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Sunday, April 8, 2012

पड़ाइन :: जगदीश मण्‍डल


पड़ाइन

पछुलका बाढ़ि‍मे खेतक फसल तँ धुआइये गेल जे मालो-चाल गामसँ उपटि‍ गेल। अपनो दुनू बड़दो आ महीसो मरि‍ गेल। जहि‍ना जंगलक जानवरकेँ मेघसँ खसैत पाथरक चोट छटपटबैत तहि‍ना ऐ साल आन-आन कि‍सानक संग अपनो भेल। बाधसँ लऽ कऽ घर धरि‍क दशा सहाज करै जोकर नै रहल। बाढ़ि‍ अबि‍ते खेतक धान डूबि‍ गेल। मोटाइत-मोटाइत पानि‍ अंगना-घरमे सलाढ़ लगि‍ गेल। नारक टाल पानि‍क बेगमे भसि‍ गेल। भुसकाँर खसि‍ पड़ल जइसँ गहूमक भूसी भसि‍या गेल। आश्रमक घरक संग-संग मालो घरमे पानि‍ पहुँचि‍ गेल। जहि‍ना लाठीपर लाठी खाइत दशा होइत, तहि‍ना भेल।
चढ़ि‍ते काति‍क आगि‍ला खेतीक लेल सभ सूर-सार करए लगल। मुदा खेतीक तँ प्रमुख अंग बड़द छी। बि‍ना बड़दे खेत जोताएत केना? अपनेटा गामक एहेन दशा नै, परोपट्टाक एक्के रंग दशा। कि‍सानक बीच एक्के रंग समस्‍या पसरि‍ गेल, जइसँ बचल-खुचल माल-जालक दाममे आगि‍ लगि‍ गेल। बड़दक दाम दोबर-तेबर भऽ गेल। एक तँ भेटैबला नै दोसर पैकार सभ जे बाहरसँ आनि‍-आनि‍ बेचै ओकरो वएह हवा।
अपन इलाका छोड़ि‍ दोसर इलाकासँ बड़द कीनि‍ अनैक वि‍चार भेल। मुदा असगर-दुसगर आननाइयो भारी बूझि‍ पड़ल। गाममे गप्‍प चलेलौं। एक्के-दुइये आठ-नअो गोटेक वि‍चार भेल। जोड़ा कीननि‍हार तीन गोटे भेलौं। बाकी छबो- गोटे पल्‍ले-पल्‍ला कीननि‍हार। हुनका सबहक वि‍चार जे एकटा बड़दसँ हर नै जोतल जाएत मुदा जोड़ा लगा लेलासँ भजैती नीक रहत। बेजोड़ बड़द रहने एकटाकेँ बेसी भीड़ होइ छै आ एकटाकेँ कम, जइसँ साले भरि‍मे बड़द टूटि‍ दाम बुरा दइ छै।
तेसर दि‍न नवो गोटे लौकहावाली गाड़ी झंझारपुर हाॅल्‍टपर पकड़लौं। साढ़े बारह बजे लौकहा स्‍टेशन उतरि‍‍ मेन रोड छोड़ि‍ धनबदहेक उत्तर मुहेँ रस्‍ता पकड़लौं। कखैन सीमा टपलौं से बुझबे ने केलि‍ऐ। एक्के रंग बाध आ बाधक उपजा। नम्‍हर-नम्‍हर बाध, खेतमे लहलाहइत धान। दुधाएल धानक सीस जइसँ जहि‍ना धानक गाछक रंग तहि‍ना सीसोक। ऊँचगर-चौड़गर खेतक आड़ि‍, जइपर फुलाइतो आ छीमि‍यो भेल राहड़ि‍। टाट जकाँ राहड़ि‍क गाछ खेत सबहक परि‍चए करबैत। अपन सभ जकाँ चनकी राहड़ि‍क गाछ नै, मझोलका गाछ। खेसारी छि‍टैत एक गोरेकेँ पुछलि‍ऐ तँ कहलक जे ऐ दि‍गारमे बेसी पये (पाया) राहड़ि‍ होइ छै। धानोक संग-संग अगहनेमे कटाइ छै। सोहरी लागल घुरछा-घुरछे फड़ल। छीमि‍यो नम्‍हर। कोला-कोली गि‍रहस्‍त खेसारी, मसुरी छि‍टैत। आड़ि‍ सभपर जेरक-जेर ढेरबासँ सि‍यान धरि‍ घसवाहि‍नी घास छि‍लैत। उपजा देखि‍‍ माटि‍ नि‍हारलौं तँ सोलहन्नी खसि‍आइ माटि‍ (कारी माटि‍) बूझि‍ पड़ल। माटि‍ देखि‍‍ मन गद्गद् भऽ गेल। मुदा अपन इलाका मन पड़ि‍ते मन ति‍ता गेल। कमला-कोसीपर खाैंझ उठल। दुनू तेहेन हेहर अछि‍ जे इलाकाक माटि‍केँ बि‍गाड़ि‍ देलक। बालु भरि‍ खेतकेँ बलुआह बना देलक। रस्‍ताक पछबारि‍ भाग एकटा नमगर-चौड़गर परतीपर पचासो महींस चरैत देखि‍‍ मन खुशी भऽ गेल। चरवाह सभ महींसकेँ अनेर चरैले छोड़ि‍ अपने सभ खेलाइत। खेलो अजगुत ठेंगा-ठेंगा। कनी अटँकि‍ देखए लगलौं। एकटा सीमा -चेन्‍ह- देने। ओइ सीमापर सँ रागक तर देने उनटि‍ कऽ दुनू हाथे ठेंगा फेकैत। जेकर ठेंगा जते दूर जाए ओ ओते सुरक्षि‍त। जेकर लग रहै ओ हारै। जे हारै ओकरा घुघुआ -पीठ- पर चढ़ि‍ ठेंगा लग तक जाए। फेर दोहरा कऽ खेल शुरू होइ। गोबरबि‍छनी सेहो बैस कऽ खेल देखैत। कोनो धड़फड़ी रहबे ने करै। तीि‍नये चारि‍ गोरे रहै, पथि‍यामे कत्ते अँटतै। जहि‍ना एकाधि‍कार पूँजीपति‍क कारोबार नि‍चेनसँ चलैत, कोनो प्रति‍योगि‍ता रहबे ने करैत, तहि‍ना पचास महींसक गोबरक बीच तीनू-चारू गोबरबि‍छनी। मुदा एकटा देखलि‍ऐ जे एक बेर‍ एकटा महींस धानक खेत दि‍स बढ़ए लगलै तँ एक गोरे माने एकटा ढेरबा गोबरबि‍छनी उठि‍ कऽ महींस घुमा देलकै।
कोसक अन्‍दाज आगू बढ़लौं तँ हाट लगल देखलि‍ऐ। समैयो चाइरि‍क करीब भऽ गेल। मनमे भेल जे कोनो ठेकानल जगहपर थोड़े जाइ कऽ अछि‍ जे अबेर हएत। जखन एलौं तँ देखैत-सुनैत जाएब। हाट देखए बढ़लौं। गमैया हाट। कट्ठा डेढ़ेक परतीपर लगल। तीन-चारि‍ पल्‍लाबला दू-तीनटा अन्न-पानि‍क दोकानदार, दस-बारहटा तीनम-तरकारीक, एक-एकटा माछ-मासुक दूटा झि‍ल्‍ली-कचड़ी-मुरहीवाली, एकटा मनि‍हारा, एकटा माटि‍क बर्त्तन, एकटा छि‍ट्टा-पथि‍याक, एकटा चाहक दोकान आ एकटा पान-बीड़ीक। मुदा खरीदारी बढ़ि‍याँ होइत। अन्‍दाज केलौं तँ बूझि‍ पड़ल जे जते कीन‍ि‍नहार अछि‍ ओतबे समानो आ बेचि‍नि‍हारो। चाहक दोकानपर बैस चाह दइले दोकानदारकेँ कहलि‍ऐ। चूल्हि‍क छाउर झाड़ि‍, डोमौआ बीअनि‍सँ हौंकि‍, चूल्हि‍पर केटली चढ़ौलक। दोकानदारसँ पुछलि‍ऐ- हाट सभ दि‍न लगैए?
दोकानदार उत्तर देलक- ऐ पचकोसीमे चारि‍टा हाट लगै छै। सोम आ शुक्रकेँ ई हाट लगैए। रवि‍ आ बुधकेँ वि‍स्‍टौल लगै छै, मंगल आ वरसपति‍केँ चि‍कना आ शनि‍-मंगलकेँ परसा।‍
चाह बनल। सभ ि‍कयो पीब दोकानदारकेँ पाइ दऽ वि‍दा भेलौं। अपने गाम जकाँ गामो, अपना सबहक तँ पोखरि‍-इनार या तँ बालुमे भथा गेल वा मरने भऽ गेल अछि‍, ओइ सभमे अखनो अछि‍ये। गोटि‍-पङरा ईंटाक घर। रस्‍ता-पेरा कच्‍चि‍ये। उत्तरे-दछि‍ने गाम सभ। जइसँ आगि‍-छाइसँ सुरक्षि‍त। जँ कतौ पुरबा-पछबामे आगि‍ लगबो कएल तँ कम घर जरल। जहि‍ना गाम उत्तरे-दछि‍ने तहि‍ना अंगनो सभ। अपने सभ जकाँ लोकोक बगए-बानि आ बोलि‍यो। जइसँ अनभुआर जकाँ बूझि‍ऐ ने पड़ै। गोसाँइ लुक-झुका गेलाह। जहि‍ना पछबा सबेर-सकाल अपन बोरा-बस्‍तर समेटि‍ लैत तहि‍ना ने परदेशि‍योकेँ सबेर-सकाल ठर पकड़ि‍ लेबाक चाही। मनमे उठि‍ते अँटकैक गर लगबए लगलौं। एक गोटेसँ पुछलि‍ऐ- कोन गाम छी?
रोहि‍तपुर।‍
मुदा कोनो नि‍श्चि‍त गाम तँ जेबाके नै छल जे दोहरा कऽ पूछि‍ति‍ऐ। तइ काल एक गोरेकेँ दोसर गोरे सोर पाड़लक- मधेपुरबला हौ, हौ मधेपुरबला। कनी एम्‍हर आबह।‍
मधेपुर सुनि‍ मन चौंकल। मुदा लगले असथि‍र भऽ गेल। नाम-गामक कोनो ठेकान अछि‍। एक-एक नामक कतेक लोको आ कतेक गामो हाेइए। मुदा मनमे तैयो घुरि‍याइते रहि‍ गेल। मधेपुरबलाक घर पुबारि‍ भाग रस्‍ताकातेमे। घास झाड़ि‍ते मधेपुरबला उत्तर  देलक- हाथ लागल अछि‍, लगले अबै छी।‍ कहि‍ घास झारब छोड़ि‍ मधेपुरबला उत्तर मुहेँ वि‍दा भेल। लगमे अबि‍ते पुछलि‍ऐ- कोन मधेपुर रहै छी?
गामक नाआें सुनि‍ बाजल- अहाँ सभ कतऽ रहै छी?
कहलि‍ऐ- हमहूँ मधेपुरे रहै छी। तँए पुछलौं।‍
मधेपुर सुनि‍ ओ चौंक‍ गेल। जेना कि‍छु भेट गेल होइ तहि‍ना। मुस्‍कुराइत बाजल- झंझारपुरसँ पूब-दछि‍‍नक जे मधेपुर छै, ओही मधेपुर रहै छी।‍
अपन मधेपुर सुनि‍ हमहूँ हँसैत बजलौं- हमरो सबहक घर तँ ओही मधेपुर अछि‍।‍
हमरा सबहकेँ दरबज्‍जापर बैसबैत बाजल- लगले अबै छी। ओइ बेचारा ऐठाम पाहुन सभ आओत डेढ़ि‍या परक टाट लगाओत आेकरे गर धरौने अबै छी। हमर भाग जे गौआँ-घरूआ सभ एलाह।‍
अपन भेटैत ठर देखि‍‍ कहलि‍यनि‍- हँ, हँ भेल, आउ। समाजमे सबहक काज सभकेँ होइ छै।‍

काजक बोझसँ अपनाकेँ लदल देखि‍‍ चेथरू रस्‍तेपर सँ सोर पाड़ि‍ पत्नीकेँ कहलक- लगले अबै छी।‍ ताबे अहाँ एक बाल्‍टीन पानि‍ आ एकटा लोटा आनि‍ पएर धोयले दि‍यनु। कहि‍ चेथरू आगू बढ़ल। भरि‍ बाल्‍टीन पानि‍ आ एकटा लोटा नेने चमेली दरबज्‍जापर आबि‍ पुछलखि‍न- बौआ, अहाँ सबहक घर कतऽ अछि‍?
कहलि‍यनि‍- मधेपुर।‍
जहि‍ना अनचोकमे देहपर खढ़ो गि‍रि‍ते लोक चौंक जाइत अछि‍ तहि‍ना मधेपुर सुनि‍ चमेली चौंक गेलीह। अाधा मुँह झपैत बजलीह- ‍‍ऑक्‍सी महादेव मंदि‍रसँ थोड़बे हटि‍ क‍ऽ हमरो नैहर अछि‍।
चमेलीक बात सुि‍न दूबीक मुँहसँ छोड़ैत नव पत्ती (पात) जकाँ हृदैमे भेल। अपन तीस बर्ख पहि‍लुका जि‍नगीमे ओ -चमेली- डूबि‍ गेलीह। मुँह शि‍थि‍ल भ‍ऽ गेलनि‍, जइसँ कि‍छु आगूक बकार नै नि‍कललनि‍। मुदा दरबज्‍जापर आएल अति‍थि‍क लेल घरवारीक रहब अनि‍वार्य बूझि‍ खूँटा जकाँ ठाढ़ रहली। बेरा-बेरी हमहूँ सभ पएर धोय-धोय चौकीपर बैसए लगलौं। जहि‍ना देवालयमे दर्शकक नजरि‍ एकाएकी मुरती सभपर पड़ैत तहि‍ना चमेलीक आँखि‍ हमरा सभपर नाचए लगलनि‍।
घुमि‍ क‍ऽ अबि‍ते चेथरू पत्नीकेँ कहलखि‍न- जलखइ नेने आउ। रस्‍ताक झमाड़ल सभ छथि‍। भूख लगल हेतनि‍।‍
हमहूँ सभ बेरा-बेरी कुर्रा क‍ऽ बैसलौं। चंगेरा भरि‍ मुरही, नोन-मि‍रचाइ आंगनसँ आनि‍ चमेली बीचमे रखि‍ देलनि‍। जलखइ देखि‍ चेथरू बजलाह- अहाँ सभ जाबे जलखइ करब ताबे छि‍ड़ि‍येलहा काज सभ समेटि‍ लइ छी।‍ कहि‍ एकटा छि‍ट्टा आ हँसुआ नेने बाड़ी दि‍स चेथरू आ आंगन दि‍स चमेली बढ़लीह। काति‍क मास रंग-बि‍रंगक तरकारीसँ सजल चौमास। बि‍ना तजबीज केनहि‍ चेथरू आठो-नवो रंगक तरकारीक छि‍ट्टा आंगनमे रखि‍, लगमे आबि‍ बैसलाह। बैसि‍ते कहलि‍यनि‍- ‍अपन इलाकाक जेहना खेती-पथारी उपटि‍ गेल तहि‍ना मालो-जाल। मुदा बि‍ना बड़दे खेती केना करि‍तौं। तँए एलौं। सुनै छी जे ऐ इलाकाक लोक अपना इलाकाबलाकेँ कहै छथि‍ जे अपन कमाएल रुपैया ल‍ऽ क‍ऽ एलौं आकि‍ बाप-दादाक‍, से ठीके छि‍ऐ‍?
हमर बात सुनि‍ चेथरू तरे-तर हँसए लगलाह। मुदा अपनाकेँ दुनू ठामक पाबि‍ कनी काल गुम रहि‍ बजलाह- ‍खि‍स्‍सा-पि‍हानी अहि‍ना लोक जोड़ती-जोड़ि‍ बना लइए। एहनो-एहनो बात हुअए। कोनो धरती कर्मभूमि‍सँ धर्मभूमि‍ बनैत अछि‍। देखै छी जे गामोमे दि‍ल्‍ली-बम्बइसँ घुमि‍ क‍ऽ आएल कनि‍याँ सभ अति‍थि‍-अभ्‍यागतकेँ ओतुक्के चालि‍-ढालि‍सँ स्‍वागत करै छथि‍ तँ एहनो सभ छथि‍ जे केरल-मद्रासमे रहि‍तो गाम-घर जकाँ स्‍वागत करै छथि‍। हम-अहाँ भैयारी भेलौं। तँए भैयारी जकाँ दुख-धंधाक गप-सप्‍प करू।‍
चेथरूक वि‍चारसँ मन खनहन भ‍ऽ गेल। हृदए बाजि‍ उठल जे सहारा भेटल। अखन तँ धान फुटबे कएल, जखन पाकत तँ बीओ-बाि‍ल ल‍ऽ जाएब। ऐठामक बड़दो अपना ऐठामक बड़दसँ सक्कतो होइ छै आ बेसी दि‍न जीबो करै छै। अपना ऐठामक माल गदि‍याह भ‍ऽ गेल। ऐठाम ठनक जमीनक माल नि‍रोग अछि‍। चुप्‍पा-चुप्‍पी देखि‍ पुछलि‍यनि‍- अहाँ केना ऐठाम आबि‍ गेलौं‍?
हमर बात सुि‍न चेथरूक मन पसि‍झि‍ गेलनि‍। गपकेँ आगू नै बढ़ा बजलाह- ‍भानसो भ‍ऽ गेल हएत। अहँू सभ थाकल छी। जखन बड़द कीनए एलौं तँ हेबे करत। कोनो की अनत‍ऽ एलौं। अपन घर छी। पाँच दि‍नमे इलक्को घुमा क‍ऽ देखा देब। मन मोताबि‍‍क बड़दो कीनि‍ देब।‍
चेथरूक बात सुनि‍ हुँहकारी भरैत बजलौं- हँ, हँ, से तँ ठीके। देस-कोस ने बदलैए। मनुक्‍ख तँ मनुक्‍खे रहैए कि‍ ने।‍
खेला-पीला बाद संगी सभ नीनसँ सुति‍ रहलाह। मुदा अपना नीने ने हुअए। अाधा घंटा बाद चेथरू खा-पी, मालक घरक घूर सरि‍या, खाइले द‍ऽ बड़का बाटीमे शुद्ध तोड़ीक तेल नेने आबि‍ बजलाह- ‍सुति‍ रहलौं।‍
आरो गोटेक साँसे कहैत जे सुतल छी। बजलौं- ‍नै, जगले छी।‍
हमरा लग आबि‍ चेथरू तेलक बाटी बढ़बैत कहलनि‍- थाकल-ठहि‍आएल छी, पएरमे तेल औंसि‍ लि‍अ।‍
दहि‍ना हाथ तेलमे डुबा बजलौं- ‍भ‍ऽ गेल। एकरे मि‍ला लइ छी। रखि‍ दि‍यौ।‍
एकेठाम बैस दुनू गोरे गप-सप्‍प शुरू केलौं। पुछलि‍यनि‍- ‍ऐठाम एना कत्ते दि‍न भेल‍?
कनी काल चुप रहि‍ चेथरू बजलाह- ‍जहि‍ना बि‍नु पढ़ल-लि‍खल परि‍वारक (टि‍प्‍पणि‍ दुआरे) बेटा-बेटी जनमोक ठेकान नै  रहैत तहि‍ना हमहूँ छी। अंदाज पच्‍चीस बर्खसँ उपरे भेल हएत‍?
ऐठाम बेसी नीक लगैए आकि‍ ओइठीन (मधेपुर)?
प्रश्न सुनि‍ चुप भ‍ऽ गेला। जहि‍ना दुबट्टी-ति‍नबट्टीपर पहुँचि‍ अपन रस्‍ता लोक हि‍याब‍ए लगैत तहि‍ना चेथरूओ हि‍याबए लगला। उठि‍ क‍ऽ तमाकू थुकड़ि‍ आबि‍ बैस बाजए लगलाह- ‍जत‍ऽ बसी वएह सुन्‍दर। भने अखन दुइये भाँइ जागल छी। अपन गाम मन पड़ैए तँ छाती दहलि‍ जाइए। बाबाक रोपल गाछी भुताहि‍ भ‍ऽ गेल। बाबाक कहल सभ बात तँ मन नै अछि‍ मुदा गोटे-गोटे मन अछि‍। कहने छलाह जे केना अपन गाम बसल आ अखन धरि‍ केना परि‍वार चलैत रहल। दैवी चक्र एहेन चलल जे बि‍गड़ैत-बि‍गड़ैत एते बि‍गड़ि‍ गेल जे वास होइ जोकर नै रहल।‍
कहैत-कहैत हि‍चुकी उठए लगलनि‍। गरा -कंठ- बझए लगलनि‍। चुप होइत देखि‍ पुछलि‍यनि‍- ‍से की‍? से की‍?
आंगुरसँ अपन मौसाक घर दि‍स देखबैत बजलाह- हमरा अबैसँ पहि‍ने ऐठाम मौसा एला।‍
मौसाक नाओं सुनि‍ पुछलि‍यनि‍- ‍ओ किअ‍ए एला‍?
चेथरू- ‍आब तँ अपने नै छथि‍ बेटा छन्‍हि‍। वएह ऐठामक गाम-परधान छी। ओकरा दुआरपर पाँचटा धरम बखारी (धान रखैबला) छै। सौंसे गौआँ बेर-बेगरता लए धान जमा केलक। साले-साले बढ़बैत गेल। अखन तते जमा भ‍ऽ गेल अछि‍ जे जेकरा (गामक लोककेँ) जते बेगरता होइ छै ओ ओते लइए आ पीठक-पीठ आपस करैए।‍
मुँहसँ नि‍कलि‍ गेल- ‍वाह‍! अच्‍छा, ओ किअ‍ए एला‍?
चेथरू- ‍मौसाकेँ अनटेटल गप आ अन्‍ट-सन्‍ट काज पसि‍न्न नै छलनि‍। सोभावे ओहने छलनि‍। जेकरा चलैत चारि‍-पाँच बेर गौआँ सभ मारलकनि‍। अंति‍म माि‍रमे बेसी चोट लगलनि‍। मन टूटि‍ गेलनि‍। जहि‍ना एक घटनासँ कि‍यो बैरागी बनि‍ जाइत तँ कि‍यो अपराधी, कि‍यो नि‍रमोही बनि‍ घर-परि‍वार छोड़ि‍ दैत तँ कि‍यो सि‍ंह सदृश गर्जन करैत रहैत अछि‍। तहि‍ना गामक मोह छोड़ि‍ खेत-पथार बेचि‍ चलि‍ एला।‍
‍अहाँकेँ की भेल?”
‍कोनो एक्के गाम ओहन अछि‍। हमर गाम तँ आरो बेसी बि‍गड़ि‍ गेल। एक दि‍स महाजनक अति‍याचार तँ दोसर दि‍स खेत-पथारक बेइमानी-शैतानी। बलजोरी अपन नम्‍हर खेतमे छोटका खेतक आड़ि‍ तोड़ि‍ जोइत लैत। तहि‍ना चोराइयो आ देखाइयो क‍ऽ खेतक जजात गाए-महींससँ चरा लैत। आम तोड़ि‍ लैत, दोसराक माए-बहि‍न‍क इज्‍जत-आबरूपर हाथ बढ़बैत तँ आगि‍-पानि‍ ढाठि‍ भगैक लेल उड़ी-बि‍ड़ी लगबैत। सि‍न्‍ह काटि‍-काटि‍ घरक वस्‍तु-जात ल‍ऽ भगैत तँ बि‍ना कि‍छु बजनौ दसटा बात-कथा कहि‍ दैत।‍
चेथरूक बात सुनि‍, जहि‍ना भूम्‍हुर आगि‍क धुआँ नि‍कलैत अछि‍ तहि‍ना लहड़ल हृदैक गर्म सांस नि‍कलल। पुछलि‍यनि‍- ‍शुरूमे (एलापर) तँ बड़ दि‍क्कत भेल हएत‍?
नै। अपना तीन कट्ठा खेत रहए। दू सए रूपैये कट्ठा बेच लेलौं। घरो बेच लेलौं। खाली अपन देहक कपड़ा आ रुपैया ल‍ऽ क‍ऽ मौसे ऐठाम एलौं। वएह दस कट्ठा खेतो कीनि‍ देलनि,‍ एकटा घरो बना देलनि‍ आ कहलनि‍ जे जइ चीजक बेगरता हुअ, से लि‍हह। घरक बि‍चला खूँटा जकाँ ठाढ़ भ‍ऽ गेला। आब तँ अपने सभ कि‍छु भ‍ऽ गेल। जाबे सासु-ससुर जीबै छलाह ताबे सासुर जाइ छलौं, मामा-मामी धरि‍ मात्रि‍क। बहि‍न-बह‍नोइ ऐठाम जाइते छी। ओहो सभ अबि‍ते अछि‍।‍
चेथरूक बात सुनि‍ मन औनाए लगल। कछ-मछी आबि‍ गेल। कहलि‍यनि‍- ‍नीनसँ देह भसि‍आइए। बड़ राि‍त भ‍ऽ गेल। अहूँ सुतैले जाउ।‍
एतै ने हमहूँ सूतब।‍

पाँच दि‍न मेहमानी केलौं। छठम दि‍न बड़द नेने गामक रस्‍ता धेलौं।

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