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Monday, April 9, 2012

हेमचन्द्र झा- अग्रसोची



आई महेश बाबू अपन तीनू बेटा अजय, विजय आ दुर्जयक संग कोनो विशेष मुद्दापर गप्प कऽ रहल छथि। गप्प कखनो फुसुर-फुसुर होईत अछि तँ कखनो तेज भऽ जाईत अछि।
ओना महेज बाबू पकिया गृहस्थ । अपन गृहस्थीजक बलपर तीनू बेटाकेँ पढ़ेलनिलिखेलनि आ तीनू बेटीक विआहो केलनि। सदिखन गाम घरसँ जूड़ल रहएबला महेश बाबू पहिले बेर दिल्ली अएलाह अछि, तीनू बेटा दिल्लीएमे छनि। अपने दुनू प्राणि गाममे छथि। तीनू बेटी सासुर बसैत छनि। खेत पथार बटाईपर छनि, तथापि ततेक भऽ जाईत छनि जे कोनो बेटासँ कहियो मंगबाक पयोजन नहि पड़ैत छनि। गाममे सभ कहैत अछि जे महेश बेस सुखितगर आदमी अछि, एकर परिवार बेस नीक छैक, सभ अपन पाएरपर ठाढ़ छैक------आदि।
आ तेँ महेशबाबू गाममे निश्चित छलाह। कहिया दिल्लीा बेटा सभसँ भेंट करक लेल या धीया पुता सभकेँ देखबाक लेल ओ नहि अएलाह सालमे एक-आध बेर बेटे सभ गाम जाईत छलनि। तथापि एहिबेर मुद्दासे फँसि गेलनि जे दुर्गापूजाक बाद ओ अपन एकटा गौंआक संग दिल्लीा अएलाह। सामने दियावाती या छठि रहबाक बावजूदो ओ एलाह।
यद्यपि तीनू बेटामे थोड़-बहुत मतांतर रहैत छल, परन्तुस ओ प्राय: प्रकट नहि होईत छल। मुदा एहि बेर फागुनमे अजयक जेठकी बेटीक कनेदानमे से नहि भेल। गप्प-शप्पक क्रममे नहि जानि कोन गप्पफपर मझिली पुतोहु आत्मादाहक प्रयास केलकनि। यद्यपि दिनक समए छल आ कनेदान-दुरागमन रहबाक कारणे बेटियो सभ छलनि तेँ बात आगू नहि बढ़लैक आ मामिला थमि गेलैक। गाममे ई बात जंगलक आगि जेकां पसरि गेल आ देखैत-देखैत पूरा गामक लोक जमा भऽ गेल। महेश बाबूक सभटा संचित प्रतिष्ठा आ सुख-चेन जेना छनहिमे देखार भऽ गेलनि।
कनिये दिनक बाद बेटा सभ सपरिवार वापस चलि गेलनि आ तीनू बेटियो अपन-अपन सासुर निचेनसँ आब महेश-बाबू पूरा प्रकरनपर विचार करए लगलाह जे एना भेल किएक। गाम-घरमे सेहो लोक सभसँ विचार-विमर्श केलनि ई बुझवामे भांगठ नहि रहलनि जे सभक जड़ि छैक पाई। मास्टलर साहेब तँ प्रकटत: कहियो देलखिन जे अहाँ अपन जीबैत पाईबला झंझटि किएक ने फरिया दैत छियैक?
वस्तु त: ६-७ साल पहदनि महेश बाबू पाही पट्टीक एकटा एक बिघवा खेत बेचलनि। अपनासँ आब ओकर रखवाली कएल पार नहि लगैत छलनि, तेँ ओकरा बेच देलनि। किछु पाईं तँ जमीनमे फँसेलाह, किछु जमाए सभ लऽ गेलखिन आ बाँकी ४०,००० फिक्सर कऽ देलाह। ओही साल अजयक बेटाक मूड़न जमा भेल। अजय येन-केन प्रकारेण दुनू छोट भाएकेँ बुझा देलथि जे बैंकमे पाई राखलासँ की फायदा होएत। ई पाई हमरा दऽ दिअ। हम शेयर बजारमे एकरा लगाएब आ गामक बाँकी सभ काज हमरा जिम्माहमे रहत। हम एक्क हि सालमे एकरा दोबर-तेबर कऽ लेब आदि।
परंतु से भेल नहि। कारण जे हो। दू-तीन साल बीतलाक बाद अजय राम कहानी शुरू केलनि जे हमरा शेयरमे घाटा लागि गेल। तथापि सभ सब्र केने रहल जे की पता शेयरक दाम बढ़ि जाई। परंतु ई की? एक दिन गप्प- शप्पक क्रममे जेठकी दियादनी मझिली दियादनीकेँ कहलथिन्ह- जे अहाँ सभ आब ओई पाईकेँ बिसरि जाईयौ। अहाँक भैंसुर घरक लेल ई केलथि ओ केलथि.....।
आ एही मुद्दापर कनेदान आ दुरागमन संपन्नह होईतहि उक्ते घटना-घटल। महेश बाबू शीघ्रातिशीघ्र एकर समाधान करए चाहैत छलाह। तथापि आषाढ़- सोनमे गामसँ बहरेताह कोना, तेँ दुर्गापूजाक बाद दिल्ली अयलाह, खास कऽ कऽ एहि मामिलाक पंचैती करक लेल।
पहिने पहुँचलाह अजयक डेरापर, ओहिठाम हाँज-भाँज लेलनि ,परंतु ई नहि कहलनि जे एहि काजक लेल आयल छी। विजयक डेरा लगे छल। ओतहु गेला आ समटा बात बुझलनि। भरदुतिया दिन पहुँचलाह दुर्जयक डेरा। अजय आ विजय सेहो रहनि संगमे। फरिछौढ भऽ सकैत छल ओही दिन परंतु दुर्जयक बिनु हाँज-भाँज लेने ओ गप्प कहब उचित नहि बुझलाह। दुर्जयकेँ स्पओष्ट त: कहलनि जे हम एहि काजक लेल आएल छी आ एकर समाधानक रस्ताल देखौलेन से तोँ ओई ४०,०००मे हिस्साह नहि लहक। हम कहि सुनिकेँ विजयकेँ किछु दिया दैत छियैक आ एहि तरहेँ हमर इज्जुति प्रतिष्ठा बचा दय। चूंकि गप्प इज्जमत प्रतिष्ठाक छल, दुर्जेय मानि गेल आ रवि दिन सभ भाईक बजाहटि भेल एहि लेल।
पहिने तँ अजयक सामनेमे प्रस्ताएव भेल जे तोँ ४०,०००×२ = ८०,००० केँ तीनू भाईमे बाँटि देहक। परंतु अजय तर्क रखलक जे हम एहि बीच गाममे अलान-फलान खर्च केलहुँ आ तेँ हम पाई नहि देब। संगहि ई परिवारक पहिल कनेदान छलैक, एहिमे हिनको सभकेँ शेयर देबए पड़तनि आ ई सभ शेयर नहि देलाह, तेँ हिनका सभक हिस्सास कटि गेल। तर्क सूनि सभ अकक् रहि गेल। दुर्जेय स्वायं कनेदानमे प्रस्ताव रखने छल जे अहाँक की पोजीशन अछि से कहू तँ हमहूँ किछु इंतजाम करैत छी। अजय मना कऽ देने छलाह। परंतु हुनका की बूझल छलनि से ओहि सझीवा पाईमे सँ हुनक हिस्सा कटि गेलनि। तहन अजयकेँ कहल गेल जे ई ठीक नहि केलह तँ ओ दोसर प्रस्ताकव रखलनि जे अहाँ गाम जाउ आ खेत बेचिकेँ दुनू भाँइकेँ ४०४० दऽ दियनु। ई प्रस्तावव तँ किन्नमहु नै मानल जा सकैत छल। पर्याप्ति कहा-सुनीक बाद अंतत: अजय २०,००० देबपर सहमत भेलाह आ ई फैसला भेल जे ओ २०,००० विजयकेँ दऽ देथिन। एवं प्रकारेण महेश बाबू एहि मुद्दासँ जान छोड़ेलनि।
एहि सभ घटना क्रममे अग्रसोचीक बुद्धिक तारीफ करए पड़त। कनेदानसँ ६-७ साल पहिने योजना बद्ध ढंगसँ समटा सझेवा पाई अपन कब्जाफमे करब आ कनेदानक बाद हिस्सा क नामपर काटब, वस्तु तः- हुनक धूर्तता आ चालाकीक उत्कृसष्ट उदाहरण छल। अग्रसोची सुखी रहलाह। बिनु कोनो हुज्जँतिकेँ पहिल कनेदान निकलि गेलनि। सभसँ घाटामे रहल दुर्जय। ओकरा हाथ किछु नै एलैक। लेकिन ओ पर्याप्त खुश छल जे सभटा पहिने देखार भऽ गेलैक। अन्यथथा भाँइमे सभसँ छोट रहने ओ सभ दिन सभक मददि करैत रहितय आ अपना बेरमे कियो नै आबि तैक मददि करए आ तटबक पछतेलासँ की लाभ होईतैक?

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