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Saturday, April 7, 2012

कब्‍जि‍यत दूर भगाउ :: शिव कुमार झा ’टिल्लू’


बड़की भौजी भोरेसँ आनंदक क्षीर-सागरमे गोता लगा रहल छलीह कि‍एक नै‍, हुनक बावा जे आबि‍ रहल छथन्‍हि‍। दुरागमनक बाद पहि‍ल बेर बावाक अवाहनक आशमे रंग-वि‍रंगक पकमानक संग स्‍वागत करवाक लेल ओ आतुर....। हमरा समस्‍तीपुर जएवाक छल, मुदा बाबूजी रोकि‍ लेलाह। परम प्रि‍य समधि‍ आबि‍‍‍ रहल छथि‍‍, चौरासी बर्खक भऽ गेलाह, नै जानि‍ फेर‍ आबि‍‍‍ सकताह वा......। अहाँ काल्‍हि‍ भरि‍ रूकि‍ जाऊ। पि‍तृ आदेश सि‍रोधार्य, आर्द्रा नक्षत्रक बरखासँ दलानक परि‍सर बज-बज कऽ रहल छल तँए पुनीतकेँ सुरखी छि‍टवाक लेल कहल गेल। हम कोदारि‍सँ चि‍क्कन कऽ रहल छलौं। एतवामे गुंजन वि‍हारि‍ जकाँ दोड़ल आबि‍ कऽ कहलक- सरपंच सहाएब आबि‍‍‍ गेलाह, नि‍सहर भुइयाँ थान लग हम देखलौं।‍
  ‍हम पहि‍ने कहने छलौं समधि‍ भोरूक बससँ औताह मुदा, हमर के सुनए, भोज कालमे कुम्‍हर रोपू आब बाट साफ करवाक कोनो प्रयोजन नै‍, दौग‍ कऽ जाउ आ हुनका लए अवि‍यौ।‍ गुंजन खि‍सि‍आइत बाजल- हुनका के आनत, बाए.... बाबा तँ आबि‍‍‍ गेलाह‍।
     समधि‍ मि‍लान भेल, तत्‍पश्‍चात बाबूजी हुनक चरण स्‍पर्श कएलनि‍। बावा अशोकर्ज देखएवाक प्रयास करए लगलाह मुदा, व्‍यर्थ। अपने हमर समधिक‍ पि‍ता छी तँए हमरो लेल पि‍तृतुल्‍य। बाबूजीक तर्कक आगाँ सरपंच सहाएब मूक....। झट-झट सभ गोटे चरण स्‍पर्श करए लगलौं। असलानी चौकी, खराम, जल..... पूर्ण मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍सँ अभि‍नंदन। बावा गदगद होइत बजलाह- कादम्‍बि‍नीक ऐ घर बि‍याह करबाक नि‍र्णए‍ हमर जीवनक सभसँ सोझ नि‍र्णए प्रमाणि‍त भेल अछि‍। मनुखकेँ अपन संस्‍कार नै छोड़वाक चाही।
  कुड़ा-अछमनि‍क पछाति‍ जलपान, चाह.....ओकरा बाद प्रसि‍द्ध पतैलीक प्रसि‍द्ध पान चि‍बबैत गुंजनकेँ बजौलनि‍- बौआ, कोन कि‍लासमे पढ़ैत छी?
  गुंजन बाजल- ‍छठामे.....। गुंजनक जबाव पूर्ण भेल नै की बि‍चहि‍मे हमरा मुँहसँ नि‍कलल- ‍मुदा, वि‍द्यासँ हि‍नक कोनो संबंध नै‍, अखन धरि‍ वि‍चाराधीन होइत कक्षा पार कऽ रहल छथि‍।  ई बात सुनि‍ते बाबूजी हमरा दि‍स आँखि‍ गुरडि़ कऽ वि‍द-वि‍देलाह- देखि‍ लेब चारू भाँइमे छोटका सभसँ आगाँ जाएत।
  सरपंच बाबूक मूक समर्थन। हँसी-ठ्ठाकक बाद बावाक आंगन प्रवेश भाव आ मर्मक अनुभूति‍क साक्षात दर्शन। भौजी बावाकेँ गोर लागि‍ अश्रुधारसँ नहा गेली। हमरा मुँहपर मंद मुस्‍की मुदा गुंजन दहोवहो। भौजी अपन भावनापर अंकुश लगा कऽ गुंजनकेँ पुचकारए लगलीह। सभ व्‍यक्‍ति‍ बूझि‍ रहल छल, मुदा सबहक ठोर जग्रनाथकक फाटक जकाँ बंद......। मातृ सुखसँ वंचि‍त नेेना ककरो आँखि‍पर नोर नै देखि‍ सकैछ। सरपंच सहाएब बजलाह- नै हहरू, भौजीकेँ माएक रूपमे देखू।
 हम मोने-मन बजलौं‍- कहव अासान मुदा, एना भऽ सकैत अछि‍। कि‍यो कतवो मानए परंच मातृ प्रेमक आगाँ सभ अोछ।
  भौजीक सि‍नेहमे कोनो कमी नै‍, ई गप्‍प हम बुझव गुंजन अवोध, माएक संग पि‍ठि‍या जकाँ लड़ैत छल ओइ क्षणकेँ वि‍सरव असंभव तँ नै‍, क्‍लि‍ष्‍ट अवश्‍य अछि‍। मझि‍नीक पश्‍चात बावा दलानपर आबि दि‍वस वि‍श्राम करए लगलाह। बाबूजी शनि‍ पेठि‍या माँछ कि‍नवाक लेल ि‍वदा भऽ गेलनि‍।‍
     एक मनुखक कतेक रूप भऽ सकैत अछि‍। अपने शाकाहारी परंच पाहुनक लेल मॉछ अपने आनव। पाहुन की? हमरो सबहक लेल ओ अपने मॉछ अनैत छथि‍। अपन संतति‍ लेल लोक की की नै करैत अछि‍, माटि‍क ढेपकेँ कुम्‍हार बनि‍ कऽ घैलक रूप दैत अछि‍। सुधा कोष बनाएवाक लेल अपन सकल मनोरथकेँ झाँपि‍ लैत अछि‍। सुधाकोष आगाँ कोन रूपक हएत ककरो वशमे नै‍। ऑगन आबि‍ हम भौजीसँ चाह बनएबाक आग्रह कएलौं- आइ भरि‍ हमरा छोड़ दि‍अ अपने स्‍टोप जड़ा कऽ बना लि‍अ।
  हमरो खराव नै लागल, अपन पि‍तृक प्रति‍ सि‍नेह स्‍वाभावि‍क अछि‍, मॉछ तड़ैत छलीह। मात्र बब्‍बेटा नै खएताह, हमहूँ खाएब। गह-गट्ट रौ, गहगट्ट रौ......सुनि‍ते भागल दलान दि‍स अएलौं। दलानपर दसौत गामक भाट कि‍यो टाटक कए रहल छलाह। भाटक नाओं मोन नै मुदा सभ कि‍यो हुनका मुकेश कहैत छथि‍। ओ नकि‍या कऽ गीत सुनावए लगलाह- सि‍नेहि‍या वि‍सरि‍ बैसल अछि‍ गाम....‍
 बाबूजी भाटक संग समधि‍क साक्षात्‍कार करौलनि‍। हमर बड़का बालकक अजि‍या ससुर छथि‍, अपन गामक नि‍र्वि‍रोध सरपंच छलाह। सरपंच सहाएबक वि‍शुद्ध मैथि‍ली सुनि‍ भाट महाशय गाबए लगलनि-
  ‍रैनी-भैनी ओ रौति‍नि‍या
  दीप गोधनपुर कैथि‍नि‍या
  पाँच गाम पचही परगन्ना
  उत्तम गाम ननौर
  तेली-सूड़ी बसए मधेपुर
  लंठक ठट्ठ लखनौर
     ‍सरपंच सहाएब, हम दस-दुआरि‍ छी तँए नीक अधलाह बूझैत छी। अपने अपन पोतीक बि‍याह करि‍यन कएलौं.... इहो नीक गाम मुदा अछि‍ तँ दक्‍खि‍न। लेकि‍न अपनेक समधि‍ मूल रूपसँ कैथि‍नि‍या गामक वासी छथि‍.... झंझारपुर टीशनक सटल गाम- कैथि‍नि‍या। हि‍नका दछि‍नाहा नै कहल जा सकैत अछि‍ ई सुनि‍ते सरपंच सहाएबकेँ जेना वि‍रनी काटि‍ लेलक....। क्षमा करू मुदा हम तँ शुद्ध दछि‍नाहा छी। हसनपुर चीनी मि‍लक पॉजरि‍ लागल गाम शासन हमर जन्‍म आ कर्मभूमि‍।
     दू क्षणक लेल मुकेश जी मूक भऽ गेलाह। मुदा छथि‍ तँ सि‍द्धहस्‍त मैथि‍ल, क्षणहि‍मे भरवा बदलि‍ गेल। अहोभाग्‍य अपने सन महान व्‍यक्‍ति‍क दर्शन भेल। शासन गाम मि‍थि‍लाक चर्चित गाम अछि‍। ओइठॉक सती माताक महि‍मा के नै जनैत अछि‍? बि‍ड़ला परि‍वारक द्वारा अपने गाममे सती माताक समृति‍ स्‍वरूप तोड़ण द्वारक नि‍र्माण कएल गेल अछि‍। एकटा बात पूछवाक दु:साहस कऽ रहल छी दक्‍खि‍न भरक रहि‍तौं अपने परि‍मार्जित मैथि‍ली बजैत छी..... से कोना? अवश्‍य अपनेक मातृक पंचगामक परि‍धि‍मे हएत।
  ‍नै मातृक दक्षि‍णे अछि‍ आर सासुर तँ वि‍शुद्ध दक्षि‍ण मंझौल गाम, बेगूसरायमे अवस्‍थि‍त अछि‍।
  बाबाक व्‍यथा सुि‍न बाबूजी अकचका गेलथि‍, मुकेश बाबू दीर्धसूत्री जकाँ कि‍एक धमगि‍ज्‍जरि‍ केने छी। जौं औतुका मैथि‍ली सुनवै तँ बहुत भलमानुषकेँ वि‍सरि‍ जाएव। ऐ सबहक लेल अहाँक कोनो दोष नै कि‍छु लोक ऐ प्रकारक भेद पैदा कऽ मातृभाषाकेँ हथि‍यावए चाहैत छथि‍ ई नै चलऽ देव। यात्रीक गामसँ उतरो कोनो गाम अछि‍ तँ हुनको दछि‍नाहा मानल जाए। प्रो. सुमन जी, प्रवासी जी, आरसी बाबू, बुद्धि‍नाथ मि‍श्र, लाभ जी, हरि‍मोहन झा, हासमी जी, शेफालि‍का वर्मा इहो सभ दछि‍नाहा छथि‍ तँए हि‍नका सभकेँ बारि‍ दि‍यौ। जइ‍ महाकवि‍ वि‍द्यापति‍क नाओंपर कूदैत छी ओ अपन महापरि‍ नि‍र्माण दक्‍खि‍नेमे कएलनि‍। पाप करैत छी ति‍रहुतमे आ पति‍या कटएवाक लेल गंगाकात सि‍मरि‍या दक्षि‍णे अबैत छी। जा.... मुकेश जी क्षमा करू, अपनेकेँ हम ई सभ कि‍एक कहि‍ रहल छी, अहूँ तँ दछि‍नाहे छी..... समस्‍तीपुर जि‍लाक दसौत ग्राम वासी।
  सरपंच सहाएबकेँ संतोखक अनुभूति‍ भेलनि‍, मुदा हम हुनक छोभक स्‍पष्‍ट दर्शन कऽ रहल छलौं। बाबूजीसँ मुकेश जी क्षमा याचना करैत बजलाह- ‍हमर दोख नै एहेन मानसि‍कताक मध्‍य पैघ भेलौं।
  सरपंच सहाएब दीर्घ श्‍वास लैत बजलाह- मैथि‍लीक मध्‍य एकटा वि‍डंबना अछि‍ अपनाकेँ श्रेष्‍ठ प्रमाणि‍त करवाक लेल दोसरकेँ मरोड़ि‍ देवाक। हमरा सबहक ब्रह्मण समाजमे पहि‍ने बेसी छल, आब सुधरि‍ रहल अछि‍। सुरगणेकेँ सुगरगणे कहल गेल अड़रि‍येक मॉथपर तँ पैघ कलंक-हुनका अनेड़ि‍ये कहल जाइत अछि‍। आन जाइतक कोन कथा हुनका सभकेँ मैथि‍ल बुझले नै गेल।
 ऐ दशापर कानी वा हँसी नि‍र्णए नै कऽ सकलौं। ऑगनसँ भोजनक नि‍मंत्रण आएल। मुकेश जी भात नै खएवाक इच्‍छा प्रकट कएलनि‍ कि‍एक तँ कब्‍जि‍यतक शि‍कार छथि‍। बाबूजी अपन कवि‍ता पॉती जकाँ चि‍कि‍त्‍सा आयाम देखौलनि‍- दस्‍त-दस्‍तावरं खाति‍र भक्‍क्षेत अमृतं फलं। (पेट साफ करबाक लेल लताम खाक)।
  सरपंच सहाएब तत्‍क्षण बजलाह- जौं ‍ अहूसँ नै ठीक हो तँ ताहूसँ दस्‍त नै होतं तँ कूथि‍-कूथि‍ मरीयते।‍
  दोसर दि‍न बाबा चलि‍ गेलाह मुदा हुनक दछि‍नाहा व्‍यथा‍ हमर मोनमे जीवि‍त छल। आब ओ संसारमे नै छथि‍ परंच दि‍शा मोन पड़ि‍ते हुनक मर्मक अनुभूति‍ प्रासंगि‍क अछि‍।‍‍

(शीर्षक श्री उमेश मंडल जीक देल अछि।)

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