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Saturday, April 7, 2012

तस्कर- गजेन्द्र ठाकुर


तस्कर
शालिग्राममे छिद्र होइत अछि, कारी पाथर मात्र नर्मदामे भेटैत अछि। जमसम गाममे सभ किछु बदलल अछि, ग्रामदेवताक डिहबार स्थानसँ लऽ कऽ सभ ठाम मुदा किछु ने किछु लाक्षणिक वस्तु देखिये रहल छी। मुदा हमर गाथाक कोनो लक्षण एतए नै अछि।
गाछी आ बाध बोन सभटा पतरा गेल अछि। सए बर्ख। बिज्झू आमक ओ गाछी। बीहरि सभसँ भरल। भाँति-भाँतिक चिड़ै-चुनमुनी आ छोट पैघ जीव-जन्तु। नेना रही। जेठसँ अगहन खुरचनिञा लत्ती लग गप करैत हम आ मालती। कहियो फागुन-चैतमे जाइ तँ लवङलताक लत्ती लग गप करी। मलकोका, कुमुद, भेंट, कमलगट्टा कन्द, रक्ताभ बिसाँढ़क ताकिमे कादो-पानिमे घुमैत हम आ ओ। खुल्ले पएर, काँट-कूसक बीच तड़पान-तड़पि कऽ कुदैत। आमक कलममे सतघरिया खेलाइत। हम आ मालती। करबीरसँ बेढैत अपन काल्पनिक-घर। एकहरा, दोहारा, जटाधारीक बीआ भरि साल जोगबैत मालती। मालती सेहो होएत हमरे बएसक। माए कहैत छल जे मालती छह मासक जेठ छल हमरासँ मुदा पिता कहैत छला जे छह मासक छोट अछि मालती हमरासँ। आ पिता से किएक कहै छलाह से बादमे जा कऽ ने बुझलिऐ।
भरि आमक मास आमक गाछीक दिनुका ओगरबाहीक भार हमरे दुनू गोटेपर छल। मुदा साँझ होएबासँ पहिने हमर मामा बछरू आ मालतीक बाबू खगनाथजी कलम आबि जाइत छलाह, रातिक ओगरबाहीक लेल। मुदा हमर सभक गाथाक कोनो लक्षण एतए सेहो नै अछि। हमर सभक माने केशव आ मालती
मुदा ओहि पक्काक डिहबार स्थान लग कारी रंगक शालिग्राम हम ताकि रहल छी। छिद्रयुक्त शालिग्राम। एकटा नुका कऽ रखने छलहुँ एत्तै कतहु।
गौँआ सभ धरि खूब खर्चा कएने अछि एहि डिहबारक स्थानक मंडप बनएबामे। पहिने तँ किछुओ नञि रहै। राजा जे बनेलक पोखरिक घाट आ तकर कातमे पक्काक मन्दिर सएह। मुदा बेचारो पूजा कैयो नञि सकलाह। लाजक द्वारे हमर एहि गाममे आबियो नञि सकलाह।

हम केशव, गाम मंगरौनी, नरौने सुल्हनी, पराशर गोत्र, कवि मधुरापतिक पुत्र।
मालती- माण्डर सिहौल मूलक काश्यप गोत्री खगनाथ झा, गाम जमसमक पुत्री मालती।
खगनाथजी आ हमर मामा बछरूमे भजार लागल। जमसममे हमर मामा गाम। मामागाम धरि सुखितगर, हम सभ तँ दरिद्रे। से हम एक मास गरमी तातिल आ पन्द्रह दिन दुर्गापूजासँ छठि धरि मामेगाममे रहैत रही। गरमी तातिलमे सपेता पकबासँ लऽ कऽ कलकतिया आम पकबा धरि गाछी ओगरी। आ दुर्गापूजामे खष्ठीसँ लऽ कऽ भसान धरि दुर्गापूजा देखी। फेर दीयाबातीमे कनसुपती जराबी आ छठिमे गाम घुरि जाइ। आ बीच-बीचमे तँ जाइत रहबे करी।
मालती संगे खूब झगड़ा सेहो होइ छल। चौथामे रही प्रायः। गरमी तातिलमे मामा गामक आमक गाछी गेल रही। कोनो गपपर मालतीसँ रूसा-फुल्ली भऽ गेल। धरि बौसलक मालतीये। आ बौसबो कोना केलक।
-हम अहाँसँ घट्टी मानै छी ओहि गपक लेल।
-कोन गप।
-जइ गपपर अहाँसँ झगड़ा भेल।
आ ओ गप नञि हमरा मोन पड़ल आ ने मालतीकेँ। मुदा फेर मालतीसँ कहियो कोनो गपपर हम झगड़ा नञि केलहुँ। वएह मुँह फुलाबए तँ हमही पुछिऐ जे कोन गपपर मुँह फुलेलहुँ से तँ मोन नहिये हएत तखन अनेरे ने झगड़ा करै छी।
गरमी तातिलक बाद दुर्गापूजा आ दुर्गापूजाक छुट्टीक बाद गरमी तातिलक बाट जोहै लगलहुँ। से कहियासँ से की मोन अछि ?

पिता गाममे बटाइ करथि। मिडिल स्कूलक बाद कोनो स्कूल नहिये रहै आस-पड़ोसमे। संस्कृत पाठशाला सभ बन्ने भऽ गेल रहै।
से तातिल बला कोनो बात आब रहबे नञि करए। भरि साल बुझू काजे आकि तातिले। नाना-नानी जिबिते रहथि। माएक लियौन कराबए लेल कियो ने कियो आबिये जाइ छल। हमहुँ दू चारि मासमे मामा गाम कोनो लाथे भइये अबैत छलहुँ।
गामपर कएक टा समस्या। नञि जानि कोन भाँज रहै जे पाँजिक रक्षाक गप पिताक मुँहे सुनैत रहैत छलहुँ। आ से हमर बियाह मालती संगे भेने टा सँ सम्भव, सेहो हुनका मुँहे उचरैत छलन्हि।
मालती हमर संगी मुदा एहि गप-शपसँ ओकर हमर दूरी बढ़ि जेकाँ गेल। जे सहजता हमरा आ ओकरा मध्य छल से खतम होअए लागल। जेना ओकरा देखिते हमर मोनमे पत्नीक छवि नजरि आबै लागल छल, तहिना तँ ओकरो मोनमे ने अबैत होएतैक।

हमर गाम आएल रहथि बछरू मामा।
मधुरापति- “बछरू आब अहींक हाथमे हमर सभटा इज्जत अछि। खगनाथक पुत्री केशवक लेल सर्वथा उपयुक्त। सुन्दरि सुशील अछि तँ केशव सेहो जबर्दस्त अछि। एक्के बतारीक अछि मुदा किछु दिनुका छोटे अछि मालती। हे। अहाँकेँ तँ ई बुझले अछि जे  ७०० टाका लड़कीबलाकेँ दए हमर विवाह करा हमर पिता पाँजि बनाओल। मुदा आब जमीन जत्था नै अछि। काल्हि घोड़ीकेँ चिलम पियाए ओहिपर चढ़ि आएल छलाह पञ्जीकार। साफे कहि देलन्हि जे मात्र खगनाथेक पुत्रीसँ अधिकारमाला बनैत अछि। आ से नै भेने पुबारिपार श्रोत्रियक श्रेणीसँ चुत भऽ जाएब हम”।
बछरू- “हम पुछै छियन्हि खगनाथसँ। संगी तँ छथि मुदा हुनकर मोनमे की छन्हि से वएह ने कहताह”।

आ ने जानि किएक प्रेमसँ भरि गेल छल हमर मोन। बिदा भऽ गेल रही हुनका संगे।

मालती- “केशव। तोहर कत्तौ दोसर ठाम बियाह भऽ जएतौक तखन हमरासँ भेँट कोना होएतौक”।
केशव- “आ तोहर ककरो दोसरासँ बियाह भऽ जएतौक तँ एहन अनर्गल प्रश्न सभ ककरासँ करमे”?
मालती- “मुदा एकटा गप बुझलहीं। काल्हि तोहर मामा हमर पितासँ हम्मर-तोहर बियाहक चरचा कऽ रहल छलाह”।
केशव- “तखन”।
मालती- “नञि, सभटा तँ ठीके मुदा तखने दरभंगा राजाक दूत बनि एक गोटे आबि गेलाह आ कहए लगलाह जे राजाक समाद अछि”।
केशव- “राजाक कोन समाद”।
मालती- “कियेने गेलिऐ। मुदा हमर पिताकेँ ओ दूत कहलन्हि जे बेटीक बियाहक चर्च किछु दिन रुकि कऽ करबाक लेल”।
केशव- “तोहर सुन्दरताइ तँ छौहे तेहने। राजोक नजरिमे तोरा लेल कोनो लड़का अभरल छै की”?
मालती- “कियेने गेलिऐ”।
राजाक मन्त्रीक सवारी खगनाथक दरबज्जापर! दुइये दिनमे कीसँ की भऽ गेल। ओ दूत जा कऽ किछु कहि तँ नञि अएलै जे खगनाथ अपन बेटीक बियाह लेल धरफरायल छथि। से सतर्की देखियौ। लोक सभ गर्दमगोल करैत। सभ स्वागतमे जुटल। आ हमहुँ सभ चीजक जाएजा लैत रही। साँझ होइत-होइत हमर पिता सेहो आबि गेल छलाह। ओम्हर राजाक मन्त्रीक स्वारी गेल आ एम्हर हमर पिता माथपर हाथ रखने गुम्म रहि गेलाह। खगनाथ सेहो मौन।
राजा अपन बियाह मालतीसँ करबाक प्रस्ताव खगनाथ लग पठेने छलाह। महाराज बीरेश्वर सिंह। कहू तँ। अपने चालीससँ उपरे होएत आ एहि तेरह-चौदह बरखक बचियासँ बियाहक प्रस्ताव। खगनाथक की ओकाति जे ओकरा मना करितथिन्ह।
हमर पिता चिन्तित जे आब पाँजि नै बाँचत।
ओहि दिन साँझमे कोनटा लग मालतीसँ हमर भेँट भेल। करजनी सन-सन आँखि फुलल, जेना हबोढ़कार भऽ कानल होअए। की सभ गप केलहुँ मोनो नञि अछि। हँ आखिरीमे हम कहने धरि रहिऐ जे सभ ठीक भऽ जाएत।
जमसममे बीरेश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेल!
जमसम गाममे पोखरि खुनाओल गेल। ओतए मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह।
मुदा हमहुँ रही मधुरापति कविक पुत्र केशव।
बियाहक दिन लगीचे रहै आ दोसर कोनो दिन सेहो नञि रहै। आ ओहि दिन मालतीसँ सभ गप भइये गेल छल।
कटही गाड़ीमे आगूक चाप आ पाछूक उलाड़, आगाँक चाप नीक कारण पाछाँ उलाड़ भेलापर गाड़ी उनटि जाएत। मुदा हम ओहिना गाड़ीकेँ उलाड़ केने बँसबिट्टी लग मालतीक इन्तजारीमे रही।
ओ आयलि आ गाड़ीपर बैसि गेलि। जे कियो रस्तामे देखए से डरे नञि टोकए जे गाड़ी ने उनटि जाइ एकर। एकटा पतरंगी चिड़ै देखि उल्लसित होअए लागलि मालती तँ आँगुरसँ हम ओकर ठोढ़ बन्न कऽ देलिऐ।
मालतीकेँ लऽ कऽ गाम आबि गेलहुँ, धोती रंगाइत छल। फेर जे मालतीक पता करबाक लेल आएल रहए तकरा पकड़ि राखल। आ ’कन्यादान के करत’क अनघोल भेलापर ओकरा सोझाँ अनलहुँ जे कन्यादान यएह करबाओत।
सलमशाही चमरउ जुत्ता उतारि धोती पहीरि हम विवाह लेल विध सभ पूर्ण केलहुँ।  मालतीक सीथमे सिनुर हमरे हाथसँ देब लिखल जे रहै।

तकर बाद राजा बीरेशवर सिंह की करताह?
पञ्जीकारकेँ बजा कऽ हमर नाममे तस्कर उपाधि लगबाओल। मुदा मधुरापति अपन पुत्रक प्रति गर्वोन्नत्त। बाघक बेटा बाघ। पाञ्जि आ पानि अधोगामी मुदा खगनाथ झा- श्रीकान्त झा पाँजि, तस्कर केशवक श्रोत्रिय ओहिठाम विवाह कएलापर श्रोत्रिय श्रेणी विराजमान रहतन्हि।
आ सए बर्खक बाद आइ एहि गाममे कोनो नाटक होएतैक। सुल्ताना डाकू।
आ हम तस्कर केशव, मंगरौनी नरौने सुल्हनी- पराशर गोत्र, कवि मधुरापतिक पुत्र अपन गाथाक कोनो एकटा लक्षण एतए जमसम गाममे ताकि रहल छी। मुदा राजा बीरेश्वर सिंहक वएह पोखरि आ आब ढ़नमनाएल मन्डिल देखै छी, बेचारो घुरि कऽ लाजे एहि गाममे एबो नै केलाह।
यएह पोखरि आ ढ़नमनाएल मन्दिर हमर प्रेमक अछि अवशेष।

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