Pages

Saturday, April 7, 2012

केना जीब? :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल



सेवा निवृत्तिक सातम सालक सातम मास, सातम मासक सातम दिन सात बजे साँझमे दू-जनियाँ सोफापर दुनू परानी प्रोफेसर शंकर कुमार ओंघराएल माने पड़ल छलाह। दुनू बेकतीक मन खटाएल। दस बजेक करीब दिनेमे सुनने छलाह जे संगीक संगिनी चूल्हिक गैसक रिसावसँ झड़कि अस्पतालक सीटपर चिकड़ि-चिकड़ि कानि रहल छथिन। सत्तरि बर्खक अबस्थामे संगी अपने दौड़-धूप कऽ रहल छथि। मुदा अस्पतालक डाॅक्टर, नर्स आ कम्पाउण्डरो जी-जानसँ रोगीकेँ बँचबै पाछू लागल छथिन। तेकर कारण अछि जे एक तँ पाइक कमी नै छलनि‍ आ दोसर पहुँचो नीके। संगिनीक घटनाकेँ तँ सरस्वती लगसँ नै देखने छेलीह मुदा समाचारक रूपमे सुनने छेलीह। करेज तेना दहलि गेल छलनि‍ जे साँसक गतिसँ छातीक धुकधुकी तेज भऽ गेल छलनि‍। नस-नसमे भयक भूत समाए गेल छलनि। अन्हारक वाण जकाँ चारू कातसँ मृत्‍यूक तीर बेधए लगल छलनि। जहिना बैरागी रागसँ डरैत, जोगी भोगसँ डरैत तहिना सरस्वती मृत्‍यूक भयसँ।

पाँच सए एम.एल.बला ह्वि‍स्कीक बोतल प्रो. शंकर कुमारकेँ बेअसर बूझि पड़लनि। मनक चिन्ता रूपी तीर ह्वि‍स्कीक तीरकेँ रस्तेमे रोकने छल। लग अबै नै देनि‍। कछ-मछ करैत पत्नीकेँ कहलखिन- चाह पीबू।
सरस्वतीक मन चाह पीबैसँ सुरक्षित चूल्हि नै जराएब बुझनि। अपन अज्ञाक उल्लंघन होइत देखि‍ शंकरक मन महुराए लगलनि। जहिना भोज्य-पदार्थक बरतनमे गिरगिट खसि महुरबैत, तहिना। डेग भरि पाछू घुसुकि मुस्की दैत दोहरा कऽ कहलखिन- चलू, हमहीं चाह बनाएब। कीचेनक तँ सभ किछु देखल नै अछि। अहाँ देखा-देखा देब।
     
जिनगीक अंतिम अबस्थामे पतिपर जीत‍ देखि‍ ढेंग सन देहकेँ उठा कीचेन दिस बढ़लीह।
     
चाह बना कीचेने मे पीबए लगलथि। मुदा तैयो गप-सप्‍प करैक मन किनको नै करनि‍। मनक सोग नव विषयकेँ मनमे आबै ने देनि‍। जहिना घी नै अरघनिहारकेँ थारीमे देखि‍ते जीह ओकिऐ लगैत तहिना नव विचार अबि‍ते जीह माने मन पचपचाए लगनि। चाह पीब दुनू गोटे कोठरीमे आबि पुनः सोफापर पड़ि‍ रहलाह। गुम-सुम्‍म! जहिना साधक साधनामे लीन भऽ समाधिस्‍थ होइत छथि‍ तहिना दुनू गोटे अपन-अपन विचारक दुनियाँमे औनाए लगलाह।
     
सरस्वतीक नजरि पाँच बर्खक अबस्थापर पहुँचलनि। की छलए माए-बापक राज? खेनाइ, खेलेनाइ, पढ़नाइक संग पावनिमे उपास केनाइ आ फूल तोड़ि पूजा केनाइ। बस। यएह छलए जिनगी। मनमे सुख-दुखक जनमो कहाँ भेल छल। सोहनगर वातावरणमे बि‍आह भेल। नैहरसँ सेवा करए लेल नोकरनी आएल। सासुरो सम्पन्ने रहए। कोनो अभाव सासुरोमे नहिये रहए। नोकरे पानियो भरैत छल आ भानसो करैत रहए। अपनो प्रोफेसरे छलाह। पाइक संग प्रतिष्ठो बनौने छलाह। विद्यार्थीसँ शिक्षक धरिक बीच सम्मानित छलाह। अपनासँ बीसे बेटोक पढ़ैपर खर्च केलनि। आब जे महगाइ शिक्षामे आबि गेल अछि तइसँ इमानदार कमेनिहारक धि‍यापुताक लेल शि‍क्षा असंभव भऽ गेल अछि। दरमाहासँ तँ नहिये मुदा पिताक देल सम्पति‍सँ तँ एत्ते जरूर केलनि। अमेरिकामे बेटाकेँ पढ़ा लिलसा मेटौलनि। मुदा अखन की देखै छी? अबस्थामे दिन-राति तीन मंजिलापर उतरब-चढ़ब पार लागत। ओहि‍ना तँ हाथ-पएर बिनबिनाइत आ देह भारी बूझि पड़ैत अछि। तइपर परिवारक सभ काज? उमेरमे बूढ़ि-कनियाँ बनि जीब रहल छी। तरे-तर पसेना चलए लगलनि। अनायास मुँहसँ निकललनि- जीवनसँ मरब नीक।
     
पत्नीक बात सुनि शंकर कुमारक भक्क टुटलनि। अखन धरि हिनकर चेतनाहीन भेल मन देखैत छलनि अपन पछि‍ला जिनगी। गामक स्कूल। कत्ते सिनेहसँ पिताजी घरक देवताकेँ गोड़ लगा, कन्हापर चढ़ा सरस्वती माताक जयकहि‍ आंगनसँ निकलि सरस्वतीक मंदिरमे लऽ गेलाह। की हम ओइ‍सँ कम अपना बेटाकेँ केलौं? कथमपि नै। डेरामे गाड़ल देवता तँ नै अछि मुदा देबालमे टांगल फोटो आ अष्टद्रव्यक बनाओल मुरती तँ अछि‍ये। बाड़ीक वसन्ती गुलाब तँ नै मुदा मह-मह करैत भकराड़ रूपमे बनल प्लास्टिकक फूल तँ चढ़ौनहि छियनि। धुमन-सरड़क धूपक बदला गुगुल आ अगरबत्ती तँ चढ़बि‍ते छियनि। मोटर-साइकिलपर चढ़ा शहरक सभसँ नीक विद्यालयमे पढ़ेबे केलियनि। जतेक पिताजी हमरा पढ़ौलनि, एक सीमा धरि पहुँचा देलनि, तहिना तँ हमहूँ केलियनि। नोकरी भेलापर ताधरि पत्नी गाममे रहलीह जा धरि बाबू-माए जीबैत रहलाह। मरि‍तोकाल धरि माए संगे खाइले कहथि। संगे तँ नै खाइ एकठाम बैस कऽ जरूर खाइ। मुदा बेटाकेँ जहियेसँ कनभेंटमे नाओं लिखेलौं तहियेसँ एके शहरमे रहनौं फूट-फूट रहए लगलौं। समैक संग शिक्षो बदलल। एकाएक नजरि आगू बढ़ि जिनगीक अबस्थापर गेलनि। चारिम अबस्था। जइ अबस्थामे सभ कथूसँ सम्पन्न भऽ, अभावकेँ निर्मूल माने नष्ट कऽ परिवारसँ ऊपर उठि समाजमे मि‍लि‍ जाएब होइत छै। हमर समाज केहेन? जइ समाजमे मनुखक संग-संग जीव-जन्तु, माटि-पानि, घर-दुआर धरि एक-दोसराकेँ नीक-अधलाह, सुख-दुखमे संग दैत अछि। एकठाम बैस सभ भोज-काजमे खाइत अछि, दसगरदा उत्सवो हॅसी-खुशीसँ मनबैत अछि, ढोल-डम्फापर होरी गाबि-गाबि नचबो करैत अछि, जूरशीतलमे इनार-पोखरि उड़ाहबो करैत अछि, शिव-पार्वती बना बाजाक संग गामो घुमैत अछि
     
बेटाकेँ अमेरिकामे पढ़ेलौं। ओ ओइ‍ समाज आ संस्कृतिमे तेना मि‍लि‍ गेल जे अपन सभटा बिसरि गेल। आइ जँ हम अमेरिका जाए रहए लगी तँ ओइ‍ठामक जिनगी दुनू बेकतीकेँ कतेक दिन जीबए देत? की दुनियाँमे मृत्‍यू छोड़ि हमरा लेल किछु शेष नै बचल अछि। निराश मनमे एलनि करनी देखिहह मरनी बेर।जिनगीमे कतऽ चूक भेल? जँ चूक नै भेल तँ अबस्थामे पहुँचि‍ केना गेल छी?
     
पत्नीक बात जीवनसँ मरब नीकसुनि धड़फड़ा कऽ उठि बजलाह- अखन सुतैक बेर अछि जे सुति रहलौं?”
- “सुतल कहाँ छी। भानस करैसँ मन असकताइत अछि
- “तँ की भुखले रहब। शंकर कुमार बाजि तँ गेलाह मुदा मन पाछू घुरि कऽ तकलकनि। एक तँ ओहिना मरैक बाट धेने छी तहूमे जे दस-बीस बर्ख जीबो करितौं से तेहन रोग भेल जाइत छन्हि जे भुखले मरब। रातिमे खाएब नै तँ नीन केना होएत? जँ नीन नै होएत तँ जीब कतेक दिन?
पत्नी- कता दिन कहलौं जे नोकर रखि लिअ?”
नोकर सुनि शंकर अमती काँटक ओझरीमे पड़ि गेलाह। देखैमे नान्हि-नान्हिटा मुदा छाँह जकाँ छोड़ैले तैयार नै। मनमे जोर मारलकनि जे अपने जिनगी भरि नोकरी केलौं। बेटो-पुतोहु -दुनू इन्जिनियर- अनके नोकरी करैत अछि आ अपने नोकर रक्खू। जहन ड्यूटी करैत छलौं बेसी तलब उठबै छलौं, तहन नोकरे ने रखलौं। कारणो छलए जे पत्नी थेहगर छेलीह। बेटा-पुतोहुक अाशो छल। सरस्‍वती थोड़े बुझै छेलखि‍न जे बुढ़ाड़ी एहेन हएत। आइ-काल्हि नोकर कत्ते महग भऽ गेल अछि से थोड़े बुझै छथिन। तकलीफ हेतनि तँ बजबे करतीह। भलहि‍ं हमरा बुते पुराओल हुअए वा नै। पहिले जकाँ पाँच रुपैया दस रुपैयामे नोकर भेटत? तहूमे बाल-बोधकेँ थोड़े रखि सकै छी। अनेरे लेनी-के-देनी पड़त। घरक सुख जहलमे भेटत। जँ सियान राखब तँ तीन हजारसँ कम लेत? तहूमे कि कोनो स्कूल-कओलेज आकि मि‍ल-फैक्टरीक नोकरी हेतै। घरमे काज करत तँ खाइले नै देबै से हएत? तहूमे तँ नीक-निकुत बेसी वएह खाएत। तहूमे तेहेन समए आबि गेल जे कहीं सम्पति‍ये ने दुनू बेकतीक जानो लऽ लि‍अए। जानपर नजरि पड़िते आँखि ढबढबा गेलनि। जाने नै तँ जहान की? जहिना वीणाक तार टुटलापर अाबाज खनखना कऽ निकलैत छैक तहिना टुटल जिनगीक स्वरमे शंकर कुमार पत्नीकेँ कहलखिन- अहाँक मन असकताइत अछि तँ पड़ू। कहुना-कहुना कऽ क्षुधा तृप्त करै जोकर टभका लइ छी।
मने-मन सरस्वती बजलीह- केना जीब?”

ःःःःःःःःःः

No comments:

Post a Comment