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Saturday, April 7, 2012

भबडाह :: चहकैत चि‍ड़ै


हकैत चि‍ड़ैक चलमली कानमे पड़ि‍ते नि‍त्‍यानन काकाक नीन छि‍टकलनि‍। कोनो काज करैसँ पहि‍ने तर्क-वि‍तर्क ओहने महत रखैत जेहने नि‍रजन आँखि‍ये दि‍नमे चलब होइत। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल नजरि‍ आजुक समैपर गेलनि‍। काल्हि‍ शनि‍, राखी पाबनि‍ छी। परसू रवि‍, वि‍देसर स्‍थानमे ठसम-ठस मेला हएत। हएबो उचि‍त, एक तँ बैद्यनाथ बाबा साओनक पूर्णिमा वि‍देसरेमे बि‍तबै छथि‍, दोसर कमलो उमड़ल अछि‍, एक संग दुनू काज। भैयारी रहि‍तो जहि‍ना भवि‍ष्‍यद्रष्‍टा युगद्रष्‍टासँ ऊपरक सीढ़ी होइत, तहि‍ना ने औझुकेपर काल्हि‍ ठाढ़ होएत। काल्हुक सुरज केहेन उगत ई तँ प्रश्न अछि‍ये। चारि‍म दि‍न पनरह अगस्‍त। भारतक स्‍वतंत्रताक चौसठि‍म वर्षगॉठ। साठि‍ बरखक उपरान्‍त अनाड़ि‍यो-धुनाड़ी लोक वरि‍ष्‍ट नागरि‍कक उपहार पबैत तेहनाठाम स्‍वतंत्रता की आ देश कतए! मुदा लगले मन घुरि‍ गाम दि‍स बढ़लनि‍। हि‍न्‍दु-मुसलमानक गाम। पनरहि‍यासँ हि‍न्‍दु राधा-कृष्‍णक झुलासँ लऽ कऽ भोला बाबाक जलढरीमे व्‍यस्‍त तँ तहि‍ना मुसलमानो दस दि‍न उपरेसँ रोजा-नबाजमे। एको पाइ लोक नै बाॅचल। सभ धरमक काजमे हृदैसँ जुटल। जखन सोलहन्नी लोक पवि‍त्र मने धरमक काजमे जुटले छथि‍ तखन नि‍श्चि‍त गामक काल्‍याण हेबे करत! प्रेमि‍काक आगू जहि‍ना प्रेमी दुनि‍याँकेँ नि‍च्‍चाँ देखि‍ ऊपर भ्रमण करैत तहि‍ना नि‍त्‍यानन काकाक मन कल्‍याणक संग टहलए लगलनि‍। उत्‍साह जगलनि‍! फुड़-फुड़ा कऽ ओछाइनसँ उठि‍ कलपर जा माइटि‍येसँ चारि‍ घूसा दाँतमे लगा, आंगूरेक जीभि‍या कऽ हाँइ-हाँइ चारि‍ कुड़ा मारि‍ चारि‍ घोंट पानि‍यो पीब लेलनि‍। आँखि‍ उठा वाड़ी दि‍स देखलनि‍ तँ पत्नीकेँ मचानपर चठैल तोड़ैत देखलनि‍। आँखि‍ उताड़ि‍ गाम दि‍स वि‍दा भेलाह।
दरबज्‍जापर सँ आगू बढ़ि‍ते हि‍आैलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे घर-दुआर छोड़ि‍ लोक चौके दि‍स आबि‍ गेल हेता तँए नीक हएत जे चौके दि‍स जाइ। सोचि‍ नि‍त्‍याननकाका आगू बढ़ैक वि‍चार केलनि‍। डेग उठि‍ते मन सि‍हरलनि‍। भाए-बहि‍नक  ओहन पर्व काल्हि‍ छी जइमे दुनूक प्रगाढ़ प्रेमक, सि‍नेह-सि‍क्‍त जलक उदय हएत। आशाक संग जि‍नगीक वि‍सवासो जगलनि‍। डेग बढ़लनि‍।

पनरह-बीसटा डमहाएल चठैल खोंइछामे लेने सुचि‍ताकाकी मुस्‍की दैत, गद्-गद् होइत जे महीना दि‍न तँ चलबे करत, तेकर पछाति‍ ने दौंजी हएत। सालमे जँ एक्को पनरहि‍या चठैलक तरकारी खा लेब तँ कि‍ चीि‍नया बेमारी लागत। लफड़ल आबि‍ पछबरि‍या ओसारपर सूपमे चठैल उझलि‍ पुतोहुकेँ पुछलखि‍न-
कनि‍याँ, दोकानक काज अछि‍?”
डि‍ब्‍बा-डुब्‍बी हड़बड़बैत पुतोहु बजली-
हँ।
की सब लेब?”
नोन, हरदी।
पुतोहुक साँस कि‍छु गर्म सुचि‍ताकाकीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा अनठा देलनि‍। नोनक पौकेट दस रूपैयामे देत, हरदि‍यो कि‍ कोनो सस्‍ता अछि‍। ओकरो पौकेट दस रूपैयासँ कममे कहाँ दइ छै। हाथमे तँ पनरहेटा रूपैया अछि‍। केना दुनू चीज लेब। मन फुनफुनेलनि‍। बड़बडाए लगली, केहेन बढ़ि‍याँ खुदरा-खुदरी नून बि‍‍काइ छलै, जतबे जेकरा सकड़ता रहै छलै से ततबे लइ छलए। आब तँ तेहेन पोलीथीन पौकेटमे रहैए जे कमो रहत तँ बनि‍याँ कहत जे घमि‍ गेल हएत। खाएर एक चुटकी नूने ने कम देत। एक-ने-एक दि‍न सैरि‍यत दि‍अए पड़तैक। जहि‍ना बच्‍चा लगले कनैए, लगले हँसैए तहि‍ना सुचि‍ताकाकीकेँ मन लहड़ए लगलनि‍। जे नून हाथीकेँ गला दइए ओ प्‍लास्‍टि‍ककेँ कि‍ नै गलबैत हएत। आब की कोनो नून खाइ- छी आकि‍ प्‍लास्‍टि‍कक रस पीबै छी। हे भगवान तोड़े हाथ-बाठ छह। जते दि‍न जीबए दैक हुअ से जीबह दि‍हह, नै जे लऽ जाइक हुअ तँ लऽ जहि‍हह। कहू जे प्‍लास्‍टि‍के कलमे पानि‍ पीबै छी, दोकानक चीज-बौस अनै छी, खाइ-पीबैक समान रखै छी। जूत्ता-चप्‍पल, कपड़ा-लत्ता पहि‍रै छी। मुदा....?

लगले मन पुतोहु दि‍स घुरलनि‍। कहू जे चारि‍टा गाछ घरोक दावापर हरदी रोपि‍ लेब तँ साल भरि‍ कीनए पड़त। जाबे माल-जाल नै छलए ताबे बाड़ी झाड़ी करै छलौं। आब तँ मालोक नेकरमसँ नहाइयो-खाइयोक पलखति‍ नै होइत रहैए। कनि‍याँ सहजहि‍ कनि‍ये छथि‍। कोनो लूरि‍-ढंग बाप-माए सि‍खा कऽ पठौलखि‍न आकि‍ सोलहो आना सासुरे भरोसे छोड़ि‍ देलखि‍न। मदुा गलती बुढ़होक छन्‍हि‍। कोन दुरमति‍या चढ़ि‍ गेलनि‍ चारि‍ कोसी पारक पुतोहु उठा अनलनि‍। एकेटा वस्‍तुक चरि‍-चरि‍, पँच-पँच तरहक ि‍वन्‍यास बनैए, जरूरति‍क हि‍सावसँ रूप-बदलि‍ उपयोग करब। तइ कालमे कहती जे खाली, अल्‍लूक, तरूआ, भुजुआ, भुजि‍या टा बनबैक लूरि‍ अछि‍। अपसोच करैत बजलीह-
जा हे भगवान, जे पुत हरबाहि‍ गेल, देव-पि‍तर सभ से गेल। कोनो मनोरथ रहए देलह। जखन मनोरथे नै तखन सतयुग, त्रेता, द्वापरे कि‍।
तइ बीच मोख लागल ठाढ़ पुतोहु बजलीह-
आइ शुक्रवारी छि‍ऐ। जखन चौक दि‍स जाइते छथि‍ तँ अंगूरो आ केरो फलहार ले लेने अबि‍हाथि‍।
पुतोहुक बात सुनि‍ सुचि‍ताकाकी छगुन्तामे पड़ि‍ गेली। मनमे हुअए लगलनि जे एक हजार बात एक्केबेर कहि‍ दि‍यनि‍ मुदा कतौ-कतौ नहि‍यो टोक देब नीक होइत अछि‍। तँए, कि‍छु नै बजैसँ परहेज केलनि‍। मुदा, जहि‍ना आगि‍पर चढ़ल पाइनि‍क बर्तनमे ताओ लगि‍ते तरसँ बुलकरा उठए लगैत तहि‍ना काकीक मनमे उठए लगलनि‍। कहू जे अखन पनपि‍आइक बेर छै, पहि‍ने तेकर ओरि‍यान कऽ पुरुख-पात्रकेँ खुआएब अपने खाएब आकि‍ सौझुका फलहारक ओरि‍यान करब। बीचमे कलौ सेहो अछि‍ये। भगवानो टेबि‍ये कऽ पुतोहु देलनि‍। एहेन-एहेन गि‍रथानि‍ बुते कते दि‍न घर-परि‍वार चलत। काकीकेँ चुप देखि‍ पुतोहु दोहरबैत बजलीह-
नै सुनलखि‍न। जखन चौक दि‍स जेबे करती तँ अंगूरो आ केरो नेनहि‍ अबि‍हाथि‍।
पुतोहुक बात सुनि‍ते काकीक मनमे तरंग उठलनि‍। तरंगि‍ कऽ बजए लगली-
अहाँ सब कोन उपास करै छी जे सहैसँ पहि‍नहि‍ फलहारेक ओरि‍यान करए लगै छी। कहुना-कहुना तँ सातटा हरि‍बासय केने छी। कहाँ कहि‍यो पहि‍ने फलहारेक ओरि‍यान करै छलौं।
शब्‍द-वाण जकाँ काकीक बात पुतोहुक हृदैमे लगलनि‍। तीर बेधल चि‍ड़ै जकाँ छटपटाइत पूतोहू बजलीह-
अपना जे मन फुड़ै छन्‍हि‍ करै छथि‍ से बड़बढ़ि‍या मुदा हमरा बेरमे भबडाह हुअ लगै छन्‍हि‍?”
भबडाह सुनि‍ काकि‍योक मन बेसम्‍हार भऽ गेलनि‍। कहलखि‍न-
कनि‍याँ, हम भबडाहि‍ नै छी जे केकरोसँ भबडाह करब। अखन आँखि‍ तकै छी तँए चि‍न्‍ता अछि‍। अखने आँखि‍ मूनि‍ देब, घर सम्‍हारए पड़त। तखन अहूँ यएह बात बुझबै।
भनडार कोणक जेठुआ गड़ै जकाँ दुनूक बीच रसे-रसे अन्‍हर-वि‍हाड़ि‍ पकड़ए लगल। कि‍यो पाछू हटैले तैयार नै। दुनूक सीमा-सरहद टूटि‍-एकबट्ट भऽ गेल। एक्के-दुइये धि‍यो-पुतो आ जनीजाति‍यो सभ अबए लागलि‍। आंगन भरि‍ गेल।
चौकसँ कि‍छु पाछुए नि‍त्‍याननकाका रहथि‍ कि‍ मनमे उठलनि‍, चौरंगी हवा बहैक समए अछि‍। कखन कोन हवा केम्‍हरसँ उठत आ घर-दुआर खसबैत केम्‍हर मुहेँ चलि‍ जाएत तेकर ठेकान नै। ठोर बि‍दकि‍ गेलनि‍। हुलकी दैत मुस्‍की बहरेलनि‍-
एह, अजीब-अजीब करामाती मनुक्‍खो सभ भऽ गेल। कनि‍ये गलती वि‍धातोक भेलनि‍ जे सींग-नाङरि‍ काटि‍ लेलखि‍न।
तहि‍काल लाडस्‍पीकरक आवाज कानमे पड़लनि‍। राधा-कृष्‍ण मंदि‍रपर झुला चलि‍ रहल अछि‍। आवाज सुनि‍ मन पसीज गेलनि‍। साओन मास। सुहावन। मन भावन। वि‍शाल वसुंधरा, रंग-रंगक वस्‍त्र पहीि‍र मधुमय वातावरणक बीच, बि‍‍हुँसि‍ रहल अछि‍। कृष्‍णक कदमसँ कदम मि‍लबैत राधा बि‍‍हुँसैत झुला झूलए कदमक गाछ दि‍स जा रहल छथि‍। असीम उल्‍लास। अदम्‍य साहस दुनूक बीच। कातेसँ गाछमे गोल-गोल, लाल-पीयर झुमका लगल फल-फूलसँ लदल देखि‍ राधा कृष्‍णकेँ पुछलखि‍न-
डोरी लगा डारि‍मे झुला लगाएब आकि‍ डारि‍येपर बैस झूलब?”
राधाक प्रश्न सुनि‍ कृष्‍ण आँखि‍येक इशारासँ उत्तर देलनि‍-
जेहेन समए तेहेन काज।

चौकक गनगनाइत अबाज, नि‍त्‍याननकाकाक धि‍यान अपना दि‍स खि‍ंचलकनि‍। तखने एकटा नवयुवककेँ स्‍कूलमे भेटल बहि‍नीक साइकि‍लपर ‘रेशम की डोर’ गुनगुनाइत सुनलनि‍। चि‍प्‍पी सजल वि‍देशी वस्‍त्रमे युवक। जहि‍ना दि‍न-राति‍क मध्‍य जाड़-गरमीक मध्‍यक संग जि‍नगि‍योक मध्‍य मधुआएल होइत, तहि‍ना काकाक मन सेहो भेलनि‍। युवककेँ पूछि‍ देलखि‍न-
बाउ, परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
युवक- बाबा, हि‍नका सबहक चरणक दयासँ सभ छथि‍। माइयो-बाबू आ दूटा बहि‍नो अछि‍। एक बहि‍न सासुर बसैए, जतए जा रहल छी आ दोसर पढ़ैए। सोलहम बर्ख छि‍ऐ। दू-तीन साल बाद ि‍वआहो करब।
काका- अपने?”
युवक- बाबा, ई देवतुल्‍य छथि‍, झूठ नै बाजब। अपना खेत-पथार नहि‍ये जकाँ अछि‍ मुदा खेतबला सभकेँ बहरा गेने बटाइ खेत पर्याप्‍त अछि‍। एक जोड़ा बड़द रखने छी। बाबू-माए खेते-पथारमे खटै छथि‍, अपने बम्‍बईमे रहै छी।
काका- राखी पावनि‍ तँ काल्हि‍ छि‍ऐ, आइये कि‍अए जाइ छी?”
युवक- साल भरि‍पर बम्‍बईसँ एलौंहेँ। एको दि‍न पहि‍ने जँ बहि‍नक ऐठाम नै जाएब, से केहेन हएत? भागि‍नो-भगि‍नि‍यो ले आ बहि‍नो-बहनोइले सालो भरि‍क कपड़ा नेने जाइ छि‍यनि‍। काल्हि‍ बेरमे घुमब तखन छोटकी बहि‍नक हाथे राखी पहि‍रब। अच्‍छा अखन जाइ छी बाबा। काल्हि‍ फेर घुमती बेर भेँट करब।
काका- काजे जाइ छी। जाउ?”

जेना-जेना ओ युवक साइकि‍लसँ आगू बढ़ल जाइत तेना-तेना नि‍त्‍याननोकाकाक मन दौगए लगलनि‍। मनमे एलनि‍ पैछला सालक मोबाइलि‍क घटना। कनी मन खुशी भेलनि‍। बुदबुदेलथि‍-
अजीब-अजीब मदारी सभ अछि‍। गर लगा-लगा नचबैए। मन रूकलनि‍। पहि‍नेसँ ने लोक कि‍अए बुझैए जे एहेन-एहेन घटनाकेँ बढ़ए नै देत। मुदा मन ठमकलनि‍। घटना भेल। राखी पावनि‍ दि‍न, दस बजे राति‍मे बम्‍बैसँ एक गोटेकेँ मोबाइलसँ समाचार आएल जे बौआ सबहक हाथक राखी जल्‍दी खोलि‍ दि‍यौ नै तँ अनहोनी घटना हएत! इमहर मुहेँ-मुँह समाचार पसरब शुरू भेल, ओमहरसँ मोबाइलि‍क समाचार दि‍ल्‍ली, कल्‍कत्ता, बंगलोर इत्‍यादि‍सँ अकासमे गनगनाए लगल। हाँइ-हाँइ राखी हाथसँ उतरए लगल। भरि‍ राति‍क हलचल दि‍नक दस बजे धरि‍ चलि‍ते रहल। राति‍ भरि‍क नीनो दि‍नेमे बौआ गेल। मुदा दस बजेक पछाति‍क तीखर रौद पाबि‍ वातावरण शान्‍त भेल। मनमे उठलनि‍ बाल-बच्‍चाक संग माए-बापक संबंध। केना मनुखक वंश आगू मुहेँ ससरत जतए माइये-बाप दुश्‍मन बनि‍ ठाढ़ भऽ रहल अछि‍। तहूमे जि‍नगीक अंति‍म बेलामे नै, उदयक तीनि‍ये मासमे हथि‍यार लऽ आगूमे ठाढ़ भऽ जाइत अछि‍! मन तुड़छए लगलनि‍। थूक फेकि‍ मन हल्लहुक केलनि‍। मन पड़लनि‍ भाए-बहीनि‍क ओ पुरान बात। भाए-बहि‍न ऐठाम पहुँचल तँ बहि‍न भायकेँ कहलकनि‍- भैया जखन अकासक डगर उत्तरे दछि‍ने हएत तखन आएब। मन पड़ि‍ते उठलनि‍ सालो भरि‍ तँ प्रकृतक संग खेल होइते रहैत अछि‍, जि‍नगीसँ कतेक लग धरि‍ संबंध बनि‍ सकैए, ततबे ने।
जना मेघौनमे हवा-सि‍हकी लगने घुसकैत-फुसकैत तहि‍ना नि‍त्‍यानन कक्काक मन घुसकलनि‍। देखलनि‍ जे चकेबा कोन तरहेँ बहि‍न समाकेँ जरैत वृन्‍दावनमे संग दऽ रहल छथि‍। जे मनुख चि‍त्ती कौड़ी फेकि‍ नागसँ दोस्‍ती करैत, बाघ-सि‍ंह, भाउल सहि‍त गाए-महींस, बकरीक संग मुनि‍यासँ हंस धरि‍ प्रेमसँ एकठाम रहैत ओकरा मनुखसँ एते घृणा कि‍एक छै। जे धी-जमाए-भगि‍नाक लेल कहल जाइत, ओइमे कि‍यो अपन नै! तहि‍ना भाए-बहि‍नकेँ महींसक सींग सदृश कहल जाइत। एक जाति‍क संहार कऽ बगीचाक काँट हटाएब कहल जाइत अछि‍! मन तरंगि गेलनि‍। तखने एकटा बेदरा आबि‍ कहलकनि‍-
बाबा, अंगनामे बि‍‍रड़ो उठल अछि‍।
बेदरासँ कि‍छु पुछब उचि‍त नै बुझलनि‍। उड़ैत अकासमे कौआ अपन टाहि‍ थोड़े दोहरबैए। ओ तँ समैक घड़ी छी। मन आंगन पहुँचलनि‍। पत्नीपर नजरि‍ पड़ि‍ते वि‍चार उठलनि‍। झगड़ी की रगड़ी ओहो छथि‍। बूढ़ भेलौं, एतबो होश नै रहै छन्‍हि‍। होशो केना रहतनि‍ जइ परि‍वारकेँ फुलवाड़ी सदृश जि‍नगीक कमाइसँ बनौने छथि‍ तेकरा जँ कि‍यो उजाड़ए चाहत से केना उजाड़ए देथि‍न। मुदा रगड़ी रहि‍तो एकटा गुण तँ छन्‍हि‍ जे, ने रग्‍गड़ ठाढ़ करैमे देरी लगै छन्‍हि‍ आ ने सीढ़ीक भीतर फड़यबैमे। नजरि‍ पुतोहु दि‍स बढ़लनि‍ अजीब-अजीब लोको सभ फड़ि‍ गेलहेँ। कहत जुगे बदलि‍ गेल। कि‍ जुग बदलल से कहबे ने करत आ कहत जे जुगे बदलि‍ गेल। तहमे तेहेनठाम देखाएत जे अनेरे देहमे झड़क उठत। सासुकेँ उनटा-पुनटा पुतोहु कहथि‍न तइकाल जुग बदलि‍ गेल। मुदा सासुक लगाओल फुलवाड़ीकेँ कते समृद्ध बनेलौं तइ काल...। जहि‍ना अपन बाप-माए लगसँ कानि‍ कऽ एलौं तहि‍ना अहू परि‍वारकेँ कनाएब। अनठा चौकपर पहुँचलथि‍।
चौकपर पहुँचते चाहक दोकानमे गदमि‍शान होइत रहए। चाह पीबनि‍हार अपना धुनि‍मे आ दोकानदार अपन धुनि‍मे। चाहबला आगि‍-अगोंड़ा होइत जे सभटा फोकटि‍या आबि‍ बैस पँूजी बुड़बै पाछू अछि‍। गि‍लासपर गि‍लास चाह ढारने जाइए आ पाइक कोनो पते नै। मुदा खुलि‍ कऽ ऐ दुआरे नै बजैत जे अखन दोकानपर सँ थोड़े चलि‍ गेल जे बुझबै पाइ बुड़ि‍ गेल। तँए दम कसि‍ लि‍अए। ओना भीतर शंका पुन: उठि‍ जाइ। चेहरा मि‍लानी करै तँ वएह चेहरा बूझि‍ पड़ै जे अाधासँ बेसी ओहन अछि‍ जे सौ-पचास पीब-पीब कऽ दोसर दोकान पकड़ि‍ लेने अछि‍। कि‍छु जे अछि‍ ओकरासँ कोनो नै कोनो काज हेबे करत। तँए पहि‍लुके उपकार ने पछाति‍ जुआ कऽ नमहर भऽ जाइए। तँए मुस्‍की दऽ मन माड़ि‍ लि‍अए।
मुदा चाह पीबनि‍हारक उत्‍साह भि‍न्ने रहए तँए चाहबला दि‍स कि‍यो तकबे ने करैत। खाली एतबे कहैत जे दूध जरा कऽ स्‍पेशल बनाएब। गप्‍पोक धारा एहेन रहै जे, जहि‍ना जुलुशमे लोक पएरमे लगैत गंदगीकेँ रास्‍तापर आरो चारि‍ बेर रगड़ि‍ आगू बढ़ैए। एक संग अनेको पर्व। लोक भलहि‍ं लोकसँ जते हटि‍ जाए, मुदा पावनि‍ थोड़े हटत। कम-बेसी भलहि‍ं भऽ जाए। अजीब-सि‍नेहक संग राधा-कृष्‍ण बाँहि‍-मे-बाँहि‍ जोड़ि‍ झुला झूलैत छथि‍। भाए-बहि‍नक बीच एहेन पर्व दोसर कहाँ अछि‍। भरदुति‍या तँ भरदुति‍ये छी। कमलाक जल सेहो बैद्यनाथ बाबाकेँ वि‍देसरमे भेटबे करतनि‍। अजीब उमंग-उत्‍साहसँ हँसि‍ते-हँसि‍ते महि‍ना दि‍नक संकल्‍प नि‍माहि‍ लैत छथि‍। नि‍त्‍यानन काकापर नजरि‍ पड़ि‍ते प्रेम कुमार चाहेक दोकानपर सँ कहलकनि‍-
काका, एतै आउ। सभकेँ-सभ छथि‍।
मुस्‍की दैत नि‍त्‍याननकाका कहलखि‍न-
खाली लोकेटा नै ने फगुआक रमझौआ होइए। ऐ मे की सुनब आ की‍ बाजब। तइसँ नीक बाहरेमे आबह। चौसठि‍म स्‍वतंत्रता दि‍वसक बरखी छी, नै पान तँ पानक डंटि‍यो लऽ कऽ सुआगत करबे करबनि‍।
तहीकाल अंगनाक समाचार नेने बेटा पहुँचलनि‍। हाथसँ आँखि‍ मलि‍-मलि‍ बलौसँ ललि‍या-करि‍या नोर बहबए चाहैत। बेटाकेँ बजैसँ पहि‍ने पूछि‍ देलखि‍न-
कि‍अए मन मन्‍हुआएल छह?”
दुनू-गोटे -सासु-पुतोहु- अंगनामे झगड़ा करै छथि‍।
झगड़ा शान्‍त करि‍तह ि‍क कहए एलह?”
हमर बात के सुनत।
मुस्‍की दैत नि‍त्‍याननकाका घर दि‍स वि‍दा भेला। जते घर लग आएल जानि‍ तते झगड़ो नरमाएल जाइत रहए। सुनै दुआरे कक्को छोटकी डेग बनबैत। मुदा जहि‍ना-जहि‍ना डेग छोट होइत जानि‍ तहि‍ना-तहि‍ना अछि‍आक मुरदा जकाँ झगड़ा शान्‍त भऽ गेल।

दुआरपर पहुँचते देखलनि‍ जे जहि‍ना भारी काज केलापर वा रौदाएल एलापर छाहरि‍मे ठाढ़ भऽ नमहर-नमहर साँस लैत तहि‍ना अंगना-दलानक कोनचर लग ठाढ़ भऽ साँस छोड़ि‍ रहल छथि‍। आगू आँखि‍ उठा देखलनि‍ तँ पुतोहु थारी-लोटा मँजैबला ओचौन लग ठंठाइते साँस छोड़ि‍ रहलीहेँ। बजैत कि‍यो नै। जहि‍ना मुकदमाक खलीफा मुद्दालह बनि‍ लड़ैमे प्रति‍ष्‍ठा बुझैत, तहि‍ना दुनू गोटे। मनमे उठलनि‍ केकरो प्रति‍ष्‍ठाक सीमामे नै जेबाक चाहि‍ऐक।
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