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Saturday, November 4, 2017

इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं A Maithili Novel by Sh. Jagdish Prasad Mandal.



इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं









जगदीश प्रसाद मण्डल




 
















पल्लवी प्रकाशन
निर्मली




leiZ.k Hkko
 



अपना-ले सभ जीबै-मरै छी
अपने-ले जीबैक लूरि सीखू
अपने-आन आनमे अपने
सम समदाउन गाएब सीखू।
अपना-ले सभ...।

सम-समदाउनिक गति सीखिते
दिन, दिन-चरिया बनाएब सीखू।
दिने चरिया चरिये दिनक
दिन-चरिया चलाएब सीखू।
दिन-चरिया...।

सभ चाहैए आगू दौड़ी
दौड़-दौड़ीक रूप बनाएब सीखू।
दौड़ा-दौड़ी करैत-करैत
कुदि समुद्रक टपान सीखू।
कुदि समुद्रक टपान...।








ISBN :  


दाम : ` 251
© श्री जगदीश प्रसाद मण्डल
पहिल संस्करण : 2017

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन
तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली, जिला- सुपौल, 
बिहार : 847452

वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com
मोबाइल : 8539043668, 9931654742

प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)
आवरण : दी साहु प्रिन्टिग प्रेस. निर्मली (सुपौल) पिन : 847452

IZZAT GAMA IZZAT BANCHELAUN
A Maithili Novel by Sh. Jagdish Prasad Mandal.

ऐ पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। काँपीराइट धारक अथबा प्रकाशकक लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवम्‍ रिकॉडिंग सहित इलेक्‍ट्रॉनिक अथवा यांत्रि‍क, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि।
अनुक्रम


एक/08
दू/16

                अंक
तीन/30
चारि/41
पाँच/52
छह/61
सात/73
आठ/83
नअ/95
दस/120








1.
कोलकातासँ खुशीलाल गाम अबैत छल कि स्टेशनेपर रघुवीर भाय भेटलखिन। बेरुका समय, साढ़े चारि बजे ट्रेन आधा घन्टा बिलमसँ तमुरिया स्टेशनपर पहुँचल। छोटकी रेल-पटरी, देशक आजादीक सत्तैर बर्खक पछातियो अंग्रेजी शासनक जे बनौल गेल रेल लाइन छल ओ अखनो जीवित अछिए। चदराबला छोट-छीन मुसाफिरखाना, उभर-खाभर प्लेटफार्म, तैपर लकड़ीक तीन-चारिटा बइसैक ब्रेंच, तहूमे एक-आधटा तख्ता उखड़ले, पानि पीबैले एकटा चापाकल जे सालक तीन मास चलैत बाँकी मास परते रहैत अछि। प्लेटफार्मपर छाहैरक लेल तीन-चारिटा पाखैर आ बरक गाछ अखनो अंग्रेज बहादुरक साक्षात्‍ दृश्य सदृश्य अछिए।
ओना, जखने तमुरिया रेलबे टीशनक पहिल सिंगनल लग गाड़ी पहुँचल कि खुशीलाल गाड़ीक ब्रेंचपर सँ उठि अपन बैगो आ झोरो हाथमे लऽ ट्रेनसँ उतरैक उपक्रममे लागि गेल, मुदा उतरनिहार बेसी रहने खुशीलाल पाछू पड़ि गेल। घोघरडिहा, चिकना स्टेशनक संग बीचमे केतेक ठाम गाड़ी रोकले जाइए आ चढ़निहार-उतरनिहार चैढ़ते-उतैरते अछि। ओना, बीच-बीचमे–माने चिकनासँ घोघरडीहाक बीचमे–गाड़ी रोकैक मजबुरियो लोकमे अछिए। एक तँ दूर-दूरपर स्टेशन तैसंग गाड़ी-सवारीक अभाव रहने लोककेँ पएरे बेसी चलए पड़ै छै जइसँ समैयो अधिक लगै छै आ थकानो होइते छइ। स्टेशनपर गाड़ी पहुँचैसँ पहिने प्लेटफार्मपर जहिना चढ़निहारक भीर लागि जाइत अछि, तहिना गाड़ीक भीतर उतरनिहारो सबहक भीड़ लगिते अछि। तहूमे रौदियाह समय भेने घोघरडीहा तकक लोक दलिहारा चौरसँ घास काटि-काटि गाड़ीए-सँ लऽ जाइत अछि। जइसँ घसवाहक भीड़ आइ-काल्हि सभसँ बेसी भाइये जाइए। ओना गाड़ी रूकैक समय दुइये मिनट अछि मुदा यात्रियोक अँटाबेस हएत तखने ने गाड़ी खुजत। तहूमे यात्रियो तँ यात्री छी। कियो भुखाएल गाए-महींसक चाराधारी तँ कियो लवनचूस-बिस्कुट-शिखर-पान-पराग बेचनिहार वेपारी, कियो सासुर जाइबला धड़फड़ाएल यात्री, तँ कियो गाड़ीमे टाँगल साइकिल उतारनिहार पसिंजर छथिए। सबहक जहिना अपन दुनियाँ-जहान छैन तहिना अपन जिनगी जान सेहो छैन्‍हे। ओना, गाड़ीमे चढ़निहारो एक-सँ-एक छैथ, माने ई जे कियो गाड़ी अबैक दिशाक प्लेटफार्मक कतवाहिमे हियासैत रहैत तँ कियो गाड़ी अबैक विपरीत दिशाक कतवाहिमे ठाढ़ भऽ हियासैत रहै छैथ।
ओना, किछु पसिंजरक ईहो धारणा छैन्हे जे गाड़ीक आगू-पाछू खाली रहैए आ बीचमे बेसी भीड़ भऽ जाइ छै, तँए प्लेटफार्मक ऐगला-पैछला मुँहथैरपर तेकर भीड़ बेसी भाइये जाइए। मुदा ओहन सोचनिहारक नजैरमे ई बात रहबे ने करै छैन जे जखन सभ यएह बुझि गाड़ीमे चढ़त तँ भीड़ बीचमे हएत केना? खाएर.., रघुवीर भाय सेहो एहने खेलाड़ी, तँए प्लेटफार्मक मुँहथइरेपर ठाढ़ भऽ हुलकी दइक खियालसँ ठाढ़ रहैथ। इंजन प्रवेश करिते रघुवीर भाय हुलकी दऽ दऽ गाड़ीकेँ देखए लगला कि दोसरे वौगीमे खुशीलालकेँ देखलखिन। जहिना गामसँ बाहर गौंआँकेँ देख केकरो मन तृप्तिसँ तिरपित हुअ लगैए तहिना रघुवीर भायकेँ सेहो भेलैन। खुशीलालकेँ देखते हाथ उठा इशारा सेहो दिअ लगलखिन मुदा अनचिनहार हाथकेँ लोक चिनहार हाथ किए बुझत।
गाड़ी रूकिते घसवाह सभ तीनटा वौगीक मुँह घेर लेलक। चलिते गाड़ीमे एक गोरे माने एकटा घसवाह कुदि कऽ ऊपर चढ़ि गाड़ीक मुँह दफानि लेलक। गाड़ीसँ उतरनिहार घेरा गेला। निचला घसवाह सभ निच्चासँ घासक बोझ डिब्बामे फेकए लगल। खाएर जे भेल से भेल, मुदा सरकारी धन जखन गाड़ी छी तखन सबहक ने भेल। एते बुधियारी तँ लोकमे आबिये गेल अछि, तँए घसवाहो अपन घासकेँ सेरिया कऽ सैति उतरनिहारक रस्ता छोड़ि देलक।
गाड़ी लागल ठाढ़ रघुवीर भाय सेहो छेलाहे। तइ बिच्चेमे एकटा पसिंजर गाड़ीसँ उतैर निच्चाँ आबि घसवाहकेँ ठिकिया बाजल-
जे खेबा नइ देत ओ ऐगले मांगि बैसत..!”
ओना मरदा-मरदी जे घसवाह छल ओ किछु ने बाजल। किछु ने बजैक कारण भेल जे ओ सभ बाट-घाटक बटमारिकेँ मानि नइ दइए। तँए चुपे रहबकेँ नीक बुझैए। मुदा एकटा घसवाहिनीक मुँह खुजि गेल। बाजल-
अपनो नाहक माँगिपर कियो खेबा दइ छै, जे देबइ।
मुदा रच्छ रहल जे गाड़ी ससैर कऽ कनी आगू बढ़ि गेल।
खुशीलाल गाड़ीसँ उतैर कन्हामे बैग टाँगि हाथमे झोरा लटका घरमुहाँ हुअ लगल कि रघुवीर भाय धड़फड़ाइत कहलखिन-
खुशीलाल, गाम नहि जा। केतौ जे लग-पासमे कुटमैती आकि दोसतियारे हुअ तँ तैठाम चलि जा।
कहि रघुवीर एक हाथसँ ढेका सम्हारैत दोसर हाथमे झोरा नेने ऐगला कोठरी दिस दौड़ैत गाड़ीक पैदान पकैड़ लेलैन। ओना, पाछूसँ खुशीलाल बेर-बेर पुछैत रहलैन जे से की, से की रघुवीर भाय। मुदा रघुवीर भाय खुशीलालक बात सुनबे ने केलैन आकि सुनि कऽ अनठा देलैन से तँ ओ जानैथ। खुशीलालकेँ बुझि पड़ल जे रघुवीर भाइक मन अपचंग छैन।
सकरीसँ पूबक रेलक यात्री उन्नैस साए बिआलिसक आन्दोलनक ढाठी अखनो धेनहि छैथ तँए सकरी-निर्मलीक बीचमे कम लोक गाड़ीक टिकट कटौनिहार छैथ बाकी स्वतंत्र देशक स्वतंत्र नागरिक छथिए। रहबो केना ने करता! एक दिस दुनियाँक महाशक्ति देश भारत, दोसर दिस पछुएलहा देश। सभ अपन जहिना एक दिस जलोक मार्गकेँ नीकसँ बेवस्थित केने अछि, तहिना दोसर दिस थल मार्गक संग अकास मार्गक सुविधा सेहो प्राप्त केनहि अछि! खाएर जे अछि से अछि, मुदा मिथिलांचलक धरोहर रेल तँ छीहे से जहिया धरि रहए। ओना, रघुवीर भायकेँ घसवाह सभ एते पुछबे केलकैन-
भाय, तमाकू खाइ छी।
रघुवीर भाय अपनो टिकट नहियेँ कटौने छला तँए घसवाहक संग भैयारी लागिये गेल रहैन। बजला-
तोरा सबहक हाथ अखन तमाकुल चुनबैबला नइ हेतह। घासक छू-छा केने छह, तँए हमहीं लगा कऽ खुआ दइ छिअ। केते गोरे खाइ छह?”
ओना, गिनतीमे घसवाह सभ सक-सका गेल किए तँ जहिना तीनू मरद तमाकुल खाइत तहिना तीनू जनानी सेहो खाइत। मुदा तमाकुले सन तुच्छ वौस-ले दस गोरेक बीच बाजब नीक नहि बुझलक, तँए जनानीक गिनती ई सोचि छोड़ि देलक जे मरदे-मरदी कनी बेसिया कऽ जुम लऽ लेब आ तीनू गोरे तीनू गोरेकेँ चुपचाप हाथ बढ़ा कऽ दऽ देबइ। तइसँ दुनू काज भऽ जाएत। ..एकटा घसवाह बाजल-
भाय, खाइ तँ छी तीनियेँ गोरे मुदा बुझिते छिऐ जे हम सभ अलपुरिया छी, तँए जूम कनी नमहर होइते अछि।
ओना रघुवीर भाइक मन अपचंग भेल रहैन मुदा तैयो अपनाकेँ अप्पन विचारमे दाबि घसवाह संगे गपो-सप्प करए लगला आ तरहत्थीपर तमाकुल-चुन मिला रगड़ौ लगला। गप-सप्पकेँ आगू बढ़बैत रघुवीर भाय बजला-
भाय, अनेरूआ घास जे पानिमे सँ काटि-काटि मालकेँ खुआबै छह से कोनो अबघातो मालकेँ करतह?”
रघुवीर भाइक विचार सुनि छबो घसवाह थकथका गेल मुदा लचारो तँ विचारकेँ खाइते अछि। एकटा घसवाह बाजल-
भाय, कहलौं तँ जीवनियेँ जकाँ मुदा की करबै। तेहेन समय आ तेहेन बाइढ़िक इलाकामे रहै छी जे जमीनक शेखीए खतम भऽ गेल अछि। तैपर रौदी अछि।
तैबीच सातो गोरे तमाकुलक पहिल थूक फेकलक। रघुवीर भाय अपन मनक बात बजला-
भाय, तूँ सभ मालक पीठपोहू छह, कहुना-ने-कहुना पशुधनकेँ बँचाइये लेबह मुदा...।
रघुवीर भाइक मुदा सुनि एकटा घसवाह बाजल-
से की, से की भाय?”
ओना, अपन विचारकेँ रघुवीर भाय बाजए नइ चाहै छला। नइ बजैक कारण मनमे थाना-पुलिस छेलैन आकि गाम-परिवारक इज्जत, से तँ ओ जानैथ मुदा घसवाहक मनमे भेल जे भरिसक हमरे सभ जकाँ ईहो गाए-महींस पोसनिहार जरूर छैथ। एकटा घसवाह बाजल-
भाय, केतए तक जाएब?”
घसवाहक बात सुनि रघुवीर भाय सकपकेला। सकपकाइक कारण भेलैन जे चिकनासँ पूब निर्मली तक मिला सातटा कुटुमैती अछि, कोन गामक नाओं कहबै। जँ कोनो काजे (माने नौत-पिहाने) जाइत रहितौं तँ जैठामक रहैत तैठामक नाओं कहितिऐ, मुदा से तँ नहि अछि, तखन कोन गामक नाओं कहबै। ओना मनमे डर पैसल रहने रघुवीर भाय विचारि नेने छला जे थाना कातक गामसँ कनी हटले रहब। ..जोगी जकाँ रघुवीर भाय बजला-
भाय, इलाका की हेराएल अछि जे कोनो गामक नाओं फुटा कऽ कहबह। जेतए धड़ तेतए घर।
चिकना पहुँचते घसवाह सभ उतैर गेल। गाड़ीक सीटो खाली भेल। रघुवीर भाय सीटपर जा बैसला।
तमुरिया स्टेशनसँ गाड़ी बाहर भऽ गेल। प्लेटफार्मपर खुशीलाल गौंआँ-घरूआकेँ हियासए लगल जे कियो जँ भेटता तँ रघुवीर भाइक देल विचारकेँ नीक जकाँ बुझि लेब। ओना, जखने खुशीलाल रघुवीर भाइक मुहेँ गाम-जाइसँ मनाहीक बात सुनलक तखने मन सनाक-दे ऊपर चढ़ि गेलइ। तँए मन थीरे ने होइ। मुदा खुशीलालक नजैरपर कियो गौंआँ नइ चढ़लखिन। कन्हामे बैग आ हाथमे झोरा लटकौने चारूकात चकोना होइत खुशीलाल स्टेशनसँ बाहर भेल।
देशक आजादीक आन्दोलनमे मिथिलांचलक भरपूर जोगदान रहल। गोरा-पलटनक हाथे केतेको गाम जरौल गेल, केतेको गाम लूटलो गेल, केतेको लोक जहलो गेला, केतेको गोरे मारियो खेलैन, एते तक कि केतेक गोरे गोली सेहो खेलैन। एक दिस देश स्वतंत्र भेने देशवासीकेँ गुलामीसँ मुक्ति भेटल, आ दोसर दिस पुलिस-पलटनक दमनक कुप्रभाव समाजक संस्कारमे सेहो पड़ल। जइसँ अखनो गाम-घरमे रघुवीर भाय सन लोक छथिए जे थाना-पुलिसक आ कोर्ट-कचहरीक नाओं सुनि गामसँ डरे पड़ेबे करै छैथ। मुदा खुशीलाल तीन सालपर कोलकातासँ गाम घुमि रहल अछि। एक तँ कोलकाता सन शहरक जिनगी तैपर दिनानुदिनक घटना-परिघटना आ पुलिसक छान-बीन सेहो तीन सालसँ खुशीलाल देखिये चुकल छल तँए नव विचार मनमे आबि गेल छेलइ।
ओना, खुशीलाल मैट्रिक पास केला पछाइत गामसँ निकलल छल मुदा कोलकातामे नोकरीक दौरान स्कूली शिक्षा तँ छुटिये गेलै, मुदा बाहरी कहियौ आकि जिनगीक कहियौ, ओ तँ आबिये रहल छेलइ। ओना, ओहूमे ई जरूर छल जे अपना आँखिये खाली अनकर देखने छल, अपना सिरे अपन नइ देखने छल। तँए आगिमे तपाओल सोना जकाँ नहियेँ भेल छल मुदा सोन सन बुधि नइ आएल छेलै सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। गामक परिवेश आ शहरक परिवेशमे अन्तर अछिए। गाम आ शहरक एक बात भेल मुदा शहरो-शहर आ गामो-गामक परिवेश एके रंग अछि सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। मुदा से अखन नहि, अखन एतबे जे गामसँ शहर तक देखनिहार खुशीलालकेँ अपन जीवन दर्शनक रस्ता जरूर भेट चुकल छेलै मुदा समाजक बीच ओकरा स्थापित करब बाल-बोधक खेल तँ नहि।
स्टेशनसँ निकलला पछाइत जहिना खुशीलालक मन गाम जाइले तनफन करैत तहिना दोसर दिस रघुवीर भाइक बातसँ मन हिचकियेबो करैत रहइ। गुनधुन करैत खुशीलालक मनमे उठल- अधखिज्जू बात रघुवीर भाय बजला, से नइ तँ लगेक गाम अपनो छी, भऽ सकैए जे कोनो तेहेन घटना भेल होइ जइसँ रघुवीर भाइ मनाही केलैन, तँए किए ने केकरोसँ पुछि ली।
केकरोसँ पुछि ली मनमे ऐबते खुशीलालक विचार आगू-पाछू करए लगल। आगू-पाछू करैक कारण भेल गामो तँ गाम छी। कोनो गाममे आगि लगैए आ कोनो गामक लोक आगि मिझबैक नामपर गामक सम्पैतक चोरी सेहो करैए आ लूटबो करैए, मुदा जे अछि से वएह रहह। एक बेकतीसँ पुछलापर कोनो भ्रम (वैचारिक भ्रम) उठि कऽ ठाढ़ होइए मुदा जँ एकसँ अधिक बेकतीसँ पुछि ली। ओना जेते मुँह तेते रंगक बात ऐबते अछि मुदा वएह अनेक रंग ने अपनो मनकेँ एक रंग तक पहुँचा दइए...।
अन्तो-अन्त खुशीलाल विचारि लेलक जे जे राम से राम, अपन गाम छी, जेबे करब। जिनगीमे जखन जीवित ठाढ़ छी तखन जँ हवा-बिहाड़िक डर करब तँ जीब केना पएब। तहूमे अपन बाप-पुरखाक इतिहासक खतियानक खतियाएल गाम अछिए जे आइ धरि जेते आगि-पानि, पाथर-ठनका धरतीपर खसल आ नष्ट केलक, तइमे हमहूँ ओही इतिहास-पुरुखक वंशज ने छी जे आइयो धरि जीवित धरतीपर अछिए।
कन्हामे बैग आ हाथमे झोरा लटकौने खुशीलाल रेलबेक हातासँ बाहर भेल।
शब्द संख्या : 1630, तिथि : 14 सितम्बर 2017




2.
दस डेग आगू बढ़िते खुशीलालक नजैर सिंहेसर काकापर पड़लैन। माथपर गमछा आ हाथमे झोरा नेने सिंहेसर काका हाट जाइ छला। आगूए-सँ खुशीलाल बाजल-
काका, गोड़ लगै छी!”
उमरदार सिंहेसर काका, खुशीलालक बदलल चेहरा देख नीक जकाँ चिन्ह नइ सकला। मुदा उमरदारकेँ अपनेटा परिवारक लोक प्रणाम नहि करै छैन बल्कि समाजक आनो-आन करिते अछि, तँए बिनु चिन्हनौं खुशीलालकेँ असीरवाद दैत बजला-
भगवान नीके रखथुन।
खुशीलाल बुझि गेल जे सिंहेसर काका नहि चिन्हलैन। अपन चिन्हारे दैत खुशीलाल फेर बाजल-
काका, हम खुशिया छी।
खुशिया सुनि अख्यासि कऽ सिंहेसर काका बजला-
खुशीलाल! तोहर तँ रूपे-रंग बदैल गेलह।
सिंहेसर कक्काक बात सुनि खुशीलालक मन उमैड़ गेल। बाजल- काका, केतए जाइ छिऐ?”
अपशोच करैत सिंहेसर काका बजला-
बौआ, की कहबह! तेहेन ने समए भऽ गेल जे तीमन-तरकारी दुआरे भरि पेट खाइ नइ छी।
खुशीलाल बाजल- से किए काका? अच्छा गप-सप्प होइत रहतै। ताबे अही दुभिपर बैस एकटा कलकतिया बिस्कुट खाउ।
कलकतिया बिस्कुट सुनि सिंहेसर काका अतीतमे वौआ गेला। पाँच साल पहिने रघुनन्दन खुएने रहैन...।
दुनू गोरे रस्ताक बगलेक दुभिपर बैसला। बैसते खुशीलाल बैगकेँ खोलए लगला कि आत्म विह्वल होइत सिंहेसर काका बजला-
बौआ, बिआह तँ नइ भेल छह?”
सिंहेसर कक्काक बात सुनिते खुशीलालक मनमे जेना जोरसँ धक्का लगल। धक्काक कारण भेल जे जइ बैचमे खुशीलाल मैट्रिक पास केलक ओइ बैचक सभकेँ बिआह भऽ गेल। नीक परिवार–माने अर्थक सुभियस्त–सँ लऽ कऽ मध्यम परिवारक ओ सभ छल। मुदा खुशीलाल गरीब बोनिहारक बेटा, जइसँ बिआह नइ भेलइ। गाम-घरक लोक हजारो रंगक ताना मारिते रहइ। तानाक परिस्थितियो बनले रहइ। ओना, माइयो-बाप अपने बोइन करैले तैयार रहै मुदा पढ़ल-लिखल बेटाकेँ खेते-खेते बोइन करैमे अपनाकेँ तौहीन बुझइ। एक तँ ओहुना खुशीलाल सोल्होअना समय पढ़ैयेमे बितौलक। पढ़ैमे बितबैक कारण छेलै जे ने अपना परिवारमे कोनो काज छेलै आ ने नव कोनो काज ठाढ़ करैक उहि रहइ। उहियो केना होइत, जैठाम आनो-आन परिवारक वएह स्थिति छेलै, तैठाम देखा-देखीक प्रभावो केना पड़ैत। दोसर ईहो छेलै जे अपनो आगूक जिनगीक बाट ओते फरिच भऽ कऽ नहि देखैत छल, जेते देखला पछाइत लोककेँ अपन चेतना जगै छइ। ओना, खुशीलालक मनमे एतेक जरूर छेलै जे जइ समाजमे हमरा सन लोककेँ एतबो पूछ नहि जे बिआहो होइत, तैठामक समाजकेँ हमहूँ देखा देबै जे खुशीलाल घरोवाली रखै-जोकर अछि कि नहि...।
जगैत आत्मवले खुशीलाल बाजल-
काका, बिआह करै-जोकर नइ भेल छेलौं तँए बिआह नइ भेल, आब बिआहोक उमेर भेल आ गामेमे रहैक विचार सेहो अछिए।
ओना सिंहेसर कक्काक मन परदेशिया परिवारक स्थिति आ गमैया लोकक स्थितिमे अकास-पतालक अन्तर देखबे करैत, तँए मनमे रहैन जे परदेशमे काज केनिहारक स्थिति गमैया लोकसँ बेसी नीक छइहे।  बजला-
गामसँ नीक बाहरेक नोकरी करब हेतह। अनेरे गाममे किए आबि दुख-तकलीफ कटबह।
नव विचारक संग नव जिज्ञासाक लोक खुशीलाल भाइये गेल छल तँए सिंहेसर कक्काक विचारकेँ हलके-फुलके मनमे लैत, विचारकेँ बदलैत बाजल-
काका, गामेक एक गोरे कहला जे गाम नहि जाह। से गाममे किछु भेल हेन?”
सिंहेसर काका सोझ-साझ लोक। अपन घर-परिवारक काजमे भरि दिन लागल रहने आन-आन लोकसँ कम गप-सप्प होनि, जइसँ गामक सभ गपक जनतब नइ होइन। बजला-
नहि! गाममे कहाँ किछु भेल अछि। हमहूँ तँ गामेमे छी, कहाँ किछु कियो कहलक अछि।
सिंहेसर कक्काक बात सुनि खुशीलालक मन ओहिना छनछनाए लगलै जहिना गरम लोहापर पानि पड़ने छनछनाइए। अखन धरि खुशीलालक मन रघुवीर भाइक बात सुनि भीतरे-भीतर वौआ रहल छल जइसँ सिंहेसर कक्काक बात पानि जकाँ बुझि पड़लै। बैगक मुँह खोलि खुशीलाल बिस्कुटपर नजैर देलक कि नुनहो आ मीठहो बिस्कुटक डिब्बा देखलक। ओना पहिने हाथ नोनहे बिस्कुटपर गेलै मुदा खुशीलालक मनक विचार रोकि देलकै। मनमे उठलै- बेरुका समए छी, गामसँ सिंहेसर काका पएरे एला अछि, जँ कहीं पियास लगल होनि तखन तँ नोनहा बिस्कुट कुपथे हएत किने, तहूमे जँ गोटे लूगिया मिरचाइक बीआ मुँहमे पड़ि जेतैन तखन तँ आरो छटपटा कऽ पानि पीबैले विदा हेता। तखन गप-सप्प केकरासँ करब। तँए नोनहा बिस्कुटपर सँ हाथ हटबैत मीठहा बिस्कुटपर देलक। नीक बिस्कुट रहबे करइ। दू डिब्बा बिस्कुट निकालि एकटा अपनो लेलक आ एकटा सिंहेसरो कक्काक हाथमे देलकैन।
हाथक डिब्बामे सँ एकटा बिस्कुट खाइते सिंहेसर कक्काक मन मीठा गेलैन। बजला-
बौआ, गाम कि आब गाम रहल, नीक-नीक मैनजन मरि-मरि गेल, काँची-पीची मैनजन भेल।
सिंहेसर कक्काक बात सुनि खुशीलाल भभा कऽ हँसैत बाजल-
से की काका?”
सिंहेसर काका बजला-
हौ बौआ, नीक-नीक जेते लोक गाममे छला से ते गामसँ बहरा गेला, आ गाममे रहि गेल सभटा कौआ-कुकुर, जे सुगरक गोबर जकाँ ने नीपै जोकरक अछि आ ने पोतै जोकरक!”
ओना, सिंहेसर कक्काक मनमे बजैक क्रम जे रहल होनि मुदा खुशीलाल बुझलक जे भरिसक काका ओ बात कहि रहला अछि जे गामक ओ बुधि जे दुनियाँ तँ टहैल रहल अछि मुदा अपन मातृभूमिक सेवा करैकाल पथरा जाइए। अखन धरिक जे गीत-नाद वा कथा-पिहानी मिथिलांचलक रहल ओ समृद्धशाली मिथिलाक रहल मुदा ओइ समृद्धशीलतामे कनबह केतए भऽ गेल अछि जे जे मिथिला बाढ़ि-रौदीक संग अशिक्षा आ भूखसँ तबाह अछि, जेतए ने उत्तम स्वास्थ्य बेवस्था अछि आ ने उत्तम आवासक। मुदा अखनो हम ओकरा कोन नजरिये देख रहल छी। तेतबे नहि, ऐठामक भाषाक दुर्भाग्य बनि रहल अछि जे गामक-गाम आ परिवारक-परिवार भाषा क्षेत्रसँ पड़ाइन कऽ रहल छैथ! आन भाषा आ बेवहारक क्षेत्रमे रहि अपन भाषा आ अपन संस्कृतिक गुणगान केतेक उपयोगी हएत..?
तहीकाल बचनू भाय स्टेशने दिससँ अबैत दुनू गोरे-लग पहुँचला। सिंहेसर काका बचनू भायकेँ देखते बजला-
बौआ खुशी, जेकरे नाम गुलाब छड़ी सहए चलि आएल।
सिंहेसर कक्काक बात सुनि बचनू भाय बजला-
काका, हम कोन जोकरक छी जे गुलाब छड़ी बनब।
जेना सिंहेसरो कक्काक जीहेपर रहैन तहिना बजला-
सबै नचाबे राम गोसाई।
तइ बिच्चेमे खुशीलाल बचनू दिस तकैत बाजल-
गोड़ लगै छी भाय। बैसू अहूँ भोजमे शामिल होउ।
कहि बैगमे सँ बिस्कुटक एकटा डिब्बा खुशीलाल आरो निकाललक। बचनूओ भाय तीन कोनियाँ बनि बैस गेला। बैसते बिस्कुटक डिब्बा हाथमे लैत बजला-
खुशीलाल, आब ते तूँ फुटि कऽ जुआन भऽ गेलह। हमरा भाँजमे तोरे सन हड़गर-कटगर एकटा लड़की अछि, जँ कहह ते हम ओइमे भीरी।
अपन बेवसी देखबैत खुशीलाल बाजल-
भाय, तीन सालपर गाम एलौं हेन। आब गामेमे रहब। अहाँ सभ गाममे रहै छी, एक नजैर देखैत रहब।
बचनू भाय बजला- बौआ खुशी, तोरा कहने आ नइ कहने देखब। तूँ गाममे नइ रहै छह, मुदा सिंहेसर काका तँ रहै छैथ।
अपन नाओं सुनिते सिंहेसर काका मुड़ी डोला स्वीकारलैन। मुदा मुहसँ किछु बजला नहि। नइ बजैक कारण भेलैन जे बिस्कुट मुँहमे रहैन। ओना, खाइकाल केते लोक नहियोँ बजै छैथ। नइ बजैक कारण सेहो अपन-अपन होइत अछि।
मुदा ऐठाम सिंहेसर कक्काक संग से नइ छेलैन। मनमे ऐबते छेलैन जे जैठाम हँ-नइ मे जवाब देल जाएत तैठाम इशारोसँ काज चलि सकैए, मुदा जैठाम अनेक शब्दक जोड़सँ जवाब देल जाएत तैठाम असोकर्ज तँ भाइये जाइए। ओना, खेबाकाल नइ बजैक कारणो अछि, पहिल अछि जे राज-दरबारमे जखन जन-विरोधी कानून बनै छल तखन मंत्री-संत्रीक बीच खाइ-पीबैक ओरियान होइ छल, आ खाइ-पीबै काल प्रतिबन्ध छल जे कियो मुहसँ नहि बाजि खाली हूँहकारी दऽ सकै छैथ। जइसँ जन-विरोधी कानून बनैमे असान होइ छल। मुदा खेबाकाल नइ बजैक दोसरो पक्ष अछि। ओ अछि जे जे किछु भोजन आगूमे आबि जाए ओ संतोषदाता भगवान छैथ तँए हुनकर अवहेलना ने होइन।
खाएर जे अछि से अछि, मुदा सिंहेसर काका पानि जकाँ जेहने ऊपर स्वच्छ-निरमल छैथ, तेहने भीतरसँ स्वच्छ-निरमल तँ छथिए। जइसँ गामक जे काट-मार अछि से सभ नइ बुझै छैथ। नइ बुझैक कारण एकटा ईहो अछि जे गामक सभ बेकती हिनका-दे बुझै छैन जे सिंहेसर कक्काक कानमे गेने बात प्रचार भऽ जाएत, तँए हुनका लग बाजब नीक नहि।
अपन अखन धरिक जिनगीकेँ साबुनसँ साफ होइत देख बचनू भाइक मन सेहो पवित्र भेलैन, बजला-
काका, जखन बिस्कुट खाइये लेलौं तखन अनेरे रस्तापर बैस केकरो रस्ता रोकने रहबै सेहो नीक नहि। जखन तीनू गौंए छी, तखन किए ने डेगे-डेग गाम दिस चलबो करब आ गपो-सप्प करब।
गाम दिस चलब सुनि सिंहेसर काका बजला-
बौआ, हम ते हाट जाइ छी। हाटसँ घुमब तखन गाम जाएब। 
सिंहेसर काका हाट दिस विदा भेला आ बचनू भाइक संग खुशीलाल गाम दिस विदा भेल।
बचनू समाजक ओहन लोक छैथ जे अपन काज गदहोपर चढ़ि सम्हारबकेँ नीके बुझै छैथ तँए नीक-अधलाक विचार मनसँ उठि गेल छैन। जेतए लाभ हएत ओतए पहुँचब दिन-दिनक किरदानी छैन्‍हे। ओना, मनुखो तँ मनुखे छी, जे पशुए जकाँ कखनो मनुखाहो बनि जाइए आ कखनो मरखाह सेहो बनियेँ जाइए। देखते छी जे गजेरी तड़िपीबाकेँ निन्दा करैए आ तड़िपीबा गजेरीकेँ। एकटा एकटाकेँ फोकटिया-नशेरी बुझैए तँ एकटा एकटाकेँ इज्जतखोर कहिते अछि। मुदा तेसर तँ दुनूकेँ नशाखोरे ने बुझत।
दस डेग सिंहेसरो काका आगू बढ़ला आ दस डेग खुशीलालो दुनू गोरे आगू बढ़ल। दुइये गोरे रहने अपन अनुकूल समय पेब बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, समाजक लोक जनै छैथ जे कोनो साल एहेन नइ होइए जइ साल दस-बीस जोड़ाक बिआह नइ करबै छी। ओना, कियो-कियो घटको आ कियो-कियो दलालो कहिते अछि, मुदा तेकर जँ लाज-संकोच करब तखन लोकक उपकार हएत।
दस-बीस जोड़ाक बिआहक बात सुनि खुशीलालक मन जरि-जरि कऽ खखसियाह हुअ लगल। खखसियाह होइक कारण खुशीलालक मनमे उठि गेलै जे हमहूँ तँ अही समाजक बेटा छेलौं। किए लोक दुसि कऽ हटैक गेल, जइसँ बिआहे ने भेल। मुदा पैछला जिनगीकेँ अतीत बुझि खुशीलाल मनेमे रखि बाजल-
बचनू भाय, स्टेशनपर एक गोरे गाम जाइसँ मनाही केलैन, से किए?”
खुशीलालक बात सुनि बचनू भाय ठमकला। ठमकैक कारण जे भेल होनि मुदा ठमकल रहला नहि। पुछलखिन-
अपने गौंआँ छला?”
खुशीलाल-
हँ।
बचनू भाय-
के छला?”
खुशीलाल-
रघुवीर भाय।
बचनू भायकेँ जेना किछु मन पड़लैन तहिना अकचकाइत बजला- एहेन ने कोनो बात अछि आ ने घटना। भने दुनू भाँइ छीहे रस्ते-रस्ते चलबो करब आ गपो-सप्प करब।
बचनू भाइक बात सुनि खुशीलालक मन थीर भेल। बाजल-
रघुवीर भायकेँ देखलयैन जे एकदम हकासल-पियासल छैथ। जेना मन उड़ल होनि तहिना बुझि पड़ल। गाड़ी पकैड़ केतौ भागल-पड़ाएल जाइ छला।
खुशीलालक बातकेँ मटियबैत बचनू भाय बजला-
सभ रंगक लोक ने समाजमे अछि, कियो किछु उनटा-सीधा कहि देने हेतैन जइसँ डर पैस गेल हेतैन, तँए केतौ पड़ाएल जाइत हेता।
ओना, खुशीलालक नव-निरमित चरित्र बचनू भाय आँकि नेने छला। मुदा ओकरा उपयोग केना कएल जाए, ई मनमे घुरियाइत रहैन। तइ बिच्चेमे खुशीलाल बाजल-
अखनो एहेन लोक समाजमे छथिये!”
खुशीलालक बात सुनि बचनू भाय बजला-
जखन मेघे फाटल अछि तखन दरजी केते सीअत। खाएर जेतऽ जे अछि से रहह। अखन अपना सभ दुइये गोरे छी, तँए दुनू गोरे एकठाम रहि एक-विचारसँ केना चलब, से विचार करह।
बचनू भाइक बात खुशीलालकेँ नीक बुझि पड़लै, बाजल-
भाय, तीन साल कलकत्तामे रहि बहुत किछु दुनियाँक हवो-बिहाड़ि देखलौं-सुनलौं आ किछु-किछु सीखबो केलौं। आब अहीं सबहक संग गामेमे रहब, रहए दी वा भगा दी।
गामेमे रहब सुनि बचनू भाय बजला-
तोरे सन-सन नवकवरिया लोकक खगता गामोमे छइ। कहुना भेलह ते पुरना मैट्रिक पास भेलह किने। नवका सभ ने घूस-घास दऽ कऽ पास कऽ लइए आ नोकरी पाछू वौआइत रहैए। खाएर जे करैए से अपना-ले करैए। मुदा ई जे कहलह जे गाममे रहए दी वा भगा दी, से एहनो केतौ भेल अछि।
ओना बजैक क्रममे बचनू भाय बाजि गेला मुदा भीतरे-भीतर मन कहए लगलैन जे एहेन तँ आइये नहि सभ दिनसँ होइत आबि रहल अछि। बेकती आ परिवारक कोन गप जे गामक गामकेँ लोक भगेबो केलक आ बसेबो केलक अछि। जँ से नइ अछि तँ घराड़ीकेँ करमुक्त किए कएल गेल। मुदा आब देश स्वतंत्र अछि। हम सभ स्वतंत्र देशक नागरिक छी...।
स्वतंत्र देशक नागरीक छी मनमे ऐबते बचनूक विचार उनैट गेलैन। मनमे उठलैन- ओना, कहैटा ले स्वतंत्र देशक स्वतंत्र नागरीक छी मुदा वास्तवमे छी नहि। आँखिक सोझमे अपनो छी आ समाजो अछिए।
ओना, बचनू भाइक विचार सुनि नवनिरमित खुशीलालक मनमे एते तँ उठबे कएल जे आइ धरिक जे इतिहास रहल ओ यएह ने रहल अछि जे एक-देश दोसर देशकेँ गुलाम बना ओकर धन-सम्पैत, इज्जत-आबरू लूटैत रहल। से कोनो एक्केटा देश दोसरकेँ केलक तेतबे नइ अछि। एकसँ अधिक देश एकठाम मिलि दोसर देशकेँ हड़ैप अपनामे सभ बनदरो-बाँट नइ केने अछि, एकरा नकारल थोड़े जाएत। ओना कहैले ई इतिहासक पन्ना भेल मुदा तँए कि अखन नइ भऽ रहल अछि सेहो बात तँ नहियेँ अछि। मशीनीकरण भेने जहिना उत्पादन शक्ति सभकेँ बढ़ल, माने जइ देशक जेहेन तेज मशीन तेकर तेहेन शक्ति बढ़ल। से कोनो कि एक्केटा क्षेत्रमे कार्यान्वित भेल, सेहो बात नहि। पछुआएल देशक जहिना सभ किछु पछुआएल चलै छै, तहिना ने ओकर सैन्यवल सेहो पछुआएल अछि जइसँ ओ देश आइक दौड़मे कमजोर अछिए, जेकरा शक्तिशाली सैन्यवलबला देश अपन सैन्यशक्तिसँ गुलाम बना ओकर सभ किछु लुटिये रहल अछि। वौद्धिक क्षेत्रमे दुनियाँ आगू बढ़ल अछि मुदा तँए ओकर वास्तविकता मेटा गेलै सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। अखनो मनुख-मनुखमे ओ दूरी ओहिना बनल आबि रहल अछि जेहेन अदौसँ रहल। जइसँ समाज कहियौ कि देश आकि दुनियाँक मनुखक बीच, दूरी बनले अछि। एक-दोसराक श्रमकेँ लूटि अपन उपयोग काइये रहल अछि। तँए जहिना लूटैबला प्राणपनसँ लूटै पाछू बेहाल अछि तहिना लूटेनिहारोकेँ अपन श्रमक रक्षा लेल प्राणपन रौपए पड़त। जखन आइये नहि, सभ दिनसँ गामक सबहक पूर्वज समाज बनि एक निश्चित भूभागपर गाम बना गौंआँ-समाज बनि जिनगी गूदस करैत आबि रहला अछि तखन सभ ने बुझता जे गाम-समाजसँ लऽ कऽ देश-दुनियाँक समाज, सभ मनुखेक समाज छी। जखन मनुख वुधि-विवेकी पुरुष भेला तखन तँ अपनो वुधि-विवेकक उपयोग करता किने। बचनू भाइक विचार सुनि खुशीलालकेँ मनक सोनिहारीमे एकटा सोन्हि भेटल। ओही सोन्हिमे अपन ऐगला जिनगीकेँ सेहो देखलक।
खुशीलाल बाजल- भाय, आब तँ गाम आबिये गेलौं। लोक-लोकक बीच भजारीपन तँ लोकपने मे ने होइ छइ।
लोकपन सुनि बचनू भाय खुशीलालक मनकेँ नीकसँ टोबए लगला। ओना, खुशीलालक चालि-ढालि आ बात-विचार गमैया लोकक अपेक्षा सकताएल बुझि पड़लैन मुदा अपन मातृभूमिक जिनगी आ आनक भूमिक जिनगीमे सक्कतपनमे कनी अन्तर होइते अछि। मुदा भूमियोसँ इतर ने भूमिपति भेला जे पानियोँसँ पवित्र कोमल किसलयसँ लऽ कऽ पहाड़क पाथरे जकाँ निरमित छथिए। तँए भूतकेँ सूत बुझि अपन जिनगीकेँ बीर्तमान बुझि वर्तमान बना आगू चलता। दुनियाँ बदलने–माने आगू बढ़ने–सभ किछु ने अपन रूप सेहो बदलबे करैए जइसँ आरो बेसी नीक होइत आगू बढ़ैए। ओना जइ काजमे बचनू भाय हाथ लगौने छैथ ओ काजो नमहर अछि। नमहर काज-ले बेसी लोकक खगता होइते छै, माने भारी काज-ले भारी शक्तिक जरूरत पड़िते छइ। जे बचनूओ भाय बुझिते छैथ। दोसर, ईहो जे जखन सभ अपने-अपने कमाइसँ जीवन धारण केने चलै छैथ तखन केकरो, केकरो संग अनोने-विसनोन किए हएत..?
बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, केकरो प्रतिभाकेँ कियो भावमे नहियेँ लेता तँ की ओ प्रतिभा पानिमे सड़ि थोड़े जाएत! तखन तँ ई जरूरी अछिए जे प्रतिभावान बनैले प्रतिभाशील पहिने बनए पड़ै छइ।
बचनू भाय अपना विचारे की बजला से बचनू, भाय जानैथ मुदा खुशीलालक बिसवास बचनू भाइक प्रति जरूर जगलै। बाजल-
भाय साहैब, तीन सालसँ कोलकातामे देखैत एलिऐ हेन जे सौ-सैंकड़ा आकि लाख-करोड़केँ के कहए जे अरब-खरबक कारोवार ओतए मुँह-जुआनीए होइए आ गाम-घरमे देखै छी जे सहोदरो भैयारीमे खरब-अरबक कोन बात जे दुइयो-चारि रूपैआ-ले एक-दोसरकेँ कहैए जे तूँ बेइमान तँ तूँ बेइमान!”
खुशीलालक बात सुनि बचनू भाइक मनमे थोड़ेक कचोट जरूर भेलैन मुदा विचारमे सच्चाइ देख बाजल- हँ से तँ अछिए, मुदा तइमे जेते दोख लोहाक अछि ओते लोहारोक अछिए। ओना, गामो तँ गामे छी, केमहर मुँह छै आ केमहर नाँगैर से जाबे गौंआँ नइ बुझता ताबे तक एना हेबे करत किने।
बचनू भाइक विचार सुनि खुशीलालकेँ जेना किछु भेट गेल होइ तहिना मुस्कियाइत बाजल-
मुदा..!”  
तैपर बचनू भाय बजला-
जाबे, अपन बाबा-दादाक गीतक संग अनको बाप-दादक गीतकेँ बरबैर बुझि एक-दोसर नइ गौत, ताबे तक एहेन विचार पनपैक सम्भाना बनले रहत।
बचनू भाइक विचारमे निष्पक्षताक रंग देख खुशीलालोक मनमे निष्पक्षताक रंग-रूप बनए लगल, तैबीच दुनू गोरे गामक सीमानपर पहुँच गेल छल। खुशीलाल बाजल-
भाय, छोड़ू दुनियाँदारीक गप। अपने मुइने दुनियाँ मरबो करैए आ अपने जीने दुनियाँ जीबो करैए।
ओना, खुशीलालक आरो बात बजैले पेटमे बाँकीए छल कि बिच्चेमे बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, तेतबे नइ ने अछि। जहिना तूँ कहलह अपने मुइने-जीने दुनियोँ मरै-जीबैए तहिना ईहो अछि जे अपने बनौने दुनियाँ बनितो अछि आ अपने उजाड़ने दुनियाँ उजड़ितो अछि!”
कविताक भावे आकि तुकबन्दिये देख खुशीलालकेँ कैफी आजमीक गीत मन पड़ल। जहिना सिनेमा देखैकाल मन खुशी भेल रहै तहिना बिहुसि गेलइ। मनकेँ बिहुसिते मुँह तेना फुटलै जे हँसिते बाजल-
भाय साहैब, अनेरे कोन लपौड़ीमे पड़ै छी, तइसँ नीक जे अपन केलहा समाजोक लोककेँ देखा दिऐ। लोक मोजर दिअए वा नइ दिअए। आकि आँखिसँ देखला पछातियो कहए जे हम नइ देखलौं, आकि कियो कानसँ सुनियोँ कहए जे हम नइ सुनलौं, मुदा तइले तँ अपनो आँखि-कान अछि किने।
खुशीलालक विचारमे बचनू भायकेँ की भेटलैन से तँ ओ जानैथ मुदा बुझि पड़लैन जे समुद्रमे पार होइत संगी जकाँ एकटा संगी हमरो गाममे भेटल। संगीक संगपना मनमे ऐबते बचनू भाइक मनक उत्साहमे जेना सहस्त्र कमल, हजार पंखुरिबला कमल फुला गेल होनि।
बजला-
खुशीलाल, गाम अबैसँ जे मनाही केलखुन ओहो अपना जनैत नीके कहलखुन, मुदा हमहूँ कहै छिअह जे दुनू भाँइ रस्ते-रस्ते ईहो विचारि लएह जे जहिना रस्ताक सिर चढ़ि विचार करै छी तहिना भैयारी जकाँ भयपन सेहो निमाहब।
बचनू भाइक आगूक बात पेटेमे रहैन कि बिच्चेमे खुशीलालक पेटक बात कुदि पड़ल-
भाय, समय छल जे गाम छोड़ि पड़ाए पड़ल मुदा दुनियोँ तँ सीखैक छी, ओही दुनियाँमे सीखि गाममे रहैक लूरि सीखलौं।
खुशीलालक ऐगला बात पेटेमे छल कि बिच्चेमे बचनू भाइक पेटक बात कुदि पड़ल-
खुशीलाल, जखने एक-दोसर एक-दोसरमे सटल कि तखनेसँ समाजक निरमान हुअ लगल। मनुख समाज बना रहैबला समाजिक प्राणी छी, बिनु समाजे मनुखक जिनगी, जिनगी नहि रहि जाइए, वनमानुख जिनगी भऽ जाइए। मुदा से नहि, हम सभ एकैसमी सदीक ने लोक भेलिऐ। आइक जुगमे देखै छी जे एक-एक आदमीक बुधि ओते सक्कत भऽ गेल अछि जे दुनियाँकेँ ताल-मात्रा सिखबैए! आ अपना सभ एतबो ने भेलौं हेन जे अपन परिवार आ कि समाजकेँ नीक रस्तापर आनि नीक रस्ते चलैक पाठ पढ़ाएब।
बचनू भाइक विचारसँ खुशीलालक मन जेना भरि गेल तहिना बाजल-
भाय, राति-बिरातिक कोनो शंका नइ ने?”
बचनूकेँ मनमे उठलैन- एक तँ समाजक भितुरका मुद्दा, दोसर नव लोक खुशीलाल अछि। जँ सभ बात कहि दिऐ आ ओहो अपन कुशल-छेमक संग हमरो बात बिलैह दिअए तखन तँ रनमे भन भाइये जाएत। तइसँ नीक जे पहिने ऐगला टालि जगा दिऐ...। बजला-
बौआ खुशी, राति-बिरातिक कोनो शंका नहि। आरो गप काल्हि निचेनमे करब, अखन एतबे बुझह जे तूँ परदेशिया भेलह, तँए जखन पुलिसक गाड़ी औत तखन चुपचाप अपन गर पकैड़ सुति रहिहह।
शब्द संख्या : 2878, 18 सितम्बर 2017




3.
घरपर ऐबते खुशीलालकेँ देख माता-पिता ओहिना चहा उठला जेना चाहा अपन जेरमे चहचहाइत रहैए।
कान्हमे बैग आ हाथमे झोरा नेने खुशीलाल दुनू गोरेकेँ मुहेँसँ पहिने प्रणाम केलक। झोरा-बैग रखि, बैगक मुँह खोलि साल भरिक कपड़ाक संग एक-एक साए रूपैआ माता-पिताक आगूमे राखि पएर छुबि दुनू गोरेकेँ गोड़ लगलक।
खुशीलालक रंग-रूप देख दुनू परानी–रजनी आ सोमन–मने-मन तिरपित होइत रहला। दुनू गोरेक मनमे संतोष जगलैन जे हम सभ जँ मरियो जाएब तैयो बेटा मनुख बनि दुनियाँमे ठाढ़ रहबे करत..!
विह्वल माए, बेटाकेँ देख ईहो ने कहि सकली जे बौआ रस्ता-पेराक थाकल-ठेहियाएल हेबह, पहिने एक दाना अन आ एक घोंट पानि पीब लएह। हेरा गेली माए पति आ बेटाक बोनमे, बिसैर गेली अपन दुनियाँ-जहान...।
मुदा पिता जे परिवारक रक्षक होइ छैथ, ओ केना पत्नी-पुत्रक बोनमे भटैक जइतैथ? आखिर किछु भेला तँ पुरुख-पात्र भेला किने।
पत्नीकेँ डपटैत सोमन बजला-
छोड़ू अखन आहे-माहे!”
बेटाकेँ कहलखिन- “बौआ, पहिने नहा लएह।
बौआ कहि पत्नी दिस ताकि सोमन फेर बजला-
अहूँ उठू, जाउ किछु पहिने खाइ-पीबैक ओरियान करू। की बुझि पड़ैए जे बेटाकेँ कियो झपैट कऽ लऽ पड़ा जाएत।
खुशीसँ दहलाएल मन माइयक रहबे करैन, बजली-
किछु छी तँ बेटा धन छी किने! जहिना पानिमे पाथर नइ सड़ैए तहिना बेटाक रहने कुल-खनदान सेहो नइ ने सड़त।
पत्नीक अह्लादित विचार सुनि सोमन बजला-
बर बेस।
ओना नवनिरमित खुशीलाल बुझि गेल जे पिता अपन कर्तव्यक पालन कऽ रहला अछि आ माए अपन। बैगमे सँ लूँगी निकालि पहिरैत खुशीलाल बाजल-
माए बैगमे बिस्कुट सेहो छौ आ राजस्थानी रसगुल्लाक डिब्बा सेहो।
अपन काजक भार उतरैत देख रजनी बजली-
बौआ, तोरा पोसै-पालैमे बड़ दुख भेल।
माइयक बात सुनि खुशीलाल बुझि गेल जे पवित्र धारमे माए भँसिया रहली अछि, तँए मातृऋृणसँ अखने पार करैक अवसर अछि। अवसर चुकने लोक जिनगीक घाट चुइक जाइए, तँए अवसरक लाभ किए ने सोझेमे उठा ली। बाजल-
माए, सएह रीन तूँ अपन असुलए चाहै छेँ..!”
ऋृणदाता जहिना ऋृण खेनिहारकेँ हँसैत ऋृणमुक्त करैत तहिना परिवारिक धारमे भँसियाइत रजनी बजली-
बौआ, तूँ की हमर रीनखौका छह आ हम की रीन दाता छी, अपन कोखिक लाज निमाहलौं। मुदा आइ तोरा देख ई भरोस जागि रहल अछि जे अही धरतीपर हमरो लाल अछि।
ओना, रजनी ई बिसैर गेली जे यएह बेटा छी जेकरा पेट काटि पढ़ेलौं। मुदा पढ़ला पछातियो बेटीबला कियो ने अपन बेटी परिवारमे गरीबीक चलैत दइले तैयार भेल..! तैबीच खुशीलाल बाजल-
माए, समैक गतिये लोकक गति सेहो होइते छै, तँए जइ दिनक जे गति छल से भेल। मुदा ओ भेल बीतल जिनगीक गति। आब सभ संगे एकठाम भेल रहब से लूरि कलकत्तासँ नेने एलौं हेन।
ओना बेटाक बात माए नइ बुझली, मुदा पिता बुझि गेला। जइसँ मन खुशी भेलैन। तहीकाल पड़ोसी परिवारक राम सुनरि, जे खुशीलालकेँ भौजाइ सम्बन्धमे छैथ, कोरामे बच्चा नेने पहुँचली। राम सुनरिक कोरामे बच्चाकेँ देख रजनी भार स्वरूप शब्दमे पति दिस तकैत बजली-
अपन खुशीलाल आ मुनिलाल एक्के संगतुरिया छी, छबे मासक जेठाइ-छोटाइ छइ।
परिवारक बीच घुरियाइत माता-पिताकेँ देख खुशीलाल बिच्चेमे राम सुनरिकेँ कहलक-
आउ भौजी बैसू। तीन सालक पछाइत गाम एलौं हेन।
कहि बैगसँ बिस्कुटक एकटा डिब्बा निकालि बच्चाक हाथमे खुशीलाल देलक। डिब्बाक ऊपर छपल फोटो राम सुनरि बच्चाकेँ देखबए लगली। ओना, आन-आन बिस्कुटक–माने गमैया बिस्कुटक– डिब्बाकेँ देखते बच्चा परेख लइ छल मुदा नव डिजाइनिक डिब्बा देख भोतिया गेल। माने डिब्बाक आकार-प्रकार आ रंग-रूप देख, नहि परेख सकल। बिस्कुटक सम्भावना मनमे जगबे ने केलै जे हलैस कऽ डिब्बा पकैड़ लइत। ओना, राम सुनरिक मनमे सेहो यएह रहै जे डिब्बाकेँ आँगनमे खोलब। मुदा मनमे ईहो उठलै जे जँ बिस्कुट खोलि बच्चाक हाथमे नइ दऽ देबै तँ कनियोँ काल बैस कऽ गप-सप्प ऐ दुआरे नइ करए देत जे अनठिया बुझि एतए-सँ पड़ाए चाहत।
तैबीच खुशीलाल रसगुल्लाक डिब्बा खोलि, माइयक आगूमे रखि, राम सुनरि भौजीक हाथमे चारि-पाँचटा रसगुल्ला निकालि कऽ देलक। पहिने तँ रसगुल्ला सुटकल छेलै तँए राम सुनरिक हाथमे अँटि गेल मुदा जखन ओ फलकल कि हाथमे बेकाबू हुअ लगलैन। राम सुनरि रच्छ रखली जे एकटा रसगुल्ला बेटाक हाथमे धरा देलखिन। ओना, भरि मुट्ठी-के बच्चा पकैड़ तँ लेलक मुदा सुटलकसँ फलकैत रूप देख बच्चो धकमकाए लगल।
हाथ-पएर धोइले खुशीलाल कलपर विदा भेल। ओना राम सुनरिक मन रसगुल्ला देख चटपटाइत रहैन, मुदा सोमनक आगू केना खइतैथ। मनमे होनि जे जँ सोमन काका सोझासँ हटि जाथि तँ रजनी काकीकेँ बेटिये बनि फुसला लेबैन। ओना, भेल सएह। रजनी काकी चारि-पाँचटा रसगुल्ला निकालि पतिकेँ हाथमे दैत बजली-
कलकत्ताक रसगुल्ला छी। कनी सुआदि-सुआदि देखबै जे अपना सभ नीक मिठाइ बुझै छिऐ आकि कलकतिया सभ बुझैए, परेख कऽ कनी हमरो कहब। भलेँ तरूआ-तरकारीमे अपना सभसँ बंगाली पछैड़ जाए, मुदा मिठाइमे पटका-पटकी करबे करत। ओहुना देखै छी जे बंगाली वन्धुगण अपन मातृभूमि आ मातृभाषाक प्रति केते सिनेहिल छैथ जे अपन परिवारक संग अपन समाजक बीच ओहन जीवन्त रूप बना रखने छैथ जइसँ पूर्ण जीवन्तताक दर्शन करैत रहै छैथ। मुदा अपना सभ छी, जे दुनूसँ कतियाएल छी। जहिना मातृभूमिसँ कतियाएल छी तहिना मातृभाषासँ सेहो कतियाएल छी। अपना ऐठामक लोकक संस्कारमे ओहन कीड़ा फड़ि गेल अछि जे अपन परिवारो आ समाजोक बीच अपन भाषाकेँ तिलांजलि दइत आन-आन भाषाक प्रयोगमे अपनाकेँ गौरवान्वित बुझै छैथ।
ओना, रजनी हाथमे रसगुल्ला धरा पतिकेँ बहटारि देने छेली मुदा तैयो राम सुनरिकेँ कहलखिन-
कनियाँ, हमर-तोहर घर कि बाँटल अछि जे लजेबह। हमहूँ दूटा लइ छी आ तोहू खा। खुशिया कियो आन थोड़े अछि, हमर बेटे छी आ तोहर दिअरे भेलह।
दूटा रसगुल्ला जाबे राम सुनरि खेली ताबे बेटा सेहो अपन हाथक खा चुकल छल। बिहुसैत राम सुनरि अपन हाथमे बँचल दूटा रसगुल्लामे सँ एकटा बेटाक हाथमे दैत दोसरकेँ टोबि-टोबि परेखए लगली जे गाइयक दूधक बनल रसगुल्ला छी कि महींसिक दूधक आकि कोनो आन दुधारू पशुक आकि लोहाबला महींसक..!
राम सुनरिकेँ रसगुल्ला टोबैत देख रजनी काकी बजली-
कनियाँ, कोनो कि गाछक फल छी जे बीचमे आँठी हएत, किछु छी तँ पशु वृक्षक फल छी किने।
राम सुनरिक मनमे रजनी काकीकेँ पछाड़ैले जेना कोनो अस्त्र भेट गेल होनि तहिना मुस्कियेली। ओना रजनी काकीक मनमे भेलैन जे कनियाँकेँ हमर बात बेसी नीक लगलैन तँए मुस्किया रहली अछि..! मुदा तैबीच, अपन अस्त्रकेँ शस्त्रमे परिणत करैत राम सुनरि बजली-
काकी, गाछक फलमे ने भगवान आँठी दऽ पठबै छथिन, मुदा पशुवृक्षमे तँ मनुखे ने आँठी बना सजबैए।
राम सुनरिक बात जेना रजनी काकी हृदयसँ बुझि गेली तहिना खुशी होइत बजली-
हँ हइ कनियाँ, सरिपहुँ बजलह! रवि भाइक सराधक भोजमे जे रसगुल्लो आ लालमोहनो खेलौं तइमे तेहेन-तेहेन जुआएल आँठी बीचमे रहै जे निकालि-निकालि फेकए पड़ल।
तैबीच बच्चो आ राम सुनरि सेहो अपना हाथक रसगुल्ला खा चुकल छेली। नौतहारी पंचकेँ जहिना खेवाकाल पुछि-पुछि खुऔल जाइ छै तहिना रजनी काकी पुछलखिन-
कनियाँ दूटा आरो लेब?”
रसगुल्लाक सुआद पेब आकि अपन कर्तव्यक बोधे राम सुनरिक मन मानि गेल छेलैन जे ई उचित नइ हएत। कलकत्ताक सनेस गाम-परिवार-ले आएल अछि, नौतहारी जकाँ जँ हमहीं डिब्बो भरि सठा देबै तखन दोसराइतकेँ की पइठ हेतैन..! परिपूर्ण मने राम सुनरि बजली-
ऐँह, काकी ईहो अन्दाजलखिन नहि जे केते-केते अछि। कोनो की राक्षस छी जे अछोए ने हएत।
अछोए ने हएत खुशीलाल सेहो सुनलक। एक तँ चौबीस घन्टा गाड़ीक सफर केला पछाइत पतालक पवित्र पानिसँ खुशीलालक सौंसे देह निरौल, तैपर नव लोकक मुहेँ हेराएल नव शब्द सुनि मन भरि गेलइ। ओना खुशीलाल आ मुनिलाल दुनू बच्चेक स्कूलसँ संगे-संगे पढ़ैत रहल। किछु मन्‍द बुधि रहने मुनिलालक छह मासक दूरी मेटा संगतुरिया बना देलक आ खुशीलालक तीव्र बुधि मुनिलालक संगे एक कतारमे ठाढ़ कऽ देलक। तेतबे नहि, एक तँ पड़ोसी, दोसर एक उमेरिया सेहो भेबे कएल किएक तँ साल लगला पछाइत ने सालक जेठाइ-छोटाइ होइए मुदा सालक बीच तँ महिना होइए। महिनो तँ महिने छी। जेहने महिना तेहने तहिना। बात बरबैर अछिए। उम्रक दूरीकेँ संगपन मेटा नव सम्बन्धक रूपमे पनपल जे खुशीलालकेँ मुनिलाल अपनासँ ऊपरक मने देखए लगल।
खुशीलालसँ मुनिलालक परिवार आर्थिक रूपे अगुआएल। तँए मैट्रिक पास करैसँ पहिनहि केते लौकिया लगल छल। मुदा मुनिलालक माता-पिताक विचार रहैन जे मैट्रिक पास केला पछाइत बेटाक बिआह करब। मैट्रिक पास केलापर बिआह करब तँ एकटा सीमापर पहुँचने एकटा निर्धारित दरपर पहुँच जाएब, जइसँ अपनो जान हल्लुक हएत। लेत अपन घर-अँगना बेटा-पुतोहु, अनेरे कोन माया-जालमे पड़ल रहब। भाय जखन बुझले बात अछि जे अपना ऐठाम लाख रूपैआसँ निच्चाँक बिआह आब बहुत कम परिवारमे रहि गेल अछि। आब तँ करोड़ तकक खेल चलि रहल अछि। ओइ पूजीसँ माता-पिताकेँ किए मतलब रहतैन ओ तँ बेटा-पुतोहुक भेल। दुनू परानी अपना हाथमे ओइ पूजीकेँ राखह आ परिवार बना आगू बढ़ह...।
मैट्रिक पास केला पछाइत लगले मुनिलालक बिआह एकटा परदेशिया–माने बंगलोरमे नोकरी करैबला–परिवारमे भऽ गेल। माने राम सुनरिक संग। राम सुनरि बंगलोर कोचिंगसँ मैट्रिक पास केने। बिआह भेला पछाइत सासुर एला साते दिनमे राम सुनरि पुन: सासुरसँ नैहर–माने बंगलोर–पहुँच गेली। जे आठ मासक पछाइत दोहरा कऽ दशमीक यात्रा दिन सासुर पहुँचली। तइसँ तीन मास पहिने खुशीलाल गाम छोड़ि कलकत्ता गेल छल। तँए मुहाँ-मुहीं एको दिन दुनू गोरेक बीच गप-सप्प नइ भेल छेलइ। तैपर ईहो विचार खुशीलालक मनकेँ दबनहि छेलै जे मुनिलाल सभ दिन ऊपरक नजरिये देखैए, जइसँ हम एकतुरिया रहितो ओकरा छोट भाइयक नजरिये देखै छिऐ आ ओ पैघक नजरिये हमरा देखैए। मुदा लगले मनमे तीन सालक देखल-सुनल कलकत्ताक विचार नाचि उठलै- जेहेन जेकर भावना रहत ओ ओही रूपक ने जिनगी बना चलत..। तुलसी बाबा कहने छैथ- जाकी रहे भावना जैसी..। ओना एहेन वायुमण्डलक हवा छेलैहे जे माए-बापक संग सर-समाज आ राम सुनरि सेहो अपनाकेँ भौजी मानि खुशीलालकेँ दिअर बुझि रहल छेली।..माए आ भौजीक बीच तीन कोनियाँ बना खुशीलाल बैसल। मिठाएल मन रहने मिठाएल गप होइते छइ। राम सुनरि चालली-
काकी, खुशीलाल बौआ तँ फुटि कऽ जुआन भऽ गेलैन! किए दुनू परानी अनठौने छथिन?”
बरदक नाथ जकाँ राम सुनरि भौजी खुशीलालक नाथ अन्नागाँहिसे पकैड़ लेली। ओना खुशीलालोक मन तन-तना गेल छेलै जे भौजाइक विचारक की जवाब हएत। मुदा अपन भोगल जिनगी खुशीलालक मनकेँ ठमकौने रहल जे जइ गाममे बिआह नइ भेल, ओइ समाजक...। मुदा तैसंग विचारमे ईहो दाब पड़लै जे जइ कारणे बिआह समाजमे नइ भेल, तइ समाजक तँ भौजी छैथ नहि, तँए रक्का-टोकी करब नीक नहि।
मुदा तैबीच रजनी काकी अपन उत्तर माने राम सुनरिक प्रश्नक, मने-मन सम्हारि नेने छेली। बजली-
कनियाँ, तीन सालपर बौआ कलकत्तासँ गाम आएल, ताबे तोरा एकटा बौओ भेलह। आब गाम आएल हेन, नइ ऐ सालक लगनमे तँ ओइ सालक लगनमे बिआह कइये देबै किने।
खुशीलाल राम सुनरिकेँ पुछलक-
केते दिनक बौआ अछि, भौजी?”
राम सुनरि भौजीकेँ जेना सुतरलैन तहिना बजली-
केते दिनक किए कहै छिऐ, जखने साल लागल कि दिनकेँ महिना खा जाइ छइ किने।
भौजीक बात सुनि खुशीलाल हँसल। बुझि पड़लै जे अपन साल गीरह भरिसक भौजी पुरा रहली अछि। बाजल-
ई कोनो नव गप कहलौं, ई तँ सभ दिनसँ होइते आएल जे दिन रातिकेँ खाइए आ राति दिनकेँ।
तैबीच राम सुनरियो अपन साल-महिना जोड़ि नेने छेली। बजली-
दू बर्ख डेढ़ मास भेलै हेन।
खुशीलाल-
बड़-बढ़ियाँ बच्चा पोसने छी!”
बच्चाकेँ बड़-बढ़ियाँ पोसब सुनि राम सुनरिकेँ अपन कएल कृत्तिसँ द्रवित मन पसीज गेलैन। बजली-
बौआ! अहाँसँ लाथ की, अहाँ-भैयाकेँ ओते कमाइ नइ छैन जे संगे दिल्‍लीमे रहितौं। तखन तँ गामेमे छी, जे एतए सभ रंगक लोकक अँटाबेस भइये जाइए।
राम सुनरिक बात सुनि खुशीलालक मनमे एक संग दुनू संकल्प आ विकल्प उठल। मुदा मन ठमैक गेलइ। ठमकैक अनेको कारणमे मुख्य छल जगह-जगहक माटि-पानिक गुण-धर्म। माने बंगलोर शहरमे पलल-बढ़ल राम सुनरिक जीवन, जे गामक जिनगीक पूर्व अवस्था छल। जखन कि खुशीलालक गामक जिनगीक पछाइत तीन बर्ख बंगालक कोलकाताक माटि-पानिमे पलल-बढ़ल छल। 
कोलकाता आ बंगलोर दुनू महानगर देशमे अछि। ओना, आरो अछि, मुदा तुलनात्मक दृष्टिसँ दुनू महानगरक माटि-पानिक सुगन्धमे बहुत अन्तर अछि। माटि-पानिक गुण-धर्मे तँ ई होइत अछि जे ओकर भाषा, साहित्य मनुखक जिनगी आ जिनगी जीबैक ढाँचाकेँ बदैल दइत अछि। ढॉंचा बदलने श्रम-अश्रमक बीच समाज बँटैए, जइसँ ओकर जीबैक साधनमे टूट-फूट अबैए। ऐठाम देखए पड़त जे कोन माटि-पानिक जिनगी केहेन बनैए। ओना जहिना नव कान्हीक लोक राम सुनरि भौजी तहिना कन्हछुटू खुशीलाल, तँए ढाही मारैक ताउ दुनूक मनमे रहबे करइ। बैगसँ दूटा बिस्कुटक डिब्बा निकालि दुनू सुआदक बिस्कुटक डिब्बाकेँ फारि दुनू बिस्कुटकेँ गमछापर मिला पसारैत खुशीलाल बाजल-
संगे-संग खाउ भौजी, बौओकेँ ढेरियेमे भिड़ा दियौ जे देखबै कोन बिस्कुट बीचमेसँ उठबैए।
जइ मने खुशीलाल बाजल हुअए मुदा राम सुनरि भौजीक मन अपन जिनगीमे डुमल छेलैन। केतए बंगलोर शहरमे जनमल-पलल-बढ़ल राम सुनरि बेटी सुदुर गाम आबि गेली, मुदा एते अपन मातृत्वक आशा तँ जगले छेलैन जे काल्हि दिन जखन बेटा कमाइबला भऽ जाएत तखन ओहूसँ–माने बंगलोरक जिनगीसँ–नीक जिनगी भेटबे करत। तैसंग अपन जिनगीक विकल्प दिस सेहो नजैर दौगा रहल छेली। मुदा अपन हेराएल जिनगीमे ओकरा ताकब ओतेक असान थोड़े अछि। तहूमे पछुआएल सुदूर गाममे। एक तँ गमैआ काजसँ अनाड़ी, दोसर, दोसर जिनगीमे अपनाकेँ बढ़ाएब, जहिना ओते असान नहि अछि तहिना ओते भारियो तँ नहियेँ अछि जे सोलहन्नी असम्भव होइ। अपन जिनगी जीतैले जहिना राम सुनरिक मन भीतरे-भीतर कछमछाइत रहैन तहिना खुशीलालोक मन कछमछाइते छल तँए दुनू पहलवान अपन-अपन जिनगीक पहल दिस मुड़ल। खुशीलाल बाजल- भौजी, हमरा अपन पैत्रिक सम्पैत नहियेँक बरबैर अछि मुदा मुनी भायकेँ तँ किछु अपन छैन्‍हे। जखन हम जीबैक संकल्प लऽ गाम एलौं हेन तखन...।
ओना अखन धरिक जिनगी राम सुनरि भौजीक वएह रहलैन जे, आन-आन ओहन परिवारमे अछि जे मरदा-मरदी परदेश खटै छैथ आ बाल-बच्चाक संग पत्नी आ वृद्ध माता-पिता गाममे रहै छैन। दिल्ली वा आने ठामसँ मासे-मास रूपैआ आएल ओकरा कीन-बेसाहि जिनगी चलबैत रहलौं, मुदा राम सुनरिक मनमे ईहो खुशी तँ रहबे करैन जे खुशीलाल बौआ अपने बौआ जकाँ बौओकेँ–माने बच्चोकेँ–आ अपनो कलकत्ताक पहिल सनेस तँ खुऔलैन। बजली-
बौआ, गरीब लोकक जीवन आ किदैनिक तीमनकेँ कोनो मोल अछि!”
ओना राम सुनरि भौजी हँसैत बाजल छेली मुदा खुशीलालक मनकेँ असाध वानसँ बेधलक। बेधलक ई जे भाय गरीबो लोककेँ तँ जिनगीक कोनो-ने-कोनो सीमा छै, ओइ सीमापर ठाढ़ भऽ ने अपन जिनगी दिस ताकब जे केतए ठौरपर छी आ केतए हेराएल छी...। खुशीलाल बाजल- भौजी, अहाँ गरीब छी आ हम कोन सात हथिसारबला छी। तखन तँ भेल जे दुनू गोरे गाड़ा-जोड़ी करैत काल्हि दिन-ले झखू। जखने झखब तखने ने गाछक डारियो आ सीलो सभकेँ झखा-झखा आनब।
ओना रौतुका भानसक बेर भेने राम सुनरि भौजीक मन सेहो छनछना लगलैन, दोसर ईहो भेलैन जे जाबे खुशीलाल बौआ गाममे रहता ताबे गपो-सप्प करैक ठौर तँ भेटिये गेल। राम सुनरि भौजी उठैत बजली-
रातिमे ने अहाँकेँ कियो चोरा लेत आ ने हमरे चोरा लेत। तँए बाँकी गप-सप्प काल्हि करब। भानसक बेर भऽ गेल।
जहिना राम सुनरि भौजी बजली तहिना खुशीलालो बाजल-
अखन काजक बेर अछि भौजी, तँए नइ रोकब, आब सभ दिन गामेमे रहब।
राम सुनरिकेँ उठिते रजनी काकी सेहो धड़फड़ेली। धड़फड़ाइत बजली-
कनियाँ, रस्ता-बाटक थाकल बौआ अछि तँए हमहूँ चुल्हिये लग जाइ छी।
शब्द संख्या : 2318, 22 सितम्बर 2017




4.
बारह बजैत राति, अन्हरिया पख तँए रातिक रतिपनमे दुगूना रंग चढ़ल। बचनू भाय अपन छोट भाएकेँ उठबैत बाजल-
बौआ, बौआ, रमेश?”
भैयाक अवाज सुनिते रमेश चहा कऽ उठल। मुदा चहा कऽ उठला पछाइत दू रंगक लोकमे दू रंगक विचार जगैए। एकमे, जे नइ सुनने-बुझने रहल ओ आ दोसर जे कोनो बुझल बातकेँ सुतली रातिक काज बुझि मनमे समेट सुतल रहल।
दोसर कोटिक रमेश, चहा कऽ उठिते बाजल-
भैया..!”
बचनू-
हँ।
रमेश-
समय भऽ गेल?”
बचनू-
हँ, उठह।
रमेश-
की सभ संगमे लेब?”
बचनू-
एकटा डेढ़हत्थी लऽ लएह आ लालटेन नेस लएह। कियो जँ रस्ता-बाटमे देखबो करत ते देखिये कऽ बुझि जेता जे बर-बेमारी लऽ कऽ डाक्टर ऐठाम कियो जा रहल अछि तँए गप-सप्पमे बाट रोकब नीक नहि। कियो टोकबो ने करथुन।
दरबज्जापर सँ निकैल बचनू भाय अकास दिस तकलैथ तँ बुझि पड़लैन जे डंडी-तराजू माथपर अछि। आगू हिया कऽ देखला तँ सूनसान बुझि पड़लैन। दच्छिनभर हिया कऽ देखलैन तँ नि:सबद भेल बुझि पड़लैन।
आगू-आगू रमेश लाठी आ लालटेन नेने आ पाछू-पाछू बचनू भाय पच्छिम मुहेँ–थाना दिसक रस्ता पकैड़–विदा भऽ गामक सीमानपर पहुँच गेला। आमक गाछ, अन्हार रहितो हवाक सिहकी वातावरणकेँ मस्त बनौनहि छल। तैसंग हजारो भकजोगनी गाछपर सेहो भुक-भुक करै छल।
किछुए-कालक पछाइत थाना दिससँ तीन गाड़ीक इजोत देख बचनू भाय बुझि गेला। योजनानुसार सभ अनुकूले बुझि पड़लैन। तीनू गाड़ी आमक गाछ लग आबि रूकल। बचनू भायकेँ अपने लग थानेदार बैसा रमेशकेँ सिपाहीक गाड़ीपर गामक चौकीदार लग बैसौलैन।
गाममे प्रवेश करिते सभकेँ अनुकूले वातावरण भेटैत गेलैन। योजनानुकूल विलासक संग भोगिया देवी पुलिसक हाथ आबि गेल। चुपचाप दुनूकेँ दुनू गाड़ीमे लऽ जाबे परिवारक लोक नीक जकाँ बुझैत-बुझैत तइसँ पहिनहि दुनू गामक सीमान टपि गेल।
एक तँ गाड़ीक अवाज, दोसर परिवारक लोकक झौहरिसँ गामे गनगना गेल छल। काने-कान सौंसे गाम बीआ-वान भऽ गेल। ताबे निशिभाग रातियो आगू दिस टगल। जइसँ ऐगला दिनक उदयक भान सेहो हुअ लगल। दुनूकेँ गामसँ निकैलते सौंसे गामे कुकुर-काँटमे ओझरा गेल। कहा-कही, गारा-गारी सौंसे गामे शुरू भऽ गेल। केतए-सँ कोन लुत्ती उड़ि-उड़ि केम्हर लगि गेल से थाहे ने रहल। भोरक तीन बजैत-बजैत, जहिना तेसर सालक राखी पाबैन दिन भेल छल जे राता-राती सौंसे देशक लोकक राखी हाथसँ कटि गेल, तहिना भऽ गेल। प्रचार-माध्यम बढ़ने एतेक तँ लाभ भेबे कएल अछि।
गाममे गदमिशान होइत देख खुशीलालो आ राम सुनरियो शान्त-चित्त सड़कपर ठाढ़ भऽ हिया-हिया अकानए लगल तँ बुझि पड़लै जे दशमी मेलामे बाजा-गाजाक अवाजसँ जहिना झौहैर होइत रहैए तहिना सौंसे गामे भऽ रहल अछि। राम सुनरि भौजी खुशीलालक माता-पिताक बीच खुशीलालकेँ कहली- बौआ, आब की हएत।
बौआ तँ बौए भेला, तँए कौआ ने लऽ कऽ उड़ि जाइन तहिना रोमैत रजनी काकी बजली-
केतौ किछु हुअ, हमरा कोन मतलब अछि। आगि लगौ, बज्जर खसौ, जेकर जेहेन किरदानी छै, तेकरा से हेतइ।
ओना, खुशीलालकेँ बुझल रहइ जे निचेनसँ रहैले बचनू भाय कहि देने छला। रजनी काकी अपनाकेँ पूर्ण सुरक्षित शब्दमे बाजल छेली, मुदा जे वातावरण गाममे बनि रहल अछि, तइसँ नहियोँ डराएब असोभाविके हएत। धड़कैत दिलसँ राम सुनरि भौजी बजली-
बौआ, राति-बिराति जँ कोनो आफत-असमानी हएत, तखन की करबै?”
की करबै सुनि खुशीलालक मन बिहुसि उठल। एतेटा दुनियाँमे कोनो काज नइ छै! तोष दैत खुशीलाल बाजल-
जखन अकासे फाटि जाएत तखन दर्जी केते सीअत, मुदा जाबे से नइ भेल अछि ताबे बिमारीसँ पहिने दवाइयो खाएबकेँ के नीक कहत।
ओना, चारि गोरेकेँ एकठाम रहने एते बिसवास तँ राम सुनरि भौजीक मनमे ठहैकते रहैन जे चारि मिलि करी काज हारने-जीतने कोनो ने लाज। तहूमे गामक लोक तँ अपनेमे रक्का-टोकी कऽ रहल अछि। पुलिसक गाड़ी तँ गामसँ चलिये गेल। ओ जँ रहैत तँ पाइ-कौड़ी झोड़ै दुआरे किछु एम्हरो-ओम्हरो करैत। गाम तँ अपने बँटाएल अछि तखन केकरा दाँत जनमतै जे निरदोस दिस आँखि उठौत।
तैबीच राम सुनरि भौजीक बेटा उठि कऽ ओछाइनपर कानए लगल। बच्चाकेँ कानब सुनि भौजी आँगन गेली। खुशीलाल माता-पिताकेँ कहलक-
अहूँ सभ सुतैले जाउ। हम कनीकाल रस्तेपर सँ अजमा कऽ देखै छी जे हल्ला बढ़ैए आकि घटैए।
अपन पल्ला झाड़ैत पिता बजला-
रौतुका गल-गुल छी लगले शान्त भऽ जाएत। आ जँ नहियेँ हएत आ अपना घर दिस अबैत देखिहह तँ हमरो कहिहह।
दुनू परानी अपन-अपन ओछाइनपर आबि पड़ि रहला। अन्हार रहबे करै, ओना तीन बजे भोर भऽ गेल छल मुदा नीक जकाँ फरिच्च नइ भेल रहइ। अन्हारमे भोरो अन्हराएले छल।
बेटाकेँ कोरामे नेने पुन: राम सुनरि भौजी खुशीलाल लग पहुँच गेली। मनमे पैछला पढ़लाहा पाँती उठि गेलैन। घन घमण्ड नभ गरजत घोड़ा, पियाहीन डरपत मन मोरा।
ओना अन्हारमे राम सुनरि भौजी नहि बुझि पेली जे दुनू बुड़हा-बुड़ही चलि गेला। किएक तँ सभ चुपे-चुप अकानि रहल छला। मुदा खुशीलाल तँ बुझै छल जे अखन दुइये गोरे छी। सबहक अपन-अपन सीमान अछि। किछु एहनो बात तँ अछिए जे माइयक कहैबला बात पिताकेँ नहि कहल जाइए आ पिताकेँ कहैबला बात माएकेँ नहि कहल जाइए। ओना, अहूक पाछू बहुत रास बात अछि। बात ई अछि जे जेकरा माए नहि छै, पितेटा छइ। तहिना एहनो तँ अछिए जेकरा बाप नइ छै, माइयेटा छइ। मुदा से अखन नहि। अखन एतबे जे जँ दूटा पुरुख-नारी एहेन समैमे एकठाम हुअए, तँ गामक अवाज अकानि-अकानि माने ई जे केमहर अवाजमे जोर पड़ैए आ केम्हर कमजोर पड़ैए तेकरा आधार बना गप-सप्प जँ नइ करए तँ ओहो समाजक बिमुखे अवस्था भेल। जे खुशीलाल बुझि रहल छल। ओना, अखन खुशीलालो आ राम सुनरियो दू दिशा कहियौ आकि दू पाशा, दुनू दिस दुनू छल। तेकर अनेको लक्षणमे एकटा ईहो तँ अछिए जे खुशीलाल अपना भरे परिवारक भार उठबैक शक्ति बना नेन अछि। मुदा राम सुनरि तइसँ बहुत दूर छैथ। खुशीलाल बाजल-
भौजी, गामक तँ सभ बुझिते छैथ जे केहेन समैमे हम गाम छोड़ने रही, मुदा अहींटा छुटल रहि गेल छी जे नइ बुझल अछि।
जेना किछु ओहन वौस राम सुनरिकेँ छुटि गेल होनि, जइले मन ललिचाए लगलैन, तेहने स्वरमे बजली-
तीन सालक पछाइत मन पड़लौं?”
हारल नटुआ जकाँ खुशीलाल बाजल-
अहाँ ते मोने छेलौं, अपने बात बिसैर गेल छेलौं, तँए नइ कहि सकलौं।
ओना अखुनका जे वातावरण गामक बनि गेल छल ओ अनुकूल नइ छल, मुदा ओते अनुकूल तँ छेलैहे जे जे किछु अखन गाममे घटित भऽ रहल अछि तइसँ अलग खुशीलालोक आ राम सुनरियो भौजीक परिवार छैन्‍हे। तँए जँ अपन जिनगी वा परिवारक जिनगीक गप-सप्प दुनू गोरेक बीच हएत तँ उचिते हएत।
सामंजस करैत राम सुनरि भौजी बजली-
पुरुख जकाँ मौगी थोड़े लबरदौड़ होइए, मुदा जेतए होइए तेतए हुअ। हमरा अहाँक बीच से खेलकट्टी।
ओना खुशीलालक मन खुशीलालकेँ धिक्कारलक मुदा ओइ धिक्कारकेँ ओ अपन परिस्थितक अनुकूल सफाइ देब नीक बुझि बाजल-
भौजी, पुरुखकेँ समय लबरदौड़ बना दइए। ओना, एकरा पुरुखक दोख नइ कहबै सेहो नीक नहियेँ हएत। मुदा जहिना दुनियाँ बड़ीटा अछि तहिना बहुत लोको अछि किने। तेकरा छोड़ू आ छुटल जे बात अछि से कहि दइ छी।
तही बीच भौजीक बच्चा कानए लगल। भौजी ओकरा चुप करए लगली। खुशीलालक मनमे उठल- जँ हमरो परिवार ओहन रहैत तँ हमरो ने समैयेपर बिआह भऽ गेल रहैत आ एतेटा बेटाकेँ हमरो चुप करए पड़ैत...।
मुदा भौजीकेँ थोड़ेक महग भऽ गेलैन बच्चाकेँ चुप करब। तेकर कारण अपने बेसाहल छेलैन। बेसाहल ई छेलैन जे कनला पछाइत गप-सप्प करै दुआरे बच्चाकेँ एक थापर मारि देने छेलखिन। मुदा एते तँ बुझले छैलैन जे माए-बच्चाक पनचैती केना होइए। तैबीच कनैत बेटा कहलकैन- तूँ हमरा मार-लेँ किए?”
राम सुनरि भौजीकेँ बुझल रहबे करैन, बजली-
से की चोट लगैबला हाथे मारने छेलियौ। कनियेँ जोरसँ छुबने छेलियौ।
एक तँ ओहिना बाल-बोध कोनो चीज सुनने बेर-बेर बजैए तैपर जँ किछु भऽ जाइ छै तँ ओ आरो कानि-कानि बजबे करैए। बाजल-
दुखाइए किए?”
माए पुछलखिन-
केतए दुखाइ छौ?”
अपन पीठ बच्चा देखबे ने करए। हाथेसँ हँथोरि कऽ देखबैत बाजल-
एतए।
राम सुनरियो भौजी हाथेसँ दू-चारि बेर होंसतैत बजली-
कहाँ केतौ छौ।
जेना बेटा जीत गेल हुअए तहिना हँसए लगल। खुशीलाल दिस मुँह घुमा भौजी बजली-
की कहए लागल छेलौं?”
मुस्की दैत खुशीलाल बाजल-
बीचमे फेर ने तँ ई छौड़ा कनवाहि शुरू करत?”
भौजी बजली-
बाल-बोध छिऐ। एकरा की करबै।
राम सुनरिक बात सुनि खुशीलालक मनमे भेल जे भौजी अपनाकेँ समगम बना विचार सुनैले पूर्ण तैयार भऽ रहली अछि। मुदा लगले खुशीलालक मनमे ईहो डर पैस गेलै जे नव-नौतरि भौजी छैथ, जँ कहियो बेर-कुबेर कोनो बाते कहा-कही हएत आ मुहेँपर कहि दथि जे देखले पुरुख छी, सरलो-पाकल मौगी-छौड़ी बिआह करैले तैयार नइ भेल तखन तँ...।
ओना, नव निरमित खुशीलालक विचार, मुदा सभ बात सभकेँ सदिकाल आगूए-मे ठाढ़ रहै छै सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। अपनाकेँ समेटते खुशीलालक मनमे उपकल जे एक-धरिया तीर ने एके दिस आक्रमण करैए मुदा जँ ओकरा दू-धरिया बना चलाएब तँ दुनू दिस ने चलत। जखने दुनू दिस चलत तखने ने सवाल-जवाब दुनू दिस उठत। जँ से नइ करब तँ एकपर एक तीर (प्रश्न) लगने अपनो ओध-बाध होइक सम्भावना रहबे करत।
खुशीलाल अपनाकेँ सम्हारैत बाजल-
भौजी, जहिना अहाँ बंगलोर सन शहरमे जन्म लेलौं आ निछच्छ देहातमे आबि बास करै छी तहिना हमरो गाम..?”
गाम लग आबि खुशीलालक बात बन्न भऽ गेल। ओना, अपन बेथाक कथा सुनि राम सुनरि भौजी सेहो थकमका लगली जइसँ खुशीलालकेँ दोहरा कऽ आगूक बात नहि पुछि सकलखिन, जे बात खुशीलालो बुझि गेल। सामंजस करैत खुशीलाल बाजल-
भौजी, जहिना दुनियाँक खेल अजीव अछि तहिना ने जिनगियोक अछि।
अजीव सुनि भौजीक मुँह खुजलैन। किएक तँ कोनो कितावमे पढ़ने छेली जे दुनियाँ बनौनिहार अपने अजीव छैथ तँए जे अजीव बनौलैन ओ तँ उचिते भेल। मुदा जिनगी तँ सभ मनुखक फुटा कऽ भेल। ओ तँ अपने बनौने ने बनत। तखन अजीव, किए ने सजीव बनत? मुस्की दैत राम सुनरि भौजी बजली-
छोड़ू दुनियाँ-जहानक बात। अखन जहिना दुनू गोरेक बीच गप-सप्प होइए तहिना दुनू गोरे अपन जान-जहानक गप-सप्प करू।
राम सुनरि भौजीक गहन विचारकेँ खुशीलालक मन मानि गेल जे दुनियासँ अलग अपन परिचय भौजी दिअ चाहि रहली अछि। तँए ऐठाम आत्मीय सम्बन्धक सम्भावना बनियेँ रहल अछि। निधोखसँ बजबामे कोनो अवघात नहि अछि। खुशीलाल बाजल-
भौजी, अपन सभ लाज-धाक उठा कहै छी जे गामसँ भागैक कारण भेल जे बुझि पड़ल परिवार बिलैट जाएत। तँए ओही बिलटैकेँ सुलटैले गामसँ परदेश गेलौं।
ओना, खुशीलालक पेटमे जे बात छल तेकरा ओ झाँपि-तोपि बाजल। मुदा राम सुनरि भौजी खोरनी चलबैत बजली-
की बिलैट जइतए?”
हारल सिपाही जकाँ खुशीलाल अपन हार कबुल करैत बाजल-
भौजी, पुरुख-नारीक सहयोगसँ ने जीवैत परिवार आगू बढ़ैए, से जँ नहि भेल तँ ओ परिवार बिलटत की नहि।
खुशीलालक बात सुनि भौजी मुड़ी डोला स्वीकारैत बजली-
बौआ, धरमागती पूछी ते देहात आ शहरकेँ नीक जकाँ नहि बुझि पेने छेलौं। एक-चलिया छेलौं, शहरमे जन्म भेल, बच्चासँ सोलह-सतरह बर्ख धरिक जे किरिया-कलाप छल तेतबे बुझि पेने छेलौं। पछाइत बिआह भेल। ऐठाम एलौं...।
बिच्चेमे खुशीलाल बाजल-
जखन शहरमे बालपन बीतल तखन माता-पिता नइ बुझलैन जे गाम-देहातक जिनगीमे बेटीक बास हएत की नहि?”
खुशीलालक बात सुनि भौजी निरुत्तर भऽ गेली। मुदा जे प्रश्न सोझामे आबि गेल तेकर तँ किछु-ने-किछु उत्तर नहियोँ देब उचित नहियेँ होएत। बजली-
जे भाग-तकदीरमे लिखल छल तेकरा कियो मेटा दइत।
भाग-तकदीरकेँ सोझामे ऐबते खुशीलालकेँ गड़ भेटल। बाजल-
जाए दियौ, जइ दिनका जे भोग-पारस छल से भेल। आब केना जीब तइले झखू।
तही बीच उत्तरवारि टोलमे जोरसँ कनबाक अवाज उठल। दुनू गोरे, माने खुशीलालो आ राम सुनरियो भौजी अपन गप-सप्पकेँ बिराम दैत कान ठाढ़ कऽ अकानए लगलैथ। गदगर टोलक बीच विलासो आ भोगियो देवीक घर। अपनो गदगर परिवार दुनूक अछिए। जखन पुलिसक गाड़ी आएल, तखन किछु लोक टोलोक आ दुनू परिवारोक जागल छेलैहे। मुदा किनको मनमे ई शंका छेलैहे नहि जे पुलिस गाड़ीसँ औत आ दुनूकेँ पकैड़ लऽ जेतैन। दुनूक घरो पाँच कट्ठा हटल एकेठाम। गौओं-घरूओ आ परिवारोक लोककेँ ऐ दुआरे नहि कोनो शंका छेलैन जे देखौआ कोनो तेहेन घटनो नहियेँ भेल छल जे पुलिसक आगमनक शंका रहैत। ओना, पड़ोसियो आ परिवारोक लोककेँ पुलिसक पैरक धमकसँ बुझि पड़लैन जे किछु लोकक आगमन भेल अछि। मुदा दुनू गोरे–विलासो आ भोगियो देवी–क ऐठाम राति-बिराति एहिना लोकक आबा-जाही रहिते अछि, तँए जगलोहोक मनमे कोनो शंका किए होइतैन।
दुनू गाड़ीक सिपाही दुनू गोरेक घर घेर एके बेर पकैड़ लेलकैन। ओना, जखने भोगिया देवीकेँ घरसँ उठा आँगन आनि सिपाही कहलकैन- चलो भोंसरी गाड़ीमे बैसो। तखनेसँ भोगिया देवी जोर-जोरसँ कानए लगली। मुदा जाबे परिवारो आ टोलोक लोक उठै-उठै तइसँ पहिनहि सिपाही गाड़ीपर चढ़ा, अपनो सभ चढ़ि विदा भऽ गेल।
एक्के-दुइये परिवारोक आ टोलोक लोक पहुँच-पहुँच देखैथ तँ दुनूक ओछाइन खाली छल। टोलक लोक तँ अगदिगेमे रहैथ जे की बात भेल। मुदा लाजपछ परिवारक लोक झौहैर करए लगलैन। ओना, पुरुख-पात्र चिचिया-चिचिया तँ नहि कानैथ मुदा ठुनैक-ठुनैक नहि कानैथ सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। जहिना भोगिया देवीकेँ भेलैन तहिना विलासक सेहो भेल। मुदा विलास भोकाइर पाड़ि कानल नहि। बेटाकेँ ललकारा दैत कहलक-
जोगा, जल्दी आ। पुलिस पकड़ने जाइए।
ओना पुलिसक पैरोक धमक आ गपो-सप्प सुनि जोगाक नीन टुटि गेल छल। खिड़कीसँ सभ किछु देखियो नेने छल।  मुदा बापोसँ बीस (माने कुवृत्तिमे) जोगाक चालि-चलन छइहे। जइसँ भीतरे-भीतर अपनो डरि गेल जे हमहूँ जेबे करब। ओना अपनाकेँ कोठरीसँ भागैक ओरियान मने-मन कइये रहल छल मुदा भागब केमहरसँ गड़ नइ देखने अपनाकेँ सुटकल बिलाइ जकाँ गबदी मारि केबाड़क दोगमे चुप-चाप ठाढ़ छल। जखन विलासकेँ गाड़ीपर चढ़ा पुलिस विदा भेल तखन रोहिणी–विलासक पत्नी–बोम फाड़ि कानए लगली। कहियो थाना-पुलिससँ भेँट नहि तँए डराएब सोभाविके छल। मुदा जोगाक मनमे अखनो शंका छेलैहे जे भऽ सकैए हुनका (पिताकेँ) गाड़ीमे बैसा दोहरा कऽ आबि हमरो ने कहीं पकैड़ लिअए। तँए कोठरीसँ निकैल दरबज्जा दिस नहि बढ़ि पछुआर दिस भागि गेल।
रोहिणी सुच्चा मिथिलानी। सुच्चा मिथिलानी ओ भेली जे पतिक जघन्यसँ जघन्य किरदानी देखला-सुनला पछातियो किछु कहैक साहस नहियेँ रखै छैथ। नइ रखैक अनेको कारणमे एकटा ई कारण तँ अछिए जे अछैते पुरुखे जिनगी मृत्युप्राय बनि जाइए। कानैत रोहिणी जोगाकेँ जोरसँ शोर पाड़ि कहली-
जोगा, बापकेँ पुलिस पकैड़ नेने जाइ छौ आ तूँ केतए नुकाएल छेँ।
पुलिसक गाड़ी निकैल चुकल छल। गाड़ीक अवाज घरसँ किछु हटए लगल छेलइ। पछुआर दिससँ एकटा लाठी नेने जोगा माए लग पहुँच बाजल-
हमरा तँ लाठीए ने भेटै छल, लाठी ताकए गेल छेलौं तँए कनी देरी भऽ गेल।
एके-दुइये टोल-पड़ोसक लोक आबि-आबि विलासक खोज-पुछारि करए लगल। मुदा किए विलासो आ भोगियो देवीकेँ पकैड़ लऽ गेलैन से स्पष्ट भाँज कियो बुझिये ने पेब रहल छला।
शब्द संख्या : 2239, 26 सितम्बर 2017




5.
चारि बाजि गेल। रसे-रसे दिनक सभ सिरखार जागए लगल आ रातिक सभ सिरखार रसे-रसे मेटाए लगल। जेहो चीज नहि देखाइ छल ओहो एका-एकी देखए-मे आबए लगल। ओना, भोर बुझि अनेको पक्षी अपन-अपन बासा छोड़ि-छोड़ि पतियानियोँ लगा-लगा आ असगरो-असगर अकासमे उड़ौ लगल आ अपना-अपना ताने, तानी-भरनी सेहो दिअ लगल। मुदा कौआ-मेना अपन-अपन ठौर धेनहि अछि, अँगना-दुआरपर नहि पहुँचल।
आन दिनसँ भिन्न आइ गामक लोकक बीच चहल-पहल भाइये गेल अछि। आन दिन, ऐ बेरमे कए गोरे अपन-अपन महींस खोलि पोसर चरबैले निकैल जाइ छला आ कियो-कियो पराती सेहो गाबए लगै छला, मुदा से आइ नइ भेल। जेहो सभ अपन गाए-महींसकेँ किरिण फुटला पछाइत घरसँ बाहर करै छला आ अपनो ओछाइन छोड़ै छला, सेहो सभ आइ भोरगरे अपन-अपन गाइयो-बरद निकाललैन आ अपनो केकरो-ने-केकरोसँ गप-सप्प करए लगला।
बचनू भाय भोरे खुशीलाल ऐठाम पहुँचला।
खुशीलालक सभ परिवार जगले छल। खुशीलालकेँ देखते बचनू भाय बजला- सबेरे नीन टुटि गेल तँए सोचलौं जे कलकत्तासँ खुशीलाल एबे कएल अछि, दार्जिलिंगक चाहपत्ती अननहि हएत, सएह जा कऽ पीबी।
बचनू भाइक विचारकेँ आगू घुसकबैत खुशीलाल बाजल-
चाहेटा किए, बिस्कुट सेहो अनने छी।
खुशीलालक बातकेँ बचनू भाय जेना बुझलैन, जेतेक बुझलैन ओ तँ बचनूए भाय जनता, मुदा बचनू भाइक बातसँ खुशीलालकेँ स्पष्ट बुझि पड़लै जे काल्हि जे रस्तामे बचनू भाय कहने छला भरिसक सएह गोटी सुतरलैन तँए खुशी छैथ। भने चाहक चर्च काइये देलैन, भिनसुरका समए छीहे, किए ने चाहेक क्रममे आरो गप पुछि लेबैन।
ओना, बचनू भाइक चरित्रकेँ खुशीलाल नीक जकाँ नइ परेख पेने छल। परखबो ओतेक असान नहियेँ अछि। माने ई जे मनुखो तँ मनुखे ने छी। कियो अधलासँ अधला वृत्त अपनाए नीकसँ अधला बनि जाइ छैथ, तँ कियो अधलासँ अधला वृत्ति छोड़ि अधलासँ नीक बनि जाइ छैथ। तैठाम पैछला आधारपर परेखब तँ कठिन अछिए। खाएर जे अछि, जेतए अछि आ जेतेक अछि से तेतइ रहह। मुदा ऐठाम मात्र खुशीलाल आ बचनू भाइक बीचक बात अछि तँए एतबे।
खुशीलाल दतमैन नहि केने छल, जइसँ मन होइ छेलै जे बासी मुँह छी। जहिना बसिया भात खेने लोक बिसराह भऽ जाइए तहिना ने बासी-मुँहक बातो हएत। ओना बचनू भाय सेहो दतमैन नहि केने छला, मात्र दू बेर कुर्राटा कऽ नेने छला।
खुशीलाल बाजल- भाय, आब की फेर दोहरा कऽ ओछाइनपर जाएब, से नहि तँ दू मिनटमे ब्रशो काइये लइ छी।
ब्रश सुनि बचनू भाय बजला- भने मन पाड़ि देलह खुशीलाल। हमहूँ दतमैन नहियेँ केने छी।
दुनू गोरे दाँत माजि, कुर्रा कऽ एकठाम भेला। आँगन जा खुशीलाल एक डिब्बा बिस्कुट निकालि माएकेँ कहलक-
माए, बचनू भायकेँ ताबे बिस्कुट दइ छिऐन आ तूँ कनी केतली-कप-सभ धोइ ले। हमहूँ चुल्हिये लग बैस तोरा देखा देबौ।
बेटेक लूरि किए ने हुअए, मुदा किछु लोक एकरा नीक बुझै छैथ आ किछु लोक अधलो बुझिते छैथ। खाएर, आन जे बुझैत होथु मुदा रजनीकेँ नीक बुझि पड़लैन। गुरु-चेलाक बीच ओहने ने सम्बन्ध अछि जेहने ऑपरेशनक डॉक्टर आ कम्पाउण्डरक बीच वा राज मिस्त्रीक संग हेलपरक बीच वा ड्राइवरक संग खलासीक बीच अछि। रजनीक मनमे ई रहबे करैन जे बेटा तीन सालपर शहरसँ आएल हेन। शहरी लोक हमरा सभसँ खाइ-पीबैमे अगुआएल अछिए। जखने खाइ-पीबैमे अगुआएल तखने ने ओकरा बनबैक लूरियो अगुआएल हेतइ...।
मुदा रजनीक मन लगले घुमि अपन तीमन-तरकारी आ तड़ुआ-बघड़ुआपर चलि एलैन। ऐबते ई बिसवास जगलैन जे केतबो शहर-बजारक लोक तरकारी नीक बनौत तैयो हमरे सबहक नीक रहत। किए तँ कोनो तरकारी बाड़ीसँ आनि सोझे कत्तापर चढ़ा, धोइ कऽ लोहियामे दइ छिऐ, तेकर सिहनता तँ ओकरा सभकेँ हेबे ने करत।
..रजनीक मनमे खुशी आबि गेलैन। दोसर ईहो खुशी तरे-तर रहबे करैन जे जखने बेटा उपारजन करि उपभोग करैक लूरि सीखि लेलक तँ जीनाइ सीखि लेलक! जखन लोक खेतसँ चुल्हि धरिक लूरि बना लेत तखने ओकरा-ले दोसराइत दोसरे राति जकाँ भऽ जाएत।
खुशीलाल अपना बुधिये विचारे माएकेँ कहने छल जे जइ चाह पत्तीक चलैन गाम-घरमे अछि तइसँ बेसी खौलबैक, माने सिद्ध करैमे दार्जिलिंगक चाहपत्तीमे समय लगैए, जइसँ ओकर भीतुरका सुआद अबैए।
बचनू भाइक मन भिन्ने तिरपित रहैन जे बहुत दिनक पछाइत एहेन बिस्कुट हाथ लगल तखन जँ ओकरा सुआदि-सुआदि नहि खाएब तँ ओकर रसे केना बुझब। मुदा से तँ परोछे-परोछी ने नीक हएत। सोझहामे जँ गपे जकाँ चीबा-चीबा बिस्कुटो खाएब तखन तँ खुशीलाल कहबे करत किने जे दाँत ढील भऽ गेलैन। भाय! जखन मुँहक दाँते ढील भऽ जाएत तखन मुँह चोकटत नहि से अखैन केना मानि लेब।
जाबे खुशीलाल चाह बना अनलक ताबे तक बचनू भाय मात्र दूटा बिस्कुट खेने छला। बाँकी डिब्बा हाथेमे छेलैन। अपन बनौल चाहक रंग देख खुशीलाल मने-मन चपचपाइत जे तेहेन हार्ड लीकरबला चाह बचनू भायकेँ पीएबैन जे बिजली-करेंट लगल कुरसीपर बैसा जहिना पेटक सभ बात निकालल जाइए तहिना सभ बात हिनकासँ बोकरा लेबैन।
चाहक कप बचनू भाइक आगूमे रखि खुशीलाल बाजल-
भाय, अखन तक अदहो डिब्बा बिस्कुट नइ सठल हेन!”
मुस्की दैत बचनू भाय बजला-
दूटा ठंढाएल मुहेँ खा कऽ देखलिऐ, मुदा धीपल चाहोमे मिला-मिला खाएब, तखन ने ओकर रंगक संग रूपो देखबै।
ओना, खुशीलाल बचनू भाइक मुँहपर मुँह चढ़ा मुस्की देलक मुदा मुस्की ने दुनू गोरेक मुस्की भेल, फुस्की तँ अपन-अपन होइ छै किने। खुशीलालक मनमे बिसवास जगल जे यएह जिनगीक अग्नि परीक्षाक जगह छी...।
बामा हाथमे अपनो-ले खुशीलाल चाहक कप अनने छल। ओसार परहक चौकीपर बचनू भाय बैसल छला। आगूमे जहिना कियो सोझा-सोझी ठाढ़ होइए वा बैसैए तहिना खुशीलाल बैसल। जिनगी जीबैले जहिना समाजक खगता लोककेँ होइ छै तहिना खुशीलालो आ बचनूओकेँ छेलैन्हे। बिनु समाज बनने असगरक समुचित विकास सम्भव नहियेँ अछि। आ तहिना, बिनु समाजिक ढॉंचा विकसित भेने देशक विकसित ढाँचा नइ भऽ सकैए। आन जे बुझए मुदा गाम-समाजक लोक नइ बुझत, सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए।
चाह-बिस्कुटक संग इलाइची चलल। दुनू गोरेक मुहसँ इलाइचीक सुआद उठि चुकल छल।
चालीस बर्खक बचनू भाइक चरित्र समाजिक कार्यकर्ताक रूपमे किछु गोरे बुझबो करै छैन आ किछु गोरे नहियोँ बुझै छैन, मुदा बचनू भाय अपने तँ एते बुझिते छैथ जे हमरोसँ लोक ठकि कऽ खाइए आ हमहूँ जँ केकरो ठकि कऽ खाइ छिऐ तँ आन समाज जे कहह मुदा ठकुआ समाज आकि ठकक समाज केना एकरा अधला कहत। हँ, आन भलेँ दियादे किए ने कहए। ओना, समाज सेवा विभिन्न स्तरमे आ विभिन्न रूपमे बँटाएल अछि तइ हिसाबे बचनू भाय दोसर श्रेणीक समाज सेवक रहला अछि। केकरो बिआह करा देब, केकरो ब्लौकमे कोनो काज करा देब एहेन तरहक किरिया-कलाप तँ रहबे केलैन हेन।
खुशीलाल गामक उजड़ल-उपटल परिवारक उपज छी। माए-बाप बोइन करि मैट्रिक पास करौलखिन। मुदा समाज तँ समाज छी। किछु गोरेकेँ किछु गोरे कान फूकि बिआहमे बाधा उपस्थित करिते रहल अछि। जइसँ मनोनुकूल परिवारमे कुटुमैती नहि होइए। मुदा नहियेँ होइए सेहो बात नहियेँ अछि। दोसर ईहो अछि जे जइ परिवारमे पाँच हाथ वस्त्र आ पाँच कौर अन्नक अभाव बेटीकेँ बुझि पड़त, तइ परिवारकेँ लोक छँटितो अछि। मुदा ओहन छँटलो परिवारक तँ समूह छै, ओकर बिआह ओहन परिवारमे होइते छइ। मुदा पढ़ने-लिखने मनमे नव विचार जगने एहनो तँ भाइये रहल अछि जे पढ़ल-लिखलकेँ पढ़ल-लिखलक जोड़ा हेबा चाही, से बाधा नहि अछि सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। तैसंग एहनो तँ अछिये जे जातिमे विभाजित समाजमे ओहनो जाति तँ अछिए जइमे लड़काक अपेक्षा लड़की कम छइ। लड़की कमैक कारण अनेको अछि जइमे मेडिकल साइंस सेहो अछिए। एहेन जातिक बीच समस्या नइ अछि सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। खाएर जे अछि, से अछि...।
कोलकातामे खुशीलाल जइ महल्लामे रहैत छल ओइ महल्लामे एकटा परिवार प्रोफेसरक छैन। दुनू परानी प्रोफेसर छैथ। कौलेजसँ निकलला पछाइत प्रोफेसर साहैब अपन दरबज्जापर बैस महल्लाबला सभसँ दू-तीन घन्टा गप-सप्प करिते छैथ। ओना, दोकान-दौड़ीक काज छोड़ि जँ टहलबो-बुलबो करै छैथ तँ अपन महल्लाक बीच टहलै छैथ। संयोगो नीक, दुनू परानी समाजशास्त्री सेहो छथिए, माने समाजशास्त्रक प्रोफेसर छैथ। समय बँचबै दुआरे भोजन बनबैले मशीनक बेवस्था केने छैथ। आब एते तँ सुविधा भाइये गेल अछि जे जिनगीक आवश्यकताक अनेको क्रियामे मशीन सहायक भऽ रहल अछि।
ओही प्रोफेसर साहैबक सानिध्यमे खुशीलाल समाजक सूत्र बुझलक। सुतिहार लोक दुनू परानी प्रोफेसर साहैब, समाजक एक-एक बन्धनकेँ तेना सुतिया-सुतिया अपनो बुझै छैथ आ लोकोकेँ बुझबै छथिन जे अन्हार इजोत जकाँ भऽ जाइए, नव दृष्टिक उदय भऽ जाइए। प्रोफेसर साहैबक सानिध्यमे खुशीलालकेँ सेहो सएह भेल जइसँ मन सकताए लगल। मन मानि गेलै जे मनुख ओहन जीव छी जे दुर्वृत्ति–माने राक्षसी वृत्ति–तियागि सुवृत्तिक जीवन धारण कऽ लिअए तँ राम-रावणक रहस्य बुझि अपनाकेँ पतियानीमे ठाढ़ कऽ लेत। ओना ई मात्र एक दिनक काज नहि, जिनगी भरिक छी।
जहिना बचनू भायकेँ समाजक खगता छेलैन तहिना खुशीलालकेँ सेहो छेलैहे। होइतो अहिना छै जे हाट-बजार जाइ काल पड़ोसिया संगी भेट गेने, पड़ोसपनक गप-सप्प होइत रस्ता कटिये जाइए। ओना, बचनू भायकेँ समाजक खगता दोसर रूपमे छैन आ खुशीलालकेँ दोसर रूपमे। खुशीलालकेँ अछि अपन परिवारमे जीवन दइक आ बचनू भायकेँ छैन समाज-ले। तँए दुनूक विचारमे सम्बन्धक दूरी तँ किछु अछिए। मुदा सम्बन्धो तँ सम्बन्ध छी जे बढ़बो करैए, ठमकलो रहैए आ घटबो करिते अछि।
ओना, चाह पीला पछाइत बचनू भाइक मुहसँ बेर-बेर हँसी फुटैत रहैन, जे खुशीलाल बुझिये ने पेब रहल छल जे किए बचनू भाय फूलि कऽ तुम्मा भेल छैथ। बिनु कारणो बेर-बेर हँसै छैथ। अनठेकानीए खुशीलाल तुम्माकेँ तुम-तुमबैत बाजल-
भाय, अहाँ ते रातिमे धमगज्जर करि देलिऐ..!”
ओना, खुशीलालक बात सुनि बचनू भाय खुलि कऽ हँसए चाहै छला, मुदा अखन तकक जे योजना–विलास आ भोगिया देवीकेँ जहल पठाएबछेलैन तेकरा बचनू भाय मात्र तीनियेँ ठाम चर्चा केने रहैथ। ओ छल अपन मात्रिकक परिवार, थाना आ गाममे अपन परिवार...।
बचनू भाय बजला-
बहुत धमगज्जर कहाँ भेल। योजनानुसारे भेल। तइमे थाना बधाइक पात्र अछि।
थानाकेँ बधाइक पात्र सुनि खुशीलाल चौंकल। किए तँ थानामे बटुआ जकाँ अनेको कोठली बनि गेल अछि जइसँ जेते लाभ समूहकेँ हेबा चाही से नहियेँ भऽ रहल छइ। खुशीलाल बाजल-
से की भाय! हमरा तँ बुझि पड़ैए जे अहीं सन शिकारीसँ सम्भव भऽ सकैए।
अपन भारीपन देख बचनू भाय बजला-
बौआ खुशीलाल, तोंही सभ ने गाम-समाज आ देश-दुनियाँक करता-धरता भेलहक, तँए कहबह जे गामक जे मूल समस्या अछि तइमे किछु केलौं अछि वा नहि। हम जे केलौं से नीक केलौं आकि अधला, तेकर निर्णय करैक अधिकार तँ तोरो ने छह।
बचनू भाइक बात सुनि खुशीलालक मन झूकि गेल। झुकिते बाजल-
बचनू भाय, अहाँ तँ देखते छी जे हमर परिवार अपने उजड़ल-उपटल अछि, एकरे ठौर धरबैमे ते नाको-दम भऽ जाएब, तखन समाजक भार लादबे ने हएत।
बचनू भायकेँ खुशीलालक विचारमे की भेटलैन से तँ बचनू भाय जानता मुदा मनमे जेना अपन कएल कृत्तिक प्रति सक्कतपन जगलैन, जइसँ दिल खोलि बात करैक जेना जमीन भेट गेल होनि तहिना बुझि पड़लैन। बचनू भाय बजला-
बौआ खुशी, अखन काजक दौड़मे छी, तँए मन कनी चौचंग अछि। जइसँ नीक जकाँ गप-सप्प नहि कऽ पाएब। ओना मनमे होइए जे जेते पेटमे बात अछि ओ अखने सोझामे बोकैर दिअ।
ओना, खुशीलाल जे दृष्टि पेब जइ समाजमे छल ओइ समाजसँ हटल अपन समाज छेलै, तँए जेते बिसवासक संग विचारमे सक्कतपन ऐबतै तइमे थोड़ेक थर-थरी पैसिये गेल रहइ। मुदा अपन मनक जे माखि होइ छै ओ तँ अनुकूल रहबे करइ, तँए जल्दीवाजीमे सेहो नहियेँ छल। ओ क्षण-पलक विचार भऽ सकैए मुदा क्रियागत स्थायी नहि भऽ सकैए। मुदा तैयो मनमे ओहन जिज्ञासा तँ जगिये रहल छेलै जे जहिना विद्यार्थी परीक्षाक तैयारीक समय ओहन अनुमानित प्रश्नक तैयारी करए लगै छैथ तखन ईहो अनुमान तँ करबे करै छैथ जे जँ ई प्रश्न परीक्षामे पूछत तँ निसचित एते नम्बर एबे करत। आ जँ अहिना सभ प्रश्नक उत्तर दऽ देब तँ रिजल्टमे प्रथम पाँतीक छात्रमे एबे करब। यएह ने भेल विद्यार्थी जीवनक लक्ष्य। खुशीलाल अपन लक्ष्यपर नजैर अँटका बाजल- भाय, जाति-टोल ने दुनू गोरेक घरो आ विचारोकेँ कनी फरका देने अछि मुदा जखन समाज बनि चलब तखन तँ ओ अनेरे ने नीचाँ पड़ि जाएत।
खुशीलालक विचार सुनि बचनू भाइक मनक बिसवास आरो मजगूत भेलैन। अपन सक्कत डोरकेँ नीक जकाँ डोरियबैत बचनू भाय बजला-
खुशी, अखन धुमसाही काजमे फँसि गेल छी। जहिना बाढ़ि एला पछाइत वा भुमकम भेला पछाइत वा आगि लगला पछाइत लोक धुमसाही काजमे पड़ि जाइए, तहिना भऽ गेल अछि। मुदा एते तँ कहबे करबह जे सौंझुका चाहो आ बिस्कुटो तोरे खेबह।
मुस्की दैत खुशीलाल बाजल-
जखन देहे तैयार अछि तखन चाह बिस्कुट तँ सहजे खाइ-पीबैक वौस भेल।
शब्द संख्या : 1903, 29 सितम्बर 2017




6.
घरपर बचनू भायकेँ पहुँचते परिवारक सभ जुटि गेलैन। जुटैक कारण भेल जे विलासक घर लगमे रहने, विलासक पत्नियोँ आ बेटो-बेटी तेना आनी-मानी लगा चिकैर-चिकैर गरियबैत जे आन जे बुझौ मुदा बचनू भाइक परिवारक सभकेँ बुझि पड़इ जे हमरे गरियबैए।
ओना, ने बचनूए भाय आकि बचनू भाइक परिवारेक आन समांगकेँ नाओं धरा गरियबैत, मुदा इशारामे नहि गरियबैत सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। जे बात बचनू भाइक परिवार ऐ रूपे बुझैत जे गाममे तँ केकरो ने किछु बुझल छै, आ ने कियो किछु करबे केलक अछि, तखन जे दोसरकेँ गारि पढ़त तँ ओ हमरा छोड़ि पढ़ैए केकरा। मुदा, परिवारक सभ एते रच्छ रखनहि छेलैन जे बिनु गारजनकेँ–माने बचनूकेँ–पुछने कियो किछु ने आगू बढ़ि करता।
भोगिया देवीक दिअर विचारक लोक। जे बेर-बेर भोगिया देवीकेँ बुझा-बुझा कहै छला जे बिआहसँ पहिने जँ कियो कोनो नीच-ऊँच काज–माने पुरुख-औरतक बीचक दैहिक क्रिया–करबो केने रहल तँ ओ कर्म नैहरक समाजक परिवेशमे धुआ जाइए। मुदा जहिना विचार जगने मनुखक कायाकल्प होइए तहिना नैहर-सासुरक बीचक सिमान टपने समाजिक स्तरपर नारीकेँ सेहो कायाकल्प होइते अछि। तँए पैछला नीच कर्मकेँ बिसैर, माने जिनगीक पूर्व कर्मक पछाइत समाजक जे ऊँच कर्म अछि तेकरा अंगीकार करैत चलबे ने जीवन भेल। मुदा से दिअरक विचारकेँ भोगिया देवी कहियो नहि मानि दए मानली। दिअरकेँ थाना-पुलिस आ कोर्ट-कचहरी तँ हाथमे नहि रहैन जे हाथ पकैड़ कऽ सजा कए दइतथिन। एक आँगनमे रहितो दिअर अपन सम्बन्धक दूरी ओते बना नेने छला जेते क्रियागत विचारक दूरी हेबा चाही। तँए भोगिया देवीकेँ पुलिसक संग कानूनक हाथ पड़ने मन खुशियो रहैन। मुदा तैयो दलानक ओसारक चौकीपर चुपचाप पड़ल रहबे करैथ। जखन पुरुखे-पात्र मुँह बन्न केने रहत तखन जनिजातिये किए अनेरे किछु बाजत।
बचनू भायक पत्नी बजली-
भोरेसँ विलासक बहुओ-बेटी आ बेटो गरियबैए, आ हम सभ मुँह बन्न केने सुनि रहल छी...।
ओना, बचनू भाइक मन ओइठाम अँटकल छेलैन जैठाम भुमकम भेला पछातिक जे स्थिति होइ छइ। मुदा ऐठाम तँ दुनू परिवार आमने-सामने भऽ गेल अछि। तैसंग ईहो तँ नकारल नहियेँ जा सकैए जे एक दिस गामसँ जहल तकक रस्ता सोझमे अछि आ दोसर दिस परिवारकेँ सेहो ने विचारक संग ओते दूर चलबो आ करबोक अछि।
बचनू भाय पुछलखिन-
अपना सबहक नाओं धरा कऽ गरियबैए?”
एहेन प्रश्न रखैक कारण बचनू भाइक छेलैन जे जखन गामक कियो नहि बुझि रहला अछि तखन परिवारक नाओं लगौत से ओकरे मजाल छिऐ। ओना, पत्नियोँ आ परिवारक आनो-आन बेकती सुननहि छला जे अपन परिवारक केकरो नाओं तँ नइ लइए मुदा मात्रिकक चर्च जरूर करैए।
बचनू भाय अपन छोट भाएकेँ पुछलखिन-
सुरेश, मात्रिकक नाओं लइए?”
मुड़ी डोलबैत सुरेश कहलकैन-
हँ!”
बचनू भाय बुझबैत बजला-
जइ गाममे तोहर मात्रिक छह तइ गाममे केते लोकक मात्रिक छै, तेकरा किछु लगबे ने करैए आ तोरे किए लगै छह!”
परिवारक तँ सभ ठमैक गेल, मुदा मनमे ईहो रोपि लेलक जे जखने परिवारक नाओं लेत तखने हमहूँ सभ गरियेबै।
बचनू भाय बजला-
गारि-गरौबैल केने ते अनेरे ने झगड़ा बढ़त।
परिवारजन-
जँ ओ झगड़ा करैले तैयार हएत ते हमहीं सभ किए पाछू हटि जाएब।
बचनू भाय बजला-
आब ते हमहूँ ने एलौं। हमहूँ ने अपना काने सुनब।
ओना बचनू भाइक विचार सुनि परिवारक सभ ठमैक गेल मुदा मनमे ईहो रहबे करइ जे जखने अपना कानसँ सुनब तखने उनटाबए लगब। जे बात बचनू भाय बुझि गेला। मुदा जखन रणक्षेत्रमे ठाढ़ भेल छी तखन सेनाक जरूरत तँ अछिए, तइले तँ रणफलो सभकेँ जना देब जरूरी अछि, जइसँ ओ अनुशासित सिपाही जकाँ कहियौ आकि गाछ परहक घोरन वा माटि परहक मुसहरनियाँ चुट्टी जकाँ, जे जखन ओ पकैड़ लेत तखन अपने किए ने टुटि कटि जाए, मुदा छोड़त नहि। मुसहरनियाँ कोनो जाति-विशेष नहि, माटिपर चलैबला चुट्टीक एकटा किस्म छी। चुट्टीक अनेको किस्ममे किछु एहनो अछि जेकरा रहैक अप्पन ठौर बनबैक लूरि नइ छै, आ किछु किस्मकेँ अछिए। जइ किस्मकेँ अपन ठौर बनबैक लूरि अछि ओइ किस्ममे जे सभसँ बीहर अछि–माने जेकरा बोहैर बनबैक लूरि छैओकरा मुसहरनियाँ चुट्टियो कहै छै आ मुसहरबा चुट्टा सेहो कहल जाइ छइ।
अपन परिवारकेँ जखन आँखि निराड़ि कऽ बचनू भाय देखलैन तँ बुझि पड़लैन जे आन-आन जे छोट-पैघ मन-भेद अपनामे अछियो तँ ओ ऐठाम–माने विलासक घटनामे–सहजे पोखैरक पानिमे जहिना छोट-छोट डुमैबला वौस डुमि कऽ विलीन भऽ जाइए तहिना विलीन भाइये जाएत...।
दर-दियादक बीच बचनू भाय छथिए, परिवारक सभ लोककेँ एक्के शब्दमे कहलखिन-
अहाँ सभ अखन ऐ विवादमे नइ उलझू। ऐसँ परिवारक गतिमे बाधा पहुँचत, तँए अहाँ सभ अपन-अपन काजमे लगि जाउ। हम दरबज्जेपर बैसल अकानै छी। जखन उक्खैरमे मुड़ी देलौं तखन मुसराक डर करब।
बचनू भाइक बात सुनि सभकेँ भेलैन जे गारजनो अपना सबहक विचारसँ सहमत भऽ मानि लेलैन।
सभ समांगकेँ लगसँ हटला पछाइत बचनू भाय अपनाकेँ एकान्तमे पौलैन। एकान्तमे पबिते अपन उठौल डेगक प्रक्रिया दिस बचनूक नजैर दौड़लैन। पुरुख-महिला कहियौ कि मौगी-मरद आकि लड़का-लड़की दुनूक बीच लैंगिक सम्बन्ध होइत आबि रहल अछि, जेकरा-ले समाजमे ढीलसँ ढील आ कड़गड़सँ कड़गड़ नियम सेहो बनिते-मेटिते आबि रहल अछि मुदा जहिना एकहत्तैर रंगक धाह-बोखार आ उनचास रंगक हवा-बिहाड़ि होइए तहिना एहेन रोग समाजमे सैयो रंगक अछि। मुदा ऐठाम से नहि, मात्र एक रंगक रोगसँ मतलब अछि।
ओना अखन तक जे बचनू भाइक योजना छैन तइमे जँ समाजक सहयोगकेँ छोड़ि डेग बढ़ौल जाएत तँ ओ ओहने हएत जेहने बहैत पातर धाराकेँ माटिक ऊँचगर बान्ह बान्हि रोकि देल जाइ छै, एहेन उदाहरणोक तँ ढेरी अछिए...।
परिवारसँ आगू बढ़ि बचनू भाय पड़ोसीक दरबज्जापर पहुँचला। रौतुका घटना–माने विलास आ भोगिया देवीक एरेस्टिंग–क चर्च तँ गाममे पसरले छल, मुदा बिनु जड़ि-मुड़ी बुझने घंघौजे केतेकाल चलि सकैए, जीतन काका चौक-चौराहाक हवा-पानि पीब दरबज्जापर आबि चुकल छला। मुदा मन झुझुआएले रहैन। झुझुआइक कारण रहैन जे आगूमे माने लगमे भुमकम भेल आ बुझियो ने पेलौं, जे किए भेल। बचनू भायकेँ दरबज्जापर देखते जीतन काका बजला-
गामक की हाल-चाल बचनू?”
बचनू भाय बुझि गेला जे बैशाख-जेठक चिड़ै जहिना पानिक अभावमे पियासे लोल रगड़ए लगैए सएह गति जीतन कक्काक छैन। अखन जीतन काका घटनासँ पूर्ण अनभिज्ञ जकाँ बुझि पड़ै छैथ तँए जँ सही दिशामे सही ढंगसँ अपन बात कहबैन तँ जरूर सोलहअना नहि तँ आठोअना बिसवास करबे करता...।
बचनू भाइक मनमे पड़ोसीपनक कर्तव्य सेहो जगलैन। बजला-
काका, गाम किए कहबै, अपन तँ टोले छी किने, जइ बीच घटना भेल अछि।
जीतन काका बजला-
एकरा के नकारत।
बचनू भाय बजला- केहेन चालि-परकितक भोगियो देवी आ विलासो अछि से तँ अपनो सभ देखते छी। देखला पछाइत मुँह दबने छी ई दीगर बात भेल।
बचनू भाइक बात सुनि जीतन काका ठमैक गेला। ठमकैक कारण भेलैन जे दस बर्ख पूर्व एहने कोनो बात बजला जेकर अनुचित हरजाना भरए पड़ल छेलैन...।
जीतन काकाकेँ ठमकल देख जहिना गाइयक बच्चा अपन माइयक थनमे मुहसँ उधका-उधका दूध अनैए तहिना बचनू भाय पड़ोसी समाज जकाँ उधकबैत बजला-
काका, अखन दुइये गोरे छी। एकसँ दू कियो तखन ने होइए जखन दुनूक पेटो आ पेटक विचारो एकसंग मिलैए। जइसँ विचार-धाराक जन्म होइए।
बचनू भाइक विचारसँ जीतन काकाकेँ जेना सह भेटलैन तहिना अपनाकेँ सहियारैत बजला-
बौआ बचनू, आब की समाज समाज रहल, कौआक समाज भऽ गेल। जे खेला-पीला पछाइत जखन पहिल साँझमे सभ एकठाम हएत तखन सभ अपनामे मुँहमिलानी करत जे आइ तक जे अधला केलेँ आकि अधला बचन बजलेँ से बजलेँ मुदा काल्हिसँ से ने कियो झूठ बजिहेँ आ ने झूठक कमाइ खइहेँ।
मुस्की दैत बचनू भाय बिच्चेमे टोनलैन-
मैनजनक बात सभ कौआ मानि लइए?”
गंभीर होइत जीतन काका बजला-
एना धड़फड़ेने नइ ने हेतह। कहिते तँ छिअह।
बचनू भाय अपन मुँह समटैत बजला-
ठीक छै, जखन अहाँ बजैले कहब तखने बाजब। मुदा...।
बजैक क्रममे जीतन काका रहबे करैथ, तँए मनमे शंका होइत रहैन जे बीचमे टोक-टाक भेलासँ रस्ता परहक खाधि कहियौ आकि बाट परहक बटमारि, विचारक लड़ीक कड़ी छुटि गेने रसमे थोड़ेक कमी तँ ऐबते अछि। जइसँ जेतेक मधुर बना जीतन काका अपन विचारक विन्यास परसए चाहै छला तइमे कमी बुझि पड़लैन।
बजला-
मुदा-तुदा अखन किछु ने।
ओना बचनू भाइक मनक इच्छा रहैन जे जेतेक खुलि कऽ जीतन काकासँ गप-सप्प हएत तेतेक पेटक मिलानी सेहो हएत। मुदा अपना झोंके जीतन काका बाजि जाथि आ बीचक खाधि-खुधि हम बुझबे ने करी, आ जँ अन्त होइसँ पहिने जेहो किछु खाधि-खुधि भेटल रहत ओ जँ बिसैर जाइ तखन तँ ओ खाधि अपन जगह बनौनहि रहत किने...। मुदा फेर लगले बचनू भाइक मनमे उपैक गेलैन जे जीतन काका कोनो घटना विशेषक चर्च थोड़े कऽ रहला अछि, ओ तँ कौआक किस्सा कहि रहला अछि। तखन सरदर सुनैमे की लागत। कोनो कि ऐसँ सरदारी पनैप जाएत। बचनू भाय बजला-
अच्छा हौउ काका, अहींक विचार रहल। मुदा हम सुनब आँखि मुनि कऽ, तेकरा अहाँ सुतल नइ बुझब।
बचनू भाइक बात सुनि जीतन काकाकेँ मन गवाही देलकैन जे अखन भिनसुरका पहर छी, अखन नीनक बेर थोड़े अछि जे नीन आबि जेतइ। आँखियो मुनि कऽ जँ सुनत तहूमे कोनो हर्ज नहियेँ अछि।
जीतन काका बजला-
जे कहलियह से पहिल प्रस्ताव, पहिल कौआक ने भेल, ओकरा की कोनो बोध छै जे कुल-खनदान बुझत आकि बाबा-दादाक मैनजनीपर विचार करत।
मैनजनी सुनि बचनू भाय अपन आँखि खोलि जीतन कक्काक आँखि-पर-आँखि चढ़ौलैन। आँखि-पर-आँखि चढ़िते माघ मासक रौदक गरमी जहिना सूर्यसँ निकैल देहमे प्रवेश कऽ गरमबैए तहिना जीतन काकाकेँ विचारमे गरमी एलैन। गरमी पबिते जीतन काका अपन हाथक इशारासँ शान्त करैत आगू बाजए लगला-
दोसर कौआ प्रस्ताव देलक जे एतबेसँ काज नइ चलत। जिनगी बड़ नमहर अछि। तँए ओ अपन प्रस्ताव जोड़लक जे ने अधरमी बनि समाजमे रहैक अछि, तइले ने अधरम काज करब आ ने अधरम बात-विचार करैक अछि जइसँ अधरम विचार जगत, आ ने अधरम बाट चलैक अछि जइसँ अधरम रस्ता बनत।
बचनू भायकेँ जेना रस भेटलैन तहिना बजला-
विचारवान तँ जरूर रहबे करइ।
मुस्की दैत जीतन काका बजला-
बौआ, एना जे खोंट-खाट करबहक तँ कहैमे बड़ देरी लागत, मन ओतेक चैन अखन नइ अछि।
बचनू भाय बजला-
बड़ नीक! अहाँ कहैत चलियौ। जखन कहब जे भऽ गेल, तखन आँखि खोलब।
जीतन काका बजला-
ई भेल पहिल पहरक बैसारक विचार माने सौंझुका बैसारक गप। रातिमे जखन एक-एक नीन सुति कऽ सभ उठत, मनुख जकाँ नअ-दस घन्टाक नीन कौआकेँ थोड़े होइ छै, कौए-क नीन छी, जागल अछि कि सुतल से अपनो ने बुझैए। दोसर बैसार फेर केलक। दोसर बैसारमे पहिल प्रस्तावमे थोड़ेक संशोधन केलक जे पहिल प्रस्ताव अबेवहारिक जकाँ लगैए, तँए जे बेवहारिक होइ, ओ जोड़ा गेल।
प्रस्ताव जोड़ब सुनिते बचनू भाय आँखि खोललैन। आँखिपर आँखि चढ़िते जीतन काका बजला-
आब दुइये पहर राति बाँकी अछि तेकरा हाँइ-हाँइ कऽ सुना दइ छिअ। तेसर पहरमे जखन सभ एकठाम भऽ निचेनसँ विचार करए लगल तँ फेर प्रस्तावमे संशोधन करैत विचार केलक जे चारिम पहरमे भोर हएत, केकर कखैन नीन टुटतै से ठेकान अछि, तँए आब ओ बैसार नइ हएत। यएह बैसार अन्तिम छी, तँए रामराज्य जकाँ सभ स्वतंत्र छह, जेकरा जे मन फूरह से सएह करिहह। 
जीतन कक्काक खिस्सा अन्त होइत बचनू भाय आँखि तकलैन तँ बुझि पड़लैन जे जीतन काका धारक पानि जकाँ बहि तँ नइ रहल छैथ मुदा जँ बहैतक संग बहौल जाए तँ बहता धारक संग जरूर बहैत चलता। जइसँ बचनू भाइक मनमे सवलताक आभास भेलैन। तहीकाल सुगिया काकी चाह नेने दरबज्जापर पहुँचली। दुनू गोरेकेँ हाथमे चाहक कप पकड़बैत सुगिया काकी आगूमे ठाढ़ भेली। गामक घटना बुझैक उत्सुकता मनमे रहबे करैन। उत्सुकताक दू कारण छल, पहिल जे एकसंग मरद-औरतकेँ पुलिस पकैड़ लऽ गेल आ दोसर ई जे जखन पति विचारक बात करैत रहता तँ किए ने तखने दुनू गोरेक विचारमे अपन जे किछु कनी-मनी घटी-बढ़ी अछि ओकरा तेहल्ले लग एकरंग कऽ ली। ओना, जँ पति धियानी जकाँ कोनो धियान करैत होथि तखन यत्र-कुत्र चर्च करब नीक नहियेँ छी, मुदा अखन तँ से नहि अछि। तहूमे बचनूसँ पुछब केहेन हएत। एक तँ वेचारा तेहाला छी, दोसर पति-पत्नी जखन एकठाम छी तखन हुनकर विचार ने परिवारक विचार भेल।
सुगिया काकी बजली-
चौक-चौराहापर गेल छेलौं, रौतुका घटनाक किछु भाँजो लागल?”
सुगिया काकीक बात सुनि जीतन काका सकपका गेला जे कोनो निश्तुकी बात तँ बुझल अछि नहि, जँ अखन तेहालाक सोझामे, अपना घरोमे बाजब तँ की ओ घरे भरि थोड़े रहत। तहूमे बुझले अछि जे यएह गुर खेने कान छेदौने भेले अछि। माने ई जे अहिना पुरुख-औरतक बीचक गामेक बात छल, सुनलौं आ यत्र-कुत्र बजलौं। अन्तमे घटना लेन-देन भेने फरियाएल, बजलाहा दोखी भेलौं। जइसँ कान पकैड़ पनचैतीमे बाजए पड़ल छल। जे जे बजलौं से गल्ती भेल, आब एहेन बात कहियो ने बाजब।
जीतन काका पत्नी दिस तकैत बजला- काजक औगताइ तँ बेसी नइ ने अछि। जँ अछि ते जाउ, पछाइत साँझू पहर सभ बात, खिस्सा जकाँ सुना देब। पहिने अखन दुनू बापूत विचार करै छी।
ओना, सुगिया काकीकेँ काजोक धड़फड़ी रहैन मुदा बातो-विचार सुनैक इच्छा मनमे रहबे करैन तँए ठमकल ठाढ़े रहली।
बचनू भाय बजला-
काका, हमरा जेते बुझल अछि ओते अहूँकेँ बुझल हएत आ गामक लोककेँ सेहो बुझले छै, मुदा तेतबे बुझने काज नहि चलत।
ओना, बचनू भाय भविसकेँ नजैरमे राखि बाजल छला मुदा से बात ने जीतने काका बुझला आ ने सुगिये काकी।
सुगिया काकी बजली-
ओना, दुपहर रातियेसँ जगलो छी आ गलो-गुल सुनै छिऐ। मुदा जगहपर अखन धरि गेलौं हेन नहि, माने विलासो ऐठाम आ भोगियो देवीक ऐठाम। किए तँ अगिलग्गी हुअ आकि मरण-जरण हुअ तइमे समाजक सभकेँ सभठाम जेबाक अधिकार अछिए जइसँ सभकेँ सभठामक रस्ता खुजले रहैए। मुदा थाना-पुलिसक जैठाम गप अछि, तैठाम बिनु बुझने डेगो उठाएब नीक नहियेँ हएत।
सुगिया काकीक विचार बचनू भायकेँ नीक लगलैन। मुड़ी डोलबैत बजला-
हँ से तँ नीक नहियेँ हएत, मुदा नीक-अधलाक विचार करैत नहियोँ जाएब नीक नहियेँ हएत।
बिच्चेमे जीतन काका बजला-
बचनू, तूँ चालू-पुरजा लोक छह। बेसी लोकक तरी-घटी तोरा बुझल छह, तँए तोरा जे बुझल छह से बाजह।
जीतन कक्काक विचार बचनू भायकेँ जेते नीक लगलैन तेते शंको जगलैन। नीक ई लगलैन जे समाजमे एहेन समस्याक प्रति नजैर जगलैन, तँए जगलकेँ जगाएब नीक हेबे करत। मुदा शंका ई अछि जे आन बुझह वा नहि बुझह मुदा अपने तँ बुझबे करै छी जे अखन गाम समाज दिस बढ़ि रहल अछि। जइमे अपने रणक्षेत्रमे छी। रणक्षेत्रक अपन सीमा अछि। जँ सीमाक उल्लंघन हएत तँ रणकौशलमे कमी-बेसी हएत। जइसँ धरती डगमगेबे करत। मुदा तैसंग एकरो तँ नहियेँ नकारल जा सकैए जे रणविद्या जीतन काका पचा सकता की नहि। जखने एकटा बात बाजब तखने ओइमे नोन-तेल मिला तेतेक बात जोड़ि देल जाएत जे रणभूमिये हेरा जाएत...।
अपनाकेँ समटैत बचनू भाय बजला-
काका, उड़न्ती गप जहिना अहाँ सुनलिऐ तहिना हमहूँ सुनलौं। मुदा थाना-पुलिसक, कोर्ट-कचहरीक बात छी, तँए बिनु बुझने बाजबो तँ नीक नहियेँ हएत।
बचनू भाइक विचारकेँ सूहकारैत जीतन काका बजला-
हँ हँ! जइ काजमे जइ घाटक पानिक जरूरत हुअए, ओइ काज-ले ओही घाटक पानि आनब नीक। गंगा तँ एके छी मुदा किए ओइमे मगैहिया घाट अछि।
जीतन कक्काक विचार सुनि बचनू भाय मुस्कियेला। बचनू भाइक मुस्की देख सुगिया काकीक मनमे खुशी भेलैन जे पतिक विचार बचनू भाइक विचारसँ ऊपर चढ़ि रहल अछि। बजली-
बड़ बेस।
सुगिया काकीक बड़ बेस सुनि जीतन कक्काक मन चपचपेलैन। चपचपाइते नजैर-मे-नजैर मिलबैत बजला-
बुढ़ भऽ गेलौं आ अखनो तक गामक लोककेँ नइ चिन्ह सकलिऐ! भरि दिन फुसि-फटकमे सभ कौआ जकाँ उड़बो करैए आ चौक-चौराहापर कँए-कँए सेहो करिते अछि।
बचनू भाय बजला-
काका, दुपहरमे थानापर जाएब आ साँझ तक घुमब। खुशीलालकेँ कहि देने छिऐ जे सौंझुका चाह तोरे ऐठाम पीबह। तँए अहूँकेँ ओतुक्के चाहक नौतो भेल आ थानाक गपो-सप्प सुना देब। किए तँ जहिना हम हमहीं भेलौं आ अहाँ अहीं भेलौं तहिना खुशीलालो तँ खुशीलाले भेल, मुदा जखने तीनू गोरे एकठाम हएब तखने ने समाज भऽ जाएब।
शब्द संख्या : 2450, 03 अक्टुबर 2017




7.
जीतन कक्काक ऐठामसँ बचनू भाय आबि अपना दलानक चौकीपर बैस गामो दिस हियाबए लगला आ थाना दिस सेहो। समयपर कोनो काज करबे काजक सगुन होइए। मुदा ओ सगुन बनैए केना, ई निर्भर करैए अपन-अपन विचार आ जीवनक क्रिया-कलापपर। सभ बेकती स्वयं अपन निर्माणकर्ता होइए। थानापर नइ गेने, काज गड़बड़ हएत। आन जे गड़बड़ हुअए वा नइ हुअए मुदा एते तँ बुझले अछि जे गाम-घरसँ लोककेँ थाना पकैड़ कऽ लऽ जाइए आ लेन-देन केने छोड़ि दइए।
ओना, दस बजेमे कोर्ट-कचहरी खुजैए तँए ओतेकाल थानामे रहबे करत। मुद्दालहक संग केसमे जान फूकब सेहो अछिए। ओहू वेचारे सभकेँ–माने थानेदार-पुलिसकेँ–रौतुका जगरना सेहो छैन्‍हे। तँए दस बजेसँ पहिने जाएब नीक नहि। तैबीच ईहो हेबे करत जे चारू दिससँ पर-पैरवी सेहो हेबे करत। जहिना एरेस्ट भेला पछाइत समाचार पसरैमे तीन-चारि घन्टा लगिये जाइए तहिना थानासँ कोर्ट गेला पछाइत बीचक समयमे ईहो पसरिये जाएत जइसँ थानोक भीड़ छँटत। तँए नीक हएत जे दू बजेक पछाइत जाएब। गाड़ी-सवारीक जुग भेल, तीन-चारि घन्टा समय काजक बहुत भेल।
थानासँ निसचिन्त भेला पछाइत बचनू भाइक नजैर परिवारपर एलैन। परिवारोक ओगरवाही अखन जरूरी अछिए।  गाममे ने कनफुक्का सबहक कमी अछि आ ने कनसुन्नी बुझनिहारक कमी अछि...। ऐठाम अबैत-अबैत बचनू भाइक मन जेना हुमरलैन। हुमरलैन ई जे गामक जे समस्या अछि ओकरा गौंआँ बैस निराकरण करह। एक दिस जइ वृत्तिकेँ प्रतिष्ठाक प्रश्न बनौने अछि, जेकरा इज्जत-धरम सभ कहल जाइए, ओकर प्रतिष्ठा केना बनल रहत तेकरा अगुआबह। लगले धिया-पुताक खेल आ लगले जुगक खेल कहनेटा सँ नइ ने हएत। समाजमे एहेन-एहेन रोग–माने पुरुख-नारीक बीच लैंगिक सम्बन्ध–सँ अनेको रोगाह अछिए। खाएर जे अछि, मुदा जइ काजमे डेग बढ़ेलौं ओइ काजसँ पाछू नइ हटब। समाज बुझह सेहो बाह-बाह, नइ बुझह सेहो बाह-बाह, ओ समाज जानह।
अपन छोट भाएकेँ बचनू भाय कहलखिन-
बौआ, अखन तूँ बाल-बोध छह तँ ने औगता कऽ किछु बजिहह आ ने केकरोसँ झगड़ा करिहह।  
सुरेश बाजल-
भैया, कियो जँ आँखि देखौत ते की ओकरा छोड़ि देबइ?”
मुस्की दैत बचनू भाय बजला-
जहिना तूँ बुझै छहक जे ओकर आँखि फोड़ि देबइ तहिना ने ओहो तोहर आँखि फोड़ि देतह।
मुस्की दैत सुरेश बाजल-
यएह ने पेंच छी भैया, जे आँखि फुटने लोक आन्हर होइए आकि डिठगर माने नइ देखैबला होइए आकि देखैबला होइए, सएह नइ बुझै छी।
सुरेशक बात सुनि बचनू भाइक मन गद-गदा गेलैन मुदा बजला किछु ने। बचनू भायकेँ चुप देख सुरेश नहाइले विदा भऽ गेल।
तैबीच पत्नीकेँ शोर पाड़ि बचनू भाय बजला-
देखू, गाममे अखन किछुसँ किछु भऽ सकैए, तँए औगुता कऽ ने किछु बाजब आ ने किछु करब। ओना, दू बजे तक हमहूँ छीहे।
बचनू भाइक परिवारमे सभकेँ बुझल रहबे करैन। तँए हवा-बिहाड़िक बातक कोनो असर नहियेँ होएत मुदा समाजो तँ समाजे छी किने, जहिना नटकिया लोकक कमी नइ अछि तहिना फटकिया लोकक कमी सेहो नहियेँ अछि। जखने नटकिया-फटकिया एकठाम हएत तखने ने झटकिया शुरू भाइये जाएत। जखने झटकिया हएत तखने समाज दलमलेबे करत। जखने समाज दलमलाएत तखने दल बनि दलदल करबे करत।  
तही बीच दू डिब्बा बिस्कुट नेने खुशीलाल पहुँच गेल।
आगूमे भौजीकेँ देख खुशीलाल बाजल-
भौजी, गोड़ लगै छी।
कहैत दुनू डिब्बा बिस्कुट भौजीक हाथमे दिअ लगलैन मुदा तइ बिच्चेमे भौजी बजली-
एतै बिस्कुटक डिब्बा रखू, चाह बनौने अबै छी। अपनो दुनू भाँइ खेबो-पीबो करब आ धियो-पुतो सभकेँ दऽ देबइ।
पत्नीकेँ चरियबैत बचनू भाय बजला-
जाउ, गीताकेँ कहि दियौ चाह बनौने औत आ अहाँ अहीठाम आबि गप-सप्प सुनू।
पतिक बोलकेँ बुधनी भौजी आदेश बुझि दरबज्जापर सँ आँगन पहुँच बेटी–गीता–केँ कहलखिन-
बुच्ची, जल्दी चाह बना लेब तँ बिस्कुटक संग खुआ देब।
गीता बाजल-
कोन बिस्कुटक संग?”
बुधनी भौजी-
कलकतिया बिस्कुट।  
कहि चोटे आँगनसँ घुमि बुधनी भौजी दरबज्जापर पहुँचली। ओना, गीता चाह बनबए विदा भऽ गेल मुदा बिस्कुटक नाओं सुनि चाह बनबैक प्रक्रियामे चीनीक मात्रा लग आबि ओहिना घुरियाए लगल जहिना सुकुमार लत्तीक मुड़ी कोनो छोटो-छीन वा दुबरो-पातर बाधासँ धुरिया जाइए। बी.ए. पार्ट- वनक छात्रा गीता, मने-मन यएह ने तँइ कऽ पाबि रहल छल जे चाहमे केतेक चीनी देब! चाहो तँ चाह छी जेकर अनेको रूप छइ। एक गिलास पानि पीलाक पछातिक चाह आ नमकीन बिस्कुटक संग खाइबला चाहमे एके रंग चीनी केना पड़त? ओना पानि पीला पछातिक चाहक सम्बन्ध पीलाक होइए, मुदा बिस्कुट संग चाहक सम्बन्ध खेलाक भऽ जाइए। तैसंग ईहो तँ प्रश्न अछिए जे कोन चाहमे केतेक चीनीक खगता अछि। चाहपत्तीक तीतपन कटै दुआरे आकि सुगन्धित शरबत बनबै दुआरे चीनी पड़त? आ तहूमे जँ मीठहा बिस्कुट हएत तखन केतेक चीनी देब...। गीताक मन अक्छाए लगल। तैबीच चाहो खौल गेल। हाँइ-हाँइ कऽ आने दिन जकाँ कपमे चीनी दइत गीता चाह छानि लेलक।
दरबज्जापर चाह नेने गीताकेँ ऐबते देख खुशीलाल बाजल-
भाय, तीन साल पहिने जइ गीताकेँ देखने छेलिऐ ओ तँ तीनियेँ बर्खमे बदैल कऽ सियान भऽ गेल।
बचनू भाय बजला-
हँ से तँ भाइये गेल मुदा परिवारो तँ एकटा नमहर काजक ओझरीमे पड़िये गेल अछि।
खुशीलाल-
से की भाय साहैब?”
खुशीलालक बात सुनि अपन करैत वृत्तिपर जेना बचनू भायकेँ ग्लानि हुअ लगलैन। ग्लानि ई हुअ लगलैन जे जइ समाजक बीच रहै छी ओइ समाजमे विचारक रूपे बदैल गेल आ बीचमे करैत-धड़ैत अपनो मुँह तकिते रहि गेलौं। माने ई जे जइ समाजमे दहेजकेँ प्रतिष्ठाक आदर्शसँ बाहर मानल जाइ छल माने अप्रतिष्ठित काज बुझल जाइत छल, ओ दहेज आइ प्रतिष्ठाक आदर्श बनि समाजमे अपन श्रेष्ठता बना लेलक अछि। जइसँ जइ परिवारकेँ जेते बेसी दहेज भेटै छै ओ परिवार ओतेक प्रतिष्ठित अपनो बुझैए आ समाजो मानए लगलै हेन। मुदा अपनाकेँ, कौआक लोलसँ उजारल खढ़क घरकेँ जहिना लोक झाँपैन दइए तहिना अपनाकेँ झँपैत बचनू भाय बजला-
रंग-बिरंगक तमाशा सभ समाजमे आइये नहि, सभ दिनेसँ चलैत आबि रहल अछि आ अखनो चलिये रहल अछि।
खुशीलाल-
से की भाय साहैब?”
बचनू भाय-
देखै नइ छहक जे केहेन बरह-रूपिया रूप समाज पकैड़ नेने अछि।
बंगालक प्रवासक दौड़मे खुशीलाल अनुभव कऽ नेने छल जे समाजमे तेहेन अलंकारिक शब्दक प्रयोग होइए जे कामनाक जड़िकेँ खोइध दइए। जइसँ शब्देक जाल तेना पसैर कऽ पसाही लगा देने अछि जे किछु थाहे ने पबै छी। बेटी-बहिनकेँ शिक्षा दियौ माने पढ़ाउ। सतरह-अठारह बर्खक शिक्षा पेब जखन ओ बिआह करै-जोकर होइए। जेते अहाँ पढ़ैमे खर्च केलौं तेकर एको पाइ हिसाब नइ होइए आ ओइसँ बेसी रूपैआ दहेजमे खर्च कऽ ओकर बिआह करू। जँ अहिना परिवारक विघटन होइत रहत तखन केना परिवारक संघटन हएत? ओना, विचारक क्रममे बचनू भाइक मन वौआ रहल छेलैन, मुदा समयपर सेहो ठेकान रखनहि छला। मनमे उठलैन- अखन अनेरे आन-आन समस्यामे ओझराएब समयकेँ नष्ट करब हएत। तँए जे सामनेक समस्या अछि, तइ विषयमे किए ने गप-सप्पकेँ उठाबी। बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, दू बजे थानापर जाएब अछि।
अपन बुझल विचारकेँ बचनू भाय अखन नइ खोलब नीक बुझलैन। गाम डगमगा रहल अछि तैबीच कोनो एहेन लुत्ती ने उड़ि जाए जे होत-सँ-होतांग भऽ जाए। तँए एतबे बाजि बचनू चुप भऽ गेला।
खुशीलाल बाजल-
भाय साहैब, आब तँ हमहूँ गाम एलौं। जँ जरूरी–माने थानापर जाइमे–हुअए तँ हमहूँ चलब।
अपन आगू-पाछूक हिसाब जोड़ैत बचनू भाय विचारलैन जे अखन असगरे चलब नीक हएत। ऐ दुआरे जे थाना-पुलिस छी जखने एकसँ दूक संग जाएब तखने रस्ता-पेराक लोक बुझत जे किछु खास बात अछि। गाममे चहल-पहल अछिए। बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, तोरा ते हम छोट भाए बुझि आशा बन्हनहि छी। तीन सालक पछाइत गाम एलह अछि, तोरा संग गेने लोककेँ अनेरे केतेक रंगक शंका मनमे दाबत। तँए अखन असगरे जाएब नीक हएत।
बचनू भाइक विचारकेँ खुशीलालक मन नीक जकाँ मानलक जे एक तँ नव-नव घटना भेल अछि, तइमे अपनो नव-नव गाम एलौं अछि। तहूमे बचनू भाय थानासँ आबि जखन सौंझुका चाह पीबैले एबे करता, तखने सभ बात किए ने बुझि लेब। खुशीलाल बाजल-
अखन जाइ छी, फेर साँझमे भेँट हेबे करब किने?”
मुस्की दइत बचनू भाय बजला-
ऍंह, भेँट केतौ नइ दिअ। असगरे किए, जीतन काका सेहो रहथुन। हुनको नौत दइये देने छिऐन।
खुशीलालकेँ गेला पछाइत बचनू भाय अपन चलैक रस्ताक विचार करए लगला। गाममे थाना-पुलिसक आगमन भेल अछि। आन जहिया बुझत से बुझत मुदा थानो आ मात्रिकोक लोक तँ बुझिते अछि जे बचनूक हाथ ऐमे छइहे। तँए आन राही-बटोहीक रस्ता-बाट तँ अपन नइ हएत। एक करताइतक रूपमे छी। तँए चारू दिस चकोना तँ हुअ पड़त। ओना, अखनो गामक अपन परिवार छोड़ि कियो ई नहि बुझि रहल अछि जे बचनू ऐमे पील कऽ पड़ल अछि। भेल तँ, गामक लोककेँ बुझले ने छैन आ अनगौंआँ सहजे सुनला पछातिये ने बुझता। थाना सेहो थने छी, ओहो की परचा-पोस्टर छपा रोडपर टाँगत सेहो तँ नहियेँ अछि।
मनमे थानाक काज ऐबते बचनू भाइक मन आगू छड़ैप गेलैन। आगू छड़ैपते मुँह बुदबुदेलैन-
बधाइक पात्र थानाक बड़ा बाबू छैथ। अखन तक जेते देखलौं तइमे जहिना बड़ाबाबू विचार देलैन तहिना करबो केलाह, तँए नीक हएत जे हुनका डेरापर पहुँच परिवारक बीच जँ अपन कृतज्ञता प्रगट करी तँ परिवारजनक मन सेहो जुड़ेतैन।
विचार केला पछाइत बचनू भाइक मन बिहुसि उठलैन। मनकेँ बिहुसिते मुँह खिलए लगलकैन। खिलखिलाइत मुहसँ अनायास निकललैन-
तेहेन जुग-जमाना भऽ गेल अछि जे जइ सहोदर भाए वा बेटाकेँ पेटक पालनसँ देहक पालन करैत पढ़ा-लिखा सम्पन्न बनबै छी ओहो कहैए जे अहाँ की केलौं! जखन घरेमे एहेन लीला अछि तखन गाम-समाज तँ गाम-समाज छी! केकरो मुँह छै तँ नॉंगैर नहि, आ केकरो नाँगैर छै तँ मुँह नहि! तहूसँ तँ टपल तँ ई अछि जे गाछ जकाँ सिरो तँ नहियेँ छइ। गाछक सिर धरतीक माटिमे सटल रहैए आ मनुखक सीर अकास दिस उठल रहैए जइसँ केकरो धड़ छै तँ घर नहि, आ केकरो घर छै तँ धड़ नहि! खाएर जे छै से की कोनो आइये भेल आकि सभ दिनसँ अहिना वंशक बँसवाड़िये रहल अछि...।
अढ़ाइ बजे बचनू भाय बड़ाबाबू–थाना प्रभारी–क डेरापर पहुँचला। सुति-उठि कऽ बड़ाबाबू कलपर मुँह-हाथ धोइत रहैथ आ पचहत्तैर-छिहत्तैर बर्खक हुनकर माए डेराक ऐगला ओसारक चौकीपर असगरे बैसल रस्ते दिस देखै छेली।
चारि भाँइक भैयारीमे बड़ाबाबू छोट भाए, पिताकेँ मुइला पछाइत चारू बेटाक बीच माए छोट बेटाक सिनेहे जिनगीक शेष समय हुनके संग–माने छोटे बेटाक संग–अपन विचारे सूहकारि नेने छेली। बड़ाबाबूक बेटा-बेटी स्कूल गेल छेलैन तँए डेरामे मात्र तीनियेँ गोरे–माइक संग बेटा-पुतोहु–रहैथ।
ओसारपर चढ़ि बचनू भाय माएकेँ दुनू हाथे पएर पकैड़ गोड़ लगलैन। सुभावी अपन सुभावे दुनू हाथ बचनूक माथपर दैत बजली-
भगवान नीक करैथ, बैसू।
चौकीक एक कोणपर बचनू भाय बैसला। तैबीच गमछासँ मुँह-हाथ पोछैत बड़ाबाबू सेहो पहुँचला। माए-बेटाक संग तेहालाकेँ बीचमे बैसल देख बड़ाबाबूक पत्नी खिड़कीए-सँ हियासि चाहक ओरियानमे लगि गेली।
बड़ाबाबूकेँ ऐबते दुनू हाथ जोड़ि प्रणाम करैत बचनू भाय बजला-
अपनेक उपकारकेँ हम जिनगीमे नइ बिसैर आभारी जरूर बनल रहब।
बेटाक कृतिक वृत्ति सुनैक जिज्ञासा सुभावीक मनमे उठलैन। जे बेटाक मुहेँ नहि, बचनू भाइक मुहेँ सुनए चाहली।
बड़ाबाबू अखन अपनाकेँ थानाक प्रभारी नहि माइक सोझ छोट बेटा बनि बैसल छला, तँए माइक विचारमे हस्तक्षेप करब नीक नहि बुझि रहल छला। एमहर बचनू भाय अपन मनक विचारक तेकठमे पड़ि गेला। अपन गामक समस्याक सम्बन्धमे बुझैले आएल छैथ आ सुभावीक प्रश्न दोसर मोड़क भऽ गेलैन। मुदा विचारकेँ सेरियबैत बचनू भाय बजला-
सर, अपने तँ रातिमे कमाल कऽ देलिऐ!”  
बेटाक कमालपन' सुनि सुभावीक हृदय सहस्त्र कमल जकाँ मनक तलावमे खिल उठलैन। बेटाक कर्मक बिसवाससँ सुभावीक खिलखिलाइत मनमे उठलैन जे जे बेटा अनका-ले कमाल करत ओ माए-बापकेँ थोड़े छोड़ि देत! तही बीच पुतोहु चाह नेने लगमे पहुँचलैन।
सासुक मुस्कियाइत मुँह देख पुतोहुकेँ टकटकी लगि गेलैन जे बेटाक कोन कमाइक अर्जन हाथ लगलैन जे एहेन मुस्कीक टुसी छैन...।
चाह नेने ठाढ़ भेल पुतोहुकेँ देख सुभावी बजली-
पहिने, बच्चा सभकेँ दियौ।
बच्चा सुनि पुतोहु दुनू गोरेक हाथमे चाह धड़ा अपने कोठरी दिस चोटे घुमि गेली।
बड़ाबाबू बजला-
बचनू बाबू, जखने दुनूकेँ थानापर अनलौं कि तखनियेँ अपन ऑफिसमे बैस जहल तकक काज समेट लेलौं।
बचनू भाय-
सर, नीनवासलमे कोनो गड़बड़ ने ते भेल?”
मुस्की दैत बड़ाबाबू बजला-
काजक दौड़ नीनकेँ खिहारि-खिहारि ठेलि अपन दौड़ बना लइए।
बचनू भाइक मुहसँ निकललैन-
बाह-बाह। अपने तँ सहोदरो भायसँ बेसी संग देलौं!”
बड़ा बाबूक मनक बखारी जेना खुजि गेलैन तहिना बजला-
बचनू बाबू, जखन विचार करै छी तँ अपन कोनो अधिकार नइ देखै छी, बस एतबे जे कोर्ट तक पहुँचा सकै छी। लगलो जमानतपर छुटि सकैए आ छह मास जहलमे रहियो सकैए। तँए ऐसँ बेसी हम काइये की सकै छी। ओना, बहुत पैरवीकार एहेन जरूर पहुँचला जे घन्टा-दू-घन्टा थानापर रोकि गप-सप्प करए चाहै छला, मुदा जहिना सभ स्टाफ सभकेँ लिखित ड्यूटी देने छेलिऐ तहिना निमाहलक। अपने तँ सबेरे ऑफिस छोड़ि क्षेत्र पकैड़ नेने छेलौं।
बचनू भाय-
पैरवी करए के सभ आएल छला?”
बड़ाबाबू-
ओ सभ नइ पुछू। मुदा अहाँकेँ ई जरूर कहब जे समाजक एहेन जड़ समस्याकेँ समाजक बीच आनि निर्णय करू। आइये नहि, सभ दिनसँ एहेन रोग समाजक कोढ़-करेजकेँ कचैड़-कचैड़ खाइत रहल अछि। तँए हमर शुभकामना जे जहिना समाजमे एहेन-एहेन रोगक समाधान-ले ठाढ़ भेलौं तहिना ठाढ़ भेल निमाहब।
दुनू हाथ जोड़ि बचनू भाय उठि कऽ ठाढ़ भेला। तैबीच बड़ाबाबू सेहो अपन कपड़ा पहीरि संगे डेरासँ दुनू गोरे थाना दिस विदा भऽ गेला।  
शब्द संख्या : 2040, 07 अक्टुबर 2017




8.
कोर्ट-कचहरीक सभ टोह-टाह लगबैत बचनू भाय छह बजे घरपर पहुँचला। परिवारोजनकेँ जिज्ञासा रहबे करैन जे ऐगला समाचार–कोर्ट-कचहरीक–कखन सुनब। ऐबते बचनू भाय कुरता निकालि चौकीपर रखि कल दिस हाथ-पएर धोइले विदा भेला आ पत्नीकेँ शोर पाड़ि कहलकैन-
कनी सुनि लेब?”
दरबज्जासँ आगू बढ़ि पत्नी बजली-
जाबे अहाँ हाथ-पएर धुअब ताबे हम चाह बना दइ छी।
तैबीच बचनू भाए हाथ पएर धोइ कऽ दरबज्जा दिस बढ़ैत सुरेशकेँ सेहो शोर पाड़लैन-
बौआ, कनी सुनि लिहह।
लगले सुरेश आबि बचनू भाय लग ठाढ़ भेलैन।
ठाढ़े-ठाढ़ बचनू भाय दुनू गोरे सुरेशक संग पत्नीकेँ सुनबैत बजला-
दुनू जहल गेल।
पत्नी बिच्चेमे टभैक गेली-
जहलक गेटपर दुनूसँ भेँट नइ कऽ लेलिऐ?”
पत्नीक मुहसँ भेँट करब सुनि बचनू भाइक मन जेना कड़ैक गेलैन मुदा जहिना गहुमन साँप अपन बीखकेँ पचौने रहैए तहिना बचनू भाय सेहो अपन क्रोधकेँ मनेमे पचबैत बजला-
एहेन पतित हम नइ छी। जेकरासँ माने जइ विचारसँ घृणा केलौं, आ जँ कियो घृणित काज करत तँ ओकरासँ घृणा करबे करब। जेकरा दुश्मन जकाँ जहल पठेलिऐ तेकरासँ भेँट करितिऐ!”
पत्नीपर बिगड़ब सुनि बचनू भायकेँ सुरेश कहलकैन-
भैया, ऐ सभ-ले मनमे तामस नइ करू। जखन परिवारमे सभ छीहे तखन बात-विचार करैत चलू। अहाँ काजमे अगुआएल छी, जेना जे होइ सभकेँ कहैत चलियौ।
बचनू भाय, पत्नीकेँ दोखी बुझैत बजला-
बौआ, तोहीं कहह, ओकरा दुनूसँ भेँट करब केहेन होइत?”
सुरेश-
समझदार-ले अधला होइत मुदा नासमझदार-ले अधलो तँ नहियेँ कहल जा सकैए।
बचनू भाय कुरता रखि, गमछा देहपर लेलैन आ खुशीलाल ऐठाम विदा भेला। ओना, जीतन काका सेहो चाहक नौत सुनि खुशीलाल ऐठाम पहिनहि पहुँच गेल रहैथ। पहुँचैक कारण मनमे थानाक समाचार सुनैक जिज्ञासा छेलैन आकि कलकतिया चाह पीबैक से तँ जीतने काका जनता। घरसँ निकैलते बचनू भाइक मन खुशीलाल ऐठामक चाहपर पहुँच गेलैन- दू बेकती नौतहारी भेलौं, जँ कहीं जीतन काका पहुँचैमे बिलम केलैन तँ अपनो ओहने नौतहारी बनि जाएब जहिना बिआहक बरियातीमे जाबे बर नइ दरबज्जापर पहुँचल रहैए। गमैया नौत छी, रंग-रंगक भोज-भात होइते अछि। कोनो भोज ओहन होइए जइमे भानस होइसँ पहिनहि नौतहारी पहुँच जाइए आ कोनो भोज एहनो तँ होइते अछि जे नौतहारीक कमीसँ भोज्य-पदार्थ दुरि भऽ जाइए। माने ई जे समाजक समस्याकेँ जे जइ हिसाबे बुझैए ओ ओहने तत्परो रहैए।
भोजपर सँ बचनू भाइक मन आगू बढ़ि लत्ती-फत्तीपर पहुँच गेलैन। लत्तीए-फत्ती जकाँ ने समाजो अछि आ समाजक समाज सेहो तँ अछिए। जहिना कोनो लत्तीक नमहर फड़ भेने लत्ती-फत्ती कम चतड़ैए आ छोट फड़ भेने बेसी चतड़ैए तहिना समाजक काजो अछि। मुदा ईहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए जे एहेन कोनो लत्तीए ने अछि जे बेसी चतड़बो करैए आ नमहर फड़ो होइते अछि। खुशीलालक ऐठाम जीतन काकाकेँ बैसल देख बचनू भाय पहुँचते बजला-
काका, हमरा तँ होइ छल जे नौत सुनि अहाँ भॉंग-ताँग पीबैमे अबैर कऽ देब, मुदा...।
बचनू भाइक टोकारा सुनि जीतन काका बजला-
बचनू, चारिये बजेसँ तोहर भाँज-भुँज लगबै छेलौं जे बचनू थानापर सँ आएल कि नहि। मुदा जखन तोरा कलपर हाथ-पएर धोइत देखलियह तखन हमहूँ हाँइ-हाँइ कऽ माल-जालकेँ घर करैत, घूर सुनगा हाथ-पएर धोइ विदा भेलौं।
बचनू भाय-
केते काल एना ऐठाम भेल हएत?”
जीतन काका-
बस बैसलौं हेन कि तोहूँ एलह।
तैबीच खुशीलाल प्लाष्टिकबला छोटकी कपमे चाह नेने पहुँच बाजल-
भाय साहैब, ताबे मुँह छोहैन करैले ई चाह पिआबै छी। नाश्ता सेहो तैयार होइए पछाइत मनगर चाह पीआएब।
बिच्चेमे जीतन काका बजला- एक बेर हमहूँ कलकत्ता घुमै-फिड़ैले गेल रही ते ओइठाम देखलिऐ जे कुम्हारक बनौल कनीए-कनीए-टा फुच्ची जकाँ माटिक बनौल भाँरीमे बेसी लोककेँ चाह पीबैत। एकटा दोकानपर हमहूँ चाह पीलौं ते ओही फुच्चीमे चाह देने रहए।
जीतन कक्काक बातकेँ सम्हारैत खुशीलाल बाजल-
काका, दोकाने किए कहै छिऐ, ओइठाम परिवारो सभमे ओही भाँड़ीक चलैन अछि।
कहि खुशीलाल आँगन गेल। आँगनसँ दूटा प्लेटमे नमकीन आ बिस्कुट नेने आबि दुनू गोरेक आगूमे रखि देलक।
नास्ता देख बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, बेसी लटारममे नइ पड़ह। सौंझुका पहर छी, गप-सप्पमे बेसी समय लगि जाएत।
नास्ता-चाह करौला पछाइत लगमे बैस खुशीलाल बचनूकेँ पुछलकैन-
बचनू भाय, थानाक की हाल-चाल अछि?”
बचनू भाय बजला-
नीके अछि। भने आब सभ एकठाम बैसलौं, तँए जड़ियेसँ सभ बात कहै छिअ।
बिच्चेमे जीतन काका बजला-
मारियो-तारियो दुनूकेँ लागल की नहि?”
जीतन कक्काक बात सुनि बचनू बजला-
हमरा पहुँचैसँ पहिनहि दुनूकेँ–माने विलासो आ भोगियो देवीकेँ–थाना चलान कऽ पठा देने छल, तँए से नइ देखलिऐ। ओना, थानापर गेबो ने केलौं जे कोनो सिपाहियोसँ पुछितिऐ। बड़ाबाबूक डेरेपर गेलौं आ ओतइ सभ बात बुझलौं।
बड़ाबाबूक डेरा सुनि खुशीलाल बाजल-
डेरापर तँ सभ गप भेल हएत किने?”
बचनू भाय-
ऍंह की पुछै छह। संजोगो नीक भेटल। अपने बड़ाबाबू सुति उठि कऽ कलपर मुँह-हाथ धोइ छला आ डेराक ऐगला ओसारक चौकीपर हुनकर माए बैसल रहथिन। पहुँचते बुड़हीकेँ गोड़ लगलयैन। दुनू हाथे माथ ठोकि बुड़ही मनसँ असिरवाद दइत बजली- भगवान अहिना सभ दिन हँसी-खुशीसँ राखैथ। ओना, बड़ाबाबू सेहो कलपर सँ देखैत रहैथ। असिरवाद दइत आगूमे बैसैले माताराम कहली। चौकीक कोणपर बैसलौं। तैबीच बड़ाबाबू सेहो आबि बैसला।
बिच्चेमे खुशीलाल पुछलकैन-
तखन तँ भरि मन गप-सप्प भेल हएत?”
बचनू भाय बजला-
भरि मन की गप-सप करितौं। तखन तँ जइ काजे गेल छेलौं से तँ भेबे कएल। जेना-जेना बड़ाबाबू केने छला से सभ बात कहलैन। सभ बात सुनि, चाह पीब ओ थाना दिस बढ़ला हम गाम दिस विदा भेलौं।
जीतन काका-
रस्तामे कियो गौंओ-घरूओ भेटलखुन?”
बचनू भाय-
नइ, कियो ने भेटला। जखन कोर्ट लग एलौं तखन थानाक चारिटा सिपाही, जे रातिमे दुनूकेँ पकड़ैले आएल छल, कचहरीक काज समहारि चारू बेकती जखन आपस जाइ छल कि रस्तापर भेँट भेला। पुछलयैन- की हाल-चाल सिपाही साहैब?’ ओना चारूक चेहरा थोड़ेक मलिन जरूर बुझि पड़ल, किए तँ एक तँ रौतुका जगरना तैपर भरि दिन कचहरीसँ जहल तकक दौड़-धुप करैत थाकि सेहो गेले छला। मनमे भेल जे चारू गोरेकेँ भरि पेट जलखै करा दिऐन। मुदा लगले भेल कोर्ट-कचहरी छी, जँ कियो चिनहरबा दोगो-सान्हिसँ देख जाएत तँ ओ चुगली करबे करत। तइसँ नीक जे किए ने जलखैयो आ चाहो-पानक खर्च कातमे लऽ जा कऽ दऽ दिऐन। सएह केलौं। दू साए रूपैआ चारू गोरेमे दऽ देलिऐ। जे छिऐ से ओहो वेचारा सभ खुशी होइत एकटा दोकानमे गेल आ हमहूँ घरमुहाँ भेलौं।
बंगालक पैदाइसी नव-निरमित खुशीलाल बचनू भाइक बात सुनि किछु गम्भीर होइत बाजल-
भाय साहैब, मुद्दा (समस्या) आन गामक छी, तखन?”
तखन कहि खुशीलाल चुप भऽ गेल आ बचनू भाइक मनक टोह लिअ लगल।
ओना, बचनू भाइकेँ गड़ भेट गेल छेलैन मुदा मनमे भेलैन जे सोझे प्रश्नोत्तरी केलामे रक्का-टोकीक सम्भावना सेहो रहैए तँए नीक हएत जे प्रश्नक उत्तर बेवहारिक रूपमे पाखेशिक बखान करब बेसी नीक हएत। समाजमे छी, नान्हि-नान्हिटा खैंक, नान्हि-नान्हिटा काँट जहिना देहाग्नकेँ सड़ैन कऽ दइए तहिना समाजोमे नान्हि-नान्हिटा विचारक खोंट समाजकेँ सड़ैन करैत रहैए। समाजमे एहेन कंटक विचार नइ आबए ई तँ समाजेक ने दायित्व भेल, माने अपने सबहक दायित्व भेल किने।
एकटा उदाहरणक संग अपन विचार रखैत बचनू भाय बजला-
अखन अपना सभ मधुबनी जिलाक बासी छी, मुदा जखन मधुबनी जिला नइ बनल छल तखन अपनो सभ दरभंगे जिलाक बासी छेलौं। तँए अपने जिलाक बात बुझहक।
मधुबनी-दरभंगा जिलाक नाओं सुनि जीतन काकाकेँ सेहो एकटा अपन जिनगीक देखल घटना मन पड़लैन। बजला-
बौआ खुशीलाल, तोहर तँ उमेर कम छह उन्नैस साए बहत्तैर इस्वीक पछाइतिक जन्म भेल छह तँए मधुबनिये जिलाक कोर्ट-कचहरी देखै छहक। मुदा सड़कक कातक जे पँचकठबा खेत देखै छह ओ दीपबलासँ कीनलौं। ओकरा लिखबैले बहेरा रजिष्ट्री ऑफिस गेल रही। ओही ऑफिसमे मणिपद्मजीक पिता सेहो कार्यारत् रहैथ, जे बहेरा अखन दरभंगा जिलामे पड़ैत अछि।
जीतन कक्काक विचारमे बचनू भायकेँ सेहो कनियेँ सह भेटलैन। सहटैत बजला-
तेतबे किए कहै छिऐ काका?”
अँड़पेन देल बछबा बरद जकाँ बिच्चेमे जीतन काका पुनैक बजला-
ऐ आँखिक देखल केतेको घटना अछि। एकबेर अहिना गाममे चोरि भेल, चौकीदार थानामे लगा देलकै। बहेरे थानामे छल।
बिच्चेमे खुशीलाल बाजल-
थानामे की लगा देलकै?”
अपसोच करैत जीतन काका माथपर हाथ लैत बजला-
ऍंह की कहबह! अखुनका जकाँ की राति-बिराति-के दरोगा-सिपाही खिहारि-खिहारि मुद्दालह सभकेँ पकड़ै छल, गाममे दरोगा आएल, चोर सभकेँ बजा-बजा पकड़ै छल। गौंए सोझामे मारबो करइ।
धारक बेगमे भँसियाइत नाहकेँ जहिना नैया कोनो माँगि[1] पकैड़ नाहकेँ बँचबए चाहैए तहिना जीतन काकाकेँ भँसियाइत देख खुशीलाल बाजल-
काका, एना जे घोड़-छड़पन छड़ैप बाजब तखन ओ नँपाएत थोड़े। गाम तँ नँपाएत तखन, जखन असथिरसँ दू हाथक डेग बनेबै। तीन डेग देबै एक लग्गी बुझबै।
जीतन कक्काक विचारकेँ सम्हारैत बचनू भाय बजला-
काका, बजियौ सभ बात मुदा विचारकेँ पहिने जन्मा कऽ मुड़न करबियौ, पछाइत ने पढ़ाइ-लिखाइ आकि बिआह-दान करेबै। तँए पहिने ई फरिछा दियौ जे चौकीदार थानामे की लगा देलक।
विचार भवनमे बैसते जेना यात्रीक मनमे रंग-रंगक भाव जागए लगै छै तहिना जीतन काकाकेँ जगलैन। बजला-
बौआ, केकरो आँखिक देखल आ भोगल दुनू अछि आ केकरो कानेटाक सुनल अछि, तँ दुनूमे अन्तर हेबे करत किने। आँखिक देखल अछि तँए जँ कनी भँसियाइयो जाइ छी ते ओकरा नीके बुझहक, जहिना धारमे कनी-मनी भँसियाइत नाहकेँ नैया शैर-सपट्टा करब बुझैए...।
ओना खुशीलालकेँ कोनो बात बुझै-सुझैक आ सुनैक कान बनि गेल अछि तँए बेसी नीके लगै मुदा आगूमे घटल घटनाक विचार करब ने बेसी जरूरी अछि। खुशीलाल बाजल-
“अहिना अपन सबहक एकठाम बैसार होइत रहत जइमे इतिहास-पुराणक कथा चलैत रहत।”
खुशीलालक विचारकेँ आँकि बचनू भाय पुन: दोहरबैत बजला-
काका, पहिने जड़ि खुनि कऽ देख लियौ, पछाइत डारि-पात काटब। थानामे चौकीदार की लगा देलकै से कहियौ।
अपनाकेँ समटैत जीतन काका बजला-
बौआ खुशीलाल, गाममे चोरि भेल, गामेक पाँच गोरे चोरि केने छल जेकर नाओं चौकीदार जा कऽ थानामे लिखा देलक।
ओना, खुशीलालक मनमे जागल जे गौंआँक घर चोरि भेल, गौंआँ चोरी केलक आ बाँकी गौंआँ कियो ने देखलक, कियो ने बुझलक आ एकटा चौकीदारे केना सच्चाइक पता लगा थानामे लगा देलक! मुदा लगले खुशीलालक मनमे समाजक इतिहास कुदि खसल। कुदि ई खसल जे जेकरा हम समाज बुझै छी ओकरा समाजिकताक कोनो सक्कत आड़ि-मेड़ नहि छै जे एके काजकेँ लगले नीक कहैए आ लगले अधला कहैए। एकर कारण केतए छिपल अछि ई तँ हमरे-अहाँकेँ ने बुझए पड़त। मुदा बुझबो केना करब, जाति-जातिमे बँटल गाम, दियाद-दियादक बीच बँटल जाति, कुल-मूलक बीच बँटल गाम, टोल-टोलक बीच बँटल गाम, ऊँच-नीच सभ मानेमे समाजिक, आर्थिक, वैचारिक रूपमे बँटल गाम अछि, तइमे रंग-रंगक समाज अछि। पढ़ल-लिखल समाज, बिनु पढ़ल-लिखल समाज, पढ़लो-लिखलमे डॉक्टरक समाज, ओकीलक समाज, शिक्षकक समाज इत्यादि-इत्यादि तँ अछिए। एहेन समाजक बीचमे मनुष्यक समाज बनब ओते असान थोड़े अछि! मुदा कठिनो तँ नहियेँ अछि। खाएर जे अछि अपना जगहपर अछि। लगले खुशीलालक मन भनभना उठल-
कहू जे ई केहेन होइए जे आगि लगलापर मघैये डोम किए ने हुअए, मुदा जँ ओ घरक आगिकेँ मिझा देलक तँ बड़ बेस। तखन ओही मुहसँ निकलत जे समाज केतौ रहत तँ समाजक उपकार हेबे करत। मुदा लगले ओकर देहक छाँह तक एतेक दूषित भऽ जाइए जे देहमे भिरलासँ छुत पकैड़ लइए!”
पहिल मनक भनभन्नीकेँ सुनि खुशीलालक अपने दोसर मन रोकैत बाजल- जाबे तक समाजक लोक ठेकानि कऽ ठेकानल बाट नइ धड़त ताबे तक ठेकनाएल समाज केना बनत? ओना देखले दिन तँ भेल जे चालिस-पचास बर्खक जिनगी मनुखक होइए जेकरा अबै-जाइमे केतेक देरिये लगत।
बचनू भायकेँ गम्भीर होइत देख जीतन काका बजला-
बचनू, ओंघी लगै छह?”
अधनीनामे जहिना कियो भकचका कऽ आँखि ताकि बजैए तहिना बचनू भाय बजला-
नहि! जगले छी, विचारमे कनी आँखि मूना गेल छल।
खुशीलाल बाजल-
बचनू भाय, समस्या गामक हुअए आकि बाहरक, एक-दोसरमे सटल अछिए, मुदा अहाँकेँ ओइमे हस्तक्षेपक की कारण अछि जइ कारणे अहाँ परेशान छी?”  
बेर-बेगरताक घड़ीमे जहिना कियो बर-बेगार बनि आबि मददगार बनैए जइसँ ओकर जिनगीक आशा जगैए, जइसँ ओ आशान्वित होइए तहिना बचनू भायकेँ सेहो भेलैन। भेलैन ई जे केकरो दुख-बेथाकेँ सुनि जँ कियो दुखी-बेथित भऽ संगी बनैले हाथ बढ़ाबए तँ ओकर दुखक पहाड़ जरूर ढहबे करत...।
बचनू भाय अपन करेज काटि बजला-
खुशीलाल, जँ हम अपन कोढ़े-करेज काटि तोरा दऽ देबह आ तूँ ओकरा कोढ़-करेज बुझबे ने करबहक तखन ओकर मोले की भेल?”
बचनू भाइक बात सुनि जीतनो काका आ खुशीलालो विचारक मर्मसँ मर्माहत हुअ लगला। जइसँ दुनूक मुँहक रंगमे गहींरपन आबए लगलैन। गहींर पानिमे पैसला पछाइत जहिना सौंसे देह पानिक शीतलपनसँ सिक्त होइते रोऑं-रोआँ भुटकए लगैए तहिना दुनूकेँ भेलैन। खुशीलाल बाजल-
भाय साहैब, कनी फरिछा कऽ सभ बात कहियौ।
खुशीलालकेँ सभ बात बुझैक जिज्ञासा सुनि बचनू भाइक मन सेहो जिज्ञासु जकाँ कलशलैन। बजला-
खुशीलाल, गाम-समाजक लोक बहुत बात बुझितो अपन ओहन पहचान बनौने रहै छैथ जेना किछु बुझले ने होइन। एहेन स्थितिमे कियो केतए बाजत आ केकरा लग बाजत।
ओना, खुशीलालक पैछला जिनगी–माने कोलकाता जाइसँ पूर्वक–सेहो गामेमे बीतल छल मुदा तैबीच ओ ने समाजकेँ बुझै छल आ ने समाजक तहियाएल तहकेँ बुझै छल। मुदा कोलकाता गेला पछाइत दुनियाँक नव-नव जगह सेहो देखलक आ नव-नव लोकसँ सम्बन्ध बनने नव-नव विचारसँ प्रभावितो भेल, जइसँ नव दृष्टि आ नव दृष्टिकोण सेहो पनैप गेल छेलइ। खुशीलाल बाजल-
भाय साहैब, फल-फूलक बाग-बगीचा होइ आकि फूल-फलक बाड़ी-फुलवाड़ी होइ, ओइमे जेते रंगक आ जेते पेड़-पौधा होइए, सबहक अपन-अपन जिनगियो अछि आ जीवन-क्रिया सेहो। तँए ओकरा बुझै-गमैले ओकर आदि-अन्तक जीवन लीला वा जीवन क्रिया सेहो जानव-बुझब तँ अछिए, तँए...।
खुशीलालक विचारक गम्भीरताकेँ सुनैत बचनू भायकेँ मनक गहमे गहियाएल सम्बन्धक सम्भावना सेहो बुझि पड़लैन, जइसँ जिनगीक दौड़मे दूर धरिक संग पूरैक संगीक रूप सोझमे नाचि उठलैन। नचिते मन विहुँसलैन। बजला-
खुशीलाल, ओना तीनू गोरेमे तूँ अखन जिनगीक शुरूआती दौड़मे छह, जीतन काका आधासँ बेसी जिनगीक दौड़मे दौड़ला पछातियो जइ ढंगसँ जिनगीकेँ परेख बीतेबा चाही से नहि बीता, कहुना-कहुना कटैत चलि रहला अछि आ हमर तँ कोनो हिसाबे नहि, जेतबो देखै छी सेहो ने काइये पबै छी आ ने कएले होइए।
खुशीलाल बाजल-
से की भाय साहैब?”
जहिना कोनो अनुभवी डॉक्टर रोगक रोगीक अभावमे जेकर अनेको कारणमे जइ कारणे अपन बदरंगपन देखै छैथ वा बुझनुक इंजीनियर मशीनक पार्ट-पुरजाक अभावमे अपनाकेँ बदरंग बुझै छैथ तहिना बचनू भाय सेहो बदरंग समाजमे अपनाकेँ बदरंग देख रहल छला मुदा मनक ओहेन बात-विचार तँ ओहने मनमे ने उपजैक सम्भावना होइए जइमे उपजैक शक्तिक संचय करैक सक्कतपन जेतेक होइ। जँ से नइ रहत तँ ओहन फसिलक केतेक आशे कएल जा सकैए जइमे सक्कतपनेक अभाव होइ। मुदा नहि, अखन जैठाम बैस गप-सप्प कऽ रहल छी ओइमे चानी जकाँ चनपन जरूर चमैक रहल अछि। चनपन ई जे जहिना खुशीलाल कोरा कागज जकाँ–जइमे किछु ने लिखल गेल–अछि तहिना आधा उमेर बितौला पछातियो जीतन काका छैथ। जीतन कक्काक ई छैन जे गाम-समाजक कोनो छलपनमे ने कहियो रहला आ ने अखने छैथ। अपन पाँच बीघा खेतक गिरहस्तीक जिनगी छैन। परिवारक सभ बेकती मीलि-जुलि ओकरा खोदै-बेदैमे लागल रहै छैथ, जइसँ समैक संग परिवारक जिनगी सेहो ससाइर रहल छैथ। तेसर अपने छी। अपने की छी से तँ, पोखैरक महार होइ आकि धार-कातक खेत आकि समुद्रकातक पहाड़ आकि समाजक धैड़, ओइमे तँ काजक दौड़मे हेलैले कुदबे केलौं अछि। तखन तँ देखा चाही जे एक आदमीमे केतेक शक्ति आ केतेक साहस अछि। जँ संगीक संग भेटत तँ समुद्रक अतल-बीतल रूप सेहो देख सकै छी आ अकास बीच अकास गंगा सेहो तँ देखिये सकै छी...।
बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, जहिना नव काज समाजमे उपस्थित भऽ गेल अछि, जेकर चर्च तीनू गोरेक बीच भेबे कएल अछि तेकरा शान्त-चित्तसँ विचारह। अखन रातियो बेसी भऽ गेल, काल्हि साँझु पहरक गप-सप्पक नौत-हकार दुनू दइ छिअ।
शब्द संख्या : 2403, 12 अक्टुबर 2017





9.
किरिण नीक जकाँ डुमलो ने छल कि जीतन काका बचनू भाइक घरपर पहुँच गेला। ओना बैसारमे पहुँचैक विचार जीतन कक्काक अपन जेतेक रहल होनि तइसँ बेसी पत्नीक छेलैन। गाइयक बच्चा जहिना माइयक थनमे मुहसँ उधुक्का मारि दूध पोनगबैए तइसँ बेसी जीतन काकाकेँ पत्नी उधुक्का मारने छेलैन। तेकर कारणो भेल जे जहिना भानस केला उत्तर पतिक आशामे बैस पत्नी अपनो आशा बन्हने रहै छैथ जे पतिकेँ खुएला पछाइत अपनो खेबे करब आ खेबाकाल पतिसँ अपन विन्यास बनबैक कलाकारियोक बात पुछबे करबैन, तहूसँ जँ मन बेसी खनखनाएत तँ एकटा सोहर सेहो सुना देबैन आ जँ किछु नीक केने आएल रहता तँ बधैयो सुना देबैन। सएह भेल, काल्हि जखन जीतन काका खुशीलालक ऐठामसँ घुमि कऽ घरपर एला आ खाइले बैसला तखन थाना-पुलिसक सभ बात बुझबैत पत्नीकेँ ईहो कहलखिन जे जखन भोगिया आ विलसबा जहलक मुँहपर पहुँचल तखन दुनूकेँ छठिक राति मन पड़लै जे विधाता सबहक कपारमे महींक्का कलमसँ लिखलैन आ हमरा बेरमे दुनू हाथे लेपिये देलैन। पतिक विचारमे रोहिणीकेँ की भेटलैन से तँ ओ अपने जनती मुदा चेहराक रूप आ हाउ-भाउक लक्षण ओहिना बनि गेलैन जहिना पहिल दिन पतिक हाथ पकैड़ते फल-फूलक गुलदस्ता भेटने बनल छेलैन। पतिक मनक धारमे डुमैत सुगिया काकी बजली-
भगवान केतौ चलि गेलखिन अछि आकि बैसल-बैसल सभ किछु देखै छथिन।
पत्नीक बात सुनि जीतन कक्काक मनमे जहिना कमलक गाछ पोखैरमे पनिपत देने रहैए तहिना भेलैन जे जखन कमलक गाछ पनिपत देलक तँ जरूर ओइमे कमलक फूलक संग बर्ड़ी सेहो फड़बे करत। विचारमे विचड़ैत दुनू परानी जीतन काका जेना देवलोकमे पहुँच भोजन करैत होथि तहिना रूचिपूर्ण भोजन सेहो करबे केलैन। कौल्हुका पार्ट टाइमक सी.एल.क आवेदन दैत जीतन काका पत्नीसँ छुट्टी मंजूर करा नेने छला। माने खाइयेकाल पत्नीकेँ कहि देने छेलखिन-
समाजक नीक-बेजाइक गप-सप्पमे जाइ छी, तँए भानस भेलापर खाइले हकबाहि नइ करए लागब।
तैपर मुस्की दैत सुगिया काकी बाजल छेली-
भानस भेला पछाइत जँ चुल्हि लग ओंघी लगि जाए आ झूकैत रही तँ अहाँ आबि कऽ खोंचारब नहि जे हमरा कियो खाइयो बेरमे मोजर ने दइए। भानस केला पछाइत कहाँसँ खाइले दइतैथ से सुतिये रहली!”
जीतन काका जखन बचनू भाइक दरबज्जापर पहुँचला तखन ने तँ खुशीलाले पहुँचल छल आ ने बचनूए भाय उपस्थित छला। सभ दिनुका दरबज्जा बचनू भाइक छैन्‍हे तँए जँ सबेर कियो आबियो गेला तइले पत्नियो, भाइयो आ आनो-आन समांग छैन्हे। ओना, दरबज्जापर ऐबते जीतन काका बचनू भायकेँ नइ देखलैन तँ सोझे मालक घर दिस आगू बढ़ला। होइतो अहिना छै जेना तुलसी बाबा कहने छैथ- जाके रहे भावना जैसी, प्रभू मूरत देखी तीन तैसी। जेहेन जे रूचिक आ सूचिक लोक रहला ओ अपने रूचिये आ सुचिये ने दुनियोँ देखै छैथ। गाम-घरमे एकटा कथा चलैए जे एकटा गिरहस्तक ऐठाम एकटा महात्मा पहुँचला। ओना, महात्मा दू रंगक होइ छैथ, एकटा होइ छैथ जिनकर भीतर-बाहर माने मनक क्रियासँ बाहरक क्रिया सभ चिकने-चिक्कन रहल, जे दुनियाँमे अपन दुनियाँ गढ़ि ओइमे विलीन भेल रहै छैथ आ दोसर भेला जे जिनकर भीतर तँ चिक्कन रहै छैन मुदा बाहर निपाएल-पोताएल रहल। मुदा से नहि, पहिल कोटिक महात्मा छला जे गिरहस्तक ऐठाम पहुँचला। ऐबते महात्माजी गृहीकेँ कहलखिन-
भाय, भुखाएल छी से किछु खुआउ।
भूखो-भूखमे अन्तर अछिए। मनक भूख महात्माजीकेँ रहैन। मनक भूख जगैक कारण छल जे गाममे दुर्भिक्षक स्थिति उत्पन्न भऽ गेने अपन भागीदारी निमाहैक विचारसँ महात्माजी पहुँचल छला।
समयक थापरसँ थपराएल ओ गिरहस्त, हिया हारि महात्माजीकेँ कहलकैन-
बाबा महराज, तुरन्त खाइ जोग घरमे किछु ने अछि। समए दुआरे चौबीस घन्टाक दिन-रातिमे एक्केबेर सभ प्राणी मिलि एकठाम बैस खाइ छी, से तँ खा चुकलौं।
रगड़ी महात्माजी बजला-
दरबज्जापर सँ केकरो भूखल नइ जा दिऐ। तहूमे जँ कियो मुँह खोलि बाजैथ तखन तँ आरो।
तैबीच गृहिणी सेहो पहुँचली। अपन भार उतारैत पति पत्नीकेँ कहलखिन-
महात्माजी बड़ भुखाएल छैथ, तँए किछु...।
बिच्चेमे महात्माजी बजला-
कनियोँ-मनियोँ जँ किछु भेट जाए तँ ओकरा पानियोँमे घोरि कऽ पीब सकै छी।
पानिमे घोरि कऽ पीब सकै छी सुनि गृहिणीकेँ मन पड़लैन जे कोठीक खोलियामे एक फुच्ची सतुआ तँ राखल अछि। फुच्चीक सतुआ मन पड़िते गृहिणीक मुँह विहुँसलैन, विहुँसिते बजली-
बाबा महराज, अपनेक सगुन नीक अछि। बदामक सतुआ घरमे अछि।
महात्माजी मुस्कियाए लगला। गृहिणी ऑंगन दिस बढ़ली। मुस्कियाइत महात्माजीक मनमे उठलैन- अन्नक राजेसँ भेँट भेल। जहिना सभ गुणसँ सम्पन्न बदाम अछि तहिना सभ विन्यासक सभ गहनासँ सजल सेहो अछिए। चाउरक भात जकाँ उसैन कऽ उसना बनाउ, आकि राहैर जकाँ दड़ैर कऽ दालि बनाउ, चाहे गहुम जकाँ पीसि कऽ रोटी बनाउ, आकि तेल-घीमे तड़ि-भूजि कऽ चीनी मिला मिठाइ बनाउ वा नोन मिला नोनगर घुघनी बनाउ। तेतबे किए, गाछमे फड़ल फल जकाँ काँचो खाउ आ ओराहियो कऽ खाउ आकि अहिना पानिमे सानि सतुआ बना कऽ खाउ। तैबीच गृहिणी बाटीमे सतुआ आ लोटामे पानि नेने पहुँचली।
मुस्कियाइत महात्माजी बजला-
यएह छी दुनियाँ, जे मनमे रहैए सएह ने पेटोमे रहबे करैए।
महात्माजी विदा भऽ गेला। तैबीच खुशीलाल सेहो पहुँचल आ खुशीलालक पीठेपर बचनूओ भाय पहुँचला। तीन बर्खक कोलकाताक प्रवासमे खुशीलाल बहुत किछु सीखबो केलक आ देखबो केलक। जहिना दुनू परानी प्रोफेसर साहैब कहने छेलखिन जे बंगाली समाज आ मिथिलांचलक समाजमे बहुत किछु समतो अछि आ विषमतो तँ अछिए। से तँ खुशीलाल बुझला पछाइत जेते लगसँ बंगाली समाजक बेवहार देखलक तेते लगसँ मैथिल समाजकेँ नहियेँ देखने छल। ओना, खुशीलाल तीन बर्ख पूर्वसँ जन्म तकक जिनगी मैथिले समाजमे बीतौने छल मुदा ओ ओकर बालपनक समय छेलै, जखन ओ समाजकेँ नहि बुझै छल। पछाइत बंगालमे बंगाली प्रोफेसरक सानिध्यमे बुझनुक भेल। तँए अपनाकेँ अनभुआर बुझि मात्र तर्कक आधारपर खुशीलाल अपन जिनगीकेँ आगू घुसकबैक विचार मनमे रोपि लेलक।
दरबज्जापर बैसते जीतन काका खुशीलालकेँ कहलखिन-
बौआ खुशी, कौल्हुका गप-सप्प जेहेन तोरा ऐठाम भेल ओहेन गप-सप्प जिनगीमे कहियो ने भेल छल।
जीतन काकाकेँ पीठपर हाथ दैत खुशीलाल बाजल-
काका, जमात करए करामात। पहिने जमात तैयार करू पछाइत ने करामात देखबै।
ओना, खुशीलालक बात जीतन काका नीक नहाँति नइ बुझि सकला मुदा मुस्की भरल तुकबन्द शब्द गीताक गीत जकाँ जरूर बुझि पड़लैन। बजला-
जमात कि कोनो कुम्हारक चाकसँ गढ़ि आबासँ पकि कऽ औत आकि अपने सबहक केने हएत।
ओना, दुनू गोरेक विचारमे कनीक अन्तर देख बचनू भाय सामंजस करैत बजला-
दुनू गोरेक विचारमे दम अछि।
कुश्ती लड़ैकाल जहिना सोलहपर दुनू खलीफा उठि अपन हार-जीतक समीक्षा करैत अपनाकेँ समकक्ष बुझैए तहिना खुशीलालोकेँ आ जीतनो काकाकेँ बुझि पड़लैन। ओना, खुशीलालक मनमे ईहो छल जे गाममे तीन सालसँ नइ छेलौं, तँए गामक बात जेते जीतन काकाकेँ बुझल हेतैन तेतेक तँ अपना नहियेँ बुझल अछि। मुदा घरसँ बाहर धरिक हवा-पानि तँ लगले अछि। तहिना जीतनो कक्काक मनमे होनि जे केतबो खुशीलाल कलकत्ताक खेलाएल किए ने अछि मुदा हमहूँ ओइसँ कम नहियेँ छी। ओना, तरे-ऊपरे जहिना खुशीलाल जीतन काकाकेँ देखैत रहैथ तहिना जीतनो काका खुशीलालकेँ देखते छला। तैबीच आँगनसँ चाह नेने बचनू भाइक बेटी–सुमित्रा दरबज्जापर आबि, उमरदार बुझि पहिने जीतन काका दिस चाहक कप बढ़ौलकैन। जीतन काका सुमित्राकेँ कहलखिन-
बुच्ची, खुशीलाल परदेशी छी, पहिने ओकरा दहक। हम तँ गौआँ-घरूआ भेलौं।
अपन आदर देख खुशीलाल जीतन काकाकेँ आदर करैत सुमित्राकेँ कहलक-
बुच्ची, जीतन काका उमरदार छैथ, तीनू गोरेमे श्रेष्ठ छैथ तँए पहिने हुनका दहुन।
खुशीलालक बात सुनि जीतन कक्काक मन मानि गेलैन जे खुशीलाल ठीके कहलक।
पहिल घोंट चाह पीब बचनू भाय बजला-
जीतन काका, जेहेन चाहपत्तीबला चाह काल्हि खुशीलाल पिऔलक तेहेन तँ ऐठाम नहियेँ अछि, मुदा चाहो तँ चाहे छी किने। 
बचनू भाइक विचार सुनि जीतन कक्काक मन थोड़ेक झुझुएलैन जरूर मुदा अपनाकेँ सम्हारैत बजला-
कौल्हुका चाहपत्ती किछु छल तँ छल, मुदा दूध तँ लोहा-महींसिक रहइ तँए कनी लोहराइनो तँ लगिते छल मुदा औझुका चाह बकेन महींसिक दूधक छी किने, तँए..?”
ओना जीतन कक्काक बात सुनि खुशीलालक मन थोड़ेक झुझुआएल जरूर मुदा अपनाकेँ सम्हारैत बाजल-
काका, एतेक दिन परदेशी छेलौं मुदा आब सुदेशी बुझू। तँए, धीरे-धीरे सभ किछु ने सुदेशीए भऽ जाएत।
खुशीलालक विचारमे जीतन काकाकेँ की भेटलैन से तँ वएह जानता मुदा मनमे चपचपी जरूर जगलैन। चपचपाइत बजला- बौआ खुशी, बड़ आशासँ ऐठामक किसान-मजदूर परदेशी अंग्रेजकेँ भगबैमे अपन तन-मन-धन गमौलक, मुदा स्वदेशी हाथमे एला पछातियो किसान-मजदूरक धिया-पुता हकन कनिते अछि आकि नइ कनैए?”
जीतन कक्काक बात सुनि बचनू भाय सोचलैन जे अनेरे 1857 ईस्‍वीसँ लऽ कऽ 1947 ईस्वी धरिक आजादीक इतिहास बैसारक विचारमे अगुआ रहल अछि! अखने जँ एकरा नइ रोकि अपन विचारकेँ बढ़ाएब तँ जइले बैसलौं सएह ससैर जाएत! बचनू भाय बजला-
काका, अहिना दुनियाँदारी चलैए आ चलैत रहत। अखन अपना सभ जइ विचारे एकठाम बैसलौं हेन पहिने तेकरा अगुआउ।
खुशीलाल बाजल-
जखन सभ गौंए छी तखन ऐगला-पैछला जे गप-सप्प अछि से बादमे करैत रहब। अखन जइ काजे सभ कियो बैसलौं, पहिने तेकरा अगुआउ।
जीतन काका सेहो समर्थन दैत बजला-
एक लाखक बात खुशीलाल बजलह! काल्हि की भेल आ काल्हि की हएत तइमे एकटा भूते भेल आ दोसर भविसे, मुदा अखन जे छी से ते वर्तमानमे छी किने तँए वर्तमाने ने वीर्तमान जीवनो आ जिनगियो भेल।
समर्थनमे मुड़ी डोलबैत खुशीलाल बाजल-
हँ, से तँ भेबे कएल..!”
समुचित वातावरण बनैत देख बचनू भाय घटनाकेँ मनमे तहियबैत बजला-
जीतन काका, अखन धरि अहूँ गामक हवा-बिहाड़िमे किछु-ने-किछु सुननहि हेबइ। खुशीलाल गाममे नइ रहए,एबे कएल अछि तँए नहियोँ बुझने हएत। मुदा अहाँ तँ गामेमे छी आ हम तँ ओकर कर्ते-धर्ता छी। तँए अपन कएल सभ काज दुनू गोरेक सोझहामे रखि दइ छी, पछाइत सभकोइ विचारब।  
पछाइत विचारब सुनि जीतन काका फुरफुरा कऽ बजला-
हँ, हँ! बड़ बेस!”
बचनू भाय बजला-
खुशीलाल तोंहू आ जीतन काका अहूँ, दुनू गोरे नीक जकाँ सुनबो करू आ नीक जकाँ विचारि कऽ आगू की हेबा चाही सेहो निर्णय करू।
ओना, बचनू भाइक प्रश्नक जटिलताकेँ जीतन काका अनुभव नहि कऽ सकला, तेकर कारण छल जे आइ धरिक जिनगीमे एहेन समस्या आ समस्याक एहेन रूपसँ भेँट नहि भेल छेलैन। तँए अनुभवहीन तँ छेलाहे। मुदा तैयो जहिना कियो भरे-भर भार पुड़ैए तहिना अपन भार पुड़ैत जीतन काका बजला-
जखन समाजमे छी तखन समाजमे जे निर्णय हएत, तइमे पएर पाछू करब समाजिकता थोड़े भेल।
जीतन कक्काक विचार सुनिते खुशीलालक जहिना जुआनी उमेर तहिना जवानक विचार मनमे तड़ैप उठल। बाजल-
बचनू भाय, की सभ अखन धरि भेल अछि आ आगू की करब से तँ बुझला पछातिये ने विचारबो करब आ ओइले जे करए पड़त से करबो करब।
निर्भय होइत बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, तूँ अखन नवतुरिया छह तँए समाजक जाल-फाँसकेँ नीक जकाँ नइ बुझैत हेबह। मुदा ओ तँ बुझनहि आ बुझौनहि ने बुझबो करबह।
बचनू भाइक विचारमे अपन विचारकेँ सटबैत खुशीलाल बाजल- हँ, से तँ बुझबे करब। आकि नइ यौ जीतन काका?”
अपन नाओं सुनिते जीतन काका बजला-
हँ, से की तोहर अनर्गल विचार छह जे नइ सुनब कि नइ बुझब आकि नइ मानि चलब। समाजमे एकरे ने खगता अछि।
जीतन कक्काक विचार सुनि मने-मन जखन बचनू भाय ठेकनाबए लगला तँ ताड़क गाछ जकाँ एकमुड़िया केतौ बुझिये ने पड़ैन। बुझि पड़ैन आमक गाछ जकाँ सहस्त्र मुड़िया अछि। एहेन सहस्त्र मुड़िया विचारकेँ केतए-सँ आ केना परखैत गाछक धड़केँ मिलाएब से तँ जटिल अछिए। तहूमे जँ अपन विचार सोझो-साझ रहत आ सुनैक क्रममे दुनू गोरेमे सँ जँ कियो टोक-टाक केलैन तखन तँ अपन मन नइ रहितो वएह स्पष्ट करए पड़त। जँ से नइ करब तँ जहिना रस्तापर घुच्ची देख राही घुचिया जाइए तहिना घुचिया जाएब आ जँ से भेल तखन तँ सुनिनिहार के हेता जे संगे-संग सुनैत चलता..!
मनकेँ दबैत बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, तोरो कहै छिअ आ जीतन काका, अहूँकेँ कहै छी। ओना हम घटनाक सभ घाटकेँ नीक जकाँ सफाइ दैत नइ बाजब, जे पछाइत गप-सप्पक क्रममे हएत। मुदा पहिने सभ घाटक न्योँक चर्च कऽ लइ छी।
ओना जीतन काका घटनाघाट सुनि अकबकाए लगला मुदा बचनू भाइक पहिल विचारक अनुरूप अपन मनक भावकेँ दबैत रहला। जे खुशीलालो आ बचनूओ भाय देख-देख तारतममे पड़ि गेला। पछाइत अपन मुँह उठा जीतन कक्काक मुँहपर जखने बचनू भाय देलैन कि जीतन कक्काक मुँह फुटि पड़लैन-
बचनू, कनी घाटघटनाक मुँह मिलानी करैत चलह।
मुस्की दैत खुशीलाल बाजल-
काका, एना जे कोनो विचारकेँ शुरूहेसँ खोटियाबए लगबै तखन विचारक गाड़ी केतेक ससरत!”
सामंजस करैत बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, जीतन काका बड़बढ़ियाँ पुछलैन। आन गपमे जेते समय लागत तइसँ कमे समयमे कहि देबैन। घटना भेल गाछ आ घाट भेल ओकर डारि, बुझलिऐ काका?”
बचनू भाइक विचारकेँ जीतन काका केतेक बुझला से तँ ओ जानैथ मुदा चहैक कऽ बजला-
हँ-हँ बुझि गेलौं! बुझि गेलौं!”
जहिना चौमास खेत जोतला-चौकियेला पछाइत अपन गर्भ ओहेन बना लइए जइमे अंकुरण शक्ति आबि जाइ छै तहिना जीतनो काकाकेँ आ खुशीलालोकेँ भेल। बचनू भाय बजला-
भोगिया देवीक पुतोहु हमर पितियौत मामाक बेटी छी। बुझले हएत।
बिच्चेमे जीतन काका बजला-
कोनो कि बहुत दिनक गप छी, आठ-दस बर्ख बिआह भेना भेलै हेन।
जीतन कक्काक विचारमे अपन विचारकेँ साटैत खुशीलाल बाजल-
जखन हम मिडिल स्कूलमे पढ़ैत रही तखन बिआह भेल रहइ। ओहिना मन अछि।
दुनू गोरेक विचारमे विचरण करैत बचनू भाय बजला-
मामा केहेन विचारक लोक छैथ से तँ काका अहाँ चिन्हते छिऐन।
समतल मैदान पाबि जहिना घोड़ा सरपट दौड़ लगबैए तहिना जीतन काका बजला-
औझुका समयमे ओहन विचारवान लोक कोनो-कोनो गाममे अछि। सभ गाममे अछियो नहि।
बचनू भाय-
जेहने मामा अपने छैथ तेहने ने परिवारोक लोक छैन।
जीतन काका-
ऐमे के आँगुर बतौत।
बचनू भाय-
ओइ लड़कीसँ–माने भोगिया देवी अपन पुतोहुसँ–नीच वृत्ति करबए चाहलक। जे बात ओ लड़की–माने हमर ममियौत बहिन सुशीला–प्रथम-प्रथम माएकेँ कहलक। मामी मामाकेँ कहलखिन। मामीक मुहसँ सुनिते मामाक चानि अगिया कऽ चनकए लगलैन। मुदा परिवारक बात छी, तँए जह-पटार बाजबो उचित नहियेँ छल। ई सोचि मामा मुँह बन्न केने रहला।
बिच्चेमे जीतन काका बजला-
यएह ने भेल विचारवानक विचारशीलताक शीलपन।
बचनू भाय बजला-
ई बात चारि-पाँच साल पहिलुका छी। पछाइत मामा ऐठाम आबि–माने हमरा ऐठाम आबि–बोम फाड़ि कानए लगला। केतबो चुप करिऐन चुपे ने होथि! तेहेन कानब रहैन जे अपनो मन असहज भऽ गेल। छाती दहैल गेल। दुनू आँखिसँ नोर झहड़ए लगल। मुँहपर हाथ दए मुँह बन्न केलिऐन। मुँह बन्न होइते बजला- भागिन, बिनु केलहो पाप लोककेँ एना पापी बनबै छै से अखन धरि नइ बुझने छेलौं!’ मामाक विचार हम नहि बुझि सकलौं। मुदा पाप आ पापीक बात तँ बुझबे केलौं। पछाइत, शान्त करैत मामाकेँ कहलयैन- मामा, हमरा खून देने जँ अहाँक पाप कटत तँ हम तैयार छी। जे कहब, जेना कहब, सभ-ले तैयार छी।
बचनू भाइक विचार सुनि खुशीलालकेँ बुकौर लागि गेल। जेना छाती फाटए लगलै। मिरमिराइत बाजल-
बचनू भाय! विचारकेँ रोकियौ नहि, आगू की भेल?”
बचनू भाय बजला-
मामा कहलैन जे जिनगीमे कहियो कोर्ट-कचहरी तँ देखलौं नहि, गाम-समाज केहेन अछि से तँ सबहक सोझहेमे छह। जही वृत्तिकेँ एकठाम इज्जतक ऊँच सीढ़ीपर आसीन करैए, तेकरे दोसरठाम धिया-पुताक खेल बुझि रबड़क बैलून जकाँ उड़ेबो करैए।
जीतन काका बजला-
तखन की केलहक, बचनू?”
बचनू भाय-
जे जुतिगर बुझि पड़ल से केलौं। थानाक बड़ाबाबू लग जा सभ बात बुझा कऽ कहबो केलिऐन आ अपहरण सहित हत्याक केस कऽ दुनूकेँ जहलो पठेलौं।
बचनू भाइक बात सुनि खुशीलाल नमहर साँस छोड़ैत बाजल-
भाय साहैब, इलाइची जकाँ जाबे खोंइचा छोरा नइ खाएब ताबे ओकर रस थोड़े पीब सकै छी। इलाइची दालचीनी नइ ने छी जे खाली खोंइचो चटलासँ रस जाएत।
तैबीच दोहरौआ चाह-पान सेहो आबि गेल आ विचारक एक पाराग्राफ सेहो समाप्त भेल। एक दिस आगू आएल चाह आ दोसर दिस कथाक एक परायण पड़ा कऽ पाछू गेल। आ दोसर परायण आगू आएल।
गिलासक पानि पीबिते जीतन कक्काक मन जेना सर्ड़ास भेलैन। सर्ड़ास होइते आगू-पाछू हियासए लगला जे पैछले परायणपर ने दोसर परायण मंगलाचरणसँ शुरू होइए, मुदा से तँ जीतन काकाकेँ बुझल नहि जे मंगलाचरण केहेन हएत। पैछला परायण तँ सामाप्ते भऽ गेल तँए ओकरा मुरदा बुझि ताबे तुलसी-चौड़ा लग उत्तर मुहेँ सुता दियौ। बीच बाटमे जीतन काका अकबका गेला, माने मुहसँ कोनो शब्द निकैलते ने रहैन। अकबकाइते हाँइ-हाँइ कऽ एक घोंट चाह पीलैन। जेना-जेना चाहक धार मुहसँ पेट दिस बढ़ैत गेलैन तेना-तेना मनो अपन हेल-हेलए लगलैन। हेलैत जीतन कक्काक मुहसँ बकार फुटल-
बचनू, की पुछै छह! हमरे सन-सन अखज लोक सबहक बास एहेन-एहेन गाममे होइए। नीक लोकक बास आब थोड़े एहेन गाममे हएत। जेतेक नीक लोक सभ छैथ ओ बीता भरि पेट-ले दिल्ली-बम्बै धऽ लेलैन।
जीतन कक्काक विचारसँ जहिना बचनू भाय खुशी होइत रहैथ तहिना खुशीलालकेँ तासम उठैत रहइ। खुशीलालक तामसक कारण रहै जे हमरे ठिकिया कऽ जीतन काका बाजि रहल छैथ। से कहू जे एहेन होइ! कोलकातासँ जिनगी जीबैक क्रिया बुझि मनकेँ मजगूत बना गाममे जीबैक इच्छासँ एलौं हेन तैठाम एहेन-एहेन बुढ़-पुराण पहिनेसँ समुद्रक लहरिक ढुइस लिअ लगैथ तँ नवतुरिया समाजमे केतेक दिन जीब सकत?
मुदा एते खुशीलाल रच्छ रखलक जे विचारकेँ मनेमे दाबि बाजल-
काका, एना जे काजक विचार करैबेर अखबार वा किताब ई सोचि पढ़ए लगब जे विचारे हल्लुक अछि ऐसँ नीक अखबारेक चहचहौआ फोटो सभ देखब नीक। तखन तँ नाह बीच धारमे कि भँसियाइत जे कातेमे डुमि जाएत। आगू की भेल बचनू भाय?”
श्रोताक अकान कान पाबि बचनू भाइक मन वीहसँ बिहियाइत विचारक दुनियाँमे खसि पड़लैन। एक दिस एक परिवारक भविस सम्हारि चुकल छला तँ दोसर दिस एहेन घृणित समाजकेँ देख मन विषसँ विषिया-विषिया विसविसाइन सेहो होइते रहैन।
ओना, बचनू भाइक अखन तकक जे किरिया-कलाप मात्रिकक संग रहलैन ओ गाम समाजकेँ तीत लगौ आकि मीठ, मुदा परिवारक भविस तँ जीबैत रहबे करत किने। जखन परिवार जीवित रहत तखन नीक-अधलाक विचार करैत समरस बना लेत।
बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, अपन कएल काजसँ हमर परिवार आ हमर मात्रिक परिवारक लोककेँ तँ खुशी भेबे केलै मुदा तैसंग किछु विचारवान लोक-ले चुनौती सेहो भेल।
ओना, विचारक धारमे बचनू भाइक बात तँ बतिया गेल मुदा कर्मक मुँह फुटबे ने कएल जे खुशीलाल अँकलक। मुदा अँकला पछातियो खुशीलाल मुँहकेँ चुप्पे राखब नीक बुझलक किएक तँ कहुना भेलौं तँ अखन परदेशीए भेलौं। मनमे ढेरी विचार आ ढेरी काज किए ने हुअए मुदा से तँ मनेमे अछि। जाबे धरतीपर नइ औत ताबे ओकर मोले केतेक? तइमे तँ जीतने काका ने श्रेष्ठ भेला। ओ की सभ बुझलैन से तँ वएह ने बजता, बाजौथ! मुदा तैकालमे जीतन काका घुच-पुच करए लगता।
घन्टा भरिक विचारसँ बहैत-बनैत विचारधारा आबिये रहल छल, ओहो तँ भोथाएल नहियेँ छल। जीतन काका बजला-
बचनू, पहिने एकहरफी बाजि जा। जहिना सौंसे रामायण एकटा अष्टपदीमे अछि तहिना। पछाइत ने जहिना एक-एकटा आँकर-पाथरकेँ सिदहाक चाउर जकाँ बीछल जाइए तहिना गोटा-गोटी बीछब।
बचनू भाय बजला-
काका, मामा सोझमतिया छैथ। छोटो-छीन बात-कथा हुनका कुशक-काँट जकाँ पकइ कऽ दइ छैन जइसँ लगले टीससँ टहैक छाती छँहोछित भऽ जाइ छैन, तँए मात्रिक गेलौं।
बचनूक बातसँ जीतन काकाकेँ जेना सहगर गड़ भेटल होनि तहिना मन खुशी भेलैन। बजला-
बेस केलह बचनू! यएह ने तोरा सन-सन नवयुवकक काज भेल। आगू बाजह।
जीतन कक्काक जिज्ञासा देख बचनू भायकेँ सेहो सहगर जमीन भेटए लगलैन। बजला-
मात्रिकक सौंसे परिवारकेँ एकठाम केलौं।
बिच्चेमे जीतन काका बजला-
बेस केलह। तेहेन-तेहेन घचकनाह लोक सभ भऽ गेल अछि जे सदिकाल घचकनाइत-घचकनाइत कन्हे छिप लइए। आगू की भेलह?”
बचनू भाय-
पहिने सभकेँ एकठाम बैसेलौं। बैसा कऽ कहलयैन जे परिवारमे बेटीक समस्या उपस्थित भऽ गेल अछि। अखन दुनियाँ दिस नइ तकैके अछि किए तँ दुनियाँमे नीक-अधला सभ किछु अछि। तँए अपन परिवारक दायित्वकेँ बुझि कर्तव्यक रूपमे निमाहैक अछि। सुशीला सेहो सभ बात सुनलक। मैट्रिक पास अछि। बेचारी सबहक मुँह दिस ताकि रहल छल..!
सुशीलाकेँ पुछलिऐ-
सुशील, अखन सौंसे परिवारक बीचमे छह, तँए सोचि-विचारि कऽ बाजह। माए-बाबू बुढ़ भेलखुन, आब केते दिन जीबे करता। मुदा तोहर तँ जिनगी नमहर छह, बाजह।
हमर बात-विचार सुनि-बुझि दुनू परानी मामाकेँ जेना अपन उद्धारक बाट भेल गेल होनि तहिना मन हर्षसँ हर्षित हुअ लगलैन। मामी, माने सुशीलाक माए, बजली-
बौआ, दुनू परानी सुशीलाकेँ ई कहैत असिरवाद दइ छिऐ जे बुच्ची, माए-बाप बाल-बच्चाकेँ जन्म दइए मुदा जिनगी तँ चलतै अपने करमे। हम तँ एको अक्षर पढ़ल नइ छी, मुदा जिनगीक अन्तिम पड़ाव तक केना निमाहि चलैत एलौं से कियो आन कहत तखन बुझबै। अपन आँखि कथी-ले अछि।
मामीक विचार जेना-जेना आगू बढ़ए लगलैन तेना-तेना मामाक मन, पेट-भरल पौरुकी जकाँ घुटकए लगलैन। अपन आँखि मुनि परिवारोजन अपन-अपन आँखि नचौलैन। भाय, दुनियाँ बड़ीटा अछि, केतबो नाचए चाहब तैयो कि सौंसे दुनियाँ नाचि पएब आ तैपर सँ देहो-हाथ तेतेक दुखाएत जे थभैक कऽ केतौ बैसए पड़त। तँए अपन परिवारक दायित्व तँ परिवारेजनपर ने अछि। मुदा परिवारो तँ एहने अछि जे नीक कि बेजाए, एक्केगोरेपर आश्रित अछि। जइसँ सबहक विचारक बाट एकबटिया भऽ जाइए। ओना, एकबटिया नीक सेहो छीहे मुदा ओ तँ परिवारजनक विचारक सहमतिक पछाइत, मुदा से तँ अछि नहि। लगले बहुमत अल्पमतक प्रश्न उठा अधलाकेँ बँचौल जाइए आ लगले बाप-दादाकेँ दोख लगा राजा-दैव सेहो मानि लेल जाइए। यएह तँ छी गाम-समाजकेँ ऐनाक आगूमे रखि देखब। जखने आगूमे अपन-अपन परिवार आ समाजकेँ ऐनामे देखए लगब तखने ने ओकर मुहोँ-कान देखबै आ आँखियो नाक।
मामीकेँ विचारमे डुमल देख मामा विचारक भवधारमे बहए लगला। बहैत-भँसियाइत बजला-
बेटी तँ माइयेक वंश भेल किने, तँए अपन वंशक लोचन (वंशलोचन) तँ वएह ने चाइनसँ लगौती। हम तँ पुरुख भेलौं, हुनकर भार उठौनिहार बेटा श्रवण कुमार जकाँ।
मामा-मामीक विचार सुनि विचारक गाड़ीकेँ ढलान दिस बढ़बैत कहलयैन- बेरा-बेरी जँ सभ अपन-अपन खिस्सा-पिहानी सासुरसँ नैहर आ नैहरसँ सासुरक पसारब से नीक नहि। जे विपत्ति परिवारक कपारपर खसल अछि तेकर निमरजना केना हएत अखन बस एतबे विचार करै जाउ।
बीचमे मामा बजला-
बचनू, पहिने सुशीलासँ सभ बात पुछि लहक।
मामाक विचार नीक लागल। सुशीलाकेँ पुछलिऐ-
बुच्ची, अखन तूँ बाल-बोध छह, काँइते ने जुआन जकाँ भेल जाइ छह, मुदा बुद्धियो आ विवेको अखन बचकानीए छह। ओना, दू साल पहिने मैट्रिक पास केला पछाइत बिआहो भेलह। किए ओइ परिवारसँ, माने सासुरक परिवारसँ दिल टुटलह आ माए-बापक ऐठाम चलि एलह?”
जहिना समाजक संस्कारमे लाज-विचारक रूप जगैए तहिना विद्यालय गेला पछाइत लड़को-लड़कीक विचारमे लाजपनक रूपो तँ बदलबे कएल अछि। भलेँ ओ ई नइ बुझै जे जेकरा हम सभ भोग-विलासक अंग बुझै छी वएह सृष्टिक सृजनहार सेहो छी। मुदा से अपना जगहपर...।
हमर विचारकेँ सूहकारैत सुशीला बाजल-
बचनू भैया, माता-पिता दोसर खाड़ीक भेला मुदा अहाँ तँ एक खाड़ीक भेलौं, तँए अहाँकेँ कोनो बात खोलि कऽ कहैमे कोनो हिचकपन नइ अछि।
सह दैत बिच्चेमे सुशीलाकेँ कहलिऐ-
बुच्ची, जइ परिवारमे जन्मसँ अखन धरि बितेलह, तैठाम जँ कोनो विचार आकि कोनो काज करैमे हिचकपन रखबह तखन दुनियाँमे केना बेहिचक चलि सकबह आकि जीविये सकबह। अहीठामसँ ने लोक बजैत दुनियाँ दिस निकलैए।
सुशीला सहैट कऽ विचारक सहीट होइत जमीनपर उतैर बाजल- भैया, बाबूक जेहेन परिवार अखन धरि छैन, तइसँ नीचाँ उतैर जीवन जीब नीक केना होएत। तँए अखन तक ओही विचारमे अपनाकेँ रखने छी आ आगूओ रखैक संकल्प चाहै छी।
सुशीलाक स्वर माता-पिताक विचारक धर्मक बाटपर चढ़िते मामाक मन जेना डंका पीटए लगलैन। मुदा जैठाम शास्त्रीय धुन चलैत रहत तैठाम डंकाक ढोल केहेन ताल-मात्राकेँ मिलए देत से तँ गौनिहारे-बजौनिहार ने बुझता। मुदा अपन मनक डंकाकेँ मनेमे समेट मामा हमरा दिस तकैत रहला। हम सुशीलाकेँ पुछलिऐ-
बुच्ची, ओइ परिवारक चालि-चलैन केहेन अछि?”
सासुर परिवारक चालि-चलैन-दे सुनिते सुशीला बाजल-
भैया, अहुँक घर तँ ओही गाममे ने अछि। हमरा दुनू सासु-पुतोहुक बीचक जे बात अछि से अहाँकेँ नइ बुझल हएत, मुदा गाम-समाज केहेन अछि से कोनो अहाँ नइ बुझै छिऐ?”
बचनू भाय बाजिये रहल छला कि बिच्चेमे जीतन काका रोकैत-टोकैत बजला-
बौआ बचनू, बुझले छह जे एहने किरदानीक बात पौरुसाल बजलौं, जइसँ पनचैतीमे कानो पकैड़ कऽ उठौलक-बैसौलक आ तइपर सँ ईहो कहए जे थूक फेकि कऽ चाट जे फेर एहेन गप कहियो ने बाजब!’ ओही दिनसँ मुँह सीब लेलौं।
जीतन कक्काक बात सुनि खुशीलाल असमसानक अछियाक बाँसक खोंरनी चलबैत बाजल-
काका, अहीं सभसँ ने गामक इतिहास-पुराण सीखत।
खुशीलालक बात सुनिते जीतन कक्काक मन मुँगड़ा भऽ गेलैन। मुँगरा होइते बमकैत बजला-
बचनू, खुशीलालक बात आन मानौ कि नहि मानौ मुदा हम सोल्होअना मानै छी।
दोसर खोंरनी चलबैत खुशीलाल फेर बाजल-
सोझे मानै छिऐ आकि की-की मानै छिऐ से जखन अपने मुहेँ बजबै तखने ने केकरो बिसवास हेतइ।  
खुशीलाल जे सोचि बाजल हुअए मुदा जीतन काका खुशीलालकेँ बिसवास-पात्र बुझैत बजला-
असगर पड़ि गेलौं, सभ मिलि चापि देलक। पाइयक पुत पहाड़ तोड़ै छइ। जएह भोजैतनी सएह चटैतनी, यएह तँ छी समाज।
तीक्ष्ण वाण छोड़ैत खुशीलाल बाजल-
असगर पड़ि गेलौं तँए ने चपा गेलौं, मुदा जँ दोसराइत भेटए तखन की करबै?”
जहिना बाल-बोध दू बेर पीठपर हाथ आ दू बेर मुहसँ टोकारा पबिते दौड़ जाइए तहिना जीतन कक्काक मनक घोड़ा सेहो उधैक कऽ उधियाएल चालि पकैड़ लेलकैन। जेना-जेना जीतन काका आ खुशीलालक बीच विचारक धार बनैत गेल तेना-तेना बचनू भाइक मन सेहो धड़-धड़ धारा पकड़ए लगलैन। धारा पकैड़ते बचनू दुनू गोरेकेँ अपन दुनू हाथसँ इशारा दैत कहलखिन-
खुशीलाल, जीतन काका तँ बुढ़ाइये रहला अछि, दिनो-दिन उदिआस्ते दिस बढ़ता मुदा तूँ तँ अखन हमरोसँ नव छह, तोहर उदीयमान आशा तँ जिनगीक पार लगाइये सकैए किने।
खुशीलालकेँ बजैसँ पहिनहि जीतन काका बजला-
हँ, बेस बात बजलह बचनू। जाबे जीबै छी तेतबे आशाक बिसवास ने केकरो दऽ सकै छिऐ। तइमे ते खुशीलालेक बेसी आशा[2] ने करब।
मुस्की दैत खुशीलाल बाजल-
काका, ई दुनियेँ अशे-अशीपर चलैए, तेहीमे ने अपनो सभ छिऐ।
विचारकेँ समटैत जीतन काका बजला-
बचनू, जइले बैसल छी से पछुआइत पछुआ पकैड़ लइए आ जेकरा अगुआ कऽ अगुअबै चाहै छी ओ तेना भौक मारि दइए जे खिखिर जकाँ अनेरे दस डेग रस्ता बढ़ि जाइ छी।
खुशीलाल बाजल-
काका, लोककेँ अहाँ सीम-भाँटाक गाछ बुझै छिऐ जे एक-मुड़ियो होइए आ दस-मुड़िया सेहो होइए। मुदा मनुख तँ से नइ छी। ओ तँ नोनी साग जकाँ बुझियौ आकि राजा सगर जकाँ जे जन्मेसँ हजर-मुड़िया होइए। तखन जँ समय ताकि-ताकि काजे करब आकि विचारे करब से सम्भव अछि? कथमपि नहि! सम्भव तँ ई ने अछि जे काजो करैत चलू आ विचारो करैत चलू।
खुशीलालक बात सुनि जीतन काका बचनू दिस तकैत बजला-
समय कहाँ तकै छी बचनू। गप-सप्प क्रममे टपानक घाटे ने हेरा जाए, तँए ओइपर कनी धियान चलि जाइए। आगू की भेल से बाजह?”
बचनू भाय बजला-
काका, पहिने एकटा टटका समाचार कहि दइ छी, पछाइत पैछला काजक चर्च करब।
जीतन काका अकानैत बजला-
हँ, पहिने टटके समाचार सुनाबह। जँ समए खटिया जाएत तँ बाँकी बात काल्हियो सुनब।
बचनू भाय बजला-
काका, आइ चारि बजे बेरूपहरमे सुशीलाक फोन आएल। बड़ हरखित मन बुझि पड़ल। ओ कहलक अछि जे परसू हम गाम अबै छी। अहाँ जे भोगिया देवी आ विलासकेँ जहल पठेलौं तइसँ हमर छाती फुलि बत्तीस हाथक भऽ गेल अछि। गामक समाजसँ किछु हमर प्रश्न अछि, ओ बिना पुछने हमर प्राश्चित केना कटत। जखन अपन परिवार–माने नैहरक परिवार, हरियाएल जिनगीक बाट बना देलैन तखन हमहूँ किए ने ओइ परिवारोकेँ आ परिवारजनोकेँ पूजबैन। जँ इज्जतसँ जिनगी जीबैले छोट-छीन इज्जत गमबौ पड़त तँ ओ गमाएब नहि भेल।
बचनू भाइक मुहसँ सुशीलाक समाचार सुनिते खुशीलाल जीतन काका दिस आ जीतन काका खुशीलाल दिस नजैर उठा-उठा देखबो करैथ आ निच्चो खसा लैथ। मुस्की दैत जीतन काका बजला-
कंगना ले आरसी की आ पढ़ल-लिखल-ले फारसी की। जखन सुशीला परसू एबे करत तखन किए ने समाजक आरो लोक सभकेँ कहबैन जे सुशीला मरल नइ अछि जीवित अछि। अपहरण आ हत्याक मोकदमा सुशीलाक जिनगीक बाटक बाधाकेँ दूर करैक उपाय छल, जइमे एक सुशीला नहि हजारो सुशीला पीसा रहल अछि..!”
बिच्चेमे जीतन कक्काक विचारकेँ रोकैत बचनू भाय बजला-
काका, बीचमे एकटा नमहर घाट छुटि गेल अछि। जँ ओइ घाटकेँ आइ नइ सुनि लेब तँ परसू विचार करैमे घटिया जाएब। तँए...।
बचनू भाइक विचारधाराकेँ खुशीलाल बंगालमे सिखल अपन विचारधारासँ मने-मन मिलबए लगल। लड़का-लड़की वा पुरुष-नारीक बीच जेतेक समस्या अपना ऐठाम अछि ओतेक बंगालमे नहि, ओतए एकसँ एक परिनिष्ठित आ सुसंस्कृत परिवार सभ अछि। मुदा जेतए धड़ रहत तेतइ ने घरो बनाएब। तँए अखन जैठाम छी तहीठाम ने घर बनाएब।
खुशीलाल बाजल-
बचनू भाय, रातियो बेसी भऽ गेल। अन्हरिया राति छी, परसूए परदेशसँ एलौं हेन, तँए ओगरवाहियो ने करए पड़त।
खुशीलालक बात सुनि जीतन काका बजला-
खुशीलाल, काल्हि-दिन नइ कहिहह जे जीतन काका पहिनहि संग छोड़ैले तैयार भऽ गेला। पत्नीसँ राति भरिक छुट्टी सेहो लाइये नेने छी। तँए...।”
तँए बाजि जीतन काका बचनूकेँ कहलखिन-
“कोन घाट छुटि गेल छेलह बचनू?”
जीतन कक्काक चाँकि देख खुशीलालो आ बचनूओ भाय अपन चाँकिक आँखि जगौलक। बचनू भाय बजला-
काका,  पाँच बर्ख पहिने सुशीलाक बिआह भेल। तेकर दू बर्खक पछाइत सासुरसँ नैहर पहुँच अपन दुखनामा माता-पिताकेँ कहलक। सोझा-सोझी अपनो गप केलौं। साँप-छुछुनैरक गति भऽ गेल छल। जँ खाएब तँ मरब, नहि जँ छोड़ि देब तँ आन्हर भऽ जाएब। आगू दिस देखी तँ बुझि पड़ए जे समाज दोख लगौत जे दोहरा कऽ सुशीलाक बिआह किए भेल। तहूमे, ने विधवा भेल छल आ ने तियागले गेल छल। जे उमेरोक बहन्ने ओकरा काटलो जा सकैत। ने अक् चलए आ ने बक्!’ तैपर सँ अपन उतड़ी उतरैत देख दुनू परानी मामा-मामी सेहो खोंचारए लगला।
मुस्की दैत जीतन काका बजला-
उचिते ने खोंचारब छेलैन। पेट जरल ने जरल पेटक दर्द नपैए। आकि जरल पेटक दर्दक नाप-जोख भरल पेटक थर्मामीटरसँ हएत।
उत्साहित होइत बचनू भाय बजला-
निर्णय कऽ लेलौं जे सुशीलाक बिआह अपन हाथसँ ओहन कराएब जे सुशीलाक भविसक हँसैत दिन सभ देखत।
खुशीलाल बाजल-
बचनू भाय, मामा-मामी ने सहमत भऽ गेला, मुदा ओइ गामक समाज?”
खुशीलालक विचारकेँ तारीफ करैत बचनू भाय बजला-
खुशीलाल, बहुत पैघ बात बजलह। मुदा बेकती हुअ कि परिवार-समाज आकि देश-दुनियाँ सभकेँ सभठाम अपन अधिकारक संग कर्तव्योक पालन ने करए पड़त।
तेज गतिये मुड़ी डोलबैत जीतन काका बजला-
हँ, बिल्कुल ठीक बात बजलह बचनू। हमरे बात कि समाजकेँ नहि बुझल छेलै जे जीतन सत् बाजल छल कि फुइस। मुदा दण्ड-जुर्माना लगि गेल, यएह तँ छी समाज।
अपन विचारकेँ खुशीलाल सहटारि सहमत दिस बढ़ैत बाजल-
काका, गाममे कि कोनो अहाँ आइये एलौं आकि केश-दाढ़ी अही गाममे पकबैत बीतेलौं।
अपन विचार खुशीलालकेँ कबुलैत देख जीतन काका बजला-
बचनू, कनी सोझरा कऽ सुशीलाक बिआहक बात बाजह।
बचनू भाय बजला-
जीतन काका, जखन सुशीलाकेँ अपन जिनगीक सीमाक संग माता-पिताक जिनगीक सीमा सुझौलिऐ तखन ओकर भकुआएल मनमे नव शक्तिक उदय भेलइ। निर्भीक होइत बेचारी कहलक- भैया, सभ रंगक लोको ऐ दुनियाँमे अछि आ रंग-बिरंगक विचारो आ जीवनो छइहे। हम जेकरा अधला वृत्ति बुझि सासुर छोड़ि माए-बापक आश्रयमे एलौं तखन फेर ओइ परिवारमे थूको फेकए नइ जाएब।
सुशीलाक संकल्पित विचारकेँ जहिना हम तहिना सुशीलाक मातो-पिता शिरोधार्य केलैन। अपन भार कम करैत मामा कहलैन-
बौआ बचनू, सुशीला जेहने हमर बेटी तेहने ने तोहर बहिनो भेलह। तँए दुनू भाए-बहिन विचारि जे कहबह तही विचारमे हमरो दुनू परानीकेँ बुझिहह।
जहिना कोनो कार्यालयमे आकि विद्यालयमे कर्मचारी आकि शिक्षक पदभार ग्रहण करै छैथ तहिना हम सुशीलाक जिनगीकेँ ठौर धड़बैक भार लेलौं। बचनू भाय बाजिये रहल छला कि बिच्चेमे जीतन काका कहलखिन-
बचनू, आजुक जे काजक बात छह से सम्हारि लएह। किए तँ खुशीलालो परदेशसँ आएल अछि। गामक लोक केहेन-केहेन छुतहर अछि से केकरोसँ छिपल थोड़े अछि। जँ कहीं चोइरो-तोइर भऽ जेतै तँ अपनो सभ दोखी हएब। गप-सप्प केतौ पड़ाएल नइ जाइए, काल्हियो-परसू हेतइ।
बचनू भाय बजला-
अन्तिम बात कहि दइ छी। दिल्लीमे प्राइवेट नोकरी करैत एकटा मैट्रिक पास लड़का टोहियेलौं। सुशीलाक अखन धरिक जिनगीक सभ बात ओइ लड़काकेँ सुना देलिऐ। ओ बिआहक लेल राजी भऽ गेल। अढ़ाइ साल पहिने सुशीलाक दोसर बिआह भऽ गेल। एकटा बच्चो छइ।
बचनू भाइक बात सुनि खुशीलाल बाजल-
भाय नीक ढंगसँ काज केलौं!”
की ढंगसँ काज केलौं से बचनू भाइक नजैरमे रहबे ने करैन। नजैरमे नइ रहैक कारण ई जे काजक दौड़मे तेना बचनू भाइक विचार काजमय भऽ गेलैन जे ओइपर कहियो नजरिये ने गेलैन। जिज्ञासु होइत बजला-
की ढंग खुशीलाल?”
खुशीलाल बाजल-
भाय साहैब, बिआह-दानसँ जुड़ल जे लड़कीक समस्या अछि, ओकर निराकरण अपना ढंगे करैत, पछाइत कोर्ट-कचहरीक मुद्दा बनाएब बेसी नीक होइए अपेक्षाकृत पहिने कोर्ट-कचहरीक मुद्दा बना पछाइत समस्याक समाधान करबसँ।
खुशीलालक विचार सुनि बचनू भाइक नजैर ओहिना विचारक समुद्रमे धड़-धड़ा कऽ मिलि गेलैन जेना छोट-छीन धड़ियाएल पानिक धड़ धारमे मिलि धड़धड़ाएल धारा बनए लगैए...।
बचनू भाय बजला-
धरमागती कहै छिअ खुशीलाल अखन तक एते पैघ बात, नजैरमे आएले नइ छल।
बचनू भाइक विचार सुनि खुशीलालक मनमे अपन विचारक सकताएल रूप नाचि उठल, मुदा बाजल किछु ने।
शब्द संख्या : 5046, 19 अक्टुबर 2017




10.
भोगिया देवी आ विलासक समांग थानाक कसट्डीमे जा कऽ दुनूसँ भेँट केलक। दुनू गोरेक मन नीक जकाँ खसल छेलइ। मनमे रंग-बिरंगक अपन जिनगीक क्रिया नाचि रहल छेलइ। ओना कसट्डियोमे सबहक मन एके रंग नइ रहैए। किछु लोक एहनो होइ छैथ जिनकर मन ऊपर उठल रहै छैन, मनमे संकल्प रहै छैन। संकल्पित मन रहने नजैर आगूक क्रियापर रहैए तँए मन खसल नहि बल्कि खुशीसँ ऊपर उठल रहैए। मुदा से भोगिया देवी आ विलासक नहि छल। दुनूक मनकेँ अपन-अपन कएल नीच-वृत्ति तेना घेर कऽ घोरमट्ठा बना देने रहै जे अपन पनचैती अपने मन करैत कहै- सचमुच हम अधला वृत्ति केलासँ जहल आबि गेल छी..!’
अपहरणसँ हत्या धरिक एफआईआर भोगिया देवी आ विलासपर संगे छेलइ। दस बजेमे जखन दुनू गोरेकेँ थानासँ कोर्ट लऽ गेल तखन एफआईआरक नकल समांग सभ लेलकैन। बारह बजैत-बजैत दुनू सवडिवीजनल जेल पहुँच गेल। ओना, जमानतक लेल दुनूक समांग ओकीलकेँ सेहो ठाढ़ केने छल, मुदा निचला कोर्टक केस नइ रहने लाख आसन लगौला पछातियो जमानत नहि भेलइ। दुनूकेँ जहल गेला पछाइत समांग सभ केसक नकल नेने गाम आबि गेला।
मुदइ पक्षमे बचनू भाइक नाओं खुलि गेलैन। गाम अबिते जखन समांग सभ केसक चर्च केलक, तखन एक्के-दुइये गाम दिस चर्च बढ़ल। जहिना बचनू भाइक परिवारक सम्बन्ध गामसँ तहिना भोगियो देवी आ विलासोक परिवारक सम्बन्ध सेहो गामसँ अछिए।
जहिना बचनू भाइक परिवारक समांग सभ विरोधमे ई बाजए लगल जे दुनूक चालि-चलन बिगैड़ कऽ एतेक निच्चाँ-मुहेँ अछि जे पतालमे चलि जाएत...। तहिना भोगियो देवी आ विलासोक समांग सभ बचनूकेँ दोखी बनबैक हवा पसारए लगल जे जहिना बचनू अगुआ कऽ अहित केलक तहिना तेकर जवाबो देब...।
दुनू दिससँ दुनू हवा गाममे टकराएल। जइसँ गामक लोक, गामक समाज अकबकाए लगल। ओना रंग-रंगक विचार रंग-रंगक लोकक मुहसँ निकलए लगल। मुदा ओ ऐ बिन्दुपर आबि दबि जाइत जे आन ने सुनि लिअए। स्पष्ट रूपसँ तीन रंगक विचार गाममे पसरल।
किछु लोकक मुहेँ निकलल-
भोगिया देवी आ विलासोक संग अन्याय भेल।
किछु लोकक मुहेँ निकलल-
भोगिय देवी आ विलासक किरदानीसँ समाजमे बहुतो लोक पतितो बनल आ बहुतोकेँ जीवन सेहो नष्ट भेलइ।
किछु लोकक मुहेँ तेसर तरहक विचार निकलल-
समाजक बीचक सभ छी तँए कोर्ट-कचहरीक मुद्दा बनाएब नीक नहि। समाजेक बीच ओकर निराकरण करब नीक होएत। खाएर जे भेल से भेल मुदा सौंसे गामक लोकक बीच भोगियो देवी आ विलासोक किरदानी सबहक बीच आबिये गेल।
जहिना दस बजे गाम पहुँचैक बात सुशीला बचनू भायकेँ कहने रहैन तहिना नअ-बजिया ट्रेनसँ तमुरियामे उतैर टेम्पू पकैड़ सुशीला गाम पहुँच गेल। संगमे बेटा सेहो रहइ।
तैबीच बचनूओ भाय अपन मात्रिकक परिवारक संग पाँचटा समाजोकेँ बजा नेने छला।
सुशीलाकेँ पहुँचते जीतनो कक्काक परिवारक सभ आ खुशीलालोक परिवारक सभ समांग बचनू भाइक ऐठाम पहुँच गेल। जहिना कोनो यज्ञ-हवनमे दसटा लोककेँ एकठाम भेने उत्साहक रूप बनि जाइए तहिना बचनू भाइक ऐठाम उत्साहित वातावरण बनि गेल। समांग सभ आगत-भागतमे लगले छेलैन।
चाह-पान भेला पछाइत सभ कियो दरबज्जापर बैसला। सुशीला सेहो बीचमे बैसल। मर्द-औरत, बुढ़-बच्चा सभ एकठाम बैसला। जीतन काका बजला-
बचनू, अखन आहे-माहे छोड़ह। नहाइ बेर भऽ गेल आ देखते छहक जे सौंसे परिवार उनैट कऽ आबि गेल अछि तँए भानसो बन्न भऽ गेल हएत।
जीतन कक्काक विचारकेँ पछुअबैत खुशीलाल बाजल-
सुशीला बहिन, पहिने ई कहह जे अपना जिनगीसँ सन्तुष्ट छह?”
सुशीला बाजल-
खुशीलाल भाय, अखन तकमाने दू मास पूर्व तक–अपने लेबरक काज कारखनामे करै छला जइसँ चारि घन्टा ओभर टाइम खटने आठ-नअ हजार महिना कमा लइ छला, आब कलर्क भऽ गेला। जइसँ पनरह-सोलह हजार दू माससँ कमाए लगला अछि। हम अपन डेरापर ट्यूशन पढ़बै छी। जइसँ हजार-बारह साए अपनो कमा लइ छी। बच्चा सेहो लगमे रहैए। दू गोरेक परिवारमे केते चाही। नीक जकाँ गुजरो चलैए आ संतोखो अछि।
सुशीलाक विचार सुनि सबहक मुहसँ एक्केबेर निकललैन-
वाह!”
बचनू भाय सुशीलाकेँ पुछलैन-
बुच्ची, सासुर किए छोड़लह?”
बचनू भाइक प्रश्न सुनिते सुशीलाक मन तन-फना लगलै जइसँ वाणीमे उत्स जागए लगलै। उत्साहित होइत सुशीला बाजल-
भैया, अखन अहाँ पंचवेदीमे छी। तँए बजैमे हमरा कोनो हिचक नहि अछि।
सह दैत बिच्चेमे जीतन काका बजला-
ऐठाम कियो आन अछि, हीय खोलि कऽ बाजह।
सुशीला बाजल-
भैया, भोगिया देवीक चालि-चलैन नैहरेसँ पाइक रस्ता पकैड़ नेने छइ। संजोगो एहेन भेल जे जहिना घरबला दिल्लीमे रहि कमा-खटा उड़बै-पुरबै छै तहिना अपनो भोगिया देवी गाममे व्यभिचारक जाल पसारने अछि। देहक बेवसाय पाइ-ले करैए। जेकर लगक दलाल छिऐ विलास। गाममे चरित्रहीन लोकक कमी थोड़े अछि जे बेवससाय नहि चलतै। जखन हम पुतोहु बनि भोगिया देवीक घर एलौं तखन ओ हमरो देहक बेवसाय करए चाहलक! तँए...।
सुशीलाक बात सुनि पिताक–बचनू भाइक मामाक–आँखिसँ नोर टघरए लगलैन। मुदा ओ नोर दुखक नहि सुखक छेलैन, संकल्पित बेटीक जिनगीक उत्साहक छेलैन।
खुशीलाल बाजल-
सुशील बहिन, तोरा नजैरमे विलास केहेन अछि?”
सुशीला बाजल-
खुशीलाल भाय, लंकामे राक्षसक ऊँचाइ उनचास हाथ छेलइ, मुदा विलासक ऊँचाइ ओहूसँ बेसी अछि। विलास इज्जतक सभसँ पैघ रूप पाइमे देखैए जइसँ कर्मक दिशे बदैल गेल छइ। विलास पकिया दलाल भोगिया देवीक छी। नमहर बेपार दुनूक छइ। भाय साहैब, जीबैत रहब, अहिना अबैत रहब। अखन बहुत बात समाजसँ पुछब बाँकी अछि।
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शब्द संख्या : 794, दीपावली (19 अक्टुबर) 2017






[1] नाहमे दुनू सिरा माँगि होइ छै, तँए भँसियाइत नाहक कोनो माँगि।
[2] बेसी आशा भेल जिनगी भरिक आशा। जिनगी भरिक आशा भेल दहधारीक आशा।