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Saturday, April 7, 2012

एतऽ आ ओतऽ- अनलकान्त





आइ-काल्हि कनाट प्लेस मे चलैत-चलैत हमरा लगैत अछि, अपना गामक दशहरा·मेला मे घूमि रहल छी। नइँ, ओत’ मेला मे रंग-बिरही चीज कीनि पबैत रही, नइँ एत’ शो-रूम मे ढुकि पयबक साहस क’ पबै छी। किलोक किलो रसगुल्ला-जिलेबी तौलबैत आकि मारते रास खिलौना ल’क’ जाइत लोककेँ  डराइत-ललचाइत देखैत रही ओत’ आ एत’ विशाल-भव्य मॉल आ नेरुलाज-मैकडोनाल्ड सँ चहकैत फुदकैत बहराइत अर्द्धनग्न अप्सरा केँ इन्द्र-बेर संग रभसैत, डेटिंग फिक्स करैत ईर्ष्या आ क्रोध सँ देखै छी।

राष्ट्रपति भवनक पिछुआडक जंगल मे एक दिन एक टा बेल गाछ लग
कनेकाल ठमकल रही। ओकरा जडि़ मे किछु माटिक महादेव फेकल छल, किछु
निर्माल्य आ कातक झोंझि मे कोनो साँपक छोड़ल केंचुआ पुरबाक सिहकीमे डोलि रहल छल। हमर आँखि क्षणभरिक लेल मुना गेल। ओत’ एहने सन एकटा बेल गाछ तर हमर बालपनक प्रियाक गर्दनि भूत मचोडऩे छलै। ओकरा मौनी मे कामधक चूड़ा ओहिना नजरि पड़ै अछि!... मुदा हम कतहुँ हेरायल-भोतिआयल नइँ रही।हम राष्ट्रपति भवनक पिछुआडि़क जंगल मे ओही बेल गाछ लग ठाढ़ रही। हमराओही आसपास मे एक टा  अस्तबलक रिपोर्टिंग करबाक छल जत’ सँ करिया घोड़ाक नालक स्मगलिंग होइत छलै। से ओहि बेरहट-बेरा मे भुखायल सन हम अपन रिपोर्ट पूरा करबाक ओरिआओन क’ रहल छलहुँ कि अचानक एक टा गमक हमरा विचलित क’ देलक। गाम मे नवका धान-चूड़ा कुटैकाल जे गमक बहराइत छल, एकदम वैह गमक छल! आसिनक बसात अगहनी भ' गेल छलै।... मुदा हमर मन बताह हेबाक सीमा धरि अवसादग्रस्त भ' गेल।

ओहिना एक साँझ कुतुब मीनार लग सँ गुजरि रहल छलहुँ। एक टा छौंड़ी अपन संगी छौंड़ा केँ जोर-जोर सँ बता रहल छलै जे ओकर सपना मीनारक एकदम ऊपर सँ दिल्ली देखैत रहबाक छै। हम सर्दिआयल भुइँ पर लगाओल पुआरक सेजौट परक सपना मन पाडय़ लगलहुँ कि तखने हमरा मोबाइल पर बीड़ी साँग बाजल। छोटकी मामक फोन छल। ओ कनैत-कनैत बाजलि, ''देखियौ यौ भागिन बाबू, आब हम की करबै!... बैमनमा सब हुनका सी.बी.आई. सँ पकड़ा देलकनि। फुसियेपाइ लेबाक नाटक मे ओझराक'...।" हमर मामा इनकम टैकस कमीशनर। हम एक-दू बेर गेल छी हुनका 'रेजीडेंस' पर, मुदा हमरा डेरा मोबाइल पर हुनका लोकनिक सर्दिआयल स्वर आ किछु एसएमएस टा आयल अछि। तखन अपना
भीतरक भाव नुकबैत हम की आ कोना बाजल, से मन नइँ अछि। हमर अदना-सन पत्रकार काज नइँ अयलनि, अपने पाइ वा जे कथुक एकबाल!... से बात जे-से। मोबाइल स्वीच-ऑफ क' हम जेब मे रखनहि रही कि हमर मन-प्राण एक टा टटका गमक सँ सराबोर भ' गेल। धनिया, सरिसो सभ देलाक बाद झोर मे टभकैत माछक तीमन सँ घर-आँगन मे जे गमक पसरि जाइत छै, सैह गमक हमरा मतौने जा रहल छल। हम अगल-बगल हियासल जे कतहु ककरो घर वा झुग्गी मे रन्हा रहल होयतै, मुदा ओहि झोलअन्हारी मे हमरा चारूभर जंगल-झाड़ आ करकटक अम्बार छाडि़, किछु तेहन नइँ देखा पड़ल जत' ओहि गमकक स्रोत ठेकानि सकितहुँ। अंतत: हम अपन जेब मे हथोडिय़ा देब' लगलहुँ जे माछक इंतजाम भ' सकै छै वा नहि!... 

हाले मे हम अपन सेठक कृपा सँ महीनबारी गुलामी सँ मुक्त कयल गेल छलहुँ। आब हम तथाकथित 'स्वतंत्र' दिहाड़ी मजदूर छी। आ दिहाड़ी पर खट'वलक कपार मे जे बौअयनी लिखल रहै छै, से हमरो संग छल। आ तेँ ओत' सँ एत' आयल मैथिल लोकनि सँ भेंटघाट सेहो किछु बेसी भ' रहल छल। से एक टा एहने भेंट मे हमर एक ग्रामीण कहलनि, ''बाउ, ई नगर तेजाबक नदी थिक जाहि मे अपन मैथिले टा नहि, कोनो मनुक्ख बाढि़ मे भसिआइत माल-जाल, घर-द्वार आ लोकवेद जकाँ निरुपाय अछि।"

कि मधेपुरा-सिंहेश्वर दिस सँ आयल एक टा युवक बाजल, ''हौ भैया!,बाजार, मशीन आ सीमेंट तर दबैत-मरैत लोकक नगर छियह ई।"

''हँ, भाइ, ठीक कहलह! मुदा ओत' दलदलो मे जकरा जगह नइँ भेटलै, ओ एत', बारूदक ढेरी पर सही, एक टा नव मिथिला तँ बसबै छै!..." बजैत-बजैत हम हकम' लागल रही आ भीतर पसेना-पसेना भ' गेल रहय।

से लगातार एहने सन मन:स्थिति सँ गुजरि रहल छलहुँ हम। आ, यैह पछिला पखक गप्प थिक। एक साँझ विद्यापति बाबाक बरखीक हकार पूर' हम नोएडा गेलहुँ। ओत' बहुत दिन पर भेटलाह, बतौर कलाकार दरभंगा सँ आयल मिथिला नरेशक अंतिम पुरोहितक परपौत्र महानंद झा। आयोजक सँ पूरापूरी विदाइ
असूलि अटैची डोलबैत फराक भेले छलाह कि हम नमस्का कयलियनि। बहुत बरखक भेंटक बादो चिन्हलनि आ एक कात ल' जाक' हाल-चाल पूछ' लगलाह।
गप्पक क्रम मे ओ बेर-बेर एम्हर-ओम्हर ताकथि। कि हम पुछलियनि, ''किनको तकै छी की?"

''हँ यौ! दरभंगक कमीशनर साहेबक बेटा एत' प्रोफेसर छथि। ओ हमरा अपना ओत' ल' जाइवला छलाह। देखियौ ने, हुनकर आग्रह देखि हम अपन सभ प्रशंसककेँ निराश क' देलियनि। सांसद जी धरि सँ लाथ क' लेलहुँ। असल मे होटल मे हमरा जहिना जेल बुझाइ अछि, तहिना नेता सभक ठाम मेला बुझाइछ। तेँ हम कतहु जाइ छी तँ अपने कोनो समाँगक घर रहै छी।" चेहराक बेचैनीक बादहु महानंद जीक स्वर समधानल छलनि। 

''से तँ नीके करै छी!" हुनक बेचैनी कम करबाक लेल हम आश्वस्त कयलियनि, ''कहने छथि, तँ अबिते हेताह!"

''से आब नइँ लगै अछि। चारिए बजेक टाइम देने रहथि। कोनो मीटिंग मे फँसि गेल हेताह। ...देखियौ ने, हम ने पते लेने छी, ने फोन नंबर। आब तँ अवग्रहमे पडि़ गेलहुँ।" हुनक परेशानी आब सभ तरहेँ प्रकट भ' रहल छल।"

हमरा साफ लागि रहल छल जे ओ होटलक खर्च बचब' लेल ठहार ताकि रहल छथि। एम्हर हमरा ई डर किछु बजबा सँ रोकै छल जे नइँ जानि कते दिन धरि मेहमानी डटाओताह। अंतत: पुछलियनि, ''कहियाक वापसी अछि?"

''परसू साँझ स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस पकड़बाक अछि। टिकटो आर.ए.सी.
27 सँ कन्फर्म भेल वा नइँ, मालूम करबाक अछि।" आ हमरा हाथ मे मोबाइल देखि झट जेब सँ टिकट बहार कयलनि, ''देखियौ तँ मोबाइल सँ, टिकटक स्टेटस
की छै?

दुइए दिनक बात निश्चित जानि हम हिम्मत कयलहुँ, ''ई कोना देखै छै, से हमरा नइँ पता! हमर कनियाँ देखि सकै छथि। आ से तखने हैत जँ अहाँ हमरो अपने समाँग बुझी आ हमरे घर दू दिन लेल चली।"

''आ से की कहै छिये! अहाँ तँ अपनो सँ अपन समाँग छी। हम तँ घरेक लोक बुझै छी अहाँ केँ। ठीक छै, अहींक घर जायब। ओ प्रोफेसर आब आबियो जयताह तँ हम नइँ जायब हुनका ओतय। ओ तँ कमीशनर साहेब अपनहि फोन क' कहलनि चलै काल तेँ सोचल!!... धौर, छोड़ू आब ओहि गप्प केँ। आ ओ हमरा संग चलबा लेल अगुआयले सन छलाह।

हम नइँ चाहैतो अपना परतारि रहल छलहुँ जे एतक पैघ कलाकार दू दिन हमरा घर रहताह। से बसक भीड़ो मे ठाढ़ हम हुनके स्वागत-सत्कार मादे सोचि
रहल रही। 

किछु काल बाद हम सब यमुना विहारक स्टैण्ड पर बस सँ उतरलहुँ। मेन रोड छोडि़ अपना गली मे ढुकले रही कि गलक ओहि छोर परक चाह दोकानवला छौंड़ा गणेश पाछाँ सँ चिकरिक' सोर पाड़लक। ओकरा दोकान मे हमर अबरजात किछु बेसी छल। अपन भाषा भाषीवला लगाव सेहो रहय। आ ओ छौंड़ा एक तरहेँ हमर मुँहलगुआ जकाँ भ' गेल रहय। हम ओकरा गाम-घर सँ भले परिचित रही, मुदा हमरा मादे ओ नइँ जानि सकल रहय। मुदा तखन हमरा पाछाँ घुरिते ओ पुछलक, ''अहाँक घर सहरसा लग, बिहरा छी ने!"

''से के कहलकौ?" हम अकचकाइत पुछलिऐ।

''अहीं गामक भोला कामति। ओ हमर मामा छिये।" गणेश बिहुँसि रहल छल, जेना ओ कोनो बडका जानकारी हासिल क' लेने छल।

''कत' छौ भोला?"

''भोर मे आयल रहै। दुपहरिया मे चलि गेलै। भोरे अहाँ केँ बस पकड़ैत अचानके देखलकै ने तँ बाजल, ''ई तँ धीरू भैया लागै छौ रे गणेसबा!"  हम कहलिऐ, ''हँ, धीरजी...बड़का पत्रकार छिये! तों कोना चिन्है छक?... " आ तखन ओ मारते सब टा कहलक।... आगाँक बात ओ छौंड़ा हमरा संग मे अपरिचित देखि नइँ बाजल।

''गेलौ कत' भोला?"  हम बात केँ भोला दिस मोड़लहुँ।

''ओ बदरपुर मे रहै छै। काल्हि-परसू धरि फेर अयतै। एत्तै दोकान शुरू करैवला छै! "

एते काल मे हम ओकरा दोकानक भीतर राखल बेंच पर बैसि चुकल रही।महानंद जी सेहो। गणेस चाह बनब' लागल छल।

सहसा महानंद जी बजलाह, ''एत' तँ डेग-डेग पर अपन मैथिल भेटि रहलाह अछि आ से मैथिली मे बजैतो छथि। अपना दरभंगा-मधुबनी मे चाह-पानवलाक कोन कथा, रिक्सावला धरि केओ मैथिली मे जवाब नइँ देत।

हमरा किछु बाजब जरूरी नइँ बुझायल। चाहक पानि एखन खदकिए रहल छलै कि गणेश पुछलक, ''किछु खयबो करबै, सर? "

''हँ! कहि हम महानंद जी दिस तकलहुँ, ''अंडा लैत छी की?... लैत होइ तँ आमलेट-टोस्ट बनबा ली!"

''हँ, लिय!"  क्षणभरि बिलमक' ओ बजलाह, ''यौ धीरजी, आब दूध-दही लोक केँ भेटै नइँ छै। सागो-पातक दाम नइँ पुछू, आगि लागि गेल छै।तिलकोड़क तरुआ कते साल भ' गेल, जीह पर नइँ गेल। तखन ईहो सब नइँ खाइ
तँ जीबी कोना? फेर विज्ञानो कहै छै जे ई पोष्टिक चीज छिये।"

हमरा हँसी जकाँ लागि गेल। तत्काल किछु बाजल नइँ। चलै काल गणेश केँ लग बजा किछु तिलकोड़क पात पार्ककक कात सँ आनि देब' कहलहुँ। महानंद जी उछलि गेलाह, ''अयँ! एत तिलकोड़क पात! आब तँ दरभंगो मे नइँ देखाइ छै!"

आ तहिना हमरा कनियाँ हाथक दर्जन सँ बेसी तरुआ चट क' बजलाह,
''असली मिथिला तँ आब दिल्ली आबि गेल। दरभंगा मे आब कहाँ छै ओ बात,
कहाँ छै ओत' ई मैथिलानीवला हाथ!..."

हम सभ दू दिन हुनक खूब स्वागत-सत्कार कयल। ओ ओहि अंतराल मे
अनेक बेर, अनेक तरहेँ, एहन-एहन अनेक बात बजलाह। हमसभ कृत-कृत!
जयबा काल हमर कनिया हुनक आर.ए.सी. वला आधा बर्थक नंबर सेहो पता क'
देलकनि आ बाट मे खयबा लेल पराठा-भुजियक एक टा पैकेट पकड़ौलकनि। ओ
खूब-खूब आशीष दैत बहार भेलाह।

हुनका अरियातैत हम गली सँ गुजरि रहल छलहुँ। गणेशक दोकान लग
एखन पहुँचले रही कि भोला पर हमर नजरि गेल। तखने ओहो हमरा देखलक आ बाढि़क सोझाँ आयल। हम दुनू गोटे एक-दोसरा सँ लिपटि गेलहुँ।

कि तखने ओकरा पाछाँ लागलि एक स्त्री सेहो मुस्किआइत लग आयलि।अबिते ओ हमर पयर छूबि लेलक। हम तुरत चिन्हि नइँ सकलहुँ। हमरा अकचकायल देखि वैह बाजलि, ''हमरा नइँ चिन्हलहक कका!... हम मीरा!"

''ओ!... सैह तँ हम अँखियासै रही।.. " हमरा सोझाँ ओकर अठारहक बयस वला विधवा-जीवन नाचि गेल छल।

आगाँ भोला बाजल, ''हमरा दुनू आब संगे छियह। कयाह तँ सिंहेसरे मे
केलिऐ, लेकिन गाम जाइ के हिम्मत नइँ भेलह।"

हमरा अतिशय प्रसन्नता भेल। मुदा तकरा व्यक्त करबा लेल शब्द नइँ भेटि रहल छल, ''बड़ बढिय़ाँ! चलह दुनू  गोटे पहिने डेरा। बगले मे छै।... हम झट हिनका बस मे बैसा केँ अबै छियह।"

कि भोला पनबट्टी खोलि अपना हाथक लगाओल पान देलक। महानंद जी
सेहो खयलनि। फेर महानंद जीक संग मेन रोड दिस बढ़लहुँ।

बस· प्रतीक्षा मे ठाढ़ महानंद जी सँ हम कहलहुँ, ''ई मीरा हमर पितिऔतक बेटी छी। बचपने मे विधवा भ' गेल  छलि।... आइ तकरा सोहागिनि देखि मन पुलकित भ' गेल।"

सहसा महानंद झा पुछलनि, ''ई भोला कोन जातक थिक?"

हमरा कनपट्टी पर जेना चटाक द' बजरल! ''कीयट"...

''अयँ यौ, ओत'क सब टा गौरव-गाथा बिसरा गेल? बाप-दादक नाँ-गाँ...पाग-पाँजि-जनेउ सब? ...ब्राह्मणक विधवा बेटी कीयट संग! ...दुर्र छी!" आ महानंद झा भोलक देल पान बगलक नाली मे थुकडि़ देलनि।

हमर मन घिना गेल। हम नहुँए, मुदा कठोर स्वर मे बजलहुँ, ''अहाँ केँ पता अछि हमर कनियाँ कोन जातक थिकी? ...जकरा अहाँ सभ मलेछ कहै छिऐ!..."

महानंद झाक मुँह लाल भ' गेलनि, मुदा बकार नइँ फुटलनि। तखने बगल मे आबिक' रुकल एक टा ऑटो मे झट द' बैसैत 'स्टेशन' शब्दक उच्चारण करैक संग मुँह घुमा लेलनि। ऑटो आगाँ बढि़ गेल।

हमर मन कहलक, ''ओ तत्काल एत' सँ भागबकक· लेल हवाइ जहाज पकडि़ लेथि, मुदा हमर कनियाँ देलहा पराठा-भुजिया नइँ फेकि सकताह।

सहसा दुर्गंधक तेज भभक्का लागल। जेना ओत'क कोनो सड़ल पानिवला 
पोखरि गन्हा रहल हो!... 

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