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Sunday, April 8, 2012

बपौती सम्‍पति‍‍ :: जगदीश मण्‍डल


बपौती सम्‍पति‍‍

आसि‍न अन्हरिया चौठ। गोटि-पङरा खाएन-पीन शुरू भऽ गेल। मातृनवमी-पितृपक्ष साझिये चलि रहल अछि। क्यो-क्यो बापो, दादा, परदादाक नाओंसँ तँ कि‍यो-कि‍यो माइयो, दादी, परदादी इत्यादिक निमित्ते नोति-नोति‍ खुअबैत। जल-तर्पण सेहो परि‍बे दिनसँ शुरू भऽ गेल। मुदा इहो गोटि पङरे। किछु गोटे ठीकि‍यौने जे एकादशीकेँ जल-तपर्ण कऽ लेब। तहिना मातृपक्षक लेल नवमी आ पितृपक्षक लेल एकादशीकेँ न्योंतहारी नोति खुआ लेब। मुदा गामक किछु जातिक बीच तेसरो तरहक होइत। ओ ई होइत अछि‍ जे बेरा-बेरी सभ सौंसे टोलकेँ एक-एक दिन कऽ खुअबैत अछि। जेकरा ढढ़क कहैत अछि किछु गोटे मातृपक्षक लेल महिलाकेँ आ पुरुषपक्षक लेल पुरुषकेँ न्योंत दऽ सेहो खुअबैत अछि। पक्षक भिनौज भऽ गेल अछि। एकपक्ष मातृनवमी आ दोसर पितृपक्ष। नवमी मातृपक्षक हिस्सा आ एकादशी पितृपक्षक हिस्सा भऽ गेल अछि‍। दुनू टेंगारीकेँ घरसँ निकालि गुलटेन पच्चर लगा सिलौटपर पिजबैक विचार केलक कि तमाकुल खेबाक मन भेलै। चुनौटीसँ सकरी कट तमाकुल निकालि तरहत्थीपर डाँट बीछते रहै कि पत्नी मुनिया आबि कहलकै- घरमे एक्को चुटकी नून अछि भनसाक बेर भऽ गेल, कखैन‍ आनब?”
अच्छा होउ, जाबे अहाँ सजमनि बनाएब ताबे हम दौड़ले नून नेने अबै छी। टेंगारी नेने जाउ कोठीक गोरा तरमे रखि देबै। हाँइ-हाँइ तमाकुल चुनबए लगल। ठोरमे तमाकुल लैतै, मरचूनक दुआरे, केनादन लगलै कि थुकड़ि कऽ फेकैत दोकान दि‍स विदा भेल। एक तँ तमाकुल मनकेँ हौड़ि देलकै, दोसर काज टेंगारी पीजेनाइ पछुआइत देखि‍ आरो मन घोर भऽ गेलैक। मनमे उठलै पुरने कपड़ा जकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एकठाम फाटब सीने दोसर ठाम मसकि जाइत छैक तहिना परिवारोक काजक अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि जाएत। मुदा चिन्ता आगू मुँहेे नै ससरि रुकि गेलै। चिन्ताकेँ अटकितहि मनमे खुशी एलै। अपनापर ग्लानि भेलै जे जइ धरतीपर बसल परिवारमे जन्म लेबाक सेहन्ता देवियो-देवताकेँ होइत छन्हि ओकरा हम माया-जाल किअए बुझै छी। ई दुनियाँ केकरा लेल छै? ककरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत। ई दुनियाँ उपयोग करबाक वस्‍तु छी ने कि उपभोग करबाक।
गुलटेनकेँ देखि‍ आमक गाछक छाँहमे बैसल भुखना कहलक- तमाकुल खा लए कक्का, तखन‍ जैहह।
ठाढ़ भऽ गुलटेन भुखनाकेँ कहलक- बौआ, अगुताइल छी, जल्दी दू धूस्सा दहक आ लाबह। बेसी काल नै अँटकब।
एह कक्का, तोहूँ सदिखन अगुताएले रहै छह। तमाकुलो खेबाक छुट्टी नै रहै छह।कहि भुखना चून झाड़ि चुटकीसँ तमाकुल बढ़ौलक। मुँहमे तमाकुल दैते रसगर लगलै। सुआद पाबि गुलटेन बाजल- बड़ टिपगर खैनी खुऔलेँ भुखन। एहेन टिपगर माल कोन दोकानक छिऔ?”
काका की कहबह; दिन आठम एकटा समस्तीपुरक बेपारी साइकिलपर एक बोझ तमाकुल लऽ बेचए आएल रहए। रातिमे अपने ऐठीन रहल। एह काका, भरि राति ओ बेपारी एक हिसाबे जगौनहि‍ रहल। जेहने खिस्सक्कर तेहने महरैया रहए। खाइसँ पहिने महराइ गओलक आ खेलाक बाद एक्केटा तेहन खिस्सा, रजनी-सजनीक, उठौलक जे ओरेबे ने करए। जखन डंडी-तराजू पच्‍छि‍म चलि गेल तखन‍ हमहीं कहलिऐ जे आब छोड़ि दिऔ। बड़ राति भऽ गेल। तखन‍ जा कऽ छोड़लक। भिनसर भेने पोखरि-झाँखरि दि‍ससँ आएल तँ चाह पि‍आ देलिऐ। दलानपरसँ साइकिल निकालि तमाकुल सरिअबए लगल। हमहूँ गिलास धोय चक्कापर रखि एलौं कि जेबीसँ दस टकही निकालि दिअए लगल आकि कहलिऐ- ई की दइ छी।ओ कहलक हम बेपारी छी कोनो अभ्यागत नै, तँए खेनाइक पाइ दइ छी। आब तोंही कहह कक्का ओकरासँ पाइ लेब उचित होइत। की हम सभ अपन बाप-दादाक बनाओल प्रतिष्ठाकेँ भँसा देब? ई तँ बपौती सम्पति छी की ने? एकरा केना आँखिक सोझमे मेटाइत देखब।
थूक फेकि‍ गुलटेन कहलक- एहनो कियो बूड़िबक्की करए। पा भरि खेने हएत कि नै खेने हएत, तइले लोक अपन खानदानक नाक कटा लेत। नीक केलह जे पाइ नै छूलह।
अपन बड़प्पन देखि‍ मुस्की दैत भुखना बाजल- ऐँह कि कइहह काका, ओहो बड़ रगड़ी रहए, कहए लगल जे से केना हएत। हम कि कोनो भुखल-दुखल छी, आकि बेपारी छी। मुदा हमहूँ पाइ नै छुलिऐक। तखन‍ ओ दस-बारहटा पात निकालि कऽ दैत कहलक, जहिना अहाँक अन्न खेलौं तहिना हमहूँ तमाकुल खाइये लए दइ छी। सएह छी।
आगू बढ़ैत गुलटेन बाजल- बौआ, अखन‍ औगुताइल छी। नूनक दुआरे तीमन अनोने रहि जाएत।
थोड़बे हटि कऽ घोघन साहुक दोकान। गुलटेनकेँ देखिते झिंगुर काका कहलखिन- अखन धरि माथमे केश लगले देखै छिअह।
माथ हसोथि कऽ देखैत गुलटेन बाजल- अखन कटबै जोकर कहाँ भेलहेँ। जखन कानपर केश लटकऽ लगत तखन‍ ने कटाएब
बिसरि गेलह। काल्हिये ने बाबूक बरखी छिअह। हमरो चच्चा साहेबकेँ छियनि। दुनू गोटे एक्के दिन ने मरल रहथि‍।
झिंगुर काकाक बात सुनि गुलटेनकेँ धक् दऽ मन पड़ल। बाजल- हँ, ठीके कहलौं काका। आइ जँ अहाँ भेँट नै होइतौं तँ बरखी छुटिये  जाइत।
अखनो किछु नै भेल हेन। जा कऽ कटा आबह। हमर तँ तेहन झमटगर दियाद अछि जे भोरेसँ चारि गोटे लगल अछि मुदा अखनो धरि पार नै लगल हेन।
अखन तँ हमहीं टा घरपर छी। दियादिक तँ सभ कियो अपन-अपन हाल-रोजगारमे चलि गेल। कियो झंझारपुर बेपारीक संग गछकटियामे तँ कियो सुखेतक चिमनीपर ईंटा बनबैमे। अपने केश कटाएब, ओरियान बात करब आ कि ओकरा सभकेँ बजबैले जाएब
असली कर्त्ता तँ तोहीं ने छहक। तोहर कटाएब जरूरी छह। हमरा सभमे तँ पाँच बर्षी धरि सभ दियाद-वाद केशो कटबैट अछि आ कम-सँ-कम एगारह गोटेकेँ खाइयोले दैत अछि। तोरा सेहो एकटा आरो हेतह। खाएन-पीन माने मातृनवमी-पितृपक्ष चलिते अछि। चाचाजीकेँ तीर्थेपर वर्षी पड़ि गेलनि, तँए दोहरा कऽ खुअबैक झंझटे नै रहलनि। मुदा तूँ सभ तँ एकादशीकेँ खुअबै छह तँए तोरा दोहरा कऽ सेहो करए पड़तह। ओना ई सभ मन मानैक बात छी मुदा चलनि‍योँ तँ अपन महत रखैत अछि की ने।
झिंगुर काकाक बात सुनि दोकानदारकेँ गुलटेन कहलक- हओ घोघन साहु, झब दए एक टकाक नून दए।
गमछामे नोन बान्हि गुलटेन लफड़ल घर दि‍स चलल। मनमे पिता नाचए लगलखि‍न। हृदए पसीझि‍ गेलनि। स्मरण भेलनि, बाबू अनका जकाँ नै छलाह। आगू-पाछूक बात जनैत छलाह। जँ से नै जनितथि तँ किएक ने अनके जकाँ हमरो खेत-पथार कीनि‍ देने रहितथि। कोनो कि कमाइ-खटाइ नै छलाह। जँ से नै छलाह तँ कातिक मासमे ओते खरचा कए कऽ भागवत केना करबै छलाह। तइपर सँ भोजो-भनडारा करिते छलाह। हमरे लए कि कम केलनि? घर-गिरहस्तीक सभ लूरि सिखा देलनि। बारहो मासक काज। हम कि कोनो नोकरी करै छी जे सालो भरि कहियो बैसारी नै होइत अछि। कमाइ छी, खाइ छी, ठाठसँ जिनगी बि‍तबै छी। जँ खेते रहैत आ खेती करैबाक लूरिये नै रहैत तँ छुच्‍छे खेते लए कऽ की होइत। गाममे देखबे करै छी खेतबला सबहक दशा। रौदी हुअए कि दाही अछैते खेते हाट-बाजारसँ मोटा उघैत छथि। हमरा तँ घराड़ी छोड़ि एक्को धुर नै अछि। तँए कि ककरोसँ अधलाह जीबै छी। अपन खुशहाल जिनगीपर नजरि अबि‍ते आनन्दसँ हृदए ओलड़ि गेलनि। मरहन्ना धान जकाँ लटुआएल नै, अपन चढ़ल जुआनी जकाँ खेतक आड़िपर ओलड़ल। केना लोक बजैत अछि जे जेकरा अ आ नै लिखए अबैत अछि ओ मुरुख अछि। बाबू तँ औंठे-निशान दऽ कोटासँ मट्टियो तेल आ चिन्नि‍ कोटासँ अनैत छलाह। बड़का-बड़का सर्टियोफिकेटबला सभकेँ देखैत छियनि जे दारु पीब लेताह आ बीच सड़कपर ठाढ़ भऽ अंग्रेजीमे भाषण करैत लोकक रस्ता रोकने रहै छथि। तइमे हजार गुना नीक ने बाबू छलाह। खाइ बेरमे अंगनामे नै रहै छलौं तँ शोर पाड़ि संगे खुअबै छलाह। जहिया कहियो नीक-निकुत अनै छलाह आ थारीमे अन्दाजसँ बेसी बूझि पड़ैत छलनि तँ थारीसँ निकालि माएकेँ दैत छेलखिन नै तँ ओते छोड़ि कऽ उठैत छलाह। आ हा-हा एहेन बाप होएब कि अधलाह छी। जखन काज करए जाइत छलाह तँ संगे नेने जाइ छलाह आ काजक लूरि सिखबै छलाह। काजक लूरि भेल तहन ने बोइन करए लगलौं। हुनकर सालो भरिक हिसाब केहेन छलनि। आसि‍न-कातिक गछपंगियाँ आ खढ़कटिया हुनकेसँ सीखलौं। तहिना अगहन-पूस धनकटिया, नारबन्हिया, दाउन केनाइ, टाल लगौनाइ सीखने छी। किअए एक्को दिन बैसारी रहत। अखनुका छौंड़ा सभ जकाँ नै ने जे कहत काजे ने अछि। रस्तापर बालु उड़ाएब आकि पानि डेंगाएब। मुरूखो रहैत बाबूए ने सिखौलनि जे फागुनसँ जेठ धरि घरहटक समए होइ छै। जेकरा घरहट करैक लूरि रहत वएह ने अपनो घर आ अनको घर बन्हैमे मदति कऽ सकैत अछि। जेकरा लूरिये ने रहतै ओकरा इन्दिरा आवासमे मुखिया, चिमनीबला, सिमटीबला नै ठकतै तँ कि जेकरा अपन घर बनबैक लूरि रहत, ओकरा ठकत? अपनापर गुलटेनकेँ भरोस होइते मनमे खुशी उपकलै। मुँहसँ हँसी निकललै। ओगरवाहीक गाछीक मचकीपर नजरि गेलै। की हमरा सबहक दुनियाँ अछि? बड़क गाछपर सँ बर्ड़ू काटि बरहा बनबै छी। मुठबाँसीक बल्ला, पि‍ढ़िया आ कील बना गाछक डारिमे लटका झुलबो करै छी आ गेबो करै छी। जे चौमासा, छहमासा, बारहमासा मचकीक स्टेजपर होइत अछि ओ बाजा-बूजी आ बैस कऽ गबैमे केना होएत? असकरे कृष्ण राधाक संग कदमक झूलापर चढ़ि नचबो करैत छलाह, बाँसुरियो बजबैत छलाह आ आसो लगबैत छलाह। मुदा अखन तँ देखैत छी जे बाजा कियो बजबैत अछि‍, नाच कियो करैत अछि‍ आ गीत कियो गबैत अछि। तेहने ने देखिनिहारो छथि। कियो कैसियोबलाकेँ देखैत अछि‍ तँ कियो ठेकैताकेँ, कियो नचनिहारक नाच देखैत अछि‍ तँ कियो ओकर कानक झुमकाकेँ। गौनिहारक आबाज सुनैत‍, नै कि ओकर मुँह देखैत अछि
नोनक मोटरी पत्नीकेँ दैत गुलटेन कहलक- बाबूक बरखी काल्हिये छी। बिसरि गेल छलौं। केश कटौने अबै छी। ताबे अहाँ बरखी लए जे चाउर रखने छी ओकरा निकालि रौदमे पसारि दिऔ। राहड़ि सेहो उलबए पड़त। बेरु पहर तीमन-तरकारी आ मसल्ला हाटसँ लऽ आनब। दूध तँ आइये पौरल जाएत। ओना अमहौरपर सँझुको दूध जनमि जाएत।
पतिक बात सुनि मुनिया बजलीह- एहेन अहाँ बिसराह छी जे, सभ काज चौबीसमा घड़ीमे सम्हरत। ने कुटुमकेँ न्‍योंत देलौं आ ने बेटी-जमाइकेँ खबरि देलियनि।
अच्छा सभ हेतै। अनजान-सुनजान महाकल्याण। बाबू कोनो अधरमी रहथि जे कोनो बाधा हएत। उगलाहा सभ देखबो करै छथि आ पारो लगौताह।
कहि गुलटेन केश कटबए विदा भेल। केश कटा बरखीक जानकारी आ सबजना न्योंत दऽ चोट्टे घुरि गेल।
काजमे गुलटेन जेहने होशगर माने लूरिगर तेहने बिसराहो। सभ बुझैत। उजड़ल गाम केना बसत। दरिद्र गाम केना सुभ्यस्त बनत, कलाक प्रदर्शन गुलटेनक काज देखबैत। अनाड़ीकेँ काजक लूरि सिखाएब, हनपटाह गाए-महींस दूहब, डरबुकसँ डरबुक गाएकेँ बहाएब माने साँढ़ लग लऽ जा पाल खुआएब, घोरनोबला आ चुट्टियाहो गाछपर चढ़ि आम तोड़ब, झोंझगर बाँसमे पत्ता तोड़ब, सुरुंगवा शीशो पाङब, सुआगर घर छाड़ब, सक्कत खेत जोतब, पनिगर खेतमे धान रोपब, सांङ्गि‍पर ढेंग उठाएब, दुख‍ताहकेँ खाटपर उठा डॉक्टर ऐठाम लऽ जाएब, फड़काह बच्छाकेँ पटकि नाथब, हर लागएब इत्यादि काज समाजमे ककरो कऽ दैत। केना ने करैत? एकरे तँ अपन बपौती सम्पति बुझैत अछि

वर्षी भोजक चर्चा जनीजातिक माध्यमसँ सगरे गाम पसरि गेल। अपन दायित्व बूझि एका-एकी मरदो आ स्त्रीगणो गुलटेन ऐठाम आबए लागली। जहिना अनका ऐठाम काज भेने गुलटेनो बिनु कहनौं पहुँचि‍ जाइत अछि‍ तहिना समाजोक लोक आबए लगलाह। रवियापर नजरि पड़िते गुलटेन कहलक- रबी, तोरा ऐठाम तँ जाइये लए छलौं। भने आबिये गेलह। बहुत दिन जीबह।
रवि- किअए भैया? अखने फोकचाहावाली काकी अंगनामे बजलीह; तब बुझलौं।
ठीके बुझलहक। बिसरि गेल छलौं। दोकानपर झिंगुर काका मन पाड़ि देलनि। मुदा काज तँ कल्हुका बदला परसू नै हएत।
हमरा बुते जे हेतह तइमे पाछू थोड़े हेबह।
चाउर-दालि तँ घरेमे अछि। तेल-मसल्ला, तरकारी हाटेपर सँ लऽ आनब मुदा पंचकेँ दुइयो कौर दही नै खुऐबनि से नीक हएत?”
सँझुका दूध अपनो रहत आ किसुनोसँ लऽ लेब। कत्ते दूध पौरबहक?”
दू मन चाउर रान्हब। अाधोमन तँ दही चाही।
अाधा मन सँ हेतह?”
अपना सभमे दहिये कत्ते परसल जाइए। गरीब लोक अन्ने बेसी खाइए। दूध-दही आ कि फल-फलहरी खाइयो चाहत से आनत कतएसँ।
हँ, ई तँ ठीके कहलह। हम तँ कहबह जे तरकारियो किअए हाटपर सँ अनबह। अखन तँ सबहक चारपर सजमनि कदीमा आ बाड़ीमे भट्टा अछिये। तइले पाइ किअए खर्च करबह। धड़फड़मे अदौरी बनाओल नै हेतह। बैगन आ अदौरी नै बनेबह से केहेन हएत?”
मन होइए जे बर-बड़ीक ओरियान करी।
तों सनकि गेलह हेन। बर-बड़ीक घाटि कत्ते मेठनियाँ होइए से बुझै छहक।
हँ, से तँ ठीके कहलह।
अखन जाइ छिअह। दहीसँ निचेन भऽ जाह। काल्हि दुपहरमे ने काज हेतह। आकि पुजौनिहारो औथुन।
अपना सभमे कत्ते पुजौनिहारकेँ देखै छहक। जतिया आगू कोनो पतिया लगै छै।
भगिन-पुतोहु दालि दर्ड़ैले अबैत छलि। डेढ़ियापर अबि‍ते गुलटेनपर नजरि पड़ि‍ते मुँह बि‍जकबैत बाजलि- बुढ़हा अपनो मरताह आ दोसरोकेँ जान मारथिन। काल्हि-परसू ई सभ काज होइतै। कहि दालिक मुजेला लऽ जाँत दि‍स बढ़लि।
गोसांइ डुमि‍ते भाए भजनाक संग सिंहेसरी पहुँचल। अपना माथपर पहिरैबला कपड़ा आ अल्लूक मोटरी आ भजनाक माथपर चाउर-दालिक। बिनु छँटले चाउर आ गोटे दालि। आंगन पहुँचि‍ सिंहेसरी कानल नै। माए-बाप लग बेटीक कानब तँ सिनेहक होइत छैक। मुदा सिंहेसरीक मन तखनेसँ लहकल जखने भजना बरखीक चर्चा केलक। मनमे उठै जे अपना खूटापर लघैर महींस अछि, बरखी सन काजमे जँ एक्को कराही दही नै लऽ जाएब से केहेन हएत? ओसारपर मोटरी रखि माएसँ झगड़ा शुरू केलक- ऍंइ गे बुढ़िया, हमरा कोनो आए-उपाए नै यऽ जे, काल्हि बाबाक बरखी छियनि आ आइ तँू अबैले कहलेँ?”
तखने बीच गुलटेन सेहो हाटसँ आबि गेला। माथपर मोटरी रहबे करनि कि मुनिया बाजलि- दाइ, हमर कोन दोख अछि मासे-मास जे छाया करैत एलौं तेकर ठेकाने ने रहल। बापो तेहन बि‍सराह छथुन जे बिसरि गेलखुन। आइये बुझलौं।
माएक जबाब सुनि सिंहेसरीक तामस पिता दिस बढ़ए लगल। मुदा मुँह-झाड़ि बाजब उचित नै बूझि माएकेँ अगुअबैत बाजलि- जाबे बाबा जीबैत छलाह ताबे कत्ते मानै छलाह। आब जखन ओ नै छथि तखन‍ हुनकर किरिया-करम छोड़ि देबनि। एगारहो गोटेक तँ ओरियान कऽ कऽ अबितौं।
बेटी आ पत्नीक बात गुलटेन चुपचाप सुनैत रहल। कखनो मनमे उठै जे गलती हमरे भेल। फेर होइ जे कोनो काज करै काल ने उनटा-पुनटा भेने गल्ती होइत अछि। मुदा हम तँ बिसरि गेल छलौं। सामंजस्य करैत गुलटेन बाजल- पाहुन किअए ने एलखुन?”
सिंहेसरी- से तँू नै बुझै छहक जे नोकरिया-चकरियाक घर छी जे ताला लगा देबै आ विदा भऽ जाएब। दुनू परानी लगल रहै छी तखन‍ तँ एक्को क्षणक छुट्टी नै होइए। ढेनुआर महींसकेँ छोड़ि कऽ दुनू गोरे केना अबितौं।
बेटीक बात सुनि मुनिया बाजलि- घर ओइ घरमे कोन अन्तर अछि। तोरा लिये जेहने ई तेहने उ। अहूठीन तँ दहीक ओरियान भइये रहल हेन। तइले तोरा किअए मनमे दुख होइ छौ। हम तोहर माए छियौ। कोनो आइयेक छिऐ कि सभ दिनेक बिसराह छथुन। तइले तामस किअए होइ छह। मोटरी सभकेँ खोलि-खोलि चीज-बौस ओरिया कऽ राखह। पहिने पएर धोय गोसाँइकेँ गोड़ लगहुन।
पत्नी आ बेटीकेँ शान्त होइत देखि‍ गुलटेन मुस्की दैत बाजल- गाममे जेकर काज हम केने छी ओ कि हम्मर नै करत। कत्ते भारी काजे अछि
घरक गोसाँइकेँ गोड़ लागि सिंहेसरी पिताकेँ गोड़ लगैले बढ़ल कि गुलटेनक आँखि सिमसिमा गेल। सिमसिमाएल मने पुछलक- बुच्ची, कोनो चीजक दुख-तकलीफ तँ ने होइ छह?”
हँसैत सिंहेसरी कहलक- बाबाक बात कान धेने छी। हाथ-पएर लड़बै छी, सुखसँ दिन कटैए।

भोजमे खूब जस गुलटेनकेँ भेल। भरि-दिन एम्हर-दौड़ तँ ओम्हर-ताकमे दुनू परानीकेँ रहल। मुनियाक छाती केराक भालरि जकाँ कँपैत। बिना अन्ने-पानिक भरि दिन खटैत रहलीह। जेना भुख-पियास कतौ पड़ा गेलै। मुदा भोजक जस दुनू परानी गुलटेनकेँ, जहिना ऊसर खेतमे कूश लहलहाइत, तहिना लहलहा देलक। पिताकेँ सिंहेसरी कहलक- सभ काज सम्पन्न भऽ गेल। आब अपनो सभ खा लए।
खेला-पीला उपरान्त गुलटेनक मनमे, सिनेमाक रील जकाँ, नाचए लगल- ठीके ने लोक कहैत छथि जे जेहन करत से तेहन पाओत। जहिना बाबूक मन शुद्ध छलनि तहिना ने हेतनि। आ-हा-हा ओंगरी पकड़ि-पकड़ि घर बन्हैक लूरि सिखौलनि। जीबैक लेल बारहो मासक काज सिखौलनि। मने-मन पिताकेँ गोड़ लगलक।
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