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Saturday, April 7, 2012

मर्यादाक भंग- हरिमोहन झा


मर्यादाक भंग

आई पंडित जी क ऽ आँगन में हुली माल छैन्ह “कारण जे एकटा पाहून आबी गेल छाथिन सेहो विशिष्ठ लोक “दुलारपुरक चौधरी जी ।हुनक सेवासत्कार मे कोनो त्रुटी नहि होयबाक चाही ।परन्तु समस्या ई जे पंडित जी के कचहरी काज सँ एखन लहेरियासराय जेबाक छैन्ह ।अब कि हो ।पंडिताइन कहाल्खिंह आर ओरियन त हमरा लोकनि सभटा कय देबैंह ।एकटा भाटा अदौडी भ ऽ जेतैंह “चार पर सजिमान छाहिये ।भटवर हेतैंह ।तिलकोरक पात तड़ी देबैंह “तखन बड़बड़ी पापड़ “तिलोरी ।परन्तु भारी बात ई जे भोजनक हेतु बजबय के जय तैंह । पंडित जी किछु सोची क ऽ बजलाह “जखन सबटा पीढ़ी पानी ठीक भाय जाय “तखन बचनु के कहबैक “बजा अन्तैंह ।केहों बचनु !पाहून के बजा अनबहून से हेतो की नहि ?कहियों चालू खायक लेल ।तखन हम तोरा लेल बाज़ार सँ लड्डू नेने एबो ।ई कही पंडित जी दालान पर गेलाह ।चौधरी जी के कहाल्खिंह “जे कहैत संकोच होयत अछि परन्तु ई संयोग जे आइये एकटा मामिला क ऽ तारीख छैक से हमरा दस बजे कचहरी पहुँचने जरूरी अछि ।अपने के एते एस्कर छोडि क ऽ जायब त हमरा अनर्गल लागैत अछि परन्तु कयल की जय ।हम शांझ धरी वापस अबी जायब ।

चौधरी कहलखिन्ह नहि नहि अपने अवश्य गेल जाओ “ई त हमर अपन घर थीक “आर धिया पुता अछिए ।

आब आंगनक हाल सुनु पंडिताइन चारु  दियादनी मिली    भानस भात मे जुटी गेलीह ।ओसारा पर छनमन होमय लागल आउर थोडबे काळ मे बड़ बड़ी ओ तारुअक पथार लागी गेल चारू जनि तेहन अप्स्यात रहैथ जे किनको अपन देहक होश नहि रहें ।सब घमे पसीने तर “मुहं धोय्बक अबकाश नहि “परन्तु घरक पुतोहू करनपुर वाली कनिया अविचलित भाव स स्नान कऽ “अपन केस थकड़ी रहल छलीह ।ई देखि सासु लोकनि आपना मे कनखी मटकी चलबे लगलीह ।आशय ई जे हमरा लोकनी त फाटि रहल छी आउर हिनका लेल धन सन। परन्तु कनिया क स्वाभाव सबके जानल छलैन्ह ते किनको जोर स बाजबाक साह्स नहि भेलेंह ।

बचनु कतो स खेलैत धुपायत पहुचल आउर ओंघयल पाहून के उठाबय लागल “

कियो पाहून सुतले रहब ?खैक लेल नहि चलब?चौधरी जी धरफरा क आंखि मिरैत उठलाह ।की भाय गेलैक ?बेस चलु ।चौधरी जीक पैर खडाम खोजे लग्लैंह परन्तु नहि भेटल ।चौधरी जी खाली पैर बच्नुक संग बिदा भय गेलाह ।ओम्हर आँगन मे ककरो खबरी जे बचनु पाहून के बिझो करेने आबी रहल छैथ ।फलस्वरूप तमाशा लगुई गेल ।

ओसारा पर नाबहाथ वाली पलता मारि सज्मानिक चका कटैत छलीह ।एकाएक देखैत छैथ जे बीच आंगन मे पाहून ठाढ़ भेल छथि “ई देखतही ओ पडैलिः भारी भरकम शरीर तलमलैत दोड्लीह से बिस्हत वाली स टकडा गेलीह ।दुनु गोटक नाक थौआ भ ऽ गेलैंह “बिस्हत वाली ठाडी भऽ क ऽ अदौरी भाटा क झोर लाडैत छलीह ।ओहो करछ फेकी आँचर सम्हारैत कनिया घर मे जाक नुकैलिः पंडिताइन आँगन मे पीढ़ी पर बैसी नाहित छलीह” एक्लोटा पैन देह पर देने रहैथ आउर दोसर लोटा ढारैत ताबत ई काण्ड उपस्थित भय गेल “ओ जहिना भिजल रहैथ लत्ते पत्ते पचुअड दिश पडैलिः

एके क्षण मे तेहन भगदड़ मचि गेल “जेना बाघ आबी गेल हो ।चौधरी जी बीच आँगन मे चुप चाप ठाढ़ ।ओ वापिस दलान पर चली जैतथि “परन्तु अहि काल मे एक आउर घटना भय गेल “आँगन स आउर स्त्रिगन पड़ा गेलीह लेकिन करनपुर वाली कनिया “दही चुड़ा जलपान करैत छेलिः से करिते रहलीह ।पछुआर स सासु इशारा देमय लगाल्खिंह “कोनिया घर स दुनु दियादनी चुटकी बजबय लगाल्खिंह ।परन्तु करनपुर वाली किनको दिस कर्न्पात नहि केलैन्ह ।ओ निर्विकार भाव स पाहून के संबोधित करैत बजलीह ।चौधरी जी “ओना थक मकायल किये छी “आऊ !चौधरी जी स्तंभित रही गेलाह ।मैथिलक आँगन मे अठारह वर्षक नवयोवना पुतहु मे इतबा साह्स भ ऽ सकैत छैक “ई कहियो कल्पना मे नहि आयल छलैन्ह “ई जीवन मे प्रथम बेर एहन दृश्य छल ।युवती अपन जलखई समाप्त करैत कहलखिन्ह ।अहांके बचनु किछु पहिने बजा अनलक ।बेस कोनो हर्ज नहि “अहाँ ताबत बैसू ।हम पांच मिनट मे सबटा ठीक कय दैत छी ।ई कही युवती हुनका एक छोट चौकी पर बैसे कही “हाथ मुह धोबय हेतु एक लोटा जल देलखिन्ह “आउर आसन लगा कय थारी मे भात साठे लगलीह ।चौधरी जी लाजे कठुयल धड निचा केने बैसल रहलाह एहेन अभूत पूर्व दृश्य देखि स्त्रिगन दात तर जीव काटे लगलीह ।सब सासू तामसे भुत भय गेलीह ।ओ बारंबार पछुआर मे खाखासय लगलीह ।परन्तु पंडिताइन खखासिते रही गेलीह “एम्हर करनपुर वाली बेस सुभ्यस्त भय चौधरी जी के भोजन कराबय लगाल्खिंह।पछुअड मे पंडिताइन छाती पिटी बाजे लगलीह" बाप रे  बाप !ई कलियुगी जग    जीती लेलक ।अहि घरक आई नाकि कटी गेल ।कोनिया घर स दोनु दियादनी फुसफुसाय लगलीह "कुलबोरनी नाश कऽदेलक ।हमरा सब भारी थारी भात जांतिक परिस्तों ।ई छूछी पाव भरि चावरक भात आगा मे देल्कैंह अछि ।देखतुन जे तरकारी केना चीखी क देल्कैंह अछि ।देखतुन सबटा तर्कारू एकेटा थारी मे परसि देल्कैंह ।ताबत करनपुर वाली कड़ कड़ा क दालि भात पर द ऽ देलखिन्ह ।

ओम्हर पंडिताइन पुतोहू के गारी देबय लगल्खिंह "जो गे धोंछी “केशो झापि लेबे से नहि होयत छौक ।करनपुर वाली पंद्रह  मिनट मे पाहून के कहा पिया क बिदा क देलखिन्ह ।

पाहून के जैत देरी चारू सासु पुतोहू पर छुटली ।परन्तु करनपुर वाली अपन गलती माने लेल तैयार नहि भेल्खिंह आवेश मे सासु पीढ़ी सँ कपार फोड़ी लेलैंह ।दियादनी सभ हरैद चुन लगाबय लगल्खिंह ।

पंडित जी संध्याकाल गाम अयलाह ।ता पाहून जलाशय दिस  गेल रहैथ ।आँगन मे सब सुन्न ।सोर क पूछल खिन्ह की बाट छै?पंडिताइन के पहिने कंठे नहि फूटें “ आँखिक नोर पोछैत कहलखिन्ह "कर्मक बाट अछि “आई घरक मर्यादा नष्ट भय गेल ।पंडिताइन आद्योपांत कही सुनैलेंह ।पंडित जी किछु काल गुम रहलाह “फेर बजलाह अहि बताही के नैहर पठाऊ।नहि त समाज मे रहब कठिन भ जायत ।ताबत पाहून दरबाजा पर आबी गेलाह ।पंडित जी सकुचैयत “चौधरी जी हरा परोक्ष मे बड़ कष्ट भेल ।चौधरी जी बजलाह कष्ट किएक ?

पंडित जी अप्रतिभ होयत बजलाह "हमरा घर मे एकटा पुतोहू छित से किछु झानकाही छित “किछु अनट बिनत भेल हो त ओही पर प्रकाश नहि कयल जाय ।चौधरी जी बजलाह हमरा त अहि घर मे सबस बेसी सम्मत ओ बूझेलाथ”बुझी पडल जे अपन कन्या होथि ।यैह चाही ।आई हमरो आंखि खुजी गेल ।यदि प्रतेयक घर मे एहने तेजस्विनी बेटी पुतोहू बहराथि त ऽ फेर मिथिला के शिथिल के कही सकैत अछि ।पंडित जी अवाक् रही गेलाह ।।

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