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Sunday, April 8, 2012

भाइक सि‍नेह :: जगदीश मण्‍डल


भाइक ि‍सनेह

बारहसँ बेसी राति‍ ढहि‍ चुकल मुदा एक नै बाजल छलैक। अगहन मासक अन्‍हरि‍याक चतुर्दशी। एक तँ डम्‍हाएल अन्‍हार तइपर झक्‍सी जकाँ ओस खसैत। आँखि‍क रोशनी एते दुबरा गेल जे अपनो देह भरि‍ नै देखि‍ पबैत छलौं। जाड़क राति‍, तँए लोक सबेरे सीरक सरि‍या क ओछाइन पकड़ि‍ लैत छल। पहि‍ल नीन पूड़ि‍ क टूटिते शि‍ष्‍टदेवक मन छोट भाए वि‍चारनाथपर पहुँचल। सभ तरहेँ श्रेष्‍ठ रहि‍तो आँखि‍क सोझेमे परि‍वार टूटि‍ गेल। जि‍नगी तँ ओहन जाल नै‍, जइमे ओझराएब अनि‍वार्य अछि। वि‍धाता तँ सभ कि‍छु दए मनुखकेँ पठबैत छथि‍न तहन किअ‍ए लोक मकड़ा जकाँ अपने करनीसँ ओझरा जाइत अछि। वि‍वेकमे केना भूर भऽ जाइ छै जे हंस नै बनि‍ कऽ कार-कौआ बनि‍ जाइत अछि। परि‍वार भलहिं फूट भऽ गेल हुअए मुदा वि‍चारनाथ तँ छोटे भाए छथि‍। पि‍तातुल्‍य छि‍ऐ। कि‍यो बुझै वा नै बुझै, अपने तँ जरूर बुझै छी। अखन धरि‍ जते दुनि‍याँ आ उगैत सूर्जक दर्शन हमरा भेल अछि ओतेक तँ वि‍चारनाथकेँ नहि‍ये भेलैहेँ। परि‍वार टूटैक दोख केकरा लगतै। पि‍ता-तुल्‍य तँ प‍रि‍‍वारमे हमहीं छि‍ऐ। मनुखक जि‍नगीक गाड़ी समैक संग चलैत आएल अछि आ आगुओ चलि‍ते रहत। सोचैत-वि‍चारैत शि‍ष्‍टदेवक हृदए बर्फ जकाँ पघि‍लि‍-पघि‍लि‍ पानि‍ हुअए लगल। पि‍पनीमे अँटकल नोरक बुन्न सरस्‍वती नदीक धार जकाँ पहाड़पर सँ समतल भूमि‍मे बहए लगल। नोरक संग भाइक सि‍नेह सेहो नि‍कलल। जि‍नगीक सभ बाटमे वि‍चारनाथ पाछू अछि तँए ओकर बाँहि‍ पकड़ि‍ आगू खि‍ंचबाक अछि। पाँच समांग कमेनि‍हारक परि‍वार अछि। ओ दुइये परानी अछि। घरक कोनो वस्‍तु नि‍कालि‍ कऽ देलासँ पत्नी देखि‍ लेती मुदा खरि‍हानक धानक बोझ तँ नै ने देखती।

बि‍नु ठेकानल राति‍मे वि‍चारनाथक नीन सेहो टुटल। नीन टूटि‍ते मनमे उठल जे जइ भैयाक संग चंदेसर, वि‍देसर, जागेसर महादेव स्‍थान संगे जाइ छलौं। की बेटो-भाति‍ज संगे जाएत? एहेन टुट परि‍वारमे कोन। भेल? जहि‍यासँ ज्ञान-परान भेल तहि‍यासँ जहि‍ना भैयाक संग रहैत एलौं, भीन होइसँ पहि‍नो धरि‍ तँ ओहि‍ना रहलौं। मुदा कोन रोग परि‍वारमे के‍म्‍हरसँ घुसि‍ आएल जे दुनू भाँइ महींस‍क सींग जकाँ भऽ गेल छी। मुदा भैयाक दोख कहाँ कतौ छन्हि। दू परि‍वारसँ दुनू दि‍यादि‍नी आबि‍ दुनू भाँइकेँ दू दि‍याद बना देलक। दुनू भाँइमे जेठ-छोटक बेवहार कहाँ अछि। दुनू भाँइ तँ भइये-बच्‍चा छी मुदा दि‍यादि‍नीमे से कहाँ छै? माए तुल्‍य भौजीक दोख केना लगेबनि‍ मुदा की ओ छोट दि‍यादि‍नीकेँ छोट बहि‍न बुझै छथि‍न‍..?

मनुक्‍खोक अजीब गति‍ अछि। जा धरि‍ सम्‍मि‍लि‍त परि‍वार रहैत छैक ताधरि‍ दुनि‍याँक सभ रोग परि‍वारकेँ पकड़ने रहैत छैक मुदा परि‍वार टूटि‍ते रोग पड़ा जाइत छैक। खैर कि‍छु होउ, जा धरि‍ जीबै छी ताधरि‍ भैयाकेँ भइये बुझबनि‍ भलहिं ओ जे बुझथि‍। जहि‍ना आमक वंश बढ़ैक दू रस्‍ता अछि। डारि‍सँ गाछ जोड़ि‍‍ जे कलम बनैत अछि‍ से पुन: वएह आम रहैत अछि‍ मुदा आँठीक जनमल गाछ दि‍नानुदि‍न रूप बदलैत, सभ कि‍छु बदलि‍ लैत अछि। एक ि‍हस्‍सा रहि‍तो भैयाकेँ पाँच गोटे खेनि‍हारो छन्हि आ तीनू भाए-बहिन‍केँ पढ़बैयोमे खर्च होइत छन्हि। हमर तँ नापल-जोखल अढ़ाइ गोटेक परि‍वार अछि। एक सम्‍पति‍‍मे भैयाक दोबर खर्च छन्हि। सहोदर रहैत जँ भैयाक दुख हम नै बुझबनि‍ तँ आन थोड़े बुझतनि‍? जइ धरतीपर राम-लक्ष्‍मण सन भैयारी भऽ चुकल अछि, की हम ओही धरतीपर जन्‍म नै लेने छी।
चुपचाप ओछाइनपरसँ उठि‍ खरि‍हान जाय धानक जाकमे सँ एक बोझ उठा भाइक खरि‍हान दि‍स वि‍दा भेल। तइ काल शि‍ष्‍टदेवो अपना खरि‍हानसँ धानक बोझ उठा‍ वि‍चारनाथक खरि‍हान दि‍स चलल। दुनू भाँइक खरि‍हानक मुँह दू दि‍स रहने कि‍छु क्षणक रस्‍ताक दूरी बनि‍ गेल। बीच बाटपर दुनू दि‍ससँ दुनू भाँइ बोझ उठौने एक दोसराक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। मुदा अन्‍हार राति‍क दुआरे कि‍यो ककरो चि‍न्‍हलक नै‍। दुनूक मनमे चोरक शंका भेल। मुदा हल्‍लो केना करत? अखन तँ दुनू चोरे छल। भलहिं अपने धान किअ‍ए ने छलैक। मक्‍खन चोर कृष्‍ण तँ नै छल जे चोरा कऽ खाइयो लैत आ झूठ बाजि‍ छि‍पाइयो लि‍तए। खरहोरि‍क कड़ची जकाँ दुनू भाँइ सजीव रहि‍तो नि‍र्जीव आ नि‍र्जीव रहि‍तो सजीव ठाढ़ रहल। मुँहमे बोल नै‍, आँखि‍मे नोर नै। अमरलत्ती जकाँ दुनू हृदए ओझरा कऽ लटपटा गेल। एक क्षणक लेल जेना सरस्‍वती नदीक धार बहब छोड़ि‍ असथि‍र भऽ मोटाए लगल।
मुड़ी उठा शि‍ष्‍टदेव अकास दि‍स तकलक। उतरे-दछि‍‍ने डगहर आ माथसँ कनेक नि‍च्‍चाँ सतभैयाँकेँ पच्‍छि‍‍म दि‍स हि‍या-हि‍या कऽ देखए लगल। सतभैयाँपर सँ नजरि‍ नि‍च्‍चे ने उतरैत। तइ काल उतरबरि‍या गाछपर चकबी-चकेबाक झुण्‍ड देह डोलबैत भोरक इशारा करैत बोली देलक। चकवीक अाबाज सुनि‍ते शि‍ष्‍टदेवक मनमे आएल, हो-ने-हो, कहीं पत्नी जागि‍ नै गेल होथि‍। मुड़ी नि‍च्‍चाँ करिते‍ मुँुहसँ फूटलै‍- के?
बोलीक आबाज अकानि‍ वि‍चारनाथ उत्तर देलक- हम।‍
‍हम सुि‍न शि‍ष्‍टदेवक मन कहलक भाय वि‍चारनाथ छी मुदा- तर्क कहलक एत्ती राति‍ कऽ बोझ उठौने कतए जाइए। ताड़ि‍यो-दारू तँ नहि‍ये पीबैए जे पसीखाना जाइत होएत आकि‍ भट्ठीखाना। सामंजस्‍य करैत मुँहसँ बाजल- बौआ।‍
भैया।‍
दुनूक मुँह एक्के बेर बाजल- हँ।‍
शि‍ष्‍टदेव दोहरौलक- एहेन काजर सन कारी राति‍मे बोझ कतए नेने जाइ छहक?
जहि‍ना कारि‍खकेँ सि‍नेह हृदए लगा चमक आनि‍ दैत आ आँखि‍क गुण बढ़बैत अछि‍ तहि‍ना वि‍चारनाथक हृदए चमकल- भैया, अहाँक खर्च देखि‍ मन कहलक जे पाँच बोझ धान दए अबहुन।‍
दुनू भाँइक मनमे उठल- भीन किअ‍ए....?


जा धरि‍ सदनदेव आ श्रद्धावती जीबैत रहथि‍ ताधरि‍ स्‍वर्गक परि‍वार छलनि‍। अपन अमलदारि‍येमे सदनदेव दुनू बेटाकेँ गामक स्‍कूल धरि‍ पढ़ा बि‍आह-दुरागमन करा जि‍नगीक लीलासँ नि‍चेन भऽ गेल छलाह। सोलह बीघा जमीनक कि‍सान परि‍वार, बाढ़ि‍-रौदीक बीच रहि‍तो दोसराक सेवाकेँ कर्ज बूझि‍ अपन परि‍वारकेँ सालक आमदनीक भीतरे खर्च कऽ रखि‍ उगरल आमदनीसँ काति‍क मास भागवत आ भोज कए अगहनसँ नव जि‍नगीमे पएर रखैत छलाह। ने बेटाकेँ कि‍छु अढ़बैत छलाह आ ने पत्नीकेँ। अढ़बैक प्रयोजने नै‍। परि‍वारकेँ संस्‍था बूझि‍ अपन-अपन समैक उपयोग शक्‍ति‍क अनुकूल सभ कि‍यो काजमे लगबैत रहैत छलाह। अपने अनुकूल परि‍वार देखि‍ सदनदेव दुनू भाँइक बि‍आह केने छलाह‍‍। शि‍ष्‍टदेवक बि‍आह बीस बीघाबला लालबाबूक परि‍वारमे आ वि‍चारनाथक बारह बीघाबला श्रमदेवक परि‍वारमे भेलै।
तइ समए महि‍ला शि‍क्षा अबैध रहने कैकेयी सेहो नि‍अमक पालन करैत रहलि‍। जइसँ पि‍तो -लालबाबू- खुश भेला। माल-जाल पोसैले एकटा नोकर छलै आ खेती जने-हरवाह हाथे होइ। अंगनाक मालि‍क पत्नि‍‍‍ये रहनि‍। खाइ-पीबैक चहटि‍ पत्नीकेँ नैहरेसँ लगल रहै जइ दुआरे बेटी-पुतोहुकेँ रहि‍तो भानस अपने करैत छेलीह। गठुलासँ बेटी जारनि‍ आनि‍ दैत छलनि‍ आ घरसँ बरतन-बासन आनि‍ पुतोहु चूल्हि‍‍‍ लग दऽ देनि‍। अपने तँ तरकारि‍ये बनबए, चाउरे फटकए आ दालि‍येक खोंइचा बीछैमे पसेना पोछैत रहैत छेलीह। चूल्हि‍‍‍क एक भाग पुतोहुकेँ आ दोसर भाग बेटीकेँ बैसाए बीचमे अपने बैस‍  सभ दि‍न नैहरक खि‍स्‍सा सुनबै छेलीह जेकरे चलैत ने बेटी परबाबाक नाओं आ ने ददि‍या ससुरक नाओं पुतोहु बुझैत छलनि‍।
बाढ़ि‍क उपद्रवसँ परि‍वार चलब कठि‍न बूझि‍ श्रमदेव पि‍ति‍यौत भायकेँ सातो बीघा खेत सुमझा परि‍वारक संग कलकत्ता चलि‍ गेल। माए-बापक संग साते बर्खक दमयन्‍ती सेहो चलि‍ गेलि‍। रि‍सरा जूट मि‍लमे श्रमदेव नोकरी ज्‍वाइन केलक। पक्का आठ घंटाक ड्यूटी। रस्‍ताक समए श्रमि‍कक। डेराक बगलेक स्‍कूलमे दमयन्‍तीक नाओं लि‍खा देलक। संगी-साथी सभसँ पँइच रुपैया लऽ कऽ दस कि‍लो दूधवाली गाए कीनि‍ पत्नीक लेल सेहो काज ठाढ़ कऽ लेलक। बच्‍चेसँ माने साते बर्खसँ दमयन्‍ती थैर-गोबर करैत‍-करैत‍ गाए पोसनि‍हारि‍ भऽ गेलि‍। आठ बर्ख नोकरीक उत्तर मि‍लमे बेतनक लेल श्रमि‍क सभ हड़ताल केलनि‍। मि‍लमे ताला लटकि‍ गेल। नोकरीक डगमगाइत स्‍थि‍ति‍ देखि‍ श्रमदेव अपन अर्जल सभ कि‍छु बेचि‍ पुन: घर घुमि‍‍ गेल। सस्‍त जमीन रहने पाँच बीघा जमीनो आ तीनटा गाइयो कीनि‍ दोहरी काज ठाढ़ केलक।
समैक संग चलि‍ दुनू भाँइ शि‍ष्‍टदेव सेहो परि‍वारक गाड़ीकेँ पटरीपर चढ़ा अपन गति‍ये चलबैत रहल।
अंगनाक मालि‍क कैकेयी आ सहयोगीक रूपमे दमयन्‍ती रहए लगलीह। जेठ होइक नाते कैकेयी मुँहक बले जुइतो चलबए लगली आ हाथ-पएरकेँ अारामो दि‍अ लगलीह। यएह आराम काल भऽ भीन करौलक। से कतेक उचि‍त? मुदा दुनू भाँइक बीचक सि‍नेह पुन: एकाकार कऽ देने छल।
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