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Saturday, April 7, 2012

नोरक दू ठोप :: कुमार मनोज कश्यप


कोट के उतारि कऽ सोफापर फेक जकाँ देलिऐ आ पएर टेबुलपर राखि कऽ हम आँखि बन्न कऽ लेने रही । थाकल-ठेहियाएल कतौ सँ आबि कऽ टेबुलपर पएर राखि कऽ बैसनाई हमर प््रिाय आदति रहल अछि शुरूहे सँ । एह उमसमे दिन भरिक भाग-दौड़़़क़ंोर्टक रूम-सँ- ओइ रूम, कखनो पुस्तकालय तँ कखनो मुवक्किंल सभ सँ किंछु बुझैत वा ओकरा सभ कें किंछु बुझबैत़़ भरि दिन यएह करैत-करैत मोन असोथकिंत भऽ जाईत अछि आ शरीर बेजान । एहनेमे कखन आँखि लागि गेल से बुझबो ने केलिऐ। कनियाँ जगओलनि - 'जा निन्न पड़ि गेलिऐ ! चाह सेरा रहल अछि । ' हम हड़बड़ा कऽ उठलौं आ जल्दी-जल्दी चाह सुड़किं गेलौं। गरम-गरम चाह पीयब हमरा नीक लगैत अछि  जतबा काल कि‍यो एक-दू घोंट चाह पिबैत अछि ततबा काल हमर कप खाली भऽ कऽ नीचा रखा गेल रहैत अछि ।

हम फ्रेश भऽ लॉनमे आबि गेल रही। कनियाँ पहिनहि सँ ओतए हमर बाट जोहि रहल छलीह । एम्हर-ओम्हरक गप्पक बाद बात केस-मोकदमा के एलै । 'भने मोन पाड़लौं आई एकटा बुढ़ी आहाँक ठेकान पुछैत-पुछैत आएल छल़़ बड़ अभागलि अछि ओ ! अपने जनमाओल बेटा  अपडेर देने छै बेचारी के ! हे हम नेहोरा करैत छी़ओकर केस लड़ियौ आहाँ देखला सँ तँ ओ बड़ निर्धन बुझाएल हमरा । फीस तँ साईत नहियें दऽ सकत़़मुदा एकटा सामाजिक सरोकार बूझि मदति कऽ दियौ बेचारी के़। ' कनियाँ नेहोरा-पर-नेहोरा केने जा रहल छलीह ।

'मुदा केस की छै से तँ पहिने बुझिये? '

'केस की छै, एकटा भावनात्मक अत्याचार छै ओइ अबला मसोम्मातिपर । हे हमरा सद्यः विश्वास अछि आहाँ ई केस जीतबे करब ! खाली आहाँ  'हँ ' कहि दियौ़ज़ीवन भरि ओ आशीर्वाद दैत रहत बाल-बच्चा के । '

'पहिने केस तँ बताऊ ओहिना बुझौआल बुझेने जा रहल छी । ' हमर स्वरमे कनेक खौंझाहटि आबि गेल छल ।

'केस तँ मामूलिये छै ओइ बुढ़ीकेँ एक्केटा बेटा छै़ओकर बेटा जखन दूईये साल के रहै तखने ओकर घरबला मरि गेलै । कहुना-कहुना कऽ बुढ़ी ओइ बेटा के पढ़ा-लिखा कऽ समर्थ बनेलकै़अखन बेटा बैंकमे कोनो नीक पदपर काज कऽ रहल छै । बेटा पुतोहु के कहलमे आबि कऽ बुढ़ माएकेँ अपना संगे नै राखय चाहि रहल छै । बुढ़ी के कहब छै जे जइ बेटाक लेल हम अपन सभ किंछु गमा लेलौं ओइ करेजा के टुक़ंडासँ हम मरबा काल कोना दूर रहि सकैत छी । ओना ओकर बेटा ओकरा अपना सँ दूर घर दऽ नीक-सँ-नीक  सुख-सुविधा देबाक हेतु तैयार छै । मुदा बुढ़ी अपन बेटा सँ दूर नै रहए चाहि रहल छै । '

'केस मनलग्गू छैक भावनात्मक  छैक  ओकर 'मास अपील' छैक ओकर निर्णय के दूरगामी प््राभाव समाजपर पड़ि सकैत छैक  ' हम मामलामे अपना के विभोर केने जाईत रही । कनियाँ हमरा सोचमे पड़ल देखि‍ कहलनि -' काल्हि रविये छै, भोरके पहरमे ओकरा बजेने छिऐ । अपने सभटा पुछि लेबै। बेचारी के आँखिक नोर नै सुखाईत छलै । झाँट धरू एह बेटा के जे माए ओकरा परवरिस कऽ कऽ एतेक टा बनेलकै़मनुख बनेलकै़ओ अपन माएकेँ नै डेब सकलै। हे हम पएर पक़ंडैत छी़आहाँ नामी ओकील छी़बुढ़ी के न्याय दिया दियौ । ' कनियाँ फेर अनुनय-विनयपर उतरि गेल छलीह।

केस हमरो रोचक लागल रहै । दोसर, कतेको मामलामे कोर्टक निर्णय आएल छै जे संतानक दायित्व बनैत छै जे ओ अपन माए-बापकेँ परवरिस कर, तँए केस साधारने छलै । साँच पुछी तँ कोनो बुड़िबको ओकिंल ई केस जीत सकैत छल ।

छुट्‌टी के दिन हम अपन निन्नक सभटा बैकलॉग कोटा पूरा करैत छी । दिन माथक उपर आबि गेल छलैक । कनियाँ सिरमामे बैस कऽ हमर केसमे अपन आँगुर फेरैत हमरा जगौलनि - 'ओ बुढ़ी आबि कऽ कखन सँ ने बैसलि अछि । आब उठि जाऊ । फेर दिनमे सुति रहब । प््राचंड रौदमे बुढ़ी के पएरे दू कोस गाम जाइ के छै । '

चाय के चुस्कंी संग हम ओइ बुढ़ी के सभटा बात धि‍यान सँ सुनैत रहलौं । अपन जुनियर सिन्हा के कहलिऐ - 'ड्रापत्ट अप्लीकेशन बना कऽ लऽ आऊ। काल्हि केस फाईल कऽ देबै । ' कनियाँ बुढ़ी के किंछु पानि पीबय देने रहथिन । हम आन केस सभमे व्यस्त भऽ गेल रही ।

केसमे उम्मीद सँ बेसी जीरह चलि रहल छै । हमर कहब रहय जे एकमात्र संतान हेबाक कारणे बुढ़ीक बेटा के पूरा-पूरा जिम्मेदारी छै जे ओ अपन बुढ़ माएकेँ देखभाल करए । हम अपन बातपर जोर दैत बजलौं - ' मी लॉर्ड ! मेंटीनेंस एंड वेलफेअर ऑफ पीरेंट्‌स एंड सिनियर सीटीजन एक्ट, २००७ के पारित भेला सँ संतान अपन बुढ़ माए-बापकेँ पालन-पोषण के जिम्मेदारी सँ भागि नै सकैत अछि । सम्बंधमे कतेको  न्यायाधिकरण आ न्यायालय के रूलिंग उपलब्ध अछि ।  हमर मुवक्किंल के ओकर एकमात्र बेटा जे ओकर जायदाद के एकमात्र वारिस सेहो छैक, के पूर्ण जिम्मेदारी बनैत छैक जे अपन बूढ़ माएकेँ उचित देखभाल करए । अहू सभ सँ पैघ बात 'मी लॉर्ड' जे जे माए कोना-कोना अपन पेट काटि बेटा के पालि-पोसि आई लायक बनेलकै, ओइ माएकेँ जँ बेटा पेट नै भरि सकय, ओकरा दू हाथ वस्त्र नै दऽ सकय, ओकर दवाई-विरो नै करा सकय तँ ओ बेटा  बेटा कहेबाक कथमपि योग्य नै। '

'ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड ! ई आरोप सरासर फुसि अछि जे हमर मुव्वकील  बुढ़ माएकेँ परवरिश नै कऽ रहलाह अछि । सत्य तँ ई अछि माई लॉर्ड जे ई अपन माएकेँ नीक-सँ-नीक सुख-सुविधा दऽ रहल छथि आ भविष्योमे दैत रहबाक वचन दैत छथि । हुनका कोनो तरहक असुविधा वा कष्ट नै होन्हि‍ तइले एकटा फूल टाईम नोकरनी राखि देल गेल छन्‍हि नियमित डॉक्टरी जँाच आ दवाई-विरो के व्यवस्था कएल गेल छन्‍हि घरमे सभ सुख-सुविधा उपलब्ध कराओल गेल छन्‍हि। केवल हमर मुवक्कंील अपन माएकेँ अपना संगे नै राखि रहल छथि तकर कारण छैक सासु-पुतोहुमे दिन-राति झगड़ा़दुनू सासु-पुतोहु एक दोसरा के फुटलियो आँखि नै देखए चाहैत छथि । एनामे घर के नर्क बनेबा सँ तँ नीक जे बुढ़ी अलग रहथि । ऐसँ ओहो शाँति सँ रहतीह आ हुनकर बेटा - माने हमर मुवक्कंील सेहो । '

'मी लॉर्ड ! जे माए बेटाकेँ नान्हीटा सर्दी-बोखार भेलापर भरि-भरि राति जागि कऽ बीता देने होई, जइ माएकेँ लेल दुनियाँ के सभ सँ प््रिाय वस्तु ओकर करेजा के टुक़ंडा होई , जे माए अपन बेटा के खातिर अपन सर्वस्व लुटा देने होई, आई मरन-कालमे ओइ माएकेँ कहल जाय जे ओ अपन बेटा सँ दूर रहय तँ ई एकटा माएक ममतापर सरासर कुठाराघात नै तँ आर की भऽ सकैत छैक ? तँए हमर ई हाथ जोड़ि कऽ निवेदन अछि जज साहेब जे हमर मुवक्कंील के मरन कालमे अपन बेटा के संग रहबाक अंतिम ईच्छा के पूरा कऽ दियौ । हमर क्लाईंट के सुख-सुविधा, नोकर-चाकर किछु नै चाही बस एकेटा अंतिम इच्छा जे अपन करेजा के टुक़ंडा के देखैत प््रााण त्याग करी़। ' बजैत-बजैत हमर गला भरि गेल छल, आँखिमे नोर डबडबा गेल छल । चश्मा निकालि कऽ रूमाल सँ हम अपन आँखि पोछि फेरसँ चश्मा पहिरी लैत छी । कोर्टक महौल भारी भऽ गेल छलैक ।

दुनू पक्ष-विपक्ष सँ तर्कक वाण चलैत रहलै़ज़ज साहेब किंछु-किंछु नोट करैत रहलाह़़लोक सबहक ज़िग्याशा बढ़ले जाईत रहलै। आब फैसलाक घड़ी आबि गेल छलै़सभ साँस रोकने सुनि रहल छल । जज साहेब खखसि कऽ गला साफ केलनि आ फैसला सुना देलनि -'घोड़ा के पानि पियेबाक लेल घाटपर तँ लऽ कऽ जाएल जा सकैत छैक, मुदा ओकरा पानि पीबाक लेल बाध्य नै कएल जा सकैत छै । तहिना जौं हम प््रातिवादी के आदेश कईयो दिऐ जे ओ वादी के अपने संगे अपने घरमे राखै तँ परिणाम भऽ सकैछ जे वादी-प््रातिवादी दुनूक जीवन अशांत भऽ जाय । स्थितिसँ नीक जे प््रातिवादी स्वयं निर्णय लेथि । तँए हम प्रातिवादीयेपर ई मामला छोड़ैत छियनि़ज़न्म देनिहारि माए तँ आखिर हिनके छियनि । ' कहि कऽ जज साहेब फुर्ती सँ अपन कुर्सी सँ उठि कऽ चलि गेलाह । कोर्ट-रूममे लोकक बीच घोल-फचक्कंा शुरू भऽ गेलै़ज़तेक मुँह तते तरहक बात । ओ बुढ़ी हमरा निरिह आँखिये ताकैत कोर्ट-रूम सँ बहरा रहल छलीह । हमरा लागल़़हमर ओकालति के ई सभ सँ पैघ हारि अछि । हम झट्‌ट सँ बाहर निकलि कऽ कऽल जोड़ि कऽ बुढ़ी के आगूमे ठाढ़ भऽ गेलौं -'माताजी ! आहाँ चिंता जुनि करू । हम काल्हिये केस फाईल बना कऽ हाई-कोर्टमे अपील करैत छी़हमर जीत निश्िचते होयत़़। ' ओ बुढ़ी बामा हाथ सँ हमरा कात करैत बिना किंछु बजने आगू बढ़ि गेलीह । ओ अपन रस्तापर जा रहल छलीह । हम अबाक भेल हुनकर रस्ता दिस तकैत रहि गेल छी़अपलक माटिक मूर्ति जकाँ स्थिर । नोरक दू ठोप टघरि कऽ गालपर आबि गेल अछि ।

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