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Sunday, April 8, 2012

अर्द्धांगि‍नी :: जगदीश मण्‍डल


अर्द्धांगि‍नी

आने दि‍न जकाँ लालकाकी घर-आंगन बहाड़ि‍ बाढ़नि‍केँ कलपर धोए पछबरि‍या ओसार लगा ठाढ़ केलनि‍। हाथ-पएर धोअल बूझि‍ नजरि‍ फूल तोड़ैपर गेलनि‍। ओना लालकाकी एहेन नि‍यमि‍त छेलीह जे जहि‍ना खर लगा पेटीमे कपड़ा लगौने छथि‍ तहि‍ना दि‍न भरि‍क काजोक छन्हि। मुदा मन पाड़ैक जरूरति‍ एे लेल रहि‍ जाइत छन्हि जे पढ़ुआ काका (पति‍) गाममे छथि‍ आकि‍ नै? गाममे रहने कि‍छु काज बढ़ि‍ जाइत छन्हि‍ आ नै रहने कमि‍ जाइ छन्हि। गामेमे रहने फूल तोड़ब बुझलनि‍। ओसारक खुट्टीसँ फुलडाली उताड़ि‍ कल दि‍स बढ़लीह। कलक बगलेमे रंजनीगंधापर हाथ दैते छेलीह आकि‍ नजरि‍ अपराजि‍त दि‍स बढ़लनि‍। मेल-पाँच करैक वि‍चार सोचैत रजनीगंधासँ अपराजि‍त दि‍स बढ़लीह। अपराजि‍त तोड़ि‍ चम्‍पापर हाथ बढ़ौलनि‍। आँखि‍ पड़लनि‍ फुलडालीक फूलपर। फुलडालीक फूल देखि‍ वि‍चारलनि‍ जे पाँचटा बेलामे सँ नि‍कालि‍ लेब। चम्‍पासँ आगू बढ़ि‍ते छेलीह आकि‍ नजरि‍ पति‍पर गेलनि‍। पति‍पर नजरि‍ पड़ि‍ते मन दुखाए लगलनि‍। केकरा नै इच्‍छा होइ छै जे पति‍क संग एयर कंडीशन गाड़ीमे बैस‍ सराफा बाजार जाए हीरा-मोतीसँ सजल सोनाक हार गारा‍मे लटकैबि‍‍तौं। मुदा तेहेन भेलाह जे जखन‍ सरकारी दरमाहा भेटए लगलनि‍ आ कहलि‍यनि‍ जे साइकिल कीनि‍ लि‍अ, सुभि‍तगर हएत, तँ कहलनि‍ जे चालीस-पैंतालि‍सक भऽ गेलौं, हड्डी जुआ गेल, जँ खसि‍-तसि‍ पड़ब आ टुटत तँ केतबो पलस्‍तर करब, तैयो ने जुटत। तइमे नीक पएरे। कहलनि‍ एक मानेमे नीक। मुदा तैयो ढोढ़क बीख जकाँ हड़हड़ा कऽ नै उतरलनि‍। मन गेलनि‍ दोसर दि‍स। सभटा पोथी बरखामे भीज‍-भीजि‍‍ सड़ि‍ गेलनि‍, जखन‍ घरे चुबै छलनि‍ तखन जँ सड़ि‍ये गेलनि‍ तँ मे अपन साध की‍? मुदा जखन‍ घर बनौलनि‍ तखन‍ किअ‍ए ने फेर‍ कि‍न‍लनि‍। जइ घरमे पोथी नै रहत ओ घर केहेन हेतै। क्रोध कमलनि‍। क्रोध कमैक कारण भेलनि‍ अपन काज मन पड़ब। पाँच बजे भोरसँ ओछाइनपर जाइ काल धरि‍ केकरा लए करै छी, परि‍वारे लए ने। फेर‍ तामस मुड़ि‍ गेलनि‍, कहैले आठ घंटा डयूटी करै छथि‍, चारि‍ घंटा बाँटेमे लगै छन्हि। अाधा काज जे सम्‍हारि‍ कऽ नै रखबनि‍ तँ पारो ने लगतनि‍। एहेन पुरुखे की जे अपन जि‍नगी अपनो हाथमे रखि‍ नै चलैत? फुलडाली रखि‍ते‍ मनमे एलनि‍, एक वी‍हि‍त काज भऽ गेल। चूल्हि‍‍ लग बइसैमे अखनो बहुत बाकी अछि। हड़बड़ा कऽ घर-नि‍प्‍पा उठा ओसारपर पूजा-ठाँउ कए चूल्हि‍‍‍-चि‍नमार दि‍स‍ बढ़लीह। घर-नि‍प्‍पा रखि अर्घा-सरायसँ लऽ कऽ थारी-लोटा लेने कलपर पहुँचली। कलपर सँ आबि‍ लालकाकी घड़ी दि‍स देखलनि‍। अखन तक समए आ काजमे तल-वि‍तल नै देखि‍ मनमे खुशी भेलनि‍। नजरि‍ पति‍पर गेलनि‍। कीड़ी आँखि‍मे पड़ने जहि‍ना कड़ुआ जाइत छैक तहि‍ना मन कड़ुआ गेलनि‍। बुदबुदेलीह- एकटा काजपर तवक्कल रहने घर आगू मुँहे ससरत?”‍  फेर‍ मनमे एलनि‍ आन दि‍न जकाँ जारनि‍ सुखाएल नै अछि। भानसमे देरी लागत, से नै तँ पानि‍ चढ़ा चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ लइ छी। चूल्हि‍‍‍ पजड़ल रहत तँ कनी देरि‍यो लगने समैपर भऽ जाएत। बाड़ी पहुँचि‍ पतरका जारनि‍ सभ बीछि‍ कऽ चूल्हि‍‍‍ लग रखलनि‍। चूल्हि‍‍‍ पजारि‍ बरतन चढ़ा तरकारीक मुजेला आ कत्ता नेने चूल्हि‍‍‍ लग आबि‍ काटि‍‍-काटि‍ थारीमे रखए लगलीह। साढ़े आठ बजे साँस छोड़लनि‍। आगि‍मे सेकल देहो हल्‍लुक बूझि‍ पड़लनि‍। मनमे एलनि‍- ‍सँ बेसी सेवा की भऽ सकै छै। फेर‍ मन पति‍पर गेलनि‍। उमकि‍ कऽ मन कहलकनि‍- आरो जे हुअए मुदा भगवान जि‍द्दि‍याह पुरुखक संग जोड़ा लगौलनि‍। हृदए बि‍‍हुँसि‍ गेलनि‍। जइ मर्दकेँ आनि‍ नै आ जइ बड़दकेँ पानि‍ नै, ‍ओ अनेरे गाम घि‍‍नबै लए किअ‍ए जीबैए? मन पड़लनि‍ दुरगम‍नि‍या पीढ़ी। जहि‍ना बाबू सतपुरैनि‍ खोधाएल कटहरक पीढ़ी देलनि‍ आइ धरि‍ ओइ‍पर बैस‍ भोजन करै छथि‍। थारी साँठि‍ लाल-काकी पंखा नेने छोटकी पीढ़ीपर बैस‍ बनाओल वि‍न्‍यासक सुआद बुझैक लेल पढ़ुआ काका दि‍स‍ देखए लगलीह। मगन भऽ पढ़ुआ काका भोजन करए लगलाह। शरीरांगक (देहांगक) सि‍रखार देखि‍ लालकाकी सि‍कुड़ि‍ गेली। मुदा भोजन काल जे बजबे ने करताह हुनका कहलो की जाए। चुप्‍पे रहलीह।

कपड़ा पहीरि‍ पढ़ुआ काका घरसँ नि‍कलि‍ते‍ रहथि‍ आकि‍ आंगनमे पनबट्टी नेने पत्नीकेँ ठाढ़ देखलनि‍। पत्नीक काज देखि‍ मन मानि‍ गेलनि‍ जे सि‍पाही जकाँ छथि‍। मनमे खुशी एलनि‍। पान खा आगू-आगू पढ़ुआ काका आ पाछू-पाछू लालकाकी आंगनसँ नि‍कलि‍ डेढ़ि‍यासँ आगू सड़क धरि‍ एली। सड़कपर आबि‍ पढ़ुआ काका पुछलखि‍न- कि‍छु कहबोक अछि?
लालकाकी- अपन तनदेही राखू।‍

दुनू गोटे दुनू दि‍स‍ वि‍दा भेला। मुसकुराइत पढ़ुआ काका एक डेग आगू बढ़ि‍ पाछू घुरि‍ कऽ देखि‍ डेग तेज करैत आगू बढ़लाह। नाकमे सुरसुरी लगलनि‍। भेलनि‍ जे छि‍क्का हएत। वामा हाथसँ नाककेँ सहलाबए लगलाह। मुदा सुरसुरि‍यो अपन चालि‍ छोड़ैले तैयार नै‍। हाथ नि‍च्‍चाँ करिते धि‍यान‍ पत्नीक शब्‍द तनदेहीपर गेलनि‍। पत्नीक मुँहसँ नि‍कलल शब्‍द वि‍शारद पास पढ़ुआ काकाकेँ ओझरा देलकनि‍। फेर‍ घुरि‍ पत्नी दि‍स तकलनि‍ तँ देखलनि‍ जे सड़कसँ आंगनक घुमौनक भौकपर पहुँचि‍ गेल छेलीह। तँए आँखि‍सँ अढ़ भऽ गेलीह। कोकि‍लक कंठसँ नि‍कलल शब्‍दक तरंग पढ़ुआ काकाकेँ ठेलने-ठेलने, तन आ देहीपर लऽ गेलनि‍। तन-देह। शरीर आ शरीरी। देह आ देही। मुदा एहेन चंदन जकाँ झलकैत शब्‍द हुनका एलनि‍ कतऽ सँ। हम तँ कहि‍यो अपन सीमाक उल्‍लंघन नै केलौं। अपन ज्ञान घरक सीमासँ बाहर बँटलौं। हुनका अखन धरि‍ कि‍छु देलि‍यनि‍ कहाँ। मुदा शब्‍द तँ शब्‍द जकाँ अछि। किअ‍ए ने बजनि‍हारि‍येसँ पूछि‍ लि‍यनि‍। ओहो तँ आन नै अर्द्धांगि‍नीये छथि‍। घर-सँ-बाहर धरि‍ बनल रहैक लेल दुनूक सहयोग तँ बराबरे अछि। एक सीमाक भीतर ओ, एक सीमाक भीतर अपने। अपने तँ कमा कऽ बि‍‍नु गनले रुपैया हाथमे दऽ दइ छियनि‍। मुदा ओइ‍ रुपैयाकेँ नचबै तँ वएह छथि‍। पि‍ताक देल दसो बीघा जमीनकेँ तँ सेहो वएह नचबै छथि‍। मुदा जते दुनू गोटेक भीतर‍ झँकैत छलाह तते हटल-हटल बूझि‍ पड़नि‍। मन बौआ गेलनि‍ जे पति‍-पत्नीक, पुरुष-नारी आ स्‍त्री-स्‍वामीक बीच केहेन संबंध हेबाक चाही। मुदा वि‍चारमे समझौता भऽ गेलनि‍। किअ‍ए ने दुनू गोटे वि‍चारि‍ कऽ परि‍वारकेँ ससारी। मनमे खुशी एलनि‍। गामक सीमो टपि‍ गेलाह। वि‍द्यालयक मुरेड़पर नजरि‍ गेलनि‍। सबूर भेलनि‍ जे पहुँचि‍ गेलौं। तीस-पैंइतीस सालक अभ्‍यास, तँए थकान नै बूझि‍ पड़नि‍ मुदा.......।  



वि‍द्यालय भवनक सीढ़ी, जइठाम ओसारपर चपरासी बैसैत। सीढ़ीसँ एक लग्‍गी पाछूए पढ़ुआ काका रहथि‍ आकि‍ चपरासी उठि‍ कऽ आॅफि‍स दि‍स वि‍दा भेल, जे कक्को देखथि‍। सीढ़ी लग पहुँचि‍ आगू तकलनि‍ जे चपरासी घुरि‍ कऽ अबैए आकि‍ नै‍। मुदा नै देखि‍ काकामे पौरुख जगलनि‍। मनमे उठलनि‍ अखन तँ सेवानि‍वृत्तो नहि‍ये भेलौंहेँ, तहन किअ‍ए अनकर सेवा लेवा लेल मुँह ताकब। सीढ़ीसँ ऊपर तँ चढ़ि‍ गेलाह मुदा सीढ़ीक ओ प्रश्न जे पछुएने अबै छलनि, आगूसँ घेर‍ लेलकनि‍। जे (चपरासी) बाबा कहैए, आॅफि‍सोक सभ भैये-काका कहै छथि‍ मुदा की से कहने शरीरक शक्‍ति‍यो घटि‍-बढ़ि‍ सकैए। जँ से नै तँ परि‍वारमे किअ‍ए कहल जाइए। नजरि‍ ठनकलनि‍, अगर बीस बर्खक आधार बना देखै छी तँ उम्र दोबराइत जाइए। उमरे तँ शरीरक शक्‍ति‍केँ घटबै-बढ़बैए। मन हल्‍लुक भेलनि‍। मुदा चपरासीक बेवहारसँ मन खटाएले रहलनि‍। हवा उठि‍ चुकल छल जे आइ चारि‍ बजे पढ़ुआ काकाकेँ सेवा-नि‍वृत्ति‍क चि‍ट्ठी भेटतनि‍। वि‍द्यालयक वातावरणमे सोग पसरि‍ गेल छल।

स्‍टाफ रूम पहुँचि‍ते एक
नै अनेक तरहक खटका खटकए लगलनि‍। आन दि‍नसँ बेवहारो बदलल। मुदा चपरासीबला बेवहार मनकेँ बेसी हौंड़ैत रहनि‍। कुरसीपर बैसि‍ते मनमे उठलनि‍। मुदा तह दैत मनसँ हटौलनि‍। शि‍क्षक सबहक बीच गप-सप्‍पक क्रम सेहो बदलल-बदलल बूझि‍ पड़नि‍। कि‍छु व्‍यंग्‍य-बाणसँ क्रमकेँ बदलौ चाहथि‍ तँ ओहन बेवहारे नै छलनि‍। चालि‍सँ थाकल रहबे करथि‍ आँखि‍ झल-फलाए लगलनि‍। गमे-गम नीनो आबि‍ गेलनि‍। अलसा कऽ आँखि‍ मूनि‍ लेलनि‍। आँखि‍ मूनल देखि‍ इशारामे उतरीक चर्चा हुअए लगल। मुदा पढ़ुआ काकाक आँखि‍ बन्न। तँए कि‍छु बुझबे ने करथि‍। 

दू बजि‍ गेल। अढ़ाइ बजे ट्रेन, तँए स्‍टाफ सबहक बीच चि‍ल-मि‍लक कुचकुची जकाँ, देह-हाथ चुल-चुलाए लगलनि‍। कुरसीक पौआ सबहक आबाजसँ पढ़ुआ काकाक भक्क टुटलनि‍। बैग लऽ संगी सभ नि‍कलैक उपक्रम करए लगलाह आकि‍ आॅफि‍सक बड़ा बाबू आबि‍ कऽ काकाकेँ कहलकनि‍- अपनेक पत्र अछि। जे चारि‍ बजेमे देल जाएत, तँए अपने चि‍ट्ठी लेलाक बादे ‍प्रस्‍थान करबै?” कहि‍ आॅफि‍स दि‍स बढ़ि‍ गेलाह। ठाढ़े प्रणाम कए कऽ संगि‍यो सभ नि‍कलि‍ गेलनि‍। पि‍जरामे बन्न सुुग्‍गा जकाँ पढ़ुआ काका असकरे कोठरीमे बैसल। बड़ा बाबूक भाषापर नजरि‍ गेलनि‍। आन दि‍नक जे बोली रहैत छलनि‍ ओइ‍मे कि‍छु कड़ुआहट बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि। भषे नै अखने की‍ देखलौं? काल्हि‍‍ धरि‍ सहयोगी सभ अरि‍आति‍ कऽ पहि‍ने वि‍दा कऽ दैत छलाह तेकर बादे ि‍कयो जाइत छलाह। नौकरीक एहसास भेलनि‍। जहि‍या वि‍द्यालयमे सेवा करए एलौं तहि‍या बच्‍चा (वि‍द्यार्थी) सभसँ की‍ संबंध छल। एकठाम खेनाइ, एकठाम रहनाइ आ एकठाम बैस‍ पढ़ौनाइ। पानि‍ पीबाक इच्‍छा होइत छलए आ बजै छलौं तँ पानि‍ अननि‍हारक होड़ लगि‍ जाइत छलए। जे पहि‍ने लोटा पकड़ि‍ पानि‍ अनै छल ओ अपनाकेँ कुशाग्र बुझैत छल। मुदा आइ की‍‍ देखै छी? शि‍क्षकक आगूमे छात्र सि‍गरेटक धुँआ उड़बैत अछि। केना एहेन रोगक प्रवेश शि‍क्षण-संस्‍थानमे भेल? जहि‍येसँ वि‍द्यालय सरकारीकरण भेल तहि‍येसँ विद्यार्थी पतराए लगल। ओना गाम-गाममे स्‍कूलो खुजल आ पढ़बैक रूप सेहो बदलल। होइत-हबाइत वि‍द्यालय छात्र-वि‍हीन भऽ गेल। ओना महि‍नवारी बेतनो नीक बनि‍ गेल। मुदा ओहूमे कमी रहल। महीने-महीना नै भेट सालक चुकती सालमे हुअए लगल। अखन धरि‍ नोकरीकेँ नोकरी नै अपन काज बुझै छलौं। मुदा आइ बूझि‍ पड़ि‍ रहल अछि जे कतौ बंधनमे जरूर फँसल छी।

चारि‍ बजि‍ते आॅफि‍सक बड़ा बाबू आॅफि‍सक स्‍टाफक संग, पढ़ुआ काका लग आबि‍ हाथमे चि‍ट्ठी दैत हस्‍ताक्षर करैले बही आगू बढ़ा देलखि‍न। जहि‍ना रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍समे हस्‍ताक्षर केने परि‍वारक सम्‍पति‍‍ टुटैत, तहि‍ना पढ़ुआ काकाकेँ नौकरी टूटि‍ रहलनि‍हेँ। हस्‍ताक्षर करि‍ते‍ पढ़ुआ काका हताश भऽ गेलाह। मनमे उठलनि‍ सभ कि‍छु हरा गेल। जत्ते पढ़ने छलौं ओइ‍मे सँ पहि‍ने ओते हराएल जेकर उपयोग नै भेल। जेहो कि‍छु बँचल ओ वि‍द्यार्थी हरेलासँ हरा गेल। जे कि‍छु जीबैक आशा बँचल छल ओहो हरा गेल। की हम ‍ठामसँ उठि‍ सोझे असमसाने जाएब आकि‍......। मन पड़लनि‍ अपना संग कि‍नको हाथो पकड़ने छियनि‍ कि‍ ने? दू प्राणीक जि‍नगी केना चलत? कहैले पेंशन भेटत मुदा पेंशन पेबामे जे लेन-देन छै ओ हमरा बुते कएल हएत। अखन धरि‍, जहि‍यासँ सरकारी दरमाहा भेटए लगल तहि‍यासँ आॅफि‍सक बड़ा बाबू आनि‍ कऽ हाथमे जे दइ छलाह ओ चुपचाप जेबीमे रखि‍ पत्नीक हाथमे दऽ दइ छलि‍यनि‍। मुदा जेना सुनै छी तेना हमरा बुते कएल हएत। जि‍नगीक एक्कोटा ब्रत नि‍माहै जोकर नै छी। द्वन्‍द्वमे छाती दलकए लगलनि‍। तइ बीच चपरासी आबि‍ कहलकनि‍- कोठरी बन्न करब, अपने प्रस्‍थान करि‍यौक।‍ अर्द्धचेत अबस्‍थामे पढ़ुआ काका कोठरीसँ नि‍कलि‍ पताइत डेगे ओसारपर एला। डेगे ने उठनि‍। कहुना-कहुना सीढ़ी लग आबि‍ ओङठि‍ कऽ बैस‍ गेलाह। अर्द्धचेत मनमे वि‍द्यालयक चि‍ट्ठी एलनि‍। जेबीसँ नि‍कलि‍ पढ़ए लगलथि‍। सूचना देल जाइत अछि तेसर मासक अंति‍म ति‍थि‍सँ सेबा-मुक्‍त होएब। नि‍चला पाँती‍ पढ़ौ नै लगलथि‍, मचोड़ि‍-सचोड़ि‍ चि‍ट्ठीकेँ सीढ़ीक आगूमे फेक‍ लहरैत मने उठि‍ कऽ वि‍दा भेलाह। मुदा जहि‍ना नदीक कि‍नछड़ि‍क पानि‍मे पैसैसँ माल-जाल पाछू पएर करैत अछि‍ तहि‍ना पढ़ुओ काकाक पएर आगू-पाछू हुअए लगलनि‍। मनक लहरि‍सँ पएर तनेलनि‍। आगू बढ़ए लगलाह। वि‍द्यालयक फाटक (गेट) लग पहुँचि‍ पाछू धुरि‍ तकलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे जेना खंडहर ठाढ़ अछि। मात्र ईंटा-सि‍मटीक जोड़ल घर। मुदा क्रोध चढ़ले रहनि‍। फुरेलनि‍, जहन जीबैक सभ रस्‍ता बन्न भए रहल अछि तहन मरैयोक तँ ढेरी उपाए अछि। मुदा ओ तँ अपराधक श्रेणीमे औत। जीबैले अपराध कए कऽ कि‍यो मृत्‍यू प्राप्‍त करैत अछि मुदा मृत्‍यू लए अपराध.....।
बीच रस्‍तापर आबि‍ क्रोधक लहरि‍मे आरो ओझरा गेलाह। मुदा मनमे हूबा जगलनि‍। फुरेलनि‍, जहन वि‍द्यालय अकाजक श्रेणीक सर्टिफि‍केट दइये देलक तहन एक्केटा उपाए अछि जे ि‍जनकर हाथ पकड़ि‍ भार नेने छियनि‍ हुनक लग पहुँचि‍ कहि‍यनि‍ जे अखने दुनू प्राणी हरि‍द्वारक रस्‍ता धड़ू। छोड़ू घर-दुआरकेँ। ओतै कोनो मंदि‍रक पुजेगरी बनि‍ जाएब आ शि‍वजीक शरणमे रहि‍ हुनको महेशवाणी सुनब आ अपनो नचारी कहबनि‍। डमरूओ बजाएब आ हुनके जकाँ नचबो करब। तखने एकटा छुछुनरि‍ दहि‍ना भागसँ बामा भाग छुछुआति‍ टपैत रहए। आकि‍ भक्क टुटलनि‍। ताबे छुछुनरि‍ ससरि‍ कऽ बामा भाग पहुँचि‍ गेल। मनमे शंका भेलनि‍ जे छुछुनरि‍ पएरमे काटि‍ लेलक। झुकि‍ कऽ तर्जनीक नहसँ टोबए लगल। छोटकी चुट्टीक बीख जकाँ बि‍स-बि‍सेलनि‍। मन मानि‍ गेलनि‍ जे छुछुनरि‍ काटि‍ लेलक। सोझ भऽ चारू भाग हि‍यौलनि‍। काजक बेर‍ रहने सभ छि‍ड़ि‍आएल रहए। रस्‍ता खाली। वि‍द्यालय दि‍स‍ तकलनि‍। सभ चलि‍ गेल छलाह। मनमे एलनि‍ छुछुनरि‍क बीख तँ अपनो झाड़ए अबैए। मनमे खुशी एलनि‍। मुदा लगले मन बदलि‍ गेलनि‍। अपन बीख अपना बुते कहाँ झरैत अछि, तँ की‍ एेठाम पएर पटकि‍ कऽ मरि‍ जाएब आकि‍ जतऽ मनतरि‍या भेटत ओतऽ जाँच करा लेब। ताधरि‍ अपने मंत्रसँ काज चलाएब। मंत्र पढ़ैत... सैयाँ-नि‍नाबे.... दु... एक...।
मंत्रकेँ चारि‍ चरणमे बाँटि‍, एक चरण पढ़ि‍ मुँहसँ फुकि‍ देथि‍। अबैत-अबैत गामक सीमापर पहुँचि‍ गेलाह।

परि‍वारक पहि‍ल पीढ़ीक वि‍शारद पढ़ुआ काका। कि‍सान परि‍वार। दस बीघा खेती। लाल काकी सेहो कि‍साने परि‍वारक। खेतीक सभ लूरि‍ माए-बाप सि‍खा देने रहनि‍। कि‍साने परि‍वार देखि‍ लाल काकीक पि‍ता कुटुमैती केलनि‍। ओना पढ़ल वर पाबि‍ दुनू प्राणीक हृदए जुरा गेल रहनि‍ जे लक्ष्‍मीक संग सरस्‍वतीयो छन्हि‍।

जहि‍ना एकटा सीमा टपने एशि‍‍या-यूरोपक दू तरहक सभ कि‍छु भेटैत, तहि‍ना पढ़ुआ काकाकेँ सीमा पर अबि‍ते बूझि‍ पड़लनि‍। साओनक मेघ जकाँ मनमे टोपर बान्‍हि‍ देलकनि‍। पानि‍ जकाँ बुद्धि‍ पसरि‍ गेलनि‍। जीबि‍त छी आकि‍ मुइल से होशे ने रहलनि‍। थुस दऽ बैस‍ रहलाह। मन पड़लनि‍ अकाजक हएब। दुनि‍या तँ काज करैबलाक छी। की मृत्‍यू शय्यापर सजि‍ जाइ? जेहो कनी-मनी आशा पेंशनक होइत, सेहो नहि‍ये हएत। जि‍नगीमे कहि‍यो जइ हाथसँ घूस नै देलौं ओतनो नै नि‍माहल हएत। मुदा ब्रत तँ जि‍नगीक पाशापर बैसल अछि। मन राँइ-बाँइ भऽ फाटि‍ गेलनि‍। पहाड़क झरनासँ झहरैत पानि‍ जकाँ नोर हृदए दि‍स‍ बहि‍ गेलनि‍। हृदए पसीज गेलनि‍। मन पड़लनि‍ अर्द्धागि‍नी। चालीस बर्खसँ संग रहनि‍हारि‍, जे वृत्ति‍ अछि, ओइ‍सँ हटल राखैमे ककर दोख भेल? की हम हुनका साँझो-भोर पढ़ा नै सकै छलि‍यनि‍। जँ से केने रहितौं तँ जि‍नगी बेलाइग किअ‍ए होइत? जि‍नगीक सुख-दुख संगे भोगि‍तौं। दू मि‍लि‍ करी काज, हारने-जीतने कोनो ने लाज। माटि‍क मुरूत बना घरमे छोड़ि‍ देलि‍यनि। अपनो एते होश नै केलौं जे सए बर्खक जि‍नगीमे अधडरेड़ेपर कानून अकाजक घोषि‍त कऽ देत। शेष जि‍नगी केना चलत? अपनो नै छोटोटा स्‍कूल बनेलौं जइमे जि‍नगी भरि‍ सेवारत रहि‍तौं। नि‍राश मनमे सासुर मन पड़लनि‍। बि‍आहमे जे जमाए रूसैए से कोन दादाक कमेलहा लए रूसैए। मुदा सासु मन पड़ि‍ते मन मधुआ गेलनि‍। जँ लोक सासु लग नै रुसि‍ अपन मनोकामना पूरा करत तँ कतऽ करत? मन आरो पघि‍लि‍ गेलनि‍। हुनके देल ने कामधेनु पत्नी छथि‍। मुदा फेर‍ मनमे उठलनि‍ जे रुसबो तँ कत्ते रंगक होइए। बचकानी आ सि‍यानी रुसब, एक्के रंग केना हएत। तत्-मत् करैत वि‍चारलनि‍ जे सि‍यानी रुसबसँ शुरू करब आ जते नि‍च्‍चाँ धरि‍ सुतरि‍ जाएत तते नि‍च्‍चाँ धरि‍ आबि‍ अटकि‍ जाएब। फुड़फुड़ा कऽ उठि‍ घर दि‍स वि‍दा भेलाह। चारू भर चकोना होइत जे कि‍यो देखए नै‍। मुदा से सुतरलनि‍। घरपर आबि‍ हाँइ-हाँइ कऽ चौकीपर पड़ि‍ गुम्‍हड़ि‍ कऽ बजलाह- ई घर मनुक्‍खक रहैबला छी? एम्‍हर मकड़ाक झोल लटकल अछि तँ ओम्‍हर ि‍बढ़नी छत्ता लगौने अछि।‍ कहि‍ रुसि‍ कऽ सि‍रहौनीपर मुड़ी रखि‍ आँखि‍ तकि‍ते सुति‍ रहलाह। बाड़ीमे काज करैत पत्नी अबैत देखि‍ नेने रहनि‍। हँसुआ-खुरपी बाड़ि‍येमे छोड़ि‍ आङन ि‍दस बढ़लीह तँ कि‍छु आबाज बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा नीक नहाँति‍ नै बूझि‍ सकलीह। ओना पढ़ुओ काका मुँह दाबि‍ये कऽ, लोकक दुआरे बजैत रहथि‍। दोहरा कऽ फेर‍ तरसँ गुम्‍हरैत बजलाह- एहेन-एहेन घरमे मरि‍तो रहब तँ कि‍यो खोजो-पुछाड़ि‍ करैबला अछि।‍
पढ़ुआ काकाक बात लाल काकी बूझि‍ गेलखि‍न जे कतौ कि‍छु भेलनि‍हेँ। दू बीघा हटल अबाजमे लालकाकी बजलीह- एलौं।‍
एलौं सुि‍न पढ़ुआ काकाकेँ सबूर भेलनि‍। लाल काकी मने-मन सोचैत जे पुरुखक लटारम की धमना लटारम्‍भसँ कम होइए जे लगले सोझराएत। अच्‍छा कनी बौस कऽ शान्‍त कऽ देबनि‍। माल-जाल अबैक बेर‍ अछि। करजानमे उपद्रव करत। सएह केलनि‍।

पत्नीक अबाज सुि‍न पढ़ुआ काकाकेँ छाती दहलि‍ गेलनि‍। नाङड़ि‍ सुरड़ि‍ कऽ वि‍द्यालय घर धड़ौलक। कतौ के ने रहलौं। मन गरमेलनि।‍ बमकि‍ कऽ बजलाह- काल्हि‍ये वि‍द्यालय जा कऽ लि‍खि‍ कऽ दऽ देबै जे आइयेसँ छुट्टीमे जा रहल छी। मन हुअए तँ मनि‍आर्डर कऽ रुपैया पठा दि‍अ, नै होइ तँ नै पठबऽ।‍ मुदा लगले मन थलथला गेलनि‍। जेना माटि‍ पानि‍मे मि‍लि‍ भऽ जाइत। एना पाइयक खेल किअ‍ए भऽ रहल अछि। वि‍द्यालयक शि‍क्षक होइक नाते एे खेलकेँ किअ‍ए ने बूझि‍ रहलौंहेँ। अाकि‍ अर्थशास्‍त्र पढ़बाक अभाव रहल?

लग अबि‍ते लाल काकी बजलीह- चूड़ा भूजि‍, नोन-तेल-मरीच मि‍ला कऽ रखने छी, नेने आएब?
लाल काकीक बात सुि‍न पढ़ुआ काकाक मन मचकी जकाँ झुलए लगलनि‍। मुदा आससँ दोसर दि‍स भऽ गेलनि‍। खि‍सि‍या कऽ बजलाह- हूँ। चूड़ा-तूड़ा नै खाएब। रक्‍खू अपन चूड़ा-तूड़ा।‍
मुस्‍की दैत लाल काकी उत्तर देलखि‍न- हमरे छी, अहाँक नै छी?
पत्नीक बात सुि‍न मन सि‍हरि‍ गेलनि‍। बेरुका सूर्जक रौद जकाँ पढ़ुआ काकाक गरमी कमलनि‍। बजलाह- एकटा गप कहए चाहै छी?
‍भरि‍-भरि‍ राति‍ तँ गप्‍पे सुनलौं। अखन हाथ धूराएल अछि। हाथ-पएर धोने अबै छी तखन‍ अंडी तेलसँ घुट्ठि‍यो ससारि‍ देब आ गि‍रहो फोड़ि‍ देब। मन हल्‍लुक भऽ जाएत। सदति‍ काल कहैत रहै छी जे मोटरगाड़ी लऽ लि‍अ। अारामसँ जाएब-आएब। से हम्‍मर गप थोड़े सुनब। तइकालमे कहब जे मौगी-मेहरीक गप छी।
लाल काकीक गप सुनि‍ पढ़ुआ काकाक मन आगि‍मे पकैत भट्टा जकाँ असुआ गेलनि‍। लजबीजी जकाँ दुनू पि‍पनी सटि‍ गेलनि‍। कल पड़ल रोगी जकाँ लाल काकी बूझि‍ सहटि‍ कऽ नि‍कलि ठाेकले बाड़ी पहुँचि‍ गेलीह।

पि‍ताक देल जमीनकेँ पढ़ुआ काका बि‍सरि‍ गेलाह। खाली गाछी-बँसबारि‍टा धि‍यानमे रहलनि‍। कि‍सानक बेटी लाल काकीकेँ खेतीक सोलहो आना लूड़ि‍। अन्नक खेती बटाइ लगा लेने छथि‍, पाँच कट्ठा चौमास आ गाछीक सेवा टहल अपने करै छथि‍। दूटा गाइयो पोसि‍या लगौने छथि‍, जइसँ सुभ्‍यस्‍त भोजन भेट‍ जाइत छन्हि। पक्का घर बना सभ बेवसथो केनहि‍ छथि‍।
     
हँसुआ, खुरपी, कोदारि‍ आङनमे रखि‍ लाल काकी झाड़ू लऽ कऽ आङन बहारि‍, कलपर पएर-हाथ धोइ‍ पानि‍ पीबि‍ते रहथि‍ आकि‍ मन पड़लनि‍ पति‍क रुसब। फेर‍ मन पड़लनि‍ अपन जि‍नगी। जा धरि‍ माए-बाप लग रहलौं बच्‍चा रहलौं। दुनू गोटेक इच्‍छा सदति‍ काल यएह रहनि‍ जे धि‍या-पुता कखनो कानए नै‍। तहि‍ना तँ सासुर एलाक बादो भेल। बूढ़ी (सासु) सदति‍ काल कहैत रहै छेलीह जे कनि‍याँ अंगनाक मालि‍क स्‍त्रीगणे होइत छथि‍। तँए अंगनकेँ, बि‍आहक मड़बा जकाँ सतरंगा फूल लटकौने रही। यएह मि‍थि‍लाक धरोहर छी। एहेन कनि‍याँक कमी नै जे बेटा-बेटीसँ लऽ कऽ सासु-ससुर होइत पति‍ धरि‍क दुखकेँ अपन दुख बूझि‍ सती धर्मक पालन करैत एलीह-  सावि‍त्री, दमयन्‍ती। कड़ुआ कऽ कि‍छु कहब उचि‍त नै‍। तइ बीच दरबज्‍जा परक आबाज सुनलनि‍। हे भगवान, जानह तँू।‍
मने-मन पढ़ुआ काका अपने संबंधमे सोचैत रहथि। आमोक गाछी तेहन अछि जे एक तँ दू मासक भोजन, तहूमे सभ साल नहि‍येँ। गोटे साल मोजरबे ने करैत, तँ गोटे साल ि‍बजलौकेमे मोजर जरि‍ जाइत। गोटे साल बि‍हाड़ि‍येमे, आमक कोन बात जे गाछो खसि‍ पड़ैए। गोटे साल तेहन बा रहैए जे मोजरेकेँ जरा दैत अछि। हुन्‍डा-हुन्‍डी पाँच बर्खपर दू मास आम भेटत, तइमे जीब‍‍ सकै छी, बाकी.....?
     
दरबज्‍जापर लाल काकीकेँ अबि‍ते पढ़ुआ काकाक टुटल मन कलपि‍ उठलनि‍। गोरथारीमे बैस‍ लाल काकी बजलीह- पएर सोझ करू।‍
लाल काकीक बात सुि‍न, जहि‍ना तारक कम्‍पनसँ वीणाक स्‍वर बनैत तहि‍ना पढ़ुआ काकाक बोल नि‍कललनि‍- ‍पएर नै टटाइए, हृदैक बेथा छी।
पति‍क बात सुि‍न फड़कि‍ कऽ चौकीपर सँ उठि‍ लाल काकी मधुआएल स्‍वरमे बजलीह- साँचे स्‍त्रीगण सबहक मुँहे सुनै छी जे पुरुख नङरकट होइ छथि‍। कुत्ता जकाँ सदति‍ काल नाङरि‍ टेढ़े रहै छन्हि‍।‍
जे बुझी।‍
तँए कि‍ स्‍त्रीगण अपन पति‍केँ मुइल कुकुड़ जकाँ टाँगमे डोरी बान्‍हि‍ घि‍सि‍या कऽ बँसबीट्टीमे फेक‍ आओत।‍
चौकीपर सँ उठलौं किअ‍ए? डाँड़ सोझे बैसू। बामा हाथ तँ दुनू गोटेक एक्के वृत्त करैत अछि‍, तँए बामा हाथपर हाथ रखि‍ दहि‍ना हाथसँ छाती सहला दि‍अ।‍
पढ़ुआ काकाक बेथा सुि‍न लाल काकीक मन कानि‍ उठलनि‍। जा धरि‍ ओछाइनोपर पड़ल रहताह ताधरि‍..... सत्ती साध्‍वी तँ.....।
  चौकीपर बैसि‍ते‍ पढ़ुआ काका आँखि‍मे आँखि‍ मि‍ला कहलखि‍न- सभ अंगक दूरी समान अछि। वि‍धाताक बनाओल जि‍नगीक आधा भाग अहाँ छी।‍
अहाँ छी।‍
पढ़ुआ काकाकेँ मन पड़लनि‍ छठि‍यारीक बात। आनन्‍द-मग्‍न होइत पत्नीकेँ कहलखि‍न- भारी भूल भेल जे आहाँसँ भरि‍ मन कहि‍यो जि‍नगीक गप नै केलौं। जेकर प्रायश्चि‍त अहाँ मुँहे सुनब।‍
अवसर पाबि‍‍‍ लाल काकी पूछि‍ देलखि‍न- अहीं कहू जे आइ धरि‍ कहि‍यो ई बात बुझा देलौं जे दुनू परानी कत्ते दि‍न जीब‍। जते दि‍न जीब‍ ओते दि‍न केहेन जि‍नगी जीब‍। राजा-दैवि‍क कोनो ठेकान छै जे अहीं कहि‍या मरब आकि‍ हमहीं कहि‍या मरब? अखन दुनू परानी जीबै छी, मुदा इहो तँ भऽ सकैए जे एक गोरे जीबी आ एक गोरे मरि‍ जाइ।‍‍
पत्नीक बात सुि‍न उछलि‍ कऽ चौकीपर सँ ठाढ़ होइत बजलाह- नोकरी छीन नि‍हत्‍था केलक मुदा तँए कि‍ मरि‍ जाएब। जँ अन्‍हरा-नेंगरा सौंसे जि‍नगी बना गामक आगि‍सँ अपन रच्‍छा कऽ सकैए तहन तँ....।‍
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