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Saturday, April 7, 2012

पारस :: दुर्गानन्‍द मंडल


शान्‍ति‍ यै शान्‍ति‍ कतए नुकाएल छी यै फुलकुम्‍मरि‍?”
  शान्‍ति- एलौं याए एलौं। आंगनसँ शान्‍ति‍ हाक दैत लग आबि‍ सोझामे ठाढ़ि‍ होइत पुन: बाजि‍ उठैत छथि- कथीले एतै जोर-जोरसँ हाक दैत छलौं? कोनो खास बात छै की?
हम- ऐह, अहाँकेँ तँ सदि‍खन मजाके सुझाइत अछि‍। खास बात की रहत। अहाँ छी तँ सभ खासे बात बूझु। ओना आइ वि‍द्यालयक छुट्टी समाप्‍त भऽ गेल तँए झब दऽ खाइले कि‍छु बनाउ। जे हम समैसँ वि‍द्यालय चल जाएव।
शान्‍ति‍ बजलीह- ओ..., आब ने बुझलौं। अहाँ तँ सभ दि‍न गोलहे गीतकेँ गबै छी। ओना हे, आइ बड्ड सखसँ अपनहि‍ बाड़ीसँ सुआ आ लौफक साग काटि‍ अनलौंहेँ। तँए आइ साग-भात आ आल्‍लुक सानाक संग भाटा-अदौरीक तीमन बनवि‍तौं से नि‍आरने रही। मुदा तइ‍मे तँ देरी होएत। ताबत अहाँ स्‍नान-पूजा करू आ हम जलखैक ओरि‍ओन कऽ दैत छी।
  बेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। कने अंग-पोछा आ धोती-कुरता बहार कऽ दि‍अ। हम धोलूकेँ हाक दैत छी- धोलू हौ धोलू। कतए छह हौ?”
  ऐलौं, याए ऐलौं बाबूजी, कने नदी फीरि‍ रहल छी।
  वेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। आ वौआ, है सुनै छह? आइ हमरा वि‍द्यालय जेबाक अछि‍। से जात हम स्‍नान करै छी। तात् तौं साइि‍कलकेँ बढ़ि‍यॉं जकाँ झारि‍-पोछि‍ दाए। ई कहैत हम स्‍नान करबाक लेल डोल-लोटा लऽ कलपर चलि‍ जाइत छी। स्‍नानोपरान्‍त पूजा-पाठ कऽ धोती पहीि‍र तैयार होइते छी तात् शान्‍ति‍क आग्रह- सुनै छी, अहाँले जलखै नि‍कालि‍ देने छी, कऽ लि‍अ। ई कहैत आगाँमे सि‍कीक चंगेरी, जे रंग-वि‍रंगक रंगसँ रंगल मुजसँ बनौल गेल रहए, तइ‍मे मुरही-चूड़ा, दूटा चूड़लाइ आ गोर पाँचेक तीलक लाइ संगमे काँच मेरचाइ आ नोन परसल छल, आगाँ बढ़ौलनि‍। एक क्षणक लेल हम मि‍थि‍ला, मैथि‍ल आ मैथि‍लक संस्‍कार आ स्‍भयतासँ बहुत बेसी आनन्‍दि‍त भेलौं। मन गद्-गद् भऽ गेल। तात् शान्‍ति‍क मधुर आवाज- कतए हेरा गेलौं? अखन यएह खा, वि‍द्यालयसँ भऽ आउ, जखन आएव तँ गरमा-गरम साग, भात, अल्‍लुक साना अा भाँटा-अदौरीक तीमन भरि‍ मन खाएब। ओना जाड़ मास छै जौं ‍ कि‍छु आरो मनमे हुअए तँ कोनो हर्ज नै‍। कहैत, हँसैत सोझासँ अढ़ भऽ गेलीह। आ हम जलखै करैत ऐ मादक अदाक मादे सोचए लगलौं। हमरो मनमे गुदगुदी लागए लागल। जलखै करैत एक बेर ‍ पुन: हाक देलि‍ऐनि‍- शान्‍ति‍, यै शान्‍ति‍....। नै जानि‍ जे हुनको मनमे कोनो बात उमरि‍ रहल छलनि‍। ओ गुनगुनाइत ई गीत- एगो चुम्‍मा दे दऽ राजा जी, बन जाइ जतरा....।
 आबि‍‍‍ वाणभटक नायि‍का जकाँ लगमे सटि‍ कऽ ठाढ़ि‍ होइत प्रेमानुरूप एकटा चुम्‍मा लऽ छथि‍ आ मुस्‍की दैत घरसँ बहार भऽ जाइत छथि‍। हम लजा जाइत छी।
     करीब चालीस मि‍नटक उपरान्‍त वि‍द्यालय पहुँचैत छी। हाथ-पएर धोलाक बाद हाजरी बनवैत छी। प्राथनाक घंटी बजैत अछि‍ आ धि‍या-पूताक संग हमहूँ एक पाति‍मे ठाढ़ भऽ जाइत छी। उपरान्‍त ऐकर नवम्-बीमे हमर वर्ग रहैत अछि‍। हाजरी बही लऽ वर्गमे प्रवेश करैत छी। वर्ग नवम बी जे एकछाहा लड़कीएक वर्ग रहैत अछि‍, स्‍वागतार्थ सभ बच्‍चि‍या उठि‍ कऽ ठाढ़ि‍ भऽ जाइत अछि‍। बैसबाक आदेश पाबि ‍ यथास्‍थान सभ बैस जाइत अछि‍। सबहक हाजरी लेब सम्‍पन्‍न होइत अछि‍। तखन कि‍छु बच्‍चि‍या सभ बाजि‍ उठैत अछि‍- मा-साएब, आइ ललका पाग पढ़बि‍यौ, कि‍यो कहति‍ अछि‍ जी नै सर आइ ग्रेजुएत पुतोहू पढ़बि‍यौ। मुदा कि‍छु खास बच्‍चि‍या यथा- राखी, गीतांजली, खुसवू, बबि‍ता, रि‍ंकी आ पि‍ंकी कहि‍ उठैत अछि‍- जी नै सर आइ अहाँ अपने ि‍लखल कोना कथा कहि‍यौ। आ हम ओइ आग्रहकेँ नै टारि‍ पबैत छी। शुरू कऽ दैत छी अपन लि‍खल ई कथा- .....पारस।
    माँ मि‍थि‍लाक गोद आ कमला महरानीक कछरि‍मे बसल एकटा गाम दीप-गोधनपुर। जइ‍मे छल एकटा चाहबला ओकर नाओं छल पारस पि‍ता श्री सत्‍य नारायण जी नाओंक अनुरूप दुनू बापूत वि‍परीत छल। पि‍ता श्री सत्‍य नारायण जरूर मुदा, सभ चीजले खगले रहैत छलाह। एकटा प्राइवेट स्‍कूलमे अध्‍यापण कार्य करथि‍ आ कोनो तरहेँ बाल-बच्‍चाकेँ पोसथि‍-पालथि‍। हुनकेर बालकक नाओं पारस। नाओंक अनुरूप एकदम ि‍वपरीत, मझौले कदक जवान देहो-हाथ सुखले-टटाएल कारी-झामर हाथ-पएर एकदम सुखल-साखल मुदा, पेट जरूर कदीमा सन अलगल। देहो-वगेह ओहने, सदि‍खन जेना मुँससँ लेर चुवि‍ते छलै। फाटले-चि‍टले कोनो जूता-चप्‍पल पहि‍र ओही प्राइवेट स्‍कूलमे पढ़ैत छल। मुदा अकि‍लगल कम नै‍।
     सत्‍य नारायणजीक घर जरूर बान्‍हेँ कातक सौ फि‍ट्टा अर्थात् सरकारी जमीनमे छल, मुदा संस्‍कार कोनो सुसभ्‍य समाजक प्रति‍क छल। सत्‍य नारायण बाबूकेँ हरलैन्‍हि‍‍ ने फुरलैन्‍हि‍‍ खेलवा देलखि‍न पारसकेँ एकटा एकचारी देल चाहक दोकान। अर्थाभावक कारणे पारस उधार-पैंच लऽ कीनि‍ अनलक चाहक दोकानक लेल बरतन-वासन यथा केटली, ससपेन, चाहछन्नी, स्‍टोव, दूध राखक लेल दूटा टोकना आ दूआ माटि‍क मटकुरी छाल्‍ही राखक लेल। चाहक दोकान जे नि‍त्‍य समैसँ खुलैत आ बन्‍द होइत छल। क्रमश: महि‍सि‍क अगब दूधक चाह, एक्‍को ठोप पानि‍क छुति‍ नै‍, बरतन-वासन खूब पवि‍त्र आ संस्‍कारी होएवाक कारणे ग्राहककेँ सेहो उचि‍त सम्‍मान भेटनि‍। चाहक दोकान खूब चलनि‍। क्रमश: पाँच सेर दूधक बदला आध-आध दूध खपत होमए लागल। आमदनी नीक होमए लगलैक।
     कि‍छु पुंजी जमा केलाक बाद ओ एकचारी छोड़ि‍ लऽ लेलक पक्‍काबला एकटा घर दोकान खोलए लेल। बना लेलक एकटा काउन्‍टर आ बढ़ा लेलक दोकानक मेल। साझु पहरकेँ बनाबए लागल सि‍ंहहारा आ गरमा-गरम जि‍लेबी बात एककानसँ दूकान होइत गेलै एकर दोकानक नाओं भऽ गेलै दोकान खूब चलए लागल।
     समए पाबि‍ २६ जनवरी आ १५ अगस्‍तमे प्रसादक लेल वि‍शेष आदर पाबि ‍ बनाबए लागल मनक मन बुनि‍यॉं आ भुजि‍या। अगल-बगलमे प्राइवेट कोचि‍ंग चलौनि‍हार संचालक आ ि‍नदेशक महोदयक योगदान ऐ देाकनकेँ चलाबएमे अहम भूमि‍का रखलक। दि‍न दुना आ राति‍ चौगुना उन्‍नति‍ होमए लगलैक। मनक-मन दूध खपत होएवाक कारणे घी सेहो बनबाए आ नीक दाममे बेचाए। देखैत-देखैत चाहक देाकानक अामदनीसँ कीनि‍ लेलक ओ तीन‍ बीघा जमीन। मुदा एकर उपरान्‍तो ओ चाहो बेचाए आ पढ़बो करए। समए पाबि‍ प्राइवेट स्‍कूलसँ सातमा पास कऽ ओ एकटा संस्‍कृत वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खा लेलक, आ मध्‍यमाक फारम भरि‍ फस्‍ट डि‍वि‍जनसँ पास केलक। आब तँ ओ कि‍छु बेसि‍ए खुश रहैत छल। मध्‍यमा पास केलाक बाद ओ अपन नाओं जनता काओलेजमे झंझारपुरमे लि‍खा लेलक। तखनो ओ वेचारा चाहो बेचए आ पढ़बो करए। आइ.ए. पास केलाक बादो ओकरामे कोनो परि‍वर्तन नै‍। काओलेजसँ ऐलाक बाद चाहक दोकानपर ओ जमि‍ जाए। यद्यपि‍ चाह बेचब एकटा तेहन काज मानल जएतैक ई वि‍वादक वि‍षए अछि‍। ओकरा एक्‍को पाइ लाज-संकोच नै‍। कि‍एक तँ कर्म कोनो खराप नै होइत छैक। कमा कऽ खाइ ऐमे कोन लाज कोनो कि‍ ककरोसँ भीख मंगबै जे लाज होएत। तँए चाह बेचब अधलाह काज नै से मानि‍ ओ खूब जतनसँ अपन कतर्व्‍यक नि‍र्वहन करए।
     बुझि‍नि‍हार मैथि‍लमे एकर चर्च होमए लागल, जे देखू पारस चाहो बेचैए आ पढ़बो करैए। देखि‍ते-देखति‍ ओ मैथि‍ली औनर्ससँ बी.ए. पास केलक। परोपट्टामे नाओं भऽ गेलैक जे एकटा चाहबला चाह बेचैत बी.ए. पास केलकहेँ। तखनो ओ चाह बेचब नै छोड़लक। बात पसरैत गेल।
     एबबेर‍ एकटा कथा गोष्‍ठीक मादे सुपौल जेबाक छल। चारि‍ गोट मात्र कथाकार वि‍दा भेलथि‍ दि‍न अछैते मुदा, कोशी महरानीक अभि‍शापे नावसँ यात्रा करए पड़ल आ घंटा भरि‍क बाट मात्र चारि‍ घंटामे तए भेल। सुपौलसँ पहि‍नहि‍ झल अन्‍हार भऽ जरा सेहो गेल रही। तँए चारू कथाकार चाह पि‍बाक लाथे बैसलौं एकटा चाहक दोकानपर। दोकानदारसँ- हौ, चारि‍ कप चाह ि‍दहह।
  ओ बाजल- जी, श्रीमान् दइ छी। कहैत ओ चाहक जोगार लगबए लगल।


शान्‍ति‍ यै शान्‍ति‍ कतए नुकाएल छी यै फूलकुम्‍मरि‍?”
  शान्‍ति- एलौं याए एलौं। आंगनसँ शान्‍ति‍ हाक दैत लग आबि‍ सोझामे ठाढ़ि‍ होइत पुन: बाजि‍ उठैत छथि- कथीले एतै जोर-जोरसँ हाक दैत छलौं? कोनो खास बात छै की?
हम- ऐह, अहाँकेँ तँ सदि‍खन मजाके सुझाइत अछि‍। खास बात की रहत, अहाँ छी तँ सभ खासे बात बूझु। ओना आइ वि‍द्यालयक छुट्टी समाप्‍त भऽ गेल तँए झब दऽ खाइले कि‍छु बनाउ। जे हम समैसँ वि‍द्यालय चल जाएव।
शान्‍ति‍ बजलीह- ओ..., आब ने बुझलौं। अहाँ तँ सभ दि‍न गोलहे गीतकेँ गबै छी। ओना हे, आइ बड्ड सखसँ अपनहि‍ बाड़ीसँ सुआ आ लौफक साग काटि‍ अनलौंहेँ। तँए आइ साग-भात आ आल्‍लुक सानाक संग भाटा-अदौरीक तीमन बनवि‍तौं से नि‍आरने रही। मुदा तइ‍मे तँ देरी होएत। ताबत अहाँ स्‍नान-पूजा करू आ हम जलखैक ओरि‍ओन कऽ दैत छी।
  बेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। कने अंग-पोछा आ धोती-कुरता बहार कऽ दि‍अ। हम धोलूकेँ हाक दैत छी- धोलू हौ धोलू। कतए छह हौ?”
  ऐलौं, याए ऐलौं बाबूजी, कने नदी फीरि‍ रहल छी।
  वेस, बड्ड बढ़ि‍यॉं। आ वौआ, है सुनै छह? आइ हमरा वि‍द्यालय जेबाक अछि‍। से जात हम स्‍नान करै छी। तात् तौं साइि‍कलकेँ बढ़ि‍यॉं जकाँ झारि‍-पोछि‍ दाए। ई कहैत हम स्‍नान करबाक लेल डोल-लोटा लऽ कलपर चलि‍ जाइत छी। स्‍नानोपरान्‍त पूजा-पाठ कऽ धोती पहीि‍र तैयार होइते छी तात् शान्‍ति‍क आग्रह- सुनै छी, अहाँले जलखै नि‍कालि‍ देने छी, कऽ लि‍अ। ई कहैत आगाँमे सि‍कीक चंगेरी, जे रंग-वि‍रंगक रंगसँ रंगल मुजसँ बनौल गेल रहए, तइमे मुरही-चूड़ा, दूटा चूड़लाइ आ गोर पाँचेक तीलक लाइ संगमे काँच मेरचाइ आ नोन परसल छल, आगाँ बढ़ौलनि‍। एक क्षणक लेल हम मि‍थि‍ला, मैथि‍ल, मैथि‍लक संस्‍कार आ स्‍भयतासँ बहुत बेसी आनन्‍दि‍त भेलौं। मन गद्-गद् भऽ गेल। तात् शान्‍ति‍क मधुर आवाज- कतए हेरा गेलौं? अखन यएह खा, वि‍द्यालयसँ भऽ आउ, जखन आएव तँ गरमे-गरम साग, भात, अल्‍लुक साना अा भाँटा-अदौरीक तीमन भरि‍ मन खाएब। ओना जाड़ मास छै जौं ‍ कि‍छु आरो मनमे हुअए तँ कोनो हर्ज नै‍। कहैत, हँसैत सोझासँ अढ़ भऽ गेलीह। आ हम जलखै करैत ऐ मादक अदाक मादे सोचए लगलौं। हमरो मनमे गुदगुदी लागए लागल। जलखै करैत एक बेर‍‍ पुन: हाक देलि‍ऐनि‍- शान्‍ति‍, यै शान्‍ति‍....। नै जानि‍ जे हुनको मनमे कोनो बात उमरि‍ रहल छलनि‍। ओ गुनगुनाइत ई गीत- एगो चुम्‍मा दे दऽ राजा जी, बन जाइ जतरा....।
 आबि‍‍‍ वाणभटक नायि‍का जकाँ लगमे सटि‍ कऽ ठाढ़ि‍ होइत प्रेमानुरूप एकटा चुम्‍मा लऽ छथि‍ आ मुस्‍की दैत घरसँ बहार भऽ जाइत छथि‍। हम लजा जाइत छी।
     करीब चालीस मि‍नटक उपरान्‍त वि‍द्यालय पहुँचैत छी। हाथ-पएर धोलाक बाद हाजरी बनवैत छी। प्राथनाक घंटी बजैत अछि‍ आ धि‍या-पूताक संग हमहूँ एक पाति‍मे ठाढ़ भऽ जाइत छी। उपरान्‍त ऐकर नवम्-बीमे हमर वर्ग रहैत अछि‍। हाजरी बही लऽ वर्गमे प्रवेश करैत छी। वर्ग नवम बी जे एकछाहा लड़कीएक वर्ग रहैत अछि‍, स्‍वागतार्थ सभ बच्‍चि‍या उठि‍ कऽ ठाढ़ि‍ भऽ जाइत अछि‍। बैसबाक आदेश पाबि ‍ यथास्‍थान सभ बैस जाइत अछि‍। सबहक हाजरी लेब सम्‍पन्‍न होइत अछि‍। तखन कि‍छु बच्‍चि‍या सभ बाजि‍ उठैत अछि‍- मा-साएब, आइ ललका पाग पढ़बि‍यौ, कि‍यो कहति‍ अछि‍ जी नै सर आइ ग्रेजुएत पुतोहू पढ़बि‍यौ। मुदा कि‍छु खास बच्‍चि‍या यथा- राखी, गीतांजली, खुसवू, बबि‍ता, रि‍ंकी आ पि‍ंकी कहि‍ उठैत अछि‍- जी नै सर आइ अहाँ अपने ि‍लखल कोना कथा कहि‍यौ। आ हम ओइ आग्रहकेँ नै टारि‍ पबैत छी। शुरू कऽ दैत छी अपन लि‍खल ई कथा- .....पारस।
    माँ मि‍थि‍लाक गोद आ कमला महरानीक कछरि‍मे बसल एकटा गाम दीप-गोधनपुर। जइ‍मे छल एकटा चाहबला ओकर नाओं छल पारस पि‍ता श्री सत्‍य नारायण जी। नाओंक अनुरूप दुनू बापूत वि‍परीत छल। पि‍ता श्री सत्‍य नारायण जरूर मुदा, सभ चीजले खगले रहैत छलाह। एकटा प्राइवेट स्‍कूलमे अध्‍यापण कार्य करथि‍ आ कोनो तरहेँ बाल-बच्‍चाकेँ पोसथि‍-पालथि‍। हुनकेर बालकक नाओं पारस। नाओंक अनुरूप एकदम ि‍वपरीत, मझौले कदक जवान देहो-हाथ सुखले-टटाएल कारी-झामर हाथ-पएर एकदम सुखल-साखल मुदा, पेट जरूर कदीमा सन अलगल। देहो-वगेह ओहने, सदि‍खन जेना मुँससँ लेर चुवि‍ते छलै। फाटले-चि‍टले कोनो जूता-चप्‍पल पहि‍र ओही प्राइवेट स्‍कूलमे पढ़ैत छल। मुदा अकि‍लगल कम नै‍।
     सत्‍य नारायणजीक घर जरूर बान्‍हेँ कातक सौ फि‍ट्टा अर्थात् सरकारी जमीनमे छल, मुदा संस्‍कार कोनो सुसभ्‍य समाजक प्रति‍क छल। सत्‍य नारायण बाबूकेँ हरलैन्‍हि‍‍ ने फुरलैन्‍हि‍‍ खेलवा देलखि‍न पारसकेँ एकटा एकचारी देल चाहक दोकान। अर्थाभावक कारणे पारस उधार-पैंच लऽ कीनि‍ अनलक चाहक दोकानक लेल बरतन-वासन यथा केटली, ससपेन, चाहछन्नी, स्‍टोव, दूध राखक लेल दूटा टोकना आ दूआ माटि‍क मटकुरी छाल्‍ही राखक लेल। चाहक दोकान जे नि‍त्‍य समैसँ खुलैत आ बन्‍द होइत छल। क्रमश: महि‍सि‍क अगब दूधक चाह, एक्‍को ठोप पानि‍क छुति‍ नै‍, बरतन-वासन खूब पवि‍त्र आ संस्‍कारी होएवाक कारणे ग्राहककेँ सेहो उचि‍त सम्‍मान भेटनि‍। चाहक दोकान खूब चलनि‍। क्रमश: पाँच सेर दूधक बदला आध-आध मन दूध खपत होमए लागल। आमदनी नीक होमए लगलैक।
     कि‍छु पुंजी जमा केलाक बाद ओ एकचारी छोड़ि‍ लऽ लेलक पक्‍काबला एकटा घर दोकान खोलए लेल। बना लेलक एकटा काउन्‍टर आ बढ़ा लेलक दोकानक मेल। साझु पहरकेँ बनाबए लागल सि‍ंहहारा आ गरमा-गरम जि‍लेबी बात एककानसँ दूकान होइत गेलै एकर दोकानक नाओं भऽ गेलै दोकान खूब चलए लागल।
     समए पाबि‍ २६ जनवरी आ १५ अगस्‍तमे प्रसादक लेल वि‍शेष आदर पाबि ‍ बनाबए लागल मनक मन बुनि‍याँ आ भुजि‍या। अगल-बगलमे प्राइवेट कोचि‍ंग चलौनि‍हार संचालक आ ि‍नदेशक महोदयक योगदान ऐ देाकनकेँ चलाबएमे अहम भूमि‍का रखलक। दि‍न दुना आ राति‍ चौगुना उन्‍नति‍ होमए लगलैक। मनक-मन दूध खपत होएवाक कारणे घी सेहो बनबाए आ नीक दाममे बेचाए। देखैत-देखैत चाहक देाकानक अामदनीसँ कीनि‍ लेलक ओ तीन‍ बीघा जमीन। मुदा एकर उपरान्‍तो ओ चाहो बेचाए आ पढ़बो करए। समए पाबि‍ प्राइवेट स्‍कूलसँ सातमा पास कऽ ओ एकटा संस्‍कृत वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खा लेलक, आ मध्‍यमाक फारम भरि‍ फस्‍ट डि‍वि‍जनसँ पास केलक। आब तँ ओ कि‍छु बेसि‍ए खुश रहैत छल। मध्‍यमा पास केलाक बाद ओ अपन नाओं जनता काओलेजमे झंझारपुरमे लि‍खा लेलक। तखनो ओ वेचारा चाहो बेचए आ पढ़बो करए। आइ.ए. पास केलाक बादो ओकरामे कोनो परि‍वर्तन नै‍। काओलेजसँ ऐलाक बाद चाहक दोकानपर ओ जमि‍ जाए। यद्यपि‍ चाह बेचब एकटा केहन काज मानल जएतैक ई वि‍वादक वि‍षए अछि‍। ओकरा एक्‍को पाइ लाज-संकोच नै‍। कि‍एक तँ कर्म कोनो खराप नै होइत छैक। कमा कऽ खाइ ऐ‍मे कोन लाज कोनो कि‍ ककरोसँ भीख मंगबै जे लाज होएत। तँए चाह बेचब अधलाह काज नै से मानि‍ ओ खूब जतनसँ अपन कतर्व्‍यक नि‍र्वहन करए।
     बुझि‍नि‍हार मैथि‍लमे एकर चर्च होमए लागल, जे देखू पारस चाहो बेचैए आ पढ़बो करैए। देखि‍ते-देखै‍त‍ ओ मैथि‍ली औनर्ससँ बी.ए. पास केलक। परोपट्टामे नाओं भऽ गेलैक जे एकटा चाहबला चाह बेचैत बी.ए. पास केलकहेँ। तखनो ओ चाह बेचब नै छोड़लक। बात पसरैत गेल।
     एकबेर‍‍ एकटा कथा गोष्‍ठीक मादे सुपौल जेबाक छल। चारि‍ गोट मात्र कथाकार वि‍दा भेलथि‍ दि‍न अछैते मुदा, कोशी महरानीक अभि‍शापे नावसँ यात्रा करए पड़ल आ घंटा भरि‍क बाट मात्र चारि‍ घंटामे तए भेल। सुपौलसँ पहि‍नहि‍ झल अन्‍हार भऽ जरा सेहो गेल रही। तँए चारू कथाकार चाह पि‍बाक लाथे बैसलौं एकटा चाहक दोकानपर। दोकानदारसँ- हौ, चारि‍ कप चाह ि‍दहह।
  ओ बाजल- जी, श्रीमान् दइ छी। कहैत ओ चाहक जोगार लगबए लगल।


तात् ओतए गप्‍प कि‍यो तेसरे आदमी चलौलनि‍। जे गोधनपुर गाममे एकटा चाहबला अछि‍ पारस बी.ए. पास। बी.ए. पास केलाक बादो ओ चाह बेचब अधला नै बुझैत अछि‍। चाहो ततवेक सुन्‍दर आ व्‍यवहारो ओकर ततवेक सुन्‍दर छै।
     वाह। हर्ष भेल जे समाजकेँ ऐ वातक नजरि‍ जरूर छैन्‍हि‍ह जे एकटा पढ़ल-लि‍खल लोक चाह बेचैत अछि‍। ओकर नजरि‍मे कोनो काज करबामे हर्ज नै‍।
     एम्‍हर देखू जे वर्तमान सरकारमे नगर-पंचायत, जि‍ला परि‍षद, टेन पलस टू वि‍द्यालयमे नि‍योजनक भेकेन्‍सी भेल। तात पारस मैथि‍लीसँ एम.ए. सेहो कऽ लेलक।
     भैकेन्‍सीक अनुसार वि‍भि‍न्‍न जि‍लामे आवेदन केलक। समए तँ जरूर लागल। मधुबनी जि‍लाक मेघा सुचीक प्रकाशि‍त भेल उपरहि‍मे ओकर नाओं छलै। नि‍योजनक नि‍मि‍त्त सभ आवश्‍यक कागजात, मूल प्रमाण पत्र एवं शपथ पत्र देलाक बाद ओकर चयन इच्‍छानुकूल परि‍योजना वि‍द्यालय मनसापुरमे मैथि‍लीक लेल भेल।
     समाजक सभ वर्गकेँ ऐ बातसँ हर्ष भेल जे सत्‍यनारायण जीक बालक पारस आइ टेन पलस टू वि‍द्यालयमे मैथि‍ली पद्पर नि‍योजि‍त भेलाह। साझखन सभ ओही चाहक दोकानपर उपस्‍थि‍त भऽ पारस आ हुनक पि‍ता सत्‍य नारायणजीकेँ सभ शुभकामना आ बधाइ दैत कहलकनि‍- सत्‍य नारायण आब ओना काज नै चतल, आब भोज-भातक आयोजन कएल जाउ। भोज लागत।
     सत्‍य नारायण आरो अह्लादि‍त होइत बजलाह- सभ ऐ समाजक आशीर्वाद थि‍क। अहीं सबहक अशीर्वाद थि‍क जे आइ पारस चाह बेचैत-बेचैत एकटा टेन-पलस टू वि‍द्यालयक शि‍क्षक भेल। हम ऐ समाजक ऋृणी थि‍कहूँ। आइ जे समाज नै तँ हमर कोनो अस्‍ति‍त्‍व नै‍। आइ हमहूँ गौरवान्‍वि‍त भऽ रहल छी जे हमर बेटा हमरे बेटा नै ऐ समाजोक बेटा। जे ऐ समाजमे सि‍र उठा कऽ जि‍वक, एकटा अलग स्‍वाभि‍मान देलक। एकटा आदर्श देलक। तँए हम भोज देबेटा करब। भोज जरूर करब।
     समए सुअवसर पाबि ‍ सत्‍यनारायण बाबू केलनि‍ बड़का भोजक आयोजन। लगुआ-भगुआ हि‍त अपेक्षि‍त मि‍त्र-बन्‍धु आदि‍ ऐ भोजमे नै छुटथि‍ आ हुनकर उचि‍त सम्‍मान हुअए ऐ बातक सदि‍खन खि‍याल रखलनि‍।
  दुनू तरहक आयोजन छल, शाकाहारी आ मांसाहारी। नि‍मंत्रि‍त व्‍यक्‍ति‍ सभ समैसँ उपस्‍थि‍त भऽ आ स्‍वरूचि‍ भोजन केलनि‍। शाकाहारीक लेल आयोजन छल। पुरान तीन-सलि‍या बासमती चाउरक भात, राहरीक दालि‍ आमि‍ल देल, पालक पूड़ी, पालक पनीर, आमक चटनी, सलाद, तरल मि‍रचाइ, मटर-आलू-परोर देल डलना, बड़ी अदौड़ी, सकरौड़ी तइ‍पर डब्‍बूक डब्‍बूक घी। महीसीक अगव दूधक तौलाक-तौला दही, तरहत्‍थी सन मोट छाल्‍ही बुझु तँ खेनि‍हार तर आ भोजेतक व्‍यवस्‍था उपर। दहीक तँ कथा नै पुछू खेनि‍हार कम आ तौले बेशी। सभ कि‍यो गद्-गद् भऽ गेलाह।
     एम्‍हर मांसाहरी लोकनिकेँ‍ लेल अरवा चाउरक भात आ आध-आध मनक जुआएल खस्‍सीक लद-वद करैत मांस। कि‍सि‍म-कि‍सि‍मक मश्साला देल गम-गम करैत एकहक टा पीस बुझू जे सए-डेढ़ सए ग्रामक। ऐह अजोध खस्‍सी, माउस। बनलौ ततवेक सनगर। सभ भरि‍ मन खएलाह। आ उपरसँ सेरक सेर दही फी आदमीपर। तर-बत्‍तर छलाह, भोज तँ जस-जस भऽ भेल।
    सभ कि‍यो भोजनो करथि‍ आ पारसक चर्चो करथि‍। जे पारस तँ पारसे अछि‍। वस्‍तुत: पारस आब ओ पारस नै रहल जे चाह मात्र बेचै छल। चाहे बेचेत ओ पारस तँ आब समाजक लेल ओ पारस भऽ गेल। जेकर गुणसँ कतेको नेना-भूटका आब चाहेटा नै बेच समाजक बीच शि‍क्षाक ज्‍योति‍ जगाओता। जइ‍सँ अपना समाजमे पारस, पारस मणि‍ गुणसँ प्रभावि‍त होएत आ पारसक गुणसँ अपना समाजक कतेको बच्‍चा पारस बनताह।
     अन्‍तत: बाउ लोकनि‍ अहीं सभ कहू जे अहाँ सभ घर आंगनाक काज करैत पढ़ि‍ लि‍ख ‍ की बनए चाहैत छी?”
     एक स्‍वरमे उत्तर भेटैत अछि‍ मास्‍सैव हमहूँ पारस बनवै पारस। कहैत सभ बच्‍चि‍याक संग राखी, गीतांजली, खुशवू, बवीता, रि‍ंकू, पि‍कूक नोरसँ भरल ऑंखि‍मे एकटा वि‍शेष आत्‍म वि‍श्‍वास हमरा वुझना जाइत अछि‍। जेना ओ प्रखर ज्‍योति‍ बहराएल हुअए अनमोल मोती पारससँ।

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