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Tuesday, November 20, 2018

झूठ सपना


झूठ सपना (कथाकार : श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)
मिथिलाक रूप-रंगक भीतर भवनगर गाम, जइ गाममे सुनीता सुचिता, सुशीला आ सुलेखा।
मिथिला तँ मिथिला छी तहूमे गामक मिथिला आ गामोमे भवनगर गाम। अदौक गाम भवनगर, किए तँ त्रेता जुगमे जखन राम धनुष तोड़ए एला तखन भवनगरक देखनिहारो आ स्वागत गीत गौनिहारिमे चारि गोरे भवोनगरक छेली। तँए भवनगरक लोककेँ आत्मगौरव छइहे।
जहिना साइयो नदीक बीच बसल मिथिला, तहिना साइयो रंगक माटि-पानिसँ सजल सेहो अछिए। कहब जे माटियो तँ माटि भेल आ पानियो तँ पानियेँ भेल। मुदा से नहि अछि, अछि ई जे धरतीक माटियो साइयो रंगक गुण-धर्मसँ युक्त अछि। जेकर जीवंत-जगंत नमुना अछि जे अनो-फलो-फूलो आ पातोक बढ़बाढ़िमे सहयोगी बनि सहयोगो करैए आ असहयोगी बनि असहयोगो तँ करिते अछि। जँ से नइ अछि तँ एक्के गामक सभ माटिमे एक्के रंग सभ वस्तु किए ने उपजैए। कोनो माटि कोनो वस्तुकेँ[i] उमझबैए आ कोनोकेँ बँझियेबतो तँ अछिए। तहिना पानिक सेहो अछि। गाम-गामक तँ बात छोड़ू जे एको गामक पानि एकरंग नहि अछि। जइ इनार वा चापाकलक पानि पीबै छी, बगलेक दोसर इनार आकि चापेकलक पानि पीने सर्दी-बोखार लगि जाइए। खाएर जे अछि, छी तँ सभ मिथिलेक माटि-पानि।
जहिना आन गाममे बाध-बोनक लहलही रहैए तहिना भवनगरमे सेहो रहिते अछि। अपन-अपन गामक सभकेँ अपन-अपन लहलही आनैक कारण अपन-अपन छैन। तहिना एहनो गाम तँ अछिए जइमे लहलही केकरा कहै छै जे दहदहीमे दहेबो कएल अछि आ अखनो दहाइते अछि। तहिना जड़-जड़ीमे सेहो जरितो आबि रहल अछि आ अखनो जरिते अछि। खाएर जे अछि, सभकेँ अपन-अपन समस्यो अछि आ अपना-अपना ढंगे कल्याणकारी बाट पकैड़ चलबोक अछिए। जा से नइ हएत ता कोनो गाम उठि कऽ अपना भरे ठाढ़ केना हएत। जखन गामक समाज ठाढ़ हएत तखन ने गाम ठाढ़ हएत। जेकरा कहै छिऐ अप्पन घर। अनतए तँ डेरेबला ने कहाएब।
भवनगरबलाकेँ गामक लहलहीक कारण दोसर छैन। दोसर कारण छैन जे अदौक गाम भवनगर रहने जहिना एकदिस अनक बखारी भरैबला बाधक बधबला[ii] अखनो खढ़-पातक घर बना बास करैत अछि आ जहियासँ गाम भेल तहियेसँ पुस्त-दर-पुस्त ओइमे रहैत सेहो आबिये रहल अछि, अखनो अछिए। तँए कि मिथिलामे ओहन घर-दुआर नइ अछि जइमे रहैबला एकसत्तैरमे बैस हजार लोक पंक्तिवद्ध खेनाइ खा नहि सकैए। तेहनो तँ अछिए।  खाएर जे अछि, अछि तँ मिथिलेक माटि पानि, भाषा, संस्कृतिक बीच ने, तँए संचमंच भऽ सभ विचारियो रहबे कएल छैथ आ जे सक लगै छैन से करबो करिते छैथ।
ओना, भवनगरकेँ आन गामबला सभ अनेको नाम देने छैथ, कोनो गामबला कहै छैथ- धनहा गाम’, तँ कोनो कहै छैथ- फलहा गाम’, कोनो कहै छैथ कोइर-कुजराक तरकारी गाम’, तँ कोइ कहै छैथ- चोरहा गाम।ओना, रंग-बिरंगक नाओंसँ भवनगरबला चिन्तित नहि अछि, तेकर कारण ई जे गाम तँ युगानुकूल बढ़बो करैए आ घटबो तँ करिते अछि, तहूमे भवनगरकेँ एते प्रतिष्ठा भेटिये चुकल अछि जे विद्वानक गाम, डॉक्टरक गाम, प्रोफेसरक गाम, मास्टरक गाम, किरानीक गाम इत्यादि चपरासीक गाम इतिहासक पन्नामे नइ कहाएल अछि सेहो बात नहियेँ अछि। तँए सभ किछु अङ्गेजल गामबला छोट-मोट मान-अपमानकेँ बरखा-पानिक बुलबुला जकॉं बुझैए जे जहिना अकाससँ खसल तहिना धरतीमे सोंखा जाएत। तइले अनेरे महाकालीक आराधना छोड़ि बातक बतंगरमे लागब नीक नहि बुझि धियानेसँ निकालि-निकालि कातेमे रखै छैथ।  
मुदा तँए कि ओ–भवनगरबला–अपन ऊपर लगौल अपमान-उपनाम सबहक सफाइ नइ दिअ चाहै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि। सबहक सफाइ सार्वजनिक रूपमे दिऐ चाहै छैथ। हृदय खोलि, छाती तानि भवनगरबला सभ सार्वजनिक रूपमे कहै छैथ जे धनहा गाम भवनगर छीहे। आ से ओहिना नइ ने भेल अछि, विद्वानक गाम रहने विद्वतजन गीताकेँ पूजाक पाठ नहि बुझि ऑंगिक क्रिया बुझि अङ्गेज नेने छैथ जइसँ एते विश्वास तँ छैन्हे जे जहिना कृष्ण अर्जुनकेँ कहलखिन जे कर्मक फल ओहने होइ छै जेहेन कर्ताक कर्म रहल। जखने कर्म धर्ममे अबैए तखने अर्जुन सन अर्जन-शक्ति आबिये जाइए। तँए जँ आन गामबला सभ धनहा गाम कहै छैथ तँ एते बधाइक पात्र तँ छथिये जे जहिना अयोध्याक दशरथक दरबारमे बधैया गीत गौनिहार छला...।
दोसर भेल- फलहा गाम। एक तँ विद्वानक गाम भवनगर सभ दिनसँ रहल, तैपर जनकजी सन-सन हर जोतनिहार सभ सभदिनसँ रहले आएल अछि। केना नइ जोतत? मिथिला की जर्मनी, इंग्लैड सन देश जकॉं लोहे-लक्कड़पर ठाढ़ अछि, ओ तँ अपन माटि-पानि, नदी-नाला, बाध-बोन, झरना-पहाड़, गाछ-बिरीछ, जीब-जन्तुसँ तेना भरल अछि जे अपने-आपमे सघन बोन सेहो बनल अछि आ भरल-पुरल सागर सेहो बनले अछि, तैठाम जँ कियो फलहा गामकहै छैथ तँ ओ जरूर देखल-सुनल-बुझल-गमल बाजि रहला अछि, तँए हुनका धनवाद किए देबैन, हुनका फलवादे देब बेसी नीक हएत।
तेसर भेल- कोइर-कुजराक तीमन-तरकारी गाम। भाय, ओहिना नइ ने लोक कहै छैथ, अपन अनुभवसँ कहै छैथ किने जे जाबे धरतीकेँ कोरि-कमाइ नइ जाएत ताबे तीमन केना तरकारी बनैए आ तरकारी केना तीमन बनैए से थोड़े बुझबै।
चारिम भेल- चोरबा गाम। जे कियो भवनगर गामकेँ चोरबा गाम कहै छैथ ओहो कोनो खिसिया कऽ नइ कहै छैथ, जँ खिसिया कऽ कहितैथ तँ दोसर रूप होइत मुदा से नहि, ओ सोल्होअना देखल-बुझल बात कहै छैथ तँए ओ सभसँ बेसी बधाइयोक आ धनवादोक पात्र छथिये। तेतबे नहि, जँ इमनदारीसँ देखल जाए तँ ओहूसँ–माने बधाइयो-धनवादसँ– बेसीक पात्र छैथ ओ, किए तँ ओ भवनगरबलाक सभ किरदानी आइयेसँ नहि, सभ दिनेसँ देखैत आबि रहल छैथ जे केना भवनगरबला अनकर पुस्तकालय देखैत-देखैत पसिनगर किताब चोरा कऽ बैगमे रखि लइ छैथ, तँए जँ ओ कहै छैथ ते कोनो अपराध नहियेँ करै छैथ। तहिना ओ- चोरबा आइयेक भवनगरबलाक चालि बुझै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि, सभ दिनसँ देखैतो आ सुनैतो आबिये रहल छैथ जे केना अनतए जा-जा ज्ञान सभ आनि-आनि ओकर चोरी नइ करै छैथ। तहिना आनठामसँ लूरि सभ सेहो चोरा-चोरा अनबे करै छैथ। ई तँ भेल क्लास वन चोर सबहक सूची, दोसर नम्बर फुलवारीक मालिकक लिअ। दरबारक माली बनि जखन आन-आन राज दरबारक फुलवारीसँ ललचगर फूल सबहक बीजो आ गाछो जे किछु देखाइयो कऽ आ किछु नुकाइयो कऽ अनितो रहला अछि आ अखनो आनि-आन फुलवारीमे नइ लगबै छैथ सेहो बात नहियेँ अछि, तँए जँ कियो चोरबा गाम भवनगरकेँ कहै छैन ते भवनगरबलाकेँ मनमे मिसियो भरि दुख किए हेतैन। स्पष्ट हुनका सबहक बुझब छैन जे जँ गोबरखत्तोक फुलाएल कमलक फूल छी तैयो ओ कमले ने भेल।
परिवारक बात छी नहि, गामक बात छी, सुनीता सुचिता, सुशीला आ सुलेखाक जन्म एक्के मुहूर्तमे एक्के दिन भेल। कहब जे जन्म भगवानक देलहा छिऐन तँए ओ असम्भव नहि भेल, मुदा चारूक नामक पहिल अक्षर एक केना भेल आ केना सौंसे गामक दाय-मायकेँ एहेन एकरूपता सुझलैन जे चारू गोरेक नाममे लगा देलैन? मुदा किछु छैथ ते भवनगरक दाय-माय छैथ किने, तँए पोथी-पुराणसँ हटि कऽ थोड़े चलती। भाय, रस्ता दिस कियो विदा हएब आ ई बुझले ने रहत जे केतए जाएब? तखन डेग केम्हर मुहेँ उठत? मुदा से थोड़े भवनगरक दाय-माय छैथ, ओ प्रौढ़, परिपक्व दाय-माय छैथ किने, तँए समयकेँ दू भागमे बॉंटि शुक्ल-कृष्ण दू पक्ष केने छैथ। शुक्ल पक्षमे जन्म भेने चारू गोरेक नामकरण अक्षरसँ केलैन।
शरीर जहिना अनेको गुणो-धर्मक आ अवगुणोक धाम छी तहिना मनो तँ धाम अछिए। अही धामक बीचक गाम भवनगर। चारू वाला- सुनीता, सुचिता, सुशीला आ सुलेखा, गाम भवनगर। बच्चाक बीच जहिना गुण-अवगुण अंकुरावस्थामे रहैए तहिना भवनगरक चारू वालाक सेहो रहल। मिथिलाक गाम तँ भवनगर छीहे, जहिना एक दिस नीतिशास्त्रीयक बोन अछि, तँ दोसर दिस अनीतिशास्त्रक झाड़ सेहो अछिए। खाएर जे अछि, एक तँ ओहुना अपना सबहक दूरभाग रहल जे हजारो बर्खक गुलामीक शिकार रहलौं जइसँ शरीरो आ जिनगियोक खून-पसेनासँ मांस-मांसपेसिया तक चुसा-चबा गेले अछि। पढ़ाइ-लिखाइक जहिना एक दिस दुनियॉंक शीर्षपर मिथिला अछि तहिना ओ समटल रहने आमजनक बीचसँ हजारो कोस दूर रहबे कएल अछि। जँ औझुको हिसाब देखब तँ बुझि पड़त जे पढ़ै-लिखैमे अदहासँ कम अखनो छीहे, तँए मिथिला पछुआ गेल सेहो केना कहल जाएत। एक-सँ-एक योद्धाक पइदायसी स्थल मिथिलाक माटि-पानि आइये नहि, सभ दिनसँ रहैत आबि रहल अछि। जँ से नइ करैत आएल अछि तँ कट्ठा भरि चास-बासमे कियो योद्धा ओहन जिनगी बना बोनमे रहि जीवन भरि ज्ञान जे बँटैत-बिलहैत रहला अछि। तैठाम जँ आइयो मिथिलाक धरती आ मिथिलावासीकेँ हिस्सा लगा देखब तँ ओइ हिसाबे खेते-पथार–माने भूमिये–बेसी अछि। तैठाम जँ उत्तर प्रदेश, पंजाब सन आन प्रदेशमिथिलांचलसँ बाहर जे क्षेत्र बिहार राज्यक अन्तर्गत अछि–तहू सभ राज्यसँ खाइ-पीबैक अनेको वस्तु आबि रहल अछि, ईहो तँ अपने ने देखए पड़त..! मानो तँ मान छी, सबहक छी मुदा स्वमान ने अपन भेल, ईहो देखबै ने।
स्कूलक (विद्यालयक) अभाव आर्थिक तंगीक संग धार-धुरसँ भरल क्षेत्रक भोग आइये नहि, सभ दिनसँ भोगै पड़ल छैन, मुदा तँए एकरा असाध मानि ली सेहो एकैसम सदीक लाजिमी हएत? हँसारतकेँ कियो रोकत? पहिने किछु कम छल, अखन किछु बेसी भऽ गेल अछि, तँए कहब मिथिला क्षेत्रमे लोकक बढ़बारि कम अछि सेहो बात नहियेँ अछि। टुटलो हथिसार तैयो नअ घरक साँगह अछिए। केतबो लोक मिथिलाक धरतीपर सँ किए ने पड़ा जाए, तँए घटबी पूरा नइ हएत सेहो बात नहियेँ अछि। तँए ने बच्चा रोकैक ऑपरेशन धुर-झाड़ चलिये रहल अछि।
एकठाम रहने चारू बच्चा पहिने बहिनक सम्बन्ध सिरजौलक, पछाइत सभ अपनामे बहिना बनि गेल। ता जिनगी बहिन जकॉं निमाहैक निमंत्रण स्वीकार केलक। रस्ता परहक चिक्कन माटिकेँ[iii] घरौदा[iv] बना अपन-अपन अँगना-घरक घरवासो लेलक आ घरवासक भोजो केलक। माटिये-माटि, सभ किछु खाइ-पीबैसँ लऽ कऽ सभ किछु रहइ।
समय बीतल, परिवारक अंग बनैक संग-संग अंग बनब भेल परिवाररूपी गाड़ीक, भलेँ ओ साइकिलक भालटूए जकॉं किए ने हुअए, गामक देवालयक नीपन-बाहरब सभ दिन करए लगल। औझुका जकॉं समय नहि छल, पूजाक फूल पहुँचेबै, जेना- दुर्गापूजामे गामक बाल-बोध सभ भोरे फूल लोढ़ि भगवती स्थान पहुँचैबते अछि, ताधैर ओ अपनाकेँ पूजा करैक अधिकारी नइ बुझैए, ओ बुझैए नरक निवारन चतुर्दशीक उपाससँ लऽ कऽ रामनवमी, कृष्णाष्टमीक उपासक संग सत्-नारायण भगवानक उपास करब, जइसँ पूजाक अधिकारी स्वत: बनि जाइए। उपासक उपरान्त ओ पहिने देव-पूजन करत, पछाइत अपने जलग्रहण करत। नारीक विशेष गुण मिथिलांचलक नारीमे रहल आबि रहल अछि जे पतिक विचारानुकूल संगीक, मुदा आगू कोन रूपे बढ़ब तोहू दिस तँ देखए पड़त।
कनियेँ आगू बाल-विवाह रूकब शुरू भेले छल, दस-बारह बर्खक बीच चारूक बिआह भऽ गेल। जे जेते अगुआ कऽ गाम छोड़लक ओ ओते बेसी कनबो कएल आ कानबो सुनलक। मुदा जे सभसँ पछुआएल ओ कनबे ने कएल। केकरासँ गरदैन जोड़ि कनैत, माए तँ माइये छैथ, हँसू कि कानू, माए माइये जकॉं रहती, तँए सखी-बहिनपाक संग ने कानल आ ने कानब सुनलक, हँसिये-हँसीमे सभ उड़ि गेल। केतए गेल से अपनेटा बुझलक।
समय आगू बढ़ल। तीस बर्खक पछाइत एक-दोसरसँ, मोबाइल भेने सम्पर्क भेल। तैबीच के केतए माने चारू गोरे, रहल से अपने-अपनेटा बुझलक। चारूमे सँ कियो ने केकरो जानि पौलक। सबहक अपन-अपन मन कहै जे हमहींटा जीबै छी, बॉंकी के केतए हेरा-ढेरा गेल तेकर कोनो पतो ने अछि।
चारू गोरेक बीच सम्पर्क-सूत्र बनने नैहरमे भेँट होइक प्रोग्राम बनल। ऐ दुआरे जे जइ धरतीपर बच्चामे चारू जिनगी बहन करैवाली बहिन जकाँ जीबैक संकल्प नेने छी।
चैतक रामनवमी दिनक दिन भेँट होइक ऐ दुआरे बनल जे गाममे ऐबेरक उत्सवमे कम्पीटिशन अछि, तँए देखै-सुनै-जोकर गाम सेहो रहबे करत।
संजोग बनल, चारू गोरे रामनवमी दिन चारू दिससँ पहुँचल। गामक उत्सवक तेहेन हलहोरि चढ़ि गेल जे कोसी-कमला धारसँ बाढ़िक पानि उछलने जहिना गामे फँसि जाइए आ तखुनका जेहेन मन लोकक होइ छै तेहेन तँ नहि, मुदा राम-रमैयाक धुनक बाढ़ि एने गाम-घरक सेखी बदैल तेहेन बनियेँ गेल छल जैबीच सभ अप्पन सभ किछु बिसैर मग्न अछिए। ईहो चारू गोरे अपन-अपन दुख-सुख बिसरिये गेल। किए तँ सबहक नैहरक गाम ने भवनगर छी।
उत्सव समाप्त भेल। चारू अपन-अपन ठौर धड़त। रामनवमीक मेलाक परातक समय छी सभ एकठाम बैस अपन-अपन अतीत जिनगीक गप-सप्प करत। एक तँ ओहुना भवनगर गाम छीहे। सभ अपन अतीत-भविसक विचार केनिहार सभ छथिए, तँए वातावरणमे ओहन विचार बहिये रहल छल, तँए चारूक मन सेहो वातावरणमे मह-महा गेले छल। आन गाम जकॉं भवनगर थोड़े अछि जे बाल विद्यालयमे बच्चा सभकेँ सिखौल जाइए, ‘बौआ सत् बाजब धरम छी’, मुदा सिखौनिहार अपने भरि दिनमे केते निमाहै छैथ से आनकेँ बुझैक कोन खगता छै, मुदा अपनो नइ खगता छैन, सेहो बात तँ नहियेँ अछि।
चारू एकठाम भेल, जिनगीक ऐगला-पैछला सीमा सटि कऽ एकठाम भेल बॉंकी तीस बरख की भेल तेकर ठेकान करैमे बड़ समय लागत तँए बिसरबे नीक। देखते छिऐ जे जे आदमी परिवार-ले भरि दिन रोडपर जिनगी बितबैए। पढ़ले-लिखलटा नहि, जिनगीक अनुभवी रहितो अपन बाल-बच्चाकेँ बुझबै-सुझबैले केते समय कियो पेब रहल अछि, सोचनीय विचार नहि अछि सेहो बात नहि अछि। धनक भरपाइ करैमे सभ जुटल छी, मुदा मनक भरपाइ करैमे किए फुटल छी, से ने बुझब..! खाएर...।
एकठाम होइते सुलेखा बाजल-
भरि जिनगी बहिन जकॉं रहब, से मुदा निमहैत आबि रहल अछि!”
सुलेखापर सुनीता ऑंखि गुरड़ए लागल। मुदा सुचिता ऑंखियेक इशारासँ हँसि देलैन। सुचिताक ऑंखिक हँसीसँ सुनीता बिहुसैत बजली-
बहिन, हँ से तँ अपना-अपना भागक करमे निमहिये गेल  मुदा...।
मुदासुनि सुशीला बाजल-
दीदी, अखन सुलेखेक विचार मानि लियौन। कियो अपना भागक कर्मे जीबैए आकि केकरो आनक कर्मे। सभ अपन-अपन राम-धामकेँ सुमरैत समय बिताइये रहल अछि।
किए सुनीता सुचिता दिस ताकैत आकि सुलेखा दिस अपन विचारकेँ अपना मनेमे गोड़ि आगू जिनगी देखए लागल।
सुलेखाक मोबाइल टनटनाएल। मोबाइलसँ गप-सप्प केला पछाइत सुलेखा बाजल-
हमरा इमरजेंसी भऽ गेल, जाइ छी..!”
चारू गोरे फेर चारि दिस भऽ गेल। भवनगरक जे अखन धरिक गढ़ैन रहल अछि ओ बाल-बोधक भव सदृश्य रहल अछि, जेकरा सियनगर होइमे किछु-ने-किछु समय लगबे करत।
q शब्द संख्या : 2062, तिथि : 15 नवम्बर 2018


[i] अन्न फल इत्यादि
[ii] रखबार
[iii] गरदा माटि
[iv] घर-अँगना