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Saturday, April 7, 2012

रेलक अनुभव- हरिमोहन झा


रेलक अनुभव

वैद्यनाथधाम सँ गाम अबैत रही । ओही डिब्बा मे एक बंगाली सज्जनक परिवार छलनि। बंगाली बाबू हुनक स्त्री “एक युवती कन्या तथा एक स्तन्धन्य शिशु । ओ लोकानी एक सम्पूर्ण गद्दा पर अपन एकाधिकार स्थापित कयने छलाह । ओही बेंच पर आउर केओ आबी क बैसे स हुनका लोकनि के अभीष्ट नहि छलैन्ह तें खूब पसरी क बैसल छलाह । संगही संग पेटी बिस्तर ओ अन्यान्य समानक तेहन चक्रबुह बनोने छलाह जाकर भेदी क प्रवेश कयनाय ककरो हेतु सहज नहि छलैक । आगंतुक शत्रु स मोर्चा लेबक हेतु बंगाली बाबू स्वयं अगला मोहरा पर बैसल छलाह ।

शेष बर्थ लोक स गचा गच भरल छल ।झा झा मे दुई टा मारवाड़ी सज्जन चढ्लाह “बेस भरी भरकम “अढाई मन स कम नहि ।बंगाली बाबू आक्रंकारी के आयल देखि अपन दुर्ग रक्षा क हेतु सतर्क भय गेलाह ।दुनु सज्जन एम्हर ओम्हर ताकि बंगाली बाबू के संबोधन क कहाल्खिंह उधार बहुत जगह है जरा खिसक जाईये तो हम लोग भी बैठ जाय । बंगाली बाबू बिगडी क बजलाह जोगाह कहाँ है ? दोसर डिब्बा देखिये । मारवाड़ी ---बाबू साब आउर कही जगह नहि है “जरा आप ही तकलीफ कीजिये ।परन्तु बंगाली बाबू टस स मस नहि भेलाह ।अगतया दुनु मारवाड़ी सज्जन हमरा लोकनिक बर्थ लग आबी ठाढ़ भय गेलाह ।कोनो तरहें बैसबाक समावेश कैल गेल ।ओम्हर बंगाली बाबू अपन प्रोढ़ा पत्नी के आराम स ओंगठी जयबाक ब्योत लगाबय लगलाह ।हुनका कष्ट नहि होइन तदर्थ एकटा गल तकियों राखी देल्खिंह ।गिधोर मे एकटा वृधा चढ्लीह दीनता पूर्ण दृष्टि स बंगाली बाबू दिस तकैत ठाढ़ी भय गेलीह ।परन्तु बंगाली बाबू ओही मूक प्रार्थना स विचलित होमय बाला जीव नहि छलाह ।ओ दोसर दिश ताकै लगलाह लोक जेना भिक्षुक स आंखि फेर लेत अछि ।अंत में बूढी स्पष्ट शब्दे एक बीत बैसवाक योग्य स्थानक भिक्षा मंगलैंह ।बंगाली बाबू अहि हेतु पहिनाही स तैयार छलाह ।कहाल्खिंह जोनानी गाड़ी में जाइए “बूढी कहाल्खिंह जनानी गाड़ी मे स्थान नहि छैक “हमरा एक स्टेशन जएबाक अछि ।जमुई में उतारी जायब ।बंगाली बाबू उत्तर देल्खिंह जे एक स्टेशन जाना है तब तो उसी माफिक खड़े खड़े ही चोलने सकता है ।

इ कही बंगाली बाबू आउर पसरी क़ बैसी गेलाह ।हम स्वय ट्रंक पर बैसी गेलहुं आ वृधा के अपना स्थान पर बैसा देलयनी।ओ हमरा आशीर्वाद देत बैस गेलीह आउर जमुई पहुंचला पर उतरी गेलीह ।

जमुई मे तीन टा गोरखा चढ़ल । सबहक संग एक एक खुखरी । ओ सब सोझे बंगाली बाबू दिस धाबा क देलकैन ।बंगाली बाबू फराके स घुड़की देलखिन्ह इधर कहाँ स आने मांगता ?दोसर डिब्बा मे जाओ ।परन्तु नेपाली बोको की बुझे !हुनकर किलाबंदी के धडैत धडैत लग में पहुच गेलैंह । बंगाली बाबू भयभीत होयत बजलाह “अरे बाबा जनाना के मुड़ी पर बोसेगा ?हम अलार्म खिचता है ।

बंगाली बाबू धरफरा क जिन्जिर खिचाबक हेतु उद्यत भेलाह ।इ देखि नेपाली गोरखा हँसैत दोसर कोठरी मे चल गेल ।आब बंगाली बाबू सुभ्यस्त भय थर्मस बाहर केलैंह ।हुनकर स्त्री प्याला सब मे चाह भरि भरि क देबय लागल खिन्ह।

तावत गाडी क्विअल पहुँच गेल । एक सज्जन हाथ मे आनंद बाजार पत्रिका नेने कोठली क सामने पहुँचलाह ।हुनका पाछा दुई टा स्त्री बंगला परिधान मे छाल्खिंह आर एकटा दस वर्षक बालक ।हुनका देखतही बंगाली बाबू सोर कैल्खिंह मोशाय ई दिगे आशून ।दू मिनट के भीतर दुनु परिवार दूध चीनी ज़का घुली मिली गेल ।हम अनुमान कयल जे नवागंतुक व्यक्ति बंगाली सज्जनक कोनो आत्मीय सम्बन्धी होइथिन ।परन्तु जखन वार्तालाप होमय लगलानी “तखन बुझल जे हिनका दुनु कें पूर्व मे कहियो भेट नहि छैन्ह ।ई जे सज्जन पहिने स बैसल छैथि हुनकर नाम छैन्ह राखाल बनर्जी “नदिया जिला घर छैन्ह ।मेरठ मे ठेकादारी करैत छैथ ।दुर्गा पूजा मे देस आयल छलाह ।आब पुनः काज पर जा रहल छैथ

नवागंतुक छति अतुल चटर्जी “घर छैन्ह मुर्शिदाबाद ।जमालपुर मे डॉक्टर छैथ ।भतीजी बी ए मे पढैत छाथिन तिनकर विवाह मे आयल छलाह ।आब बनर्जी परिवार आ चटर्जी परिवार मे शिष्टचारक आदान प्रदान होमय लागल ।बनर्जी क कन्या चाह बिस्कुट ल ऽक ऽ चटर्जी क पत्नीक आगा बढ़ा देलखिन्ह ।चटर्जी साहेब नीचा उतरि क पूरी तरकारी लय अनलाह।चटर्जी क पत्नी परसे लागलैथ।

ई दृश्य देखि हमरा अपूर्व आनद भेटल ।मन मे अनेको भाव आ तरंग उठल।एही दुनु परिवार के पहिने कहियो भेट नहि छैक आगा सेहो कुनों फेर संभावना नहि छैक ।तथापि एतबे काल मे आ एतबे कालक लेल दुनु मे कतेक अपनैती भ ऽ गेलैक अछि ।येह कारण छैक जे अहि जातिक सर्वत्र अभ्युदय छैक ।येह बनर्जी महाशय थोड़े काल पहिने पाथरक मूर्ति बनल छलाह “तनिका मे अचानक ई सरसता कोना आयल ।ई आनद बाज़ार पत्रिका के माया थीक ।

येह सभ सोचैत मोकामा घाट आबी गेल ।इच्छा त रहय ई दृश्य आउर देखि अपन देस मे ई दृश्य देखनाय मुश्किल अछि ।कदाचित बंगला भाषाक ई प्रताप मैथिलियो मे आबी जयतैक ।

जहाज स गंगा पार क अपन भूमि पर पैर देलहुं ।सिमरिया घाट मे ट्रेन लागल छल ।परन्तु ओहिमे जे दृश्य देखलहुं से एखनो आँखिक सामने नाची रहल अछि ।

हाथ मे गंगाजली नेने एकटा वृधा चढे चाहित छथि ।परन्तु लोक चढ़े नहि दैत छनि।गाडीक भीतर मल्लयुद्ध भ ऽ रहल अछि ।वृधाक हाथ मे एकटा सजी आउर गंगाजली छैन ।पाछां मे पुतोहू एकटा शिशु के नेने ठाढ़ छैथि ।वृधा के अपन पुत्र पर भरोसा छलैन से ओ चुप चाप ठाढ़ रहैथ।परन्तु जखन देखाल्खिंह जे बेटाक हालत त चिचिया उठाल्खिंह हे ओ बाबू “हम निहोरा करैत छी हमर सरवन पूत छ मास स दुखिताह छैथ ।हुनका चढे दीयों ।।हे ओ बाबू हमरा सबके चढ़ा लियऽ ।बहुत पुण्य होयत ।

जखन हमरा नहि रहल गेल “तखन ओहिठाम ज पहुंचलाहू आ कोठली मे बैसल यात्री के आग्रह काहूँ जे ऽ देखू एत्तिकल स आहंक एकटा देशी भाय निहोरा कय रहल छैथ संग मे वृधा माता आउर प्रसूतिका स्त्री छथिन्ह “अहाँ लोकनि के कनेको विचार नहि अछि ।

एक गोटे बजलाह देशी भाय छैथ त कि माथ पर उठा लियों ।

हम कहलों देखू अहाँ लोकनि जन अपन मोटरी नीचा राखी ली त ई तीनो गोटे आराम स बैसी सकैत छैथ ।

एकगोटे कहलैंह “मोटरी में खयबाक सामान अछि ।नीचा कोना उतारू?

हम "त ऊपर राखी दिओक

दोसर बजलाह “से कोना होयत “ओही ठाम बच्चा सुतल अछि “ओकरा हम पीचाय दियोक ?

हम "अहाँक बच्चा नहि पिचायत “ई लोकनि कोना मे सटी क बैस जेतीह।

आब तरह तरह के बोली भीतर स आबे लागल

एक ऽवकील बनि क पैरवी करैत छैथ

दोसर “सभटा कानून अहि ठाम झारे आयल छैथ

हम विनय पूर्वक कह्लाहूँ “बेस त अहाँ अपन सीट पर बैसू ई सब पेटी पर बैस जेताह

कोठलिक यात्रिगन एक दोसरक मुहं ताके लगलाह “एकटा के मन मे किछु दायक संचार भ ऽ उठ्लैंह कहाल्खिंह कि करबाहक आब दहक।

हम श्रवण कुमार के कहलहुं “अहाँ लोकनी अब्बै जाऊ “ई लोकनि जतय जगह देथ बैस जाव।

हम आश्वस्त भ ऽ अपन डिब्बा में गेलहुं “जीवन मे एकटा पुण्य कार्य आई भेल “ई विचारैत खिड़की स बाहर देखि देह सिहरी उठल “श्रवण कुमारक परिवार गाड़ी मे चढ़वाक प्रयास कै रहल छलाह तबई गाड़ी सरकाई लागल ।

ताबत एक झुण्ड मोगल हु हु करैत पहुँच गेल आ माँ पुत्र आ पुत्रवधू के ठेली क नीचा करैत गाडी मे चढ़ी गेल ।गाडी चलल लागल आर श्रवण कुमारक परिवार नीचा खसि पडल

हुनकर परिवारक ओ करुण दृश्य हमरा एखन तक नहि बिस्रैत अछि

तहिया स हम नहि जानी जे कतेक बेर अहि प्रश्न पर विचार केने होयब जे चटर्जी क माता आ बनर्जी क पत्नी मे जे मर्यादा छलैन्ह सैह मर्यादा ओही वृधा आ युवती मे छलैन्ह ।परन्तु हुनकर नारित्वाक आदर किएक नहि भेलेंह ।हम जतेक सोचे छी ततेक समस्या जटिल भ जायत अछि ।गाड़ी मे भडिक अपन देशवासी रहैथ परन्तु चारी टा आगा पहुँच गेलेंह त सब सकदम “किनको बाजबाक सहस नहि छेलानी ।

बात अछि जे बंगाली अपन लोक के मैथ पर चढ़ बैत छैथ आउर हमरा सब अपन लोक के पैर स ठोकर मारैत छी ।थोड बेक दूरक अंतर छैक “तखन बंग आउर मिथिला मे एतेक अंतर किएक ?

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