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Saturday, April 7, 2012

मायराम :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


अमावास्‍याक राति‍, बारहसँ ऊपर भऽ गेल मुदा एक नै बाजल। डंडी-तराजू माथसँ नि‍च्‍चाँ उतरि‍‍ गेल। सन-सन करैत अन्‍हार। नओ बजेमे नि‍न्न पड़ैवाली मायरामकेँ आँखि‍क नीन नि‍पत्ता! कछमछ करैत ओछाइनपर एक करसँ दोसर कर उनटैत-पुनटैत, अकछि‍ केबार खोलि‍ बाहर नि‍कललीह तँ काजर घोराएल राति‍मे अपनो हाथ-पएर नै सुझन्‍हि‍। जहि‍ना करि‍छौंह दुनि‍याँ आँखि‍सँ नै देखथि‍ तहि‍ना दसो दुआरि‍ बन्न मन खलि‍आएल बूझि‍ पड़लनि‍। पुन: घुरि‍ कऽ ओछाइनपर आबि‍ आेंघरा गेलीह! दि‍न-राति‍क बोध-बि‍हि‍न मन तड़पि‍ उठलनि‍-
नैहर!”

पहि‍ल सन्‍तान भेलोपरान्‍त सुदामा (मायराम) बाइसे बर्खमे वि‍धवा भऽ गेलीह। गत्र-गत्रसँ जुआनी, फुलझड़ीक लुत्ती जकाँ, छि‍टकैत! ओना सरकारी रजि‍ष्टरमे जुआन भऽ गेल छलीह मुदा बत्तीसीक अंति‍म दाना नै उगल रहनि‍। साँपक बीखसँ करि‍आएल देह देखि‍ अपनो मरनासन भऽ गेलीह। पथराएल आँखि‍ टक-टक टकैत मुदा अन्‍हारसँ अन्‍हराएल। बगलमे डेढ़ बर्खक बेटा उठैत-खसैत अंगना-घर घुमैत-फि‍ड़ैत। तइ बीच हहाएल-फुहाएल शंकरदेव (भाय) आँखि‍मे यमुनाक धार नेने पहुँचलाह। बहि‍न-बहि‍नोइक रूप देखि‍ अपन आँखि‍क नोर पोछि‍ भागि‍नकेँ उठा छाती सटा, बहि‍न (सुदामा)केँ कहलखि‍न-
बुच्‍ची होश करू। दुनि‍याँक यएह खेल छि‍ऐ। अहीं जकाँ नानि‍योँकेँ भेल रहनि‍। मुदा आइ केहेन भरल-पूरल्‍ा परि‍वार छन्‍हि‍। एक ने एक दि‍न, ओहि‍ना अहूँक परि‍वार दुनि‍याँक फुलवाड़ीमे फुलाएल।
शंकरदेवक बात सुनि‍ सुदामाक आँखि‍ खुजल मुदा बकार नै फुटलनि‍। मुदा नर-नारीक करेजो तँ दू धारक दू माइटि‍क सदृश होइत बहि‍नोइक जरबैक ओरि‍यानमे आंगनसँ नि‍कलि‍ शंकर समाज दि‍स बढ़लाह।
पनरहम दि‍न बहि‍नकेँ संग नेने अपना गाम वि‍दा भेलाह। गामक सीमानपर अबि‍ते गाममे कन्नारोहट शुरू भेल। बच्‍चासँ बूढ़‍ धरि‍ सुदामाकेँ छाती लगबए आगू बढ़ल। बेचारी नि‍सहाय भेल पड़ल। जहि‍ना चोंगरा परक घर खसैत, तहि‍ना। मुदा ताधरि‍ गामक धरोहि‍क अगि‍ला अंक पहुँचि‍ गेल। एक्के-दुइये ढेरो छाती सुदामाक छातीमे सटि‍, चारू दि‍ससँ पकड़ि‍ टोल दि‍स बढ़ल। सुदामाक मनमे उठलनि‍ जँ अपने कानब तँ समाजक कानब केना सुनबै। से नै तँ समाजेक कानब सूनि‍‍ जे आगूक जि‍नगी केना जीब। बीच आंगनमे माय ओंघरनि‍या दैत आ दरबज्‍जापर पि‍ता भुइयेँमे पेटकान देने! अपन-अपन अथाह समुद्रमे सभ डूमल। के केकर नोर पोछत! पएर भतीजी धाेय गाराजोरी केने आंगन बढ़लि‍। दुरखापर पएर दैतै सुदामाक रूदनसँ नि‍कलल- हे मइया...।

जहि‍ना धड़सँ कटल अंग छटपटाइत तहि‍ना कामि‍नीक (माए) मन छटपटाइत-छटपटाइत मनमे प्रश्नपर प्रश्न उठए लगलनि‍। मुदा कोनो प्रश्नक सोझ रास्‍ता नै देखि‍ काँटक ओझरी जकाँ मन ओझराए लगलनि‍। एक ओझरी छोड़बथि‍ बीचेमे दोसर लगि‍ जाइन।
.....कि‍‍ आगूक जि‍नगीक लेल बेटीकेँ दोसर बि‍आह कऽ देब। फेर उनटि‍, जि‍नगीक लेल सहचर तँ आवश्यक अछि‍?
.....कि‍ सहचरक लेल पति‍ आवश्यक अछि‍?
मुदा जते असानीसँ गुंथी खोलए चाहथि‍ ओते असानीसँ खुजबे ने करनि‍। तइ बीच दोसर प्रश्न अकुँरि‍ जाइन।
.....बेटीक संग नाति‍यो अछि‍। जँ बेटी दोसर घरकेँ अपन घर बनाओत तँ नाति‍क.....?
पुत्र हत्‍याक पाप केकर कपार चढ़त? कि‍ कुत्ता जकाँ पछि‍लग्‍गू एहेन सुकुमार फुलकेँ बना देब। अखन ओ दूधमुँह अछि‍, कि‍ बुझत? अपन भूमि‍ आ आनक भूमि‍क मरजादा एक्के रँग होइत। कि‍ दोसरो घरमे ओहने ममता माइक भेटतै? मनुक्‍खेक क्रि‍या-कलाप ने कुल-खनदानक जड़ि‍मे पानि‍ ढारैत अछि‍। घुरि‍याएल मनकेँ राह भेटलनि‍। सुफल नारी जि‍नगी तँ वएह ने छी जेकरा आँचरक लाल मातृत्‍व प्रदान करैत अछि‍। जइसँ वीणाक झंकृत मधुर स्‍वर हृदैकेँ कम्‍पि‍त करैत अछि‍। से तँ भेटि‍ये गेल छै। मुदा जहि‍ना ठनकैत अकाससँ ठनका खसैत तहि‍ना मनमे खसलनि‍-
मुदा समाज?
कि‍ मनुख-पोनगैक स्‍थि‍ति‍ समाजमे जीवि‍त अछि‍।

सुदामाक सम्‍पन्न पि‍तृ परि‍वार। अदौसँ श्रम-संस्‍कृति‍क बीच पुष्‍पि‍त-पल्‍लवि‍त परि‍वार। जइसँ रग-रगमे समाएल अपन संस्‍कृति‍। ओना सम्‍पन्नताक सीमा असीमि‍त अछि‍ मुदा अपन आँट-पेट देखि‍ अपन (परि‍वार) जि‍नगीक स्‍तर बना चलब सम्‍पन्नताक अनेको कारणमे एक प्रमुख छी। तँए सम्‍पन्न परि‍वार। ओना आर्थिक दृष्‍टि‍ये सुदामाक बि‍आह दब परि‍वारमे भेल छलनि‍ मुदा बेवहारि‍क दृष्‍टि‍ये बराबरीमे छलनि‍। कम रहि‍तो गोरहा खेत छलनि‍ जइसँ खाइ-पीबैक कोताही नै। कि‍छु आगूओ बढ़ि‍ ससरैत। सालक तेरहम मासमे घरक कोठी-भरली झाड़ि‍ इजोरि‍या दुति‍यासँ भागवत कथाक संग हरि‍वंश कथा सुनि‍, भोज-भनडारा कऽ सामा-चकेवा जकाँ आगू दि‍स बढ़ैत।
बेटाक पालन आ धरमक काज देखि‍ अपनो गाम आ चौबगलि‍यो गामक लोक सुदामक नाओं मायराम रखि‍ देलकनि‍। बच्‍चासँ बूढ़ धरि‍ माइयेराम कहए लगलनि‍।

सुदामाक पि‍ता रवि‍शंकर परि‍वारमे चूल्हि‍ नै पजड़ल। जखन सुदामा आइलि‍ तखन जे कन्नारोहट शुरू भेल, से भरि‍ दि‍न होइते रहि‍ गेल। कखनो बेसी तँ कखनो कम। चूल्हि‍ नै पजड़ने टोल-पड़ोसक परि‍वारसँ थारी-थारी भात-दालि‍ एते आएल जे राति‍ धरि‍ चलैत रहल।
सायंकाल रवि‍शंकर, आंगन ओसरपर बैस, सुदामाक भावी जि‍नगीक लेल पत्नि‍यो आ बेटो-पुतोहुकेँ बैसाए वि‍चार करए लगलाह। वि‍चारोत्तर ि‍नर्णए भेल जे काल्हि‍ये शंकरदेव ओइठाम-सुदामाक सासुर- जा खेती-गि‍रहस्‍ती ताधरि‍ सम्‍हारथि‍ जाधरि‍ बच्‍चा-सुदामाक बेटा जुआन नै भऽ जाए। संग-इहो भेल जे छअ मास सुदामा सासुर आ छअ मास नैहरमे रहत।
अठारह बर्ख पुरि‍ते राहुलक बि‍आह भऽ गेल। नव परि‍वार बनि‍ ठाढ़ भेल। शंकरदेव अपना ऐठाम चलि‍ एलाह।
तीन साल बाद पि‍ता रवि‍शंकर आ पाँच साल बाद माए शंकरदेवक मरि‍ गेलनि‍। मुदा दुनूठामक परि‍वारमे कोनो कमी नै रहल। हवाइ-जहाज जकाँ तेज गति‍ये तँ नै मुदा असथि‍र सवारी-टायरगाड़ी जकाँ परि‍वार आगू मुँहे ससरए लगल।
मायरामक प्रति‍ समाजक नजरि‍या सेहो बदलल। समाजक आन वि‍धवा जकाँ नै, जे कि‍यो अशुभ बूझि‍ कनछी कटैत तँ कि‍यो पशुवत बेवहार लेल मरड़ाइत।
तीर्थस्‍थान जकाँ मायरामक परि‍वार बनि‍ गेलनि‍। साले-साल भागवत कथाक संग हरि‍वंश कथा आ भोज-भनडारा कऽ समाजकेँ खुआ सालक वि‍सर्जन मायराम करए लगलीह।
पाँच बर्ख पछाति‍ मायरामक भरल-पुरल नैहर-शंकरदेवक परि‍वार- कोशीक कटनि‍यासँ धार बनि‍ गेल। गामक बीचो-बीच सनमुख धार बहए लगल।
घटनो अजीब घटल। चारि‍ बजे करीब बाढ़ि‍क हल्‍ला गाममे भेल। कि‍रि‍ण डुबैत-डुबैत धारक कटनि‍या शुरू भेल। गामक सभ बाध नदि‍या गेल। उत्तरसँ दछि‍न मुँहे बहए लगल। बाढ़ि‍क बि‍कराल रूप देखि‍ गामक लोक माल-जाल, बक्‍सा-पेटीक संग ऊँचगर-ऊँचगर जमीनपर पहुँचल। नट-बक्‍खो जकाँ नव बास बनि‍ गेल।

लोकसभ बाढ़िक गूंगूआहट सुनि‍-सुनि‍ सभ कि‍छु बि‍सरि‍ परान बचबैक बात सोचए लगल। चारू कात बाढ़ि‍ पसरल। जइसँ इहो डर होइत जे जँ कहीं अहूपर पानि‍ चढ़त तखन कि‍ हएत? अन्‍हरि‍या राति‍, हाथ-हाथ नै सुझैत। जीवन-मरनक मचकीपर सभ झुलए लगल। भूख-पि‍यास मेटा गेल। जहि‍ना दुखि‍त नव बि‍‍आएल गाए-महीस व्‍यथि‍त आँखि‍ये बच्‍चाकेँ देखैत रहैत अछि‍ तहि‍ना सभ माए-बापक आँखि‍ बाल-बच्‍चापर। मुदा मनुख तँ मनुख छी नहि‍ कि‍ जानवर। जेना जानवर हरि‍अर घास देखि‍ बच्‍चो आगूक लुझि‍ कऽ खा लैत अछि‍ तेना मनुक्‍खो करत? बाल-बच्‍चाक लेल तँ मनुक्‍ख अपन खूनकेँ पानि‍ बनबैत, अपन सुआदकेँ छोलनी धि‍पा दगैत, अपन मनोरथ बच्‍चामे देखैत अछि‍। अपन जि‍नगीकेँ बलि‍वेदीमे आहूत दैत अछि‍।

भोरहरबामे हल्‍ला भेल जे बीस नमरी पुल कटि‍ कऽ दहा गेल। पुलक समाचार सुनि‍ सबहक छाती डोलए लगल। पूव दि‍सक रास्‍ता बन्न भऽ गेल। कि‍छुए काल पछाति‍ पुन: हल्‍ला भेल जे बेटा संग रोगही पानि‍मे डुमि‍‍ गेल। कि‍छु काल धरि‍ तँ हल्‍लामे बाते नै फुटैत मुदा तोड़मारि‍ हल्‍लामे वि‍हि‍आि‍त-वि‍हि‍आति‍ समाचार वि‍हि‍आ गेल। भासि‍ कऽ कते दूर गेल हएत तेकर ठेकान नै तँए कि‍यो आगू बढ़ैक हूबे ने केलक। जहि‍ना एक टाँग टुटने गनगुआरि‍ नै नेङराइत तहि‍ना एक गोटे मुइने समाज थोड़े नेङराएत। सभ दि‍न होइत एलै आ होइत रहतै।
हल्‍ला शान्‍त होइते शंकरदेव पत्नीकेँ कहलखि‍न-
आब जान नै बँचत।
पत्नी- एते अन्‍हारमे कतए जाएब। भने ऐठाम छी।
पति‍- जँ अहूपर बाढ़ि‍ चढ़ि‍ जाएत?
सभ तूर संगे कोसीमे डुमि‍‍ जाएब। कि‍यो बँचब तखन ने दुख हएत। जँ दुख केनि‍हारे नै रहब तँ दुख केकरा हएत।

पौरकी घुटकल। आन-आन चि‍ड़ै सुतले रहए। पौरूकी आवाज सुनि‍ शंकरदेवक, दुभीक नव मुड़ी जकाँ, मनमे नव चेतना जगलनि‍। बजलाह-
भि‍नसर होइमे देरी नै अछि‍। जँए एते काल तँए कनी काल आरो। दि‍न-देखार तँ असगरो लोक अमेरिका‍ चलि‍ जाइए। अपना सभ तँ बाधक थोड़े रास्‍ता काटब।

कि‍रि‍ण उगैसँ पहि‍नहि‍ ऊँचकापर पानि‍ चढ़ए लगल। चढ़ैत पानि‍ देखि‍ हरवि‍र्ड़ो भेल। गाए-महीस, बक्‍सा-पेटी छोड़ि‍ सभ अपन जान बँचबए वि‍दा भेल। जहि‍ना वैरागी दुनि‍याँकेँ मायाजाल मानि‍, छोड़ि‍, आत्‍मचि‍न्‍तनमे लगि‍ जाइत तहि‍ना माल-असबाव छोड़ि‍ सभ वि‍दा भेल। तही बीच बाँसक झोंझमे मैनाक झौहरि‍ भेल। जना केकरो वोनबि‍लाड़ि‍ पकड़ि‍ नेने होउ, तहि‍ना।
पूब दि‍स फीक्का गुलावी जकाँ अकासमे पसरए लगल। मुदा बि‍लटैत जि‍नगी आ डुबैत सम्‍पत्तिक‍ सोग अन्‍हारकेँ आरो बढ़बैत। सुखल जमीनपर पहुँचते छोट-छीन आशा शंकरदेवक मनमे जगलनि‍। मुदा चारू बच्‍चो आ पत्नि‍योक मनमे दुधाएल चाटल दानाक खखरी जकाँ। बेर-बेर शंका खेहारैत जे हो-न-हो फेर ने आगूएसँ बाढ़ि‍ चलि‍ आबए। मि‍रमि‍रा कऽ पत्नी शंकरदेवकेँ कहलनि‍-
एते लोकक गाममे एक्कोटा संगी नै देखि‍ रहल छी।
सभ अपने जान बँचबै पाछू अछि‍ तखन के केकरा देखत।
जाबे लोक, भरल-पूरल रहैए ताबे दुनि‍याँ हरि‍अर बूझि‍ पड़ै छै। मुदा......।
हँ, से तँ होइते छै। मुदा......।
हँ इहो होइ छै। अखन माए जीबैए, कतए बौआएब। बच्‍चो सबहक मात्रि‍के भेल, अपनो नैहरे भेल आ अहूँक सासुरे।
पत्नीक बात सुनि‍ शंकरदेव गुम भऽ गेलाह। मनमे चूल्हि‍पर खौलैत पानि‍ जकाँ वि‍चार तर-ऊपर हुअ लगलनि‍। बजलाह-
कहलौं तँ बड़बढ़ि‍याँ। मुदा सासुरसँ नीक बहि‍न ऐठाम हएत।
केना?
जइ दि‍न वेचारि‍क ऊपर वि‍पत्ति‍ आएल छलै तइ दि‍न यएह देह अपन घर-परि‍वार छोड़ि‍ ठाढ़ भेल छलै। आइ कि‍ हमरे गाम-घर मेटा रहल अछि‍ आकि‍ ओकरो नैहर।
अहाँकेँ जे वि‍चार हुअए।
वि‍चारे नै, वि‍पत्ति‍मे लोकक बुइध‍ हरा जाइ छै। जइसँ नीक-अधलाक वि‍चार नै कऽ पबैत अछि‍। मुदा अहीं कहूँ जे सासुरमे कान्‍हपर कोदारि‍ लऽ कऽ खेत-पथार जाएब से केहेन हएत। अपन जे दुरगति‍ हएत से तँ हेबे करत मुदा दुनू परि‍वारक-सासुर-नैहर- की गति‍ हएत।

बाढ़ि‍क समाचार इलाकामे पसरि‍ गेल। मायरामक कानमे सेहो पड़लनि‍। भाय-भौजाइक आशा-बाट तकैत मायराम बेटा राहुलकेँ संग केने आगू बढ़लीह। मुदा कि‍छु दूर बढ़लापर सोगसँ पथराएल पएर उठबे ने करनि‍। बाटक बगलक गाछक नि‍च्‍चाँ बैस बेटाकेँ कहलखि‍न-
बौआ, पएर तँ उठबे ने करैए। केना आगू जाएब? ता तूँ आगू बढ़ि‍ कऽ देखहक।

छबो तूर शंकरदेव ऐ आशासँ झटकल अबैत जे जते जल्‍दी पहुँचब ओते जल्‍दी बच्‍चा सभकेँ अन्न-पानि‍सँ भेँट हेतै। रतुको सभ भुखले अछि‍। तइ बीच राहुलक नजरि‍ मामपर आ मामक नजरि‍ भागि‍नपर पड़ल। नजरि‍ पड़ि‍ते राहुल दौग कऽ ठाढ़े मामाकेँ गोड़ लागि‍ मामीक कोराक बच्‍चाकेँ लऽ बाजल-
माइयो अबैए मुदा डेगे ने उठै छलै। आगूमे बैसल अछि‍।
राहुलक बात सुनि‍ मामी बच्‍चा सभकेँ कहलखि‍न-
भैयाकेँ गोड़ लगहुन।
बच्‍चाकेँ कोरामे नेने आगू-आगू आ पाछू-पाछू सभ कि‍यो वि‍दा भेला। सभसँ पाछू शंकरदेव अपने। मन पड़लनि‍ रतुका दृश्‍य। केना छनमे छनाक भऽ गेल! जि‍नगी भरि‍क जोड़ि‍आएल घरक वस्‍तु-जात आगि‍ लगने आकि‍ बाढ़ि‍ एने केना लगले नास भऽ जाइ छै। मान-प्रति‍ष्‍ठा, गुण-अवगुण, केना छनेमे कतएसँ कतए चलि‍ जाइ छै। ठीके लोक बजैए जे दि‍न धराबे तीन नाम। अपने छी जे एक दि‍न बहि‍नक रक्षक बनि‍ ऐ गाममे छलौं आ आइ......। एक दि‍न गाड़ीपर नाह आ एक दि‍न नाहपर गाड़ी। माटि‍-पानि‍क खेल छी। गंगा-यमुनाक बीच कतौ माटि‍ओ छै अाकि‍ पानि‍ये-पानि‍ छै!
कि‍छु फरि‍क्केसँ भाय-भौजाइकेँ अबैत देखि‍ मायरामक मन ओइ धरतीपर पहुँचि‍ गेलनि‍ जे सात समुद्रक बीच अछि‍। एक ओद्रक रहि‍तो एक भि‍खारी दोसर राजा! परोपट्टाक लोक सि‍नेहसँ मायराम कहै छथि‍ मुदा भैयाकेँ कि‍ कहतनि‍? कि‍ भैयाक कर्म वि‍गड़ल छन्‍हि‍? एक परि‍वारक बचाैल कर्म छन्‍हि‍। चान, सुरूज, धरती, ग्रह-नक्षत्र इत्‍यादि‍ तँ अपना गति‍ये करोड़ो बर्खसँ नि‍यमि‍त चलि‍ रहल अछि‍ आ चलैत रहत, कि‍ मनुक्‍खोक गति‍ ओहन भऽ सकैए? आकि‍ चाने-सुरूज जकाँ मनुक्‍खोक चलैक एकबटि‍ये अछि‍? ब्रह्मक अंश जीव‍ रहि‍तो कि‍ फुलझड़ीक लुत्ती जकाँ नै अछि‍? जतए जेहेन जलवायु ततए तेहेन उपजा-बाड़ी! जँ कतौ वायु प्राणक रूपमे घट-घटकेँ आगू बढ़ैक प्रेरणा दैत तँ वएह वि‍षाक्‍त बनि‍ प्राण नै लैत?
गोलाक चोटसँ जहि‍ना पोखरि‍क पानि‍मे हि‍लकोर उठैत आ आस्‍ते-आस्‍ते असथि‍र होइत चि‍क्कन आंगन जकाँ सहीट बनि‍ जाइत तहि‍ना मायरामक मन सहीट भऽ गेलनि‍। मुदा लगले नजरि‍ उड़ि‍ भतीजीपर गेलनि‍। भतीजीपर पहुँचते मन तड़पए लगलनि‍। बाप रे बाप, एहेन दुरकालमे भैया केना इज्‍जत बचौता। अपनो लग जमा कि‍छु तँ नहि‍ये अछि‍ साले-साल हि‍साव फरि‍या लइ छी। हे भगवान जँ केकरो दुखे दइ छि‍ऐ आकि‍ सुखे दइ छि‍ऐ तँ तुलसी पात आकि‍ दुबि‍क मुड़ी जकाँ खोंटि‍-खाेंटि‍ कि‍अए ने दइ छि‍ऐ जे गुलाब-गेन्‍दा तोड़ि‍ये कऽ दऽ दइ छि‍ऐ? लगले नजरि‍ मायराम छि‍पा जकाँ छि‍हलि‍ अपन मातृत्‍वपर पहुँचि‍ गेलनि‍। केना बेटाकेँ पोसि‍-पालि‍ ठाढ़ केलौं आ ई सभ.........। लुधकी लागल एकटा गाछ फड़बे करत तइसँ गामक सबहक मुँहमे थोड़े जाएत। जते मनुख अछि‍ ओकरा तँ धरतीसँ अकास धरि‍ चाहि‍ये। तखन ने जीबैक आजादी भेटतै। मुदा लगले जहि‍ना पानि‍ ठंढ़ेने बरफक रूप लि‍अए लगैत तहि‍ना दूधसँ उपजैत दही जकाँ मायरामक मन सकताए लगलनि‍। साँस सुषुमा गेलनि‍। मनमे खौललनि‍- नैहर मेटा गेल तँए कि‍ सासुरो मेटा गेल। जहि‍ना भैया नैहरमे भैया छलाह तहि‍ना अहूठाम भैया रहताह। भगवान अपन कोखि‍ अगते लऽ लेलनि‍ तँए कि‍ ओकरा-भतीजी- अपन कोखि‍क नै बुझबै। ऐठाम जे अछि‍ ओ कि‍ भैयाक नै छि‍यनि‍? खेत-पथार, घर-दुआरि‍ चलि‍ गेलनि‍ आकि‍ हाथो-पएर चलि‍ गेलनि‍?

गुमे-गुम, जहि‍ना मृत्‍युक अवसरपर गुम भऽ स्‍मरण कऽ नि‍राकरणक बाट जोहल जाइत, तहि‍ना सभ घरपर पहुँचलाह। ताधरि‍ पुतोहु-रोहि‍तक पत्नी- हाँइ-हाँइ कऽ खि‍चैड़ आ अल्‍लूक सन्ना बना, बाट तकैत रहथि‍। सबहक आँखि‍ सभ दि‍स हुलैक-हुलैक बौआइत। तइ बीच राहुलक कोरक छोटका बच्‍चा, घर देखि‍ते, बाजल-
दीदी, बड़ भूख लागल अछि‍?
बच्‍चाक बात सुनि‍ मायरामक भक्क टुटलनि‍। अनायास मन पड़लनि‍ बटोहीकेँ जहि‍ना इनारपर ठाढ़े-ठाढ़ पानि‍ पि‍औल जाइत तहि‍ना ने अखन इहो सभ छथि‍। नहाय-धोयमे अनेरे देरी ि‍कअए लगाएब। बजलीह-
कनि‍याँ, भरि‍ राति‍क थाकल-ठेहि‍याएल सभ छथि‍ तँए पहि‍ने कि‍छु खुआ कऽ आराम करए दि‍अनु। गप-सप्‍प पछाइतो‍ हेतै। भोजन बादेक आराम तँ सोग कम करैक उपाए छी।

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