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Monday, April 9, 2012

मनोज झा मुक्ति - इज्जतिक खातिर



एहि लोकप्रिय कार्यक्रम मैथिली गुञ्जनमेबहुतोलोकेक जिवनक घटना सुनैत-सुनैत आई हम अपना जीवनमे वितल या कि कहु विति रहल घटना लिखि कऽ, पठावि रहल छी ई आशा लक जे अवश्य प्रशारण कऽ, देब। अपन मोनक बोझ कम करब आ मैथिल समाजमे व्याप्त एहि चलन प्रति सम्पूर्ण समाजक लेल हमर ई प्रश्न अछि।
हमर नाम सुची अहि। हमर घर सागरमाया अञ्चलमे पडै़त अछि। हम (3) तीन भाए-बहिन छी। (2) टा भाए आ हम बहीन मे एसगरे छे। बाबुजी हमर एकटा सरकारी कर्मचारी छथि आ माए गृहिणी। हमर जन्म 2030 साल, आइसँ 33 वर्ष पहिने भेल। बाबुजी सरकारी नोकरिहारा आ एसगर बहिन होएबाक नाते घर-परिवारक सभ क्यो बड़ मानैत छलीह हमरा। बाल्य काल बहुत दुःखमय रहल हमर। हम सभ अर्थात माए, दुनू भाए आ हम अपना गामेमे रहैत छलहुँ आ बाबुजी ओतही जतए-जतए हुनकर पोस्टिंग होइत। हमरा गामेमे हाइस्कूल होएबाक कारणे हमारा सभ भाए-बहिन स्कूल संगे जाइत-अवैत छलहुँ। मैट्रिक हम बहुत नीक जका पास कयलहुँ। मैट्रिकक बाद गामसँ तीने किलोमीटरपर रहल एकटा काँलेजमे हमर एडमिशन भेल।
काँलेजमे लड़कीक संख्या ओते बेसी नै तँ कमो नै छलै। हम I.A. First year क परिक्षा
देलहुँ आ कनी दिनक बाद रिजल्ट सेहो आएल, बहुत नीक नम्बर आएल छल हमरा।
हमर बाबुजी पढल-लिखल आकी कहु बुझनिहार होएबाक कारणे हमरा स्वतंत्र जकाँ छूट
भेटल छल कोनौ अंकुश नहि। एहि तरहे हमारा I.A. फर्स्ट डिविजनसँ पास कयलहुँ 2043 सालमे। आब B.A.मे पढबाक लेल हमरा विराटनगरक महेन्द्र मोरंग केंपसमे
एडमिशन भेल। ओना विराटनगरमे तँ हमरा अपन परिवारक केओ व्यक्ति नइ छल हँ,
हमर मामा-मामी ओतइ रहैत छलीह। मामा एकटा फैक्ट्रीमे मैनेजर छलाह। हम हूनेकेँ सभ संगे रहेत छलहुँ। काँलेजक हमरा क्लासमे हमरा अलावा एकटा आर मैथिल लड़की छली- पुनम। ओना लड़का सभ तँ बहुत छल मूदा एकटा लड़का अरुण यादव बहुत सभ्य
आ पढा़इयोमे निक छल। ओना हमरा ककरोसँ ओते मतलब नइ रहैत छल। मतलब रहैत छल तँ मात्र अपन पढाइसँ। हँ साहित्यमे हमर रुची होएबाक कारणे कवि सम्मेलन
सभमे हमर जाएब मामाकेँ कनिको नीक नइ लगैत छलनि। एहि तरहे हम फस्ट इयर
नीक नम्बरसँ पास कएलहुँ कहियो शाम चलि आएल बेरमे वा आवश्यक नोट सभ हमरा अरुण सहयोग कऽ दैत छलाह। अरुण हमर बहुत नीक मित्र भऽ गेला। हमरा दुनू गोटाक बीच आर कोनो तरहक सम्बन्ध नइ छल, मुदा सम्बन्ध तँ मात्र एकटा असल मित्रक। अरुण कहियो काल हमरा डेरापर अबैत छल। जे हमरा मामा अौर मामीकेँ
कनिको निक नइ लगैत छलनि। मामी आब एकटा कोनो छोटो बातमे अरुण लगाक उलहनक रुपमे बात कहि दैत छलीह। एकदिन भोरे हमर बाबुजी विराटनगर पहुँचलाह आ हमरा पढाइ-लिखाइ आर सभ बात-व्यवस्था सम्बन्धमे पुछलनि‍। हम-सभ बहुत नीक कहलियैन। बाबुजी तइ कऽ बाद हमरा अरुणक सम्बन्धमे पुछलनि‍- के छीयै ई अरुण यादव। ओकरासँ केहन सम्बन्ध छो तोरा? बाबुजीकेँ बहुत सरल रूपमे हम कहलिनि‍- अरूण यादव हमरे क्लासक एकटा सभ्य आ लगनशील विद्धार्थी छियै, आ हमर बहुत नीक
मित्र। बाबुजी अइस बेसी हमरा नइ पुछलनि‍ आ- निक जेकाँ पढब, सभ विचार करैत.कहिक ओहि दिन चलि गेलथि‍। बाबुजी तँ चलि गेलाथि‍ मुदा हमरा मोनमे एकटा मामा-मामी आ बाबुजी प्रति कनि केनादोन सोचाए। लागल। हम अरूणक मात्र एकटा मित्र
मानैत छियै आ ई सभ एहन शंका किएक कऽ रहल छथि‍। फेर हम अपनाकेँ सामान्य बनएबाक प्रयाश करए लगलहुँ। पहिने जेकाँ काँलेज जएबाक हमर दिनचर्या शुरु भेल। हमारा आब अरुणसँ बहुत कमे बजैत छलहुँ। पहिने तँ ओना हमारा कहयो हम नइ सोचैत
छलहुँ, मुदा आब हमरा कखन काँलेज जाइ आ अरुणकेँ देखैत रही जकाँ होइत
छल। अहिना शुरु-शुरुमे अरुण प्रति कोनो भावना नइ आएल हमरा मोनमे मामा-मामी
जबरदस्ती कहिक अरुण प्रति हमरा सोचबाक लेल विवश कऽ देलनि‍। B.A. सेकेण्ड इयर अर्थात फाइनलक परीक्षा होबमे मात्र चारिमास बाँकि छल मुदा आब हमरा पढ़मे कनिको मोन नइ लगैत छल। आखिर एक दिन हम अपना-आपकेँ नइ रोक सकलहुँ आ अरुणकेँ कहि देलियै जे- हम आहाँसँ प्रेम करैछी। अरुण एकदम चूप-चाप छल। हम
पुछलियै- कि हम अहाँकेँ पसन्द नइ छी? अरुणक बोल फुटल- नइ-नइ से बात नइ छियै। आहाँ सभ तरहेँ बहुत नीक छी, हम अहाँक एही प्रस्तावकेँ हृदयसँ स्वागत करैत छी। मुदा डर अछि हमरा अइ बातक जे हम यादव छी, आहाँ ब्राम्हण छी, की हमरा आहाँक विआह संभव छीयै? अरुणक एही प्रश्नक कोनो उत्तर हम नइ देलियैक। हमरा मोनमे ई पूरा विश्वास छल जे अखन आब एि‍ह जमानामे जाति-पाति कोनो बड़का कारण
नइ छियै, हम अपना बाबुजीकेँ कहुना मना लेबै। परीक्षा नजदिक भेलोपर हम दुनु गोटे
ओते नइ पढि़ रहल छलहुँ जतेक पढबाक चाही। प्रेम छुपाओल नइ जा सकै छै, सैह
हमरो सभ संगे भेल। मामा-मामी बाबुजीकेँ खबर केलाखिन्ह, बाबुजी विराटनगर आबिक
हमरसँ समान लइत , हमरा नेने गाम चलि एलथि‍। हम बाबुजीकेँ कहए चाहलि‍यनि‍ जे आब मात्र 2 मासक बाद हमर B.A. फाइनल परीक्षा अए। मुदा बाबुजी कोनोबाते हमर सुनबाक फेरीमे नइ रहथि। बस दस दिनक भितर इण्डियाक एकटा गाममे हमर विआह ठिक कऽ देल गेल। हमरा नइ चाहितो हमर विआह करादेल गेल। हमर आ अरुण दुनू गोटेक सभ सपना चकनाचुर भऽ गेल। चाहियो कऽ किछु नइ करए सकलहुँ। हम तँ आब
भाग्यमे ि‍वआह लिखल सोची कहुना अपन नव जीवनक स्वीकारबाक लेल बाध्य भऽ
गेलहुँ। विआहक पाँचे दिनपर द्विरागमन भऽ गेल। अपना सासुर गेलहुँ। सासुरमे आएल
जे उमंग एकटा नव विवाहितामे होइत छै वा अपन नइहर छोड़ए कालमे जे दुःख होइत छै से कनिको हमरा नइ बुझाएल, किएक तँ हम अपना आपकेँ मात्र एकटा कठपुतली
बुझैत छलौं मात्र कठपुतली। विआहक छः दिन भेलाक बादो हमरा हमर पति नइ टोकलथि, हमरा लग हमर पति एलथि‍। आइये हम ओइ मनुष्‍यकेँ निक जेकाँ देखि रहल छि जकरा संग हमर जिवनक प्रत्येक साँस बन्हागेल अछि। बर पलंगपर बैसलथि‍। ओहो चुप आ हमहुँ चुप। दुनु गोटे चुपे-चुप बैसल ओ राति बिति गेल। प्रातः भने रातिमे फेर एलथि‍, ओइ दिन ओ दारु पिबिक आएल रहथि। दारुसँ हमरा एकदम घृणा लगैत छल मुदा हम एकहुँ रति हुनका मना नइ कऽ सकलिएनि‍। बेगर किछु बजने हम सभ
संगही सुतलहुँ। प्रातःभने पाँच बजे हमर बर उठि कऽ दिल्ली चलि गेलथि‍। दिल्लीमे ओ कम्प्यूटर इंजिनियरिंग कऽ रहल छलथि‍। द्विरागमनक तीन मासक बाद हमर बाबुजीक अएलाक बाद पता चललनि जे ओ नाना बनएबला छथि‍। समए अपना समएसँ विति रहल छल। हम एकटा बच्चाक माए बनलहुँ। सासुरमे सउस, ससुर सभ गोटे बड्ड मानैत छलीह हमरा। बच्चा भेलाक एकहि‍ मासमे हमर बाबुजी अपन गाम लऽ ऎलथि‍। हमर आठ मास रहलाक बाद ससुर विदागरी करा कऽ हमरा सासुर लऽ गेलथि‍। तीन वर्ष विति गेल छल हमरा बरकेँ दिल्ली गेना। एक दिन हमर ससुर इमरजेंसी तार पठा कऽ हमरा वरकेँ गाम बजौलखिन्ह। गाम एलाक बाद रातिमे हमरा दुनु गोटेमे परिचए-पात्र भेल। एतेक दिन धरि ने कियो सभ किछु कहलथि आ ने हम ककरो बतेलियै, हम तँ मात्र
एकटा हड्डी आ माउसक बनल मुर्ति आ की कहुँ रोबोट जका छलहुँ। ओइ रातिमे हमर पति सभ किछु हमरा बतौलनि‍। ओ कहलनि‍-देखु हमारा आहाँसँ विआह करबाक पक्षमे
नइ छलहुँ, हमर तँ दिल्लीएमे एकटा लड़की संगे प्रेम करित छलौं जे हमरा बाबु-माएकेँ बुझल रहए। मुदा सभ किछु बुझितो ओ जातिक कनियाँ आ दहेजक लेल जबरदस्ती हमर विवाह आहाँसँ कए देलनि‍। आहाँसँ भेल विआह हम मात्र अपन बाबुक इज्जति बचाबए लेल केने छलहुँ। विआहक बाद हम दिल्ली जाक ओही लड़कीसँ विआह कऽ लेलहुँ, जकरा हमारा प्रेम करैत छलियै, हम चाहितो आहाँसँ प्रेम नइ कऽ सकेछी हँ मात्र आहाँ हमर कनियाँ छी आ आहाँक बच्चाक बाबु हमहीं छी सैहटा हमारा कहि सकेछी।हम हुनका किछु नइ कहलियैन आ ओहिना बच्चाक संग कहियो नैहर-कहियो सासुर करैत हमर जीवन वितैत छल। अखन दू वर्षसँ एकटा वोर्डिङ स्कूलमे हम पढाबि रहल छी आ शेष अपन जीनगी गुजारि रहल छी।
एहि तरहे जहिया अरुणसँ हम प्रेम बड़ करैत छलहुँ जबरदस्ती ताना मारि-मारि कऽ हमरा अरुण संग प्रेम करबाकलेल विवश कऽ देलक। जाति आ समाजक खातिर हमर जीवनक डोरी ओइ खुट्टामे बान्हि देल गेल जे लड़का पहिनहीसँ एकटा दोसर लडकी संग प्रेम करैत छल आ लड़काकेँ नइ चाहितो जाति आ समाजक डरसँ चरि‍ लाख दहेज लक हमरासँ विआह कए देल गेलै। अइमे घाटा कोन समाजकेँ भेलै वा फायदा कोन समाजकेँ भेलै। घाटा आ फायदा तँ जकरा जे होऊ मुदा हमर जीवन अभिशप्त बना देल गेल हमरा बाबुजी आ हमरा साउस- ससुर द्वारा। नइ अपने प्रेम करए बला मनुख्ख सँग जिवन विताव सकलहुँ आ नइ अपना पतिक जिवनेमे समाहित भऽ सकलौं। ई दोष ककरा देल जाए, हमर प्रश्न सभ समाजसँ अछि। उतरो चेहे जे अबए मुदा हमर जीनगी-----, हमर जीनगी तँ-------।

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