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Saturday, April 7, 2012

परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा :: समाजमे सभकेँ छगुन्‍ता लगैत...



समाजमे सभकेँ छगुन्‍ता लगैत जे होइत भि‍नसर सौंसे गाम हड़-हड़-खट-खट शुरू भऽ जाइए मुदा कमलाकाकाक परि‍वारमे एको दि‍न नै सुनै छी, तेकर की कारण? जहि‍ना रंग-वि‍रंगक लोक समाजमे रहैए तहि‍ना ने रंग-वि‍रंगक रोगो-बि‍आधि‍ आ क्रि‍यो-कलाप रहैए। मुदा लंकाक वि‍भीषण जकाँ यमुनाकाकी आ कमलाकाकाक परि‍वार केहेन हलसैत-फुलसैत, कलसैत अछि‍!
                                                                      
बहुत आँट-पेटक परि‍वार कमलाकक्काक नै। आने परि‍वार जकाँ अपन दसे कट्ठा जमीन। मुदा पनरह कट्ठा बटाइयो करै छथि‍। जइसँ सहि‍-मरि‍ कहुना साल लगि‍ जाइ छन्‍हि‍। ओना आन परि‍वार जकाँ धीया-पुता झमटगर नै, ि‍सर्फ चारि‍ये गोटेक परि‍वार। दू परानी अपने आ बेटा-पुतोहु। डोरामे गाँथि‍ जहि‍ना फूलक माला बनैत तहि‍ना परि‍वारोक डोरा सक्कत। अपन-अपन सीमाक बीच चारू गोटे कोल्हुक बड़द जकाँ चौबीसो घंटा चलैत रहैत। ओना गामक अाधासँ बेसी परि‍वारक समांग गाम-सँ-बाहर धरि‍ रहि‍ परि‍वार चलबैत, मुदा कमलाकाक्काक परि‍वारमे के बाहर जाएत तेकर अॅटाबेशे ने होइत। काकाक मनमे रहनि‍ जे एक्केटा समांग अछि‍ जँ ओ बाहरे चलि‍ जाएत तँ बेर-कुबेरमे एक लोटा पानि‍यो के देत? मौका-कुमौकामे कोटो-कचहरी के करत? ततबे नै, जँ कहीं कि‍सकारक समए बेमारे भऽ जाएब तँ खेती-पथारी के सम्‍हारत? जनीजाति‍ तँ जनीजाति‍ये होइत, खेत केना जोताएत? जँ खेते नै जोताएत तँ खेती केना हएत? जँ खेति‍ये नै हएत तँ परि‍वार केना चलत? अपनो ि‍क आब ओ समरथाइ रहल जे बलधकेलो कि‍छु कऽ लेब।

जहि‍ना कमलाकाकाक मनमे अपन काजक ओझरी लगनि‍ तहि‍ना यमुनोकाकीक मन ओझराएल। मनमे उठनि‍ जे मुँह-झाड़ि‍ पति‍केँ कि‍छु तँ नहि‍ये कहि‍ सकै छि‍यनि‍ मुदा पुतोहु लगा बेटाकेँ तँ कहि‍ सकै छी। जखने बेटाकेँ कहबै तखने ओहो ने सुनताह। कोनो की कानमे ठेकी थोड़े रहतनि‍।
रधवाक मनमे तेसरे बात उठैत। गि‍रहस्‍ती काज बेसी बरसातमे होइए। मि‍रगि‍सरा-अद्राक पानि‍ तेहेन ने होइए जे हाथ-पएर सड़ा दइए। एक तँ हाथ-पएर घबाह भऽ जाइए तइपर सँ काजो बढ़ि‍ जाइए। तइसँ नीक जे परदेशे खटब। मुदा वि‍चार लगले रधवाक मनकेँ बदलि‍ दइ। ब्रह्म स्‍थानक भागवत कथा मन पड़ि‍ जाइ। ओना पनरहो दि‍न सुनने रहए मुदा एक्केटा बात मन रहलै। ओ ई जे ‘माए-बापक सेवा करब बेटाक सभसँ पैघ धर्म छी।’
पुतोहु लेल धैन-सन। ‘कोउ नृप होउ हमे का हानी।’ एकटा गारजनकेँ के कहए जे तीन-तीनटा गारजनक तरमे छी। जेहने दि‍न तेहने राति‍।
पि‍ताक पीठपोहू बनि‍ रधवा कमलाकाकाक संग खेती-बाड़ीमे पूरैत। एते बात रधवा बूझि‍ गेल रहए जे खेतीक भरि‍गर काजमे हरबाहि‍, कोदरबाहि‍ आ करीनबाहि‍ अछि‍। ओना धनरोपनीमे सेहो डॉड़ दुखाइ छै। तँए पि‍ताकेँ ऐ सभ काजसँ फारकती दऽ देने रहनि‍। गि‍रहस्‍तीयो तँ अमरलत्ती जकाँ सघन होइए। काजक इत्ता नै। कलमसँ कोदारि‍ धरि‍क काज। जते समए तते काज पसारि‍ लि‍अ। ततबे नै, कि‍छु काज एहनो हाेइए जइमे कम तरद्दुत होइत आ कि‍छु एहनो होइत जे तीन-तीन बेर केलोपर गड़बड़ाएले रहैत। तइपर सँ मेठनि‍यो बेसी। भरि‍गरकाज रधवा सम्‍हारि‍यो लन्‍हि‍ तैयो कमलाकाकाकेँ सोहरी लागल काज रहबे करनि‍। जते हाथ-पएरसँ करथि‍ तइसँ कम बुधि‍योक नै। महीना, ग्रह, नक्षत्रक काज सेहो रहबे करनि‍। कोन नक्षत्रक धानक बीआ नि‍रोग होइए आ कोनमे पाड़ने कललग्‍गु भऽ जाएत? कोन नक्षत्रमे कोन चीजक बीआ पाड़ल जाएत आ कोन चीज रोपल जाएत। बारहो मासक हि‍साब कंठस्‍थ रखने छथि‍। जेकर खगता अखन धरि‍ रधवाकेँ भेबे ने कएल। जते काल काजमे लगल रहैत ततबे बुझैत। बाकी समए ने मारी माछ ने उपछी खत्ता। बि‍ना धैन-फि‍कि‍रक बीतरागी जकाँ चैनसँ रहैत। कमेनाइ-खेनाइ आ सुतनाइयेक जि‍नगी। तीनूक गति‍यो एकरंगाहे!
आंगनसँ बहराक काज जहि‍ना दुनू बापुत कमलाकाकाक बीच अड़ि‍आएल चलैत रहनि‍ तहि‍ना अंगनाक भीतरक काज दुनू सासु-पुतोहुक बीच। चूल्हि‍-चीनमार बाहरब-नीपब, घर-अंगना बहारबसँ लऽ कऽ थारी-लोटा धुअब, भनसा-भात करब धरि‍क भार पुतोहुक ऊपर। जे पुतोहुओ आ सासुओ बुझैत, तँए ने केकरो चड़ियबैक जरूरति‍ आ ने कि‍यो अढ़बैक आशा करैत। तहि‍ना यमुनोकाकीक काज रहनि‍। कोठीक अन्न केना सुरक्षि‍त रहत, तइठामसँ लऽ कऽ माल-जालक थैर-गोबर केनाइ घास लौनाइ धरि‍क। ओना कि‍सकारोक समैमे आ कटनि‍योक समैमे गि‍रहस्‍ति‍योमे हाथ-बटबैत। चीनी मि‍लमे जहि‍ना एकठाम कुशि‍यार बोझि‍ते, रेलबे टि‍कट लेनि‍हारक धारी जेना रसे-रसे आगू बढ़ैत, तहि‍ना कमलाकाकाक परि‍वार। ने मुँहा-ठुठी करैक कोनो जगह आ ने होइत।
ओना गाम नीचरस जमीनमे बसल तँए ऊँचरस जमीनक बारहो-बि‍‍रहि‍णीक खेती नै होइत। भीठ जमीन नै रहने भीठक उपजो नहि‍ये! जइसँ गाममे बेख-बुनि‍यादि‍ सेहो कम आ गाछि‍यो-खरहोरि‍। तीन हीसमे बास आ एक हीसमे बाड़ि‍यो-झाड़ी। ओना तँ छअ ऋृतु होइत अछि‍ मुदा गि‍रहस्‍तीक लेल मूलत: तीन मौसम होइत। ऋृतु दुइये मासपर बदलैत, जखन कि‍ फसि‍ल तीन मासक उपरान्‍ते बदलैत। कि‍छु-कि‍छु तीन माससँ कम्मो समैमे होइत मुदा बेसी तीन माससँ बेसि‍येमे। तँए मोटा-मोटी जाड़, गड़मी वरसाती फसि‍ल होइत। तहूमे डंडी-तराजू जकाँ बरसात डंडी पकड़ने अछि‍। तराजूक पलरा जकाँ जाड़-गरमी। एक-दोसराक दुश्‍मनो। कोनो एक्केटा रहत। सन्‍यासी जकाँ दोसर नै सोहाइत। मुदा बीचमे जँ पंच नै रहत तँ झगड़ेमे दुनू लगि‍ जाएत, आगू की बढ़त। सालक बरसाते मौसम एहेन होइत जे सालो-भरि‍क भाग-तकदीर ि‍नर्धारि‍त करैत। जहि‍ना बेसी बर्खा भेने दहार होइए तहि‍ना नै भेने रौदी! जे दुनू गि‍रहस्‍तीकेँ जान मारैए। हँ एहनो होइए जे, जइ साल समगम बर्खा भेल तइ साल सुभ्‍यस्‍त समए भेल। जइसँ नीचा ऊपर एक रंग फसि‍ल उपजल। जहि‍ना कृष्‍ण अर्जुनकेँ कहने रहथि‍न तहि‍ना मौसमो होइए।
जइ धरतीपर गंगा, सरस्‍वती, यमुना सन धार एकठाम  मि‍लि‍ कुम्‍भ सजबैत अछि‍ तइठाम दि‍न-दहार हत्‍या, बलात्‍कार अपहरण हुअए, बि‍नु बुइध‍क लोकक भरमार लागल रहए, मनुखकेँ मनुख नै बुझल जाए, तइठाम तीनू संगमक कोन उपकार? नमगर-चौड़गर ऑट-पेटक तीनू धार जे हँसैत-झि‍लहोरि‍ खेलैत समुद्रमे समाहि‍त होइत, तइठाम......?
हमरा सभकेँ इहो नै ओझल रखक चाही जे एकैसमी सदीक स्‍वतंत्र प्रजातंत्रक बीच बास करै छी। अखन धरि‍क इति‍हासमे एते सक्षम मनुख ऐ धरतीपर नै भेल छल। तखन दायि‍त्‍व बनैए जे युगक संग पकड़ि‍ युग-युगान्‍तरक धाराकेँ स्‍वच्‍छ बना चलए दि‍ऐ। काल मनुक्‍खेटा केँ नै सभ कि‍छुकेँ प्रभावि‍त करैत अछि‍। जखने सभ कि‍छु प्रभावि‍त हएत तखने जीवन-पद्धति‍मे धक्का लगत। ओइ धक्काकेँ ि‍नष्‍क्रि‍य करए लेल जीवन-शैलीमे बदलाव आनए पड़त! बीतल युग तहि‍ना बदलल। सत्‍युगमे जे क्रि‍या-कलाप छल ओ त्रेतामे आबि‍ सुधरल, जइसँ बदलाव आएल। युग-परि‍वर्त्तन भेल। तहि‍ना त्रेतासँ द्वापर भेल। तँए जरूरी भऽ गेल अछि‍ जे समयांकन इमानदारीसँ हुअए।
कहैले तँ कमलाकाका परि‍वारक गारजन छथि‍ मुदा अंगनाक सीमासँ अपनाकेँ बाहरे रखने छथि‍। खेतक उपजा-बाड़ी बाधसँ आनि‍ पत्नीकेँ सुमझा दैत छथि‍न। यमुनोकाकी की‍ आब नव-नौताड़ि‍ छथि‍ जे परि‍वारक धक्का-पंजा नै बुझथि‍न। जि‍नगीक धक्का-पंजा जीबैक बहुत कि‍छु लूरि‍ सि‍खा देने छन्‍हि‍। सुभ्‍यस्‍त समए भेने काकीक मनमे खुशीक कोढ़ी शुरूहे अाद्रा नक्षत्रमे जे पकड़लकनि‍ से बढ़ैत-बढ़ैत अगहनमे भकरार भऽ फुला गेलनि‍।
धान दौन होइते, आने साल जकाँ यमुनाकाकी उसनि‍याँ करैसँ पहि‍नहि‍ उपजाक हि‍साब बेटो-पुतोहु आ पति‍योक कानमे दऽ देब, आने साल जकाँ नीक बुझलनि‍। मने-मन बुदबुदेलीह-
कते धान भेल, तेकर कते चाउर हएत आ कते दि‍न चलत?”
कते दि‍न चलतमे ओझरी लगि‍ गेलनि‍। लोकक पेटक कोनो हि‍साब अछि‍। देखैमे ने बीत भरि‍क बूझि‍ पड़ैए मुदा हाथि‍यो खा-पी कऽ पचा लैत अछि‍। फेर मन घुमलनि‍। जखन अपने परि‍वारक बात अछि‍ तखन एना अग्‍गह-वि‍ग्‍गह कि‍अए सोचै छी। देखले परि‍वार नपले सि‍दहा। मुदा लगले मन आगू घुसुकि‍ गेलनि‍। आन-आन परि‍वार जकाँ तँ अपन परि‍वार नै अछि‍। आन-आनमे आनो-आनो उपाए छै अपना तँ से नै अछि‍। लऽ दऽ कऽ खेति‍येक आशा अछि‍। तहूमे एते दि‍न घटबी पुड़बैले गाम-गाम महाजनो छलए मुदा आब तँ ओहो ने अछि‍। ने ओ देवी आ ने ओ कराह। महाजनी मरैक कारणो भेल। राजे रोग जकाँ ने बाढ़ि‍यो-रौदी छी। जे जेहेन तेकरा तही रूपे पकड़ैत अछि‍। जे जते कम आँट-पेटक ओकरा ओते कम आ जे जते नमहर ओकरा ओते बेसी नोकसान करैत। तइ संग इहो भेल जे गामक लोक बाहरसँ सेहो कमा-कमा अनए लगल। जइसँ महाजनीक बीच रोड़ा अँटकल।
ओना बहरबैयो बाहरक बहुत बात तँ नहि‍ये बुझैत मुदा जि‍नगीक कि‍छु बात तँ जरूर बुझए लगल। नै बुझैक कारण रहए जे पढ़ल-लि‍खल नै रहने एको गोटेकेँ ने बैंकक नोकरी रहै आ ने करखन्नाक ऑडि‍टरी। जइठाम धनक केकरोरबा बि‍आन होइत से कि‍यो ने बुझैत! मुदा रि‍क्‍शा चलौनि‍हार, ठेला ठेलि‍नि‍हार, गोदाममे बोरा उठौनि‍हारकेँ लगक महाजनसँ भेँट जरूर भेलै। जहि‍ना छोट बच्‍चा हाथक आङुर मुँहमे लैत-लैत बाहि‍यो पकड़ए लगैत, तहि‍ना खुदरा महाजन लग एने भेल। ओना छोट महाजनी रहने साले भरि‍क लेन-देन चलैत मुदा पच्‍चीस हजारक सहयोगी तँ भेटल। बेटा-बेटीक बि‍आह, घर-घरहट आ बर-बेमारीक आशा तँ भेटल। गामक महाजनीसँ सूदि‍यो छोट। जतए आसि‍न-काति‍कक कर्ज एक्के-दुइये मासमे सवैया-डेढ़ि‍या वृद्धि‍ करैत तइठाम दस प्रति‍शत व्‍याजक बदला पच्‍चीस प्रति‍शत दि‍अए पड़त, ततबे ने। मुदा तैयो तँ असाने भेल। दोसर इहो भेल जे आध-मन, एक-मन कर्ज लेल जे भरि‍-भरि‍ दि‍न साबेक जौड़ी खर्ड़ए पड़ैत छल सेहो बन्न भेल।

दुनू बापुत -कमलोकाका आ रधवो-केँ यमुनाकाकी बुझबैत कहलखि‍न-
एते धान भेल। एकर एते चाउर हएत। एते दि‍नक पछाति‍ फेर अगि‍ला अन्न हएत। एते दि‍नमे एते साँझ भेल, एतेटा आश्रम अछि‍। दि‍नमे एते सि‍दहा लगैए।

यमुनाकाकीक हि‍साव सुनि‍ कमलाकाका वि‍चारक दुनि‍याँमे बौआ गेलाह। जेहो सुनलनि‍ सेहो रसे-रसे बि‍सरए लगलाह आ जे नै सुनलनि‍ से तँ नहि‍ये सुनलनि‍। अपन प्रस्‍तावक अनुमोदनक लेल यमुनाकाकी आँखि‍ नचबए लगलीह। कखनो पति‍पर तँ कखनो बेटापर देथि‍। उनटि‍ कऽ पाछू तकथि‍ तँ टाटक अढ़मे बैसल पुतोहुकेँ देखथि‍। सभ अपने-अपने दुनि‍याँमे बौआइत। अपन प्रस्‍तावक उत्तर नै पाबि‍ यमुनाकाकी पुन: दोहरौलनि‍-
अखन सोचै-वि‍चारैक समए अछि‍ तँ कि‍यो कान-बात नै दइ छि‍ऐ, आ जखन बेर पड़त तखन थुक्कम-थुक्का करैत घि‍नमा-घीन करब?”
यमुनाकाकीक करुआएल बात सुनि‍ कमलाकक्काक भक्क खुजलनि‍। मनमे उठलनि‍ जे मुँहो चोरौनाइ नीक नै। कि‍छु तँ बजबे उचि‍त। बजलाह-
खेतसँ खरि‍हान आनि‍ तैयार कऽ आंगन पहुँचा देलौं आबो हमरे काज अछि‍। आकि‍ ओकरा उसनब, रौद लगा कोठीमे राखब, की सेहो पुरुखे भरोसे छी।
काकाक उत्तरसँ यमुनाकाकीकेँ घरक लक्ष्‍मी मन पड़लनि‍। खुशीसँ मन नाचि‍ उठलनि‍। मुदा लगले, जना घुरमी लगैए तहि‍ना लगि‍ गेलनि‍। बजलीह-
जोड़ भरि‍ धोती आकि‍ जोड़ भरि‍ साड़ी तँ कि‍यो साले भरि‍ ने पहि‍रत। साल भरि‍क पछाति‍ ओ थोड़े पहि‍रै जोकर रहै छै। एकर अर्थ ई नै ने भेल जे वस्‍त्रक जरूरति‍ मेटा गेल, साल भरि लेल मेटाएल, तोहूमे कते बि‍हंगरा अछि‍। कहीं चोरि‍ये भऽ जाए की हराइये जाए, की कुत्ते बि‍लाइ दकरि‍‍ दइ आकि‍ आगि‍ये-छाइक प्रकोप भऽ जाए।
यमुनाकाकीक बात सुनि‍यो कऽ कमलाकाका अनठा देलनि‍। चुपे रहलाह! मुदा मनमे ओंढ़ मारए लगलनि‍ जे माए-बाप अछैत बेटा-पुतोहुकेँ परि‍वारक चि‍न्‍ताक उत्तरी पहि‍राएब उचि‍न नै। ओना काजक ढंग ओहन सि‍खा देब नीक, जइसँ जि‍नगीमे कहि‍यो चि‍न्‍ता नै सतबै। आगूमे बैसल रधवा, जना संस्‍कृत आकि‍ अंग्रेजी सुनि‍ कोनो बच्‍चाकेँ होइत, तहि‍ना सुनबे ने केलक। मुदा तैयो मनमे घुरि‍आइ जे जे-गति‍ सबहक हेतै से हमरो हएत। तइले अनेरे माथ-कपार पीटब आकि‍ धूनब नीक नै। रमरटि‍यासँ खढ़कटि‍ये नीक! भरमे-सरम चुपे रहल।
अढ़मे बैसल पुतोहुक मन बजैले लुस-फुस करैत। लुस-फुस करैक कारण जे के नै घर आकि‍ गामक मुख्‍यि‍यारी चाहैए? मुदा बेचारीकेँ कोनो एहेन गरे ने भेटैत जे कि‍छु बजैत। एक तँ नव-नौतुक कनि‍याँ, दोसर नैहरोमे माए भानसे-भात करैक लूरि‍टा सि‍खौने। घरक जुति‍-भाँति‍क कोनो लुरि‍ सि‍खौनहि‍ नै। केना सि‍खेबो करि‍तथि‍? सभ गाम आ सभ परि‍वारमे कि‍छु-ने-कि‍छु भि‍न्नता होइते छै। जहि‍ना कोनो नट ओहने बोल्‍टमे नीकसँ लगैत जे समतुल्‍य होइत। तहि‍ना तँ परि‍वारो ने होइत अछि‍। माइये-बापक परि‍वार जकाँ सासुओ-ससुरक परि‍वार हएत, से कोनो जरूरी नै। चाहि‍यो कऽ वेचारी कि‍छु ने बाजि‍ सकल।
ओना धानक ढेरी देखि‍ कमलाकाकाक मन उमड़ैत रहनि‍। जहि‍ना पानि‍मे भीजने कि‍ताबक पन्ना एक-दोसरमे सटि‍ जाइत तहि‍ना कमलोकाकाकेँ भेलनि‍। परि‍वारक सभ हृदैमे सटि‍ गेलनि‍। मन उमड़ि‍ आगू बढ़लनि‍। पति‍केँ रहैत जँ पत्नीकेँ वा बाप-माएक रहैत बाल-बच्‍चाकेँ कोनो तरहक चि‍न्‍ता-फि‍कि‍र हुअए तँ जरूर कतौ-ने-कतौ माए-बापक दोख छि‍पल अछि‍। दोखक कारण मनमे एबे ने करनि‍। ओछाइनपर जहि‍ना नीन नै एने कछमछी लगैत तहि‍ना मन कछमछाइत रहनि‍। मुदा लगले, जहि‍ना सुतली राति‍मे ओछाइनपर सुतल माएकेँ देखि‍ जागल बच्‍चा सूति‍ रहैत तहि‍ना कमलोकाका केलनि‍।
काकाकेँ शान्‍त देखि‍ यमुनोकाकी असथि‍र भऽ गेलीह। मनमे उठलनि‍ जे चारि‍ गोटेक आश्रममे तीन गोटे तँ एक्के परि‍वारक छी, खाली कनि‍येटा ने अखन दस-आना छअ-आनामे छथि‍। ओहो दू-चारि‍ सालमे रि‍ताइत-रि‍ताइत रि‍ता जेती। मुदा अखन तँ नैहरेक चाि‍ल-ढालि‍ छन्‍हि‍। अखन थोड़े ऐ घरक तीत-मीठ पचाैतीह। नैहर गेलापर जखन सखी-बहि‍नि‍याँ वा माए-पि‍ति‍आइन पुछतनि‍ जे बुच्‍ची अन्न-वस्‍त्रक ने तँ दुख-तकलीफ होइ छह, तखन ओ थोड़े आगू-पाछू ताकि‍ बजतीह। ओ तँ परि‍वारेक बचौने बॅचत। वएह ने परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा छी। जानि‍येँ कऽ तँ हमरा सभक घरक छप्‍पर भगवानक डंगेलहा छी, तेहीमे ने बॅचि‍-खुचि‍ कऽ घरक मर्यादाकेँ संगे लऽ कऽ चलैक अछि‍। अहीमे ने अपन इमान-धरम बचबैत परि‍वार चलाएब तखन ने समाजक संग कुटुमो-परि‍वारक प्रति‍ष्‍ठा ठाढ़ रहत।

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