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Sunday, April 8, 2012

धर्मनाथ :: जगदीश मण्‍डल


धर्मनाथ

प्रशासनि‍क सेवाक पच्‍चीस साल बाद धर्मनाथ एहेन दलदलमे फँसि‍ गेलाह जइसँ ि‍नकलब कठि‍न भए गेलनि‍। सुसम्‍पन्न परि‍वारमे जन्‍म भेने जि‍नगीमे कहि‍यो दुखक अनुभव धर्मनाथकेँ नै भेल छलनि‍। परि‍वारमे सरबे-सरबा पि‍ता रहथि‍न तँए कोनो पैघसँ पैघ काज उपस्‍थि‍त भेलासँ नि‍पटबैत। लोप होइत जमीन्‍दारी बेवस्‍था, ढेरो सम्‍पति‍‍ गाम-सँ-बाहर धरि‍ रहनि‍। चारि‍ भाँइक भैयारी रघुनाथकेँ। चारू भाँइक बीच बँटवारा भऽ गेलनि‍। मंदि‍र, स्‍कूल, खेत, पोखरि‍ सभ बँटा गेलनि‍। भैयारीमे जेठ रहने रघुनाथकेँ पाँच बीघा जमीन जेठाउँस तरे भेटलनि‍। रघुनाथकेँ चारि‍ कन्‍या (बेटी) तीन पुत्र। दू कन्‍याक बि‍आह साझि‍येमे भेल छलनि‍। बाँकी‍ दुनू कन्‍याक बि‍आहमे आठ बीघा खेत बि‍कलनि‍। घरक बरतन-बासन आ गहना-जेबर सेहो बन्‍हकी लागि‍ गेलनि‍। तैयो पहि‍लुका अपेक्षा कुटुमैती हल्‍लुके भेलनि‍।
     
बच्‍चेसँ घर्मनाथ सुशील, सौम्‍य आ कर्मठ, जइसँ आइ.ए.एस. परीक्षा नीक-नहाँति‍ पास केलनि‍। आइ.ए.एस. अफसर बनि‍ते खानदान रूपी वृक्षमे फूल खि‍लल। अखन धरि‍ परि‍वारमे सरस्‍वतीक अपेक्षा लक्ष्‍मीक सेवा अधि‍क होइत, जे बदलल। खानगी शि‍क्षा सार्वजनि‍क रूपमे बढ़ए लगल। घरक चि‍न्‍तासँ मुक्‍त धर्मनाथ परि‍वारक भवि‍ष्‍य, मात्र अनुमानसँ करैत। अखन धरि‍क सेवा (नोकरी) धर्मनाथक इमानदारीक गंगामे बीतल। जहि‍ना गंगामे सूर्जक प्रकाश पड़लासँ चमकैत अछि‍ तहि‍ना धर्मनाथक जि‍नगीमे इमान स्‍पष्‍ट झलकैत छल।
     
आरंभमे कम बेतन, छोट परि‍वार धर्मनाथकेँ रहनि‍। आस्‍ते-आस्‍ते धर्मनाथक परि‍वारो बढ़ैत आ बेतनो। पाछू-पाछू महगीयो पछुअबैत। बासी बचए ने कुत्ता खाए। मासक कमाइ मासेमे सठि‍ जाइन। परि‍वारक बजट, धर्मनाथ एहेन बनौने जे बेतनक भीतरे चलैत। मुदा संगी-साथीक बीच पैंच-पालट चलैत। कर्ज लेब आ सूदि‍पर कर्ज देब, दुनूकेँ धर्मनाथ पाप बुझैत। हुनक सदि‍खन प्रयास रहनि‍ जे परि‍वार मेहनती बनए। पत्नी समैक उपयोग नि‍अमबद्ध भऽ करनि‍। खेबा-पीबाक वस्‍तुसँ लऽ कऽ नुआ-बस्‍तरपर वि‍शेष धि‍यान राखथि‍‍। कपड़ा साफ करब, आइरन करब, सुइया-डोराक छोट-छीन काज अपने कऽ लैत छलि‍। पढ़ै-लि‍खैक वातावरण धर्मनाथक क्रि‍या-कलापसँ प्रभावि‍त छल।
     
सालक मास भरि‍क छुट्टी धर्मनाथ गामेमे सपरि‍वार बि‍तबैत छलाह। छुट्टि‍ये मासक बेतनसँ गाड़ीक मासूलक संग सनेस तक पुरबैत छलाह। रघुनाथ मने-मन सोचैत छलाह जे गामक अज-गज देखि‍‍ धर्मनाथकेँ होइत हेतनि‍ जे कोनो वस्‍तुक कमी नै मुदा बि‍ना खेत बेचने परि‍वारक गाड़ी ससरब कठि‍न अछि‍। जत्ते खेत बि‍काइत छलनि‍ ओत्ते उपजो कमि‍ते जाइत छलनि‍।
     
नम्‍हर-नम्‍हर घर। जकर मरम्‍मति‍ आ रंग-टीप करैमे सेहो अधि‍क खर्च होइत छलनि‍। ढहल-ढनमनाएल हथि‍सार। घोड़ाक घर ओहि‍ना पड़ल जइमे बि‍ढ़नी, मधुमाछी, बादुर खोंता लगौने। कटैया काँट आ अंडीक गाछ सौंसे घरमे जनमल। जँ टुटलाहा घरक पजेबो रघुनाथ बेचि‍‍ लि‍तथि‍ तैयो कत्ते काज ससरि‍ जैतनि‍ मुदा जँ घरक पजेबा बि‍काएत तँ बाँकि‍ये की रहत। घरक आगू झील जकाँ पोखरि‍। पोखरि‍क चारू मोहारमे चारि‍टा ईंटा-सीमटीक घाट बनाओल। पुरान भेने चारू घाट टूटि‍ गेल छल, जइसँ नहाइओ जोकर नै रहल छल। पजेबा गुड़कि‍-गुड़कि‍ नि‍च्‍चा पानि‍मे छि‍ड़ि‍आ गेल। पएरमे चोट लगै दुआरे लोक नहेनाइये छोड़ि‍ देलक। सौंसे पोखरि‍ समाढ़ आ कुम्‍ही तेना बोन जकाँ भेल जे पैसब मोसकि‍ल भऽ गेल। बीघा भरि‍क फुलवारी, जइमे सइओ रंगक फूल लगाओल छल। चारि‍टा नोकर सभ दि‍न फूलेक देखभाल करैत छल से अखन गाए-महींस‍क चारागाह बनि‍ गेल।

एक मास अधि‍क छुट्टी लऽ धर्मनाथ गाम एला। मनमे वि‍चारि‍ आएल रहथि‍ जे जेठ बेटीक बि‍आह करब।  बेटी आशा बी.ए. आनर्सक परीक्षा देने छलि‍। कन्‍यादान माए-बापक लेल ओहने होइत जेहने बेटाक लेल बृद्ध माए-बापक सेवा। उन्नैसम बर्ख आशा टपि‍ गेल छलि‍ तँए बि‍आह करब आवश्‍यक छलै। मने-मन धर्मनाथ सोचैत छलाह जे ओहन कार्य उपस्‍थि‍ति‍ भऽ गेल अछि जइ संबंधमे कि‍छु ने बुझैत छी। केना हएत? की करब? कनि‍का कहबनि‍? वि‍चि‍त्र उलझनमे धर्मनाथक मन उलझल छल। हमहूँ तँ समाजमे ककरो कोनो उपकार नै केलि‍ऐक तँए कि‍यो हमरे कि‍एक करत?‍ गुनधुन करैत कोठरीसँ नि‍कलि‍, असकरे टहलबो करैत आ सोचबो करैत। गामक बेरोजगार युवक सभ, धर्मनाथकेँ बाहर बुलैत देखि‍‍ कि‍यो साइकिलपर चढ़ि‍ तँ कि‍यो मोटर साइकिलपर छींटबला शर्ट-पेंट पहि‍रि‍ केश फहराबैत, वामा हाथे रुमाल साइकिलक हेण्‍डि‍‍लपर पकड़ि‍, मुँहमे सि‍गरेट लगौने धर्मनाथक आगूमे अँठि‍-अँठि‍ कऽ धुँओ उड़बैत आ चक्करो कटैत छल। ओना धर्मनाथ मूँड़ी नि‍च्‍चाँ केने चलैत मुदा अफसर आँखि‍ बि‍ना देखने केना रहत। इमानक आँखि‍ रहने धर्मनाथकेँ कोनो कड़ुआहट नै अबैत। जे प्रति‍ष्‍ठाकेँ मि‍सि‍ओ डगमगबैत नै‍। मने-मन यएह होइन जे प्रति‍ष्‍ठा ओहन वस्‍तु थि‍क जे ने ककरो देने होइत छै आ ने ककरो लेने जाइते छै। ओ अपने केने होइ छै आ अपने केने जाइ छै।
     
गाम एला धर्मनाथकेँ सात दि‍न भऽ गेलनि‍। मुदा अखन अखन धरि‍ बि‍आहक कोनो चरचो नै भेल। आठम दि‍न धर्मनाथ आशाक बि‍आहक चर्चा पि‍ता लग केलखि‍न। पि‍ता असमंजसमे पड़ि‍ मने-मन सोचए लगलथि‍ जे अखन धरि‍ जेहन खानदानी आ सम्‍पन्न परि‍वारमे कुटुमैटी करैत एलौं, ओहन घरमे एत्ते पढ़ल-ि‍लखल वर भेटव मोसकि‍ल अछि। जँ भेटबो करत तँ खर्चाक इत्ता नै रहत। धर्मनाथ कत्ते खर्च करताह से कहबे ने केलनि‍। पूछबनि‍ केना? हमरो तँ पोति‍ये छी। बोल भरोस दइक खि‍यालसँ रघुनाथ फोन उठा कुटुमसँ लऽ दोस-महि‍म धरि‍केँ जानकारी दैत भजि‍यबैले कहलखि‍न। जि‍नगीक चढ़ा-उतरी रघुनाथक वि‍चार बदलि‍ देलकनि‍। जखन‍ पहि‍लुका सुख-भोग मन पड़ैत छलनि‍ तखन‍ आँखि‍सँ नोर टघड़ए लगैत छलनि‍। मुदा पछतेनहि‍ की‍ होएतनि‍। चि‍ड़ि‍या तँ चुकि‍ गेल। जतबो दि‍न मृत्‍यूक शेष छन्हि ओहो कत्ते नि‍च्‍चाँ ढड़कतैन सेहो ठीक नै‍। सि‍र्फ एक्केठामसँ एम.ए. पास लड़काक भाँज लगलनि‍ मुदा कुल-मूल दब।
     
जमा केलहा आ बि‍आहक लेल कर्ज मि‍ला धर्मनाथ एक लाख रुपैया आएल छलाह। परि‍वारक खर्च पुरौलापर जतेक बचैत, ओ जँ जि‍नगीयो भरि‍ जमा कएल जाए तैयो, आइक युगमे एकटा बेटीक बि‍आह पार लागब कठि‍न अछि
     
प्रशासनि‍क काजमे धर्मनाथ दक्ष बुझल जाइत तँए वि‍शेष इज्‍जत रहनि‍। इमान आ चरि‍त्रकेँ बँचबैत धर्मनाथ ऊपर-निच्‍चाँक बीच ताल-मेल बैसाए आसानीसँ आँफि‍सक काज नि‍पटा लैत छलाह। मुदा परि‍वारक काजसँ अनभि‍ज्ञ रहने कि‍छु फुड़बे ने करनि‍। गाम एलापर मने-मन अन्‍दाजैत जे केयो मदति‍ करैबला छथि‍ आकि‍ नै! एकाएक धर्मनाथकेँ पच्‍चीस-तीस साल पहि‍लुका बात मन पड़लनि‍। प्रोफेसर रामरतन, जे वि‍चारवान आ सामाजि‍क लोक सेहो छथि‍, गुरुओ छथि‍, दू साल पढ़ौनौ छथि‍, हुनका जा कऽ कहि‍यनि‍। हमरासँ तँ कहि‍ओ हुनका मुँहा-ठुट्ठी नै भेलनि‍ मुदा पि‍ताजीसँ बक्क-झक्क कहि‍ओ काल जरूर होइते रहैत छन्हि
     
सायंकाल धर्मनाथ पत्नी राधाकेँ कहलखि‍न- काकीजी, ऐठाम जा रहल छी। जँ काकाजी -प्रो. रामरतन- भेँट भऽ जेताह तँ बात-वि‍चार करैमे अबेरो भ सकैए। तँए अनदेशा नै करब।
एक टकसँ राधा पति‍ दि‍स‍ देखैत रहलीह। चि‍न्‍ता आ परेशानी धर्मनाथक चेहरासँ स्‍पष्‍ट झलकैत छलनि‍, जे देखि‍‍ राधाक नजरि‍ चन्‍द्रमुखी आशापर गेलनि‍‍, जे अखन धरि‍ दुलार आ सि‍नेहक मूर्ति छलि। अनायास कमी बूझि‍ पड़ए लगलनि‍। थलकमल जकाँ। जे सूर्योदयसँ पहि‍ने उज्‍जर रहैत अछि‍ आ रसे-रसे लाल होइत गाढ़ भ जाइत अछि‍, तहि‍ना आशाक प्रति‍ बदलैत सि‍नेह राधाकेँ बूझि‍ पड़ए लगलनि‍। मने-मन सोचए लगलीह। यएह थि‍क आजुक समाज। जे बेटी समाजक बुझल जाइत अछि‍ वएह अगम पानि‍मे गड़गोटि‍यो दैत। गुम-सुम राधा ओसारपर बैस‍ रहलीह। राधाक खसल मन देखि‍‍ आशा पुछलक- माए, मन कि‍एक एत्ते खसल छोउ ?
अपनाकेँ छि‍पबैत बाजलि‍- नै- नै- कहाँ- क.....।‍
राधा अपन बेथाकेँ छि‍पबए लगली मुदा मलि‍न मुँह आ बोलि‍क ध्‍वनि‍ बेथाकेँ अढ़े-अढ़ नि‍कालैत छल।
प्रोफेसर रामरतनक दरबाजा सुन्न देखि‍‍ धर्मनाथ ठाढ़ भऽ सोचए लगलाह जे भरि‍सक नै छथि‍। मुदा बि‍ना भाँज लगौने घमबो उचि‍त नै‍। असगरे धर्मनाथ प्रो. रामरतनक दुआरपर ठाढ़ भेल रहला। थोड़े कालक बाद तीन-चारि‍ गोटेकेँ अबैत देख‍,‍ बोली अकानैत धर्मनाथक हृदैमे अाशा जगलनि‍। एक गाेटेक हाथमे दूधक लोटा रहए। प्रो. रामरतनकेँ देखि‍ते जेना भादवक दुपहरि‍यामे कारी मेघसँ झाँपल सूर्ज हवाक सि‍हकीसँ छटि‍ जाइत छैक आ भुक दऽ सूर्ज देखि‍‍ पड़ैत छैक, तहि‍ना धर्मनाथकेँ भेलनि‍। लग अबि‍ते धर्मनाथ प्रोफेसर रामरतनकेँ गोड़ लगलनि‍। धर्मनाथकेँ आसीरवाद दैत बाँहि‍ पकड़ि‍ चौकीपर बैसबैत अपने हाथ-पएर धोअए कलपर गेलाह। पत्नी ि‍चत्रलेखा लालटेन लेसि‍ आंगनसँ नेने एलीह‍। चि‍त्रलेखाकेँ देखि‍‍ धर्मनाथ गोड़ लगलनि‍। असि‍रवाद दैत चि‍त्रलेखा बाजलीह- भगवान, एक सए एक्कैस करथि‍। बौआ, अखन कतऽ छी?
चाची, छी तँ बड़ दूर। जनि‍ते हेबै केरल।‍
परि‍वार आनन्‍दसँ रहै छथि‍ की ने?
हँ, अपने लोकनि‍क दयासँ सभ आनन्‍द अछि
बच्‍चा?
तीन भाए-बहि‍न। जेठ बेटी, छोट दुनू बेटा। आशा बी.ए.मे परीक्षा देलक। जेठ बेटा आइ.ए.मे आ छोट मैट्रि‍कमे पढ़ैए।‍
‍आशा बि‍आह करै जोग तँ भऽ गेल हएत। काज केनहि‍ बढ़ि‍याँ?”
अपनो सएह वि‍चार अछि। तखन‍ तँ.......।‍
भगवान थोड़े अधलाह करताह। जे मनमे अछि से हेबे करत। अहाँ सन बेटा भगवान सभकेँ देथुन।‍
चि‍त्रलेखाक बात सुनि‍ धर्मनाथक आँखि‍ सि‍मसि‍मा गेलनि‍, जे नोरक बुन्न बनि‍ नि‍कलए चाहैत छल। मुदा धर्मनाथ हाथसँ आँखि‍ पोछि‍ नोर सुखओलनि‍। मुदा बोली फुटि‍ते धर्मनाथक हृदैक बेथा नि‍कलए लगलनि‍। एकाएक धर्मनाथक मनमे एलनि जे एत्ते पैघ पदपर रहनि‍हारकेँ जँ आँखि‍सँ नोर खसैत‍ छैक जे देशक सभसँ पैघ बुझल जाइत अछि‍। तँ खुशीसँ के रहैत हएत। ताबे प्रो. रामरतन चापाकलपर सँ हाथ-पएर धाेइ खराम पटपटबैत दरबज्‍जापर एलाह।
     
चाहो बनल। लोटामे पानि‍ नेने चि‍त्रलेखा एलीह। गि‍लासमे लोटासँ पानि‍ ढारि‍ धर्मनाथकेँ देलखि‍न। एक गि‍लास पानि‍ पीब‍ धर्मनाथ चाह पीबए लगलाह। प्रो. रामरतन चाहक चुस्‍की लैत धर्मनाथकेँ कुशल पुछलखि‍न। कुशलक क्रममे धर्मनाथ आशा बि‍आहक चर्चा कएल।
प्रो. रामरतन- ककर बाकी रहलैए जे अहाँक नै हएत।‍
चाचाजी, समाजसँ तँ सभ दि‍न हटल रहलौं। जि‍नगीक पहि‍ल काज थि‍क तँए अगम-अथाह बूझि‍ पड़ैए।‍
मुड़ी डोलबैत रामरतन कहलखि‍न- हँ, ठीके कहलौं। अहाँ हमर समाजे नै छात्रो छी तँए अहाँक बेटी की हमर बेटी नै?
प्रो. रामरतनक वि‍चार सुि‍न धर्मनाथक हृदैमे आशाक अंकुर उदि‍त हाेअए लगलनि‍। जहि‍ना धारामे भसैतकेँ कि‍छु सहारा भेटलापर खुशी होइत छैक तहि‍ना धर्मनाथोकेँ भेलनि‍। पच्‍चीस-तीस बर्ख पहि‍लुका रूप प्रो. रामरतनक धर्मनाथक हृदैमे ओहि‍ना नाचए लगलनि‍। धर्मनाथ जि‍नगीक ओइ‍ चौबट्टीपर आबि‍ ठाढ़ भेल छला, जइठाम सँ आगूक रस्‍ता की हएत से बुझबे नै करैत छलाह। अपन बेथा व्‍यक्‍त करैत धर्मनाथ कहलखि‍न- ‍दू मासक छुट्टी लऽ कऽ एलौं जे बेटी बि‍आहक प्रक्रि‍या पूरा कऽ घूमब। मुदा आठ दि‍न ओहि‍ना बीति‍ गेल।
सभ काज हँसी-खुशीसँ सम्‍पन्न भऽ जाएत, आ समैपर चलि‍ओ जाएब। बीचमे कि‍छु प्रश्न अछि। अखन धरि‍ जमीनदार खानदानमे रहलाैं, जेकर पतन भए गेल। सि‍र्फ ओकर ढाँचा ठाढ़ छै। जे उदीयमान अछि ओइ‍‍ दि‍शामे बढ़ब बुधि‍यारी होएत।‍
अपनेक ऊपर बि‍आहक भार दए रहल छी तँए कोनो तरहक मान-अपमानक प्रश्न मनमे नै अछि
दहेज वि‍रोधी हम सभ दि‍न रहलौं जेकरे चलैत अहाँक पि‍ताजीक संग मतभेद रहल। मतभेदोक उपरान्‍त कहि‍ओ कोनो अधलाह केलौं, शायद मन नै अछि। आशा हमर बेटी छी। कन्‍यादान हम करब!‍ जोशमे बजैत प्रो. रामरतन उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलाह।
     
अन्‍हरि‍या राति‍क दुआरे राधा बेटा-बेटीक संगे प्रो. रामरतन ऐठाम एलीह। दरबज्‍जासँ थोड़े फरि‍क्के रहथि‍ आकि‍ प्रो. रामरतनकेँ जोरसँ बजैत सुि‍न ठाढ़ भऽ अकानए लगलीह। मुदा कोनो अनर्गल बात नै सुनि‍ सभ दरबज्‍जाक आगू एलीह। दरबज्‍जा लग, चारू गोटेकेँ देखि‍‍ प्रो. रामरतन पुछलखि‍न। धर्मनाथक परि‍वार सुनि‍ते प्रो. रामरतन उठि‍ कऽ चारू गोटेकेँ आंगन लऽ जा पत्नीकेँ कहलखि‍न- जल्‍दी हि‍नका सभकेँ खुआउ। बि‍ना खेने केना जाए देबनि‍?
चारू गोटेकेँ चि‍त्रलेखा रोटी-तरकारी खुऔलनि‍।
     
प्रो. रामरतनक ‍ठामसँ घुमैकाल धर्मनाथ पत्नीकेँ कहलखि‍न- जहि‍ना आशा बि‍आहक चि‍न्‍तासँ हृदए थरथराइत छल तहि‍ना चाचाजीक आश्‍वासनसँ मन हल्‍लुक भए गेल।
ओ सभ भार लऽ लेलनि‍। हँसैत राधा कहलखि‍न- ‍ि‍नर्बलकेँ बल राम होइत छै। नीकक फल कखनो अधलाह नै होइत छै। थोड़े काल लए सामाजि‍क परि‍वेशमे भइओ जाइत छै मुदा ओकर परवाह मनुखकेँ नै करक चाही।‍
     
प्रो. रामरतन दीनानाथसँ बि‍आहक संबंधमे सभ बात केलनि‍। दीनानाथक बेटा एम.ए. कऽ पेट्रोल पम्‍प चलबैत। एकटा मैक्‍सी, भाड़ामे सेहो चलबैत। खेत तँ बहुत नै मुदा पाँच कोठरीक पक्का मकान आ घराड़ि‍‍ओ नमगर-चौड़गर। दीनानाथ हि‍न्‍दुस्‍तान मोटर कम्‍पनी कलकत्तासँ रि‍टायर भए गामेमे लेथ मशीन चलबैत। अपने पुरान मैकेनि‍क। आशा आ श्‍यामक बीच बि‍ना दहेजक बि‍आह पक्का भऽ गेल।
     
बि‍आहसँ पहि‍ने‍ समाचार पसरि‍ गेल। रघुनाथक कानमे समाचार पहुँचल। समाचार सुनि‍ एहेन चोट लगलनि‍ जे एकाएक अचेत भऽ गेलाह। होश होइते‍ सोचए लगलथि‍। एक दि‍स‍ प्रो. रामरतनक अगुआइमे बि‍आह होएत जे पुश्‍तैनी दुश्‍मन। दोसर जमीन्‍दारीक ठाठ-बाठकेँ पानि‍मे धर्मनाथ फेकि‍ रहल अछि। ओछाइनपर पड़ल रघुनाथ पत्नीकेँ कहलखि‍न- जइ आशासँ धर्मनाथकेँ पढ़ेलौं, सभ पाि‍नमे चल गेल।‍
पत्नी कहलकनि‍- कि‍एक एत्ते कड़ुआएल छी?
‍बोली कड़ुआएल अछि। होइत अछि जे लोढ़ीसँ कपार फोड़ि‍ मरि‍ जाइ।
‍एना बताह जकाँ ि‍कअए बजै छी?”
हम बताह नै छी, करेजमे चोट लगल अछि। एक क्षण ऐठाम रहब पहाड़ बूझि‍ पड़ैए। जाबे धर्मनाथ रहत, हम एे घरमे नै रहब। चलू, कल्हि‍ये दुनू परानी काशी। ओत्तै रहब। बाप-दादाक प्रति‍ष्‍ठाकेँ पानि‍मे फेक‍ देलक। तखन‍ जीबि‍‍ये कऽ।‍
बड़ीटा दुनि‍या छै, नै हरि‍अर गाछ भेटत तँ सूखलो गाछ तँ भेटबे करत। आेतै रहब।
पति‍क बात सुनि‍ पत्नीक मनमे एलनि‍, बीचमे हम की कऽ सकै छी। माथपर दुनू हाथ दऽ ओसारपर बैस‍ गेलीह।‍ दुनू आँखि‍सँ नोरक टघार चलै लगलनि‍। असकरे रघुनाथ ओछाइनपर पड़ल बड़बड़ाइत रहला। बड़बड़ाइत-बड़बड़ाइत बोम फाड़ि‍ कानए लगलाह। रघुनाथकेँ कानब सुनि‍ चारू कातसँ लोक दौगल आएल। डाॅक्‍टर बजोओल गेल। जाँच कए डाँक्‍टर कहलखि‍न- दि‍मागक नस फाटि‍ गेलनि‍। अखने लहेरि‍यासराए लऽ जैअनु।
गाममे हल्‍ला भए गेल जे रघुनाथ बाबा मरि‍ गेलाह। जनीजाति‍‍ सभ अपनामे गप्‍प करैत‍ जे रघुनाथ बाबाकेँ भूत लागि‍ गेलनि‍। नवकी कन्‍या सभ बाजए लगलीह- ‍बाबाकेँ चुड़ीन लागि‍ गेलनि‍..।
धि‍या-पूत्ता सभ थपड़ी बजा-बजा नचबो करैत आ बजबो करैत- बाबा मुइलाह पूड़ी-जि‍लेबीक भोज खाएब।
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