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Monday, April 9, 2012

सुजीत कुमार झा - प्रियंका




गामसँ छुट्टी बितओलाक बाद काठमाण्डूम जा रहल छलौं । बसमे चढ़िते एक युवतीके देखलियै तत्त क्षण मन रोमांचित भऽ उठल मुदा अपनाके सम्हा। रैत सिटपर बसि गेलौं ।
युवती हमरे पाछुमे बैसल छली । बेरबेर हमर मोन ओहि युवती दिश आकृष्टत होइत छल ओकरासँ बात करबाक हेतु । तथापि हम अपन मनके नियन्त्रि तँ कऽ ढल्केसवर, पथलैया, हेटौडा, नारायणगढ़, मुगलिंग पार करैत कतेको स्टेौशन गनैत काठमाण्डू पहुँचलौं ।
काठमाडू बस पड़ावमे पहुँचैतपहुँचैत प्रायः सभ यात्री उतरि गेल छल । मात्र ओ युवती आ हम बाँचि गेल छलौं ।
हम अपन बैंग सम्हाौरि उतरि गेलौं । हमरे पाछापाछा ओ युवती सेहो उतरि गेली । हमर हृदय जोर जोरसँ धड़कऽ लागल कि आब ओ अपन घर चलि जएती । हम हुनकासँ गप्पह करबाक लेल ब्या्कुल छलौं ।
बस पड़ावमे उतैरते पानि टिप टिपाए लागल । हम बैंगमेसँ छत्ता निकालि लेलौं । समिपमे ओ युवती चुपचाप ठाढ छलीह । कखनो ओ बाट दिस तकैत तँ कखनो घड़ी दिस । किछु देरकबाद हम हिम्मोति कऽ हुनका सँ पुछलियैनि अहाँके कतऽ जाइकेँ अछि ?
बिनू बजने ओ हमरा दिस तकली आ फेर अनुहार झूका लेली ।
हम हिचकिचाइत हुनकासँ पुनः पुछलियै, अहाँ कतऽ जेबै ?
ओ हमरा दिस देख कऽ कहलि कतौ नहि ।
हमरा चटकन जेकाँ लागल आ हम मुक रहि गेलौं ।
किछु देरक बाद पानि सेहो जोड़सँ बरिसए लागल छलैं हम छाता निकालि डेरा दिस बिदा भऽ गेलौं ।
तखने पाछुसँ आवाज आएल सुनु तँ ।
हम पलटि कऽ देखलौं ओ स्वोर ओहि युवतीके छल । हम हिम्माति कऽ हुनकासँ कहलियैन कहू ?’
अहाँ कतऽ जेबै ? ’ किछु सकुचाइत लड खडाएल स्वतरमे पुछली ।
कुपण्डो लऽ, ओना अहाँके कतऽ जएबाक अछि ? हम पुछलियैक ।
जी हमरा...कतौ नहि ।
हम तमसाइते कहिलयौ बहुत भारी बात अछि । एखने अहाँ बजओने छलौं आ पुछि रहल छी तँ बताबए नहि चाहैत छी । ठिक छै ई कहि हम पुनः जायकेँ लेल विदा भेलौं । किछु डेग चलल छलौं कि हमरा कानधरि ओ युवतीके सिसकए कऽ अबाज आएल ।
हम पलटि कऽ देखलौं । ओ ओढ़नीमे मुँह नुकाँ कानए लगली ।
हम फेर रुकि गेलौं । आब हमरामे गप्पन करबाक हिम्मलति तँ आबिये गेल छल । अतः हम समिपमे जा कऽ पुछलियैए अहाँ कानि किए रहल छी?”
हमरा पुछलाकबाद ओ आओर जोरसँ कानऽ लगली । हम घवरा गेलौं कि यदि कियो ई सभ देखत तँ पिटाइ अवश्यँ हएत । अतः हुनकासँ कहिलयनि कृपया अहाँ कानव बन्द करु आ बताउ जे अहाँके कतऽ जएबाक अछि । हम एक नोकरीहारा सभ्यह व्यक्ति छी हमरापर विश्वास करु ।
एहिपर ओ वजली, हमरा कोनो घर नहि अछि, हमरा लेल ई शहर अनजान अछि तें.. ।
हम आश्चर्यमे पड़ि गेलौं एक अति सुन्दार, जुआन असगरे युवती आखिर एहि पहाड़क शहर काठमाण्डूजमे की कऽ रहल छैक ? अनेक प्रश्नल मानसपटलपर घुमल । हम कहलियै ओना अहाँ जाए कतऽ चाहैत छी ? ’
एतऽ समिप कोनो होटलमे जा कऽ असगरे कोना विताओलजाऽ सकैत छैक ?
आई अहाँके घरमे रहि सकैत छी... ? यदि अहाँ कही तँ ? ई बात सहजहि कहि सिसकए लगली ।
हनुकर गप्प सुनिकए मनमे गुदगुदी सेहो भेल आ डर सेहो लागि रहल छल हम हुनकर बैंग उठा विदा भेलौं । टैक्सीमे बैसि कुपण्डोलल एलौं । पुरा बाट हम चुप रहलौं ।
घरमे आएलाक बाद ओ चारु दिस देखऽ लगली हम हुनका बैसऽ कहि स्वयं फ्रेस होबऽ बाथरुममे चलि गेलौं ।
किछु देरक बाद घूमिकए एलौं तँ ओ अनचिन्हार युवती पुरा घरकेँ ठिकठाक कऽ देने छल हम मुस्किया कऽ हुनका दिस तकलौं एहिपर ओहो मुस्किुया देली ।
हम पुछलियैकिछ खाएब ?
ओ चुप्पि रहली तँ हम कहलियनि आब चुप्पओ रहलासँ काम नहि चलत। एकरबाद हम स्टोपभपर चाह चढ़ा देलियै आ गामसँ माए बटखर्चाके लेल बगिया देने छल तेकरा दूटा प्लेहटमे धऽ हुनको देलियै आ हमहु लेलौं ।
ओ चुपचाप खाए लगली । एकरा बाद हमरा गप्पस करबाक उत्सुकता भेल, तँ पुछलियै आब अहाँ सत्यच गप कहुँ अहाँ के छी ?
हमर नाम प्रियंका अछि आ हम धनुषा जिल्लाँके रहएवाली छी । हमरा घरमे माए बाबुजीक अतिरिक्तह दूटा छोट भाए आ एक बहिन अछि हम जीवनमे किछु करए चाहैत छी, किछ बनए चाहैत छी परंच हमर गामे ई सम्भइव नहि अछि । बाबुजी हमर विआह गामक लगमे परवाहा गाम छैक ओत्तै करा रहल छलाह । तें हम भागि एलौं ।
हम एस.एल.सी. पास कएने केने छी । हम नाम कायम चाहैत छी, जीवनमे संघर्ष करऽ चाहैत छी । तेँ हेतु एहि राजधानीमे एलौं अछि ... आब तँ किछु कएलाबकाद घूरिकऽ जाएब ।
बसमे एकदम शान्तह सौम्यम बैसलि ओ युवतीक वाक पटुताके देख हम आश्यर्चमे छलौं ।
हम कहलियनिई अहाँ ठिक नहि कएलौं घरक लोक कतेक चिन्तिुत हएत ।
होमए दियै । यदि विआह भऽ जाइत तँ हम कतेक चिन्तिकत रहितौं?’
विआहसँ केहन चिन्ताद? अहाँकेँ अपन घर परिवार रहैत ....
जी नहि, हम असगरे स्वतन्त्रँ रुपसँ किछु करए चाहैत छी ।
की ?
अहाँ चिन्तिनत नहि होउ । हम भोरे चलि जाएब ।
कतए ?
कतौ... नोकरी ताकए ।
नइ अहाँ असगरे नहि जाएब हम अहाँके सँगे चलब । आ केटलीमे सँ चाह छानि दुनू गोटे लऽ लेलौं आ भात चढा़ए देलियैक । चाह पिलाक बाद राति भऽ गेल छलै तेँ बजारसँ तरकारी लाबए लेल हम विदा भेलौं ।

भोजनक बाद हम हुनका घरमे छोड़ि अपने वरण्डापर ओछाइन कऽ सूति रहलौं ।
ओछायनपर सुतिकऽ सोचए लगलौं मन पसंद युवती सेहो विआह करए लेल नहि भेट रहल छल से भगवान प्रियंकाकेँ हमरा लेल पठा देलैथ । सुडौल, पढ़ललिखल, सुन्दभर कनियाँ हो तँ आओर की चाही हम मनेमन योजनामे उलझि गेलौं आ लागल जेना हम हुनकासँ प्रेम करऽ लागल होइ ।
परात भेने प्रियँका तैयार भऽ कए जाए लगली तँ हम कहलियनि, ‘ चलु हम अपन एक परिचितसँ भेंट करबै छी सम्भवतः नोकरी भेटि जाएत ।
हमर योजना छल कि हम हुनका एतै रोकि ली आ हुनका विआह करबाक लेल मना ली । हम प्रियंकाकेँ अपन परिचित मानबहादुरसँ भेट करओलियैन। ओ हिनका देख बड़ खुशी भेल । आ प्रियंका सेहो मानबहादुरक बैभवकेँ देखि अकचका लगली । हमर निवेदनपर मानबहादुर अपन कार्यालयमे नोकरी दऽ देलकैन । आब सभ दिन भोरे हमरे सँग निकलैत छली आ राति हमरे घरमे वितबैत छली । हमरा दुनू गोटेमे एखनो तक दूरी यथावत छल ।
किछु दिन वितलाक बाद हम हुनकासँ हिलमील गेलौं तँ हिम्मीत कऽ हुनका सम्मुलख विआहक प्रस्ताकव रखलियै । ई सुनि ओ अकचका गेली आ किछु नहि बजली ।
सांझखन हम मानवहादुरकेँ कार्यालयमे गेलौं तँ ओ बजली कुपण्डोकल एतसँ दूर पड़ैत छैक तेँ हमरा मानबहादुरजी एतै एकटा घर उपलब्ध करा देलनि अछि ।
यदि एकरा अन्यरथा नहि मानी तँ आइसँ हम एतै रहब ।
हम हृदयक शीशा प्रियंकाक कठोर शब्द रुपी पाथरसँ चकनाचुर भऽ गेल। हम बुझि गेल छलौं की मान बहादुरकेँ बैभव आ प्रियंकाक सुन्द‍रता बीच एक सम्झौरता भऽ गेल छैक । हम घर एलौं बहुत दुःखित छलौं ओहि राति खेवो नहि कएलौं आ भरि राति सोचैत रहलौं जे आब कहियो नहि जाएब हुनका लग करीब एक हप्ता तक हम गेबो नहि कएलौं ।
आठम दिन मोन नहि मानलक तँ हम प्रियंकासँ भेटवाक लेल हुनकर कार्यलय गेलौं । प्रियंका तँ पुरा बदलि गेल छली । जीन्सं आ भेष्टमे ओ एकदम आधुनिक लागि रहल छलि । हुनक अनुहार ताजगी आ आँखिमे सफलताक चमक स्पष्टे देखाइत दैत छल ।
ओ कहली काल्हिक ओ एकटा फिल्म आ निर्मातासँ भेट करए जेती ।
किए ? हम अकचका कऽ पुछलियनि ।
ओ मानबहादुरजीक परिचित फिल्मा निर्माता छथि । ओ हमरा भेटबाक लेल काल्हि समए देने छथि । आब देखब हम किछुए दिनमे सुपरस्टार अभिनेत्री बनि जाएब ।
हम हुनका सम्झाहएबाक प्रयन्त करैत कहलिएनि नहि जाउ बादमे बहुत पछताएब परन्च नहि मानलैथ । हुनकापर तँ सिनेमाक भूत सवार छलनि ।
हम ओतसँ चलि एलौं । समए वितैत गेलैक हमहुँ अपन काममे व्‍यस्‍त भऽ गेलौं ।
अचानक करिब २, ३ वर्षक बाद प्रियंका हमरा राजविराजमे भेटली । हम हुनकर मेकअप आ ड्रेस देखि दंग रहि गेलौं । हम अधिकारसँ पुछलियनि, की छै हालचाल? की अहाँ जे चाहैत छलौं से भेट गेल .... ?
अहिपर ओ नितराइत बजली भेटीयो गेल आ सम्भावतः नहियो...
से कोना ? हम ः पुछलियैन ।
हमरा लग ओ सभ तँ अछि, जे नहि होएबाक चाही । तखन ओ नहि अछि जे होएबाक चाही ।
हम बुझलौं नहि ? ’— हम पुछलियै ।
अहाँक बात शुरुहेमे मानि लेने रहितौं तँ आइ... आत्मह ग्लाानी भरल स्वरमे कहैत रहैथ की तखने समिप एक मारुती आबि रुकल । ओइमेसँ एक युवक उतरि प्रियंकाके समिप आबिकऽ बाजलहाय लभली बहुत प्रतीक्षा करैलौं आइ काल्हिय तँ अहाँ बड़ अनमोल चिज भऽ गेल छी ... तेँ हातक हात विका रहल छी ।
प्रियंका एक नजरि हमरा दिश देखैत ओकरा सँग मारुतीमे बैसि गेली आ हम देखैत रहि गलौं.. ओहि चिजकेँ... ओहि लभलीके.... ।

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