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Saturday, April 7, 2012

लाल भौजी :: दुर्गानन्द मण्डल


पछिला अड़तालिस बर्खक सभ रेकार्ड घ्वस्त करैत ऐबेर क जाड़ पाछाँ छोड़ि देलक। कहबी छैक जाड़ मासमे रुइये आकि दुइये मुदा रुइ ततैक महग जे बेसाहब कठिन। जँ दाम पुछबै तँ माधो मास सौंसे देह पसीनासँ तर-बत्तर भऽ जाएत। जहाँ धरि दूइएक सवाल अबैत अछि तँ ई सुख प्रायः सबहक कपारमे लिखले नै अछि। जँ कि‍यो किशोरावस्थाक बालक-बालिका छथि तँ राति सपनाइते वितैत छन्हि, आ बुढ़हा-बुढ़िक तँ कथे नै पुछू किऐक तँ आइ ने ओ बुढ़ भेलाहहेँ मुदा एह कतेको जाड़ कऽ ओ लोकनि देखने छथि आ खेपने छथि। तँए फलक रुपमे केराक घोड़ जकाँ हथ्थे-हत्थाक असथानपर गन्डाक-गन्डा धिया-पुता सोहरल छन्हि। बाल-बच्चाक समर्थ रहबाक कारणे ओकरा सभकेँ तँ अपने खाए-खेलाएसँ पलखति नै। तहूपर सँ जँ कोनो पाहुन-परख चल आबैथि तँ घरक सवर्था अभावे। सभ घरकेँ बेटा-पुतोहु अलगे छेकने। तँए बुढ़ा-बुढ़िक लेल तँ माध मासक जाड़ प्राणक हार बनल रहैत छन्‍हि।
       कोनो तेहन अवसरे नै भेट पबैत छन्‍हि जे समए सँ ओइ कहबीसँ किछु लाभ उठाबथि। तँए ओम्हर बुढ़ि कोनेा कोनमे धोकरी लगा पुआरमे धोसिआइल रहैत छथि। आ ऐम्हर बुढ़हा दलानक कोनो केानमे पोता पोतीक संग जाड़सँ सर्घष करैत रहैत छथि। कोनो तरहेँ दुनू परानी (बुढ़हा-बुढि) राति खेपक लेल मजबुर। मुदा से कते दिन धरि?
       एक दिन मौका पाबि़ बुढ़ा बुढ़िकेँ हाक दैत छथिन- ‘‘सुनै छै हाथ-पएर जाड़े ठिठुरि रहल अछि, कनी कोनो मालीमे लहसुन तेल पका कऽ लेने आबो तँ। बुढ़ि आंगनेसँ उतारा दैत छथिन हँ हँ सुनै छिऐ एते जोरसँ किए हाक दइ छै, कोनो की हम बहीर छी? लेने आबै छिऐ। ताबे माले घरमे आगि तापो। बुढ़हा पुनः बाजि उठैत छथि- ‘‘हे जल्दी सँ औते हम माले घरमे छी।’’
       बुढ़ि करीब दस मिनटक बाद मालीमे लहसुन तेल पका दुरुखे सँ हाक दैत छथिन- ‘‘कतए छै हइया लौ।’’
  बुढ़हा फेर बाजि उठैत छथि- ‘‘एम्हरे लेने आबो ने हइया छिऐ।’’
  बुढ़ि लग अबैत बाजि उठैत छथि- ‘‘ई किछो नै बुझै छै? जे बेटी-पुतोहूबला अंगना-घर भेलै। सुतौ तेल लगा दैत छिऐ।’’
  बुढ़हा पुआरक बिछौनपर ओंघरा जाइत छथि आ बुढ़ि तेलक मालीश करए लगैत छथिन। कने कालक बाद बुढ़ा तेल लगबैत गरमा जाइत छथि। प्रेमसँ बुढ़िकेँ पुछै छथिन- ‘‘भानस भातमे देरी छै की? बच्चा सभकेँ अंगना दऽ आबौ खा पी कऽ सुइत रहतै आ ई एत्ते आगि तापो।’’
  बुढ़ि आंगन जा धिया-पुताकेँ पुतोहू सभकेँ दैत अपने बुढ़हा लग आबि जाइत छथि आ मालक घरमे पजरल घुरा लग बैस आगि तापए लगैत छथि। दुनू परानीक गप्प-सप्प करैत बुढ़हा हाथ-पएर सुग-बुगबए लगैत छथि। आ अपन दहिना हाथ बुढ़िक बामा.........
हाथ दैत बाजि उठैत छथि एकरा एक्को रत्ती कोनो बातक घ्यान नै रहै छै। कहौ तँ कतैक जाड़ होइत छै..... कहैत बुढ़िकेँ पाँजमे उठा आ पुआरक बीछौनपर ओंधरा जाइत छथि। कनिये जा कि लट्टा-पटी होइत आकि तखने आंगनसँ पोता-पोती खा कऽ सुतैक लेल बाबा किलोल करैत मालक घर दि‍स दौग पड़ैत अछि। बुढ़ि बाजि उठैत छथि- ‘‘छोड़ौ ने, छोड़ौ धिया-पुता सभ आबि रहल छै।’’ आ दुनू परानी माने बुढ़ा-बुढ़ि गरमाएले अवस्थामे एक-दोसरासँ धड़फड़ा कऽ अलग भऽ जाइत छथि।
रहल जबान-जुआनक गप्प
, जबानीक धाह पाबि जाड़ो गरमाएले रहैत अछि। बुझू तँ दू परानी जबान-जुआन होथि आ उपरमे रजाइ परल हो तँ जाड़ोकेँ जाड़मे पसीना छुटए लगैत छै। मुदा प्रकृति तँ स्थिर रहत नै। ओ तँ अपना कालक्रमे चलैत रहत।
बीतल जाड़ मास आएल सरस्वती पूजा उड़ए लागल वातावरणमे रंग-अबीर जारु कात डारि-पातपर चीड़ै-चुनमुनी चहकए लागल। कोइली धीया-पूताकेँ मुँह दुसब सुरु कऽ देलक। आमक गाछ मंजरसँ महमह करए लागल। मुनगा फूल धरए लागल
, राइ, तोड़ी, तीसी आ सरिसबमे पीअर-पीअर फूल सेहो लहलहाए लागल। वातावरण किछु दोसरे रंगक भऽ गेल। चारु कात महमह करैत। कथा-कुटमैती शुरु भऽ गेल। कथकिया सभ ठाम-ठाम जाए-आबए लगलाह। कथा फरिछैला उत्तर लाल-पीअर धोती आ तइपर लाठी हुरबला लाल-लाल ठप्पा अपन मैथिल सभ्यताक परिचए दिअए लागल। नेना-भुटका सभ फगुनहरि गीत गाबए लागल- ‘‘यै बड़की भौजी करियौ बिचार,
कतै दिन रहबै आब हम कुमार
दैखैत देखैत हमरा ई भऽ गेलै
अहाँ बहि‍नसँ हमरा लभ भऽ गेलै। हरबाहो-चरबाहो सभ फगुआसँ सम्बन्धित मैथिली आ भोजपुरी गीत गाबए लागल। बाध-बोनमे मालो-महिस चराबए आ घर-घसबहिनीकेँ देखैत ई गीत गाबए-
‘‘तोहर लंहगा उठा देव रीमौटसँ....।’’
घसबहिनीयो सभ उत्तारा देनाइ नै बिसराए ओहो सभ गाबए ई गीत-
‘‘रओ छोड़ा बज्जर खसतो....।’’ बुझू जे जाड़क खुमारी लोक सभ फागुनेमे उताड़ए चाहैत। जिनका परिवारमे नव बि‍याह भेल रहनि, बुझू तँ हुनकर छओ आंगुर घीएमे आखिर
समैसँ भला गोधनपुर गामक रामदेव बाबूक छोटका बचबा उगन किऐक ने लाभ उठबितथि। किएक तँ एहीबेर बाइस दिसम्बर २००९मे हुनक अग्रज दुर्गानन्द जीक बि‍याह दरभंगा जिलाक बरुआरा गाममे सम्पन्न भेल छलनि। तँए भैयासँ तँ डर जरुर रहनि मुदा नवकि कनियाँ अर्थात लाल भौजीसँ खूब रंग-रभस होइत छलनि। उगनक भौजी सेहो करीब एक्कैस बर्खक छलीह। बीस बसन्त तँ सुखले-साखले बितौलनि मुदा एक्कैसम बंसन्त बुझू जे ओ तँ रससँ उगडुब करैत छलीह। बेस पाँच हाथ नमहर-छड़गर, देहो दशा बेस भरल-पुरल गाल तँ बुझू हाइ ब्रीड टमाटर जकाँ लाल टरैस आ बेस गुदगर। आँखि एहेन कटगर जे जेकरा दि‍स एकबेर ताकि देथिन तँ बुझू सोनित एक्को ठोप नै खसैत मुदा ओ बेचारे घाइल भऽ जाइत। हुनकर जुट्टी तँ बुझू सुच्चा गहुमन साँप जकाँ फूफकार छौड़ैत छलनि। नव विवाहित भेलाक कारणे सदिखन भरि बाँहि चुड़ी आ भरि हाथ मेहदी, आरतसँ रंगल पएर, भरि आँखि काजर आ भरि माङ सेनुर लाल टुहटुह करैत। कि‍यो जँ धोखहुँसँ देखति तँ आँखि चोन्हरा जाइत। सभसँ सुन्दर हुनक वस्त्राभुषणक परिरव आ ओढ़ब छन्हि। एक तँ गोड़ि नारि तइपर सँ सुगा पंखी रंगक साड़ी आ बेलाउज आ ओहिक तरमे उज्जर धप-धप करैत ब्रेसिअर जे पहिरथि ओकर उज्जरका फिता, से देखि‍ से देखि‍ उगनकेँ तँ मौगति भऽ जाइत छलनि। ओ मने-मन बिचारथि जे ऐबेर फगुआमे लाल भौजीकेँ सभ तरहेँ लाल कऽ कए देबनि। दिन बितैत कोनो कि देरी लगैत छै। संयोग एह जे ऐबेर फगुओ पहिले मार्चमे छल। जेना-जेना फगुआ लगिचाइल जाए उगनक मना तेना-तेना लाल भौजीक जुआनीसँ बौराइल जाइत छलनि।
फगुआसँ एक दिन पहिने उगन दरभंगा अपना डिपटीपर सँ गाम अबैत छथि। किलो दुइ मधुर नेने किलो एक अंगुर
, आसेर काजू आ दू पैटिक किशमीस आ चारि-चारि पैटिक हरियर लाल रंग सेहो हाथमे टंगने आएल संग-संग दू शीशी रम सेहो नेने आएल। पीठपर एम.आर. बला बैग। उगन आंगनसँ ससरि ओसारपर जाइत छथि आ ओतैसँ हाक दइ छथिन- ‘‘भौजी, यै लाल भौजी कतए गेलौं, आउ-आउ लग आउ हम छी उगन।’’
लाल भौजी पलंगपर सँ उठि बाहर अबैत छथि। तात उगन पीठपरक बैग निचाँ राखि एक हाथे मधुरक पैकित लाल भौजीक हाथमे दैत आ दहिना हाथमे पहिनेसँ धोरल लाल रंग लाल भौजीक बामा गालपर लगबैत आ दहिना गालमे चुम्मा लइत बाजि उठैत छथि-
‘‘अधला नै मानब फगुआ छी। भौजी यै भौजी आब कहू मन केहन लगैए?’’
लाल भौजी चौबनियाँ मुस्की दैत बाजलि-
‘‘धूर जाउ, हमरा अहाँक ई चालि नै सोहाइए।’’ बाजि लाल भौजी अपना पलंगपर चलि जाइत छथि। आ उगन अपन कोठलीमे। राति भरि उगनक आँखिमे नीन नै भेल। सुतलीयो रातिमे रहि-रहि मन पड़ि उठैत छन्हि भौजी, लाल भौजी........।
      

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