Pages

Monday, April 9, 2012

श्यामल सुमन - अर्थात लोकतंत्रीय मुक्ति



तीन दिन पूर्व अपन निकटतम मित्र घनश्याम बाबू केर दुर्घटनामे मृत्यु भेलाक पश्चात आइ गजानन बाबू चौपालमे बैसल उदास रहथि। योग्य रहलाक बादो एक प्राइवेट स्कूल मेकम वेतनपर नौकरी करब घनश्याम बाबूक विवशता छल कियैक तँ घरमे वृद्ध माता, पत्नी, विआहक योग्य पुत्रीक अतिरिक्त शिक्षारत पुत्रक भरण पोषणक भार हुनके कमायपर। आइ पूरा परिवारे बेसहारा भऽ गेल। एहेन घटना तँ ककरो वास्ते दुखद होइते छैक लेकिन गजानन बाबूक दुख ताहिसँ बेसी बुझना जाइत अछि। जखन चौपालक लोक सभ आग्रह करैत खोदि खोदि पुछलखिन्ह, तकर बाद पता चलल हुनक दुखक असली कारण।
दुर्घटनाक बाद घाइल घनश्याम बाबूकेँ अस्पताल आनल गेल आ डाक्टर देखतहि मृतघोषित कऽ देलक। पुत्रक बाहर रहबाक कारणेँ अंतिम संस्कार तत्काल सम्भव नहि छल। गजानन बाबू आर लोक सभसँ विचार कऽ लाशकेँ शीत गृहमे रखबाक प्रबंध करयलगलाह। लेकिन सरकारी अस्पताल सीधा-सीधी बिना घूस कऽ एको डेग चलब मुश्किल। शीत-गृहक कर्मचारी बाजल - "जगह नहीं है"। गजानन बाबू स्थितिसँ उत्पन्न सम्वेदना देखबैत, अपन सभ ज्ञान, अनुभव लगाकए थाकि गेलाह किन्तु शीत-गृह कर्मी अपन राग बजबैत रहल जे - "जगह नहीं है"। गजानन बाबू परेशन छलाह। ताबत सरकारी तंत्र कमौन संकेत बुझनिहार एक नवयुवक आबि कर्मचारीक हाथमे एकटा नमरी थमबैत कहलखिन्ह - "अब तो जगह है न"? तत्काले जगह भेट गेल। लाश राखल गेल। काजभेलाक पश्चातो गजानन बाबू दुखी छलाह।
अगिला दिन पुत्रक आगमनक बाद पोस्टमार्टमक तैयारी होमए लागल। अस्पताल मेएम्बुलेन्सक सुविधा सेहो छल। जहिना आजुक समएमे सरकारी गाड़ीसँ सरकारक काज छोड़ि शेष सभ काज होइत अछि तहिना अस्पतालक प्रबंधककेँ घरमे प्रबंध करवाक हेतुएम्बुलेन्सक सार्थक उपयोग भऽ रहल छल। प्रबंधकक नामपर अपन घरक प्रबंध करवा मे ड्राइवर साहेब सेहो संकोच नहि करथि। एम्बुलेन्सक कारणे देरी होमए लाग। एम्बुलेन्स आएल आओर ड्राइवर साहेब आबतहि बजलाह - " अभी हम तुरत आये हैं, एक घण्टे के बाद दूसरे शिफ्ट का आदमी जायगा"। एतबा सुनतहि फेर शीत-गृहमे काज आयल वोयोग्य आधुनिक युवक अपन चमत्कार देखौलन्हि। पचास टाकाक एकटा नोट ड्राइवर साहेबकेँ दैत बजलाह -"अब चलिए"। ड्राइवर तत्काल तैयार भऽ गेल।
गजानन बाबू मित्रक विछोह, मित्रक परिवारक भबिष्यक चिन्तासँ तँ चिन्तिते छलाह, ऊपरसँ ई सभ देख भीतरे भीतर छटपटावैत रहलाह जे नैतिकता, ईमानदारी कतए चलिगेल। पोस्टमार्टम हाऊसमे सेहो भीड़ छल। बेसी आत्महत्या आओर बेसी दुर्घटना हमरा लोकतंत्रक बिशिष्ट बिशेषता अछि। किनारा जाऽ कऽ जखन सरकारी करमचारी सँजानकारी लेबाक कोशिश भेल तँ वो असंवेदनशील प्राणी बाजल - "ये भीड़ तो आप देखही रहे हैं। सब इसी काम के लिए आया है। कोई राशन या वोट की लाइन तो है नहीं। औरमेरे दो ही हाथ हैं। आपका नम्बर जब आयगा तब देखेंगे"। लोक सभ अनुमान करए लगलाह तँ चारि घण्टासँ कम केर मामला नहि छल। ताबत धरि तँ राति भऽ जाएत।सभकेँ चिन्तित देख पुनः वो योग्य युवकक योग्यताक काज उपस्थित भेल।येन-केन-प्रकारेण पाँचटा नमरीपर बात फरियाइल आओर मरलाक बादो लाइन तोड़ि कऽ घनश्याम बाबूक लाशकेँ पोस्टमार्टम हाऊससँ मुक्त कराओल गेल। गजानन बाबूक नैतिकशिक्षा, ज्ञान, अनुभव सभटा राखले रहि गेल। ककरा चिन्ता अछि जे मृतकक परिवार परकतेक संकट आएल अछि। अपन वेतनक अतिरिक्त बेसीसँ बेसी आमदनी करब सरकारी सेवकक युगधर्म अछि। एहि युगधर्मक पालन सरकारी सेवकगण अबाध गतिसँ सम्पूर्णदेशमे कऽ रहल छथि। एहि क्रममे पुलिसकेँ सेहो यथायोग्य दक्षिणा देबय पड़ल।
थाकल हारल मृतकक स्वजन परिजन समेत गजानन बाबू श्मशान घाट एलाह। सभ जगहसँ बेसी भयावह दृश्य छल। ओहनहियो श्मशान तँ भयावह होइते छैक। किन्तु जे भयावहता लोक सभकेँ देखए पड़लन्हि वो आओर भयावह छल। जगहक वास्ते, लकड़ी कवास्तें, अस्थि कलश रखबाक हेतु एतए तक कि मृतकक मृत्यु प्रमाण पत्रक वास्ते सेहो, सब जगह नियुक्त कर्मचारीक नियमित काजक बदलामे अनियमित रूपसँ यथायोग्य टाका खर्च करए पड़लन्हि। एवम प्रकारे घनश्याम बाबू वर्तमान लोकतंत्रीय पद्धतिक जालसँ मुक्त भऽ स्वर्गारोहण केलाह। गजानन बाबू सोचि सोचि भावुक एवं चिन्तित छलाह संगहि एक यक्ष प्रश्न सेहो ठाढ़ छल जे घनश्याम बाबू तँ कहुना लोकतंत्रीय मुक्ति पाबिस्वर्गारोहण केलाह किन्तु हमर मुक्तिक कोन रास्ता निकलत? हमर स्वर्गारोहण भऽ सकत कीनहि?

गामक चौपालसँ

No comments:

Post a Comment