिला बनि कलाप्रदर्शित करैत अछि तँ कतौ महिला पुरुष बनि सेहो करैत अछि। मुदा तँए कि पुरुख पुरुख बनि आ महिला महिला बनि अपन पार्ट अदा नै करै छथि। जरूर करै छथि। मन आगू बढ़ि रामायण दिस बढ़लनि। हँसी लगलनि। जे मर्यादा पुरुषोत्तम राम दसमुँहा रावणकेँ मारलनि (नाश केलनि) वएह वन जेबा काल कौशल्याक संबंधमे की केलनि। माएक सेवा बेटाक धर्म नै थिक? पितासँ कम माए होइत? मन ओझराए लगलनि। मुदा कने घुसुकि कृष्ण दि‍स चलि गेलनि। कृष्णपर जाइते हँसी लगलनि। ठोर पटपटेलनि जे नान्हि-नान्हिटा छौड़ा बड़का-बड़का जहलक छहरदेबाली तोड़ि बहरा जाइत अछि मुदा जे सम्पूर्ण ब्रह्माण्डकेँ नचौनिहार छथि हुनका बुते उखरिक बन्‍हन (ऊखल बन्धन) नै टुटलनि। भैयाकाकाकेँ छगुन्तासँ नजरि निच्चाँ भेलनि मुदा लगले बदलि‍ गेलनि। नजरि बदलि‍ते जोरसँ हँसी लगलनि। मनमे एलनि शिवजी। हद केलनि ओहो शिवसँ शिवानि‍यो बनैमे देरी नै लगलनि।
फेर घुरि कऽ भैयाकाकाक मन जीवानन्देपर चलि एलनि। जा धरि जीवानन्द सन-सन बेटा समाजमे नै जन्म लेत ताधरि समाजक उन्नति कागजपर बनाओल फूल-फलक गाछ सदृश होएत। जइ समाजक लोक पावनिक पाछू पनरह-पनरह दिन पहिनेसँ लगल रहैत अछि। तहूमे एकटा नै कतेको पावनि सालक भीतर अछि, खर्चाक बाट तँ चौड़गर देखै छिऐ मुदा आमदनीक बाटपर नजरिये नै जाइत छै। कियो चारि बजे भोरे स्नान कऽ लाइ-मुरही खेलक तँ कियो चारि बजे बेर झुकैत तदमनि करत। की चारि बजे भोरक सूर्ज चारि बजे अपराह्नोमे रहै छथि। सूर्ज तँ महाविशाल छथि। तहन मौसम किएक बदलैत अछि? कि तइ सदृश मनुखक नै अछि
रस्ते कातक बँसबीटीमे दतमनि तोड़ि रस्तेसँ दतमैन करैत जीवानन्द आंगन आबि बाल्टीन-लोटा लए सोझे कलपर पहुँचल। हाँइ-हाँह कुड़ुड़ कऽ अधे-छिधे नहा आंगन आबि पीढ़ीपर बैस पत्नीकेँ कहलकनि‍- पहिने लाइ-मुरही आ तिलबा नेने आउ?”
आब कलौ खाएब कि भुज्जा-भरड़ी खाएब। पत्नी सुधा कहलकनि‍।
हद करै छी अहूँ, भोरुका स्नान अखन केलौं आ खाइ बेरमे साँझ पड़ि गेल। सभ सखी सासुर गेल हमरा लेखे चैत पड़ि गेल। ठीके लोक कहै छै। भिनसरसँ बारह बजे धरि लोक जलखइक बेर बुझैत अछि आ बारह बजेसँ पहिल साँझ धरि कलौक समए। जइ समैक काज पछुआ गेल पहिने ओकरा ने पुराएब। जँ से नै करब तँ दुनियाँक संग केना चलि सकब।
जीवानन्दक बात सुनि पत्नी सुधा भरि थारी चूड़ा-मुरही लाइक संग-संग तरुओ-तरकारी घरसँ आनि आगूमे रखि ठाढ़ भऽ गेलि‍। भरल थारी देखि‍ मुस्कुराइत जीवानन्द बाजल- एते किअए अनलौं। बिधे पुरबैक अछि। जहिना नै पान तँ पानक डंटियोसँ काज चलैत अछि तहिना लाइ-मुरहीक बिधे पुराएब। मुदा खिच्चैड़ो तँ लइये भऽ गेल हएत?”
पतिक बात कटैत सुधा बाजलि- नै जखन‍ अबैक चाल-चूल पेलौं तखन‍ खिचड़ी बनेलौं। धि‍पले अछि
तखन‍ तरुआ किअए पानि भेल अछि
तरकारी आ तरुआ सबेरे बनेलौं। तँए सेराए गेल अछि
दू- तीन फँक्का फकि‍ते जीवानन्दकेँ तरास जोर केलक। गिलास भरि पानि पीब निच्चाँमे रखिते सुधा बाजलि- तिलासंक्रान्तिमे सभ अपन-अपन बहि‍न ऐठाम पवनौट लऽ कऽ जाइए। अहाँ छोड़ि देबै?”
पत्नीक बात सुनि जीवानन्दक मन थारीसँ हटि बहि‍नपर पहुँचि‍ गेल। सासुर बसैसँ पहिलुका बहि‍नपर नजरि पड़िते गठुलाक टाटपर सँ केना तिलकोरक पात तोड़ि आनि माएकेँ तरै लए दैत छलि। जहन भानस करै जोकर भेल तहन कत्ते सिनेहसँ तरुआ तरि खुअबैत छलि। उझुक मारि-मारि पत्नीक बात मनमे उठैत। सोचए लगल, जँ एक्के दिन अपनो बेटाक बि‍आह आ साढ़ूओक बेटाकेँ बि‍आह होय, तहन की करक चाही। विचारमे अबिते अपना दिस तकलक। पावनिक दिन छी, बेर झुकि गेल मुदा नहाइयोक छुट्टी नै भेल छलए। अखनो धरि चैन नै भेलौं। भैयाकाकाक तिल-चाउर पछुआएले छन्हि। की हमरा हिस्सामे पैघ लोक लग बैस एक्को घंटा बुझै-सुझैक लेल नै अछि? सदिखन काजक टिकटिकिया कपारपर चढ़ले रहैए। मन घुमि कऽ भरदुतियापर पहुँचल। ठाँउ कऽ अरिपन बना पीढ़ी धोय केहेन आसन बनबैत अछि। तइपर बैस जोड़ल दुनू हाथ धोय सिन्नुर-पिठार लगा फुल-पान रखि आराधना करैत अछि। की ओइ‍ बहि‍नकेँ बि‍सरि जाएब? कथमपि नै। मुदा बहिनो कि हमरासँ अधलाह जिनगी जीबैत अछि। सभ तरहे ओ नीक अछि। भागिन कओलेजमे पढ़ैत अछि। केहेन ठाठसँ भगिनियोक बि‍आह केलक। अपन सभ लूरि सिखा माए अपने जकाँ बना देने छै। कोनो चीजक कमी छै। ओ कि हमरे पवनौटक भरोसे हएत। मनमे खुशी एलै। मुस्की दैत बाजल- आइ तँ सभ ठाम पावनि छीहे। कोनो कि दुइर होइबला बौस अछि। काल्हि भोरे गेलासँ एते तँ हएत जे सबहक एकदिना तरुआ हमरा दू दिना हएत।कहि हाँइ-हाँइ खा कऽ जीवानन्द भैयाकाका ठाम विदा भेल।
अखन धरि भैयाकाका आँखि बन्न कऽ चौकीपर वि‍चारमे डूबले रहथि कि फड़िक्केसँ जीवानन्द कहलकनि- गोड़ लगै छी काका। तिल-चाउर खाइले एलौंहेँ।
जीवानन्दक बोली सुनि भैयाकाका आँखि खोलि असिरवाद दैत कहलखिन- बहुत दिन जीवह जीवानन्द। हम तँ लटकि गेलियह। देहसँ कम्मो लटकलौं मुदा मनसँ बेसी लटकि गेलौं। बूझि पड़ैए जे लहास ढोइ छी। अनेरे अनकर हिस्सा अन्न-पानि दूरि करै छी। मुदा तरे-तर गणेशजी जकाँ पेट फुलल जाइए। भने तूँ आबिये गेलह। होइए जे टन दे प्राण तियागि दी। मुदा पेटक जे अँकुरी सभ अछि ओ जा धरि नै निकलत ताधरि प्राणो केना छोड़त?”
हँसैत जीवानन्द कहलकनि- अँकुरी तँ लोक छठिमे घाटपर खाइत अछि। अहाँ आइयो खुआएब तँ खुआ दिअ।
भैयाकाका- जहिना जनमौटी बच्चाक मल मृत्‍यूकाल निकलैत अछि तहिना छोटका बाबाक खुऔल अंकुरी तोरा दए दैत छिअह। अपन गामक चारिम बसान छी। शुरूमे दू परिवार धारक मुँह बदलने आबि कऽ बसल। खेती शुरू भेल। जानवरक उपद्रवक संग-संग मनुक्खोक उपद्रव शुरू भेल। अपन रच्‍छाक लेल उपजौनिहार तैयार भेल। मुदा सोलहन्नी रच्‍छा तैयो नै भऽ सकल। पानिक सुविधा दुआरे गाम धुधुआ कऽ बढ़ल। जानवरो आ मनुक्खोक उपद्रवसँ बचैक लेल बलक जरूरति‍ भेल। गाम-गाममे अखड़ाहा बनए लगल। लोक कुश्ती लड़ि अपन शक्तिक परिचए दिअ लगल रहए। गामे-गाम डंको हुअए लगल रहए। तहियेसँ अपना गाममे तिलासंक्रान्तिक दिन अपनो गाममे डंका शुरू भेल।
भैयाकाका बजिते रहथि कि जीवानन्दक मुँह बाजि उठल- कक्का, अपन बात कने रोकि कऽ राखू। हम बिसरि जाएब
मुस्की दैत भैयाकाका- बाजह?”
जीवानन्द- पावनिक दिन रहने मन छनगल रहए। तमोरिया (डॉक्टर एेठाम) मे इलाज शुरू होइते भौजी (रतुपारवाली) केँ खलास भऽ किछु सुढ़िआएल देखि‍ ड्योढ़वाली काकीकेँ गाम पठा देलियनि। मन खुशी रहबे करनि। होइन जे के पहिने भेँट हएत जेकरा सोझामे पेटक गुदगुदी बोकरि दियनि। संयोगो नीक रहलनि। मदनावालीकेँ अंगनासँ मुड़िआरी दैत देखलखिन। छुतका (अशौच) दुआरे हाँइ-हाँइ अंगनेक चूल्हिपर लोहियामे तरकारी तरैत छेलीह। सोझामे देखि‍ ड्योढ़वाली काकी ससरि कऽ आंगन बढ़ली! नजरि पड़िते मदनावाली भौजी आग्रह करैत कहलकनि- एत्तै आबथु काकी। बिना पएर-हाथ धोनहि चूल्हिक पाछूमे बैस गेलीह। तीनसल्ला अड़ुआक तरुआ बढ़बैत कहलकनि- काकी कने नोन देखि‍ लेथुन।
दुनू गोटे चूल्हिये लग बैस खाए लगली।
जीवानन्दक बात सुनि ठहाका दैत भैयाकाका कहए लगलखिन- अच्छा, तोहर बात भऽ गेलह। आगूक सुनह। केवल अपने गामटा मे डंका नै, आनो-आनो गाममे होइत छलए। तीन बजे भोरेसँ ढोलिया गाछपर चढ़ि वा बड़की पोखरिक मोहारपर सँ ढोल बजबए लगैत। बेरुका समए डंका होइत छलए। किछु दिनक पछाति रुपैयाक प्रवेश भेने डंका दंगलमे बदलि‍ गेल।
बि‍चहिमे जीवानन्द बजल- दू साल पहिने तक तँ होइत छलैए।
जीवानन्दक बात सुनि कने काल गुम्म रहि कहए लगलखिन- जा धरि मालिक (जमीन्दार) केँ मालगुजारिये धरि होय ताधरि गाम शान्त छलए। मुदा जखन‍ मालगुजारी तरे लोकक खेत निलाम हुअए लगल तहन ओ पएर पसारए लगल। महाजनी सेहो करए लगल। छपरिया सिपाहीक आगमन गाममे भेल। पहिने तँ ओ कचहरियेक हातामे माने कम्पाउण्डमे अखड़ाहा ख्ुनि लडै़। मुदा किछु दिनक पछाति गामक डंका अपना अखड़ाहापर लए गेल। साले-साल डंका करबए लगल। एकाएकी परोट्टाक खलीफा पीठ देखबए लगल। अपन इज्जत बचा हम मकरक रविकेँ डंका करबैत रहलौं। मुदा ओ सभ (छपरिया) डंकामे बलउमकी करए लगल। साले-साल झंझट हुअए लगल।
भैयाकाकाक बात सुनि जीवानन्दक आँखि भरि गेलै। जीवानन्‍दक भरल आँखि देखि‍ बजलाह- जा धरि छोटका बाबा छलाह ताधरि कोनो गम नै छलए। ओना समयो करोट लेलक। समैकेँ दहिन होइते शक्ति बढ़ए लगल। तिला-संक्रान्तिसँ अढ़ाइ मास पहिने मन बेकाबू भऽ गेल। पुरने अखड़ाहाकेँ छील-छालि खुनलौं। लपटनिहार सभ संग दिअ लगल। मालिकक खलीफाकेँ माटि पठा कहलिऐ जे जँ एक माएक दूध पीने हुअए तँ कचहरीक हातासँ बाहर आबि जतए तोरा फड़ियबैक हुअ, फड़िया लएह। देशक हवा देखि‍ बूझि पड़ल जे सभ जागल अछि, केवल हमहींटा मुरदा भेल छी।
जीवानन्द- तहन की भेल?”
भैयाकाका- ओहो (छपरिया) लक्ष्मण रेखा (सरकारी हाता) छोड़ि बाहर अबैक मानि लेलक। डंका भेल मुदा बाह रे संतोष ढोलिया। ओइ‍ दिनक ओकरो हाथकेँ (बजबैक) धन्यवाद दी जे जहिना कुरुक्षेत्रमे कृष्णक शंखक आबाज रहनि तइसँ मिसियो भरि कम ढोलकक आबाज नै रहए। कहए लेल तँ अधिक गामक देखिनिहार (कुश्ती देखिनिहार) रहथि मुदा संख्या कम रहए। तहूमे ओहन देखिनिहार बेसी रहै जे ओइ‍ खलीफाक (छपरिया) पीठि ठोकैत। मुदा नजरि पड़िते देखि‍ लेलिऐक जे मुँहक ठोर कारी सियाह छै। मनमे एहेन उत्‍साह उठि गेल, जहिना आगिमे घीउ देलासँ उठैत, तहिना। लंगोटो नै पहि‍रए लगलौं, धोतियेक ढट्ठाकेँ बरहा जकाँ बाँटि कसि कऽ बान्हि लेलौं। इम्हर ढोलपर संतोष आबाज दिअए लगल- चट-धा, गिड़-धा, चट्-धा गिर-धा।
अाबाज सुनि कूदि कऽ अखड़ाहापर गेलौं। मनमे उठल जे अनेरे हाथ की मिलाएब। बाँहि पकड़ि लेलौं।
ढोलिया हाथ बदललक। ढाक्-ढिना, ढाक-ढिना, ढाक-ढिना बजबए लगल। ढोलक आबाज तँ दहिन रहै मुदा देखिनिहारक आबाज वाम भऽ गेल। फेर ढोलिया हाथ बदलि‍- चट्-गिड़-धा, चट-गिड़ धा, चट-गिर धाबजबए लगल। हमरो साहस बढ़ल। भय मनसँ निकलि गेल। मुदा माटिपर चलि गेलौं। माटिपर जाइते ढोलिया (संतोष) हाथ बदललक। मेही आबाजमे- धाक्-धिना, तिरकट-तिना। धाक्-धिना, तिरकट-तिना।माटि परक दाँवसँ ऊपर भेलौं। उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलौं। देखिनिहारक आँखि सेहो बदलल। ऊपर होइते ढोलिया मोट आबाज आ भौड़ी आबाजमे बजबए लगल- चटाक-चट-धा, चटाक-चट-धा।अवाजेक संग ओकरा उठा कऽ पटकि देलिऐ। मुदा पीठ गरे खसल। माटिपर खसिते ताल बदललक। बजबए लगल- धिक-धिना, धिक-धिना।
आबाज सुनि धाँइ दऽ चित केलौं। चि‍त्त करिते ढोलसँ आबाज निकलए लगल- धा-गिड़-गिड़, धा-गिड़-गिड़।
भैयाकाकाक बात सुनि जीवानन्द कहलकनि- अहाँ एहेन चैनक समुद्रमे पहुँचि‍ गेल छी जे मगन भऽ जीबैत हएब?”
मगन सुनि भैयाकाकाक हृदए, बाढ़िसँ उमड़ल गंगा जकाँ जे अपन घर (नदी) छोड़ि गाछी-बि‍रछी, खेत-पथार पहुँचि‍ पवित्र (गंदा साफ) करए लगैत, तहिना भऽ गेलनि। विह्वल भऽ कहए लगलखिन- बौआ, तोरा देखि‍ हृदए शान्तसँ प्रशान्त भऽ जाइत अछि आब तँ तोरे सबपर छहरो-महर हएत आ दारो-मदार अछि। मुदा हवाक गंदगी तेना ने विहारिमे पसरि गेल जे एक्को क्षण जीबैक मन नै होइत अछि। लीला सभ जे देखै छी तँ शूल जकाँ सदिखन हृदैकेँ बेधैत रहैत अछि। आजुक पीढ़ी जीवनक रास्तासँ एते दूर हटि रहल अछि जे मनुखक औरुदा सए बर्खसँ घटि कुत्ताक औरुदा (बारह बर्ख) मे बदलल जा रहल अछि। दुख एतबे नै होइत अछि जे औरुदेटा घटि रहल छै, मनुखक वृत्ति‍यो टूटि-टूटि ओम्हरे जा रहल अछि। जइ रूपक बेवहार भऽ रहल छै ओइ‍ सभसँ आगम बूझि पड़ैत अछि जे माए-बाप, भाए- बहि‍न सबहक संवंध आ शिष्टाचार रुपे नष्ट भऽ रहल अछि जे साधना भूमिकेँ मरुभूमि बनब अनिवार्य छै।
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