Pages

Friday, July 31, 2015

Jagdish Prasad Mandalk ''हरदीक हरदा'' कथासँ...


...झटकल घरपर आबि चुल्हिक ओरियानमे लगि गेलौं। सभ समान चुल्हि लग रखि मसल्‍लाक चङेरी आनए गेलौं कि हरदीकेँ भाषण करैत सुनलौं। मन ठमैक गेल। एक मन हुअए जे चङेरीए उठा चुल्हि लग रखि दिऐ, जे चुल्हिक काजो करब आ हरदीक भाषणो सुनब।
फेर भेल जे जँ कहीं चङेरी छूअब आ गनगुआरि जकॉं मुँह-नाङ्गरि सभ एकबट्ट कऽ लेत, तखन की सुनब? मन अग-दिगमे पड़ि गेल। अन्‍तिम विचार यएह भेल जे हरदी केतेकाल भाषणे देत। ओना चङेरीमे हरदीक संग मिरचाइ, धनियॉं, तेजपात आ नून सेहो छल। पॉंचोक बीच हरदी बाजल-
भाय, आब ऐ दुनियॉंमे जीब कठिन भऽ गेल अछि। हमरेटा नइ तोरो सभकेँ।
हरदीक उदारवादी विचार सुनि मिरचाइ कहलकै-
हरदी भाय, अनकर ठेकान तँ नइ बुझै छी, समए पाबि धनियॉं धनिको भऽ जाइए मुदा अहॉं भेलौं कि हम आकि नून भेल, तीनू गोटे तँ सभ दिनसँ एकठाम छी।
मिरचाइक बात सुनि हरदी मने-मन सोचलक जे मिरचाइ बुधियारी मारए चाहैए। कहू जे हम अपन जन्‍मभूमिपर छी, जन्‍मस्‍थानपर छी, ओना मिरचाइयो अछि मुदा नूनकेँ किए सानि लेलक? दुनूक चलाकी छी, दुनू मिलि मरूआ रोटीक संग चलि जाएत हमरा छोड़ि देत।
फेर हरदीक मनमे उठल- एना जे एकटाकेँ दुसब आ दोसरकेँ पुछब से नीक नहि हएत। तँए सबहक बीच किए ने एक राय बना विचारि लेब।  
डिब्‍बाक भीतरसँ धनियॉं बाजल-
भाय हरदी, पहिने अपन बात बाजह जे आगू दिन-ले की दुख भऽ रहल छह।
धनियॉंक बात सुनि हरदीक मनमे ओहन आस जगल जे बेटी बिआहक देल सहयोगक तगेदा ई कहि करैत जे हुअए तँ देब नइ तँ नहि देब। सोल्‍होअना कहब जे नइ देब। रीन लादब भेल। ओ देनिहार- माने आपस केनिहार- समैनुकूल निर्णए करता।
लोको तँ लोक छी, धन देख धनमन्‍त कहि असीरवाद दइए जे पॉंच पुरुखा तकक लेल अरजि देलिऐ, ने घरक दुख आ ने खाइ-पीबै आ ऐश-मौज करैक दुख बाल-बच्‍चाकेँ हुअ देब। मुदा ई थोड़े ओही मुहेँ कहत जे पछिला पुरुखाक जे ढेरीपर बैसल छी, से भेल केना। अहॉंले अहॉंक पिता आकि बाबा की सभ आ केना केलनि।
मने-मन हरदी गमलक जे बाते-बातमे विवाद भऽ जाएत, काजो रहि जाएत कातेमे आ जिनगीओ चलि जाएत खत्तेमे। से नहि तँ पहिने अपन बेथा कहि देब नीक रहत। जँ कियो दुख देख-सुनि दुखी भेल आ दुर्दिन-ले दोस भेल सेहो बड़बढ़ियॉं नइ तँ अढ़ाइ हाथ सभपर छै, अपन-अपन बूझि लेत। बाजल-
भाय-बन्‍धु, जे जनमभूमि सभ दिनसँ अपन रहल, बाप-दादाक तपोभूमि रहलनि, जे अपन देह गला-गला बलिवेदीपर चढ़ि एक दिस पुन-परताप करैत आएल छथि तँ दोसर दिस जनमभूमिमे नव सृजनक सहयोगी मॉं जननीक रहलनि, तैठाम पेटेन्‍ट कहि पट्ठा बनबए चाहैए?”
हरदीक बात सुनि बिच्‍चेमे खड़खड़ाइत तेजपात बाजल-
ऐ भाय! एहेन अन्‍हेर?”
तेजपातक प्रवाहमे बहैत हरदी बाजल-
भाय, अन्‍हेरे किए कहै छहक, इन्‍होर आ अन्‍हार किए ने कहै छहक?”
मिरचाइ टोनियबैत बाजल-
भाय, जखन अपन दुखनामा बजै छह ते एकहरफी बजैत चलह। बीचमे भौक-भाक हेतह ते महाभारतक सयम श्‍लोक जकॉं भऽ जेतह।
मिरचाइक बात सुनि हरदीक मनमे बिसवास जगल जे सभसँ लगमे सुनिनिहार मिरचाइ अछि। वेचारा सजमनि सन तरकारीमे बिनु तेलोक संग पुरैए। एहेन संगीकेँ संगे लऽ चलब नीक हएत। मुदा संगी जे संगबे हएत तइले ते नीक-सँ-नीक आ अधला-सँ-अधला बात-विचारक सम्‍बन्‍ध नइ राखब तँ ओ रस्‍तेमे थुसकुनियॉं मारि देत किने...। 
बाजल-
भाय मिरचाइ, भलहिं तोहर गुण लोक ओहन बुझथु जे अधिकतर संगी सभसँ फुट छह, माने सुआदक नजरिये, मुदा संगी नइ छहक सेहो बात नहियेँ अछि। लाल मिरचाइक संग कारी मिरचाइ सेहो अछिए। भलहिं तूँ अपना पएरे धरतीपर ठाढ़ भऽ फुलाइत-फड़ैत अपन कल्‍याण करै छह आ करिया मिरचाइ अनका पएरे अनका सिरपर चढ़ि कऽ कल्‍याण करैए। सएह ने?”
अपन परिवार दिस बातकेँ अबैत देखि मिरचाइ बाजल-
भाय हरदी, सभ अपना-अपना मुहेँ अपन-अपन बात बाजह, नइ तँ गड़बड़ भऽ जेतह। मोटका चाउरमे महिक्का जेना नुका रहैए तहिना हेतह।
अह्लादित होइत हरदी बाजल-
भाय मिरचाइ, की अपन बात कहबह, बहरबैया जे सेखी उतारैले उताहुल अछि से तँ अछिए, घरबैयो सभ कम खचड़ै नइ ने करैए।
खचड़ै सुनि तेजपातक मनमे उठल, भाय घरबैयाक जखन एहेन दुर्दसा छै तखन हम तँ सहजे बहरबैया भेलौं। मुदा केतबो बहरबैया छी, तँ लोक अपना छातीपर हाथ रखि बाजह जे पुश्‍त-पुश्‍तानिसँ संगे सभ मिलि-जुलि रहैत एलौं हेन की नइ? बाजल-
भाय, की खचड़ै कहलहक?”
जहिना केकरो बेथा सुनिनिहार भेटने मनमे सुआस जगै छै तहिना हरदीओकेँ सेहो जगलै। बेथित होइत तेजपातकेँ कहलक-
भाय तेजू, की कहबह अपन मनक हाल, तेहेन खच्‍चड़क शिरोमणि सभ भऽ गेल अछि जे अधपक्कू ईटाकेँ पीस लइए तइमे कनी केमिकल मिलौल पीअरका रंग फेँट कऽ बीच बजारमे पटैक हमरा बेइज्‍जत करैए।
दुनू हाथसँ धनियॉं सभकेँ शान्‍त करैत बाजल-
भाय, हमहूँ जनमडीही छी, एकर माने ई नइ जे ओ आन भेला। जँ बहरबैयो छथि आ गंगा-सागर जाइले संगी छथि, तखन जँ कोनो मनमे कुवाथ अनै छी से नीक नहि। सभ संगी छी, सभ दिन जहिना बाप-दादाक अमलदारीसँ रहलौं तहिना आगूओ रहब।
मिरचाइ अपन विचार देलकै-
देखह भाय हरदी, केतबो कियो तोरा आगूसँ आकि पाछूसँ धकलै छह तँ की तूँ धकिया जाइ छह, तइले अपन दिन-दुनियॉं ने देखए पड़तह। अखन बस एतबे करह जे सभ अपन-अपन चिन्‍हा-परिचए, गुण-अवगुण अपना मुहेँ कहि कऽ आइए अपन-अपन छान-बान दुरुस कऽ लएह। पछाति सब संगी भेलौं, संगे चलब, बस एतबेसँ सबहक काज चलैत रहत।
पाछू घुसकैत नून बाजल-
भाय, सभकेँ बाप-दादाक ठेकान, खाता-खेसरा आ जमीन छै, हमरा ते किछु ने अछि। कखनो समुद्रक पानिमे दहा जाइ छी, तँ कखनो सिंध नदी होइत सिंध पहाड़मे घोंसिया जाइ छी। कखनो उस्‍सर-खासरक टोपी बनि माटिमे फुला जाइ छी। के एते मुइलहा बाप-दादाक खतियान ताकत। लूटि लाउ कुटि खाउ भिनसर भने फेर जाउ। भाय, हमरा विषयमे जे जेते जनै छह, हम एतबे कहबह।
नूनक दुखनामा सुनि तेजपात बाजल-
भाय, हमहूँ सभ मिथिले-वासी छी। तखन तँ सभ दिनसँ पहाड़पर बसैत एलौं, तँए अखनो बसै छी, मुदा पहड़नीओं बनि तोरा सबहक संग कहियो छोड़लियह हेन।” 

'हरदीक हरदा' कथासँ साभार....

SAGAR RAIT DEEP JARAY- NIRMALI


सगर राति दीप जरय :: १९ सितम्‍बर २०१५

मिथिलाक प्रसिद्ध साहित्‍य गोष्‍ठी- सगर राति दीप जरयक ८७म आयोजन निर्मलीमे होएत ई निर्णए तँ पछिले गोष्‍ठीमे भऽ गेल छल, जे समाचार अपने लोकनिकेँ प्राप्‍तो अछि। मुदा कहिया होएत आ निर्मलीमे केतए होएत ई साफ नइ भेल रहए, जे अझुका बैसकमे भऽ गेल।
आइ सॉंझमे निर्मलीक स्‍थानीय साहित्‍य प्रेमी सबहक बैसक भेल। जइमे श्री विनोद कुमार, श्री सत्‍य नारायण प्रसाद, श्री सुरेश महतो, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री राम विलास साहु, श्री राम प्रवेश मण्‍डल, श्री राजाराम यादव, श्री मनोज शर्मा, श्री रामलखन भंडारी एवं श्री सुरेन्‍द्र प्रसाद यादव आदि महतपूर्ण व्‍यक्‍ति सभ रहथि।
सगर रातिक कथा गोष्‍ठीक इतिहासक संग सुन्नी-हकारक महतपर विचार-विमर्श चलल। ऐ विशेषताकेँ अक्षुण्ण राखल जाए ई बात श्री राजदेव मण्‍डलजी कहलनि। सभ कियो निर्णए लेलनि जे अगिला गोष्‍ठी ऐतिहासिक हुअए।  संगे दिन-तारीख आ स्‍थानक चयन सेहो भऽ गेल जे निम्‍न अछि।
अपने लोकनि (कथाकार, आलोचक) सादर अमंत्रित छी।
दिन- शनि
तारीख- १९ सितम्‍बर २०१५
स्थान : श्यामा रेसिडेन्सी कॉम विवाह हॉल, एस.बी.आइ. केम्पस- निर्मली (सुपौल)

Tuesday, July 28, 2015

सीरक गाछ (गुड़ा खुद्दीक रोटी संग्रहसँ साभार)


सीरक गाछ

जेठ मास। भिनसुरका उखड़ाहाक दू घण्‍टाक काज पुरबैत रही कि सुर्ज दिस तकलौं। दू घण्‍टाक माने खेतक काजक दू घण्‍टा, नइ कि दिनक दू घण्‍टा।
रौदाएल हवा झँटियबैत-झड़कबैत रहए। अन्‍दाजमे आएल जे एगारह बजि गेल हएत। दू घण्‍टाक हिसावसँ काजक समए पुरैत रहए। काज उसारि खुरपी-हँसुआ समेटि जखन गमछा तरक मोबाइल उठेलौं कि एगारह बजैमे पाँच मिनट पछुआएल देखलिऐ। काजक समए नष्‍ट केना करब मुदा उसारल काजकेँ पसारबोमे तँ पॉंच मिनट समए लगिये जाएत। अग-दिगमे पड़ि गेलौं।
मनमे उठल- काजोक की कमी छै जे एकटा उसरि गेल तँ दोसर नइए। दुनियॉंमे ने खेतक कमी छै आ ने बाड़ीक, ने बाड़ीक कमी छै आ ने फुलवाड़ीक, ने फुलवाड़ीक कमी छै आ ने फलवाड़ीक, तहूमे फलवाड़ीओ कि कोनो एके रंगक अछि, तीन-मसुआसँ बरह-बरखा धरि अछि।
की करी की नइ करी, बिच्‍चेमे त्रिशंकु जकॉं मन लसैक गेल। काजक पतराइत विचार समए दिस देखैक जोर मनमे मारलक। जेठ मास। केहेन जेठ? जेठो तँ जेठ होइत-होइत जहिना जठिया जाइए तहिना ने छोट होइत-होइत छोटियाइत माटि-बालुमे दबैत दबिया जाइए? जेठो कि कोनो एके रंगक होइए, पाछूसँ अबैत गाड़ी सवार जकॉं तेहेन रूप बना रंगमंचपर नचैत आबि रहल अछि, जेकरा परेखब बाल-बोधक खेल नइ। पाछूसँ जँ रौदियाएल समए अबैत रहल तँ आरो बेसी रौदिया जाएत, आ जँ से नहि कहीं पाछू बढ़ियाएल पानि जेहेन पीने रहल तेहेन हरियाएल रहबे करत किने। मुदा जँ ने बाढ़िक पानि पीने हुअए आ ने रौदियाएल हवा पीने हुअए, तेहनो जेठ तँ होइते अछि। सएह जेठ।
ओना काजक हिसावसँ जेठ घटियाएल रहए मुदा लम्‍बाइ-चौड़ाइक हिसावसँ मिसियो भरि कमी नहि। काजक समए काजक दौड़मे ठेकान-बेठेकान भऽ जाइ छै, मुदा अकाजक समए तँ विरहाएल जकॉं बेर-बेर घड़ीक सुइआ दिस तकबे करैए। सएह भेल।
फेर मोबाइल उठा समए देखलौं तँ दू मिनट बढ़ल, तीन मिनट बॉंकी अछि। माने नहाइक बेर अबैमे तीन मिनट बॉंकी अछि। आगूक रस्‍ता बाड़ीक बीचे-बीच अछि, जेतए काज करैत रही तेतएसँ आगूक बाड़ीमे वामा भाग पॉंच गाछ लताम आ दहिना भाग सात गाछ नेबो पड़ैत अछि।
नहेबोक कि कोनो समए अछि, जेकरा जखन गर लगै छै से अपना गरे नहाइक समए बना अपन काज चलबैए। तखन तँ भेल अपन जिनगीक संकल्‍पित बान्‍हकेँ निमाहब। मुदा ओहो तँ कोसिकन्‍हाक बहुआहा बाध जकॉं मनुखो आ समाजोमे तँ अछिए। जेकरामे ने कोनो आड़ि-मेड़ छै आ ने खेतक शकल-सूरत, जेम्‍हरे मन फुरए तेम्‍हरे हिया कऽ देख लिअ आ सोझहे विदा भऽ जाउ। मुदा से थोड़े अछि, तीन बजे भोरसँ नहाइक घाट शुरू होइए आ तीन बजे राति तक चलैत रहैए। बीचमे केतौ आड़ि छै जे बुझब कखन उसरैए आ कखन शुरू होइए?
वामा भाग दिस लतामक गाछ फड़सँ लदल, जेठ रहितो जेहने हरिअर पात तेहने हरिअर फड़सँ सजल-धजल अछि। तरकारीवाड़ीसँ आगू एक दिस फलक झाड़ी तँ दोसर दिस फलक तरूवाड़ी। दुनू फल जहिना नेबोक झड़झाड़ी तहिना लतामक तरूवाड़ी। दुनू दिस दुनू अपन मस्‍ती भरल जुआनीसँ लदल।
आगू डेग उठिते दुनू फल- माने झाड़ीक नेबो आ तरूवरक लताम- पर नजरि गेल। एकटा मीठ दोसर खट्टा, एकटा गुदगर दोसर रसगर, तहूमे दुनूक पेटमे बीआ सेहो अछिए। किछु छी तैयो तँ छी दुनू जिनगीक सिरसजमनियेँ।
ने लताम दिस डेग उठए आ ने नेबो दिस। केकरा कहबै जेठुआ जेठ आ केकरा कहबै तहूसँ जेठ। खिस्‍सा जकॉं नइ ने होइए जे एकटा रहबे करै, एकटा पहिनेसँ रहै आ एकटा तबेसँ रहै आ एकटा सभदिने रहै...।
मुदा से भेल नहि सीरबला गाछक एकटा लताम अपन पूर्ण जिनगी जीब पूर्ण स्‍वस्‍थता पाबि अन्‍तिम भेँट चढ़ैले अकास तियागि धरतीक कोरामे आबि खसल, जीव-जन्‍तुक रक्षा लेल अपन वलिवेदीपर पहुँच गेल।
धरतीपर खसल फलक अवाज सुनि हमरो नजरि ओम्‍हरे बढ़ल। फरिक्केसँ फल देख मन मोहिया मोहित हुअ लगल। आगू बढ़ि हाथसँ उठा अंत-प्रत्‍यंग निहारए लगलौं, ने केतौ कोदवाक दाग आ ने केतौ तिलबा। सजल-धजल गुण-सम्‍पन्न गुदासँ भरल सिनुराएल लताम।
लतामकेँ नीक जकॉं निहारियो ने पेने रही कि झाड़ीमे झड़झड़ाइत एकटा पाकल नेबो सेहो खसल। नेबो खसैसँ पहिने- माने जा नेबो नइ खसल छल- मनमे उठल रहए जे लतामक हाल-चाल, समए-सालक समाचार पूछि लेब। मुदा से भेल नइ, जेना दू गोरेक बीच अपन लीला देखबैक उपरौंज हुअ लगैए तहिना बूझि पड़ल। जखन नेबोओ अपन वलिदानक लेल वलिवेदीपर आबिए गेल तखन किए ने दुनूकेँ एकेठाम परीछा करी।
लतामकेँ हाथमे नेने नेबो लग जाइ आकि हँसुआ-खुरपी-मोबाइल आ गमछाकेँ गाछक जड़िमे रखि नेबोएकेँ उठा आनी? सएह केलौं- गाछ तरसँ नेबोकेँ उठा हाथमे लइते रही कि ओ चहैक गेल। रससँ भरल रूप मुदा चहकलो पछाति ऑंखिक नोर अपन ठौर धेने! एको बून नोरक दरस नहि! अही टराटकमे रही कि चहकैत नेबो बाजल-
दू रूपैआ दामक हम छी, मधुबनीक टीसन-कातक होटलमे दस टुकड़ी कटि दस गोरेक भोजनकेँ सुवादिष्‍ट करै छी मुदा तैयो लोक हमरा दुसिते रहैए जे तूँ कॉंटक फड़ छेँ तोहर कोन मोजर!”
एक तँ ओहुना नेबो, दारीम, बेल कँटाएल गाछक फल छी, तहूमे बेल तँ ऊपर उठि झाड़ीसँ निकलि जाइए, जँ अपनामे झाड़ी बनबितो अछि तँ जेना-जेना अकास दिस उठैत गेल तेना-तेना झाड़ीकेँ झड़ियबैत डारिकेँ सुमझबैत आगू बढ़ि बढ़ैत जाइए, मुदा नेबो तँ से नइ छी! ओकरा कँटाएल वंशक कहि बगूरो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। जँ कोनो फल-फूलमे अमृत वरिसबैक शक्‍ति अछि तँ ओ नेबोओमे अछिए।
गाछक जड़िमे नेबोकेँ खसल रहने, ओरिया कऽ देह समटैत हाथ बढ़ा जड़ि लगसँ नेबो निकालने रही। कॉंटक झाड़ीक फल हाथमे अबिते मनमे खुशी जगले रहए। मुदा चहकल दू फॉंक जकॉं भेल नेबोकेँ देखि मनमे भेल जे जँ फटबो कएल अछि तँ ओकरा ओरिया कऽ उपयोग केलासँ कोनो फरक नै, किएक तँ ऊपरसँ खोंइचा ने फटलै, रसक बखारी तँ ओहिना समटल छै।
अपन विचारमे विचरण करैत विचारैत रही तँए नेबोक चहकबपर धियान नइ अँटैक ओकर गुणक उपयोगक विचारमे पहुँच गेल। मुदा तँए कि नेबोक तमतमी कमल रहै, मने-मन तमतमाइते रहए। ओना मनमे ईहो बात उठैत रहए जे दू-चारि ठोप रस जँ अमृते रहत तइसँ की लोकक दिन गुदस जेतै? असल अमृत तँ अन्न-पानि होइए। मुदा किछु बाजी नै चुपे रही, तमतमीओं तँ तखन तमतमाइ छै जखन ओकरा संग खट-समाद होइ छै।
नेबोकेँ नेने लतामक गाछक छाहरिमे बैसि लतामक संग सजबए लगलौं कि बिच्‍चेमे नेबो टभकि गेल-
हम आगूमे बैसब, नइ तँ अगिलाक गप-सप्‍प सुनैमे समए ससरि नहाइबेर भऽ जाएत आ हमरा बेरमे खेले उसरि जाएत।
अखन धरि लताम अपन मुँह समेटने सभ किछु देख-सुनि रहल छल। ओना नेबोक फटफटी सुनि लतामकेँ तामसो उठै मुदा अपन दरबज्‍जापर देख बरदास करैत रहए। खाली मंचपर वक्ता जहिना भरि पोख बजै  छथि, आ श्रोता भरि कान सुनै छथि तहिना एकतर्फा नेबो अपन भाषण-पर-भाषण ठाढ़ करैत रहए। मुँह कखनो सापुट नै लइ, खाली मंच देखि नेबो फेर बाजल-
भाय साहैब, अमरीत बरसा करैबला फल हम छी, अपन दियादवाद झाड़ीक फड़ कहि हमरा बोकियबैत रहैए आ आन-आन अपनाकेँ तरवर कहि मोजरे ने दइए।
लतामक नजरिसँ बूझि पड़ल जे तामसे जरल जाइए मुदा बीचमे हमरा देखि अपन मुँह बने केने छल। ओना तरे-तरे ओकर टीक तामसे ठाढ़ भेल जाइत रहै, मुदा लाजक पछे दरबज्‍जापर किछु ने बजैत रहए। कोनो कि औझुका दरबज्‍जा छी, सभ दिनसँ एहेन होइत आबि रहल अछि जे कोनो दरबज्‍जापर अमृत-पान भेटैए तँ कोनोपर विष-पान। मुदा अमृत-विषक सीमेपर ने नेबो सेहो ठाढ़ अछि।
ऑंखि उठा लतामपर देलिऐ तँ बूझि पड़ल जे किछु बाजए चाहैए। आँखिक टुसकी देलिऐ। टुसकी पबिते बमछैत नेबोकेँ कहलक-
तखनिसँ तोरा देखै छियौ जे बड़े फट-फट बजै छेँ जे हमरा मोजरे ने दइए।  
लतामक बातकेँ बिच्‍चेमे रोकि, जहिना एक सेना दोसर सेनाकेँ अकास-पताल धरिक सभ रस्‍ताकेँ रोकि बजैए तहिना नेबो बाजल-
कोन बेजए बात बजलौं जे तोरा एना तामस उठै छह? तोहीं  मोजर दइ छह?”
लतामक भक्क जेना खुजि गेल रहै तहिना कनी पाछू हटैत नेबोकेँ कहलक-
हम तरूवरक फल छी से ते मोजरे ने अछि आ तूँ ते सहजे झाड़ीक फड़ छिऍं।
झाड़ीक फड़ सुनि नेबोकेँ मने-मन होइ जे मरि जाएब तँ मरि जाएब मुदा एहेन बातकेँ आगू नइ बढ़ऽ देब। बाजल-
पहिने तूँ अपन अधखड़ुआ बात पुरा करह, पछाति जँ कोनो बात छूटि जाएत तखन हम बजबह।
नेबोक मनमे होइ जे गाछक फल रहनौं लताम देखैमे तँ हमरे जकॉं अछि। साइजक हिसावे एके रंगक छी, मुदा लताम तँ गुदगर होइए, अपने रसगर छी। संगे ओकर बीआ मात्र सृष्‍टिकर्तेटा नहि अमृत वरसक सेहो अछि, तैठाम अपने तँ कनाहे छी। तेतबे किए, ओकरा लोक हबैक कऽ चाहैए आ जँ हमरा हबकत तँ से हेतइ! नेबो सहमि गेल।
नेबोकेँ समहल देखि लताम कहलकै-
भाय नेबो, तोरा कि कोनो हम आन बुझै छिअ जे कानमे झड़ पड़ेबह, कहै छहक जे हमरा मोजरे ने अए। हमरे कोन मोजर अछि। जहिना तोहूँ फूलेसँ फड़ै छह तहिना हमहूँ फूलेसँ ने फड़ै छी, तूँ फड़ भेलह हम फल भेलौं सहए ने। आम जकॉं थोड़े मोजरै छी अपना सभ जे मोजर हेतह।
बैसल-बैसल दुनूक बकठॉंइ सुनि किछु फुरबे ने करए। कनी कम कि कनी बेसी कहै तँ दुनू नीके बात। यएह ने होइ जे खटाएल मुहेँ नेबो कनी बेसी खटगर बजइ।
दुनूकेँ बीच बँचाउ करैत कहलिऐ-
भाय जेहने लताम भेलह तेहने नेबो भेलह। दुनूक मुहोँ-कान आ रंगो-रूप मिलै छह, तँए आगू बैसब कि पाछू बैसब एकरा छोड़ह। दुनू अमृत छिअ, तँए अपन-अपन अमृतत्‍वक गुणकेँ बुझह।
मुड़ी डोला नेबो मानि गेल जे खाइकाल सभ अगुआएल बनल रहैए हम पछुआएल बनै छी सएह ने, मुदा पहिल कौरमे तँ हमहूँ साझी रहबे करै छी किने। 
सुनि कऽ मानि तँ दुनू लेलक मुदा बजैसँ परहेज करैत मुहेँ बन्न कऽ लेलक। अपन मन रहए जे किए ने दुनू अपन विचारकेँ अपनेमे समेटि लिअए। मुदा आगू बढ़ि बजैले कियो तैयारे ने अछि! जखनि कि अखने दुनू रक्का-टोकी करै छल!
फेर मनमे उठल, तामसे ठोर बन्न केने ने मुँह बन्न छै, मुदा मनमे तँ ओहिना तामस पजरले हेतै। तँए कनी खोंरना चला दिऐ। खोरियबैत बजलौं-
भाय नेबो-लताम, दुनू भैयारी भेलह मुदा अपन-अपन वंश तँ दुनूक अलग-अलग छह, से पहिने फरिया लाए।
राम दरबारमे जहिना छोट-छोट बानर किछु सुनि एक-दोसरक मुँह ताकऽ लगै छल तहिना लतामो आ नेबोओ एक-दोसरक मुँह ताकऽ लगल। मुहोँ केना ने तकैत, कोनो कि ओकरा टिपनि माए-बाप देने रहइ। बानर जकॉं करहर उखाड़ि माथपर रखैत गेल, डुमैत गेल, भँसियाइत गेलइ...!
दुनू दुनूक मुँह तकैत मुदा बजैत कियो ने किछु। फेर दोसर खोरनि चलेलौं-
भाय, घरक चारमे खोंसल टिपनि नइ छह तँ नइ छह, मुदा ई तँ बुझल छह किने जे धरतीपर केना एलौं?”
लतामक चुपी देखि नेबोकेँ तामस उठल, बाजल-
हम पनियाह छी मुदा तूँ ते थलियाह छह किने, तखन पहिने तूँ ने बजबह। हमरा ते पानियेँमे घोरि कऽ लोक पीब जाएत मगर तोरा जँ पानि सेने कियो पीतह, तेकरा तूँ बिना कफ-ठेँर, सरदी-बोखार उतारने छोड़बहक, बाजह।
नोवोक बोकिएलो पछाति जेना लतामकेँ सस नइ ससरइ। हिया कऽ देखै तँ बूझि पड़ै जे बोनो-झाड़क नेबो हमरासँ छोट कहॉं अछि। देखै छिऐ जे कनियेँ ठरिया कऽ गछिया टाभ नेबो तेहेन होइए जे हमरा वंशमे अखनि तक ओहन भेबो ने कएल हेन।
लतामक चुप्‍पी देखि नेबोकेँ बूझि पड़लै जे भरिसक हमर विचारक असरि लतामोकेँ भेल।
असरि पाबि नेबोक मनमे भेल जे जखने केकरो आइन-पीड़ा, दुख-बेथाक असरि होइ छै तखने ने ओकर मुँह खुलै छै। तँए आब देखिऐ जे लताम की बजैए।
मुदा जेना लतामकेँ किछु फुरबे ने करइ। दुनूमे देखिऐ जे नेबो तँ किछु बजितो अछि मुदा लताम तँ सोलहन्नी गुमकी लाधि देलक। कहलिऐ-
भाय, एना नइ हेतह पहिने ई कहह जे तूँ ऐ धरतीपर केना एलह?”
सातो गाछ नेबो एकठाम बैसि अपन परिचए-पात कऽ नेने रहए, तँए सबहक बात सभकेँ बुझल रहइ। सीरक गाछक सिरगर फल दइबला सीरजन फल जहिना लताम तहिना नेबोओ। दुनू अपन बुढ़ाड़ीक रंगमे रमल-रंगल। जिनगीक सभ तीत-मीठक अनुभवी दुनू...।
नेबो बाजल-
हमर तीन वंश अछि, बीआसँ गाछ होइ छी, डारिमे कलम लगौलासँ होइ छी आ गाछक सीर कटलासँ सेहो होइ छी। हम अही वंशक सीरक गाछ छी।
नेबोक सुगंध भरल रस पीबिते मन वौआ गेल। मुहसँ खसि पड़ल-
आमकेँ मोजर होइए, तँए कि तोरा फूलक मोजर नइ भेल, से तँ भेबे कएल, तइले अनेरे ने तामसे फटै छह।
अनेरे तामसे फटै छह सुनि आकि की, जहॉं मुँह बन भेल कि नेबो झपाटा मारलक-
जहिना आम अपनाकेँ मोजर दइए तहिना हमहूँ अपन फूलकेँ मोजर बुझै छी, ककोड़बो बिआन ओकरो छै जे घोदा घोदे फड़ैए आ हमरो तँ से अछिए। तखन जे आम बढ़ि-चढ़ि कऽ बाजत से मानबै।  
अपना ताले-वेताल भेल नेबो। की बजैए नइ बजैए से किछु बुझबे ने करिऐ। एतबे अन्‍दाज आबए जे रसिया कऽ कसिया गेल अछि। कहलिऐ-
सुनै जाह, एना जे एकहरफी तामस झाड़ै जेबह से नीक नइ हेतह। तँए फुटा-फुटा कऽ बाजह। तोराले हम किए झूठ बाजी।
झूठ किए बाजी सुनि नेबोक मन शान्‍त भेल। मुदा तैयो मन उझैक गेलै। आम दिस इशारा करैत बाजल-
भाय साहैब, हम सीर-वंशक छी, ओ बिनु सीरक अछि। बीआसँ कहियौ आकि ऑंठीसँ से होइए, चाहे कलम लगा कऽ होइए जे दुनू तँ हमरो होइते अछि। मुदा तेसर रंगक जे सीरसँ गाछ होइ छै जे हमरा तँ होइए मुदा आमकेँ से कहॉं होइ छइ?”
नेबोक विचारमे तेना बोहिया गेलौं जे बजा गेल-
हँ, से तँ होइते अछि।
शतरंजक सह जकॉं नेबोकेँ सह भेटल। एके-बेर तीन घर टपि बाजल-
आमकेँ हम बिनु सीरक गाछ बुझै छी, तँए ओ बिनु माथक भेल, जखन माथे ने छै तखन ओ समाजक तीत-मीठ केना बुझत।
नेबोक सन-सनीसँ बूझि पड़ए जेना भोजनक सभ विन्‍यासमे सनाएल हुअए! कहलिऐ-
देखह भाय नेबो, एकटा तोरे फटफटेने तँ नइ ने हएत, लतामोक वंश ने बुझबहक?”
मने-मने लताम सेहो अपन वंश-वृक्ष गुनि नेने रहए। अत्‍मामे बिसवास बनि बसि गेल रहै जे हमरो वंश तीनपुरिया तँ अछिए। जहिना नेबो बीओसँ, डारियोसँ आ सीरोसँ वंश सिरजैए तहिना तँ हमरो वंश अछि। आमकेँ छै कि नइ छै से ओ अपन बुझत, तइले हमर छाती किए फटत। डँटैत नेबोकेँ लताम कहलक-
तोरा ढेरीए छौ तइसँ अनका की, ओ अपन बाँहिक बुते कमा खाइए आकि तोरे ढेरीए जीबैए। तइले तोहर छाती किए चहकै छौ?”
लतामक बात सुनि बूझि पड़ल जे नेबो किछु बजैले लुसफुसा रहल अछि। एकरा सबहक लपौड़ीमे अपन नहाइयोक बेर उनहि रहल अछि। मुदा एकरा सभकेँ छोड़ि नहाइयो-खाइले केना जाएब। दुनू दुनूपर तमसाएल अछि। बीचसँ उठि कऽ चलि जाएब आ जँ कहीं दुनू अपनामे पटका-पटकी करए लगए तखन ते खेनाइयो ने गरगट हएत। तइसँ नीक जे कनी नीक आकि कनी अधला, टटके फरिछौट कऽ दिऐ। टटका फरिछौट बेसी नीक होइतो अछि। कहलिऐ-
दुनू भैयारी सुनह, दुनू गोरे शिवलिंग जकॉं बीचमे आड़ि दऽ दहक जे अपन-अपन दुनूक सीमा भेलह आ ओइ सीमाक भीतर अपन दुनियॉं भेलह।
बिच्‍चेमे नेबो बाजि उठल-
हमरा दिससँ कोनो इतराज नइ मुदा लतामोसँ से पूछि लियौ।
हाथक इशारा दैत नेबोकेँ कहलिऐ-
भाय नेबो, जखन दुनू गोरेकेँ एक्के ऑंगनक धरतीपर रहि दिवस गुदस करैक छह तखन अनेरे लड़ैत-झगड़ैत किए रहबह, मेले-मिलानसँ किए ने रहबह।
नेबोकेँ जेना अपन जिनगीक किछु कटु अनुभव रहै तहिना मनमे धकमकाइत रहइ। ओना धकमकीक दोसरो कारण रहै जे सीमा कातमे- माने जैठामसँ एक दिस नेबोक बगान रहै आ दोसर दिस लतामक, तैठाम आड़िक कातमे लतामक गाछ नेबो गाछकेँ कोनो कर्म बॉंकी नइ रहऽ देने रहइ- से देखल-भोगल रहबे करइ।
नेबोक मनक गम्‍भीरता आ लतामक चुप्‍पी देखि मनमे उठल- नहाइयो-खाइक बेर हूसल जा रहल अछि आ कोनो काज ससरिये ने रहल अछि, अनेरे समए उनहि जाएत...।
ओह! अनेरे सभ दम तोड़ै छी। नेबोकेँ कहलिऐ-
नेबो भाय, एना रग्‍गर केने नइ हेतह, सभकेँ सभपर बिसवास करए पड़तह, तखन ने काल्हि दिन निचेनसँ रहबह।  
नेबोक मनक तामस दोसरे रंगक रहइ। जेना होइ जे जखन सभ जाने मारै आ जिनगीए लइ पाछू लगल अछि तखन किए ने हमहूँ मुहेँपर कहिऐ...।
नेबो बाजल-
भाय साहैब, अहॉं पुरुख भेलौं आ हम जड़ि भेलौं।  अहॉं हमरा जिनगीसँ प्रेम करै छी तँए हमहूँ जिनगी देने छी। मुदा जहॉं-धरि बिसवास करैक बात अछि तइमे हम मनुखेपर नइ बिसवास करै छी।
नेबोक बात सुनि मनमे भेल जे जाबे एहेन विचार दुनूक नइ रहत ताबे दुनूकेँ दुनूपर सँ अबिसवास नइ हटतै आ जाबे एक-दोसरपर बिसवास नइ जगतै ताबे नेबोक मन असथिर नइ हेतइ। एकरा के नकारि सकैए जे मिथि-मालिनीक सेवा कएल वन-उपवन झाड़ी-फुलवाड़ीक देश हमर मिथिला छी। जैठाम एक दिस धारक कटानसँ फल-फलहरीक खेती उपैट रहल अछि आ दोसर दिस तइसँ कनियोँ कम गामसँ उपटनिहारक कमी सेहो नइ छन्‍हि...!
सामंजस्‍य करैत लताम-नेबो दुनूकेँ कहलिऐ-
जे दिन बीत गेल ओ धरतीसँ उड़ि मनाकासमे बसि गेल मुदा काल्हि दिन-ले तँ सभकेँ अपना-अपनी सोचए पड़तह किने?”
नेबोक मन जेना समटा कऽ गाढ़ रस बनि गेल होइ तहिना बूझि पड़ल। ओना बूझि पड़ल जे खटरसमे मीठरसक प्रवेश भऽ रहल छै। तैसंग ईहो बूझि पड़ल जे जँ मुहसँ किछु खसि पड़ल तँ नेबो जहिना कटाएलपर छनछना कऽ लगैए तहिना फेर ने कहीं लगि जाए। मुदा जाबे नजरि-नजरिक मिलानी नइ हएत ताबे प्रेमसँ काल्‍हि दिन चलब तँ कठिन अछिए...। कनडेरीए ऑंखिसँ नेबोओ दिस ताकी आ लतामो दिस।
नेबोक मन जेना-जेना शान्‍त होइत जाइत देखिऐ तेना-तेना लतामक मन संताप दिस बढ़ल जाइत देखिऐ। असथिरसँ जखन नजरि उठा लतामपर देलिऐ कि नजरि मीलिते लताम बोम फाड़ि कानए लगल। ठोर बिजका-बिजका तेना ने कानि-कानि अपन बेथा-कथा कहए लगल जे किछु-किछु बुझबो करिऐ आ किछु नहियोँ बुझिऐ।
तैबीच नेबोक मुँह बजैले लुसफुसए लगलै। नेबोकेँ लुसफुसाइत बजैक मुँह देखि मनमे खुशी उपकल। खुशी ई उपकल जे भने प्रति-उत्तरमे लतामो किछु बजबे करत, तहूमे कनैए। जँ हँसैत रहैत तँ पहाड़ो तोड़ैक झगड़ा होइत मुदा कननीमे तँ अपनो जान भौर भेल रहै छै।
नेबो बाजल-
भाय, जहिना तूँ तहिना तँ हमहूँ छीहे, तखन तूँ कनै किए छह?”
मनमे भेल जे भने एक जिनगी जीनिहार दुनू अछि आ दोसर संगजीवी वा सहजीवी जीनिहार सेहो अछिए तँए ओकर दोस्‍ती बेसी गाढ़ हेतइ। तही बीच हुचकैत-हुचकैत लताम बाजल-
देव, दानव, मानव सब बेपीरित भऽ गेल! रहब केतऽ!”
लतामक बात नेबोकेँ जँचल मुदा उत्तर फुराइते ने रहइ। नीक जकॉं बेथाक कथा बुझबे ने करइ। पाछू हटैत नेबो बाजल-
भाय, एना नइ बुझबह, जखन तोरे जकॉं हमहूँ छी तखन केतऽ गड़बड़ छह से फरिछा कऽ बाजह?”
लताम बाजल-
भाय, पहिल आफत तँ ई आएल अछि जे कोसी-कमला धारक बाढ़ि जेमहर जाइए तेमहर खाइए, दोसर बसबैबला अपने बहरवास भेल जा रहल अछि तखन तोहीं कहह जे अदौसँ आएल बाप-दादक वंश केना बँचत?”
बिच्‍चेमे नेबो बाजल-
ई सभ ते हमरो भाइए रहल अछि तइले तूँ कनै किए छह? जँ औरुदा लऽ कऽ आएल हएब तँ केकरो मेटेने मेटेबै।
लताम बाजल-
भाय, तूँ ऊपरे- घारे मुँह तकै छह, तइसँ नइ ने काज चलतह।
ऊपरे-घारे सुनि नेबोक मन कनी पिनपिनेवो कएल मुदा लगले भेलै जे जखन परिवारोमे रंग-रंगक समस्‍या अबै छै, तैठाम तँ हम दोसर समाजक भेलौं, भऽ सकैए जे ओकर बात नइ बुझल हुअए। बाजल-
भाय, कनी फरिछा कऽ बाजह। नजरि ओमहर नइ जाइए।
लताम बाजल-
जहिना मिथिलांचलक फल लताम छी सेव नहि! मुदा?”
लतामक प्रश्‍न सुनि मन ठमैक गेल। नजरि उठा जखन नेबो दिस देलौं तँ बूझि पड़ल जे भरिसक ओहो अपन जिनगीक रागमे विराग भऽ रहल अछि।
नेबो दिससँ नजरि उठा जखन लतामपर देलिऐ तखन बूझि पड़ल जे लतामक धौना जेना टुटि गेल होइ तहिना मुँहक बिजकी देखै छी। मुदा एहनो तँ दुनियॉंमे अछिए जे लोक अपन शीलक गुणे धो-पोछि कऽ चाटि लइए।
लताम अपन बेथा ऐ दुआरे ने बजै जे मनुख लग बाजी आ ओ आरो विसविसा कऽ धऽ लिअए। तखन तँ जेहो दू-चारि साल जीबै छी जीबै छी। अनेरे किए परान गमाएब। मुदा लतामक मन कलैप-कलैप विवेककेँ कहै-
पुश्‍तैनी फल सभ गुण-सम्‍पन्न छी, मुदा परदेशी सेव केना हमरा समदिया बौहु जकाँ धकेल कऽ निकालि रहल अछि। संस्‍कार कहिया अण्‍डा देत।¦¦  
शब्‍द संख्‍या- 3071, 13 जुलाई 2015

46म पोथी- 'गुड़ा-खुद्दीक रोटी' पूर्णभ' गेल। ऐ पोथीमे कुल शब्‍द संख्‍या- 18981 अछि तथा कथाक सत्तरि एना अछि- 

1. डकरा हाल- (2529) 17 जून 2015
2. जेतए जे हौउ- (2062) 21 जून 2015
3. गठूलाक गारि- (1532) 25 जून 2015
4. कनी हमरो सुनू- (1983) 29 जून 2015
5. गामक बान्‍ह- (2437) 03 जुलाई 2015
6. गुड़ा खुद्दीक रोटी- (2443) 08 जुलाई 2015
7. सीरक गाछ- (3071) 13 जुलाई 2015
8. हरदीक हरदा- (2924) 19 जुलाई 2015
               ¦¦¦

Monday, July 6, 2015

कनी हमरो सुनू (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)



अगिला पोथी पुन: लघुए कथाक तैयार भऽ रहल अछि। संग्रहक नाओं गुड़ा-खुद्दीक रोटी राखलौं, जइमे चारिटा कथा तैयार भऽ गेल अछि। डकरा हाल, जेतए जे हौउ, गठूलाक गारि आ कनी हमरो सुनू। पॉंचम कथा- गुड़ा-खुद्दीक रोटी- सेहो करीब आठअनासँ बेसी लिखि लेलौं अछि। कौल्हुका भिनसरमे पूर्ण भऽ जाएत। अखनि चारिम कथा अहॉं सभले-

कनी हमरो सुनू






धुरिया अखाढ़। अदरा नक्षत्र रहितो बर्खाक कोन बात जे झीसीओ-झासीक दरस नै, आ ने मेघमे केतौ मेघेक दरस अछि। ओना बूझि पड़ैए जहिना उनैस सए सरसठि-अरसठि इस्‍वीक अखाढ़केँ रंग चढ़ि गेल रहै तहिना अहूबेर अछि। मुदा ओहन तँ नहियेँ अछि।
सरसठि-अरसठिक जे अखाढ़ रहै ओ ओहन रहै जइमे पानि पड़ा कऽ पताल चलि गेल, जइसँ तीन साल बरखे ने भेल! तहिना माघक जाड़ जिद्द धऽ कऽ जे रहबो कएल तँ ओकरो कोनो दशा बॉंकी नहियेँ रहलै। माने ई जे सिरक-सलगी अलगनीए आ ऊनी कपड़ा सभ बक्‍शे-बुक्‍सी धेने रहि गेल।
ऐबेरक धुरिया अखाढ़ हथियामे जे पानि पीलक ओ अखनि तक पियासले अछि। एकर माने ईहो नइ जेना पौरुकॉं चैतो बरिसल, बैशाखो बरिसल, जेठो बरिसल आ सप्‍ताह भरिक रौद भेने रस्‍ता-पेरामे धुरा सेहो उड़ऽ लगल।
वृद्धा पेन्‍शनक फारम भरऽ ब्‍लौकपर जाएब। गामसँ डेढ़े कोसपर ब्‍लौक रहने गाड़ी-सवारीक खगतो नहियेँ अछि तँए पएरे जाएब। अहॉं कहब जे कोनो समान कीनऽ जे लोक गामोक दोकान जाइए तैयो साइकिलपर चढ़ि कऽ जाइए आ अहॉं एक तँ ब्‍लौक जाएब जैठाम हाकिम-हुक्काम रहै छथि, तैसंग गमैया रस्‍ता टपि धुराएल बगए-बानि लऽ कऽ केना जाएब। आ दोसर डेढ़ कोस पाँचो किलोमीटरसँ बेसीए भेल तेतौ जे पएरे आएब-जाएब तखन गाड़ी-सवारीक खगते की रहल।
मुदा एहेन शुरूहेसँ अभ्‍यास रहल। जखन मध्‍यमामे पढ़ैत रही, गामसँ अढ़ाइ कोस विद्यालय रहए, तखन पएरे सभ दिन आबी-जाय, आ...। एक तँ ओहुना देखै छी जे आमक जे ऑंठी होइए, शुरूमे कोइली रहैए, कोइलियोमे खिच्‍चा कोइली, चिड़ैक गेल्‍ह जकॉं, जे जुआइत-सकताइत मजगूत ऑंठी बनि जाइए।
तहिना विद्यार्थी जीवनमे जे पएरे चलैक अभ्‍यास बनल ओ अखनो अछिए। ऐसँ मनो खुशी रहैए जे अपने हाथे-पएरे अपन काज चला लइ छी। ओना, जहिना भगवान सभकेँ करैले हाथ, सोचै-विचारैले बुधि, खाइ-पीबै आ बजै-भुकैले मुँह दइ छथिन तहिना तँ चलैयोले पएर देनइ छथि।
ब्‍लौकक काज सबेर-सकाल भऽ गेल, माने दस-सवा दस बजे काज भऽ गेल। बजारक कोनो दोसर काज रहए नइ तँए साढ़े दसे बजे करीब ब्‍लौकक हाता छोड़ि घरमुहॉं भऽ पौने बारह बजे घरपर आपस आबि गेल रही। ओना जेबेकाल नहा नेने रही मुदा रौदो आ रस्‍तोक झमारसँ मनो तबधि गेल आ पियासो लगिये गेल रहए। रौदाएलमे पानि पीब नीक नहि तँए पानिक तरासकेँ दाबि देलौं। खाइयो बेर भाइए गेल, मुदा तबधलमे अन्नो रूचिगर नहियेँ जकॉं लगै छै, तहूमे पियासक जोर अछि, जँ कहीं पानियेँ बेसी पिया गेल तखन तँ अन्नक रूचि आरो मरि जाएत। तँए विचार केलौं जे पहिने नहा ली। कोनो कि माघ मास छी, गरमी मास छी। एकबेरक कोन बात जे तीनियोँ बेर नहाएब अधला नहियेँ हएत। संगे देह भीजने पानियोँक तरास कमबे करत। जेते पानिक तरास कमत तेते अन्नक तरास बढ़त। तँए नहा लेलौं।
नहा कऽ दरबज्‍जापर अबिते रही आकि अँगनाक ओसारपर पीढ़ियाक अवाज सुनलौं। नीक संजोग देखि मनमे खुशी भेल। खुशीओ केना ने होइत, संजोगे ने कर्मो जोग, ज्ञानो जोग आ भक्‍तिओ जोग छी। नीक कर्मक नीक फल आ अधला कर्मक अधला फल सभ दिनसँ होइत आबि रहल अछि, आगूओ होइत रहत।
दरबज्‍जाक ढाठपर भीजल कपड़ा पसारि सोझे ओसारक पीढ़ीपर पहुँच गेलौं। पहुँचिते पत्नी परोसल थारी आगूमे रखि, कनी कात दबि कऽ ठाढ़ भऽ गेली। थारीकेँ निच्‍चॉं-ऊपर हियासि देखलौं तँ बूझि पड़ल जे जहिना झोराएल तीमन केराक तहिना तड़ुओ केरेक छी! कनी नजरि घुसकेलौं तँ केरेक लटपट तरकारीओ आ सन्नो केरेक देखलौं। फेर कनी नजरि दौगेलौं तँ लसुन देल केरे-खोंइचाक चटनीओं बूझि पड़ल।
नीचॉं-ऊपर केराक विन्‍यास देखि मन झुझुआ गेल। एक तँ जेठोसँ बेसी जुआएल गर्म समए चलि रहल अछि। कॉंच केराक गुण अछि जे पेटक बान्‍ह करैए। एक तँ ओहिना समैक चपेटमे देहक अन्नो-पानि सुखा जाइए तैपर आरो सुखबैक भोजन तँ प्राण भक्षके भऽ सकैए। ऑंखि उठा पत्नी दिस बढ़ेलौं तँ बूझि पड़ल जे एकटा ऑंखिपर साड़ीक छोर पसारने कनडेरीए ऑंखिये अपन प्रशंसो सुनैक खियालसँ आ बाहरसँ कमा कऽ आएल रही सेहो खुशनामा सुनैले मुस्‍कुराइत देखि रहली अछि। जखन कि अपने तामसे जरल रही आ ओ[1] चौअनियॉं मुस्‍की दऽ रहल छेली। मुस्‍कीओ केना ने दितथि, आने दिन जकॉं पॉंच तरहक विन्‍याससँ सजल थारी जे पतिक सोझमे रखि खाइत देखती! आखिर पत्नीक सौभाग्‍य तँ...।
ओना दुनू परानीक बीच विचारोमे कमी-बेसी रहने खटपट-लटपट होइते रहैए। मनमे उठैत रहए- गरमक समैमे केराक विन्‍यास! मुदा  पत्नी पाकल केरा आ कॉंच केराक गुणक भेदे ने बुझैत। यएह सभ सोचै-विचारैमे कनी हाथ वगा गेल। कनडेरिये ऑंखिये देखैत पत्नी पुछि देली-
हाथ किए वगने छी?”
विचित्र स्‍थितिमे फँसि गेलौं। पत्नी अपने ताले बेताल रहथि जे जहिया कोनो तीमन-तरकारी नहियोँ रहल तहियो मिरचाइयोक पॉंच तरहक विन्‍यास- फोड़नाएल मिरचाइ, तड़ल मिरचाइ, निमकी मिरचाइ, कॉंच मिरचाइ आ नोन मिलौल कॉंच मिरचाइ- बना थारी सॉंठि अपन पॉंचो विन्‍यासक संकल्‍प पुरबिते रहलौं अछि। जखन विधेमे कोनो विधान नइ रहत तखन पतिक सोझ मुँह निच्‍चोँ उतारब तँ उचित नहियेँ भेल।
ओना हमर कड़ुआएल मन देखि पत्नीओंकेँ मन जेना कड़ुएलनि। की कड़ुएलनि से तँ ओ जानथि मुदा चेहरासँ बूझि पड़ल जे ओ मने-मन धिक्कारि रहल छथि-
ईह! दू सए रूपैआ महिना वृद्धा पेन्‍शन-ले जे रेठान केने आएल छथि! होइ छन्‍हि जे बड़का पहाड़ ढाहि कऽ आएल छी। तीन सए रूपैआ महिना चाहक खर्च छन्‍हि आ दू सए भेट गेने सभ दिन बुढ़ाड़ीमे मुरगी अण्‍डा आ दूध पीता। करनी अपाहिजक आ भरनी कमासुतक!”
विचारणीय बात अछि, जे जँ हमरा हाथे काज नइ हएत, माने हमर हाथक काजे हेरा जाएत, तखन उत्‍पादन केना हएत। आ जखन उत्‍पादने ने हएत तखन समाज आगू ससरत केना। खाली बाजब भाषण भेल मुदा काजक संग बाजब ने बाजब भेल।
अही गुन-धुनमे थारीपर बैसल हाथ वागने रही, तही बीच थारीमे परसल केराक तड़ुआ टोकलक-
हमर वलिदानकेँ अहॉं बूझि नइ पाबि रहल छी, तँए हाथ वागने छी।
पुछलिऐ-
अहॉंक की वलिदान?”
जेना केरोकेँ बूझि पड़लै जे एतेटा जिनगीमे कहियो कियो एहेन बात नइ पुछने छल। जखन पुछलक तँ हमहूँ किए ने अपन छाती खोलि उघारि कहिऐ। बाजल-
हमर दिन अदिन भऽ गेल! नइ ते हमहीं जइ गाछ सभकेँ ठाढ़ केलौं सएह बेइज्‍जत कऽ रहल अछि।
मनमे उठल- मनुखकेँ इज्‍जत-आवरूक ठेकाने ने छै आ तीमन-तरकारी एहेन बात किए बजैए? पुछलिऐ-
की गाछ सभकेँ ठाढ़ केलहक आ की बेइज्‍जत कऽ रहलह अछि?”
फनैक कऽ झोराएल केरा बाजल-
तोहीं कहह जे फल रहैत तरकारी बनल छी, से उचित भेल?”
जेते विचारकेँ सोझरबऽ चाहै छी, तेते रंग-बिरंगक ओझरीए लगि जाइए। तखन? मनकेँ थीर करैत कहलिऐ-
जखन तूँ थारीमे आबि गेल छह, दुनियॉं छुटि रहल छह तखन पहिने तोरे बात सुनि लेब, पछाति खाएब।
हमर बात सुनि थारीएमे गल-गुल हुअ लगल। निच्‍चासँ झोराएल केरा कहै- पहिने हम अपन दुखनामा बाजब, तँ तड़ुआ कहै- हम ऊपरमे छी, पहिने अपन दुखनामा हम बाजब। मुदा लगले लटपट केरा कहै- हमहूँ तँ ऊपरेमे छी तखन पहिने हम किए ने बाजब।
तहिना कातसँ पीसाएल चटनी कहै- हमरासँ मेहीं के छेँ जे पहिने बजमेँ, तँए पहिने हम बजबौ। तँ बगलमे बैसल सन्ना कहै- जहिना छोट दाना भेने मरूआ कुअन भेल अछि, तहिना तोहर कोनो मद्दी नइ। देह-हाथ मोटगर-डटगर अछि हम्‍मर आ बजमेँ तूँ। तोरासँ पहिने हम बाजब।
दुनू हाथ उठा शान्‍त-शान्‍त कहैत-कहैत सभ शान्‍त भेल। पुछलिऐ-
सभ ते कोनो ने कोनो रूपे केरे भेलह किने?”
जेना कोनो झगड़ाक पछाति आकि किछु बजला उत्तर कनी टिफीन करैक मन होइए तहिना सभ केरोकेँ भेल। सभ सबहक मुँह ताकऽ लगल जे के की बजैए। जखन सभ एके छी तखन जँ फुटा कऽ कोइ अपना-ले बाजत तखन ने कहबै- तूँ स्‍वार्थी छेँ, लोभी छेँ जे सबहक बात नहि बाजि, अपन बात फुटा कऽ बजै छेँ।
मुहेँ तका-तकीमे सभ चुप भऽ  गेल। अपनो भूखो लगल रहए आ पियासो रहबे करए, ओना पियास तँ तरसाइत तरसा गेल रहए मुदा थारीमे पड़ल वलिवेदीकेँ रोकलो तँ नहियेँ जा सकैए। ओ तँ कण्‍ठे लग अँटैक कऽ गरगट मचा देत। जखन केरा दिससँ कोनो प्रश्‍न नहि उठल तखन कहलिऐ-
देखह भाय, तूँ सभ एकमुहरी भऽ अपन विचार राखह।
मुहसँ प्रश्‍न खसिते बीचमे एकटा टभकल-
पहिने ई कहू जे देवस्‍थानमे चढ़ैबला परसाद थारीक कँचका सन्ना बनल छी, से उचित भेल?”
उचित की भेल, अनुचित की भेल ई तँ पछाति बूझल जाएत मुदा एना भेल किए? ऐ प्रश्‍नमे ओझराएले रही कि आरो प्रश्‍न मनमे उठि गेल- जेतए मालदह आकि पाकल बम्‍बै आम आगूक थारीमे रहत तेतए पाकल केराकेँ के पूछत?
मुदा आमोकेँ बलउमकी तँ नहियेँ छै। वेचाराक मास-डेढ़ मासक औरुदामे धार जकॉं उजैहिया चढ़ल छै, फेर सालो भरि हेराएल रहत। मुदा केराकेँ तँ से नहि अछि। बारहो मासक औरुदा छै...!
किछु फुरबे ने करए जे की जबाव दिऐ। मुदा ओकरा सबहक जे मुँहक रोहणि देखलिऐ तइसँ बूझि पड़ल जे हाथ वागने देखि जनु ओकरो सभकेँ खौंझ  उठि गेलइ, तँए एना बजैए। कहलिऐ-
भाय, तोँ सभ ते अपने बरहबट्टू भऽ गेल छह, ठौर-ठेकान छहे ने जे कोन मास बच्‍चा जनमाबी जे माघक जाड़ खेप सकए, सालो भरि कच्‍चे-बच्‍चे वृद्धि करैत रहै छह, जइसँ भरण-पोषणमे कोताही हेबे करतह। अखनि हमहूँ भुखाएल छी, तोरा सभसँ समए लइ छिअ, खेला-पीला पछाति निचेनसँ गप करब।
मुदा से सभ मानि गेल। पत्नीकेँ कहलियनि-
तीमनक रस आ चटनी रहऽ दियौ बॉंकी सभ चीज थारीसँ हटा लिअ। दालि जकॉं झोर आ तरकारी जकॉं चटनी तँ भाइए गेल।
पत्नीक मनमे यकायक जेना कोनो झटका लगलनि तहिना झटैक बजली-
की करितौं, बाड़ीमे जुआएल केरा देखलिऐ, आमक मास एकरा के पुछैत। अपने आम खाएब आकि केरा, तहूमे छोट-छीन घौउरौ नहियेँ छल तँए ओकरे काटि कऽ आनि तीमन-तरकारी, तरूआ-चटनी सभ किछु बनेलौं।
बजैत-बजैत पत्नीक मन चनकऽ लगलनि। चनकबो केना ने करितनि। एक दिस पतिव्रत धर्मक हनन होइत देखथि तँ दोसर दिस भूखल पतिकेँ थारीपरसँ उठैत...। केतए गेल दिन भरिक श्रम, जखन कोनो ओकर उपयोगे नहि!
मुदा एना भेल किए से बुझिए ने पाबि रहल छेली। बुझबो केना करितथि। अपनो तँ कहियो मौसमक अनुकूल केराक उपयोग नहियेँ कहने छेलियनि...?
...कहबो केना करितियनि, कोनो कि बुझल छेलए जे एना हएत। एना भऽ आमो कहॉं कहियो फड़ल देखलिऐ। जेना 1962 इस्‍वीमे फड़ल छल तहिना फड़ि गेल। ओना अखनि तक जे थारीमे हाथ वागि तीमन-तरकारीसँ गप करै छेलौं से पत्नी नइ सुनली। नइ सुनैक कारण छेलनि जे मन घुरिया गेल छेलनि जे भरिसक गिरगिट-तिरगिट ने तीमनमे पड़ि गेल छन्‍हि, आकि मकड़े-तकड़ा ने तड़ुआ संगे तड़ा गेल। मुदा किम्‍हरो ते एके भाग ने भेल हएत, या तँ तीमनमे गिरगिट पड़ल हएत या तड़ुआमे मकड़ा, तइले बॉंकी विन्‍यासक की दोख भेल जे हाथ वगने छथि? भूखल-पियासल मनुखकेँ देख केकर मन नइ चहकतै, तहूमे जे परिवारक कर्ता-धर्ता छी।
ऑंखिपर सँ साड़ीक कोर सरका पत्नी ओइ अपराधी जकॉं याचना करए लगली जे निर्दोष अछि। बजली-
हमरासँ की कसूर भेल?”
यकायक जेना घरक सीकपर सँ कोनो वौस खसने छहोंछित भऽ छिड़िया जाइए तहिना मन छिड़िया गेल। बजलौं-
सचार लागल थारी आगूमे अछि, अहॉंक चूक केतौ ने अछि। अहीं की करितौं, केराकेँ जँ काटि तरकारी बना नइ खा लेब तँ ओकर जिनगी गलिये-पचिये ने जाएत।
जेना हमर बात सुनि पत्नी साँस छोड़लनि। अपना बूझि पड़ल जे कितावक एक पराग्राफ भरिसक पढ़ि लेली तँए किछु विचार छुलकनि अछि। आस्‍तेसँ सहटैत कनी आगू बढ़ि लगमे आबि अपन सुखाएल धारक रूप साजि ऑंखि मिड़मिड़ेली। बूझि पड़ल जे मोती झहरि रहल छन्‍हि। ओ मोती नोरक छियनि आकि मतिक से तँ ओ जानथि, मुदा अपना बूझि पड़ल जे किछु बुझैक, सुनैक आ जनैक जिज्ञासा मनमे उठि रहल छन्‍हि। 
हिया कऽ चारू दिस देखलौं तँ मौसम अनुकूल बूझि पड़ल। अनुकूल ई जे एहेन गर्म समए- जइमे पतालोक पानि थस लऽ लइए, तखन साढ़े तीन हाथक मनुखक हीरकेँ सोंखब तँ अनुकूले अछि, तैठाम ब्‍लॉटिंग पेपर जकॉं कॉंच केराक विन्‍यास तँ अनेरे पथसँ कुपथ भेल!
किछु फुरबे ने करए। एके वस्‍तु एकठाम पथक काज करैए तँ दोसरठाम कुपथ भऽ जाइए। पत्नीकेँ कहलियनि-
ओना अखन जँ थारीमे देखाइयो-देखाइयो गुण-अवगुण कहब,से अहॉं थोड़े देखबै। तँए अखनि जे मन मानैए खाए दिअ। खेला-पीला पछाति ओछाइनपर दुनू गोरे बतिया लेब।
मुदा तैयो पत्नीक मन झुझुआइते रहलनि। झुझुआइत ई रहलनि जे एते हरानसँ जइ पति-ले सेवा-श्रम केलौं, तैयो जखन हुनका पइठ नइ भेलनि तखन हमर धरम की भेल?
पत्नीक मनक चढ़ा-ऊतरी देखि कहलियनि-
अहॉं अनेरे आइन-पीड़ा मनमे अनै छी, जेते थारीमे आन दिन भात सॉंठि कऽ अनै छेलौं, तेते ते अननहि छी किने, से जखन हम सठाइये लेब तखन भूखल केना रहलौं, तइले अनेरे मन अनोन-विसनोन केने छी।
जेना अखाढ़मे रंग-रंगक बीआ-बाइल नैहरसँ सासुरक आबा-जाही शुरू करैए तहिना पत्नीओंक मनमे विचारक आबा-जाही शुरू भऽ गेलनि। बजली-
अखन जे मन मानैए से खा लिअ। मुदा खेला पछाति बिसरब नइ, बुझा देब। अखन अहॉं संग हमहूँ सभ विन्‍यास वागि लेब, सएह ने?”
हँसैत बजलौं-
हँ तँ सहए ने ते और की।¦¦

शब्‍द संख्‍या- 1983, 29 जून 2015


[1] पत्नी