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Monday, April 9, 2012

राजदेव मंडल - रखबार



धानसँ भरल खेतमे गाछ सुतल अछि। पछिला साल तेहेन भयंकर बिहाड़ि आएल जे एकहि थप्परमे गाछकेँ सुता देलक। तहियासँ ई सुतलो अछि आ जागलो। एकर पाँचटा डारि पहरुदार जेँका ठाढ़ अछि आर टकटकी लागौने सौंसे बाधक पसरल गम्हरैल आ पाकल धान दिस ताकि रहल अछि।
‘‘खबरिदार, कियो भरल चासमे हाथ लगेबेँ तँ भारी डण्ड जरिमाना लगतउ।’’
ई शब्‍द सुनमसान बाधमे हवापर हेल रहल अछि। आ एहि शबदकेँ सभ नहि सुनैत अछि। सुनैत अछि चोइर कर्ममे संलग्न बेकती। ओकरा तँ अन्हारमे ठाढ़ गाछ लोक सन आ भुक-भुकाइत भकजोगनी हथबत्तीक इजोत सन बुझि पड़ैत अछि। चंचल मन आ भितरिया डर....। चोर कहुँ इजोत सहै।
ओना लोक कहैत अछि- ‘‘जे ई गाछ संगहि ई बाध देवगनाह अछि। आ गाछक खाली जगहमे ई पाँचोटा मोंटका डारि कतेक दिनसँ ठाढ़ आछि। ओ मुईल वा जीअत रखवार थोड़े भऽ सकत।
एहि भरल दुपहरियामे असल रखबार तँ भेटत गामपर। चैबटिया गाछतर।
सरुपा, गणेशी, भोली आओर चोरेबाल ताशक पत्ता फेकबामे अपस्याँत। बुइधक कैंची चलबैत पूरा तागदकेँ साथ। जे हारि जएताह ओकरा साँझमे मूढ़ीकेँ जलखई आ चाह पियाबए पड़तैक। तैं सभ अपन दाव-पेंच लगेबाक लेल सतर्क।
ओना चिन्ताकेँ कोनो गप्प नहि। किछु गिरहतक धान पाकि गेल अछि। दू-चारि दिनमे कटि जएतैक। कटतैक किएक नहि। ओ सभ बुइधगर आ चंखार गिरहत अछि। धानक बीया शहर-बजार आ बाहरसँ मंगाकेँ समएसँ पूर्व लगौने अछि। मास दिन पहिले काटियो लेत। नवका धान, बलौकिया बीज। बूढ़ सभ ओहिना चिचिआइत रहत-जे एहि अँगरेजिया धानमे ताकत नहि होएत अछि। ई पुरनका राग अलापलासँ देस-दुनियाँ ठाढ़ थोडे़ रहतैक। ई तँ आगू बढ़ैत रहल अछि आ बढ़ैत रहत। नव अविसकारकेँ रोकि सकैत अछि।
किन्तु एहि नवका धानक चोर बड्ड-बेसी चिड़ई-चुनमुनी आ जीव-जन्तुसँ लऽ कऽ लोक-वेद धरि।
चोराक धान छोपताह रखवार। मूरही लेताह आ चाह पिबताह आ नाम लगतैन्ह चोरकेँ।
चोरेबालकेँ गामक लोक कहबामे सुभीताक लेल चोरबा कहैत अछि। चोरबा नाम रहितो ओ इमनदार अछि। किछु खेतीसँ आ किछु रखवारिक धान बचाकेँ हरेक साल जमीन किनैत अछि।
एहिना ढोलाय मड़र परिश्रम करैत आर ईमानकेँ साथ रखवारि करैत छल। आई ओ सम्पन्न गिरहत बनि गेलाह। तहिना चोरबो बनि जाएत। किएक नहि बनत?’’
ओ अपन इमान बचैने अछि लगन लगा कऽ काज करैत अछि।
असल चोर आ लुच्चा तँ अछि मुसबा रखबार। केकर जजैत आ फसिल कखन काटि छोपि लेत वा कटवा दैत से ककरो पता नहि। गामक कतेक लोक विरोध कएलक- ‘‘जे मुसबाकेँ अगिला बरिस रखवारसँ हटा देबैक। किन्तु अगिला बरिस पुनः रखवारिक लेल एक नंबरपर मुसबाकेँ नाम। एकर सबसँ पैघ कारण रामशरण सिंह। सिंह जी गामक सभसँ पैध गिरहत। सब दृष्टिकोणसँ। कुनक खेत-पथारकेँ देखवा-सुनबा आओर रखवारिक पूर्ण जिमेवारी मुसबेपर रहैत अछि। बारहो मासक लेल। मुसबाकेँ नामो बदलि गेल अछि। सभ गोटे ओकरा रखबारे कहैत छैक।
मुसबाकेँ रखवार रहलासँ सिंह जीकेँ दुई फैदा। रखवार सौंसे गामक किन्तु सिंहजीक खेती केँ विशेष देखभाल। दोसर ई जे बारह मासक मजदूरी मुसबाक भेटबाक चाही। किन्तु सिंह जी तीन मासक मजदूरी कम दैत छल। आ ई कहि संतोख दैत छल- ‘‘जे तीन मासक लेल तँ तू गामक रखवार रहैत छी। तोरा गाम दिशसँ रखबारिमे अनाज भेटतहि छौ। तेँ तीन महीनाक काटि कऽ भेटतौक।’’
सभ गप्प बुझितो मुसबा अपना समांग जेँका सिंहजीक खेती-पथारीकेँ देखैत छल। आर अपनाकेँ धन्य बुझैत छल। ओ सोचैत छल- जे सिंहजीक किरपा रहत तँ हमरा कियो रखबारिसँ हटा नहि सकैत अछि। सँगहि समाजमे जे नीक-अधलाह करैत छी वा बजै छी तेकर बादो हमरापर किछु नहि होइत अछि। सिंह जीक परभावसँ बचल रहैत छी।
आब रखबारो चुनैत काल गाममे बड्ड राजनैति होइत अछि। के बेकती कोन पैघ गिरहतसँ मिलल अछि आ केकर गप्पक परमुखता समाज देतैक। केकरा रखवार राखि लैत आ केकरा हटा देतैक से कहब मोसकिल।
पहिले ई सामाजिक व्यवस्था छल जे गामक पंचायतमे सभसँ बेसी जमीन-बाला मालिक जेकरा सभकेँ चुनि दैत छल ओ सभ रखवार भऽ जाइत छल। किन्तु बादमे एहि गप्पक विरोध भेलैक। धन आ शिक्षा बढलासँ सभ जाति अपन-अपन सिर उठौलक। तँ आब सभ जातिसँ एक-एकटा रखवार राखल जाइत अछि। जेकर संख्या कम अछि तँ दू जाति मिलि एकटाकेँ राखल जाइत अछि। ऐनामे के रखवार रहताह के हटताह से कहब मोसकिल। कोन गिरहकतसँ केकरा बेसी परेम भाव अछि। जे ओकरा लेल पंचायतमे लड़त। आ ओकर गप्प रहिये जाएत, कहब कठिन।
ओना रखवार बनैक लेल बहुत गोटे तैयार रहैत अछि। एहिसँ दूटा लाभ। अपना खेतीकेँ रखबारि नीक जेंका तँ होएतहि अछि। संगहि रखवारिसँ प्राप्त विशेष आमदनियो। तेँ एहि कारजक लेल बहुत गोटे तैयार। किन्तु बनताह तँ भाग्यवाला। तईयो किछु एहनो तेज आ गुणी बेकती अछि जे सभ साल रखवार बनबे करताह।
ओहने बेकती अछि-मुसबा। पाँचो रखवार मिलि रखबारि वाला धान मुसबा एहिठाम जमा रखता। ओहिठाम दौनी करा कऽ पाँचटा कुड़ी लागत आ सभसँ बड़का कुड़ी मुसबे उठा कऽ लए जएताह।
मुसबाक परिबारोमे कोनो बेसी काज नहि। रखवारकि लेल एकदम ठीक बेकती। राति-बिरैत न चोर-डकैतक डर आ नहि साँप-कीड़ाकेँ। चाकर-चैरठ, भुटगर कारी देह। पैंतालीस बरख उमेर भेला बादो जुआन सन लगैत अछि। अकेल खड़ खाईवाला। गाममे मारा-पीटी कएलाक कारणे दूई बेर जहलसँ खिचड़ी खा कऽ आपस आएल अछि।
पत्नी दमा रोगक कारणे दिन-राति खोंखिआइत पड़ल रहैत अछि।
चारि बरस पूर्व एक राति पुतोहसँ थप्पर-मुक्का करैत छल। जुआन बेटा किमहरोसँ आएल। पत्नीकेँ बेसी मारि लगैत देखि ओहो मुसबाककेँ मारए लागल। मुसबा करोधमे आबि मोटका डेढ़हथ्थीसँ बेटाक कपार फोड़ि देलक। ओहि दिनसँ बेटा-पुतोह भिन्न भऽ गेल। बेटा दिल्लीमे कमाइत अछि। आ जाईत काल ओ अपना पत्नीकेँ भाला-बरछी देने गेल अछि। आर कहि गेल अछि- ‘‘जँ हमर बाप तोरासँ झगड़तौ तँ सीधे भाला भोंकि दिहैक। ओ तोहर ससुर नहि काल छिओ।’’
एहि गप्पक पूरा पत्ता मुसबाकेँ छै। तैं ओकरा कतउ डर नहि किन्तु आँगनमे डैरा जाइत अछि। हेओ अपनो गाछी बड्ड भुताह।
भरि दिन मुसबा बाधक ओगरबाहि करैत अछि आ साँझखिनकेँ चैकपर सँ ताड़ी पीबि आबैत अछि। आर निशॉंमे मातल अधरतियोमे अल्हा-रुदलक गीत गाबै लगैत अछि।
चोर-चहार धसबाहिनी बाध जाइते ओकरा डरे थर-थर कँपैत। कहीं मुसबा आबि गेल तँ कि होएत पता नहि।
बेसी काल मुसबा ओहि सुतलाहा गाछक झोंझिमे बैसल रहैत अछि। किन्तु एखन तँ ओहिठाम अछि-सुमनी।
सिहारबाली अर्थात सुमनी।
जोखनकेँ पुतौह। कद-काठी बेस नमगर, छरगर गोर पतरिया चमड़ी।
ओकर पति फेकुआ चारि मास बाहर खटैत अछि तँ दू मास गामपर रहैत अछि। अगहन आ अखाढ़क समएमे गिरहतक काज करैत अछि।
सुमनीकेँ तीन बरख पहिले एकटा संतान भेल रहैक। तेकरो छठिहारक राति पछुआ दाबि देलकै। तकर बादसँ कोखि नहि भरल।
किन्तु सुमनी एहि बातसँ निराश नहि अछि। ओ बुझैत अछि जे आइ नहि काल्हि बाल-बच्चा हेबे करत। आब तँ शहरमे बड़का-बड़का डागदर बैसैत अछि।
ओकरा बाल-बच्चासँ अधिक चिन्ता ख्ेाती-पथारी बढेबाक अछि। आओर ओ उन्नैत माल-जालसँ उन्नैत करबाक लेेल परेशान रहैत अछि। तेँ दुपहरियाक टह-टह करैत रौदमे सुमनी धास छिलबाक लेल निकलल अछि।
की करत बेचारी। घर-आँगनाक काज ओकरहि करए पड़ैत अछि। बूढिया सौस हरदम बेमारे रहेत अछि। ससुर कखनहुँ-काल खेत-पथार देखि आबैत अछि। से बात ठीक। किन्तु दुआरपर आबितहि बूढबाकेँ अस्सी मन दुख सवार भऽ जाइत छैन्हि। आ अनका दरबज्जापर खूब गप्प हाँकैत रहैत अछि। सभकेँ फरियाक कहैत रहैत अछि- ‘‘बेटाक बाहर चलि गेलासँ बेसी काजक भार हमरहिपर पड़ि गेल। एको पलक पलखति नहि।’’
किन्तु सभटा फूसि। सभसँ अधिक खटनी सुमनीकेँ। तइयो सुमनी अपना सौस-ससुरकेँ निदादर नहि करै चाहैत अछि। कारण ई अछि जे बियाहमे सुमनीक बापसँ एकोटा रुपया दहेजक नामपर नहि लेलक। बादोमे एहि बातक लेल उलहन-उपराग नहि देलक। संगहि सुमनी जँ बेमार पड़ैत अछि तँ ओकरा ससुर दबाई-विरो करबामे एको रती कोताही नहि करैत अछि, सौस दिन-राति सुमनीक सेवा-टहलमे लगल रहैत अछि। सुमनीक सभ दिनसँ कनेक झनकाहि आ बाजै-भुकएमे टेटियाह। किन्तु सौस-ससुर ओकर बातकेँ सहज भावसँ स्वीकार करैत अछि तेँ सौस-ससुर आ पुतौहमे खूब गाढ़ परेम...।
जहिना माइक दुलारि तहिना सौसक दुलारी। कोनो बातमे अड़ि जाएव। अपना मोनक अनुकूल। ई लक्षण ओकरा बेदरहिसँ अछि।
मात्र दूई दिन दियारीकेँ रहि गेल अछि। जाहिसँ काज आरो बढ़ि गेल अछि। जिनकर घर टाट-बाँसक अछि। दिनभरि घर-आँगनमे गोबर-माटिसँ घरबा-दुअरबा खेलैत रहू। कतबो नीपब-पोतब तइयो एकटा कोनचार टूटले रहत। तइयो सभ अपना पड़ोसियासँ प्रतिस्पद्र्धा करैत काजमे व्यस्त।
गाछक छाँहमे बैसल सुमनी सोचि रहल अछि। सोचबाक नहि चाही। चोइरसँ पूर्व जँ कियो सोचए लागत तँ चोइर हेबै नहि करतैक। फेरि पुलिस-दरोगा, कामकेँ। कोर्ट-कचहरी कोन कमा कऽ। किन्तु चोरोकेँ कखनहुँ-काल सोचए पड़ैत अछि। खास कऽ नवका चोरकेँ। चोरो तँ बहुत प्रकारक होइत छैक। ताहूमे ई तँ चोर नहि चोरनी छल। तेँ बेसी सोचैत छलीह।
‘‘लार-पुआरक अभाव भऽ गेलासँ गाए-मालकेँ सभसँ बेसी दिक्कत। आब जँ टगली बेरमे घास छिलब तँ साँझतक घास छिलैत रहि जाएब। बगलमे खसलाहा धान अछि। छाँहमे धान तँ हेतैक नाहि। ओहो गाछतर दबल अछि। ऐतेक बड़का गिरहतक अछि। दस मुट्ठी छोपि लेलासँ एकर की बिगड़तै। किन्तु हमर तँ बिगड़त। दुधगर गाएकेँ खाइक तिरोटी भेलासँ दूध सूखि जएतैक। दोसर बहनजोग बाछीकेँ भरि पोख धास नहि भेटलासँ ओ कमजोर भऽ जएतैक। एखन तँ बेबस आ लाचार छी, नचारकेँ आगू बिचार की। एकरा कुकरम नहि कहल जा सकैत छैक।
एहि बेरसँ हम अपना पतिकेँ बाहर कमाए लेल नहि जाए देबैक गेल छैक। रुपया कमा कऽ आनबे करता। एकटा औरो खरीद लेब। तीनू गायकेँ पालब-पोसब आ दूध चैकपर उठौना लगा देबैक। तेना कऽ रास्ता लगेबै जे एकटा बिआएल रहत तँ दोसर गाभिन। आब एकरहि पाईल बढ़ेबाक छै। सम्हार नहि हैत तँ एक आधकेँ बेचि खेतो कीनि लेब। चारा कऽ दिक्कत छै तँ पछुआरक बाड़ीमे धासक बीया बुनि देबैक।’’
ओ कलेजाकेँ मजगुत कएलक। रखवारसँ कन्नी कटिकेँ आएले रहए। हाँय-हाँय धान छोपए लागल। पहिलेसँ काटल घासक पथियाक लगमे गेल। गम्हरैल छोपल धान छीटामे रखलक, उपरसँ धास फुलकैक राखि देलक जाहिसँ धान देखबामे नहि आबि सकए। तरका धान उपरका घाससँ झँपा गेल। तब जेना भीतरका थरथरी कम होअए लागल।
सुमनीकेँ बुझएलै जेना पाछूमे कियो ठाढ़ भेल हो। आ ओकर सभटा अधलाह काज देखैत हो। फेरि सोचलक-जे एतेक टह-टह करैत दुपहरियाकेँ रौदमे के एताह। ई सोचेत संतोख भेल।
खर-खर जेना पाछूमे किछु खड़खड़ाएल हो। ओकरा डर पैसि गेल। साइत भूत-प्रेत न हो। घुमिकेँ पाछू दिस देखलक आ देखतहि रहि गेल। मुँहक बोली बन्न। छातीक धुक-धुकी तेज भऽ गेल। हाथ-पाइर जेना कठुआ गेल हो। किन्तु एहेन स्थिति बेसी काल तक नहि रहल।
तत्क्षण आएल परिस्थितिसँ लड़बाक क्षमता मनुक्खमे आबि जाइत छैक। ई क्षमता किनकोमे किछु कम किनको किछु बेसी होइत अछि।
अपना देह आ मनकेँ समान्य करबाक चेष्टा करैत सुमनी धासक पथिया उठेबाक चेष्टा कएलक।
मुसबाक कड़कैत स्वर निकलल- ‘‘, धासक पथिया उठा नहि सकैत छेँ। आइ धरा गेलँह। दस दिन चोरकेँ तँ एकदिन साउधकेँ। ओहि दिन गामक लगीचमे रहि तँ गारि दैत गामपर चलि गेलँह। अखन चिचिएबो करबहि तँ एतेक दूरसँ कियो सुनतौं।’’
याइद पड़ल सुमनीकेँ ओहि दिन मुसबा सुमनीकेँ देखैत ऐँठिकेँ बाजल रहै- ‘‘बाधमे धान रहे चाहे घसबाहिनी सबहक मालिक मुसबा। जे मन हेतै से करबै।’’
इएह सुनिकेँ सुमनी गारि दैत चलि गेल रहैक।
सुमनीकेँ चुप देखि मुसबा फेर बाजल- ‘‘आब तँ तोरा जरिमाना लगबे करतउ। कियो नहि बचा सकैत छौ।’’
सुमनीकेँ स्मरण भऽ उठल-ससुरक लाठीक हूर। सौसक खोरनीक मारि। भरल पंचायतमे छौंड़ा सभक पिहकारी। जरिमाना जे लगत से अलगे।
तइयो ओ हिम्मत बान्हलक- ‘‘हम देसराकेँ खेतमे हाथ नहि देलिए। हमरा पथियामे कहाँ किछु अछि। लोग घासो नहि कटतैक। माल-जालकेँ एतेक दिक्कत छैक। हमरा बेर भेल जाइत अछि। हम जा रहल छी। हमरा कियो नहि रोकि सकैत अछि।’’
पथिया उठा कऽ चलल। करोधमे आबि मुसबा घासक पथिया ठेल कऽ गिरा देलक। आ घास उझलिकेँ झिड़ियाबैत बाजल- ‘‘ई की छिओ? आब कोना बँचबे?’’
सुमनी लाजे कठुआ गेली किन्तु कोनो बहाना तँ करए पड़त सुमानीकेँ बाजलि- ‘‘ई धान हम अपना खेतमे काटलहुँ। माल-जालकेँ बचेबाक लेल तँ कोनो उपाय करऽ पड़त।’’
मुसबा ओकरा देहकेँ गहींकी नजरिसँ देखैत मुड़ी हिलाबैत बाजल- ‘‘हँ, अपना मालक जान बचा आ दोसरकेँ गरदनि काट। गे कहै छियौ-आबो लत हो। हमर बात सुन। साँपो मरि जाएत लाठियो नहि टूटत।’’
सुमनी सोचलक- कहीं कोनो नीके गप्प कहैत हुए। डुबैत काल तिनका भेेट जाए। पूछलक- ‘‘अच्छा की कहै चाहैत छहक।’’
मुँहक सुपारीकेँ चपर-चपर करैत। आँखि-मुँह चमकाबैत मुसबा बाजल- ‘‘कहबौ की। कतेक दिनसँ आस लगौने छी। कतेक बेर तोरा इशारासँ कहबो केलियौ। एक बेर हमरा मनक आस पूरा कऽ देखि, तोरा कोनहु गप्पक दुख-तकलीफ नहि होए देबौक। की मौगियाह फेकुआकेँ पाला पड़ल छेँ। सुन्नर जुआनीकेँ गारथ कऽ देतौक।’’
सुमनी थर-थर कँपैत, ललिआएल आँखि मुसबा दिस तकलक। आओर सोचलक-उमेर देखहक आ पपियाहाक गप्प सुनहक। जँ इज्जत नहि रहत तँ जीवि कऽ की करब। किन्तु लगैत अछि जे आइ देवी, महरानी बचैत तबे बाँचव। अपना शक्तिकेँ संग्रह करैत। कड़किकेँ बजली- ‘‘रे तोरा बाजैकेँ ठेकान छौ कि नहि। सभ धन बाइसे पसेरी बुझै छी। बड्ड खेत खेने छी। आई सभटा बोकरा देबौक।’’
कठहँसी हँसैत मुसबा एकरा मौगीक मलार बुझि लपकि सुमनीकेँ बाँहि पकड़लक। एहि बातमे मुसबा पहिलहुँसँ अभ्यस्त छल। कतेकोकेँ साथे कुकरम कएने छल, किन्तु आसक वीपरीत मुसबाकेँ सुमनी एक ऐँड़ मारलक। मुसबा फेर उठि सुमनी दिश बढ़ल। ओकरा बुझेलए घोड़ापर सवारी करबाक लेल एक दू चैताड़ तँ सहए पड़तैक। धाक छुटल नहि छैक। कने बलजोरी कऽ लेबै तँ कि कऽ सकैत अछि एहि सुन-मसान बाधमे। बात बढ़तैक तँ सिंहजी गिरहत अछिये।
ओकर किरदानी देखि सुमनीक सौंसे देह आगि नेश देलक। आँखि लाले-लाल थर-थर कँपैत शरीर। बाजलि- ‘‘सोझहासँ भागि जो नहि तँ...। किन्तु मुसवा नहि रुकल। आगू बढ़ल हँसुआ नेने सुमनी हुड़कल। चर-चर-चराक हँसुआक प्रहार कुरताक सँगे मुसबाक कनेक छातीयो चिरा गेल।
आँखि उठा कऽ देखलक तँ बुझि पड़ल। ओ सेाझामे सुमनी नहि कियो आन ठाढ़ अछि। साइत गाछक झोंझिसँ कोनहु देवी ओकरापर सवारी भऽ गेल।
हाथमे खूनसँ भीजल हँसुआ। साड़ीकेँ ढठा बन्हने करोधसँ करिआएल मुख, लाल-लाल आँखि, थर-थर काँपैत मुसबा दिश बढ़ल आबि रहल अछि।
गरजैत बजली- ‘‘आइ सभटा खून बोकरा देबोक। सभटा पाप पेट फाड़िकेँ निकालि देबोक। ठाढ़ रह ओहिठाम।’’
मुसबाकेँ बुझेलै जे आब प्राण बँचाएब मोसिकिल। ओ खिखिर जेँका पाछू घुरि पड़ेलाह। धाँहि-धाँहि खसैत पड़ा रहल अछि। ओकरा बुझि पड़ैत अछि जे पाछूसँ खूनमे भीजल आँखि आ हँसुआ दौड़ल आबि रहल अछि। आबि रहल अछि। निश्चय मनुक्ख नहि देवी चढ़ल अछि ओकरा देहपर। ओ चिचिया उठल- ‘‘हौ मालिक, हौ गिरहत, दौड़केँ आबह हौ।’’
किन्तु कतउ कियो नहि आबैत अछि। ओ अपस्याँत भऽ गेल अछि। हलफ सूखि रहल अछि। आँखिक आगू अन्हार सन बूझि पड़ैत अछि। फेर मोन पड़ितहिं जोर-जोरसँ पाठ करै लागल- ‘‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीश निहुँ लोक उजागर।

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