Pages

Saturday, July 20, 2019

Collected Thoughts of Sh. Jagdish Prasad Mandal : बाढ़ि, बाइढ़, दाही, कोसी, कमला, बिहूल, तिलजुगा, भुतही इत्यादि नदीक उपद्रव आ नीक-बेजा विषय-चित्र

कृषि मंत्री आ प्रधानमंत्री शास्‍त्रीजीक नेतृत्वमे खेतीमे हरित क्रान्तिक कार्यक्रम बनल। कार्यक्रम बनैक कारण रहै देशक भूख मेटबैले अमेरिकासँ गहुम कर्ज लेब। औझुका जकाँ ओइ समए जनसंख्यो नै रहै मुदा तैयो पेट भरैमे मकमकीए रहए। जइ देशक माटिक जोड़ा दुनियाँक कोनो कोणमे नै छै, श्रमशक्ति भरपुर छै, मसिम अनुकूल छै, तैठाम केते लाजिमी बात छी जे ओइ देशक लोक अन्न बिना मरए। जे बात शास्त्रियोजी आ जगजीवनो बाबू बुझि “जय-जवान, जय किसान”क नारा देलैन‍। खाली नारेटा नै देलैन खेती-ले योजना बना क्रि‍यान्‍वि‍त सेहो केलैन। 
अदौसँ अबैत खेतीमे नव जागरण भेल। हरक जगह ट्रेक्टर, करीनक जगह दमकल-बोरिंगक संग-संग नव-नव औजार किसान तक पहुँचल। नव-नव बीआक अनुसन्धान भेल। कृषिक महत बढ़ने शिक्षाक विकास भेल। उपजा-ले रासायनिक खाद, कीट-नाशक दवाइ इत्यादिक उपयोग शुरू भेल। जइसँ खेतीक उत्पादनमे आश्चर्यजनक वृद्धि‍ भेल। देशक किसानमे नव चेतनाक सिरजन भेल। 
मुदा भारत सनक देशमे जेते आ जइ गतिए विकास हेबा चाही से नइ भेल। ओना, जइ राज्यक सरकारोक नजैर‍ आ किसानोक नजैर‍ खेती दिस बढ़ल ओ जरूर विकास प्रक्रि‍याकेँ पकड़ने रहल। मुदा जइ राज्यमे से नइ भेल ओइ राज्यक कृषि पुन: ठमैक‍ गेल। ओना, मिथिलांचलक संग आरो-आरो संकट छइ। जइ कारणेँ विकास-प्रक्रि‍या आगू बढ़ैक कोन बात, ठमकैक कोन बात जे पाछुए-मुहेँ ससरए लगल। जेकर कारण छेलै बाढ़िक विभीषिका। एहेन-एहेन पहाड़ी‍ धार सभ अछि जे खाली पानिएसँ नाश नै करैत बल्‍कि‍ खेतक माटि काटि-काटि नव-नव धारो बनबैत अछि आ उपजाउ माटिकेँ सेहो भँसा-भँसा बाउलसँ भरैए। जइसँ खेतक उर्वराशक्‍तिये चौपट कऽ दैत अछि। नव धार बनने गामो घर उजैर‍ जाइए‍। खेत-पथार सेहो नष्ट भऽ जाइए, तँए जरूरी अछि धारक ऐ उपद्रवकेँ नियंत्रित करब। जाधैर से नइ हएत ताधैर बिसवासू खेती मात्र कल्पना बनि रहत। 
पचास-साइठ‍ वर्ष पूर्व कोसीक पुलमे फाटक लगा दुनू दिस माने पूवो आ पच्छि‍मो, नहरक योजना बनल। मुदा अखनो धरि जइ रूपे ओकर उपयोग हेबा चाही से नइ बनि सकल अछि, तेकर अतिरिक्तो सरकारी-उदासीनताक चलैत एहेन बेवस्था बनि गेल अछि जे कोसीए इलाकाक-इलाका दहाइत रहैए। 
ओना, कोसीक पुबरियो आ पछबरियो भागमे मुख्‍य नहर बनल। ओइसँ नहरक‍ शखो सभ सोलहन्नी तँ नै मुदा थोड़-थाड़ सेहो बनि गेल। मुख्‍य नहरक भीतर सीमेंट-ईंटाक जोड़ाइयो भेल। मुदा बनौनिहारक, ठीकेदारक बदनीयतीसँ तेहेन काज भेल जे जहाँ-तहाँ ढहि-ढहि नहरकेँ भरि देने अछि। नहर‍क मुख्‍य बहाव बन्न भेने आ बाढ़िक प्रकोपसँ मुख्‍य नहर जहाँ-तहाँ टुटितो अछि। ओना, साले-साल मरम्‍मतो होइत अछि आ टुटितो अछि। मुदा तैयो थोड़-थाड़ लाभ किसानकेँ होइते छइ। जेतए-जेतए पानिक सुविधा उपलब्‍ध अछि, ओइ-ओइ इलाकाक किसानक जिनगीमे क्रान्तिकारी बदलाउक सम्‍भावना बनि गेल अछि। मुदा सरकारी-तंत्रक चलैत जेते लाभ हेबा चाही से नइ भऽ पबैत अछि। ओना, शाखा-नहर पूर्णरूपेण तैयारो नै भेल अछि। तहूसँ दुर्भाग्य ई भेल जे पैछला साल कुसहामे पुबरिया बान्ह टुटने पुबरिया इलाका तँ नाश भइये गेल, जे नहरक रूपे-रेखा चौपट भऽ गेल। जइसँ पूर्वतते स्थिति बनि गेल अछि। 
कोसीए नहर‍ जकाँ बोरिंग-दमकलक योजनाक दशा सेहो अछि। छोट किसान-ले नब्बे प्रतिशत सब्‍सिडीमे बोरिंग आ तिहाइ सब्‍सिडीमे दमकल देब शुरू भेल। मुदा सीमित दायरामे योजना समटा गेल। जइसँ गामक पाँचसँ दस प्रतिशत खेत धरि पानि पहुँचैक सुविधा भेल। मुदा वेपारीक चालिसँ घटिया बोरिंगक पाइप आ घटिया दमकल किसानक हाथ आएल। जे तीन‍-साल बीतैत-बीतैत सभ बिगैड़‍ गेल। ने एक्कोटा बोरिंग काजक रहल आ ने दमकल। मुदा बैंकक कर्जक बोझ किसानपर लदले रहल। जे चक्रवृद्धि‍क दरसँ सुदि सहित मूलधनक असुलीमे किसानक सिरिफ गाइए-महींस‍ नै खेतो-पथार बीकैत अछि। खेतीक उपजाक कोन बात जे लोकक खेतो हाथसँ निकैल‍‍ रहल अछि। 
जहिना किसान पानि-ले पहिने लल छेलए तहिना फेर‍ भऽ गेल। पानिक चलैत खेतियो पाछुए-मुहेँ ससैर गेल। जे किसान अपन पूजी लगा बोरिंग-दमकल कीनि खेती करै छैथ‍ ओ खादक वेपारी आ बीआ वेपारीक हाथक खेलौना बनि गेल छैथ‍। घटिया खाद आ घटिया बीआक चलैत हुनको खेतीक हालत आरो चौपट भेल छैन। गोटे साल नीक खाद भेटल तँ बीआ लऽ कऽ डुमि गेल नै जँ बीआ नीक भेटल तँ खाद लऽ कऽ डुमि गेल। खेती चौपट भेने गामक लोक पड़ा कऽ पंजाब, दिल्ली, बम्बइ, कलकत्ता चलि गेल जइसँ गामक-गाम सून भऽ गेल अछि। ओना, पाछू घुमि कऽ देखलापर नै बुझि पड़ैत जे मिथिलांचलमे पहिनेसँ कम जनसंख्या अखन अछि, मुदा श्रमशक्तिक अभाव जरूर भऽ गेल अछि। तहिना उपजाउ माटिक सेहो ह्रास भऽ गेल अछि। नीक माटि बाउलमे बदैल‍ गेल अछि। सोलहन्नी तँ नै मुदा अदहा नै तँ तिहाइक दशा जरूर बिगैड़‍ गेल अछि। जे गाम कहियो अन्नक बखारी छल ओ आइ राजस्थान सदृश मरूभूमि बनि गेल अछि। गाछ-वृक्षसँ सजल गाम वस्त्र-विहीन नारी सदृश बेनग्न भऽ गेल अछि। ओना, जेहो बँचल अछि तहूमे पानिक अभाव, खाद बीआक गड़बड़ीसँ नर-कंकाल जकाँ गामक सकल बनि गेल अछि। 
सभ किछु होइतो भोला चैनसँ गृहस्ती करैत अछि। आ गृहस्तक गौरवसँ मण्‍डि‍त अछि। किएक तँ जेते खेतबला पड़ाइन केलक ओ अपन खेत-पथार तँ नै लऽ कऽ गेला। खेत तँ गामेमे रहल। भोला सन-सन खेतिहरकेँ स्वर्ण-अवसर भेटल। अखन धरि जे बटाइ प्रथा छल ओइमे सुधार भेल। पहिने बटेदारकेँ उपजाक अदहा बँटबारा होइ छेलइ। जइसँ बटेदार सदिकाल‍ घाटामे रहै छला। घाटाक खेती देख बटेदार बटेदारी छोड़ि बोइने-बुत्ताकेँ नीक बुझए लगला। मुदा बटाइमे सुधार भेने मनखपक चलैन भेल। धानक बँटबारा पनरह किलो प्रति कट्ठा जमीनबलाक हिस्सा आ बाँकी बटेदारक। तहिना गहुमोक उपजाक बँटबारा हुअ लगल अछि। तरकारीक खेती सेहो तहिना हुअ लगल अछि। 



बाढ़ि-रौदीक प्रकोप सालो-साल होइते रहै छेलै मुदा विचार आ कर्म बदलने ओहो अभिशाप नै वरदान बनि गेल। बाढ़ि देख माथपर हाथ लऽ नै बैस, ओकर प्रतिकार करैक रस्ता अपनौलैन। तहिना रौदियोक प्रति केलैन। जइसँ बाढ़ि-रौदीसँ बँचैक उपाय कऽ लेलैन। सबहक एहेन धारणा बनि गेलैन। 
@
नव टेकनोलौजी एने नव जुगक आगमन भेल। नव मशीन नव इंजीनियरकेँ जन्‍म देलक। मुदा पुरना तकनीको आ इंजीनियरो, अछैते औरुदे, फाँसीपर लटकए लगला। जहिना गामक-गाम हैजासँ मरैए तहिना इंजीनियरक जमात पटपटाए लगला। मुदा दबाइक करखन्ने नहि, जे दबाइ बनौत..! 




बालगोविन्द- जहिना रिनिया-महाजन अगर-मगर करैत रहता तहिना सभ गिरहस्त अपनेमे कहा-कही शुरू केलैन।
यशोधर- की‍ कहा-कही शुरू केलैन?
बालगोविन्द- कियो कहथिन जे खाद जे देलिऐ से माटि जाँच करौलिऐ? तँ कियो बाजैथ जे जेते पावरक दबाइ फसिलमे दइ छेलिऐ तइसँ बेसी पावरक देलिऐ की कम? तँ कियो बाजैथ जे बीआ बाग करैसँ पहिने दबाइ मिलौलिऐ। की कहब उपजाक बात बिसैर सभ अपनेमे सालो भरि रक्का-टोकी करैत रहला।
यशोधर- तब तँ बाढ़ि रौदीक संग तेसरो आफत आबि गेल।
बालगोविन्द- तेसरे किए कहै छिऐ। चारिमो ने कहियो।
यशोधर- चारिम की?
बालगोविन्द- अहाँ सभ दिस नहर‍ नइए तँए ने नजैरपर आएल हेन। हमरा सभ दिस केहेन खेल होइए से सुनू। जखन खूब बरखा हएत तखन नहैरिक मुँह (फाटक) खोलि देत आ जखन रौदी हएत तखन कहत जे नहैरमे पानियेँ ने छइ।
यशोधर- जेना अपना ऐठम पढ़ल-लिखल लोक छैथ तेना जँ दसो प्रतिशत बुधिक (ज्ञानक) उपयोग अपना क्षेत्र लेल लगैबतैथ तँ की-सँ-की‍ देखतिऐ। मुदा जेकर कपारे फुटि जाएत तेकर केते भरोस। (राधेश्याम चाह लेने अबैए‍। तहिकाल गरीबलालक संग घटक भाय सेहो अबै छैथ...)



#नसीवलालक_दरबज्जा। #कर्मदेव_आ_नसीवलाल_गप_सप्प_करैत...।
!
नसीवलाल- काजक की समाचार अछि, बौआ कर्मदेव?
कर्मदेव- तीत-मीठ दुनू अछि।
नसीवलाल- (मुस्कियाइत...।) तीत-मीठ दुनू अछि! बेसी कोन अछि?
कर्मदेव- स्पष्ट कहाँ बुझि पौलौं। जँ स्पष्ट रहैत तँ दुनूकेँ मिला कहितौं किने।
नसीवलाल- ओ मिलबो मोसकिल अछि।
कर्मदेव- ओ केना मिलत?
नसीवलाल- प्रकृतिक अद्भुत खेल अछि। किछु वस्तु एहेन होइए जे अपन सुआदकेँ औरो गाढ़ बनबैए आ किछु वस्तु ओहनो अछि जे अपन सुआदे बदैल लैत अछि। तीतसँ मीठ आ मीठसँ तीत भऽ जाइत अछि आ किछु एहनो अछि जे ने तीते अछि आ ने मीठे। दुनूक बीचमे अछि।
कर्मदेव- एहेन पेंचगर स्थि‍तिमे कोनो ओझरीकेँ सोझराएब कठिन अछि।
नसीवलाल- नहि। एहेन कोन दुख अछि जेकर दबाइ नइए। भलेँ ओ दबाइ बुझबसँ बाहर किए ने हुअए।
कर्मदेव- तखन?
नसीवलाल- सभ खेल जिनगीए-ले चलैए। ऐ प्रश्नक उत्तर दू गोरेक बीच नै भेटत। प्रश्‍नो ओझराएल अछि। ओझरियो ओहन लगल अछि जेकरा सोझराएब तेतैर आ अमतीक मिलल सुआदकेँ बेराएब सन अछि।
कर्मदेव- (विहुसैत...।) आगू की करब?
नसीवलाल- बैसारक जानकारी भेलापर के की कहलैन?
कर्मदेव- बैसारमे भाग लेबाक आश्वासन तँ सभ देलैन।
(आभा आ शान्तीक प्रवेश...।)
नसीवलाल- आभा आ शान्ती तँ आबिये गेली। चारि गोरे सेहो भेलौं। कनी पहिने आकि कनी पाछू ओहो सभ एबे करता।
कर्मदेव- हुनका सभकेँ बजौने आबी?
नसीवलाल- जरूरी नहि अछि। जिनगी दू रस्‍ते चलैत अछि। एक काजक सवारीसँ दोसक खाली-खाली।
कर्मदेव- की मतलब?
नसीवलाल- काजक सवारी केतबो उभर-खाभर होइत किए ने चलए मुदा सुरो-सुन्दरीसँ बेसी सोहनगर होइए। जइसँ समैक ठेकाने बिला जाइत अछि।
कर्मदेव- तखन?
नसीवलाल- एबे करता। काजक अपन महत होइए। जे महत सभ समान दृष्टि‍ए नै बुझै छैथ। तँए ओकर फल समए पाबि नीकसँ बेसी अधले भऽ जाइए। 


जइ उत्साहक संग देशक अजादी-ले जनमानस जगि कऽ आगू बढ़ल ओ उत्साहकेँ अजादीक पछाइत छीन-भीन कऽ देल गेल। कहैले शासन विदेशी हाथसँ देशी हाथ आएल मुदा बेवहारिक जे जिनगी छल, ओइमे कोनो बदलाव नै आएल। एहनो नै कहल जा सकैए जे केतौ ने आएल, से ठाम-ठीम गामो-समाजमे आएल आ ठाम-ठीम परिवारोमे आएल। खाली सत्तासँ सटलक जिनगीमे उछाल आएल मुदा गाम-समाज ठमकले रहि गेल। रंग-बिरंगक उपद्रव जे पहिनेसँ आबि रहल छल ओ समाजक बीच किछु बढ़िये गेल, कमल नहि। जँ केतौ कोनो रंगक कमबो कएल तँ दोसर रंगक उपकबो कएल।
ओना, देशक बीच जन-जनक समस्या अछि मुदा ओ केना मेटत एकरा-ले जेहेन शासन-सूत्र चाही से नइ भेल। नव जनमल प्रजातंत्र बेवस्था, हजारो बर्खक लूटल-कूटल देश, केना उठि कऽ ठाढ़ भऽ चलत। धिया-पुताक गेन नइ ने छी जे पकड़नौं गुड़ैकते अछि। गाम-गामक अर्थ-सम्पदाक संग, कौशल सम्पदा, जे पहिनेसँ दबल आबि रहल छल ओकरा उठबैक ओहेन उपाय नइ भेल जेहेनक खगता छल।
भुमकमक पछाइत आकि समुद्री जुआरिक पछाइत जहिना धरतियो आकि पानियोँ असथिर होइत-होइत असथिरो आ शान्‍तो भऽ जाइए तहिना अजादीक पछाइत जनमानसक अजादीक सपना असथिर होइत-होइत शान्त भऽ एते दबि गेल जे ओकर चीन-पहचीन मेटाएल जकाँ बुझिमे आबि रहल अछि।
ओना, किछु इलाकाक किसान अपन जिनगीकेँ बुझि खेती-वाड़ी करब अपनौलैन जइसँ ओ सभ बेसी गिरहस्‍तीपर आश्रित छैथ। जे अपना ऐठाम नइ अछि। हजार बीघा जमीनबला सेहो नोकरीए करता तखन बिनु खेतबलाक की उपाए हएत। ओना, घर-बाहर दुनू दिससँ ओझरी तँ अछिए। सालमे एकबेर बाढ़िक उपद्रव, जइमे खेती-पथारीसँ लऽ कऽ घर-दुआर दहौनाइ-भँसौनाइक संग जमीनो कटि-कटि धार बनिते अछि। तहिना बेसी बरखा भेने सेहो आफद ऐबते छइ। जाड़ोक मौसम सेहो तेहने मारुख होइते अछि। मास-मास, दू-दू मासक शीतलहरी। मुदा सभ किछुकेँ रहैत फेर केना जीबित रहब, ऐ ले तँ सभ ने अपन-अपन सोचबै।
#जगदीश_प्रसाद_मण्डल_लेखन_2016-17