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Sunday, April 8, 2012

कत्तौ नै :: जगदीश मण्‍डल


कत्तौ नै

चारि‍-पाँच बर्खसँ जनकपुरक बि‍आह पंचमी देखैक वि‍चार मनमे उठैत रहल मुदा माए कहैत छेलीह- ‍अखन बाल-बोध छह कतौ हरा-तरा जेबह।
माइक बात नीक नै लगाए। हुअए जे जहि‍ना गाम-घरमे लोक नै हराइए तहि‍ना ओतौ किअ‍ए हराएत? ई नै बुझि‍यै जे ओइठीन दूर-दूरक लोक देखए अबैए, जइसँ भीड़-भाड़ बढ़ि‍ जाइ छै। भीड़े-भाड़मे बालो-बोध आ चेतनो हराइत अछि‍। चौदहम बर्ख टपि‍ते पनरहम शुरूहेँमे अगहन इजोरि‍याक पंचमी आएल। गामक लोकमे मेला देखैक सुन-गुनी शुरू भेल एक्के-दुइये सौंसे गाम पसरि‍ गेल। एक गामक कोन बात सगतरि‍ भेल। हमहूँ सुनलौं। माइक बात मन पड़ल। भलहि‍ं भोट खसबै जोकर नै भेलौं मुदा बालो मजदूर जोकर तँ नै रहलौं। हराइयो जाएब तँ की हेतै? अपन खेबा-खरचा ने तीनि‍ये दि‍नमे सधि‍ जाएत मुदा तैयो तँ कमाइत-खटाइत, खाइत पीऐत दस दि‍न पछाति‍यो तँ आबि‍ये जाएब। आशा जगल। बि‍सबास बढ़ल। माएकेँ कहलि‍यनि‍- गामक लोक उनटि‍ कऽ जा रहल छथि‍, हुनके सभ सेने हमहूँ जाएब।‍
माए कि‍छु बजली नै। एतबे बजली- नुआ-बस्‍तर खीच लि‍हह।‍
माएक बात सुनि‍ बि‍सबास भऽ गेल। मनमे उठल- टि‍कुला बीआ जकाँ थोड़े खि‍च्‍चा छी, भलहि‍ं पाकल जकाँ सक्कत आँठी नै भेलौं मुदा कोशाएल जकाँ तँ जरूर सकता गेल छी।
अगुआएल-पछुआएल दुआरे गामक बीच यात्रीक गि‍नती नै भेल। ओना गि‍नतीक महत बुझबो ने करि‍ऐ। गामक सि‍मानपर पहुँचि‍ते अगि‍ला यात्री रुकि‍ कऽ पछि‍ला सभकेँ हाथक इशारासँ शोरो पाड़थि‍न आ आँखि‍ उठा-उठा देखबो करथि‍। हमहूँ पहुँचलौं। पतराइत रस्‍ता देखि‍ गि‍नती हुअए लगल। मर्द-औरत मि‍ला सत्ताइस गोरे भेलौं। गि‍नतीमे सभसँ उमेरगर सुचि‍ता दादी रहथि‍। बजलीह- सभ कि‍यो सुनि‍ कऽ कान धड़ब। तीर्थ-वर्त करए जाइ छी तँए रस्‍ता-पेरामे ककरो कोनो चीज बौस नै छूबै, झूठ-फूस बाजि‍ ककरो ठकबै नै। भाए-बहि‍न जकाँ सभकेँ बुझबै आ कि‍यो अगुआ-पछुआ जाएब तँ ठाढ़ भऽ कऽ संग करैत चलब।‍
दादी गप्‍पक असरि‍ भेल। सभसँ कम उमेरक रही। बि‍ना कहने-सुनने कफलाक टहलू बनि‍ गेलौ। दादी सुचि‍ताकेँ कहलि‍यनि‍- दादी, अपना कम्‍मे समान एक अढ़ैया चूड़ा आ कपड़ा झोरामे अछि‍, अहाँकेँ भारी लगैत हएत, लाउ नेने चलै छी।
बात सुनि‍ दादी छि‍ट्टा भरि‍ असि‍रवाद दैत अपन मोटरी देलनि‍। मोटरीक संग दादी अपन पुरना खेरहा सभ कहैत चलए लगलीह- बौआ, अहि‍ना कुशेसर जाइत रही। तीन बर्खसँ नि‍यारैत रही घरमे गाइक घी पड़ल रहै। केना चौदह कोस डेढ़े दि‍नमे चलि‍ गेलौं से बुझबे ने केलि‍ऐ। तइ दि‍नमे समरथाइयो रहए।‍
कतऽ-कतऽ गेल छि‍ऐ दादी?
कनी काल गुम रहि‍ मन पाड़ि‍ बाजए लगली- अपन गामक तीनू स्‍थान- दछि‍‍नमे कुशेसर, पूबमे सि‍ंहेसर आ उत्तर- पच्‍छि‍म जनकपुरक बीचमे पड़ैए। कनि‍ये रस्‍ताक तड़पट हेतै। हँ, तँ कहए लगलि‍यह, अहि‍ना आठ-नअो गोटेक कफलामे सि‍ंहेसर स्‍थान वि‍दा भेलौं। अखन‍ तँ चढ़न्‍त जाड़ अछि‍ मुदा शि‍वराति‍क समए जाड़ फटए लगैत छै‍क। सबहक वि‍चार भेल जे घोघरडी‍हा तक टेनसँ जाएब, फेर सुपौल तक पएरे जाएब आ सुपौलसँ बस पकड़ि‍ जाएब।
बिच्चे‍मे पुछलि‍यनि‍- ‍कोसी धार सेहो टपए पड़ल हएत कि‍ ने?”
हँ, हँ। पहि‍ने टेनक बात सुि‍न लएह। जखन गाड़ीमे चढ़लौं तँ खाली सीट सभ देखलि‍ऐ। दुनू कातक सीट मि‍ला कऽ तीन-चारि‍ गोरे बैसल रहै। हमरो सभकेँ जगह भऽ‍ जाएत। मुदा तेहन ऐंठल सभ रहै जे नहि‍ये बैसए देलक। पुरुख सभसँ मुँह केना लगैबतौं। सभ स्‍त्रीगणे रही।
किअ‍ए ने बैसए देलक?
तेहन-तेहन छुद्दर पुरुख सभ भऽ गेल अछि‍ जे ककरोमे पुरुखपाना छइहे नै। अपना अइठीनक पुरुख अनको माए- बहि‍नकेँ अपन बुझैत अछि‍। ओइ इलाकाक थोड़ै बुझै छै। ठाढ़े भेल घोघरडी‍हा तक गेलौं। नि‍च्‍चामे बैसबो करि‍तौं से तते सि‍करेट-बीड़ीक अधजरुआ टुकड़ी आ चि‍नि‍याॅ बदामक खोंइचा रहै जे बैसैक परपन‍ नै भेल।
मोटरी की केलि‍ऐ?
मथेपर रखने गेलौं। ऊपरका सीटपर गेंड़ा जकाँ दूटा मुनसा सुतल रहै कि‍न्नो नै मोटरी रखए देलक। जखन कोसी धारमे नओपर चढ़लौं तखन‍ फेर घटवारक संगे कहा-कही हुअए लगल। मुदा बाबापर सुरति‍ लगा कहुना पहुँचि‍ गेलौं।‍

स्‍टेशन पहुँचि‍ते गप-सप्‍प बन्न भेल। गाड़ी आएल। सभ कि‍यो चढ़ि‍ गि‍नती कऽ जयनगर पहुँचलौं। जयनगर प्‍लेटफार्म यात्रीसँ भरल। ति‍ल रखैक जगह नै। मुदा एते बि‍सबास भऽ गेल जे एते दूर देखलो भइये गेल। आब तँ बालो-बोध नहि‍ये छी जे बि‍सरि‍ जाएब। जँ कहीं छुटि‍यो जाएब आकि‍ हराइयो जाएब तैयो घुरि‍ कऽ गाम चलि‍ये जाएब।
नेपालक गड़ि‍यो छोट आ इंजि‍नो कमजोर मुदा तैयो नि‍च्‍चा-ऊपर लादि‍ यात्रीकेँ पहुँचाइये दैत अछि‍। गाड़ीमे चढ़ै-दुआरे कत्ते यात्री एक स्‍टेशन पएरे चलि‍ उनटामे चढ़ि‍ पहुँचैत छथि‍। मुदा सीमा कखैन टपलौं से बुझबे ने केलौं। लोको एक्के रंग आ बोलि‍यो तहि‍ना। जनकपुर पहुँचि‍ गेलौं।
यात्री देखि‍ मन उधि‍आ गेल। मन मानि‍ गेल जे ऐ भीड़मे कतौ जरूर हराइये जाएब। मुदा लोकक भीड़मे लोक अपनाकेँ हराएल केना बुझत। सभ तँ लोके छी। सबहक मुँहमे बोलो अछि‍ये। सभ तीर्थे करए आएल छथि‍ तखन‍ हराइक प्रश्न कत? मुदा तैयो मन थरथराइते रहए। फेर भेल जे हराएब तखन‍ ने, आ जँ नै हराइ। तइले अनेरे चि‍न्‍ता किअ‍ए करै छी। खाइत-पि‍बैत एक फेरा लगबैत तीन बजि‍ गेल। बि‍आहक प्रकरण तँ राति‍मे हएत मुदा बि‍आह होइक कारण तँ धनुष टुटब अछि‍। तँए पहि‍ने धनुखा जाएब उचि‍त हएत। घुमैत-फि‍रैत एक ठाम बैस सभ वि‍चारए लगलौं। बि‍आह प्रकरण देखए एलौं अखन धरि‍ बरि‍आति‍यो पछुआएले अछि‍। पछुलके धरमशल्‍लामे अॅटकल अछि‍। ऐठाम अबैमे चारि‍-पाँच घंटा लागत। से नै तँ अपनो सभ ताबे धनुखासँ भऽ आबी। एक स्‍वरमे वि‍चार भेल। बसक भाँजमे वि‍दा भेलौं। सभ आगू-आगू हम आ दादी पाछू-पाछू। यात्रीकेँ देखबैत दादी बजलीह- ‍बौआ, तँू ने अखन‍ तक दोसर कोनो स्‍थान (तीर्थ) नै गेल छह। मुदा हम तँ बहुत ने देखने छि‍ऐ।
एते बात सुनि‍ते मनमे भेल जे दादी कोनो ठेकनगर बात कहए चाहैत छथि‍। हुँहकारी दैत कहलि‍यनि‍- हँ से तँ ठीके। अखन‍ हमरा भेबे की कएलहेँ, जनमि‍ कऽ ठाढ़ भेलौंहेँ।‍
आगू दादी बजलीह- देखहक ई स्‍थान भगवान राम आ सीताक छियनि‍। अयोध्‍यावासी राम आ मि‍थि‍लाक जनकक कन्‍या सीता तँए दुनूक मि‍लन स्‍थल छी। तँए देखै छहक जे सभ रंगक यात्रि‍यो अछि‍ आ स्‍त्रीगण-पुरुखमे बेराओल हेतह जे पुरुख बेसी अछि‍ आकि‍ स्‍त्रीगण। तहि‍ना देखै छहक जे सभ रंगक मुँह-कानबला यात्री अछि‍। ककरो मान-अपमानक बात अछि‍। मुदा आन-आन स्‍थानमे से कहाँ देखबहक। जहि‍ना एकचलि‍या लोक तहि‍ना एकचलि‍या चालि‍।‍

मैक्‍सीपर बैस सभ धनुखा वि‍दा भेलौं। घंटा भरि‍ लगैत-लगैत धनुखा पहुँचि‍ गेलौं। गाड़ीक ड्राइवर आ खलासी उतरि  देखबए वि‍दा भेल। मंदि‍रक हाताक भीतर पहुँचि‍ते ड्राइवर बाजल- भगवान राम जे धनुष तोड़लनि‍ ओ तीन टुकड़ी भऽ गेल। एक टुकड़ी एतै खसल। सएह स्‍थान छी। देखै छि‍ऐ धनुषेक टुकड़ी छि‍ऐ कि‍ ने?
दर्शन केलौं। सबहक वि‍चार भेल जे बि‍ना कि‍छु खेने-पीने आ सनेस नेने कोनो जाएब। हमहूँ चाह पीब पान खेलौं आ हनुमानी बद्धी कीनि‍ कऽ गरदनि‍मे पहि‍रि‍ लेलौं। कि‍रि‍न डुमि‍‍ गेल। मुदा ककरो धड़फड़ी नै। कि‍एक तँ घंटा भरि‍ जाइमे लागत आ आठ बजेमे बरि‍याती दुआर लागत।
गाड़ी चलल। करीब चाि‍र माइल आगू बढ़ल आकि‍ अपने ठाढ़ भऽ गेल। पंचमीक चान, ओसेसँ घेराएल। झल-अन्‍हार। गाम-घर कतौ ने देखि‍ऐ। बीच पाँतरमे गाड़ी रुकल। ड्राइवरो आ खलासि‍यो रि‍न्‍च-हथौरी नि‍कालि‍ ठोक-ठाक शुरू केलक। हमहूँ सभ गाड़ीसँ उतरि‍ देखए लगलि‍ऐ। ठोकि‍-ठाकि‍ ड्राइवर गाड़ीमे बैस चलबए चाहे तँ चलबे ने करै। फेर उतरि‍ कऽ ठोकै मुदा फेर ओहि‍ना होय। समए बीतल जाए। मोबाइल देखि‍ ड्राइवर बाजल- आठ बजल।‍
दुआर लागबक समए बूझि‍ सुचि‍ता दादी बजली- कतऽ एलौं, तँ कतौ ने?
मन हुअए जे कहि‍ऐ- पाइ घुमा दैह। दोसर गाड़ीसँ चलि‍ जाएब। इजोरि‍यो डूबि‍ गेल। दि‍सम्‍बरक अंति‍म समए तँए जाड़ो बढ़ैत जाए। मुदा सभकेँ ओढ़ना रहबे करै, ओढ़ि‍ लेलौं। होइत-हबाइत भोरमे गाड़ी ठीक भेल। घुमि‍ कऽ जनकपुर एलौं। ताबे बि‍आहक सभ प्रक्रि‍या समाप्‍त भऽ गेल छल। रतुका जगरनासँ यात्रि‍यो सभ ओंघाएल। हमहूँ सभ तहि‍ना रही।
यात्री सभ ट्रेन पकड़ि‍ घुमए लगलाह। हमहूँ सभ नहा कऽ एक बेर‍ सौंसे मेला घुमि‍, डोरि‍-सि‍न्नुर आ सनेस कीनि‍ आबि‍ खेलौं आ गाड़ी पकड़ैले वि‍दा भेलौं। भरि‍ बाट दादी रटैत रहली- कतए एलौं, तँ कत्तौ नै। कतए एलौं, तँ कत्तौ नै। कतए एलौं, तँ कत्तौ नै।‍

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