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Monday, April 9, 2012

दुर्गानन्द मंडल -बकलेल


गर्मीक समए, जेठक दुपहरिया, प्रचण्ड रौद, बिजली लापत्ता। ऐहन बुझना जाइत छल, जेना दाता-दीनानाथ आइ मनुखक परीक्षा लेमए चाहैत छथि। कतौसँ वसातक कोनो आश नहि। नेेना-भुटका सभ एमहर भेँए तँ ओम्हर भेँह, एम्हर केँ तँ ओम्हर कों करैत छल। बुझना जाइत छल जेना मखना तेलीक पहरा होअए। माल-जाल गर्मीसँ परेशान भऽ एकहक हाथ जीभ बवैत छल। लेड़ू आ परड़ुक तँ तेरहो करम भऽ गेल छल। कोनो तरहेँ चंडलवा रौद आ दुपहरिया झुकल, मन कनेक थिर भेल मुदा राति खन उएह हाल, जतवे गर्मीसँ परेशानी ततवेक मच्छड़ आ उड़ीसक उपद्रव। ओकरा सभमे एकता ततेक जँ हाँ-हाँ नहि करियोक तँ सोझे उठालेत आ नेने-नेने सकरी चीनी मील लग रखि आओत। कतहुँ चैन नहि...।
भोजनोपरांत देह-हाथ सोझ करवाक लेल विछाउनपर गेलौं, मुदा चैन नहि। कछमछ-कछमछ कऽ रहल छलौं। कती राति गुजारलाक वाद कने जाकि आंॅखि लागल, आकि ध्यान किछु आर-आर विषए दिस चल गेल। आॅंखि यधपि बन्न मुदा चेतनामे अनेकानेक तरहक बात धुमए लगैत अछि। पड़ल छी विछौनपर मुदा मन जीनगीक चैबट्टीपर ठाढ़ वर्तमानक अधरपर भूतसँ भविष्यक, भविष्यकेँ विषएमे सोचए लगैत अछि।
सरकारी सेवामे रहवाक करणें कमे-काल गाम जेवाक मौका लगैत अछि। पावनियो तिहार जतए छी ततए करए पडै़त अछि। तखनो अस्सी बर्खक बुढ़ि माए आ करीब सए वर्खक बुढ़ बावूजीकेँ देखए लेल गाम जरुरे चल जाइ छी। टोला-पड़ोसाक लोक सभकेँ भेंट कऽ सबहक कुशल छेम जानि अपना कऽ धन्य बुझैत छी।
एहि प्रकारे विभिन्न प्रकारक लोकक चारित्रिक विश्लेषण करबाक सेहो मौका लागि जाइत अछि। संभवतः ऐहने स्थितिमे मोन पड़ैत छथि एकटा सज्जन सरोज बावू। ओ ऐहेन व्यक्ति जे कोनो सुरतमे अपना कऽ किनकोसँ कम मानए लेल तैयार नहि होइत छथि।
माए-बापक एक मात्र बेटा नान्हिएटा सँ पढ़ै-लिखैमे तेजगर मुदा ततवेक थेथरलोजीमे सेहो निपुण। विषए कोनो किएक नहि हो मुदा एक चैखड़ि थेथरलोजी जरुर करताह। जेना की ओ सर्वज्ञ होथि। तेँ हुनकर किछु संगी-साथी हुनका ‘‘मिस्टर नो आॅल’’ सेहो कहैत छनि। आर ि‍कछु लोक सभ बकलेल सेहो कहथिन्ह।
परुकेँ साल अगहन मासमे हुनकर विआह झंझारपुरक बगलहि महरैल गाममे सम्पनन भेल।
विआहक मादे एकोटा सर-कुटुम नहि छुटथि एहि लेल ओ एकटा बही अलगसँ बना आ क्रमवद्ध कऽ सभकेँ नत-लिऔन आ हकार पठाएव नहि विसरलाह। विआहोत्सवमे सभ उपस्थित भऽ बरि‍याती गेलाह। जाहिसँ एक बात स्पष्ट भऽ गेल जे लड़का कोनो नीके समाजसँ जुड़ल छथि। गौँवा-धरुआ आति प्रसन्न भऽ बढ़ि-चढ़ि कऽ बरि‍यातीक स्वागत-बात कएलैन्हि। ममिऔत-पिसिऔत सभ एहिसँ प्रसन्न जे बर आ कनियाँ दुनूक जोड़ी सीता-रामक जोड़ी लगैत अछि। भगवानक असीम कृपासँ अनुगृहित भऽ नीके कथा सम्पन्न भेल।
असली कथा आव एहि ठामसँ शुरु होइत अछि। विआहोपरांत कनियाँ विदागरी भऽ सासुर ऐलीह। दाइ-माइ लोकनि अरछि‍-परछि‍ कनियाँ घर केलैन्हि। आ अइहव-सुहव होथू अशीरवाद दैत अपन-अपन घर चल गेलीह।
कनियाँ तँ कनिए दिनमे अपन सासु-ननदिक दिल जीत लेलैन्हि। बर-कनियाँ समर्थ रहवाक कारणें विदागरी चैठारी दिन नहि भऽ साओन-भादोमे भेल। पहिल साओन-भादो नवकी कनियाँ नैहरमे मनवैत छथि, एहि तरहक मिथिलाक आ मैथिलक एकटा मान्यता छैक।
नीक दिन तका कनियाँ विदागरी भऽ सासुरसँ नैहर चल गेलीह। आव तँ भेल पहपटि। सरोज बावू जे एते दिन सदिखन घरेमे धुसल रहथि आ सदिखन कनियाँए कऽ निंधारैत आ गवैत छलाह ई गीत ‘‘मन होइए अहाँकेँ हम देखते रही, किछु बाजी अहाँ हम सुनिते रही, मन होइए अहाँकेँ........।
आठ मास कोना वितल से नहि बुझि सकलाह आ कनियाँ आठे मासक फला-फलक रुपमे नौ मासक सनेश लऽ नैहर चल गलीह। से तँ, एको दिन, एको पहर, वितव सरोज बावूक लेल पहाड़ सन बुझना जाइत छलैन्हि। कोनो वातक सुधए-बुधिए नहि रहैन्हि। सदिखन एकदम बकलेल जेँका करथि। एहन सन वुझना जाइत छलैन्हि जे शरीर गाममे होइन्हि आ आत्मा सासुरमे। भोजनक प्रति अरुची जागए लगलैन्हि। समएसँ स्नान-भोजन करब सेहो सुधि-बुधि नहि। लोक सभ अपनेमे बाजथि जे सरोज बावू ऐना किएक करैत छथि- एकदम बकलेल जेकाँ।
जहिना अपना गाम बेरमामे सरोज बावू तहिना अपना नैहर महरैलमे सरोजनी दुनू व्यक्ति एक दोसराक विरहाग्निमे जरैत। दिनो-दिन मुरझाइल जाइत छलाह। स्वाभाविकेँ थिक। किएक तँ बड़-कनियाँ समर्थ रहवाक कारणे जीवनक अपूर्व आनन्द जे उठौने रहथि, एकटा पूर्ण पति-पत्नीक रुपमे।
एक-एक दिन पहाड़ भेल चल जाइत छलैन्हि। नहि तँ ऐम्हरे आँखिमे निन्न आ ने ओम्हरे एको मिन्टक चैन। माए-बापक डरे नहि तँ कनियाँ करैन्हि आ ने बावूजीक डरे सरोज सासुर जेवाक साहस कऽ पबथि। किएक तँ एखनो कतउ-कतउ ऐहन प्रथा छे जे विना दिन-दूरागमनक बर-सासूर नहि जाइत छथि। तेँ सरोज बावूक डेग सासुर जेवाक लेल नहि उठैन्हि।
समए बीतेत देरी नहि लगैत छैक देखैत-देखैत चैठ-चन्द्र पावनि आएल....... चल गेल। जीतीआ बीतल आवि गेल आषीण मास.... सगरो दुर्गापूजाक तैयारी शुरु भऽ गेल। ओम्हर सरोजनीक नैहरमे जोड़ा करिआ छागर बलि-प्रदानक लेल राखल छल। जकरा ओ लोकनि खुब जतनसँ दाना-पानि खुआवथि-पिआवैथि। देखते-देखते दुनू छागर, सवाइयासँ डोढ़ा भऽ गेल। जँ जँ दूर्गापूजा लग आएल जाइत, सरोज बावू आ सरोजनीक हृदयक धड़कन हृदयागंम हेवाक लेल मचलए लगलनि‍। देखते-देखते कलश स्थापन भेल। पहिल पूजा बीतल दोसर बीतल आवि गेल पंचमी। मुदा एखन धरि सासुरसँ सरोज बावूक लेल कोनो खोज-खवरि नहि कएल गेल!
एकदिन माए पुछलथिन्ह- ‘‘बौआ, कनिआक खोज खवरि नहि केलहक? कोनो फोनो-तौनो नहि अवै छह? बेचारे की बजताह अपन हारल आ वहूक मारल क्यो की बजै छै? हारि-थाकि पंचमीराति फोन लगौलन्हि। घंटी भेल, फोन उठौलथिन्ह हुनकर शारि-कमलनी, ओम्हरसँ अवाज अवैत अछि- ‘‘हेलो.... हम महरैलसँ वजै छी?
‘‘हम छी सरोज बेरमासँ। कनी...... दीदी.......केँ फोन .....।
कमलनी माँ दिस तकैत बाजि उठैत अछि- ‘‘माए गे माए जीजा जीकेँ फौन छिए। एम्हरसँ हेलौ-हेलौ होइत रहैत अछि। कमलनी फोन लऽ कऽ दैत छैक अपन दीदी सरोजनीकेँ।
सरोजनी फोन लइत- ‘‘परनाम करै छी। अहाँ नीके छी की नै? माँ बावूजी कोना छथि? अपना शरीरपर ध्‍यान दैत छी की नै? मन लगैए की ने? मेला देखए कहिआ ऐवै? कमलनी आ अजय, विजय अहाँक विषएमे पुछैत रहैए। दीदी गै दीदी, जीजा जी कहिया ऐतौ?''
सरोज बावूक जवाव छल एको रत्‍ती मन नहि लगैत अछि। संभवतः दूर्गापूजामे नहि आवि सकब। धिया-पूताकेँ मेला देखक लेल दस-दसटा टाका दऽ देवई। तामसे टीक ठाढ़ केने फोन काटि दैत छथि।
सरोज बावूक लेल असमंजसक स्‍थिति रहनि, जे जकरा घरमे जोड़ा छागर बलि प्रदान हेतै, से एखन धरि एको बेर अएवाक लेल नहि कहलैन्‍हि। ऐहेन कोन सासुर कोन सासु? आ ससुर, केहेन सारि आ शरहोजि। तामसे मन अधोड़ आ टीक ठाढ़। की करी आ की नहि करी? ई द्वन्‍द्वात्‍मक स्‍थिति बनल रहैन्‍हि। किछु नहि फुरैन्‍हि। मुदा अष्‍टमी अवैत-अवैत- ये दिल है कि मानता नहीं
ये वेकरारी क्‍यों हो रही है,
ये जानता नहीं....। अपना कऽ नहि रोकि सकलाह। आ चलि गेला अपन सासुर महरैल। भगवती दर्शन कऽ जहाँ की पानक दोकानपर जाए छथि, पान खेवाक लेल, आकि मेला देखक लेल आएल सारि-शरहोजिक नजरि हुनकापर पड़ैत अछि आ ओ सभ पकड़ि लैत अछि हिनकर गट्टा। जीजा जी, जीजा जी अहाँकेँ गामपर चलए पड़त। दीदीयो कहने छलि, सप्‍पत दऽ कऽ। मुदा सासु ससुरक आग्रह नहि तेँ एखनो धरि हिनक टीक ठाढ़े।
अन्‍ततः थाकि-हारि एक किलो मधुर लऽ सारि-शरहोजिक संग चललाह सरोज बावू सासुर। पहिल-पहिल बेर सासुर गेल छलाह तेँ स्‍वागत बातमे कोनो कमी नहि रहल। चाह-पान बढ़ियासँ भेल। मुदा खेवा काल ओ पसारलैन्‍हि बड़का नाटक, जे हम नहि खाएब। हम खाऽ आएल छी, भुख नहि अछि। सासु आग्रह केलथिन कोनो असर नहि, ससुर हाथ पकड़लथिन्‍ह, कोनो फरक नहि, बड़का सार सेहो खुशामद्‌ केलथिन्‍ह मुदा कोनो असर नहि। एकहि ठाम जे हम खा कऽ आएल छी, भूख नहि अछि। आ ओ भोजन नहिए केलैन्‍हि।
ओम्‍हर दुनू छागर जे बनल ओकर सुगन्‍धसँ टोला-पड़ोसा गम-गम करैत। टोलाक निमंत्रित सज्‍जन सभ आबि माउस-भात अर्थात छागर रुपी प्रसाद पावथि आ ओकर स्‍वादक सविस्‍तार चर्चा करथि। ऐह छागर जे जुआएल छल, चर्वी केहेन तरहथ्‍थी सन छलै आ प्रसाद बनल कतेक सुन्‍दर अछि! वाह मन तँ भीतरसँ प्रसन्‍न भऽ गेल, चर्चा करैत बाँका सीक्‍कीसँ खैरका करैत कुकुर कऽ पान खा ओ लोकनि तृप्‍तिक ढेकार लैत चल जाइ गेला।
एम्‍हर सरोज बावूक पेटमे बिलाड़ि कुदए लगल। ओत भुखे लहालोट। राति खसल जाए, बहरवैआक बाद घरवैयो सभ खा कऽ सुतए गेलाह। मुदा किछु लिऔनवाली सभ एखनो जगले, ओ लोकनि पाँछा काल कऽ भोजन करथि, फैलसँ पलथा मारि माउस आ भात, खाथि आ ओहि छागरक माउसक चर्चा करथि। आग्रह अलग जे दीदी कलेजी दू पीस लिअ। हे यै देवहीटोल वाली हे ई चुस्‍ता लिअ। हे यै दाइ, हे, ई हड्‌डीबला दूटा पीस लिअ। आग्रहपर आग्रह। आ ओ लोकनि बड़ी काल धरि गप्‍प-सप्‍प करति, भोजन करए गेली।
एम्‍हर सरोज बावू जठराग्‍नि आओर तेज भेल चल जा रहल छल। आव होएत छलैन्‍हि जे क्‍यो आवि आग्रह करितथि तँ भरि पेट माउस-भात खइतौं। मुदा से तँ आव सभ क्‍यो सुतए लेल चल गेल छल। धियो-पूता माउस-भात खा फोफ कटैत छल। आव तँ हिनका किदुन- ‘‘जे अपने करनी गै मुसहरनीक परि भऽ गेल छल। थाकि हारि किछु कालक वाद हरलैन्‍हि ने फूरलैन्‍हि सरोज विदाह भेलाह भनसा घर दिस। आ अपनहिसँ मउस-भात भरि थारी निकालि आ चुपे-चाप भोकसए लगलाह। किनको एहि बातक पत्तो नहि। जागल जे सभ रहथि से सभ हिनका खोजए लागल जे पाहुन कतए, पाहून कतए। आ पाहून तँ भनसा घरकेँ केवाड़ तर नुका कऽ गुप-गुप माउस-भात दऽ रहल छथिन्‍ह। तात गणेश जीक वाहन एहि कोठीसँ ओहि कोठी जा कि छरपल आ कि कोठीपर राखल खापड़ि पाहूनक कपारपर खसल। अवाज सुनतहि लोक सभ ओहि घर दिस दोगल। देखलक जे पाहून तँ केवाड़क दोगमे नुका कऽ माउस-भात भोकसि रहल छथि। परल बड़का पिहकारी, शारि-शरहोजि मारलक ताली खुब जोरसँ शोर-गुल सुनि सुतलहो लोक सभ जागि गेल। ताली आ पिहकारी पड़ि रहल अछि। पाहून तँ लाजे कठौत भऽ गेलाह।
रति जखन सुतए घर गेलाह तँ कनियाँक कटू व्‍यंग वाणक वर्षा होमए लागल। पाहूनक तँ मने शांत। किछु नहि फूरैन। सोचलाह जे अन्‍हरोखे गाम चल जाएव। विदाहो भैलाह, मुदा अन्‍हार वेशी रहवाक कारणे कुकुर सभ झॉउ-झॉउ करए लगल। लोक सभ जागि गेल देखलक जे आँगा-आँगा पाहून आ पाछाँ-पाछाँ कुकुर हिनका खिहारने जाइत अछि। लोक सभ दोड़र महरैलिक हाटपर आवि हिनका पकड़लक। धुरि जएवाक आग्रह कएलक। मुदा हिनकर मन तँ तामसे अधोड़ छल। किनको वातक मोजर नहि दऽ, हाक दैत-दैत धोती पकड़लक से हुनकर ढेका खुजि गेल, धरफरा खसलाह, मुदा ओ तइयो नहि रुकि लटपटाइत धोती खोलि फेकेत गारि दैत परात होइत-होइत अपन घर पहुुँचलाह।
कहू तँ ऐतेक पढ़ल-लिखल लोकक ई काज कोनो वकलेले जेकाँ ने भेलैन्‍हि। सरिपों जँ अधलाह नहि लागए तँ हुनका बकलेले ने कहवैन्‍हि।

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