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Sunday, April 8, 2012

सोनमा काक्का :: जगदीश मण्‍डल


सोनमा काक्का

भरि‍ राति‍ ओछाइनपर एक करसँ दोसर कर उनटैत-पुनटैत कखनो उठि‍ कऽ बैसै तँ कखनो पेशाब करैले बाहर नि‍कलै। पोह फटि‍ते चि‍ड़ै-चुनमुनीक चहचहेनाइ सुनि‍ सोनमा काका डिबि‍‍या लेसि‍ कुट्टी काटए लगल। घरवाली रुपनीक इलाज करबैले डॉक्‍टर ऐठाम जाएब छलैक। काल्हि‍ये डेढ़ सएमे खस्‍सी बेचलक। सबेरे वि‍दा हएब तखन‍ ने समैपर पहुँचि‍ बेर धरि‍ घुरि‍ कऽ आबि‍ सकब सोचि‍ सोनमा काका धड़फड़ करैत गाम परक काज सम्‍हारए लगल। घरवालाक चाल-चुलि‍ पाबि‍ रुपनी सेहो उठि‍ कऽ हाँइ-हाँइ मकैक ि‍चक्कस नि‍कालि‍ चूल्हि‍ लग पानि‍ छीटि‍ पजारलक। रोटि‍पक्का धि‍पै दुआरे चूल्हि‍पर चढ़ौलक। चि‍क्कसमे लसि‍ये ने पकड़ै तँए बेसी काले सानि‍ दुनू हाथ पानि‍मे भि‍जा-भि‍जा रोटी बना रोटि‍पक्कामे देलक। रोटि‍पक्कामे रोटी दऽ कोठीपर राखल मौनीमे सँ चारि‍टा अल्लू नि‍कालि‍ चूल्हि‍मे घोसि‍येलक। जाबे कि‍रि‍ण फूटै ताबे रोटी आ सन्ना बनौलक। सोनमा काका नादि‍मे कुट्टी दऽ पानि‍ छीटि‍ दुनू हाथे मि‍ला गाएकेँ घर-सँ-बाहर केलक। लोटा लऽ कलपर जा हाथ-मुँह धोइ पानि‍ नेने आएल। अपनेसँ पीढ़ी लऽ जलखइ करैले बैसल। रुपनी पति‍केँ थारी आगूमे दऽ कलपर जा हाथ-पएर धोइ आबि‍ चूल्हि‍ये लग बैस‍ खाए लागलि‍। जलखइ खा धोती, गोल-गला आ पएरमे चट्टी पहि‍रि‍ सोनमा काका रुपनीकेँ कहलक- कत्ते दूर जाए पड़त से नै बुझै छि‍ऐ, फुरती करू?
काँख तर छाता कान्‍हपर तौनी, धोतीक खूँटमे रुपैया बन्‍हलक। रुपनीकेँ हुक्काक चहटि‍। बि‍ना हुक्काक भरि‍ दि‍न केना कटतै तँए बीड़ी-सलाइ खोंइछामे लऽ तैयार भेल‍। आगू-आगू सोनमा काका पाछू-पाछू रुपनी बाजार दि‍सुका बाट पकड़ि‍ वि‍दा भेल।
     
ति‍नमहला भारी-भरकम मकान देखि‍‍ सोनमा काकाकेँ फाटकसँ भीतर जेबाक साहसे नै होइ। पीचपर ठाढ़ भऽ रि‍क्‍शाबलाकेँ पुछलक- बौआ, डाॅक्‍टर साहेब ऐठाम जाएब?
जा-जा वएह मकान डॉक्‍टर साहेबक छियनि‍।‍‍ रि‍क्‍शाबला हाथक इशारा दैत कहलक।
पीचसँ उतरि‍ फाटक लग सोनमा काका जाइते छल आकि‍ खाटपर टँगने एकटा रोगीकेँ भीतर जाइत देखलक। सोनमो काका पाछू-पाछू बढ़ल। लोकक करमान लगल देखि‍‍ रुपनीक दि‍ल दहलि‍ गेल। मने-मने बाजलि‍- ‍बाप रे बाप, एते दुखताह कतऽ सँ एलै। असकरे डाॅक्‍टर साहेब केना इलाज करथि‍न।
सोनमा काका भीतर जा कम्‍पाउण्‍डर लग फीस दऽ पुरजा बनौलक। पुरजा दैत कम्‍पाउण्‍डर सोनमा काकाकेँ कहलक- ताबे बाहर जा बैसू। जखन नम्‍बर आओत तखन‍ सोर पारि‍ लेब।‍
     
सोनमा काका बाहर नि‍कलि‍ फुलवारीमे घूमि‍-घमि‍ फूल देखए लगल। रंग-बि‍रंगक फूल फुलवारीमे। कोनो-कोनो सुगंधि‍त आ कोनो-कोनो बि‍ना सुगंधेक। किआरी बनल। पति‍यानीमे फूलक गाछ रोपल। पटैले पनि‍बट बनल। टहलै-बूलैले दू हाथ चाकर रस्‍ता। रस्‍तापर गदगर दूभि‍। पछबारि‍ भाग नीमक गाछ तर बैस‍ सोनमा काका तमाकू चुनबए लगल। चून झाड़ि‍ तमाकू मुँहमे लऽ आगू तकलक आकि‍ दस-बारहटा खढ़ि‍याकेँ गाछक दोगे-दोग दौड़ैत देखलक। कोनो उज्‍जर, कोनो कारी, कोनो भटरंग देखि‍‍ दुनू परानी सोनमा काका देखए लगल। हवा सि‍हकैत। नीमे गाछ तर गमछा बि‍छा सोनमा काका पड़ि‍ रहल। थोड़े-कालक बाद कम्‍पाउण्‍डरकेँ सोर पारि‍ते दुनू गोटे डाॅक्‍टर लग पहुँचल। रुपनीकेँ बेंचपर बैसाए डाॅक्‍टर आला लगा जाँच करए लगलखिन। बेमारीक भाँज नै बूझि‍ डॉक्‍टर साहेब सोनमा काकाकेँ पुछलखि‍न- कत्ते दि‍नसँ बीमार छथि‍। की सभ होइ छन्हि?
मि‍रमि‍रा कऽ सोनमा काका बाजल- पौरूँका साल गाममे हैजा भेलै। बड़ लोक मुइलै। हमरो जेठका बेटा आ मझली बेटी मरि‍ गेल। तहि‍येसँ बेमारीक परबेश भऽ गेलै।‍
कतेक बाल-बच्‍चा अछि?
आब एक्केटा छोटकी कनटि‍रबी रहल।‍
     
डॉक्‍टर साहेब एकटा टाँनि‍क लि‍खि‍ कागज दऽ देलखि‍न। कम्‍पाउण्‍डर सामनेमे रोडक पच्‍छि‍म बा दोकान हाथक इशारासँ सोनमा काकाकेँ देखा देलक। खाट उठा कऽ जे अनने छल ओकरा देखि‍‍ सोनमा काका पुछलक- ‍भाय, तोरा रोगीकेँ की भेल छह?”
माथ कुरि‍यबैत ओ बाजल- की कहब भैया, हमरा भायकेँ दूटा स्‍त्री। अपने हर जोतए गेल रहए। अंगनामे दुनू सौति‍न झगड़ा करए लागलि‍। छोटकी बुफगर। ओ बड़कीकेँ उठा कऽ सि‍लौटपर पटकि‍ देलक आ मुकि‍अाबए लगल। मुकियबैत-मुकि‍यबैत बेहोश कऽ देलक। जाबे भैयाकेँ खबरि‍ होइ आ आबै ताबे थारी-लोटा-नुआक मोटरी बान्‍हि‍ समदौआ पड़ा गेलि‍। हमहूँ गामपर नै रही। जखन एलौं तँ देखलऐ। लगले एक सए रुपैया पि‍ति‍याइनसँ लऽ टँगने एलौं।
     
बा-फीस लगा सोनमा काकाकेँ सए रुपैया खरच भऽ गेल। रुपैया गनि‍ देखलक तँ पचास रुपैया बँचल। मने-मन सोनमा काका सोचलक जे कहि‍या बाजार आएब कहि‍या नँइ। बि‍छानोक तकलीफ अछि आ अन्नो राइ-छि‍त्ती होइत रहैए‍। कि‍राना दोकान जा सुपारीबला खलि‍या चारि‍टा प्‍लास्‍टि‍कक बोरा कीनि‍ लेलक। अन्न रखैले दूटा बोरे राखब आ दूटाकेँ सिय‍ि‍न उधारि‍ कऽ बि‍छानो बना लेब। पथारो सुखत आ सुतबो करब। जखन बाजारसँ बहराएल आकि‍ धक् दऽ सोनमा काकाकेँ मन पड़ल जे बाजार एलौं कि‍छु खेलौं कहाँ? घुरि‍ कऽ थोड़े आगू बढ़ल आकि‍ मुरही-कचड़ी बेचैत एकटा बुढ़ि‍याकेँ देखलक। पाँच रुपैयाक मुरही-कचड़ी मि‍ला सोनमा काका कीनि‍लक। अाधा अपने गमछाक खोचड़ि‍ बना लेलक अाधा धरवाली रुपनीकेँ देलक। रुपनी खोंइछामे लऽ लेलक। दुनू गोटे रस्‍तो चलै आ खेबो करै। कचड़ीकेँ गुडि‍़ मुरहीमे सोनमा काका मि‍ला देने रहए। थोड़े दूर आगू बढ़ल तँ मुँहमे मि‍रचाइक टुकड़ी पड़लै। कड़ू मि‍रचाइ रहने सोनमा काकाकेँ हि‍चुकी उठलै। दुनू आँखि‍सँ नोर सेहो गिरए लगलै। जहाँ हाथसँ नोर पोछलक आकि‍ आँखि‍योमे लागि‍ गेलै। पानि‍क कतौ पता नै‍। सोनमा काका सुसुएबो करै, आँखि‍सँ नोरो चुबै आ हि‍चुकबो करै। मील भरि‍ जखन बढ़ल तँ रस्‍ताक बगलेमे उतरबारि‍ भाग इनार देखलक। इनार देखि‍ते सोनमा काकाकेँ हूबा भेल। इनारक चारू कात सि‍मटीक लहरा बनल। चारि‍-पाँच गोटेकेँ पानि‍ भरैत देखि‍‍ हि‍चकैत सोनमा काका कहलक- बुच्‍ची, कने पानि‍ पि‍आबह, कड़ू लागल अछि बीचेमे हि‍चुकी उठलै।‍ हि‍चुकैत आ सुसुआइत सोनमा काकाकेँ देखि‍‍ पनि‍भरनी सभ आँचरसँ मुँह दाबि‍-दाबि‍ हँसबो करै। करि‍या डोलमे पानि‍ भरि‍ सोनमा काकाकेँ देलक। पानि‍ पीब‍ सोनमा काका इनारक बगलेमे कनैल फूलक छाहरि‍मे बैस खाए लगल। करि‍या भूल्‍लीकेँ कहलक- हे गै पि‍तरि‍आ आँखि‍वाली बाबाकेँ देखि‍-देखि‍‍ हँसै छीही?
आँखि‍ डेढ़ करैत भूल्‍ली करि‍याकेँ कहलक- हे गै जरसी गाए, अनके टेटर देखै छीही। रुपनी-दादी अखनो दुनू गोटे‍ हाट-बाजार घूमैले जाइत अछि
बिच्चे‍मे नेङरी बहि‍रीकेँ कहलक- अपना सभ चल। एकरा दुनूकेँ ठि‍ठि‍आए दही। नहेबो ने केलौं हेन।‍
     
सोनमा काका पानि‍ पीब‍ तमाकू चुनबए लगल। रुपनी बीड़ी लेसि‍ पीबए लागलि‍। दुनू गोटे रस्‍ता धेलक। अपना गामसँ कोस भरि‍ पाछूए दुनू परानी सोनमा काका रौदमे गरमा गेल। रस्‍ताक बगलेमे पीपरक गाछ देखि‍‍ सुसताए लागल। भोलबा, पहि‍नेसँ सुसताइत छल, देखि‍‍ सोनमा काका पुछलक- तँू कात्तऽ सँ अबैत छेँ भोला?
उठि‍ कऽ बैसैत भोलबा उत्तर देलक- तेल पेड़बैले गेल छलौं। रौदमे मन घूमए लगल। काकीकेँ कतए लऽ गेल छेलहक?
की कहबौ भोला। तीन सालसँ वि‍‍पत्ति‍ये-वि‍पत्ति‍मे पड़ल छी। साल भरि‍सँ बुचि‍‍या माए तरे-तर खि‍याइत जाइत अछि। पहि‍ने होइ छलै जे बेटा-बेटी मुइलाक सोग भऽ गेलै। मुदा डॉक्‍टर लग गेलौं तँ बेमारी ठहरल।‍
देखहक काका, एे देहि‍याकेँ कोन ठेकान। मुदा जाबे तक शरीरमे परान रहै छै ताबे तक सेवा करक चाही। जाबे तक आँखि‍ तकै छह ततबे काल ई दुनि‍याँ। स्‍वर्ग-नर्क सभ एतै छै।‍
बेस कहलेँ भोला। ई तँ अपनो सोचै छी जे घरवालीक भार घरबलापर रहैत छै।‍
काका हमर वि‍चार अछि जे दोसर बि‍आह कऽ लएह। बि‍ना बेटे बापकेँ गति‍ नै होइ छै।‍
भोला तँू चौल करै छेँ। बुढ़ाड़ीमे दोसर बि‍आह कऽ गरदनि‍मे ढोल बान्‍हब। जाबे थेहगर छी कहुना-कहुना दि‍न कटि‍ये जाएत। बादमे बुझल जेतै।‍
     
तीनू गोटे गाम दि‍स‍ चलल। थोड़े आगू एलापर पि‍पराहीमे हल्‍ला सुनलक। कान लग हाथ दऽ दऽ सभ सुनै जे हल्‍ला कथीक होइ छै। ओना गामे छि‍ऐ, कोनो ने कोनो हल्‍ला होइते रहैत छै। हल्‍ला सुनि‍ डेगो नम्‍हर दैत बढ़ल। गाममे प्रवेश केलक तँ हल्‍ला स्‍पष्‍ट सुनाइ पड़ए लगलै। कि‍यो कहै नीक भेलै तँ कि‍यो कहै अधलाह भेलै। तीनू गोटेकेँ कोनो भाँजे ने लगै। रस्‍ताक दछि‍‍नबारि‍ भाग मुनेसरकेँ दरबज्‍जापर बैसल देखलक। तीनू गोटे रस्‍ता छोड़ि‍ मुनेसर ऐठाम जा पुछलक। मुनेसर अखरे चौकीकेँ अंगपोछासँ झाड़ि‍ तीनू गोटेकेँ बैसैले कहि‍ कहए लगलै- बजैत लाज होइए। मुदा जब पूछलौं तँ कहबे करब। आ-हा-हा रामलोचन काका छल। कहयो ककरो अधलाह नै केलक, आ ने ककरोसँ कहि‍ओ मुहाँ-ठुठी भेलै। सभ साल काति‍कमे भोज कऽ सौंसे गौआँकेँ खुआबैत छलाह। कोनो चीजक कमी नै‍। बेचारे मरलाह अाकि‍ तेहन चालि‍-चलैन बेटा धेलक जे सभ सम्‍पति‍‍ बोहा देलक। घैला-घैले ताड़ी पीब अनेरो लोककेँ गरि‍यबै। घराड़ि‍‍यो नै बचलै। बापक राखल नाओं रामकि‍सुन रहै जेकरा सभ बतहा कहए लगलै। वएह मुइल तँए कोइ नीक कोइ अधलाह कहै छै।‍
सोनमा काका मुनेसरसँ पुछलक- परि‍वारमे के सभ छै?
एकटा तेरह-चौदह बर्खक बेटा छै। ओहो मइटुग्‍गर अछि। समदौआ बहु जे छलै ओ महीना दि‍न पहि‍ने भागि‍ गेलै। अन्न-अन्नकेँ बतहा मुइल। अँगनामे ओहि‍‍ना पड़ल अछि। ने बाँस छै जे चचरी बनत, ने कपड़ा छै। लगमे बैस‍ बेटा कनै छै।‍
मइटुग्‍गर सुनि‍ रुपनीक आँखि‍मे नोर आबि‍ गेलै। सोनमा काकाक हृदए पसीज गेलै। बजि‍ते-बजि‍ते मुनेसरक आँखि‍मे सेहो नोर आबि‍ गेलै। सोनमा काका मुनेसरकेँ कहलक- भाय साहेब मुरदा जरा ि‍दयौ। बेटा धन छि‍ऐ, चरबाहि‍यो कऽ कऽ जीबे करतै।‍
     
सोनमा काकाक वि‍चार सुनि‍ मुनेसरक मन बदलि‍ गेल। चौकीपर सँ उठि‍ बाजल- सभ कोइ चलि‍ कऽ देखि‍यौ। जँ कोनो जोगार हेतै तँ अंगनेमे बेटासँ मुँहमे आगि‍ दि‍या गारि‍ देबै।‍

रामकि‍सुन बतहा बेटाक नाओं भुखना। जहि‍ना पूब मुँहे बतहा सुतल तहि‍ना अछि। भुखना लगमे बैसल कनबो ने करैत। कत्ते कानत। कनैत-कनैत मुँह दुखा गेलै। जहि‍ना अोसमे भीजल दुभि‍ रौद लगि‍ते सूखि‍ जाइत छैक तहि‍ना मुनेसरक क्रोध भुखनाक दशा देखि‍‍ सूखि‍ गेल। हृदए पि‍घलि‍ गेलै। डेन पकड़ि‍ मुनेसर भुखनाकेँ उठा कहलक- बच्‍चा अखनसँ तोरा हम बेटा बना रखबौ।‍
मुनेसरकेँ देखि‍‍ टोलोक लोक एकाएकी आबए लगल। सोनमा काकाकेँ जे बीस रुपैया बचल छल ओ डाॅड़सँ नि‍कालि‍ कपड़ा लए देलकै। मुनेसर अपने गाछीमे जरबैले सेहो कहलक। जरना आ चचरीक बाँस सेहो देलक। सभ मि‍लि‍ बतहाकेँ जरौलक। समाज समुद्र होइत छै। अधलाहसँ अधलाह आ नीकसँ नीक सबहक समाबेश समुद्रे जकाँ समाजोमे होइत छै।
     
गरमी मास रहने सोनमा काका भोरे हाँसू-छि‍ट्टा लऽ घास लए वि‍दा भेल। कने आगू बढ़ल तँ मोनमे एलै जे भुखनाकेँ ऐठाम आनि‍ बेटीक संग वि‍आहो कऽ देबै आ रखियो लेब। घुि‍र कऽ आबि‍ हाँसू-छि‍ट्टा रखि‍ छाता लेलक। आ पि‍पराही वि‍दा भेल। पि‍पराही जा मुनेसरकेँ कहलक- भाय, हमरो बेटा नै अछि, एकटा बेटी अछि। वि‍चार भेल जे भुखनाक बेटीसँ बि‍आह कऽ जमाइ बना रखी। अहू बच्‍चाकेँ नीक हेतै आ हमरो दुनू परानीकेँ।‍
हँसैत मुनेसर कहलक- तेलोसँ चि‍क्कन। अखने भुखनाकेँ नेने जाउ।‍

सोनमा काका भुखनाकेँ संग केने अपना ऐठाम आएल। गाममे जते घरहटि‍या अछि सभकेँ सोनमे काका सि‍खौने अछि स्कूल जकाँ सोनमा काका घर बन्‍हैक एक-एकटा काज करैक लूरि‍ सभकेँ सि‍खौने तँइ सभ काका कहैत।
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