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Sunday, April 8, 2012

सुभद्रा :: जगदीश मण्‍डल


सुभद्रा

सुरूजक कि‍रण अन्‍हारकेँ धकलैत, संघर्ष करैत, पाछू मुँहे ठेलि‍ रहल अछि। जीव-जन्‍तुक गाढ़ नि‍न्न पतराए लगल अछि। चि‍ड़ै-चुनमुन्नी प्रभात बेलाक धुनमे मस्‍त। गाए-महींस ‍ घर-सँ-बाहर होइले डि‍रयाइत। एकाएक कमलनाथक ऐठाम कन्नारोहट शुरू भऽ गेल। गाएक डोरी पकड़ि‍ रवि‍या बाहर करैत छल आकि‍ सुनलक। कानब सुि‍न रवि‍या अकानए लगल आकि‍ गाएक डोरी हाथसँ छूटि‍ गेलै। गाए पड़ा गेल। गाए पकड़ैले रवि‍या पाछू-पाछू दौड़बो करै आ कानबो अकानए। बेहटवाली कलपर पानि‍ भरैले अबैत छलि‍ आकि‍ गाए हुरपेट देलकै। रस्‍ताक कि‍नछेरि‍मे बनल खाधि‍मे गि‍र पड़लि‍। चोट तँ कम्‍मे लगलै मुदा सड़ल थाल-पानि‍ सौंसे देह लागि‍ गेलै। चुट्टीक धारी जकाँ लोक कमलनाथक ऐठाम जाय लगल।
     
एक तँ ब्‍लड-पेसरक रोगी दोसर दुखद समाचार सुनि‍ कमलनाथ दलानक ओसारपर अचेत पड़ल। बेधड़क गि‍रने कमलनाथक अगि‍ला दुनू दाँत टूटि‍ गेलनि‍ जइसँ खून बहए लगलनि‍। जि‍ज्ञासा केनि‍हार हुनके मृत्‍यू बूझि‍ आँखि‍सँ नोरो बहाबए आ नाक लग आंगुर दऽ, छातीपर हाथ दऽ, परेखबो करए। छातीक धुकधुकी आ साँस ठीके रहनि‍। मोतीहारी अस्‍पतालमे डाॅक्‍टर चन्‍द्रकान्‍त कार्यरत रहथि‍‍, ओहो गाम आएल। चन्‍द्रकान्‍त अबि‍ते कमलनाथकेँ देखि‍‍ बीअनि‍ हौंकैले कहि‍, बेटीकेँ कहलखि‍न- बौआ, कने बैग नेने आबह?” बेटी दौगल आंगन गेली। टेबुलपर राखल बैग लऽ दौगल अाएल।‍ आला नि‍कालि‍ चन्‍द्रकान्‍त जाँच कए, एकटा सुइया लगा देलकनि‍। दशे मि‍नटक पछाति‍ कमलनाथ होशमे एला। होशमे अबि‍ते कमलनाथ कानि‍-कानि‍ बाजए लगलाह- अन्‍याय भऽ गेल, जुलुम भऽ गेल। बापरे बाप, एहेन वि‍‍पत्ति‍ ककरो नै दि‍हक। हे भगवान हमरा कोन सन्‍ताप देखैले रखने छह। बजैत-बजैत फेर बेहोश भऽ गेलाह। आंगनमे कमलनाथक पत्नी सुनयना कपार पटकि‍-पटकि‍ फोड़ि‍ अचेत भऽ ओंघराएल। एक्के-दुइये आंगनसँ दरबज्‍जा धरि‍ लोकक करमान लागि‍ गेल। दछि‍‍नबरि‍या घरमे सुभद्रा बताहि‍ जकाँ ओंघरनि‍या दैत छेलीह।
     
अगहनक बि‍आह-पंचमी दि‍न सुभद्राक बि‍आह इंजीनि‍यर बरक संग भेल। दू भाँइक बीच एकटा बेटी रहने कमलनाथ हृदए खोलि‍ बि‍आहमे खर्च केने छल। आगू पढ़ैले जमाइ अमेरि‍का जाइत रहथि‍। हवाइ जहाज दुर्घटना भऽ गेल। यात्रीसँ चालक धरि‍ कि‍यो ने बँचल। वएह खबरि‍ टेलीफोनसँ चारि‍ बजे भोरमे कमलनाथकेँ एलनि‍। से सुनि‍ते प‍रि‍वारमे, जेना पहाड़ टूटि‍ ककरो देहपर गि‍रैत, तहि‍ना भेल। खरचाक सोच नै मुदा सुभद्रा वि‍धवाक जि‍नगी बि‍‍ताओत सोच तेकर। अखन धरि‍ समाजो जेकरा अधलाह बुझैत, अशुभ बुझैत।
     
जेहने सुभद्रा हँसमुख तेहने सुन्नरि‍। जोरसँ बजैत कि‍यो ने सुनने। पढ़बोमे चन्‍सगर। घरक सभ काजक लूरि‍ माएसँ सि‍खने। भोरे उठि‍ फुलडाली धोय फूल तोड़ि‍ नहा कऽ पूजा करैत। सालो भरि‍ जे उपास होइत सभ करैत। पि‍ताकेँ खुऔने बि‍ना सुभद्रा मुँहमे पानि‍यो ने लैत। भगवानकेँ कोसैत नवटोलवाली बाजलि‍- भगवानो नीकेकेँ अधलाह करै छथि‍न। पपि‍याहा सबहक बेरमे सुइत रहताह।‍
     
ओसारक खूटा लागल ठाढ़ भेल सुशील सभ देखैत-सुनैत। कि‍छु काल देखि‍‍ गुम्‍मे अपना ऐठाम वि‍दा भऽ गेल। अपना ऐठाम आबि‍ कोठरीक चौकीपर पड़ि‍ रहल। सुशीलक मनकेँ, जते घटना नै झकझोड़ैत तइसँ बेसी समाजक बेवहार। अखन धरि‍ सुशीलक वि‍चार पढ़ाइ समाप्‍त कऽ राँचि‍एमे नोकरी करैक छल। मुदा औझुका घटना वि‍चारकेँ बदलि‍ देलकनि‍। जहि‍ना भूमकम भेलापर खाधि ढि‍मका बनि‍ जाइत आ ढि‍मका खाधि‍ तहि‍ना। पि‍ता समाज शास्‍त्रक प्रोफेसर रहथि‍न। दू तल्‍ला कोठा राँचीमे बनौने छलाह। दस कट्ठा बाड़ि‍ओ कीनने, जइमे तीमन-तरकारी उपजबैत छलाह। एकाएक शुशीलकेँ गामक आकर्षण आ संकल्‍प जागल, जे कुबेवस्‍थाकेँ मेटौने बि‍ना समाजक नीक नै भऽ सकैत छैक। ‍जेकरे चलैत ढेरो बहि‍न‍ सभ पापि‍नी बनि‍ समाजमे मुँह नुका-नुका जीबैत छथि‍। परीक्षा लग रहने दोसर दि‍न सुशील बससँ राँची वि‍दा भऽ गेल।
     
सुशीलक मन्‍हुआएल मुँह देखि‍‍ माए-पि‍ता सन्न भऽ गेलखि‍न। बि‍ना कि‍छु बजने सुशील दुनू गोटेकें गोड़ लागि‍ नहाइले गेल। माए थारी परोसलक। चि‍न्‍ति‍त भऽ पि‍ता कुर्सीपर बैसल, टेबुलपर केहुनीक बले मुँहपर हाथ दए सोचए लगलाह। नहा कऽ आबि‍ सुशील खाए लगल आकि‍ माए पुछलकनि‍- बौआ, बसमे बेसी झमार भेल जे मुँह सुक्‍खल अछि?
नै‍।‍
तखन‍ मन्‍हुआएल किअ‍ए छी?
आब ऐठाम (राँचीमे) नै रहब। परीक्षा दऽ गाम चल जाएब।‍
     
माए-बेटाक गप-सप्‍प कान पाथि‍ पि‍ता सुनैत। सुशील पढ़ाइसँ कि‍एक वि‍मुख भऽ रहल अछि। एे तारतम्‍यमे प्रोफेसर तरूणक दि‍माग ओझराएल। रंग-बि‍रंगक सवाल-जबाब मनमे उठए लगलनि‍। सि‍र्फ तीन साल अपन नोकरी बँचल अछि। अखन धरि‍क कमाइक मकानेटा अछि। के रहत? अपन इच्‍छा छल जे सुशील एम.ए. कऽ ठाम नोकरी करत। सभ मि‍लि‍ कऽ रहब। सभ वि‍चार धूरा बनि‍ हवामे उड़ि‍या रहल अछि। सुशील नवयुवक अछि जे नि‍र्णए कऽ लेत तइमे पाछू नै हटत। जि‍द्दी तँ ओ शुरूहेसँ रहल। जँ हम दुनू परानी राँचीमे रही आ सुशील गाममे, तखन‍ ककर सेवा के करत? राँचीओक वातावरण जे पहि‍ने छल ओ धीरे-धीरे अधलाह भेल जाइत अछि। सेवा-नि‍वृत्ति‍ भेलापर पेंशन भेटत। पि‍ताजीक देल गाममे बहुत सम्‍पति‍‍ अछि। ऐठामक सभ कि‍छु बेचि‍‍ गामेमे बना लेब। सुशीलोक बि‍आह नै साल तँ आगू साल करबे करब। गामेमे सभ गोटे मि‍लि‍ रहब।
     
सुभद्राक समाचार रूपलाल बाबाक कानमे पड़ल। शरीरसँ असमर्थ बाबा। १९३४ई.क भूमकममे सेवाक इमानदारीक चलैत सभ गाँधीजी कहए लगलनि‍। लोकक बीच बाजब, गोलबन्‍द करब बाबा जहलमे सि‍खलनि‍। आजादीसँ पहि‍ने बकास्‍त सि‍क्कमी जमीनक लड़ाइ लड़ि‍ गरीबक बीच सेहो बँटौलनि‍। जमीन्‍दार सबहक वि‍रोध एे रूपे रूपलाल बाबा केलनि‍ जे सस्‍तेमे बेचि‍-बेचि‍ सभ गामसँ पड़ा गेल। समाजमे ककरोसँ कोनो भेद-भाव नै‍। ने जाति‍-पाति‍ ने छोट-पैघ ने ई धरम-ऊ धरमक पछड़ामे कहि‍यो पड़लाह। सबहक ऐठाम एनाइ-गेनाइ, नीक-बेजाएक गप-सप्‍प करब शुरूहेसँ रहलनि‍। आजादीक उपरान्‍त जखन‍ गाँधीजी गोलीक शि‍कार भेलाह, रूपलाल बाबाक मन टूटि‍ गेलनि‍। अपन जीवन-यापनक लेल समाजसँ सि‍कुड़ि‍ परि‍वारमे समा गेलाह। जवानीक सभ अरमान आ क्रि‍या-कलाप बूढ़ाढ़ीमे चूर-चूर भऽ गेलनि‍।
     
आनर्सक परीक्षा समाप्‍त होइते सुशील गाम चल आएल। बसक झमारसँ भरि‍ दि‍न घरमे सुतले रहल। गामक जानकारी पएबाक लेल सुशील भोरे चाह पीब‍ रूपलाल बाबा ऐठाम गेल। पाकल आम जकाँ जि‍नगीसँ लड़ैत रूपलाल बाबा दलानेपर बैस‍ सुइया-डोरासँ धोती सि‍बैत। एकटा पतरे ठेंगा बगलमे राखल। आँखि‍क ज्‍योति‍ सेहो कमि‍ गेलनि‍। पएर छूबि‍ सुशील गोड़ लगलकनि‍। अनचि‍न्‍हार बूझि‍ बाबा पुछलखि‍न- नै चि‍न्‍हलौं?
वि‍स्‍तारसँ अपन परि‍चए दऽ सुशील आगूमे बैसल। पहि‍लुका सभ वृतान्‍त रूपलाल बाबा कहलखि‍न। जि‍ज्ञासा भरल स्‍वरमे सुशील पुछलकनि‍- ‍समाज कल्‍याणक संबंधमे अपनेक की वि‍चार अछि?”
बौआ, हमर नेता गाँधीजी छलाह। जाबे जीबैत रहलाह आ जे कहथि‍न जान-परान लगा लड़ैत रहलौं। कहि‍ओ पाछू घूमि‍ नै तकलौं। मुदा जखन‍ हुनका गोली लागब सुनलौं मन टूटि‍ गेल। जखन‍ गाँधीजी सन त्‍याग-तपस्‍वी नेता गोलीसँ दागल गेलाह तखन‍ समाजक कल्‍याण केना होएत। पढ़ल-लि‍खल नै छी। हुनकर लि‍खल पोथी जे कीनलौं ओहि‍ना बक्‍सामे राखल अछि। जेकरा हाथमे देशक शासन गेल, अपन सुख-भाेगक खाति‍र, अपना-अपना ढंगसँ गाँधी जीक वि‍चारकेँ व्‍याख्‍या करए लगल। बेइमानी-शैतानी बढ़ैत गेल।‍
बड़ अनुभवक बात बाबा कहलौं।‍
जहलमे बड़का नेता सभ कहथि‍न जे गामक भीतरकेँ सभ कि‍छु गाैआँक थि‍क। ओकरा अधि‍कसँ अधि‍क उपजा गामक वि‍कास करब। छोट-छोट कारोबारक जन्‍म हएत। आमदनी बढ़ैत जेतै। छोट कारोबार पैघ बनैत जाएत। जते पैघ कारोबार होइत जेतै गाम ओते खुशहाल होइत जाएत। छोट-छीन झगड़ा अपनेमे फड़ि‍याएत। सबहक धि‍या-पुता पढ़त-लि‍खत। बा-दारूक जोगार सरकार करतै। स्‍वस्‍थ समाज, स्‍वस्‍थ देशक नि‍र्माण‍ करत। सभ सपना भऽ गेल। हृदए वि‍दीर्ण भऽ गेल। जते दि‍नका दाना-पानी अछि, जीबै छी। सभकेँ सभ जाल बुनि‍ फँसबए चाहैत अछि। शान्‍तक जगह अशान्‍त लए लेलक। प्रेमक जगह कटुता। समाज टूटि‍-टूटि‍ कमजोर बनैत जा रहल अछि
     
जे वि‍चार सुशीलकेँ आइ धरि‍ नै आएल छल ओहि‍क लेल हृदैमे जमीन तैयार हुअए लगल। गुम-सुम्‍म सुशील एक टकसँ रूपलाल बाबा दि‍स‍ देखैत रहल। जहि‍यासँ सुभद्राक संबंधमे बाबा सुनलनि‍ तहि‍यासँ राति‍ कऽ नि‍न्न नै होइन। भादो मास जकाँ सदि‍खन आँखि‍सँ नोर झहैरते रहनि‍। सोगाएल स्‍वरमे सुशील पुछलकनि‍- बाबा जइ वि‍पत्ति‍मे सुभद्रा फँसि‍ गेलि‍, ओइ‍‍सँ उबरबाक कोनो रस्‍ता छै?
हँ अछि। जइ वि‍पत्ति‍क चर्चा केलौं ओ बनौआ छी। ओकरा सुधारल जा सकैत। सुधारलासँ ओइ‍‍ वि‍पत्ति‍क अंत भऽ जेतै।‍
सुधारवाक की रस्‍ता हेतै?
समाजमे सबहक लेल ई वि‍पत्ति‍ नै अछि। किछु जाति‍क बीच अछि। एे लेल नौ-जबानकेँ डेग उठबए पड़त। मेहौता बड़द जकाँ हमहूँ सभ पाछू-पाछू चलब।‍
उत्‍साहि‍त भऽ सुशील पुछल- बाबा ऐ लेल जे करए पड़त करब। अहाँक असि‍रवाद चाही।‍
बौआ, जेना लोक जीबैत अछि तेना हम मरि‍ गेल रहि‍तौं। अस्‍सीसँ उपरे वएस भऽ गेल। दधीचि‍क हड्डी जकाँ जे जरूरति‍ होएत अखनो तैयार छी।
अखन जाइ छी। काल्‍हि‍ खन फेर आएब।‍ कहि‍ सुशील वि‍दा भेल। सुतल जवानी रूपलालमे पुन: जागि‍ गेलनि‍। देहमे नव शक्‍ति‍क संचार हुअए लगलनि‍। थरथर कँपैत शरीर, हाथमे ठेंगा नेने बाबा कमलनाथ ऐठाम वि‍दा भेलाह।
     
सोनपुरवाली दादी चौपारि‍पर सोफ बि‍छा बारहोटा पोता-पोतीकेँ खेलबैत रहथि‍। कोरामे कतेककेँ रखि‍तथि‍। सभ धि‍या-पुता खेलाइत। खेलबैले दादी एकटा छि‍पली आ कड़चीक टुकड़ी रखने। जहाँ कोइ कानए लगैत छल तँ दादी छि‍पली बजा गीत गाबए लगैत। बच्‍चा चुप भऽ दुनू हाथे थोपड़ी बजा दादीक संग गीत गाबए लगैत छल। दादीक लाटमे आनो-आनो गोटे अपना बच्‍चाकेँ आनि‍ खेलबैत। महरैलवाली हँसमुख। सदि‍खन हँसि‍ये कऽ बजैत। मुदा आइ मन्‍हुआएल देखि‍‍ ननौरवाली चुटकी लैत बाजलि‍- दीदी, बड़ मन्‍हुआएल छथि‍, भैया कि‍छु कहलकनि‍?
बि‍‍चहि‍मे कछुबीवाली टपकि‍ कऽ बाजलि‍- भैयाकेँ तँ दीदी खेलौना बनौने छथि‍, ओ की कहथि‍न।‍
कछुबीवालीक बात सुनि‍ महरैलवाली उत्तर देलखि‍न- नै कनि‍याँ, सुभद्रा दाइक दुख मन पड़ि‍ गेलि‍। भरि‍ दि‍न अन्नो ने नीक लगल।‍
सुभद्राक नाओं सुि‍न ठाढ़ीवाली च्‍यू,च्‍यू करैत बाजलि‍- कनि‍याँ, तँू सभ नव-नौतुक छह। नै बुझल हेतह। हमर जे मझि‍ली पुतोहु अछि ओ दोती अछि। पहि‍लुका घरबला जे रहै ओ बौर गेलै।‍
     
कछुबीवाली पुछलक- कतऽ बौर गेलै?
ठाढ़ीवाली उत्तर दैत बाजलि‍- दि‍ल्‍लीमे नोकरी करए गेल, से घूमि‍ कऽ नै आएल। बेटा तँ हमर कुमार रहए। बापक मन दोती लड़कीसँ बि‍आह करबाक नै रहनि‍। मुदा वि‍देसरक मेलामे जे कनि‍याँ देखलौं, देखि‍‍ कऽ मनमे गड़ि‍ गेलि‍। हमरे जोरसँ बि‍आह भेलै। अखन ओकरेपर गि‍रथाइन बनल छी। जेठकी तँ तेहेन‍ अछि जे कहि‍या ने झोटि‍या कऽ बइला देने रहि‍ताए।
     
सोनपुरवाली दादीकेँ सभ बुधि‍यारि‍ आ बेसौउ बुझैत। ओ कहए लागलीह‍- कनि‍या तोरा सभकेँ नै बुझल हेतह। हमर बि‍आह ढेरबामे भेल रहए। दादी जीबि‍ते रहथि‍। ओ दोसर बि‍आहकेँ अधलाह बुझैत। बाबू हमर बड़ वि‍चारक। साल भरि‍क बाद माएकेँ कहलखि‍न- ‍बुच्‍चीक दोसर बि‍आह कऽ देबै। जाबे अपना दुनू गोटे जीबै छी ताबे ने। जखन‍ ‍मरि‍ जाएब तँ ओकर के देखतै। गाममे तँ देखि‍ते छि‍ऐक जे केहेन-केहेन लुच्‍चा-लम्‍पट सभ अछि। खानदानक नाक कटि‍ जाएत। हम सुनलौं तँ बुकौर लागि‍ गेल। माए पोलहा-पोलहा बुझौलक। हम हँ कहि‍ देलि‍ऐक। अखन देखि‍ते छहक जे भगवानक दयासे केहेन फड़ल-फुलाएल परि‍वारमे सुख करै छी। भगवान सभकेँ सुख-भाेग देथुन। ककरो मन कलपै नै‍।
     
रूपलाल बाबाकेँ अबि‍ते देखि‍‍ कमलनाथ आगू बढ़ि‍ बाँहि‍ पकड़ि‍ दुआरपर अनलकनि‍। दुनू आँखि‍सँ कमलनाथकेँ नोर टघरए लगलनि‍। कानि‍-कानि‍ अपन दुखनामा बाबाकेँ सुनबए लगलनि‍। बबोक आँखि‍सँ नोरक टघार गालपर होइत चौकीपर ठोपे-ठोप खसए लगल। कनैत रूपलाल बाबा कमलनाथकेँ कहलखि‍न- कमल, समाज एहेन नाशक रस्‍ता धेने अछि जे ककरो नीक नै हेतैक। आइ तोरा जे भेलह कत्ते दुखद अछि। हमर नेता गाँधी जी कहथि‍न मर्द-औरतक बीच जे वि‍षमता अछि ओकरा मेटबए पड़त। तखन‍ समाज एकरंग बनत। अखनो देखै छी जे मरद तीन-तीनटा बि‍आह करैत अछि मुदा औरत जि‍नगी भरि‍ बैधव्‍य भारसँ कलंकि‍त जरैत रहैत अछि। ने कोइ देखि‍नि‍हार आ ने कोइ ओकरा मनुक्‍ख बुझि‍नि‍हार।‍
भाय, एकर उपाए?
हँ छै। लकीरक फकीर-बनब नीक नै‍। पैघ-पैघ समाज सुधारक समाज सुधारलनि‍। अखनो कि‍छु बाँकी छै। जे हमहीं-तोहीं ने सुधारबै।‍
     
कमलनाथक हृदयमे जे बेथाक पहाड़ बनल अछि आस्‍ते-आस्‍ते पघि‍लए लगल। चेहरामे चमक आ मुँहमे मुस्‍कान आबए लगल। उत्‍साहि‍त भऽ कहलखि‍न- भाय, समाज अहाँकेँ गुरु मानैत छथि‍। जि‍नगीमे ककरो नीक छोड़ि‍ अधलाह नै केलि‍ऐक। हमहूँ अहाँसँ बाहर नै छी। जे कहब मानि‍ लेब।‍
     
कमलनाथक बदलल वि‍चार रूपलाल बाबाकेँ जुआनीक उमंग आनि‍ देलकनि‍। ठहाका मारि‍ दुनू गोटे हँसलाह। गद्-गद् हृदैसँ रूपलाल बाबा बजलाह- कमल, तोरा कोनो तर्दुत नै करए पड़तह। सभ भार हमरा ऊपर। हमहूँ जि‍नगीक अंति‍म घड़ीमे जुआनि‍क कएल कीर्तिकेँ पुन: जोड़ि‍ जीब‍। समाजक बीच ढोलहो दऽ कहबै जे पढ़ल-लि‍खल नौजबान सुशील अछि। देखबोमे भव्‍य, वि‍चारो उत्तम छै। ओकरा संग सुभद्राक बि‍आह होएत।
हँसैत कमलनाथ बाजलाह- सुभद्रा हमरे बेटी नै समाजक थि‍कैक। तँए नीक-अधलाहक भार समाजक ऊपर छै।
उठि‍ कऽ ठाढ़ होइत रूपलाल बाबा बजलाह- कन्‍यादान हम करब‍
     
गाममे फगुआक उमंग जकाँ रंग-अबीर उड़ए लगल। मुरझाएल सुशील एकाएक प्रफुल्‍लि‍त भऽ गेल। जहि‍ना जाड़क मासमे ठंढ़सँ गाछ-बि‍रि‍छ मरनासन्न भऽ जाइत अछि।‍  मुदा वसन्‍तक बयार पबि‍ते लहलहा उठैत अछि‍, तहि‍ना समाजमे भेल।
     
सौंसे गामक लोक ब्रह्मस्‍थानमे जमा भेलाह। की मरद, की औरत, की बूढ़, की बच्‍चा सभमे खुशीक आनंद। समाजक बीच सुशील-सुभद्राक बि‍आह परस्‍पर माला पहि‍रा सम्‍पन्न भेल।
लोक नारा लगबए लगल- रूपलाल बाबा- अमर रहे‍-२
वि‍धवा बि‍आह- अमर रहे२‍

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