Pages

Sunday, April 8, 2012

ठकहरबा :: जगदीश मण्‍डल


ठकहरबा

भोरहरबेमे दादीक नीन उचटि‍ गेलनि‍। लाख कोशि‍श केलनि‍ मुदा दोहरा कऽ नीन नै घुरलनि‍। ओना भोरुका समए वसन्‍ते जकाँ मधुआएल रहैत छै मुदा ओहो की सबहक लेल एक्के रंग रहैए। दि‍न-राति‍ काजक पाछू नचनि‍हारकेँ थोड़े वसन्‍त आ ग्रीष्‍मक भेद बूझि‍ पड़ैत छै। दादीक मनमे एलनि‍ जे अखने ललि‍तक ऐठाम जा कऽ कहि‍ऐ जे अखुनके माने भि‍नसुरके उखड़ाहामे चि‍मनीपरसँ पजेबा आ बेरुका उखड़ाहामे बाजारसँ एस्‍वेस्‍टस आनि‍ दि‍हह। भोरुका अन्‍हारक दुआरे रति‍गर बूझि‍ पड़लनि‍। मनमे एलनि‍ जे जँ कहीं बि‍छानपर जाइ आ नि‍न्न आबि‍ जाए तहन तँ पहपटि‍ हएत। मुदा एत्ती राति‍केँ जेबो कतऽ करब? गुन-धुन करैत सोचलनि‍ जे से नै तँ घरसँ ओछाइन नि‍कालि‍ अंगनेमे बि‍छा कऽ पड़ब नै‍, बैस कऽ काजक गर लगाएब। सएह केलनि‍। काजपर नजरि‍ दैते पजेबापर मन गेलनि‍। एक नम्‍बर राँट ईंटा तँ तते महग अछि जे कीनब थोड़े पार लागत। मन मन्‍हुआ गेलनि‍। जहि‍ना दू-बट्टी, तीन-बट्टीपर पहुँचि‍ते बटोही अपन अगि‍ला बाट हि‍याबए लगैत अछि तहि‍ना दादि‍यो हि‍याबए लगलीह। कत्ते दि‍न जीबे करब जे एक नम्‍बर ईंटाक जरूरति‍ पड़त‍। लऽ दऽ कऽ बीस-पच्‍चीस बर्ख आरो जीब‍। तइले तँ तीनि‍‍यो नम्‍बर ईंटा नीके हएत। फेर‍ मनमे एलनि‍ जे कि‍यो कि‍ अपनेटा लेल घर बनबैए आकि‍ बालो-बच्‍चा लए बनबैए। मन ठमकि‍ गेलनि‍। कि‍छु फुड़बे ने करनि‍। फेर‍ मनमे उठलनि‍ जे लोक काँच-ईंटाक घर केना बनबैए। ओहो तँ तीस-चालीस बर्ख चलि‍ये जाइ छै। ओइसँ नीक ने तीन नम्‍बर। कम-सँ-कम अध-पकुओ तँ रहैए। जतबे नुआ रहए ततबे टाँग पसारी। तीनि‍यो नम्‍बर तँ ईंटे छी कीने? हँ, हँ, तीनि‍ये नम्‍बर ईंटा लेब। मन आगू बढ़ि‍ चदरापर माने एस्‍वेस्‍टसपर गेलनि‍। चदरापर नजरि‍ पड़ि‍ते मन झुझुआ गेलनि‍। सि‍मटीक तेहन चदरा बनए लगल अछि जे सालो भरि‍ चलत की‍ नै? जँ कहीं गोलगर पाथर खसल तँ चूरम-चूर भऽ जाएत। पहि‍ने केहेन बढ़ि‍याँ टीनक चदरा अबै छलै जे एक बेर‍‍ घरपर दए देलासँ कत्ते दि‍न ओहि‍ना रहैत छलए। मुदा ओहो बैशाख-जेठक रौदमे रहै-बला नै होइए। ओना जँ गतगर कऽ खरही छाड़क ऊपरमे दऽ दि‍यौ तँ कोठे जकाँ भऽ जाइए। मुदा तेहेन-तेहेन ठकहरबा बनि‍याँ सभ भऽ गेल अछि जे लेबालकेँ जे होउ अपन धरि‍‍ ति‍जोड़ी भरल ताकि‍‍। खैर जे होउ, जे सबहक गति‍ से हमरो हएत। तइले कत्ते मगज चटाएब।
पौहु फटि‍ते सूर्जक लाली देखि‍ दादी ओछाइन समेटि‍ घरमे रखि‍ ललि‍तक ऐठाम वि‍‍दा भेलीह। मन पड़लनि‍, आठमे दि‍न अदरा नक्षत्र चढ़त। आठे दि‍नक पेसतर घर बनबैक अछि। जँ से नै भेल‍ तँ गि‍लेबापर जोड़ल देबाल ढहत-ढनमनाएत आकि‍ की हएत? सेहो ने कहि‍। जे घर अखन अछि ओहो उजड़ि‍ये जाएत। तइ बीच जँ बरखा झहड़ल तँ जानो बँचब कठि‍न भऽ जाएत।

ललि‍तकेँ दरबज्‍जा नै‍। भनसे घरमे सुतबो करैत। ठोकले दादी आंगन पहुँचि‍ ओलती लगसँ कहलखि‍न- गोसाइ उगैपर भेलखि‍न आ तों सुतले छह? दादीक आबाज सुनि‍ ललि‍तक पत्नी सुपती उठि‍ केबाड़क अाधा पट्टा खोलि‍ चुपचाप बाड़ी दि‍स वि‍दा भेल‍। ओसार टपि‍ केबाड़क दुनू पट्टा खोलि‍ ललि‍तक देह डोलबैत दादी कहलखि‍न- ललि‍त, ललि‍त। उठह, कत्ते सुतै छह?
सुतले-सुतल अँाखि मुननहि‍ ललि‍त बाजल- की कहै छी?
अखन‍ धरि‍ सुतले किअ‍ए छह?
ओछाइनपर सँ उठि‍ दादीकेँ बैसबैत अपनो बैस ‍ बाजल- बड़ी राति‍मे पुलि‍सक गाड़ी खोइर-बन्‍हामे लसैक गेलै। भरि‍ गाड़ी पुलि‍स रहए। कतबो बाप-बाप केलक मुदा गाड़ी नै नि‍कललै। जेना जानि‍ कऽ अनठा देलकै।‍

बि‍नु दाँतक चौड़गर मुँह, गालक मसुहरि‍पर दूटा इंच-इंच भरि‍क पाकल केश, सोन सन उज्‍जर धप-धप केश, गरदनि‍क चमड़ा घोकचि‍ कऽ लटकल दादीक। ठहाका मारि‍ बजलीह- तोरा सन-सन लोकसँ की बेसी बुत्ता ओकरा सभकेँ होइ छै। गांजा पीब‍-पीब‍ छाती फोंक कऽ नेने रहैए।‍
मुँह चटपटबैत ललि‍त- बड़ मोटगर-सोटगर सभ रहए?
धु: बतहा कहीं के, एतबो नै बुझै छहक जे तखन‍ थालमे सँ गाड़ी किअ‍ए ने उखड़लै।‍
मुँह डेढ़बड़ा कऽ ललि‍त बाजल- उ सभ हाकि‍म रहै की ने।‍
अच्‍छा, ई सभ छोड़ह। पाइ कत्ते देलकह?”
पहि‍ने वएह पुछलकै जे कत्ते दि‍अ,‍ ओना हमहूँ सभ सात-आठ गोरे रही मुदा हमरा छोड़ि‍ सभकेँ होइ जे कहुना जान छोड़ए। सभकेँ सुक-पाक करैत देखि‍ऐ। एक गोरे बाजि‍ देलकै जे हुजूर सरकारि‍ये पाइ छि‍ऐ की ने? एतबे सुनैत मातर तड़ंगि कऽ एक गोटे बाजल रौ बहिं, तुम पहचानता नहीं है।‍  कहि‍ पाइ आगूमे फेक‍ वि‍दा भऽ गेल।‍
‍सुआइत तोरा ओंघी दबने छह। हमहूँ काजे एलौंहेँ। अखन तँ तँू भकुआएल छह। मुँह-हाथ धुअह। काजक गप छी तँए कने असथि‍रसँ वि‍चार करब। ओना अपनो मुँह-कानमे पानि‍ नहि‍ये नेने छी।
एह, तँ की हेतै दादी। एक दि‍न टुटलहो-फटलाहा घरक चाह पीब‍ कऽ देखि‍यौ।‍

सुपतीकेँ कानमे फुसफुसा दादी चौमास दि‍स‍ वि‍दा भेलीह। जाबे दादी मुँह-कान धोए तैयार होथि‍ तइमे पहि‍ने ललि‍त सुपतीकेँ चाह बनबैले कहि‍ ओसारक बि‍चला खूटा लग पीढ़ी रखि‍ दादीक बाट देखए लगल। अबि‍ते दादी बजलीह- कलक पानि‍ बड़ सुन्नर छह।‍ कहि‍ खूटामे ओंगठि‍ पीढ़ीपर बैस‍ गेलीह। सुपती चाह नेने आगूमे रखि‍ देलकनि‍। चाहक रंग देखि‍ दादीक मन खुशी भऽ गेलनि‍। एक घोंट पीब‍ बजलीह- तेहेन चाह छह जे एक्के उपे जलखइ बेर‍ तक रहब।‍
ललि‍त- आइ काज अनठि‍या दि‍यौ दादी।‍
मुस्‍की दैत दादी- किअ‍ए, घरमे सि‍दहाक ओरि‍यान छेबे करह...। (मुदा लगले बात बदलि‍) कोन एहेन हलतलबी काज आगूमे छह जे आइ मनाही करै छह?
मुँह दाबि‍ सुपती बाजलि‍- हि‍नका नै बुझल छन्हि जे आइ अलेक्‍शन छि‍ऐ।‍
सुपतीक बात जेना दादीक अँतरीमे छुबि‍ देलकनि‍। जहि‍ना आम तोड़ि‍नि‍हार सरं-गोलि‍या गोला आमपर फेकैत तहि‍ना दादी फेकब शुरू केलनि‍- कोन फेर‍मे पड़ए चाहै छह, अपन दुख धंधामे लगल रहह। सभटा ठकहरबा छी। एते दि‍न अपनो सएह बुझै छलौं मुदा आब बुझै छी जे ठकाइत-ठकाइत जि‍नगि‍ये ठका गेल। (मुड़ी नि‍च्‍चा कऽ) जहि‍या समाज खादी-साड़ी पहि‍रा माए जी कहलक‍ तहि‍या बूझि‍ पड़ल जे समाज की छी। स्‍वर्गोसँ ऊपर। मुदा तेहेन-तेहेन ठकहरबा सभ भऽ गेल अछि जे बाजत ढेरी, करत कि‍छु नै‍।
ललि‍त- अहाँकेँ किअ‍ए समाज खादी पहि‍रौलनि‍ दादी?
ललि‍तक प्रश्न सुनि‍ दादी वि‍स्‍मि‍त भऽ गेलीह। जहि‍ना बोनमे जानबरक छोट-छोट बच्‍चा बौआ कऽ हरा जाइत तहि‍ना आजादी समयक बोनमे दादी हरा गेली। दादीकेँ वि‍स्‍मि‍त देखि‍ ललि‍तकेँ बूझि‍-पड़लै जे दादी फेर‍ कतौ औना गेलीह। तँए दोहरा कऽ नै पूछि‍ जबाबक प्रतीक्षा ओइ‍ रूपे करए लगल जइ रूपे माए बच्‍चाकेँ वि‍द्यालयसँ अबैक आशा करैत रहै छथि‍। चौअन्नि‍या मुस्‍की दैत दादी बाजए लगलीह- दुरागमन कए कऽ आएले रही। बूढ़ा-बूढी माने सासु-ससुर जि‍बि‍ते रहथि‍। बेटा मात्रि‍क गेलनि‍। ओइठीनक लोक सभ झंडा उठा खूब हूड़-बरेड़ा करैत रहए। अपनहुँ (पति‍) हुनके सभ संगे बौर गेलाह। तीन मास बि‍ता कऽ गाम एला।‍
ललि‍त- बाबा बि‍गड़बो केलखि‍न?
दादी- (अपसोच करैत) ‍ओ सभ स्‍वर्ग गेला, हम नर्कमे छी। आगि‍ नै उठेबनि‍। हँ, ई भेलै जे बुढ़हो जोगारी रहथि‍न। तरे-तर सरहोजि‍सँ सभ भाँज लगा लेने रहथि‍। जाबे गाम घुरि‍ कऽ एला ताबे तँ इम्‍हरो लोक झंडा उठा हड़बि‍रड़ो करए लगल रहए।‍ आजादीक दस-बारह बर्ख पछाति‍ गाममे मलेरि‍या आएल। चारि‍ अन्नासँ बेसि‍ये लोक मरल। अपनो घरहंज भऽ गेल। तीनू गोटे (सासु-ससुर आ पति‍) मरि‍ गेलाह। मात्र अपने आ छअ मासक बच्‍चा बचलौं। ओही बेटाकेँ पोसि‍-पालि‍ जुआन बनाएब अपन देशसेवा बुझलि‍ऐ। खादी साड़ी पहि‍रैक यएह कारण रहए।
मुस्‍की दैत सुपती पुछलकनि‍- नेता सभ जकाँ भाषणो करथि‍न?
बेसी तँ नै बाजल हुअए मुदा मंचपर दुनू हाथ जोड़ि‍ एत्ते जरूर कहि‍ऐ जे हे ब्रह्मबाबा गामक रच्‍छा करि‍हह। मुदा सभ झूठ भऽ गेल। ने ब्रह्मबाबा सुनलनि‍ आ ने ककरो रच्‍छा भेलै।‍
सुपती- खादीबला सभ भरि‍ दि‍न झूठे बजैए?
सुपतीक बातसँ दादीकेँ दुख नै भेलनि‍। मुस्‍की दैत कहलखि‍न- ओहि‍ना कनी कऽ मन अछि। शुरूक तीन भोटमे बहरबैया नेता सभ संग कऽ कऽ गाम घुरलथि‍। जते काल संगमे रहि‍यनि‍ तते काल गामेक गप-सप्‍प करथि‍। गाममे ने नीक सड़क अछि आ ने बच्‍चा सभकेँ पढ़ैले स्‍कूल। ने पानि‍ पीबैक समुचि‍त बेवस्‍था अछि आ ने बा-दारूक। गाड़ी-सवारीक नाओंपर बैलगाड़ी अछि। एहेन समस्‍या‍ सि‍र्फ अपने गाम टाक नै इलक्केक अछि। सरकारक अपने बेवस्‍था लटपटाएल अछि। हरि‍तक्रान्‍ति‍क पूर्व धरि‍ पेटक दुआरे आन-आन देशसँ जनेर-गहूम मंगबए पड़ैत छलए। (कने चुप भऽ मन पाड़ि‍) तही बीच भूदानी आन्‍दोलन जगल। नारा देलक- जमीनक छबम हि‍स्‍सा दान दि‍अ जइसँ गरीब लोककेँ वासक संग जोतो जमीन भेट‍तै। गामक-गाम दान हुअए लगल। मुदा अखन की देखै छहक जे जोतक कोन बात जे घराड़ि‍यो सभकेँ नै छै। (ठहाका मारि‍) सबटा मदारी नाच केलक।
पटरीपर सँ दादीक बातकेँ उतरैत देखि‍ ललि‍त पत्नीकेँ कहलक- दादी बूढ़ि‍ छथि‍न, थकबो करै छथि‍न की‍ ने। शि‍खरक पुड़ि‍या खोलि‍यापरसँ नेने आउ?
शि‍खरक नाओं सुनि‍ दादीक मनमे भेलनि‍ जे शि‍खर केहेन होइ छै। आइ धरि‍ नामो नै सुनने छलि‍ऐ। मुदा बजलीह नै‍। चकोना होइत देखि‍ ललि‍त बूझि‍ गेल जे भरि‍सक दादी शि‍खर नै खेने छथि‍। मुस्‍कुराइत कहलकनि‍- जहि‍ना चाह पीलापर देहमे फुनफुनी आबि‍ जाइ छै तहि‍ना शि‍खरो खेने होइ छै। इस्‍कुलि‍या विद्यार्थी सभ तँ भरि‍-भरि‍ जेबी रखने रहैए।‍
 
सुपती हाथसँ एकटा पुड़ि‍या लए ललि‍त दादी दि‍स‍ बढ़ौलक। जहि‍ना खच्‍चा-खुच्‍चीमे पानि‍ देखि‍ बकरी पाछू हटैत रहैत अछि, तहि‍ना शि‍खरक पुड़ि‍या देखि‍ दादीक मन पाछू हटलनि‍। मुदा नव चीज रहने सेहन्‍तो भेलनि‍। एक चुटकी मुँहमे दैते बूझि‍ पड़लनि‍ जे सरसरा कऽ कंठसँ नि‍च्‍चा उतरल जाइए।
तखने ललि‍त पुछलकनि‍- अपनो गामक लोक जमीन दान केलक?
ललि‍तक बात सुनि‍ खौंझा कऽ दादी बजलीह- कहबे तँ केलि‍यह जे सबटा बानरक नाच केलक। एक गोटे समस्‍तीपुर दि‍सुका भूदानी नेता खोज करैत अपने ऐठाम एला। (मने-मन मुस्‍कुराइत) की कहि‍ह हुनकर हाल। साँझू पहर जखन‍ गप-सप्‍प करए लगथि‍ तँ बूझि‍ पड़ए जे जहि‍ना त्रेता युगमे रामराज रहै तहि‍ना फेर‍ कलयुगोमे भऽ जाएत। ने ककरो पेटक चि‍न्‍ता रहतै आ ने रोग-व्‍याधि‍क। मुदा ले सुथनी, भि‍नसरसँ दुपहर धरि‍ ओकरा साबुन रगड़ि‍-रगड़ि‍ नहाइये आ कपड़े साफ करैमे लगि‍ जाय। बेरू पहर सभ कपड़ा सुखा, पहि‍रि‍ कऽ दि‍न लहसैत नि‍कलै आ खाइ-पीबै राति‍ धरि‍ भाषण करै। एक पनरहि‍यासँ बेसि‍ये रहल। तइ बीच अकच्‍छ-अकच्‍छ भऽ गेलौं। खादी भंडारक मंगनी कपड़ा पबैसँ। सदति‍काल बगुला जकाँ उज्‍जर धप-धप चेहरा बनौने रहए।‍
ललि‍त- खादी भंडारमे मंगनि‍ये कपड़ा बटबारा होइ?
मंगनी कतौ होइ। गाम-गामक उद्योगकेँ उला-पका कऽ खा-पी कऽ चौपट कऽ देलक। गामक गाम लोकक रोजगार मरि‍ गेल। एक तँ कोसी-कमलाक उपद्रव तइपर सँ जेहो छोट-छीन रोजगार गाममे चलैत छल सभ चलि‍ गेल। जखन‍ लोककेँ गाममे पेटे ने भरत तखन‍ कत्ते दि‍न पेटमे जुन्ना बान्‍हि‍ कऽ रहत। गामक-गामकेँ पड़ाइन लगि‍ गेलै। ने बच्‍चा सभकेँ पढ़ैक स्‍कूल अछि आ ने रोग-व्‍याधि‍क लेल डखाना (अस्‍पताल)।‍ बजैत-बजैत दादी वि‍स्‍मि‍त भऽ गेलीह। अँाखि बन्न भऽ गेलनि‍।
गुम-सुम देखि‍ ललि‍त पुछलकनि‍- पहि‍लुका बात तँ छुटि‍ये गेल?
ललि‍तक प्रश्न सुनि‍ दादी मन पाड़ि‍ बजलीह- चारि‍म भोट अबैसँ कि‍छु पहि‍ने मारि‍ते-रास पाटी फड़ि‍ गेल। कखनो कोनो रंगक झंडा लऽ कऽ जुलूसो नि‍कले आ सभो होय तँ कखनो कोनो रंगक। जहि‍ना आखि‍री लगनमे छुटल-बढ़ल, बूढ़-पुरान, लुल्ह-नांगर सभ पालकीपर चढ़ि‍ लैत अछि‍ तहि‍ना भदबरि‍या बेंग जकाँ गामे-गाम नेता फड़ि‍ गेल। ओना हम लि‍खा-पढ़ी कऽ कऽ कोनो पाटीक मेम्‍बर नै भेल रही मुदा लोको बुझै आ अपनो मानैत रही। तँए मनमे अरोपने रही जे जेकरा जे मन फुड़ौसँ करह मुदा जहि‍ना शुरूसँ रहलौं तहि‍ना रहब। भोट होइसँ पहि‍ने‍ कतेको गाममे मारि‍ भेल। अपना गाममे भोट दि‍न तक तँ मारि‍ नै भेल मुदा भोट दि‍न एहेन मारि‍ भेल जे लोककेँ पड़ाइन लगि‍ गेलै।‍
सुपती- हि‍नको कि‍यो मारलकनि‍?”
नै कनि‍याँ, हाथ तँ नै उठौलक। मुदा भोट खसबै नै दि‍अए। हमर भोट केदैन खसा नेने रहए। कत्ते कहा-सुनी भेलापर अनके नाओंपर भोट खसेलौं। भोट खसा कऽ जखन‍ घुरलौं तँ मनमे आएल जे आब भोट खसबै लए नै जाएब।
ललि‍त- पाटीबला सभकेँ नै कहलि‍ऐ?
दादी- कि‍ कहि‍ति‍ऐ। संयोगो नीके बुझहक। अगि‍ला भोटमे पार्टीक उम्‍मीदवारे ने ठाढ़ भेल। जान हल्‍लुक भेल। आन पाटी तँ मारि‍ते रहै मुदा केकरा भोट दि‍ति‍ऐ आ केकरा नै दि‍ति‍ऐ। तइसँ नीक जे बूथपर जाएबे छोड़ देलि‍ऐ।‍
ललि‍त- ककरो नफ्फा-नोकसान होउ, अहाँ तँ बचलौं की ने?
ललि‍तक बात सुनि‍ दादीक अँाखि‍ नोरा गेलनि‍। मुँहसँ बकारे नै फुटनि‍। थोड़े-खन चुप रहि‍ बजलीह- बौआ, पटना दि‍ल्‍ली तँ कहि‍यो मनोमे ने आएल मुदा गामोमे जहुना छलौं तहुना नै रहलौं। जइ समाजक लोक माए जी कहैत छलए आेइ समाजमे लोक राॅड़ी कहए लगल। बातक दुख सदि‍खन मनकेँ व्‍यथि‍त केने रहैए।‍ कहि‍ अँाखि बन्न कऽ सोचमे डुमि‍‍ गेलीह। कि‍छु समए गुम्‍म रहि‍ पुन: बाजए लगलीह- गामे-गाम तेहेन अगराही लगि‍ गेल छै जे शान्‍त हएब कठि‍न अछि। पुबारि‍ गाममे खेतक झगड़ामे मारि‍ भेल। से खूब मारि‍ भेल। दुनू दि‍स कत्ते गोटेकेँ कान-कपार झड़लै। एकटा खूनो भेलै। मुदा अचरज ई भेल‍ जे एहेन सना-सनी रहि‍तो गौआँमे सुबुद्धि‍ जगलै। कि‍यो कोट-कचहरी नै गेल। गामेमे फड़ि‍या गेल। अखन जँ ओना होइत तँ गाम उजरि‍ जाइत। तेहेन-तेहेन मनुक्‍ख सभ बनि‍ गेल अछि। जे सदति‍काल फोसरि‍ये तकने घुरैए।‍
ललि‍त- भोटक दि‍न छी दादी। भोटो खसबैक अछि। मुदा जखन‍ अहाँ आबि‍ गेलौं तखन‍ पहि‍ने अहाँक काज सम्‍हारि‍ देब।‍
दादी- भोट खसबैले थोड़े मनाही करबह। भि‍नसरसँ साँझ धरि‍ भोट खसैए। पाँच बजेमे भोट खसा लि‍हह।‍
ताबे तक भोट बचले रहत?
जे लड़ैए, ओकरा एतबो बुत्ता नै छै जे बूथ सम्‍हारि‍ कऽ राखत। ओना भोटे खसौने की हेतह। देखि‍ते छहक जे कि‍यो बक्‍से हेरा-फेरी कऽ लैत अछि तँ कि‍यो रि‍जल्‍टे बदलि‍ लैत अछि।‍
बेस कहलौं दादी। काका (दादीक बेटा) कतऽ रहै छथि‍?
बेटाक नाओं सुनि‍ते दादीक मनमे खुशी एलनि‍। मुस्‍की दैत बजलीह- बौआ, पनरह-बीस बर्खसँ बौआइते-ढहनाइते छलए। पहि‍ने दि‍ल्‍ली गेल। ओइठीन काज नै भेलै तब बमै गेल। ओतौ नोकरी नै भेलै। तखैन हारि‍‍-थाकि‍ कऽ‍ पाँच बर्ख पहि‍ने कलकत्ता गेल। मुदा जहि‍ना बमै पाइबलाक छी तहि‍ना कलकत्ता गरीब लोकक छी। ओइठीन एकटा साइकिल मि‍स्‍त्रीक दोकानमे नोकरी भऽ गेलै। दरमाहा तँ बेसी नै दइ छै मुदा साइकिल बनबैक सभ लूरि‍ भऽ गेलै। अपने दि‍गारि‍क मि‍स्‍त्री छी। अपने बहि‍न‍सँ बि‍‍आहो कऽ देलकै। सुनै छी जे पुतोहुओ मि‍सति‍रि‍आइ करैए। दुनू बेकती एते कमा लैए जे अपनो गुजर करैए आ घर बनबैले रुपैइयो पठा देलकहेँ। सएह रुपैया छी।
असकर लए तँ अहाँकेँ एक्कोटा घरसँ काज चलि‍ जाएत?
हँ, से तँ चलि‍ जाएत। मुदा पुरजीमे लि‍खने अछि‍, जे आब गामेमे रहब। पुरना जते मि‍सति‍री अछि ओ सभ मोटर साइकिलक मि‍सति‍री भऽ गेल। जहन कि‍ गामे-गाम साइकिलक पथार लगि‍ गेल हेन। तहूमे तेहेन साइकिल अछि जे छअ मासक उपरान्‍ते मि‍सति‍रीक काज पड़तै।‍
ललि‍त पत्नीकेँ कहलक- एक बेर‍‍ आरो चाह बनाउ। दादीक संगे जाएब।‍
सुपती- घरमे दूध कहाँ अछि। नेबोओ सबटा चोराइये कऽ तोड़ि‍ लइ गेल।‍
दादी- कनि‍याँ अहाँकेँ नै बुझल हएत। नइ‍ नेबो अछि तँ नेबोक दूटा पाते दऽ दि‍यौ।

चाह बनल। एक घोट चाह पीब‍ ललि‍त दादीकेँ पुछलक- दादी केहेन घर बनेबै?
बौआ, गि‍लेबापर जोड़ि‍ तीन नंबर ईंटाक देबालपर सँ एसबेस्‍टसक छत देबै। कहुना-कहुना तँ बीस-पच्‍चीस बर्ख चलबे करत।‍
से तँ बेसि‍ओ चलि‍ सकैए आ सालो भरि‍ नै चलि‍ सकैए।‍
से की?
तेहेन सि‍मटीक घटि‍या एसबेस्‍टस बनैए जे पाथरक चोट बरदास करत।‍
मुड़ी डोलबैत दादी- हँ, से तँ ठीके कहलह।‍ कहि‍ गुम्‍म भऽ गेलीह। दादीकेँ गुम्‍म देखि‍ ललि‍त बाजल- दादी, जँए अस्‍सी तँए नि‍नानबे। चदरा तरमे खूब गतगर कऽ खरहीक छाड़ दऽ देबै। जँ पथरो खसत तँ चदरे ने फुटत, जान तँ बँचत कि‍ ने । बेसीसँ बेसी देहपर पानि‍ चुअत। सएह ने।‍
ःःःःःःःःःः

No comments:

Post a Comment