Pages

Monday, April 9, 2012

शरदिन्दु चौधरी - समय–संकेत



बलराज घरमे बैसल अपन आतीत दिस झाँकि रहल छल। एहन अवसर कहियो नहि भेटल छलैक ओकरा जे ओ अपन इतिहासकेँ स्वयं अपन नजरिसँ आंकि सकए। ईहो अवसर ओकरा एहि कारणे भेटि गेलैक जे कि ओकर पत्नी सेहो बेटा संग मुबंइ चलि गेल छलैक आ ओ घरमे नितांत असगर रहि गेल छल।
वयस्कक अंतिम पड़ावपर आइ ओ अपनाकेँ एकदम असगर पाबि रहल छल। ओ सोचए लागल जे किएक आइ ओ असगर भऽ गेल अछि? किएक एकएकटा कऽ सभ ओकरासँ अलग भऽ गेलैक? पहिने दुनू बेटी अपनअपन सासुर चलि गेलैक। फेर दुनू बेटाक समए अएलै। पहिने शोभराज पढ़बाक हेतु दिल्ली गेलैक आ पढ़ाइ समाप्त कएलाक बाद ओतहि एकटा कम्पनीमे काज करए लागल। फेर ओकर विआह भेलैक। किछु दिन ओकर पत्नी पटनामे ओकरा सभ लग रहलैक आ फेर ओ अपन पति लग दिल्ली गेलि आ ओतहि रचि-बसि गेल।
एहि तरहे केशव सेहो नोकरीक खोजमे मुंबइ गेल आ ओहीठाम स्थायी रूपेँ रहबाक निर्णय लऽ लेलक। माइक कोरपच्छु रहबाक कारणे आब माएकेँ सेहो अपना संग रखबाक हेतु किछु दिन लेल लऽ गेल अछि। मालती सेहो किछुए दिनमे बेटा ओतए रमि गेल अछि। ओना ओ जाइत काल कहि गेलि छलि जे जल्दीये आपस आबि जाएत।
बलराज सोचैत चल जा रहल छल जे आखिर किए एक दोसरासँ अपन लोक अलग भेल चल जाइत अछि जखन कि परिवारिक सभ सदस्य रक्त सम्बन्धसँ जुड़ल एकटा माला सदृश होइछ।
ओ ई सभ सोचिये रहल छल कि ओकरा बुझएलैक जे ओकर दांतमे एकटा छोटछिन केश फंसि गेल छैक जे बेर-बेर दांतसँ फराक करबाक हेतु ओकरा अपना दिस आकृष्ट कऽ रहल छैक। ओ सोचलक जे पहिने एहि केशकेँ दांतसँ बाहर कऽ देल जाए तकर बाद ओ निश्चिंतसँ बैसि कऽ अपन चिंतन प्रक्रियाकेँ आगाँ बढ़ाओत।
ई सोचि ओ मुँहसँ नकली दांत बाहर निकालि ओहिमे फंसल केशकेँ ताकए लागल। मुदा ई कीओकरा ध्यान अएलैक जे ओ चश्मा तँ लगौनहि नहि अछि तँ दांतमे फंसल केश ओकरा कोना सुझतैक? ओकरा स्मरण अयलैक जे चश्मा बगलबला कोठरीमे टेबुलपर राखल छैक। ओ चश्मा अनबा लेल ठाढ़ भेल। बगलबला कोठरीमे जएबा लेल डेग बढ़एबापर छल कि ध्यान अएलैक जे छड़ी तँ हाथमे लेबे ने कएलक तँ कोना ओहि कोठरीमे जा सकत? मुदा तुरंते ओकरा देवालसँ सटल छड़ी ओहीठाम भेटि गेलैक।
हठात् ओकरा अनुभूति भेलैक जे जहि प्रश्नक उत्तर ओ ताकि रहल छलसे तँ छड़ीक संगे भेटि गेलैक। ओ हँसए लागल आ स्वयंसँ कहए लागलहमर दाँतजे हमर अपन छलसँ नहि अछि। हमर आँखि जे ज्योति प्रदान करैत छल, सेहो अपना भरोसे नहि रहल, हमर पैर जाहि भरोसे एतेक यात्रा कएलहुँ सेहो आब अपनापर निर्भर नहि अछि आ एहि सभक अछैत हम कृत्रिम अंगक सहयोगसँ जीवि रहल छी।
फेर ओकर चिंतन प्रक्रियाक आगाँ बढ़लैकई सम्बन्धो सभ तँ कृत्रिमे छैक तखन एकरा जनबा लेल एतेक व्याकुल किए छी। की हम अपन सर-सम्बन्धीक संगे धरतीपर आएल छी। किए हमर ई अंग सभ अपन रहितो काज करब बंद कऽ देलक?
आब ओकर चिंतन प्रक्रिया विराम लेबाक संदेश दऽ रहल छलैक। ओकरा ओ ई कहि देलकै जे समऐ ओ तंत्र छैक जे मनुष्यकेँ सभ साधन उपलब्ध करबैत छैक आ समएपर पुनः ओकरासँ आपस लऽ लैत छैक। ओ तँ एकटा माध्यम मात्र अछि जे समएसंकेतक पालन करैत अछि।

No comments:

Post a Comment