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Monday, April 9, 2012

डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- सखी कुन्ती



हम करीब तेरह वर्षक भऽ गेल रही। रही बड्ड खुरलुच्ची आ अगाध बदमास। कहियो एहेन नहि होइत छल जहिया ककरोसँ झंझट नहि होइत हो। हम्मर माए लोकक उपरागसँ तंग आबि गेल छलीह। सभ उपाए केलन्हि; डांटब, बुझाएब, मारब। मुदा बेकार हम अपन खुर्लुच्ची स्वभावकेँ नहि त्यागलहुँ।
एहनो बात नहि छल जे हमरा अपना मोनमे अपन कर्मक प्रति घमण्ड हो। प्रति दिन सुतबा काल ई निर्णय लैत रही जे आब लोक सभसँ झगड़ाफसाद नहि करब। खूब मोन लगा कऽ पढ़ब। लोक आब माए लग ई कहए अएतन्हि जे अहाँक बेटा अपन कक्षाक सभसँ नीक विद्यार्थी अछि। लोक सभसँ आपसी प्रेम बना कऽ रखैत अछि, आदिआदि। मुदा ई सभ किछु क्षणक निर्णए होइत छल। भोर होइतहि हम अपन बदमासीक प्रवृत्तिमे पुनः संलग्न भऽ जाइत रही।
माए सोचलन्हि; “आब ई बर्बाद भऽ जाएत। तामससँ घोर होइत बाढ़नि उठा एक दिन कतेको बेर मारलन्हि। बीचमे हफैत रहली वा कहैत रहलन्हि राघव ! तोरासँ नीक कुकुर! कमसँ कम अपन पोसनिहारक बात तँ मनैत अछि। माएक हाथ चलैत रहलन्हि आ हम मारि खाइत रहलहुँ। फेर ओ बजलीह; तूँ तँ बतहा कुकुर छेँ। मारैत मारैत माए थाकि कऽ चूर भऽ गेलीह।
ओना तँ कतेको दिन माएसँ मारि खाइत छलहुँ मुदा ओहि दिनक बात जीवन पर्यंत याद रहत। शरीर बेदनासँ कराहए लागल। माएकेँ सेहो बुझेलन्हि जे आइ ओ किछु बेशी मारि देलन्हि। हम बिना किछु कहने मण्डिलक पाछाँ जाए कानए लगलहुँ।
आधा घंटाक बाद माए मालीमे करूक तेल लेने अएलीह। पाछाँसँ हमर झोटकेँ सहलाबए लगलीह। हमरा भेल फेर मारतीह। मुदा जखन हुनका दिस ध्यान गेल तँ देखलहुँ, आँखिसँ नोर चुबैत छलन्हि। कहए लगलीह- चारिटा बाल बच्चा भगवान देलन्हि। तीनटा सँ कहियो कोनो शिकाइत नहि भेल। सबहक कसरि तोँ पूरा कऽ देलह राघव। माए कहैत रहलीह आ माथा सहलाबैत रहलीह। आब हमहुँ कानए लगलहुँ। कहलियन्हि- माए! आब हम बदमासी नहि करब ! हमरा आइ अहाँ बड्ड मारलहुँ। सम्पूर्ण शरीर गूड़ जकाँ दर्द करैत अछि। ई कहि हम माएकेँ पकड़ि हुनकर गरसँ लागि बड्ड जोरसँ कानए लगलहुँ। पूरा शरीरमे बाढ़निक ओदरा परि गेल छल। माए ओकरा देखैत हमरे जकाँ जोरसँ कानए लगलीह। फेर तेल लगौलन्हि। स्नान केलहुँ आ भोजन केलहुँ। माए दिन भरि कनैत रहलीह। दिन भरि अन्न नहि खेलन्हि। लोक सभ आग्रह केलकन्हि तँ कहलखिन्ह जे हम्मर प्रायश्चित यएह थीक जे हम चौबीस घंटा अन्न जल ग्रहण नहि करी।
जखन हमरा पता लागल हम दीदीक हाथसँ चाह लए माए लग गेलहुँ। हमरा बुझल छल जे माए अन्न बेतरे तँ रहि सकैत छथि मुदा चाहक बिना नहि। हम कहलियन्हि- माए ! अहाँ चाह पी लिअ। आब हम कहियो गलती नहि करब। लोक कहत राघव केहेन नीक लड़का छैक। माए हमरा दिस देखलन्हि आ बजलीह; चुपचाप चाह लऽ कऽ घर चलि जो। आइ हम किछु नहि खएब ! रातियोमे माए नहि खेलन्हि। भोरे भइया दरभंगासँ अएलाह। आबिते मातर माए हुनका कहलथिन्ह; “पवनजी, राघब हमर जीनाइ दुर्लभ कऽ देने अछि। लोकक उपरागसँ तंग आबि गेल छी। काल्हि जानवर जकाँ मारिलिऐक। कचोट बादमे बड्ड भेल। ई महामुर्ख निकलि गेल। तेँ एकरा पिताजी लग सिमडेगा पठा दहक। रामनगरवाली बहिन कहैत छलीह जे रोहित चारि पाँच दिनक भीतर राँची जाए बला छथि। हुनके संगे पठा दहक। बाबूजीकेँ एकटा चिट्ठी लिखि दहुन। हम्मर घरमे माएक राज चलैत छलन्हि। भैया हुनकर आज्ञाकेँ स्वीकार केलन्हि। साँझमे भैया रोहित भाइकेँ लऽ कऽ अएलाह। रोहित भाइ माएकेँ कहलथिन्ह- कोनो बात नहि कनिया काकी, हम राघबकेँ सिमडेगा बला बसपर बैसा देबैक। सिमडेगामे बसे स्टेंड लग खादी भण्डार छैक। बसक कण्डक्टर राघबकेँ ककाजी लग पहुँचा देतैक।
माए हमर जएबाक तैयारी करए लगलीह। हमरा गामसँ सिमडेगा गेनाइ नीक नहि लागि रहल छल। जे एकबेर जे कोनो बात माए मोनमे ठानि लेलन्हि तकरा दुनियाक कोनो तागति नहि टारि सकैत अछि। तँए बिना कोनो प्रतिकार केने हमहुँ सिमडेगा जेबाक तैयारीमे लागि गेलहुँ। अपन तीन चारिटा लंगौटिया यार सभकेँ कहि देलिऐक- हम आब सिमडेगा चललीयौक। तूँ सभ रह एतएक राजा
चारि दिनक बाद हम रोहित भाइ संग सिमडेगा लेल प्रस्थान केलहुँ। आबए काल माए बड्ड कनलीह। बड़ हृदएसँ लगौलन्हि। पहिल बेर पता चलल जे माए हमरा कतेक मानैत छलीह। कहलन्हि- बाबूजी लग मनुक्ख जकाँ रहबाक प्रयत्न करिहेँ राघब। तंग नहि करिहन्हु। माए एकटा चिट्ठी सेहो बाबूजीकेँ लिखलथिन्ह। चिट्ठीक अंतिम भागमे लिखल रहैक;
राघब बड्ड बदमास अछि। प्रतिदिन लोकक उपरागसँ मोन आजिज भऽ गेल अछि। ताहिसँ एकरा अहाँ लग पठा रहल छी। साइत अहाँक डरसँ बदमासी कम करत। हम जनैत छी, ई हमर कोरपछुआ अछि। तइयो एकर उत्तम भविष्यक लेल अपन छातीपर पाथर राखि अहाँ लग दूर देशमे पठा रहल छी। एकरा डांट फटकार अवश्य करबैक, मुदा अहाँकेँ हम्मर आ चारू धीयापुताक सप्पत अछि, एकरा मारबै नहि
माएक चिट्ठी हम सिमडेगा अएलाक आठ दिनक बाद पढ़लहुँ। माएक यादमे चुपचाप बड्ड कनलहुँ। लागल केहेन महान चीजक नाम छैक माए। स्वयं तँ मारैत छलीह, मुदा जखन बाबूजी लग भेजलन्हि अछि तँ बाबूजीकेँ सभ तरहे बुझा रहल छथिन्ह जे राघबपर हाथ नहि उठेबैक। बाह रे माएक ममता !
बाबूजी माएकेँ बड्ड मनैत छलथिन्ह। ओ हमरा बुझबैत छलाह- राघब, अहाँ खूब मोनसँ पढ़ु। अहाँकेँ जे कोनो चीज चाही से लिअ आ पढ़ू। लोक सभसँ झगड़ादान नहि करू
अगलबगलक चारिपाँच लड़का-लड़की सभसँ बाबूजी हमर परिचए करा देलन्हि। हम अपनामे आश्चर्यजनक परिवर्त्तन अनलहुँ आ लोक सभसँ झगड़ा-झाँटी त्यागि देलहुँ। बाबूजी प्रसन्न छलाह, जे चलू राघबमे एहेन परिवर्त्तन अएलन्हि।
हमरा लोकनिक घरक बगलमे एकटा तमाकुल बेचएबला बनिया छल। ओकर नाम रहैक सोहन साहु। सोहन साहुक बेटी शीला छलैक। हलांकि शीला हमरासँ एक कक्षा जुनीयर छलि। शीलाक नाक-नक्श बड़ सुन्दर, रंग कारी मुदा सोहनगर। शीला जवान भऽ रहलि छलि, से शरीरक अंगसँ स्पष्ट परिलक्षित होइत छलैक। पातर ठोर, डोका सनहक आँखि, मध्यम कद। कपड़ालत्ता सेहो ठीक पहिरैत छलि। शीलाक माए हमरा बड्ड मानैत छलीह। कहैत छलथिन्ह; “बेचारा राघब ! बिना माएक सिमडेगामे रहैत अछि। शीला सेहो हमरा बड्ड मानैत छलि।
पिताजी हमर नाम सिमडेगाक सरकारी स्कूलमे लिखा देलन्हि। हमर स्कूलक ठीक पाछाँ शीला कन्या विद्यालयमे पढ़ैत छलि। ओना तँ शीला बरसमे हमरासँ डेढ़ वर्षक पैघ छलि, परंतु कक्षामे हमरासँ एक कक्षा पाछाँ। स्कूलक समए दूनू स्कूल एक्के रहैक। हम सभदिन स्कूल शीलेक संग जाइत रही। शीलाक संग शीलाक एक सहछात्रा सेहो हमरा लोकनिक संग विद्यालय जाइत छलि। ओहि छात्राक नाम रहैक कुंती। कुंती मध्यम कदकाठीक करीब पन्द्रह वर्षक स्वस्थ आ गोर लड़की छलि। नमहर कारीकारी केश, सुन्दर नाक, कान। कनीक बएससँ बेशी बुझना जाइत छलि कुंती। शनैः शनैः कुंतीसँ हमर नीक बातचीत होमए लागल।
पता नहि किएक कुंती हमरा शीलासँ बेशी नीक लगैत छलि। निश्छल, सहज आ सुन्दरि। ओकर आँखि दिस जखनकखनो ध्यान जाइत छल तँ एना बुझाइत छल जेना ओ सहज भावसँ मोनक कोनो गप हमरासँ बाँटए चाहैत अछि। बातक क्रममे पता चलल जे कुंती मैथिल ब्राह्मणी थीकि। पूरा नाम रहैक कुंती झा। चुंकि हमरा लोकनि सभवयस्क आ संगीक रूपमे रहैत रही आ उपर कुंती हमर सखी शीलाक अभिन्न संगी रहैक ताहिसँ हम सभ ओकरासँ तूँ कहि कऽ बात करिऐक। ओना तँ एक दिन शीलाक माए हमरा कहलन्हि- राघव, अहाँ सभ कुंतीकेँ तूँ नहि कहियौक !
हम पुछलियन्हि, “किएक काकीजी ? कुंती आ शीला दूनू हमर संगी जकाँ थीकि। हम शीलोकेँ तूँ कहि कऽ बजबैत छिऐक मुदा अहाँ कहियो मना नहि केलहुँ, परंतु कुंतीक लेल ई बात किएक कहि रहल छी”?
शीलाक माए हमर प्रश्नक जवाब देमए लगलीह। अही बीचमे शीला आ शीलाक पिताजी हुनका रोकि देलथिन्ह। शीलाक पिताजी शीलाक माएसँ कहलथिन्ह; “अहाँ बच्चा सभक बीचमे किएक टांग अरबै छी ? जखन कुंतीकेँ कोनो समस्या नहि छैक, तँ अहाँकेँ की समस्या अछि ? राघबकेँ अनेरे अहाँ शिक्षा नहि दियौक। शीला सेहो अपन माएकेँ भाषण देमए लागलि- गे माए, ई तोहर बड़का समस्या छौक। अपना जे करक छौक से कर। जकरा जेना बजबै चाहैत छेँ, बजा। हमरा सबहक बीचमे नहि बाज। हम कुंती आ राघब ओहिना रहब जेना रहि रहल छी। हमरा सभकेँ व्यर्थमे नैतिकताक शिक्षा नहि दे माए
हमरा बूझऽ मे नहि आएल जे एकाएक बापबेटी मिल कऽ बेचारी शुद्ध महिलाकेँ किएक बजबासँ रोकि देलकैक। ओना शीलाक माएक बातपर हमरा किछु विस्मय जकाँ सेहो लगैत छल। शीला हमरा दिस देखैत बाजलि; “राघब,! तों जेना चाहैत छैं तहिना कुंतीकेँ सम्बोधित कऽ सकैत छेँ। ओहिना जेना हमरा कहैत छेँ, तहिना कह”- कुंती कहैत रहलि। समए चलैत रहल। हम अपन माएक देल वचनपर थोड़ेक प्रतिबद्ध रहलहुँ। खूब मोनसँ पढ़ी। लोक सभसँ झगड़ाफसाद लगभग छोड़ि देलहुँ। स्कूलक शिक्षक सभ सेहो हमर व्यवहार आ कोनो चीज अथवा ज्ञानकेँ सीखबाक उत्कंठा वा जिज्ञासासँ प्रसन्न छलाह। बाबूजी हमर प्रशंसा सुनि गद्गद् भऽ गेलाह। झट दनि माएकेँ चिट्ठी लिखि देलथिन्ह। चिट्ठीक मजमून ई रहैक-
राघबमे आश्चर्यजनक परिवर्त्तन भेलैक अछि। गामसँ एकरा सिमडेगा ऐनाइ करीब सात मास भऽ गेलैक मुदा आइ धरि राघबक खिलाफ ककरो कोनो शिकाइत नहि भेटल अछि। शिक्षक सभसँ राघबक सम्बन्धमे हमेशा जानकारी लैत रहैत छी। सभ कियो मुक्त कंठसँ राघवक प्रशंसा करैत रहैत छथि। हमरा राघव कोनो तरहेँ परेशान नहि करैत अछि। राघब एतेक नीक भऽ जाएत तकर तँ हम कल्पनो नहि केने रही।
पिताजीक पत्र पढ़ि माँ बड्ड प्रसन्न भेलीह। तुरत निर्णय लऽ लेलन्हि जे कमसँ कम दुइयो मासक लेल सिमडेगा अएतीह आ हमरा सभक संगे रहतीह। माँ पिताजीकेँ पत्र द्वारा सूचना देलथिन्ह जे धनकटनीक पश्चात् ओ सिमडेगा आबि रहल छथि।
किछु दिनक बाद माए सिमडेगा आबि गेलीह। हम बड्ड प्रसन्न रही। माएक स्नेह, माएक हाथक भोजन भेटि रहल छल। बाबूजी सेहो प्रसन्न छलाह। लगभग हमर झंझटसँ स्वतंत्र किछु दिन लेल भऽ गेल छलाह। माए अपन मिलनसार स्वभावक कारणे सिमडेगाक नीचे बजार मुहल्लामे प्रशंसाक पात्र भऽ गेलीह। स्त्रीगण सभ अपन सभ टा नीक काजमे हुनका बजबए लगलन्हि।
हमरा सिमडेगा अएना आब लगभग एक वर्ष भऽ गेल छल। एहि बीचमे किछु अप्रत्याशित घटना घटित भेलैक। कुंती लगातार चारिपाँच दिनसँ नहि आबि रहलि छलि। शीलासँ ज्ञात भेल जे कुंतीक घरमे किछु झंझटि चलि रहल छैक, ताहि कारणे ओ नहि तँ स्कूले आबि रहल छलि आ ने हमरा सभ लग।
लगभग दस दिनक बाद कुंती शीलाक घर आयलि। हम शीलेक घरमे रही। हमर माए सेहो ओतए छलीह। कुंतीक चेहरा उतरल रहैक। मुँह कारी स्याह। आँखिक उपरनीचा फूलल। अहिसँ पहिने की हम किछु ओकरासँ पुछितिऐक, हमर माए आ शीलाक माए कुंतीकेँ आबितहि ओकरा भाषण देमए लगलन्हि। माए हमर बाजए लगलीह- देखू कुंती ! अहाँक ब्राह्मण कुलक स्त्रीमे जन्म भेल अछि। पति नीक, अधलाह जेहेन होइत छैक, स्त्रीगण हेतु भगवान होइत छैक। अहाँक भोलाझा पति छथि। अहाँकेँ हुनकर आज्ञाकेँ अवश्य मानक चाही। बिना हुनकर आज्ञाक कोनो काज केनाइ या कतहुँ जेनाइ उचित नहि। अहाँ अप्पन गलतीकेँ स्वीकार करू आ जीवनकेँ आनन्दपूर्वक जीबू
हम माएक बातकेँ सुनलहुँ तँ आश्चर्यमे पड़ि गेलहुँ। पहिल बेर ई ज्ञात भेल जे कुंती कुमारि नहि अपितु ब्याहित महिला थिक। आब बुझना गेल जे शीलाक माए हमरा किएक कहैत छलीह जे कुंतीकेँ तूँ कहि कऽ नहि बजेबाक हेतु ! चिंताक अथाह सागरमे डुमि गेलहुँ। कतए सतरह वर्षक कुंती आ कतए बाबन वर्षीय भोला झा। केहेन अनमेल विवाह!!! हे भगवान, ई केहेन जोड़ी बना देलिऐक! लोहामे सोना सटि गेल। भरल दुपहरियामे अन्हार!! एक क्षण लेल एना बुझना गेल जे कुंतीक आत्मा हमर शरीरमे प्रवेश कऽ गेल! हम अपनाकेँ कुंती बुझि मोनहि मोन कानए लगलहुँ, काँपए लगलहुँ। अपन पितयौत बहिनक विवाहक कालक स्त्रीगण सभ द्वारा गाओल गीतक एक पाँति बेर-बेर मोनमे हुमरय लागल;
              “लोहामे जड़ि गेल हम्मर सोना।
              हम जीबै कौना”!!
मुदा कुंती पाथरक मूर्त्ति बनलि हम्मर माएक आ शीलाक माएक अनर्गल भाषण सुनैत रहलि। बिना कोनो उचाबच केने। कुंतीक माथ जमीन दिस रहैक। किछु कालक बाद देखलिऐक जे धरतीपर नोरक बुन्द मारिते पड़ल छैक। मुदा ओ सभ ठोप बेकार भऽ गेलैक। दकियानूशक परिवेशमे हमर माए ततेक रमलि छलीह जे हुनका कुंतीक नोर नहि देखेलन्हि। किछु कालक बाद कुंती मुँह ऊपर उठा अपन गालपर हाथक लाल निशान देखेलन्हि, ई भोला झा चमेटाक निशान छलैक। माए अपन हाथसँ कुंतीक गालकेँ सहलाबए लगलथिन्ह। माएक ममत्वकेँ देखि कुंतीक हृदए फाटि गेलैक। कुहेस फारि कानए लागलि। हम्मर माए अपन छातीसँ लगा लेलथिन्ह। कहलथिन्ह- अहाँ आब नीकसँ रहूँ। भोला झा गलत कार्य केलन्हि अछि। हम मैनेजर साहेब -हम्मर पिताजी- कहबन्हि जे हुनका बुझेथिन्ह। अहाँक जेठ बहिनसँ हुनकर छोट भाएक बियाह भेल छन्हि आ अहाँक जेठकी भगिनी अहाँसँ एक्के वर्षक छोट अछि। मुदा आगू नीकसँ रहूँ। केवल स्कूल जाइकाल स्कर्ट आदि पहिरू। स्कूलसँ आपस अएलाक बाद सारी पहिरू, नीक जकाँ रहूँ। जतएततए नहि बौआऊ। छौरा सभसँ हँसीठट्ठा नहि करू
आ लाचार कुंती हम्मर माएक बातकेँ सुनैत रहलि। एना बुझना जाइत छल जेना ई सभ माएबेटी हो। अही बीचमे शीलाक माए चूराक भूजा आ कचरी बनाए सभकेँ खाए लेल देलथिन्ह। कुंती नहि लैत छलि मुदा हम्मर माए एवं शीला ओकरा बड्ड आग्रह केलथिन्ह तँ कुंती खाए लागलि। नोर मुदा एखनहुँ खसि रहल छलैक।
ओहि दिन साँझमे शीला हमरा कुंतीक सम्बन्धमे तमाम जानकारी देलक। भेलैक ई जे कुंतीक जेठ बहिनक बियाह भोला झाक छोट भाएसँ भेल रहैक। कुंतीक बहिनकेँ दूइ लड़की आ दूइ लड़का छलैक। भोला झा समस्तीपुरक कोनो गामसँ कम्मे बएसमे सिमडेगा आबि गेल छलाह। एतए आबि गुजरबसर करबाक लेल मुख्य सड़कक कातमे एक लाइन होटल खोलि लेलन्हि। होटलक बगलमे सिमडेगाक नामी पेट्रोल पंप रहैक। पेट्रोल पंपक अगल बगलमे गाड़ीघोड़ा ठीक करबाक मारिते दुकान आ मेकेनिक सबहक भरमार। एहि सभ कारणे पाँचदस बसट्रक आ अन्य गाड़ी सदरिकाल ओतए लागल रहैत छलैक। आ गाड़ीक ड्राईवर, सहायक इत्यादि भोला झाक लाइन होटलमे सामान्यतया खाटपर बैसि भोजन करैत छलैक। लाइन होटलक भोजन होइत छलैक अति स्वादिष्ट आ चहटगर। कहियो काल कऽ हम्मर पिताजी ओहि होटलसँ तरकारी इत्यादि मंगबैत छलाह। तँ भेलैक ई जे भोला झा अपन परिवारकेँ ठीक करएमे लागल रहलाह। तीन कुमारि बहिनक विवाह, माएबापक संस्कार, क्रिया कर्म, दूटा छोट भाएक रोजगारक तलाश आ बियाह दान करैतकरैत कहियो अपना विषएमे सोचबे नहि केलन्हि। अही बीच जखन कुंती करीब चौदह वर्षक छलि तँ अपन जेठबहिन लग सिमडेगा आयलि। ओहि समएमे भोला झा ईकावन वर्षक छलाह। कुंतीक शरीर भरल रहैक। आ देखबामे अठारह-उन्नैस वर्षक लगैत छलि। भोला झाकेँ अचानक वियाह करबाक इच्छा भेलन्हि। अपन छोट भाए अर्थात् कुंतीक जेठ बहिनोइकेँ कहलथिन्ह जे ओ कुंतीसँ बियाह करए चाहैत छथि। तावत धरि कुंतीक पिताक स्वर्गवास भऽ गेल छलन्हि। विधवा माए ओहि जमानामे चारि हजार टकाक लोभसँ कुन्तीक बियाह भोला झासँ करा देलकैक। पहिने तँ कुंती नहि बुझि सकलि अहि सभ चीजक परिणाम। मुदा स्थिति स्पष्ट होमए लगलैक। हालहिमे भोला झा कुंतीकेँ रातिमे हवशक शिकार बनबए चाहैत छलथिन्ह, जकर ओ प्रतिकार केलकन्हि तँ झोटा नोचि गालपर बड्ड मारलखिन्ह। शीला ईहो कहलक जे भोला झा दिन भरि गाजा पीबैत रहैत छथि, राक्षस जकाँ मोछ रखैत छथि, मुँहसँ गंध अबैत रहैत छन्हि, ताहि सभ कारणे कुंती हुनका लग जाएसँ बचए चाहैत अछि।
खएर ! अहि घटनाक बाद आ कुंतीक अतीत जनबाक कारणे हम्मर व्यवहार ओकर प्रति बदलि गेल। कुंती आन ठाम गेनाइ बन्द कऽ देलक परंतु शीला आ हमरा लग एनाइ नहि रूकलैक। हम आब ओकरा किछु सम्मानसँ बजबए लगलिऐक तँ बाजि उठलि; “नहि राघब, ई ठीक बात नहि। तोँ हमर परम मित्र छँह ! हमरा पूर्वे जकाँ कुंती कहि सम्बोधन कर, तँ नीक लागत। हम एकबेर पुनः कुंतीक संग वएह पुरनका व्यवहार करए लगलहुँ।
समएक चक्र चलैत रहलैक। एहि बीच हमरा लोकनि दसम कक्षामे पहुँचि गेलहुँ। हम्मर उम्र करीब सोलह भऽ गेल। कुंतीक लगभग अठारह वर्षक। एकाएक कुंतीक शरीरमे आश्चर्यजनक परिवर्तन आबए लगलैक। ओकर वक्ष एकाएक बड्ड भारी भऽ गेलैक, गाल मोट भऽ गेलैक। शरीरक वजन बढ़ि गेलैक। आँखि छोट भऽ गेलैक। ओना तँ एहि सभ परिवर्त्तनक बादो कुंतीक सौन्दर्यमे कोनो कमी नहि भेलैक। एखनो हमरा कुंती अजीब सुन्दरि लगैत छलि। करीब आठ मास पहिने एकबेर पता नहि किएक कुंती हमरा भरि पांज पकड़ि अपन हृदएसँ सटा लेलक आ हम्मर माथा चूमि लेलक। हम सन्न रहि गेलहुँ। लाजे किछु नहि कहलिऐक। मुदा तहियासँ सदरिकाल मोनमे यएह सपना आबए लागल, जे किनसाइत कुंती हमर जीवन संगिनी बनि जाइत। ओना हमरा ई नीक जकाँ बुझल छल जे ई संभव नहि अछि। एक दिन हम कौतुहलमे पुछलिऐक, “कुंती तोरामे अतेक परिवर्त्तन किएक भऽ रहल छौक। तौं किएक अचानक मोट भऽ रहल छेँ ”?
हम्मर कौतुहल सुनि कुंती हँसए लागलि। कहलक; “राघव, तोँ नहि बुझमेँ !!से कहि कुंती चलि गेल।
एहि घटनाक लगभग एक मास बाद कुंती स्कूलो गेनाइ बन्द कऽ देलक। कुंती हमरा ई किएक कहलक जे राघव, तोँ नहि बुझमेँ ”!! हमरा किछु नहि फुराइत छल। अंततः एक दिन जखन स्कूलसँ डेरा आबैत रही तँ बाटमे जेल लग शीला भेट भऽ गेल। शीलासँ कुंतीक विषएमे जानकारी लेमए लगलहुँ तँ पता चलल जे कुंती गर्भवती अछि। आब बूझऽ मे आएल जे कुंती किएक हँसलि आ कहलक जे तोँ नहि बुझमेँ”!!! हम शीलाकेँ पुछलिऐक- आब कुंतीक पढ़ाइक की हेतैक”? शीला कहलक- किछु नहि, भोला झा कहलकैक अछि पढ़ाइ छोड़ि देबाक हेतु। आब डेढ़ मासमे कुंती अपन बच्चाकेँ जन्म देत आ बच्चाक लालन पालनमे लागत। पढ़ाइक अंत भऽ गेलैक। खएर, छोड़ राघब ! हमरो पिताजी आब हमरा लेल लड़का ताकि रहल छथि। हमरा माए लग तीन लडकाक फोटो छैक। हम तोरा देखा देबौक
मुदा हमरा कोनो लड़काक फोटोसँ कोन मतलब! खएर ! करीब डेढ़ मासक बाद एक दिन शीलासँ ज्ञात भेल जे कुंती सरकारी अस्पतालमे एक लड़काकेँ जन्म देलकैक अछि। दोसरे दिन भोला झा दू किलो मिठाइ लऽ कऽ हमर पिताजीकेँ दऽ गेलथिन्ह। भोला झा खुशीसँ गद्गद् छलाह।
एहि घटनाक किछु दिनक बाद पिताजीक स्थानांतरण सिमडेगासँ गिरिडीह भऽ गेलन्हि। पिताजी संग हमहुँ गिरिडीह आबि गेलहुँ। करीब चारि वर्षक बाद सिमडेगा गेलहुँ तँ शीला नहि भेटलि। शीलाक माए कहलन्हि जे शीलाक बियाह राऊरकेला भऽ गेलैक। लड़का चाऊरक व्यवसायी छैक। शीलाकेँ एक सालक एकटा लड़की छैक। शीला अपन पति आ बच्चा संगे बड्ड प्रसन्न अछि। कुंतीसँ भेट नहि भऽ सकल मुदा शीलाक माए बतौलन्हि जे कुंतीकेँ एकटा लड़की सेहो छैक। आब ओकर पति भोला झा अपन माएसँ भिन्न भऽ गेल छथि। कुंती पूर्णरूपेण एक सफल गृहणी, पत्नी आ माए बनि गेल अछि। सदरिकाल अपन परिवार, बेटा, बेटी आ पतिक सेवामे लागलि रहैत अछि। शीला नहि छलि तँ हमरा कुंतीसँ के मिला सकैत छल। इच्छा रहितहुँ हम कुंतीसँ नहि भेंट कऽ सकलहुँ।
इमहर करीब बीस वर्षक बाद कोनो प्रयोजने सिमडेगा गेल रही। राँचीसँ जखन सिमडेगा लेल बस पकड़लहुँ तँ कोनो विशेष परिवर्त्तन ओहि क्षेत्रमे नहि बुझना गेल। किछु मकान इत्यादि अवश्य बनि गेल रहैक। सिमडेगामे कोनो विकास नहि बुझना गेल। पिताजीक मित्र श्री देवचन्द्र मिश्रजीक ओतए हम ठहरलहुँ। पाँच दिन सिमडेगामे रहलहुँ। बहुत पुरान लोक सभसँ भेँट भेल। शीलाक छोट बहिनक विवाह सेहो भऽ गेल रहैक। ओकर माए एखनो ओहिना नीक स्वभावक स्वामिनी छलि। शीलाक छोटका भाइ दीपू बड़ पैघ पीबाक भऽ गेल रहैक। हम्मर घरमे कार्य करए बला दाइ असहाय जीवन जीबि रहल छलि। पति मरि गेलैक आ बेटा नालाएक। चन्दन मिश्र वकील साहेबकेँ नक्शली सभ् बेटा संगे कुट्टीकुट्टी काटि देलकन्हि।
आ अंततः जखन कुंतीक सम्बन्धमे जनबाक प्रयत्न केलहुँ तँ पता चलल जे जाहि छोट भाए लेल भोला झा एतेक त्याग केलन्हि, अपन जवानी बर्बाद केलन्हि, बुढ़ापामे ब्याह केलन्हि, सएह छोट भाइ हुनका संगे बेइमानी केलकन्हि। लाइन होटलसँ बेदखल कऽ देलकन्हि। भोला झाकेँ दम्मा भऽ गेलन्हि। पैसाक तंगीमे ठीकसँ इलाज नहि भऽ सकलन्हि। कुंती आब सिलाइक कार्य कऽ रहल अछि। आ अपन बच्चा सबहक पोषण कऽ रहल अछि। बच्चा सभ की, तँ बेटी दसमामे पढ़ैत छैक आ बेटा एक नम्बरक नालायक। देवचन्द्र मिश्रक पत्नी कहलन्हि- राघव, अगर अहाँ चाही तँ साँझमे हम सभ कुंतीक दोकान जाएब। मुदा हम मना कऽ देलियन्हि। हम ओहि कुंतीकेँ नहि देखए चाहैत छी जकर चेहरापर वैधव्य होइक, श्रीहीन हो, कष्टसँ कनैत हो। हम जीर्ण-शीर्ण कुंतीकेँ नहि देखि सकैत छलहुँ। तैं हम पुरनके कुंतीक यादमे जीबए चाहैत छलहुँ।

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