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Sunday, April 8, 2012

प्रेमी :: जगदीश मण्‍डल


प्रेमी

फगुआक दिन। मुरगाक बाङ सुनिते ओछाइन छोड़ि पक्षधर बाबा परिवारक सभकेँ उठबैत टोलक रास्ता धेने गौआँकेँ हकार दिअऽ विदा भेलाह। मनो गद्गद्। खुशी भीतरसँ समुद्रक लहरि जकाँ उफनैत रहनि। गौआँकेँ फगुआक भाँग पीबाक हकार दए दरबज्जाक ओसारपर बैस गर अॅटबए लगल जे दस किलो चीनी, मसल्ला आ भाँगक पत्तीक ओरियान तँ कइये नेने छी। आब खाली बाजा-गाजा संग लोककेँ एबाअछि। एते बात मनमे अबि‍ते उठि कऽ भाँगक पत्ती आ मसल्ला -मरीच, सौंफ, समतोलाक खोंइचा, गुलाब फूलक पत्ती, काबुली बदाम- लऽ आँगन जाए पुतोहुकेँ कहलखिन- कनियाँ, बुरहीकेँ पुआ-मलपुआक ओरियान करए दिअनु आ अहाँ भाँग पीसू। खूब अमैनियासँ पत्ती धुअब। ति‍नसलिया पत्ती छी, जल्ला-तल्ला लगल अछिकहि ओसारपर सभ सामान सूपमे रखि दरबज्जा दि‍स घुरि गेलाह। हँ-हूँ केने बिना गांधारी मसल्लाक पुड़िया निच्चाँमे रखि पत्तीकेँ सूपमे पसारि आँखि गड़ा-गड़ा जल्ला ताकए लगलीह। मनमे उठलनि जे आइ बूढ़ा सनकि-तनकि तँ ने गेलाहेँ। एत्ते भाँग लऽ कऽ की करताह। मुदा किछु बजलीह नै। आँखि उठा कऽ देखि‍ बि‍‍हुँसि कऽ नजरि निच्चाँ कऽ लेलनि। ओना मिथिलाक नारी आँखिमे गांधारी जकाँ पट्टी बान्हि घरती सदृश सभ किछु सहैत एलीह। दरबज्जापर बैस पक्षधर सोचए लगलाह- जिनगीक एकटा दुर्गम स्थान दुर्गा टपा देलनि। मने-मन दुनू हाथ जोड़ि हृदैसँ सटा हुनका गोड़ लगलनि। सुकन्‍या अपना विचारसँ जिनगीक प्रेमी चुनलक। केना नै आनन्दसँ जीबैक अासिरवाद दितिऐक। जइ फुलवारीकेँ लगबैमे साठि‍ सालक श्रम लगल अछि ओइ‍ श्रमकेँ, जहिना छोट-छोट बेदरा-बुदरी टिकुली पकड़ि पुनः उड़ा दैत अछि तहिना हमहूँ उड़ा देब? कथमपि नै


रूपनगर हाइस्‍कूलक बोर्ड परीक्षाक सेन्टर प्रेमनगरक हाइस्‍कूल भेल। देहाती स्कूल रहितो परीक्षार्थीकेँ डेराक लेल मनमे कोनो चिन्ता नैसबहक मनमे एते खुशी जे डेरापर धियाने ने जाइत। सभ निश्चिन्‍त जे गाम-घरमे अखनो विद्याकेँ देवी स्वरूप बूझि सभ मदति करए चाहैत छथि। जँ मधुबनी सेन्टर होइतए तहन ने डर होइतए जे मेहता लौजमे सभ सामान चोरिये भऽ जाएत, तँए असुरक्षित अछि आ प्रोफेसर कौलनीक भाड़े तते अछि जे ओतेमे तँ विद्यार्थी परीक्षाक सभ खर्च पुरा लेत। ओना प्रेमनगरक सइयोसँ उपरे कुटुमैती रूपनगरमे अछि, तँए किएक ककरो मनमे रहैक चिन्ता होइतैक। तहूमे प्रेमनगर हाइस्‍कूलक हेडमास्टर तेहन छथि जे स्कूलक समैमे स्कूलक काज करै छथि बाकी बारह बजे राति धरि विद्यार्थीक खोज-पुछाड़िमे लगल रहै छथि जे ककरो कोनो तरहक असुविधा तँ ने भऽ रहल छै। तहूमे आनन्‍दी बाबाक दरबज्जा तेहेन छन्हि जे इलाकाक लोक अपन रहैक ठरे बुझैत अछि। घर्मशल्ले जकाँ। धन्यवाद यशोदिया दादीकेँ दियनि जे बुढ़ाड़ि‍योमे अभ्यागत सबहक अँइठ-काँठ बारह बजे राति धरि उठबिते रहै छथि।

परीक्षासँ एकदिन पहिने लोचन सभ समान शूटकेशमे लऽ साइकिलसँ प्रेमनगर पहुँचल। लोचनक परिवारकेँ पक्षधरक परिवारसँ साठियो बर्ख ऊपरसँ दोस्ती अबैत रहनि। आजादीक हुड़-बड़ेड़ाक समए रहए। जहिना गामक धियापूता गुल्ली-डंटासँ क्रिकेटक मनोरंजन करैत अछि‍ तँ शहरक धि‍या-पुता जगहक अभावमे खेलक स्कूलमे नाओं लिखा मनोरंजन करैत अछि, तहिना पक्षधरो आ ज्ञानचन्दो आजादीक लड़ाइमे पढ़ाइ छोड़ि समाजक बीच आबि‍ हुड़-बरेड़ामे शामिल भऽ गेला। समाजक काजमे हाथ बँटबए लगलाह। समाजमे ककरो ऐठाम बेटीक बि‍आह होइ आकि‍ बरिआती अबैत तँ अपन बहि‍न बूझि, बिनु कहनाें पाँच दिन निश्चित समए दिअए लगल। तहिना आरो-आरो काज सभमे हाथ बँटबए लगलाह। मुदा अस्सी बर्खक उपरान्तो पक्षधर पक्षधरे आ ज्ञानचन्द ज्ञानचन्दे रहि गेलाह। कहियो कियो नेता नै कहलकनि। हँ एत्ते जरूर भेलनि जे भाइ-भैयारी भेने गाममे तते भौजाइ भऽ गेलनि जे वसन्त छोड़ि ग्रीष्मक रस्ते घेरि देलकनि। आब तँ सहजहि बुढ़ाड़ीमे धियापूताक संग रंगो-रंग खेलै छथि आ जोगीड़ो गबै छथि। गाम स्वर्ग जकाँ लागि रहलनि अछि
किएक नै मन लगि‍तनि जइ गाममे कालि‍दास सन विद्वान भेलाह जे जही डारिपर बैसब ओही डारिकेँ काटब मुदा ने तँ कुड़हरिक धमक लगत‍, ने डारिये डोलत ने दुनू हाथे कुड़हड़ि भाँजब तँ देह डोलत आ ने दुनू पएरक बाइलेंस गड़बड़ाएत। निश्चििन्तसँ जखन डारि खसए लगतै तखन‍ ओइ‍पर बैसले-बैसल धरतीपर चलि आएब, एहेन विद्वान् सभसँ तँ गामे भरल अछि। एते दिन, अपराधीक संख्या कम रहने ओकरा सबहक नजरि निच्चाँ रहैत छलैक मुदा आब केकरा कहबै अपनो घरवाली धमकी देती जे माए-बाप आ भाइ-भौजाइक पाछू लगल रहै छी आ अपना धि‍या-पुताले किछु करबे ने करै छी। जिनगीसँ जहर-माहुर खाए कऽ मरबे नीक। हौ बाबू, हमरा एहेन भ्रममे नै दएह। दुनियाँमे ने कियो अप्पन छी आ ने बिरान। सीता जकाँ लक्ष्मणक रेखाक भीतर रहह। नै तँ रावण औतह आ लऽ कऽ चलि जैतह। अपन-अपन पएरपर ठाढ़ भऽ गंगोत्रीसँ निकलैत गंगाक पानि जकाँ, जे साथीक संग ऊपर-निच्चाँ होइत प्रशान्‍त महासागरमे मिलैत अछि तहिना समैक संग चलैत रहह।
पक्षधर बाबाक घर-दुआर लोचनकेँ देखले। ककरो पूछैक जरूरते किएक होइतै। साइकिल हड़हड़ौने दरबज्जापर पहुँचि‍ साइकिलसँ उतरि‍ घरक देबालक पजरामे साइकिल ठाढ़ कए दुनू हाथे बाबाक पएर छूबि गोड़ लगलकनि। बाबाकेँ बुझले रहनि, कहलखिन- भने अखने चलि एलह। सभ सामान सरिया सेन्टरपर जा कऽ देखि‍-सुनि अबि‍हह।कहि पोती सुकन्याकेँ सोर पाड़लखिन। मुदा लोचनो तँ अंगना-घर जाइते-अबैत रहए। सुकन्याकेँ लोचन आंगनसँ बजा अनलक। भाए-बहि‍न जकाँ दुनूकेँ देखि‍ पक्षधर सुकन्याक कहबाक बात बि‍सरि दुनू गोटेकेँ कहलखिन- बाउ, आब तँ हम चलचलाउ भेलियह। तोरे सबहक पार दुनियाँमे एलहहेँ। दुनियाँमे जते मनुख अछि ओ अपना समैक जिम्मा लऽ जीबैत अछि। अखन तँू सभ सुकुमार कोमल किसलय सदृश छह। मनुख बनि जिनगी जीबि‍हह। हम दुनू संगी -पक्षधर आ ज्ञानचन्द- दू जातिक रहितो संगे-संग जिनगी बितेलौं, जे समाजोक लोक बुझै छथि। मुदा हुनको धन्यवाद दइ छियनि जे संगीक महत अदौसँ बुझैत आएल छथि। एकरे फल छी जे जाति-कुटुम्बसँ कनियो कम दोस्तीकेँ नै बुझल जाइत छैक। संगे-संग जहलो कटलौं आ एक्के ओछाइनपर सुतबो करै छी। मिथिलांचलक कोनो राजनीतिक आकि‍ सामाजिक संगठनक बात होइ मुदा की संस्कृतिकेँ आँखिक सोझमे नष्ट होइत देखि सकै छी।
मन पड़लनि गाड़ीक ओ दिन जइ दिन जहल जाइत काल दुनू गोटेकेँ पैखाना लागि‍ गेल आ हाथमे हथकड़ी छल। ट्रेनक पैखाना-कोठरीमे पानि नै। की कएल जाए? जेबीसँ रुमाल निकालि दू टुकड़ीमे फाड़ि दुनू गोटे शुद्ध भेलौं। आँखि ढबढबा गेलनि। भरल आँखिसँ पोतीकेँ कहलखिन- बुच्ची, दरबज्जापर रहने बौआकेँ पढ़ि नै हेतै। एक तँ पढ़बह कि खाक। बहुत लि‍लसा छल जे परिवारमे इंजीनियर-डॉक्टर देखिऐक मुदा से हमरा सन-सन परिवारबलाक लेल सपना नै तँ आरो की अछि। एक दि‍स पनरह-बीस लाखक पढ़ाइ आ दोसर दि‍स दुइयो हजार महीनाक आमदनीक परिवार नै। मुदा अखन बच्चा छह, आशासँ जीबैक उत्साह मनमे जगबैक छह।
जहिना जनकजीक फुलवारीमे राम आ सीताक प्रथम मिलन भेलनि तहिना सुकन्या आ लोचनक बदलल रूपक बीच भेल। अखन धरि जे बच्चा सदृश परिवारमे खेलौना छल ओकरा कानमे एकाएक जिनगीक बात पड़लै। जिनगीक लेल प्रेम भरल संगीक जरूरति‍ होइत अछि। जिनगीक बात सुनि दुनूक देह सिहरि गेलै। सिहरैत देह देखि‍ पक्षधर कहलखिन- बुच्ची, लोचन तोहर पाहुन भेलखुन। अंगनेक ओसारक कोठरी दऽ दहुन। सभ देखभाल तोरे ऊपर। कोनो तरहक असुविधा पढ़ैमे नै होइन।
पक्षधरक बात सुनि सुकन्या शूटकेस माथपर उठा लोचनक पाछू-पाछू विदा भेल। कोठरी खुजले रहै, अँटकैक कतौ जरूरते नै पड़लैक। एकजनियाँ चौकी, कपड़ाक लेल अलगनी, एकटा टेबुल आ एकटा कुरसी। कुरसीपर शूटकेश खोलि लोचन कपड़ा निकालि चौकीपर रखलक। चौकीपर रखि‍ते सुकन्या ओही अलगनीपर लोचनक कपड़ा रखलक जइपर पहिनेसँ ओकर अपनो राखल कपड़ा छलैक। साओनक झूला जकाँ दुनूक कपड़ा झुलए लगल। कि‍ताब, काँपी, कलम निकालि टेबुलपर रखलक। एक्के कोर्सक पोथी दुनूक। लोचन मैट्रिकक सेनटप केंडीडेट आ सुकन्या मैट्रिकक विद्यार्थी। टेबुलक बगलमे लोचन लग ठाढ़ भऽ सुकन्या पोथी फुटा कऽ नै रखि, सभकेँ जोड़ा लगा-लगा रखलक। दुनूक नजरि दुनूक कि‍ताब-काँपी-पेनक जोड़ापर अँटकि गेल। पहिनेसँ दोबर पोथीक थाक भऽ गेल। अएना जकाँ एक-दोसराक हृदैमे अपन-अपन रूप देखए लगल। पोथीक लिखावट प्रेसक होइत छै। तहूमे एक्के प्रेसक पोथी छलै। मुदा काॅपी तँ अपन-अपन हाथक लिखल होइत छैक। एक दोसराक काँपी उलटा-उलटा देखए लगल। देवनागरी लिखावट लोचनक सुन्दर मुदा अंग्रेजी लिखावट सुकन्याक सुन्दर। एना किअए भेल? एक्के हाथक लिखावट दब-तेज केना भऽ गेल। मुदा उत्तर ककरो मनमे नै अबैत छलै। अनायास सुकन्याक मन नाँचल। एते काल भऽ गेल, अखन धरि पानियो नै अनलौं। धड़फड़ा कऽ कोठरीसँ निकलि छिपलीमे जलखइ आ लोटामे पानि नेने आबि चौकीपर छिपली रखि हाथ शुद्ध करैले लोटा बढ़ा, चौकीक गोड़थारी दि‍स पलथा मारि बाबाक पाहुनकेँ खुआबए बैस गेली। खेबाकाल पुरुख चुप रहैत अछि‍, नोन-अनोनक प्रश्न किअए उठि‍तै। समदर्शी मिथिला छिऐ कि ने?
एक बजेसँ लऽ कऽ चारि बजे धरि परीक्षाक कार्यक्रम रहैए। पहिल दिन लोचन दुर्ग टपैले जाएत तँए सुकन्याक मन मृगा जकाँ नचैत। भिनसरेसँ सुकन्या लोचनपर नजरि अटकौने.......। समैपर अपन काज पुरबैक अछि। हमरा चलते जँ शुभ काजमे बाधा होएत तँ भगवानक ऐठाम दोखी हएब। मास्टर साहेबक सिखाओल बात सुकन्याकेँ मन पड़ल। काजक भार तँ लोचनक ऊपरमे छन्हि। हम तँ हुनकर मदतिगार मात्र छियनि। तँए नीक हएत जे हुनकेसँ पूछि लिअनि। चंचल मनमे उठलै-पूजाक तैयारीमे सभ किछु फुलडालीमे सजबैत होएत। बीचमे बाधा देब उचित नै। हो न हो फूल-पत्तीक जगहे बदलि‍ जाइन। अनायास मनमे उठलै- हाय रे बा, घड़ी तँ देखबे ने केलौं। अगर बारह बजि गेल हेतै तँ खुएबाक दोखी के हएत? मन व्याकुल, अव्यवस्थित वस्त्र, केश छिड़िआएल, कर्मक भारसँ भादबक अन्हरिया जकाँ सुकन्‍याक आँखि‍क आगू अन्हार पसरि गेलै। कतऽ जाउ, केकरा पुछिऐ? गाछो-बिरि‍छ नै अछि जे पूछि लि‍तिऐ। अस्त-व्यस्त अबस्थामे सुकन्या माए लग पहुँचि‍ बाजलि- भानस भेलौ?”
अखने। अखन तँ आठो नै बाजल हएत।
जलखइ भेलौ?”
बच्चा कहलक- एक्के बेर खा कऽ सबेरे जाएब
जहिना केचुआ छोड़ैत समए साँपकेँ कष्‍ट छैक होइत छैक, भले ही नव जीवन किएक ने प्राप्त करत, मुदा दर्द तँ हेबे करैत छै। मीरा जकाँ सुकन्या राजस्थानक तँ नै। मिथिलाक बाला। परिवार आ समाजक लेल अदौसँ समर्पित। बम्बइक गीतक धुन बहुत मधुर होइत अछि तहि‍ना तँ समबेत स्वरमे माए-बहिनक चैताबर, बारहमासा आ समदाउनो तँ मधु सदृश अछि। जहिना मधुमाछी उड़ि-उड़ि कखनो आमक गाछपर चढ़ि सोझे अपन प्रेमी मंजर लग पहुँचि‍ जाइत अछि‍, तँ लगले माटिपर ओंघराएल चमेलीक रसकेँ आमक रसमे महामिश्रण कऽ घोल बनबैत अछि‍, तहिना ने हम आ लोचनो छी।

कोठरीसँ निकलिते लोचनक आँखि सुकन्यापर पड़ल। हजारो रश्मि रूपी तीर दुनूक बीच टकराए लगल। मुदा दू रंग। जहिना लड़ाइक मैदानमे वीर असीम बि‍सबासक संग मरैले नै बलिदान लए बढ़ैत अछि, तहिना लोचनोक हृदैमे होइत। कलीक खिलैत फूल जकाँ मुँह। मुदा सुकन्या मने-मन भगवानसँ आराधना करैत छल जे कुरुक्षेत्रसँ लोचन हँसैत आबए।
उचंगल मन फेर उचङि गेल। ओसारसँ निच्चाँ उतरि‍तहि सुकन्याक हृदए लोचनकेँ पाछूसँ ठेलए लगल। जहिना बच्चा सभ माटिक पहि‍या, कड़चीक गाड़ी बना धनखेतीक माटि उघि-उघि अंगनाक ओलतीमे दऽ खुशी होइत जे अंगना चिक्कन बनत, तहिना आगू-बढ़ैत लोचनकेँ देखि‍ सुकन्याकेँ खुशी भेलै। मुदा खुशी अँटकलै नै। लगले चारि बाजि गेलै। मनमे उठलै- भुखल भायकेँ जलखइ कहाँ खुएलौं। जहिना किसानक खेत दहा गेलासँ, व्यापारमे मंदी आबि गेलासँ, बेरोजगारी बढ़लासँ भीखमंगोकेँ कियो भीख देनिहार नै रहैत छैक तहिना जे धरती करोड़ो पतिब्रता नारी पैदा केलक वहए धरती पतिहत्यारि‍नकेँ जन्‍म दऽ ओकरा जहल कटबैत छैक
साढ़े चारि बजे बेर-बेर देखलाक बाद सुकन्याक नजरि मौकनी हाथीपर चढ़ल गणेशजी जकाँ लोचनकेँ अबैत देखि‍ लोटामे पानि, थारीमे जलखइ परसि आंगनक ओलतीमे ठाढ़ भऽ देखए लगल। अखन धरिक लोचनक सैयो मनोहर रूप मनमे नाचए लगलै। कोठरी आबि लोचन गरमाएल देहक कपड़ा बदलि‍ जलखइ करए लगल। विस्मित भेल सुकन्याक मुँह बाजि उठल- केहेन परीक्षा भेल भाय?”
बहुत बढ़ियाँ। जरूर पास करब।
जरूर पास सुनि सुकन्याक हृदए लोचनकेँ सीताक राम जकाँ गुण देखलक। मनमे आशाक सिहकी उठलैक। संगिये तँ जिनगीक जीत दिअबैत अछि। अपन सुखद जिनगीक मनोहर रूप लोचनमे देखि‍ सुकन्या मोहित होइत बाजलि- औझुका पेपर तँ नीक भेल मुदा आन दिनक जँ अधलाह हुअए, तहन?”
ओइ‍ दिनक मेहनति‍पर निर्भर अछि। एकर जबाब हँ-नइमे नै देल जा सकैत अछि

आइ सातम दिन परीक्षाक अंत भेल। स्कूलसँ आबि पक्षधरकेँ गोड़ लागि लोचन बाजल- बाबा! परीक्षा समाप्त भऽ गेल। गाम जाइ छी।
असिरवाद दइसँ पहिनहि बाबाक मनमे उठलनि, जहन ठाम काज सम्पन्न भऽ गेलैक तहन रोकब उचित नै। सबेर-अबेर भेनौं अपन घर तँ पहुँचि‍ जाएत। बात बदलैत बाबा पुछलखिन- केहेन परीक्षा भेलह?”
मुस्की दैत लोचन बाजल- पास करब, बाबा।
लोचनक मुस्की पक्षधरक हृदैकेँ, सलाइक काठी जकाँ, आनन्दक कोठरीकेँ रगड़ि देलकनि। मन पड़लनि जनकपुरक धनुष यज्ञ। ठहाका मारि कहलखिन- भाग्य ककरो लिखल नै होइ छै, बनाओल जाइ छै बौआ।
आंगनक ओलती लग ठाढ़ सुकन्याक मन मृगा जकाँ व्याकुल भऽ नचैत छलैक। जहिना अपने नाभिक सुगंधसँ मृगा नचैत अछि‍ तहिना सुकन्याक मन परीक्षाक समाचार सुनैले नचैत। मुदा दरबज्जो तँ दोसराक नहिये छी, सोचि आगू बढ़ल।
दुनू गोटे माने सुकन्या आ लोचनकेँ देखि‍ पक्षधर बाबा कहलखिन- आइ तोँ विद्याध्ययनसँ गृहस्‍थाश्रममे प्रवेश कऽ रहल छह। तँए बाबाक लगाओल फुलवारीक सुक्‍खल-मौलाएल डारिकेँ कमठौन कऽ खाद-पानिसँ सेवा करिहह। ओइ‍मे नव-नव कलश चलतै, जइसँ हँसैत-खेलाइत जिनगी चलतह।
मूड़ी गोंतने लोचन आंगन आबि पानि पीब पोथी सरियबैक विचार केलक। पोथीपर पोथी गेटल देखि‍ हाथ काँपए लगलै। सुकन्याक मन कानि उठलै। जहिना कोनो धारक दुनू मोहारपर बैसल यात्रीकेँ होइत अछि तहिना सुकन्याक मनमे दुरीक भाव उठए लगल। लोचन सफलताक जिनगीमे पहुँचि‍ गेल आ हम? आशा-निराशाक क्षितिजपर लसकि गेल सुकन्या।

सुकन्या लोचनकेँ सीमा धरि अरिआतए विदा भेल। गामक सीमा बिला गेलै। ने लोचन सीमा ठेकानि‍ सकल जे घुमबाक आग्रह करितै आ ने सुकन्या बूझि‍ सकल जे अंतिम विदाइ दि‍तैक। अजीब गामोक सीमा अछि। एक्को परिवारकेँ गाम मानल जाइत अछि -जेना भोजमे- तहिना दसोगाम माला बनि गाम बनि जाइत (दस गम्मा जाति) अछि। अरिआतने-अरिआतने सुकन्या लोचनक घर धरि पहुँचि‍ गेलि‍।

पनरह दिन बीतैत-बीतैत अनेको मौगिआही कचहरीमे फैसला लिखा गेल जे सुकन्या पक्षधरक घरसँ निकलि अजाति भऽ गेलि।कचहरीक फैसला सुनि सुकन्याक माए-बाप दुनू गोटेक करेज दड़कए लगलै। कनैत मन बाजए लगलै, मनो ने अछि जे कहियासँ दुनू परिवारमे दोस्ती अछि। सभ तुर हमहूँ जाइ छी आ ओहो सभ आबि जाइ छथि। मुदा आइ की देखि‍ रहल छी। जा धरि पिता जीबैत छथि ताधरि परिवारक हमसभ के? समाजक लोकक जबाब ओ देथिन। पिताकेँ गामक लोकक बात कहलखिन। बेटा-पुतोहुक बात सुनि गरजि कऽ पक्षधर कहलखिन- जइ समाजमे मनुक्खक खरीद-बिकरी गाए-महींस, खेत-पथार जकाँ होइए कि ओइ‍ समाजकेँ पंच तत्वक बनल मनुख कहल जा सकैत अछि? जँ से नै तँ हमर कियो मालिक नै छी। कियो ओंगरी देखाओत तँ ओकर ओंगरी काटि लेबै। आइये दोस्तक ऐठाम जाइ छी आ देखि‍-सुनि अबै छी।

जहन भाँग पानिमे अलगि गेल तहन पुतोहु बुझलनि जे भाँग पि‍सा गेल। पोछि-पाछि सिलौटकेँ धोय बाटीमे रखलनि। दरबज्जापर बैसल पक्षधरक मनमे उठलनि जे नअो बाजि गेल, अखन धरि किअए ने कियो आएल। फेर मन उनटि कऽ भाँगपर गेलनि। भाँगपर नजरि पहुँचि‍ते मनमे उठलनि जे बिनु भाँग पीनहि तँ ने सभ निसा गेल अछि। तहन भाँगक जरूरते की? किछु दिन पहिने धरि सभ गाममे एकदिना फगुआ होइत छलै मुदा आब तीन दिना भऽ गेल। ओना तीन रंगक पतरो आबि गेल अछि। मुदा अपना गाममे तँ एकदिने अखनो धरि होइत आएल अछि आ जा धरि जीब ताधरि होइत रहत।

कीर्तन मंडलीक संग-संग आनो-आन पक्षधर ऐठाम पहुँचलाह। अनगिनित थोपरी बजौनिहार आ अनगिनत बैयाक समारोह। चीनीमे घोड़ल भाँग। सभसँ उमरदार रहितो पक्षधर भाँग परसिनिहारकेँ कहलखिन- पहिने नवतुरिया सभकेँ पिआबह। वएह सभ ने बेसी काल गेबो करतह आ नचबो करतह।मुदा एक्कोटा नवतुरिया बाबाक बात नै सुनलक। सबहक यएह कहब रहै जे बाबा गाममे सभसँ श्रेष्ठ छथि, अनुभवी सेहो छथि। तँए जँ ओ गोबरखत्तोमे खसताह तैयो हम सभ नै छोड़बनि। नवतुरियाक बात सुनि पक्षधरक मनमे उठलनि अखन आंगनमे कहाँ छी दरबज्जापर छी। दस गोटेक बीच छी। तहन के छोट के पैघ? सभ तँ ब्रह्मेक अंश छी। तहूमे एते टुकड़ी एकठाम एकत्रित छी। दू गिलास भाँग पीब पक्षधर उठि कऽ ठाढ़ होइत फगुआ शुरू केलनि- सदा आनन्द रहे दुआरे, मोहन खेले होरी हो।ढोलक, झालि, कठझालि, हरिमुनिया, मजीरा, खजुरी, डम्फा, गुमगुमाक संग सइयो जोड़ थोपड़ीक महामिश्रणक धुनक संग कोइली सन मधुर आबाजसँ लऽ कऽ टिटहीक टाँहि धरिक बोल अकासमे पसरि गेल। ओना जमीनो खाली नै रहल। इंगलिश डान्ससँ लऽ कऽ जानी धरिक नाच आ मेल-फीमेलक जोगीड़ा जोर पकड़नहि‍ रहए। बजनियो सभ अपन-अपन बाजो बजबैत आ कुदि-कुदि नचबो करैत। गोसाँइ डुमए बेर फेर पक्षधर भाँग बनबौलनि। अपन शक्तिकेँ कमजोर होइत देखि‍ दोबरा-दोबरा सभ पीलक। उत्साहो दोबरेलै। पुरनिमाक राति। हँसैत चान। फागुन मास रहने अकासमे कतौ बादल नै। मुदा तरेगन मलिन भऽ अपन जान लऽ झखैत। किएक ने तरेगन अपना जान लऽ झखत? आखिर वसन्त-वसन्तीक समागमक दिन छलैक की ने।
गामक दछि‍‍नबरि‍या सीमापर समन जरए लगल। समनक धधड़ाकेँ पक्षधर उत्तरसँ दछि‍‍न मुँहे कुदलाह। बाबाकेँ देखि‍ते सभ एका-एकी कूदए लगल।
धधड़ा मिझा गेल। मुदा जरनाक आगि चकचक करिते रहल। समदाउन गबैत सभ घरमुँहा भेलाह।
ःःःःःःःःःः

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