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Saturday, April 7, 2012

संभावना- महाप्रकाश


ओ आबिते तपाकसँ पुछलनि- हाथी देखने छहअर्थ बूझल छह?
ओ अपन एहि प्रश्नक संग टेबुलपर झुकि आएल रहथि। हुनकर चानिपर उम्र आ अनुभव केर चमक रहनि। गज्जोभायक एहि प्रश्नसँ कनेक अकबका गेल रहथि जयवर्द्दन। हुनक आँखिमे देखैत उतारा देलनि जयवर्धन- हँ हौ... हाथीकेँ के पूछय, हम तँ ऐरावत सेहो देखने छी- अर्थ सेहो बूझल अछि।
उत्तर सुनैत गज्जोभायक आँखि जेना फाटि गेलनि। विस्मय आ अविश्वाससँ भरि अयलाह- ऐरावत! कतऽ देखलह?
-किएक वड़द देखऽ लेल अहाँ पशुपतिनाथक ओतऽ जाउ से भऽ सकैत अछि आ हम ऐरावत देखऽ इन्द्रक ओतऽ जाइ से संभव नै!
-इन्द्र तोरा कतऽ भेटलह?
गज्जोभायक अविश्वास अस्वभाविक नै रहनि।
-“इन्द्र तँ अहाँकेँ कत्तहु भेटत... ध्यानसँ देखहक ने... नै भेटतह तँ विष्णु! वि-शिष्ट अणु वि-शेष अणु-विलक्षण अणु- बिष्णु नै भेटतह- इन्द्र तँ आब जतऽ ततऽ“ - जयवर्द्धनक स्वरमे विश्वास रहनि।
गज्जोभाय जोरसँ हँसलाह- तोँ ज्ञानी लोक छह, आब जँ तोँ इन्द्रकेँ चीन्हैत छह तँ राजाकेँ चीन्हैत छह, जमीन्दार-सरकारकेँ सेहो चीन्हैत छह.. नीक बात..तोहर यएह गुण हमरा विवश करैत अछि जे हम तोरा एकटा कथा सुनाबी.. समय देबहक?
बाहर विकट रौद रहैक। कार्यालयसँ अधिकांश कर्मचारी जा चुकल छल। रौदमे थोड़बे काल चललासँ जयवर्द्धनकेँ पेशाब रुकि जाइत छनि। वीर रहथि । अतएव हुनका कथा सुनबेक छल ।
बजलाह- समय अछि, समय हमरा लेल पोस्ट कार्ड थिक जे जतबा लिखि..।
बस्स-बस्स भऽ गेलैक”.. गज्जोभाय बजलाह- राजाक मूल होइत अछि भय आ शंका..बूझल छह? ओ उपरका हो अबैत मोंछ राशिकेँ दूअ दिससँ सम्हारैत हाथ फेरलनि- मुस्टंड गवरू छौंड़ा रोज देखैत छल, जमींदारक हाथी सबार, परोपट्टामे घुमैत, दर्पसँ धधकैत जमींदार ओकर हाथीक मस्तान चालि....वाम-दहिन मूड़ी आ झारैत। ओ देखय आ मोन मसोसि कए रहि जाए। ओकरा रहि-रहि कए जमींदारक सूनल, देखल-मोगल कथा वृत्तान्त व्यथित करैक...। मुदा एक दिन...
बाहर रौद अखनो प्रचण्ड रहैक आ हवा सेहो उद गेल रहैक, जयवर्द्धन खिड़कीसँ बाहर देखलनि। विमछैत बजलाह-खिस्सामे मोन नै लागैत छह, ध्यान नै देबहक तँ कहबाक कोन प्रयोजन कोन..
-    नै-नै, ....एहेन कोनो बात नै- हबरब नै देखैत छहक.. केना आ कतेक गोंगिया रहल छै.. जयवर्द्धन किंचित म्लान मुख भेलाह।
-    धूः बुड़ि- हवाक रुख आकि बिगड़ैत पर्यावरणकें की तोँ बदलि देबहक..की हम बदलि सकै छी समयक गतिकेँ, अकानैत रहऽ आ वस्स..पे आ भोगैत रहऽ। वस्स..।
जयबर्द्धन के राजनीतिक पर्यावरणक सेहो स्मरण, मुदा आब ओ कथा रसमे व्यतिक्रम नै चाहैत रहथि- आगू कहह...
मुदा एक दिन ओइ गवरु मुस्टंडकेँ नै रहल गेलैक, जहिना ओ हाथीपर सवार दर्पसँ धधकैत जमीदार-सरकारकेँ देखलक,... ओकरा छातीमे जेना लहरि उठलैक...ओकर पहिल इच्छा भेलैक जे ओ सीधे जमींदारपर छड़पय आ हौदाक संगे जमीनपर पटकए.. मुदा एतेक ऊँच ओ फानि नै सकैत छल..अथच ओ हाथीक नाङरि पकड़ि अपन पएर जमीनपर अंगद जकाँ रोपि देलक...वाम दहिन, आजू बाजू देखैत...हाथीपर सवारकेँ आघात भेलैक, हाथीक मस्तान चालिमे व्यवधान अयलैक..हाथी चिंघाड़ कयलक ....महावत जोरसँ बमकल...गज लए छौड़ापर उठल....
भयाक्रान्त जयवर्द्धनक मुँह खुललनि, एकदम्मे अंतिम  प्रश्न कयलनि- छौड़ा बजलैक की नै?”
-हँ हौ, जमींदार पढ़ल लिखल लोक रहथि शिक्षित लोक.. हनकर पुरखा सभ सेहो विदेशी विद्यालय आ विश्वविद्यालय सभमे पढ़ने रहनि...अपनो कैबरिज कि हावर्डमे पढ़ने रहथि... हुनका भाषाक महिमा आ वाणीक प्रभावक विशेष ज्ञान रहनि। अतएव क्रोधकेँ घोंटलनि आ शांत स्वरेँ महावतकेँ वरजलनि- छोड़ह अवूझ छैक..नेदरमति छैक
किलु हुनक चित्त अशांत रहलनि। किछुए कालक उपरान्त , राज्यक सीमा रेखाकेँ दूरेसँ देखैत, चिंतितमना राजमहलमे घूमि अयलाह।
प्रात:काल ओ अपन दीवानसँ पुछलनि –“किनक बालक छल ओ ...? दीवान साहेवकेँ समग्र कथा बूझल छलनि। बजलाह- श्रीमन् ओतऽ फल्लामांक बेटा थिक- बजाऊ की?
किछुए कालक उपरान्त फल्लांमाकेँ उपस्थित काएल गेल। भयाक्रान्त..थरथर कांपैत..धोती प्रायः तीतल। जमींदार साहेवकेँ देखिते मूलुंबित , किंवा शाष्टांग दैत, निहोरा करैत बाजल- सरकार... अपराध क्षमा कैल जाऊ
नै..नै कोनो अपराध नै... बहुत करेजगर छथि अहाँक बालक... बहादुर... वाह रे वाह संभावनासँ भरल... अपार संभावना अछि अहाँक बालकमे...”, जमींदार साहेब शांत किन्तु गम्भीर स्वरमे बजलाह ।


फल्लांमाकेँ किंचित भरोस भेलैक । हाथ जोड़ने ठाढ़ भेल— “छौड़ा उकपाती छैक.. निश्चये कोनो अपराध केने हएत..हम ओइ अबंडसँ तंग छी सरकार.. जे सजा हो हुकुम...ओ धौना खसौने ठाढ़ रहल।
नेना सँ कियो तंग हुअए! कोनो अपराध नै कयलक अछि अहाँक बालक, किन्तु आब ओ विहनजोग भेल..ओकर ब्याह कऽ दियौ... व्याह कऽ देबै तँ घर गृहस्थीमे लागत.. चित्त शान्त रहतैक। शांत किन्तु आदेशात्मक स्वरमे बजलाह जमींदार साहेब।
सरकार... के करतैक ओइ अवंडसँ ब्याह... की हैतैक ओकर ब्याह करा कऽ... करमे फूटल छैक...”, विलाप कयलक फल्लामां मर-।
आब अहाँ जाउ, व्याहक मोन बनाउ ..हम देखैत छिऐक-”, जमींदार सरकार आदेश कयलनि।
फल्लांमाक गेलाक उपरान्त जमीन्दार साहेब उपस्थित  दीवानसँ पुछलनि— “ककर बेटी छैक रानी मुखर्जी आ कैटरीना सन, पता करु तँ... ओकरासँ ऐ छौड़ाकेँ व्याहि देबाक छैक ..।
जयवर्द्धनकेँ अपन हँसी रोकि नै भेलनि... गरीबक बेटी की रानी मुखर्जी आ कैटरीना सन होइत छैक- ओ चकित रहथि ।
ऐमे हँसबाक कोन बात... जकरा जे बूझल रहतैक से सएह ने बाजत...तोँ रोटी कहबह ओ ब्रेड बाजत... ओना तोँ बिसरि रहलह अछि जे महाराज शान्तनुकेँ मल्लाहेक बेटी पसिन्न पड़ल रहनि...।गज्जो भायक उत्तरसँ जयवर्द्धन निरुत्तर भेलाह।
चिल्लामांक बेटी बड़ सुन्नरि। बड़ दिव्य। पाकल धान सन-ए। अगहनक दुपहरिया सन चमक। कोशीक धार सन चंचल। प्रायः सभकेँ बूझल रहैक। तेँ...
दरबारमे चिल्लामांकेँ बजाओल गेल। अपराध बोघक बोझसँ ठाढ़ नै रहि पावैत छल। हवोढेकार कानैत बाजल— “से बिनु मायक बेटी छैक... जरुरे कोनो अपराध कएने छैहएत, लोकक झाड़ी फानब ओकर आदति भऽ गेलैक अछि.. अवस्से कोनो दिन कएने हएत... हम सरकारेक सोझाँमे ओकरा दोखरि देबैक..चिल्लामांक नोरक कोनो छोर नै रहैक।
सरकार ओकरा अपन पाँजमे भरि कऽ उठौलनि। बजलाह- कोनो बात नै छैक... पहिने नोर पोछह चित्त शांत करऽ, बात किछु नै छैक... हम सुनलहुँ जे तोहर बेटी आब वियाह जोग छह, फल्लांमाक बेटा पट्ठा जवान... कहलक क्यो जे नीक जोड़ी हेतै, तँ से नीक बात... तोँ व्याह लेल तैयार हुअ तेँ खरचाब कोनो चिन्ता नै...हम सभ देखबैक... हम छी..सभटा मददि करबह.. ।
चिल्लामां किछु बाजऽ चाहलक। मुदा, बाजि नै भेलैक। कदाच जमींदार सरकारक उदारता अ दान सभक स्मरणसँ ओकर कंठनली अवरुद्ध भऽ गेल रहैक। 
गज्जोभाय आगाँ कहलनि— “भेल... फल्लामांक आ चिल्लामांक बेटीक ब्याह सभहिक सहज सहमतिसँ भेल। सरकारजमींदार ओकरा सभहिक समाजिक स्थिति अनुकुल खैयाल रखलनि। समाज कतोक बर्ख धरि हुनकर ऐ कथा-व्यवहारक सोहर गावैत रहल। क्यो जमीन्दारक सवारी रोकबाक कोनो हिम्मति नै कयलक। लोक तँ आइयो सरकार जमींदारसँ बहुत रास आस राखैत अछि। संभावनाक आस आकि आसक संभावनामे समाप्त नै होइत छैक.. किछु कुकुर भुकैत अछि, मुदा किछुए.., अधिकांशक गरमे पट्टा लागि गेलैक अछि... कतोककेँ गरदनिमे तँ सोनाक जींजीर छैक, किछु भुकैत मारलो गेल... जानि नै कतेक...
अंय हौ भाय ....ओइ छौड़ा आ छउड़ीक की भेलैक? जयवर्द्धन जिज्ञासा कयलनि ।
गज्जोभाय एतवा सुनिते क्रुद्ध भऽ गेलाह..? यएह छियह तोहर पाखण्डी रुप.. तोरा की नै बूझल छह।
हमरा किए बूझल रहत... कथा तोहर..कहलऽ तोँ आ बूझल रहत हमरा?” जयवर्द्धन गज्जोभायकेँ लपेटलनि।   हेतैक की ..दुहू छौड़ा छउड़ीक एक आश्रम भेलैक- आगाँ कालक लीलाविसरा गेल रंग  रभस, विसरा गेल छउंड़ी.. तीन चीज यादि रहल, नोन-तेल लकड़ी, से दुनू नोन तेलमे लागल रहल.. बाजारमे व्योपार ये, चौअन्नी-अठन्नीकेँ के पूछय...टाका पचटकही धरि प्रमुख भऽ गेलैक... समय एकदम्मे बदलि गेलैक..देश-काल। मन मोहनी छतरी तर आबि गेलैक... टोपी पर टोपी.... टोपी टोपी... लोक टोपीक रंगे देख कऽ नेहाल, किछु दिनक उपरान्त सुनल जे छौड़ा रोजी रोटीक खोजमे दिल्ली कि हरियाणा कि कुरुक्षेत्र चलि गेलैक, आइ धरि नै घूमलैक-ए।
कतेक बर्ख भेलैक?”, जयवर्द्धनक स्वर म्लान रहनि।
किएक... हम बड़ बकलेल जे जिनगीक कैलेंडर राखी? तोरे सन मूर्ख जिनगीक कैलैंडर राखैत अछि”, गज्जोभाय किंचित उत्तेजित आ खिन्न भेलाह
एम्हर फल्लामां आ चिल्लामां बान्ह जे टुटलैक ओही बाढ़िमे कतहु बहि गेल... आब छउंड़ीक दिन पहाड़ भेलैक आ राति प्रेतग्रस्त .हेमनिमे सूनल अछि जे छउड़ी, प्रतिदिन राष्ट्रीय राजयार्ग १९४७ पर जाइत छैक- जतऽ दुनियां जहानक बस-ट्रक आबि कऽ रुकैत छैक छौउड़ी जाइत छैक, ऐ आस आ सम्भावनामे जे ओ छौड़ा औतैक.. कोनो दिन, कोनो दिशासँ औतेक ..
गज्जोभाय अन्ततः मौन भेलाह। जयवर्द्धनकेँ कोनो प्रश्न नै फुरलनि।

(गजेन्द्र ठाकुर लेल सस्नेह)

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