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Sunday, April 8, 2012

ऑपरेशन :: जगदीश मण्‍डल


ऑपरेशन

पत्नीक बढ़ैत बेमारी देखि‍ चेतानन्‍द डॉक्‍टर ऐठाम जेबाले रुपैयाक ओरि‍यान करए लगलाह। अपना हाथमे तीनि‍येटा पचसटकही। कम-सँ-कम तँ पाँचो हजार चाही। जहि‍ना गारामे उतरी नेने लोक घराड़ी लि‍खैले रजि‍ष्‍ट्री  आॅफि‍स जाइत तहि‍ना चेतानन्‍द चौमासपर रुपैया उठा पत्नीकेँ संग नेने डॉक्‍टर ऐ‍ठाम पहुँचलाह। ओना पत्नी-सुनि‍याकेँ गैस्‍टि‍कक शि‍काइत चारि‍-पाँच बर्खसँ रहनि‍। मुदा आनो सभ जकाँ एकटा-दूटा गोटी खा-खा रोगकेँ दबने रहथि‍। जाँच-पड़ताल केलापर डाॅक्‍टर बूझि‍ गेलखि‍न जे सात दि‍नक अभ्‍य‍न्‍तरे दुनि‍याँ छोड़ि‍ देतीह। मुदा जखन‍ कि‍यो मृत्‍यूक बाट पकड़ैत अछि तखने डाॅक्‍टर ऐ‍ठाम जाइत अछि। बोल-भरोस दैत चेतानन्‍दकेँ डाॅक्‍टर कहलखि‍न- हि‍नका आँतमे पत्थर गोला भऽ गेल छन्हि, आॅपरेशन करए पड़त। मुदा शरीर तते अब्‍बल भऽ गेल छन्हि‍ जे आॅपरेशन करैसँ पहि‍ने पाँच-छह दि‍न बा खुआबए पड़त। देहमे खून बनतनि‍ तखन‍ आॅपरेशन अासान हएत।‍ कहि‍ बाक पुरजी बना देलखि‍न। भाड़ाक कोठलीमे पहुँचि‍ पत्नीकेँ चौकीपर सुता, दुनू बच्‍चा मांगैन आ बि‍लटीकेँ पत्नीक लगमे बैसाए चेतानन्‍द बाजार वि‍दा भेला। पहि‍ने बाक दोकानपर पहुँचि‍ बा कीनि‍ फूट-पाथेक दोकानमे रोटी-तरकारी कीनि‍ डेरा एला। डेरा आबि‍ समान रखि‍ कलपर सँ पानि‍ अनलनि‍। बा खुआ दुनू बच्‍चाक संग अपनो खाए लगलाह। खेबाक मन नै होइन। कंठसँ नि‍च्‍चाँ धँसबे ने करनि‍। मुदा पानि‍ पीब‍-पीब‍ खाए लगलाह। मन कहनि‍ जँ अाधो पेट खाएब नै तँ दि‍न-राति‍ दौग-बरहा केना कएल हएत? जी-जाँति‍ तरकारीक संग तीनटा रोटी खाए दू गि‍लास पानि‍ पीलनि‍। पानि‍ पीब‍ चेतानन्‍द बि‍लटीकेँ पानि‍ पि‍आ पानि‍क हाथे मुँह पोछि‍ देलखि‍न। मांगैन अपने हाथे मुँह धोय उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। थारी उठा अचौनामे धोय कोनमे रखलनि‍। पड़ल-पड़ल सुनि‍या सभ कि‍छु देखैत छेलीह। पति‍क मनमे मन सटि‍ थारी धोइत अपन रूप देखलनि‍। जहि‍ना एनामे अपन चेहरा लोक देखैत अछि‍ तहि‍ना सुनि‍या देखए लगलीह। दुनू भाए-बहिन‍केँ पाँजर लगा सुतबैत सुि‍नया पति‍केँ कहलनि‍- अहूँक देह-हाथ बथैत हएत, पड़ि‍ रहू।‍
बात बदलैत चेतानन्‍द बजलाह- मन केहेन बूझि‍ पड़ैए।‍
अखन की कहब।‍
बि‍नु बात दोहरौनहि‍ चेतानन्‍द जाजि‍म बि‍छा नि‍च्‍चेमे पड़ि‍ रहलाह। बि‍लटीक देहपर हाथ सहलबैत सुनि‍या कहलखि‍न- डाॅक्‍टरे साहेब जकाँ बुच्‍चीकेँ डाँक्‍टरी पढ़ाएब। जखन‍ बुच्‍ची डाॅक्‍टरी पढ़ि‍ लेत तखन‍ अहि‍ना कुरसी-टेबुल लगा कऽ काज करत। कि‍ ने बुच्‍ची?
नै। खजुरि‍या दीदी जहाइन हमरो बि‍आह कऽ दे?” -तीन बर्खक बि‍लटी बाजलि‍।
बेटीक मुँहे बि‍आहक बात सुि‍न सुनि‍या हरा गेलि‍। मनमे उठलनि‍ घुरि‍ कऽ घर जाएब तहन ने। बेमारी छुटत की‍ नै, से के कहलक। दि‍न-राति‍ तँ नि‍च्‍चे मुँहे भेल जाइ छी। खेनाइयो-पीनाइ छुटले जाइए। वि‍चार बदललनि- जँ मरि‍ जाएब तँ बेटीक बि‍आह केना हएत। की‍ बि‍लटी बि‍लैटि‍ये जाएत? जेकरा माए-बाप रहै छै तेकरो बि‍आह हएब भारी भऽ गेल छै। ई तँ सहजहि‍ मइटुग्‍गर भऽ जाएत। मइटुग्‍गर बेटीकेँ कि‍यो अपना घर लैयो जाइले तैयार हएत आकि‍‍ नै‍। हे भगवान, एहेन युगमे बेटी किअ‍ए देलह? जँ देबे केलह तँ बेटीक कोन दोख भेल जे मइटुग्‍गर भऽ दुनि‍याँक नजरि‍मे खसल रहत। यएह ने भानस-भात करैक लूरि‍ नै हेतै। की‍ मनुक्‍ख माटि‍ सदृश छी जे एक बेर‍ आगि‍मे पकलापर अपन स्‍वरूप बदलि‍ दैत अछि‍? मनुख तँ ओहन होइत अछि‍ जे अनाड़ीसँ जीबनी, भोगीसँ जोगी आ डाकूसँ साधु बनि‍ जाइत अछि। की वि‍धाता हमरा कपारमे यएह लि‍खलनि‍ जे संगीक संग छोड़ि‍ असकरे बोनमे बौआइ लए छोड़ि‍ दियनि‍। जँ सएह लि‍खैक छलनि‍ तँ एक उमरि‍या देखि‍‍ किअ‍ए जोड़ा लगौलनि‍? तइ बीच आँतमे दर्द उठलनि‍। चि‍चि‍आ कऽ बजलीह- हौ बाप, आब नै बँचब।‍
     
खलि‍ये सि‍मटीपर जाजि‍म बि‍छा, कपड़ाक मोटरी मुड़ीतर रखि उतान करे बन्न दुनू आँखि‍केँ वामा बाहि‍सँ झाँपि‍ चेतानन्‍द पड़ि‍ रहल। मनमे उठलनि‍। अखन सीमाक सि‍पाही जकाँ ड्यूटीमे छी। ड्यूटीमे कहाँ होइ छै? अारामो तँ कत्ते रंगक होइए। ओहनो अराम होइए जे नि‍न्नसँ प्रेम करैए आ एहनो होइए जे अपन दुख नि‍वारणक बाट जोहैए। फेर भेलनि भरि‍सक पत्नी नै बँचतीह। दुनू गोटेक बीचक अंति‍म समए गुजरि‍ रहल अछि। अंति‍म समैपर नजरि‍ पड़ि‍ते भेलनि‍ जे लड़का-लड़कीक माने वर-कन्‍याक बि‍आह स्‍थापि‍त करैमे उमेरक मानदंड कि‍एक बनाओल जाइत? जँ सन्‍तानेक लेल होइत तँ उम्रक लगीचक कोन प्रयोजन? पनरह बर्खसँ पचास बर्खक सुवि‍धा अछि। उम्रक बराबरी तँ एे लेल मानल गेल अछि कि‍ ने जे दीर्घ जि‍नगी संग-संग चलैत रहए। तहन एना किअ‍ए भेल? वि‍द्यार्थी जीवनमे सपना देखैत छलौं जे मातृभूमि‍क सेवा करब। तँए नोकरी नै केलौं। नोकरी कतऽ करि‍ताैं? जइठाम जन्‍म भेल अछि ओइ‍ठाम ने शि‍क्षण संस्‍थान अछि, ने कल-कारखाना, ने सरकारी कार्यालय आ ने अस्‍पताल। की ‍ठाम एे सबहक जरूरति‍ नै छै? की हमसभ शपथ खेने छी जे अपना माटि‍-पानि‍ परक कारखानाक वस्‍तुक उपयोग नै करब, आकि‍ शासनमे सहयोग नै करब, आकि‍ शि‍क्षा-स्‍वास्‍थक लाभ नै लेब। मुदा अखन धरि‍ ‍सँ आगू बुझैक ने अवसर भेटल आ ने करैक जमीन। देश-सेवा की? यएह ने जे अपनो देशकेँ एक्कैसम शताब्‍दीक दुनि‍याँक कतारमे ठाढ़ करी। मुदा कतार तँ एकसँ लऽ कऽ सए तकक होइत अछितइमे कत्ते? एक दि‍स‍ दुनि‍याँक गनल-चुनल धनवान तँ दोसर दि‍स सड़कपर भीख मंगनि‍हारक संख्‍या ओते अछि जते कताक देशक जनसंख्‍या नै छै। तइ काल पत्नी मन पड़लनि‍। जहि‍ना अन्‍हार राति‍मे माएक पाँजर लग सुतल बच्‍चाकेँ नि‍न्न टूटि‍ते उठि‍ कऽ माएक सुतल मुँह देखि‍‍ पुन: गर लगा कऽ सुइत रहैत तहि‍ना चेतानन्द पत्नीक मूनल आँखि‍ देखि‍‍ पुन: ओछाइनपर आबि‍ पड़ि‍ रहलाह।
     
ओछाइनपर पड़ि‍ते चेतानन्‍दकेँ मन पड़लनि‍ कओलेजक ओ दि‍न जइ दि‍न सरस्‍वती पूजा स्‍थलपर सुनि‍यासँ पहि‍ल भेँट भेलनि‍। मुदा लगले मनमे आबि‍ गेलनि‍ कओलेजक डि‍ग्री आ पी.एच.डीक रजि‍ष्‍ट्रेशन। पाँच बर्ख भऽ गेल मुदा एक्को अक्षर अखन धरि‍ लि‍खि‍ नै पेलौं। लि‍खि‍यो केना पबि‍तौं? अखन धरि‍ तँ यएह ने बूझि‍ पेलौं जे देश सेवा की? मुदा आब तँ सहजहि‍ पत्नीक भार कपारपर पड़ने बच्‍चाक तँ माइयो हुअए पड़त। दोबर भार पड़त। बच्‍चाकेँ पढ़ाएब आकि‍ अपने पढ़ब। कओलेज छोड़लाक बादसँ अखन धरि‍ गृहसूत्रो धुरझाड़ पढ़ल आ ने सीखल‍ भेल। धर्मसूत्र तँ पछुआएले अछि। खाली मंगलाचरण रटि‍ नेने नै ने हएत। वि‍धातोक अजीब खेल छन्हि। जहि‍ना गणेशजी मुसो आ बाघोकेँ नाङरि‍ पकड़ि‍ लड़बै छथि‍ तहि‍ना वि‍धातो रंग-बि‍रंगक जगहपर रंग-बि‍रंगक बानरक नाच, मदारी जकाँ ठाढ़ केने छथि‍। एक दि‍स हार-पाँजर टुटल मनुखकेँ अपन देहक सोनि‍त दए कि‍यो देशसेवा करैत तँ दोसर दि‍स एक लबनी ताड़ी पि‍आ देशभक्‍त बनैत। कि‍यो श्‍मशानमे अपन बेटाक लहास जरबैत जि‍नगी देखैत तँ दोसर सजल-धजल वि‍शाल भवनमे बैस मस्‍तीक जि‍नगीमे पलड़ैत अछि। तइ बीच सुनि‍याक बाजब- हौ बाप, आब नै बँचव।‍ कानमे पड़लनि‍। कानमे पड़ि‍ते हृदए चहकि‍ गेलनि‍। मनकेँ थीर करैत आगूक बात सुनैक लेल कान पाथि‍ देलनि‍। मुदा आगूक बात नै सुनि‍ मनमे उठलनि‍, जहि‍ना मि‍झेवा काल डिबि‍‍या भुक दऽ जोरसँ बड़ि‍ जाइत अछि‍, तहि‍ना तँ ने भऽ गेल‍। मन गुन-धुनमे पड़ि‍ गेलनि‍। एक मन कहनि‍ जे जँ प्राण छुटि‍ गेल होन्‍हि‍‍ तखन‍ की करब? दोसर मन कहनि‍ जे प्राण नै छुटल हेतनि‍ तखन‍ की करब? ऐठाम तँ चारि‍ये गोरे छी। तहूमे दूटा बच्‍चे अछि। जँ एकोरत्ती आँखि‍सँ नोर बहत तँ बच्‍चा सभ अनेरे चि‍चि‍या लगत। गाममे तँ नै छी तँए जे समाजक लोक आबि‍ कऽ मदति‍ करत। मुदा ई जानि‍ लेब तँ जरूरी अछि कि‍ ने जे प्राण छुटि‍ गेलनि‍ आकि‍ बँचल छन्हि। ओछाइनपर सँ चेतानन्‍द पुछलखि‍न- एना किअ‍ए बजलौं?
पति‍क बात सुि‍न सुनि‍या उत्तर देलकनि‍- दर्दक धक्का लगि‍ गेल छलए मुदा अखन असथि‍र भऽ गेल।‍
     
साँझक आठ बजे डॉक्‍टर साहेब क्‍लि‍नि‍कसँ आबि‍ सोझे वाथरूम वि‍दा भेलाह। साँझू पहर टहलए नै जाइत। स्‍पष्‍ट वि‍चार रहनि‍ जे टहलब तँ हुनकर छियनि‍ जे अपना पएरे चलैत छथि‍। गाड़ी-सवारीमे बैस टहलब मन बहलाएब छी। जा धरि‍ वाथ रूमसँ नि‍कललाह ताधरि‍ पत्नी टेबुल सजा, चौकीदार जकाँ केवाड़क परदा लग ठाढ़ छेलीह। कुरसीपर बैस‍ डॉक्‍टर साहेब रस-पानि‍ कए आराम कुरसीपर बैस‍ गेलाह। मन फुहराम हुअए लगलनि‍। टेबुल सम्‍हारि‍ पत्नी चलि‍ गेलखि‍न। भरि‍ दि‍नक हि‍साब जोड़ए लगलाह। नापल रोगी, नापल फीस, तँए जोड़ैमे देरी नै लगलनि‍। आमदनीक हि‍साब जोड़ि‍ काजपर नजरि‍ दौड़ौलनि‍। काजक ऊपर होइत मन छि‍छलैत सुनि‍यापर आबि‍ अँटकि‍ गेलनि‍। मुदा लगले काज हरा गेलनि‍। मन उड़ि‍ कऽ अपनेपर चलि‍ एलनि‍। अपनापर अबि‍ते खुशीसँ मन ठहाका मारलकनि‍। अँइ, कहू जे आठ घंटा ड्यूटीक नि‍अम अछि, तइठाम बारह घंटा खटै छी तहन किअ‍ए लोक बजैए जे फल्‍लाँ डाॅक्‍टर दरमहे उठबैटा लए अस्‍पताल जाइ छथि‍। यएह ने जे खानगी रोगी देखै छी। जा धरि‍ अस्‍पतालक समुचि‍त बेवस्‍था नै हएत ताधरि‍ डाॅक्‍टरे की‍ करताह? जइठाम अखन धरि‍ रोगोक गि‍नती (पहचान) सरि‍या कऽ नै भेल अछि तइठाम रोगीक ि‍हसाब जोड़ब धड़-फड़मे बाजब हएत। फेर मन घुरि‍ सुनि‍यापर पहुँचि‍ गेलनि‍। आइ धरि‍ एक्कोटा रोगी इलाजक बीच मरल नै मुदा.....। आखि‍र कमी की अछि? जे दोख लागत? मन नचलनि‍। गंजि‍ये-लूंगी पहि‍रने चेतानन्‍दक कोठरी वि‍दा भेला।
     
सोगमे डुबल चेतानन्‍दकेँ पुछलखि‍न- कहाली जगले छथि‍ आकि‍ सुतल?
डॉक्‍टर साहेबक बात सुि‍न देह-हाथ समटि‍ सुि‍नया बाजलि‍- जगले छी डॉक्‍टर साहेब।‍
सुनि‍येक चौकीपर बैस‍ डाॅक्‍टर साहेब पुछलखि‍न- कत्ते दि‍नसँ दुि‍खत छी?
ठीक-ठीक तँ नै कहि‍ सकै छी मुदा पान-छअ बर्ख से पेटमे गैस बनए लगल। गामेमे बहुतो गोटेकेँ ई रोग छन्हि। वएह सभ बा बता देलनि‍। एकटा-दूटा गोटी सभ दि‍न खाइ छी, नीके रहै छी।
नजरि‍ दौगबैत डाॅक्‍टर पुछलखि‍न- उपासो करै छी?
केना नै करब! अहीपर तँ आंग-समांग, बाड़ी-फुलवाड़ी लहराइए।‍
महीनामे कतेक दि‍न सहै छी?
सात दि‍नमे रवि‍, मंगलवारी, शुक्रवारी तँ करि‍ते छी। एकर बादो पावनि‍क उपास सेहो करि‍ते छी!‍
देहक काट-खोंट करए पड़त तखन‍ आॅपरेशन हएत।‍
दोसर उपाए नै छै। अपरेशनक कोनो ठेकान नै छै, बाल-बच्‍चा बि‍लटि‍ जाएत।‍
हँ, उपाए छै। बा लि‍खि‍ दइ छी। साँझ-परात खाइत रहलासँ नीके रहब।‍
बड़ बढ़ि‍याँ।‍
     
चौकीपर सँ डॉक्‍टर उठि‍ चेतानन्‍दकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ कोठरीसँ नि‍कलि‍ ओसारपर कहलखि‍न- आँतमे एहेन गोला बनि‍ गेल छन्हि जे बि‍ना कटने नै हेतनि‍। तहूमे रोग बढ़ैत-बढ़ैत एते जुआ गेलनि‍ जे देहक कोनो लज्‍जति‍ए नै रहलनि‍। अंग-अंग बैस‍ गेलनि‍। तीनसँ चारि‍ दि‍नक जि‍नगी बँचल छन्हि। नीक हएत अहाँ भोरे गाम चलि‍ जाउ। ऐठाम पहपैटमे पड़ि‍ जाएब। बाजारमे सभ सुवि‍धा रहि‍तो कि‍यो ककरो बेर‍पर ठाढ़ नै होइ छै।‍ कहि‍ डॉक्‍टर साहेब घरमुँहा भेलाह। कोठरी आबि‍ चेतानन्‍द पत्नीकेँ कहलखि‍न- डॉक्‍टर साहेब छुट्टी दऽ देलनि‍।‍
बड़ बढ़ि‍याँ। भोरे वि‍दा भऽ जाएब।‍
     
चेतानन्‍दक नजरि‍ सुनि‍याक परोछ भेलापर गेलनि‍। मनमे उठलनि‍ माएक मृत्‍यू बेटा-बेटीकेँ कलंकक मोटरी कपारपर देने जाइ छै। जँ से नै तँ मइटुग्‍गरकेँ ओछ-आँखि‍ये किअ‍ए देखल जाइए। पत्नीक मृत्‍यूपरान्‍त जँ परि‍वार ठाढ़‍ करैले दोसर बि‍आह करब तँ आरो पहपटि‍ बढ़त। कि‍यो एहेन कहनि‍हार नै हएत जे भूखल बच्‍चाकेँ खाइले कहि‍ बुझत जे बच्‍चा भूखल अछि आकि‍ खेने। मुदा ई जरूर कहतै जे सतमाए खाइले दइ छथुन की‍ नै। रंग-बि‍रंगक अबलट जोड़ब शुरू कए देत।
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