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Sunday, April 8, 2012

सरोजि‍नी :: जगदीश मण्‍डल


सरोजि‍नी

मझोलका कि‍सान भेलोपर जमीन्‍दारीक ठाठ-बाठ आ रुआब अखनो हरदेवकेँ छन्‍हि‍ये। वएह हथि‍सार सन-सन घर, बीघा भरि‍क फुलवारी, घरक आगूमे झील सन पोखरि‍ जेकरा चारू मोहारमे मेड़हाओल घाट। कलम-गाछीक कमी नै‍। सभ रंगक आम फुटा-फुटा लगौने। सरही फुटे, कलमी फुटे। एक भागमे सभ रंगक इलची पाँच कट्ठामे। आसामक बोन जकाँ बँसबारि‍ जइमे हजारो बाँस सुक्‍खल। शीशो गाछक डारि‍ सभ मोटा-मोटा गाछे जकाँ भऽ गेल। लताम, बेल, धात्री, सपाटू, शरीफा, आँता, कटहर, बरहर इत्‍यादि‍क बगीचा सेहो छन्‍हि‍ये। सालो भरि‍ कोनो ने कोनो फल गाछमे लुबधले रहैत छन्हि। अनेको रंगक देशी-वि‍देशी केराक करजान। दोसराक खेतमे पएर नै देब, एहेन रुआब हरदेवक बाबाक अमलदारीमे रहनि‍। बनसी खेलै दुआरे पोखरि‍क बीचो-बीचो पुल जकाँ सेहो बनौने।
     
जमीन्‍दारी टुटलोपर बाहरसँ तँ नै बूझि‍ पड़ैत मुदा भीतरे-भीतर फोक भऽ गेल छल। महाजनी चल गेलनि‍। बखारी टूटि‍ गेलनि‍, नोकर-चाकर नै रहलनि‍, मुदा मनमे अखनो ओ टेढ़ी छन्हि‍‍ये। पाँच भाँइक भैयारीमे सभ कि‍छु बँटा गेल। अपन समांग सभ तँ अधि‍क पढ़ल-लि‍खल नै मुदा पढ़ल-लि‍खल नोकर रखि सभ कारोबार चलबैत रहथि‍। एते दि‍न झाँपि‍-तोपि‍ नि‍महलनि‍। मुदा आब ने दोसर रुआब मानैले तैयार आ ने अपना दम जे दाेसरपर रुआब करब।
     
बच्‍चेसँ हरदेव बाबाक संग कोट-कचहरी अबैत-जाइत रहल। तइ क्रममे कानून-कायदा, लड़ाइ-झगड़ाक भाँज बुझने छल। घरोपर हरदेव नि‍यमि‍त क्रि‍या-कलाप बनौने छल। भाेरे उठि‍ दतमनि‍ कऽ कुड़ा-अाचमनि‍ कऽ भरि‍ छाँक पानि‍ पीब‍, पान खा लोटा लऽ मैदान दि‍स‍ जाइत छल। घंटो भरि‍ सि‍नुरि‍या आम-गाछक नि‍च्‍चाँमे लोटा रखि‍ सौंसे गाछी टहलि‍-बुलि‍ देखैत छल। पाकल फल तोड़ि‍-तोड़ि‍ गमछामे बान्‍हि‍ घुमै काल घरपर नेने अबैत छल। सभ दि‍न टटका फल खेने दुनू परानीक शरीर बुलन्‍द रहै। चारि‍टा गाए पोसने छल। गाए तँ देहाति‍ये छलै‍ मुदा नम्‍हर कदक। एकबरना कारी। डेढ़ि‍यापर बाहैत-बि‍आइत तँए सभ दि‍न दूधक लाट रहबे करै‍। सभ दि‍न बेरू पहर असेरी गि‍लाससँ दू गि‍लास दूधमे भाँग घोड़ि‍ पीब‍ हरदेव बनसी खेलए जाइत छल। बीच पोखरि‍मे चौखुट बनसी खेलैले जे बनौने रहथि‍ ओइ‍‍पर जा कुरता नि‍कालि‍ रखैत छल। पानक सभ सामान सेहो नेने जाइत छल। एयर कंडीशन जकाँ जल हवा तहूमे झुलैत झि‍झड़ीदार परदा जकाँ भाँगक नि‍शां हरदेवक हृदैकेँ झुलबैत रहै छल। हरि‍अर-हरि‍अर कुमही हवाक सि‍हकीक संग जलक सवारीपर सपरि‍वार सवार भऽ रसे-रसे पोखरि‍मे टहलैत छल। बहुत पहि‍ने हरदेवक पि‍ता पोखरि‍भि‍ंडासँ ललका कमल आ बेरमा बड़की पोखरि‍सँ उजड़ा कमलक गाछ आनि‍ लगौने रहथि‍। दुनू रंगक कमलक शोभा देखैमे अद्भुत लगैत छल। आनन्‍दक समुद्रमे असकरे हरदेव सभ दि‍न मगन भऽ झुमैत रहै छल। छोटकी माछ सभ बनसी बोर नि‍चेनसँ खा लैत। लुक-झुक गोसाँइ होइते हरदेव बनसी समेटि‍ रखि घुि‍र कऽ घर अबैत छल। घरपर आबि‍ चाह पीब‍ टहलैले नि‍कलि‍ जाइत छल। बच्‍चेसँ घुरन हरदेव ऐठाम नोकरी करैत छल। साते-आठ सालक जखन‍ रहै, बाप मरि‍ गेलै। बपटुग्‍गर घुरन माएक संग नम्‍हर जि‍नगी जीबैले दुखक पहाड़सँ संघर्ष करए लगल। जखन‍ घुरन छँटगर भेल, बि‍आह-दुरागमन भेलै। तखन‍ पाँच रुपैया महीनाक नोकरी छोड़ि‍ बोनि‍याती काज हरदेव ऐठाम करए लगल। घुरन आ हरदेव एकतुरि‍या। हरदेव सुखक बीच आ घुरन दुखक बीच जि‍नगी बि‍तबैत छल। एकतुरि‍या रहने दुनूमे घनि‍ष्‍ठ प्रेम। एकठाम रहने घुरनपर हरदेवक असीम वि‍श्वास सेहो रहनि‍। जँ कहि‍यो हरदेव कतौ बाहर जाइ छलाह तँ घुरनेपर खेती-बाड़ीक भार दऽ जाइत छलाह। घुरनक घरवाली सोमनी हरदेवक अंगनाक काज, बरतन-बासन धोनाइसँ लऽ कए पानि‍ भरनाइ चूल्हि‍‍‍-चि‍नमार नि‍पनाइ सभ करैत छल, जइसँ खेनाइ-पीनाइ चलि‍ जाइत छलैक। बेटा रमेश माएक संग हरदेवक आंगनमे खाइत-खेलाइत छलै। सरोजि‍नी आ रमेश कहि‍यो अटकन-मटकन खेलए तँ कहि‍यो चोरा-नुक्की।
गामेमे स्‍कूल रहने रमेशक नाओं घुरन लि‍खा देलक। सरोजि‍नी सेहो स्‍कूल जाए लगल। पढ़ैमे रमेश चन्‍सगर। हरदेवक परि‍वारसँ लाट रहने रमेशक गरीबी छि‍पल। रमेश दू बर्ख सरोजि‍नीसँ जेठ। बच्‍चेसँ रमेश रोगसँ आक्रान्‍त भऽ गेल। केयो रमेशकेँ बाल-ग्रह कहैत छलै तँ कि‍यो पछुआ लागब कहैत छलै। घुरन आ सोमनी कत्ते गहवर रमेशकेँ लऽ लऽ गेल मुदा रोग नै छुटलै। दि‍नानुदि‍न रोग बढ़ि‍ते गेलै। अंतमे नि‍राश भऽ घुरन सोने वैदसँ रमेशक इलाज करौलक। साते दि‍नमे बेमारी छुटि‍ गेलै। मुदा रमेशक शरीर खि‍दखि‍दाहे रहल।
     
परसूए माघक पूर्णिमा। गंगा नहाइले गामक मरद-स्‍त्रीगण उमड़ल। सुशीला सेहो पति‍ हरदेवकेँ चलैले कहलकनि‍। दुनू परानी हरदेव गंगा-नहाइले रौतुके गाड़ीसँ सि‍मरि‍या वि‍दा भेला। हरदेव अंगनाक भार सोमनीकेँ आ माल-जाल भार घुरनकेँ दऽ गेलाह। सि‍र्फ सरोजनि‍येँटा रहल। सोमनीकेँ सरोजि‍नी चाची कहैत।
     
चारि‍ साल पहि‍ने गामक स्‍कूलसँ नि‍कलि‍ सरोजि‍नी आ रमेश हाइस्‍कूलमे पढ़ैत छल। संगे दुनू गोटे स्‍कूल अबैत जाइत छल। रमेश आ सरोजि‍नी ओसारक चौकीपर बैस‍ पढ़ै-लि‍खैक गप-सप्‍प करैत छेलीह। साेमनी आंगन बहारि‍ बाढ़नि‍ रखि‍ते छलि‍ आकि‍ सरोजि‍नी पुछलक- चाची, अगि‍ला महीनामे मैट्रि‍कक परीक्षा हेतै। मैट्रि‍कक बाद रमेशकेँ पढ़ेबै की नै?
सोमनीक मनक आशापर गरीबीक चादरि‍ झपने छलि‍। सोमनी ठाढ़ भऽ एकटक सरोजि‍नीकेँ देखि‍‍ बाजलि‍- बुच्‍ची कहलौं तँ बड़ नीक बात। कोन माए-बापकेँ बेटा-बेटीक पढ़ेबाक मनोरथ नै होइ छै मुदा खरचा जुमतै। गरीब लोक कोनो लोक होइए। सभ मनोरथ संगे जाइ छै।‍
सोमनीक बात सुि‍न सरोजि‍नीक मुँहक हँसी बि‍ला गेल। कने काल चुप भऽ बाजलि‍- कहलौं तँ ठीके चाची। हमहीं अखन बाप-माएक ऐठाम छी, सुख करै छी। जँ हमरे गरीब घरमे बि‍आह हुअए तँ अखुनका सुख रहत।‍
‍जेकरा जे भाग्‍य-तकदीरमे लि‍खल रहै छै से होइते छै। रमेशक भागे खराप छै तँ सुख कतएसँ आओत।
‍चाची, गाममे तँ नोकरी नहि‍ये हेतै, तब तँ बाहरे जाए पड़तै?”
कि‍यो चि‍न्‍हारेकेँ संग लगा दि‍ल्‍ली पठा देबै। कोठीमे कोनो काज भइये जेतै।‍
रमेश दि‍ल्‍लीमे नोकरी करत। अहाँ दुनू परानी ऐठाम रहब।‍ बड़-बेमारीमे केकरा के देखबै?”
जेकरा जे दुख-की सुख लि‍खल रहै छै से अान थोड़े बाँटि‍ लइ छै।‍
सरोजि‍नीक नजरि‍मे आशाक कि‍रण चमकि‍ रहल अछि जखन कि‍ सोमनी नि‍राशाक पहाड़ तर दबाएल अछि। बच्‍चेसँ जुड़ल सि‍नेहकेँ जेना वीणाक ध्‍वनि‍केँ हथौरीक चोट भग्‍न कऽ दैत छैक तहि‍ना सरोजि‍नीक स्‍वरकेँ सोमनीक आबाज ध्‍वस्‍त कऽ देलक।
     
पाँचतारा होटलमे डेरा। जहाजसँ देश-ि‍वदेशक एनाइ-गेनाइ। नीक नोकरीक संग नीक दरमहो। तइपर सँ चोरा-नुका कऽ दोहरी धंधो। एेश-मौजक जि‍नगी जीबैत, पुष्‍ट गोर शरीर हृदयनारायणक। ने घरक चि‍न्‍ता ने ‍परि‍वारक बोझ। होटलक मालि‍क अंग्रेज, जि‍नका दुइ गोट कन्‍या। दुनूकेँ एक-एक होटल दऽ अपन भार हटौने। अपने अंग्रेज साहब दुनू बापुत लोहाक कारखाना चलबैत। होटल चलौनि‍हारि‍ रोजी। जखन‍ हृदयनारायणकेँ होटलमे अबैत रोजी देखै तँ आँखि‍ गड़ा एकटकसँ नि‍च्‍चाँ-ऊपर नि‍हारैत रहए। कोठरीमे गेलापर अनेरे जा-जा रोजी हृदयनारायणकेँ पूछैत- कोनो वस्‍तुक दि‍क्कत तँ नै अछि?
     
बी.ए.पास रोजी। बीख बर्खसँ उपरे उमेर। सोनहुल केश, भुल्‍ल गोर। छरहरा शरीर, फुरतीसँ छट-छट करैत।
हृदयनारायण क्‍लबक सदस्‍य सेहो रहथि‍। मन-माफि‍त मनोरंजन करैत। वसन्‍तक बहार छोड़ि‍ पतझड़क अनुभूति‍सँ अनभुआर भऽ गेल हृदयनारायण। देहाती जि‍नगीसँ गुजरल हृदयनारायण छल-प्रपंचसँ कोसो दूर छल। डयूटीसँ आबि‍  कपड़ा बदलि‍ स्‍नान-जलखइ कऽ, सोफापर लेटि‍ अगि‍ला जि‍नगीक संबंधमे सोचए लगल। बि‍आह करब, परि‍वार बनाएब। हृदयनारायणक कोठरीमे प्रवेश कऽ रोजी कुर्सीपर बैसैत बाजलि‍- चि‍न्‍ताक पहाड़क तरमे कि‍एक दबल छी?
सुक्‍खल मुस्‍की दैत हृदयनारायण उत्तर देलक- थाकल छी।‍
रोजीक मुस्‍की भरल मधुर स्‍वर हृदयनारायणक हृदैमे चुभए लगल। प्रेमक अंकुर अंकुरि‍त हुअए लगल। चि‍न्‍ताकेँ दबबैत हृदयनारायण मुस्‍कुराए लगल। रि‍ंग कऽ रोजी नोकरकेँ काॅफी आनैक आदेश देलक। नोकर कॉफी-सि‍गरेट-सलाइ नेने आएल। जखने हृदयनारायण काॅफीक चुस्‍की लऽ कप रखलक आकि‍ रोजी कपसँ कप ि‍भड़ा पीबए लागलि‍। कप रखि‍ रोजी दूटा सि‍गरेट सुनगौलक। एकटा हृदयनारायणकेँ हाथमे दऽ दोसर अपने काॅफीक संगे पीबए लगलीह। पाँच साल पहि‍ने रोजी बी.ए. पास केने छलि‍। पसि‍नगर संगी नै भेटने अखन धरि‍ अवि‍वाहि‍ते छलि‍। बि‍ना हि‍चककेँ रोजी हृदयनारायणसँ पुछलक- बि‍आह भऽ गेल अछि‍?
नै‍।‍
परि‍वारमे माता-पि‍ता छथि‍‍।‍
अखन धरि‍ बि‍आह कि‍एक ने केलौं?
नोकरीसँ पहि‍ने सोचैत रही जे जा धरि‍ अपना पएरपर ठाढ़ नै भऽ जाएब ताधरि‍ बि‍आह नै करब।‍
तीन सालसँ तँ नोकरि‍यो करै छी?
वएह सोचि‍ रहल छी।‍
हृदयनारायणक हृदैक आँखि‍ रोजीकेँ देखए लगल। धड़फड़ा कऽ उठि‍ रोजी हँसैत चल गेलि‍। हृदयनारायणकेँ आरो गप्‍प करैक इच्‍छा छल जे अखन नै भऽ सकल। गामक पछुआएल जि‍नगीकेँ शहरक अगुआएल जि‍नगीमे बदलैक वि‍चार हृदयनारायणक मनमे आएल। मुदा गंगाजल ताबे धरि‍ गंजाजल रहैत अछि‍ जाबे धरि‍ गंगा नदीक बीच रहैत अछि‍ मुदा वएह अथाह समुद्रमे मि‍ललापर बदलि‍ जाइत अछि‍। एे द्वन्‍द्वमे हृदयनारायण पड़ल-पड़ल सि‍रमापर माथ दऽ कछमछ करए लगल।
दस बजे राति‍क घंटी घड़ीमे टनटनाएल। बाहरक गँहि‍कीक आएब बन्न भऽ गेल। मुख्‍य दरवाजामे ताला लागि‍ गेल। रोजी सि‍गरेटक डि‍ब्‍बा, सलाइ आ ह्वि‍स्कीक बोतल नेने हृदयनारायणक कोठरीमे पहुँचि‍ गेलि‍। दूटा गि‍लासमे ह्वि‍स्कीक बोतलक मुन्ना खोलि‍ ढारलक। एकटा गि‍लास हृदयनारायणक आगूमे बढ़ा दोसरमे अपने पीबए लागलि‍। दू-दू गि‍लास दुनू गोटे पीब‍ सि‍गरेट पीबए लगल। सि‍गरेटक धुआँ रोजी दि‍स‍ उड़बैत हृदयनारायण पुछलक- हमर परि‍चए तँ बुझलौं अपन कहू?
मुस्‍कुराइत रोजी बाजलि‍- दू गोट होटल दुनू बहि‍न‍केँ पि‍ताजी देने छथि‍। अपने पि‍ताजी आ भाय लोहाक मि‍ल चलबैत छथि‍।‍
अखन धरि‍ अहाँ बि‍आह कि‍एक ने केलौं?
मनगर जोड़ीक अभावमे।‍
कत्ते दि‍न प्रतीक्षा करब?
बरि‍सो-बरि‍स, अखनो।‍
की मतलब?
जँ अहाँ हँ कहि दी तँ लगले भऽ जाएत।‍‍
पि‍तासँ बि‍ना पुछने?
अपन पसि‍नक उपरान्‍त हुनका कहि‍ देबनि‍।‍
जाउ हम तैयार छी, हुनकासँ पूछि‍ लि‍अनु।

दोसर श्रेणीमे सरोजि‍नी आ रमेश मैट्रि‍क पास भेल। नीक वि‍द्यार्थी रहि‍तो रमेश कम अंक पौलक। उत्‍साह आ लगने एहेन जे रमेश पढ़ि‍ सकल। सरोजि‍नी वय:संधि‍क सीमा पार करैत कि‍शोरीक सीमामे प्रवेश करैत‍ रहए। लज्‍जाक आगमन भऽ गेलै। कि‍शोरीक वि‍शेषता सरोजि‍नीकेँ अंग-प्रत्‍यंगसँ हूलकी देमए लगलै‍। अपन रि‍जल्‍टक जानकारी रमेश हरदेवकेँ देमए पहुँचल। ओना सरोजि‍नी पि‍ताकेँ पहि‍ने‍ कहि‍ देने छल।
     
हरदेव दलानक कुरसीपर ओङठि‍ कऽ बैस‍ सरोजि‍नीक बि‍आहक संबंधमे आँखि‍ मूनि‍ सोचैत रहथि‍। मैट्रि‍क पास बेटीक लेल बी.ए. पास बड़ चाही। घरो अपनासँ दब नै होअए। समए एहेन भऽ गेल जे खर्चक कोनो हि‍साब नै रहत। जमीन्‍दारी चल गेल मुदा ठाठ-बाठ तँ वएह अछि। बेटाक रि‍जल्‍ट सुि‍न घुरन हँसैत आबि‍ हरदेवकेँ पुछलकि‍न- मालि‍क एना मन्‍हुआएल कि‍एक छी?
आँखि‍ खोलैत हरदेव बाजलाह- नै-नै, मन्‍हुआएल कहाँ छी। सरोजि‍नीक संबंधमे सोचै छलौं। तोराे रमेश तँ बि‍आह करै जोगर भऽ गेलह।‍
मालि‍क बेटा-बेटीक बि‍आह तँ माए-बापक लेल करजे छी। देहक कोन ठेकान तँए जँ भऽ जाएत तँ ऐ बेर कऽ लेब।‍
     
दछि‍‍नबरि‍या घरमे पलंगपर पड़ल सरोजि‍नी अपन भवि‍ष्‍य दि‍स‍ तकैत छलि‍। भैया कलकत्तासँ गाम नहि‍ये औताह। माए-बाबू रसे-रसे बुढ़े होइत जेताह। दुनू गोटेकेँ बुढ़ाड़ीमे के सेवा करतनि‍?‍ अछैते बेटा-बेटी दुख हेतनि‍। रमेश गुरु जकाँ पढ़बैत अछि। माए-बाप नोकर जकाँ सेवा करैत अछि। दुनू गोटेक -रमेश आ सरोजि‍नीक- बीच धन आ जाति‍क अन्‍तर अछि। राजा दशरथोकेँ स्‍त्री तीन जाति‍क छलथि‍‍। अधर्म कहाँ भेलनि‍। जि‍नगी हँसैत शान्‍ति‍सँ चलै यएह तँ सबहक इच्‍छा होइत छै। रमेश दि‍ल्‍ली-बम्बइ जा कोठी आकि‍ मि‍लमे नोकरी करत। आइ धरि‍क जे सि‍नेह रहल ओ टूटि‍ जाएत।
हरदेवकेँ गोड़ लागि‍ रि‍जल्‍टक जानकारी दैत रमेश आंगन गेल। सरोजि‍नी घरसँ नि‍कलि‍ आबि‍‍ रमेशकेँ पुछलक- कओलेजमे नाओं लि‍खाएब की नै?
पढ़ैक इच्‍छा तँ अछि मुदा......।‍
भगवतीक रूप जकाँ आँखि‍ नि‍आरने सरोजि‍नी कहलक- रमेश, हम नि‍श्चय कऽ लेलौं जे अहींसँ बि‍आह करब। तखने दुनू परि‍वारक कल्‍याण होएत।‍
सरोजि‍नीक बात सुनि‍ रमेशक करेज डरसँ काँपए लगल। आँखि‍मे डर सन्‍हि‍या गेलै। मुदा सरोजि‍नी बजि‍ते रहल- दुनू गोटे एम.ए. तक पढ़ि‍, गामेमे हाइस्‍कूल बना शि‍क्षक बनब।‍
कँपैत हृदैसँ रमेश पुछलक- पि‍ताजी वि‍रोध करताह, तखैन‍?
अपन मालि‍क हम स्‍वयं छी। हुनको बुझैबनि‍। पुतोहु इसाइ भेलनि‍ से बड़ बढ़ि‍याँ। अखन धरि‍ जाति‍क पहाड़ जे समाजमे बनल अछि ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ पेट नै भरैत अछि‍, नाङटकेँ बस्‍त्र नै दऽ सकैत अछि‍, बेघरकेँ घर नै बना सकैत अछि‍, मूर्खकेँ पढ़ा नै सकैत अछि‍, लूटैत इज्‍जतकेँ बचा नै सकैत अछि‍, ओइ‍‍ समाजकेँ वि‍रोध करबाक कोन अधि‍कार छै‍?
सभ रहलाक बादो समाजमे मि‍लि‍ कऽ रहब आवश्‍यक होइत छैक।‍
हँ होइत छैक। जे समाज अछि ओ हमरा अहाँ छोड़ि‍ कऽ नै अछि। जे समाज हमरा वि‍चारकेँ महत नै देत ओहो अपन वि‍चार थोपि‍ नै सकैत अछि। तँए समाज सोचऽ जे हमर कल्‍याण केना होएत।‍
सरस्‍वतीक फोटोमे पहि‍राओल फूलक माला धड़सँ उताड़ि‍ सरोजि‍नी रमेशक गरदनि‍मे पहि‍रा देलक।
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