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Saturday, April 7, 2012

सिद्ध महावीर- गजेन्द्र ठाकुर


सिद्ध महावीर
बान्हक कातमे अनमना दीदीक घर।
घर नै झोपड़ी कहू। गामक मोटामोटी सभ अँगनामे एकटा विधवाक घर रहैत छै। मुदा जखने परिवार पैघ होइत अछि तँ क्यो अपन घरक मुँह घुमा लैत अछि तँ क्यो बेढ़ बना दैत अछि। आ कखनो काल ओहि राँड़-मसोमातक घरक स्थान परिवर्तन भऽ जाइत अछि, आ से तेहने सन स्थिति छल अनमना दीदीक घरक।
मुदा अनमना दीदीक घर बान्हक कातमे छन्हि। सोझाँक मजकोठिया टोलक छथि मुदा घुसकि कऽ हमर घर लग आबि गेल छथि।समङगर लोक सभ। आस-पड़ोसक धी-बेटी दिनमे, दुपहरियामे जाइत छथि। ढील-लीख बिछबाक लेल। ककर ओ लगक छथि, से मरलाक बाद पता चलत। श्राद्धक समए जे लगक अछि से आगि देत आ तकरा घरारी भेटतैक। मुदा सेहो सम्भावना आब नै। झंझारपुरमे सासुर छलन्हि अनमना दीदीक। ओतए अपन बहिनिक बेटाकेँ अपन बेटा बना राखि लेने छथि। मुदा नैहरक मोह नै छूटल छन्हि।
खोपड़ीमे अबैत छथि। मासमे एक बेर तँ अवश्ये। अपनेसँ खेनाइ-पिनाइ, भानस-भात। मुदा झंझारपुरमे बेस पैघ घर, आँगन। बेटा-पुतोहुकेँ कहियो मुदा एतए नै आनलन्हि।
सौँसे गाम विधवाकेँ दीदी कहैत अछि जे ओ नैहरमे रहैत छथि। आ फलना गाम बाली काकी जे ओ सासुरमे रहैत छथि।
से सौँसे गाम हुनका अनमना दीदी कहैत छलन्हि।
खोपड़ीक कातमे एकटा भगवानक मन्दिर बनेने छथि। महावीर बजरंगबलीक। शुरुहेसँ ई कोठाक रहै से नै, मुदा बना देलन्हि ओकरा कोठाक। अन्न-पानि बेचि कऽ। पहिने तँ खोपड़िये रहै। जहिया अनमना दीदी झंझारपुर जाइत रहथि, अपन खोपड़ीक फड़की भिरका कऽ जाइत रहथि। बादमे ताला आ सिक्कड़िसँ बन्न सेहो करए लागल रहथि। मुदा बजरंगबलीक मन्दिर ओहिना खुजल रहैत छल। लोक सभक लेल..चौपहर। धी-बेटी गामक, साफ-सफाई, झाड़ू-बहारू करैत रहथि। पक्काक मुदा बादमे भेल, छात ढलाइ आर बादमे। पिटुआ रहए पहिने। जमीनक प्लास्टर करबए चाहैत रहथि, मुदा एस्टीमेट बेशी भऽ गेलन्हि। भगवानक घर चुबैत रहत? मुदा ढलाई आ प्लास्टर लेल पाइ कतएसँ आओत?
आइ हमरा लगैए जे हम सभ खूब मेहनति करैत छी। ककरोसँ सरोकार नै अछि। ओह, समैए नै भेटैत अछि। मुदा अनमाना दीदीक दिनचर्या, भोरसँ साँझ भगवान लेल समर्पित। मुदा पोसपुत्र लेल सेहो समए निकालैत छथि। बीच-बीचमे झंझारपुर बजार लग स्थित अपन गाम जाइत छथि। ओतुक्को ब्योँत लगबैत छथि। फेर गाम अबैत छथि..नैहर। देखू..गीता पढ़ि स्थितप्रज्ञ बनबाक अहाँक प्रयास। मुदा अनमना दीदी। गोर लगै छी दीदी। निकेना रहू। नहिये खुशी, नहिये कोनो दुखे। ने कोनो आवभगतक लालसा आ ने कोनो तरहक सहयोग प्राप्तिक आकांक्षा।
जोन ताकै लेल जाइत छथि धनुकटोली, दुसधटोली। ओतुक्का लोक इज्जतियो दै छन्हि, कोन हुनकर घरारी लेबाक छन्हि हिनका सभकेँ। ओतए हँसितो देखै छियन्हि। अपन टोलक लोकसँ हट्ठे कोनो काज लेल कहितो नै छथि। एकटा काज करत आ कनियाँकेँ जा कऽ कहत। आ फेर दस साल धरि ओकर कनियाँ सुनबैत रहत।
-दीदी, हनुमान जीक काज छै, सड़कक कातमे छथि। हमहूँ सभ तँ जाइत-अबैत माथ झुका कऽ पुजबे करबन्हि। से बिनु बोनि लेने हम ई काज करब।
- नै यौ तीर्थ-बर्त आ भगवानक काज मँगनीमे नै करबाक-करेबाक चाही। हम कोनो रानी-महरानी छी जे बेगारी खटा कऽ मन्दिर बनबाएब आ पोखरि खुनाएब।
मुदा ढलैय्या आ प्लास्टर!


सड़कक कातक भगवानक एहि मन्दिरक सटल एक बीघा खेत, सभटा अनमना दीदीक। ढलैय्या भऽ गेलाक बाद भगवानक नामसँ लिखि देतीह। जे अन्न-पानि होएतैक ओहिसँ भगवानक घरक चून-पोचारा आ सफाई होइत रहत।
कतेक दिनसँ पड़ोसी पछोड़ धेने छन्हि।
“दीदी। तोहर सभसँ लगक भातिज हमहीं छियौ। ई जमीन हमर घरसँ सटल अछि। पहिलुका लोक बान्ह-सड़कक कातमे छोट जाति आ मसोमातकेँ घर बना दैत रहै। मुदा आब जमाना बदलि गेल छै।आब तँ सड़कक कातक घर आ जमीनक मोल बढ़ि गेल छै। तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे। तखन ई जमीन हमरा सभ पटीदार लेल झगड़ाक कारण बनत। ”
तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे- कहि कऽ देखियौक कोनो सधवाकेँ। मुदा मसोमातसँ कहि सकै छिऐ- भने ओकर पोसपुत्र- पुतोहु- नैत-नातिन होइ। ठीक छै बाबू।
“भगवानक लेल निहुछल अछि ई जमीन। अहीसँ तँ हमर गुजर चलैए। जे किछु पेट काटि कऽ बचबैत छी से कोशिल्या- भगवानक घरक ढलैया आ प्लास्टर लेल। झंझारपुरक जमीन-जालक पाइ सभ बेटा पुतोहुक छन्हि। से हम कोना.. ”
“फेर दीदी। तूँ गप बुझबे नै कएलेँ। जा जिबै छेँ राख ने। कर ने गुजर। हम तँ कहै छियौ जे तोरा मरलाक बाद जे पटीदार सभ आपसमे लड़त से तोरा नीक लगतौ। आ हम तोहर सभसँ आप्त भातिज...।”
देखियौ, कहै छै जे। भातिज बाहरमे नोकरी करै छथि। जे गाममे रहैए से तँ भेँट करएमे संकोच करैए जे किछु देमए नै पड़ए। ई मुदा जहिया गाममे अबैए आ हम गाममे रहै छी तँ भेँट करबाक लेल अबिते अछि। आ एहि बेर तँ हम झंझारपुरमे रही तँ ओतहु आएल रहए। सैह तँ कहलियै जे ई कोना कऽ फुरेलै। से आब बुझलिऐ। मुदा ई ढलैय्या कोना कऽ होएत। प्लास्टर तँ बादोमे करबा देबै। ततेक चुबैए, एहि साल तँ आरो बेशी चुबए लागल अछि। पिटुआ छत, दुइयो साल नै चलल। ओकरा ओदारि कऽ ढ़लैय्या करत करीम मियाँ आ लछमी मिस्त्री, तखने ठीक होएत। देखै छी।
भातिजक आबाजाही बढ़ि गेल अछि आइ-काल्हि।
“ठीक छै दीदी, अदहे जमीन दऽ दिअ। दस कट्ठामे अहाँक भातिजक बसोबासक संग भगवानक लेल सेहो जमीन बचि जाएत।”
“मुदा बान्हपर अहाँक घरारीक लागि तँ नहिये होएत। तखन की फएदा होएत अहाँकेँ।”
“छोड़ू ने। एखनो तँ टोल दऽ कऽ अबिते ने छी। चौक-चौबटिया आ बान्हक कातमे घर बनेबाक तँ आब ने चलन भेल अछि। आ आब चौबटिया आ बान्हक कातमे तँ भगवानेक घर ने शोभतन्हि। दस कट्ठाक दस हजार जहिया कहब हम दऽ देब। रजिस्ट्री बादेमे बरु होएत।”
“ठीक छै। तखन हम सोचि कऽ कहब। एक बेर बेटा पुतोहुसँ पूछि लैत छी।”
कोन उपाए। भगवानक घरक देबाल सभमे कजरी लागि गेल अछि। देबाल छोड़ू, बजरंगबलीक मूर्तिमे सेहो कजरी लागि गेल अछि। अनमना दीदी सोचिते रहि गेलथि। आ सोचिते-सोचिते भोर भऽ गेलन्हि।
दऽ दै छिऐ जमीन। आर उपाय की। नञि।
बेटा-पुतोहु कहलखिन्ह जे माए। ओतुक्का जमीन तँ भगवानक छन्हि। आ हम सभ से शुरुहे सँ बुझै छी। मुदा देखब। ओ कोनो चालि तँ नै चलि रहल अछि।
“कोन चालि। पाइ तँ किछु बेशीए दऽ रहल अछि।”
भगवानक मन्दिरक लेल, दस कट्ठा कम थोड़बेक होइ छै। पाइ जुटबैत-जुटबैत मरि गेलहुँ। ई अधखरु मन्दिर ओहिने रहि जाएत ? गप करै छी लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ सँ।
दस हजारमे ढलैय्या, प्लास्टरक संग चहरदिवारी सेहो बनि जाएत। एस्टीमेट बनि गेल। रजिस्ट्रीक अगिले दिनसँ काज आरम्भ। आ भादवक पहिने समापन।

चलू रजिस्ट्री भऽ गेल। दासजी कागज-पत्तरमे बड्ड माहिर लोक। पुछबाक काज छै! - धुर। पकिया कागज बनल हएत।
“भगवानक लेल कागज बनेबाक पहिल अवसर भेटल अछि दीदी”- दासजीक गपसँ अनमना दीदी दासोदास भऽ गेलीह।
लोक कहै छै झुट्ठे जे लोकक श्रद्धा भगवानपर सँ कम भेल जाइ छै। ई दासजी। कहियो ने भेँट आ ने जान पहिचान। दू टा रजिस्ट्रीक कागत- एकटा दसकठिया भातिजक नाम आ दोसर भगवानक नाम, मुदा एक्के फीसमे बना रहल छथि। साफे कहि देलखिन्ह- दीदी भगवानक जमीनक रजिस्ट्रीक पाइ हम एकदम्मे नै लेब। जे बेर-बखतपर काज आबए सैह ने अप्पन लोक। ठीके बूढ़-पुरान कहि गेल छथि। यैह सभ देखि कऽ ने कहने छथि।
अनमना दीदी बाइमे छथि। पएरे गाम अएलीह।सोहमे किछु नै फुराइत छन्हि। मन्दिरकेँ अजबारू, काल्हिसँ काजक आरम्भ अछि। लछमी मिस्त्री अपन तेगारी, डोरी, करणी सभ राखि गेल अछि। डब्बुक सभ पानि भरबाक लेल अनमना दीदी जोगा कऽ राखनहिये छथि। पोखरि बगलेमे अछि। लीढ़सँ भरल, मुदा कातमे महीस सभकेँ पानि पिएबाक लेल लोक सभ कनेक साफ कइए देने अछि।
मुदा भोरेमे घोल-फुचुक्का। करीम मिआँकेँ काज करबासँ रोकि देल गेल। के रोकलक? भातिजकेँ खबरि दियौक। मुदा ओ तँ काल्हि झंझारपुरसँ सोझे नोकरीपर चलि गेलाह। रजिस्ट्रीक कागत ओना तँ अनमाना दीदी लग सेहो छन्हि। भातिजक सार रोकने अछि काज। चहारदिबारी नै बनबए देत। मुदा काल्हि रजिस्ट्री काल तँ रहए ईहो। तखन? कहैत अछि जे बान्हक कातबला जमीन मेहमानक छियन्हि, ऐँ यौ। तखन तँ ई मन्दिरो ओकरे हिस्सामे भऽ गेलै। कोनो बुझबामे गलती तँ नै कऽ रहल अछि। भातिज मासक शुरुहेमे जा कऽ तँ अओताह, दरमाहा लैए कऽ ने। मास भरि अनमाना दीदी गाम आ झंझारपुर करैत रहलीह। बेटा पुतोहु कहन्हि जे ई भातिजेक चालि तँ नै अछि। नञि, से नै कहू। दासजी तँ नीक लोक रहए। देखू।
“दीदी। अहाँकेँ कोनो धोखा भऽ रहल अछि।”
“तखन तँ ई मन्दिरो अहींक भेल ने।”
“नञि दीदी। ई मन्दिर तँ भगवानक छियन्हि। हुनके रहतन्हि। आ पाछूक जमीनक मालिक सेहो भगवाने।”
“आ तखन तँ हमर ई खोपड़ी सेहो अहींक भेल ने।”
“नञि दीदी। अहाँ जहिया धरि जीब तहिया धरि रहू। के मना करत? ”
“बौआ बड्ड उपकार अहाँक। आ पाछू दिसका जमीनक लागि तँ नञि बान्ह दिससँ अछि आ नहिये टोल दिससँ।”
“दीदी। अहाँ हमरा जमीन बाटे जाऊ ने के मना करत? आ आरिपर बाटे खेतमे सभ जाइते अछि। जकर खेत बान्हक कातमे नै छै से की अपन खेतपर नै जा सकैए। अहाँ तँ नबका लोकक भिन्न-भिनाउज बला गप कऽ रहल छी।”
“मुदा ई सभ अहाँ पहिने कहाँ कहने रही।”
“दीदी, अहाँकेँ सभटा कहने रही। मुदा लगैत अछि जे अहाँकेँ धोखा भऽ रहल अछि। नै विश्वास होइए तँ दासजीकेँ बजा दैत छी। ओ तँ तेहल्ला अछि।”
“अच्छा तँ ओहो मिलल अछि।”
“दू रजिस्ट्रीक कागत बना कऽ बेचारा एक रजिस्ट्रीक पाइ लेलक आ अहाँ कहि रहल छी जे मिलल अछि।”- भातिजक स्वर तीव्र भऽ गेलन्हि। हाँफए लगलाह आ जोर-जोरसँ बजैत बिदा भऽ गेलाह।
अनमाना दीदीक लेल नैहरक ई भोर सासुरक ओहि भोर जेकाँ रहन्हि जाहि दिन ओ विधवा भेल रहथि। आइ गामक धी-बेटी ढ़ील-लीख बिछबा लेल नै अएलीह। अनमाना दीदीक राति भरिक वार्तालाप- बजरंग बलीक संग। एखने एहि भोरमे खतम भेल अछि। लोक सभ अँगनामे बच्चाकेँ ठोकि कऽ सुता रहल रहए। भोरमे किछु गोटे आबि पंचैती करेबाक सुझाव दए गेलन्हि। मुदा अनमाना दीदीक रोष तँ बजरंगबलीसँ छलन्हि।
“भगवानक जमीन अदहा बेचि कऽ भगवानक घर बनबितहुँ, मुदा मन्दिरक सटल जमीन रजिस्ट्री करा लेलक आ जे जमीन बचल ओहिसँ मन्दिरक लागिये नै रहल। लागि तँ छोड़ू ओहि पर जएबाक रस्ते बन्न कऽ देलक। आ ई बजरंगबली। महावीर। कोन शक्ति छैक एकरामे ? चालीस साल पेट काटि कऽ हिनका खोपड़ीसँ पक्काक घरमे अनलहुँ। ढलैय्या भऽ जइतए, चहरदिवारी बनि जइतए सैह टा मनोरथ रहए, आ सेहो हिनके लेल। हा... ”
एहि भोरमे भातिजक द्वारिपर ठाढ़ अनमाना दीदी। लोक सभक मोने जे आब आर बाझत झगड़ा। मुदा ई की भऽ रहल अछि। लछमियाँक भाए रिक्शा अनलक अछि। अनमाना दीदी भातिजक संग झंझारपुर जा रहल छथि। के कहलक? हुनकासँ तँ ककरो गपो नै भेल रहै। हम कहनहियो रहियन्हि पंचैती कराऊ, मुदा मना जेकाँ कऽ देने रहथि। अच्छा, लछमीक भाए कहलक। हँ, रिक्शा बजबै लेल जे गेल रहए, से कहने हएत जे झंझारपुर जेबाक अछि।
दासजीकेँ एकटा आर रजिस्ट्रीक कागत बनबए पड़लन्हि। अनमाना दीदीकेँ देखि ओ सर्द भऽ गेल रहथि जे जानि नै बूढ़ी की सभ सुनओथिन्ह। मुदा अनमाना दीदी ततेक ने तामसमे छलीह जे किछु नै बजलीह। तामस पीबि गेलीह। ओहो पाछू बला जमीन भातिजकेँ रजिस्ट्री कऽ देलन्हि। आ झंझारपुर-स्टेशनसँ घुरि कऽ झंझारपुर बजार दिस बेटा पुतोहु लग पएरे बिदा भेलीह।
लछमीक भाए घुरि आएल। दू सवारीकेँ लऽ गेल रहए मुदा मात्र एक सवारी लऽ कऽ घुरि आएल। संगमे संदेश लेने गेल। लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ लेल संदेश। काल्हि भोरेसँ काज आरम्भ। फेरसँ?
चहरदेबाली बनल। भगवानक मन्दिर आ अनमाना दीदीक घरकेँ बारि कऽ। कहि देने छियन्हि दीदी केँ। हुनका जिबैत क्यो छूतन्हि नै हुनकर घर।
घर आकि खोपड़ी, एक साल कनेक टूटल। दोसर भदबरियामे खुट्टा सरि कऽ खसि पड़ल। मुदा अनमाना दीदी नै अएलीह। समाद देने रहन्हि नैहरक एक गोटे। ढलैया नहिये भेलन्हि बजरंगबलीक। अनमना दीदी हरिद्वारसँ घुरि अएलीह। लोक पुछलकन्हि- की माँगलहुँ गंगा माएसँ।
“यएह जे अंधविश्वास हमरा मोनसँ हटा दिअ”।
“आ की देलियन्हि गंगा माएकेँ ?”
“अपन तामस दऽ देलियन्हि”।
अनमाना दीदी यएह कहथि- की करबन्हि। कोनो शक्तिये नै छन्हि बजरंगबलीमे। खसए दियौक खोपड़ी। सोंगर लागल घर कतेक दिन काज देत।
कैक बरख बीतल। कैक बरख नै पाँचमे साल तँ। भातिज गामपर आएल रहथि। दरमाहा उठा कऽ। पोखरि दिससँ चप्पाकलपर। लोटा लेने बैसलाह आकि छातीमे दर्द उठलन्हि। नै बचि सकलाह। लोक सभ कहए, देखू अनमाना दीदीक श्राप, बड्ड कानल रहथि दीदी ओहि दिन। ओहिसँ पहिने बजरंगबलीक मूर्तिमे ठीके शक्ति नै रहए। मुदा हृदयसँ देल श्राप लागै छै। ओही दिन जागृत भऽ गेल रहथि बजरंगबली। आ आइ शक्ति देखा देलखिन्ह।
मुदा समदियाकेँ अनमाना दीदी कहलखिन्ह जे पाथरोमे जान होइ छै। हर्ट अटैक भेल होएतैक। परसू एतहि एकटा मारवाड़ीकेँ अटैक भेल रहै। चिन्ता-फिकिरसँ होइत छैक एकर अटैक। एतए डाकडर सभ रहै, मारवाड़ी बाँचि गेल। गाममे देरी भेने जान नै बचै छै। तेँ ने हमहूँ एहि बुढ़ारीमे बेटे पुतोहु लग झंझारपुरमे रहि रहल छी।
गाम अछि महिसबार ब्राह्मणक गाम। सुखरातिक दिन हूड़ा-हूड़ीक खेल जे एहि महिसबाड़ ब्राह्मण सभक देखलहुँ तँ पोलोक खेलमे कोनो रुचि नै रहल। समियाक डोमसँ कीनल सुग्गरकेँ भाँग पिआए मातल महीस द्वारा हूड़ा लेब।
चरबाह जे महीसक पहुलाठ पकड़ि कलाकारीसँ बैसल छल सेहो अद्भुते। डोमक काज पाबनि-तिहारमे तँ होइते अछि। पेटार बनेबासँ सूप, बीअनि सभ किछु बनेबामे डोमक काज आ पाहुन परख लेल आ बरियाती लेल जे खस्सी काटल जाएत ताहि लेल मिआँटोलीक काज। खस्सीक मूड़ा दुर्गापूजाक बलिमे कमिटी लऽ लैत अछि।
धुर कतए भाँसि गेलहुँ।
से मिआँ जे खस्सी काटैत अछि से हलाल कऽ कऽ। गरदनि अदहा लटकले रहैत छै, मुदा माउस बना-सोना कऽ गरदनि लऽ जाइये आ खलरा सेहो। तखन महिसबार ब्राह्मणमे सँ जे हनुमानजी मन्दिरपर भजन आ अष्टजाम करैत छथि से ओही खलरासँ बनल ढोलक किनैत छथि। आ से कीर्तन भइयो रहल छल।
सिद्ध महावीरजीक मन्दिरक आगाँ। रामनवमी दिन गाड़ल बड़का धुजा। टनटनाइत घड़ीघण्ट आकि आर किछु। हनुमानजीक धूजा फहरा रहल अछि। साँझक काल। महिसबार सभक आगम भऽ गेल अछि। कोनो पाबनि हुअए, हूड़ाहूड़ी आकि रामनवमी सिद्ध हनुमानजीक आगाँ कीर्तन होइते अछि। से बाबू गौँआक श्रद्धाक गप छिऐ। से आइयो भऽ रहल अछि।
घूरक धुँआ माल बिठौरीकेँ मालक देहसँ अलग करबाक प्रयासमे अछि। एक गोटेक संग दोसर गोटे अएल छथि, सप्पत खएबाक लेल। हनुमानजीक मन्दिर गौँआ सभ प्लास्टर करबा देने छथि। ढलैय्या सेहो भऽ गेल अछि। मन्दिरक बरण्डा छूबि कऽ ऋण पचेनहारक संख्या नगण्य, तैयो एकटा अपवाद तँ अछिये- ओ कहै छथि- सप्पत तँ तोड़बा लेल खाएल जाइ छै। हँ भाइ, एक बेर सप्पत खेने जे ऋणसँ विमुक्ति भेटि जाए तँ हर्जे कोन। मुदा एकेटा अपवाद। अनमाना दीदीकेँ आब सभ अनमाना बाबा सेहो कहैत छन्हि। कएक बरख भेल मुइना हुनकर। घुरि कऽ नहिये अएलीह। भातिजक घरारीक दोष निवारणार्थ कोनो पंडितक कहलापर खुट्टापर एकटा गाए बान्हि देल गेल छै, जकरा एनहार-गेनहार सदिखन घास खाइत देखैत छथि, तहिसँ घरारीकेँ नजरि-गुजरि नै लगतैक।
हनुमानजीक धुजा फहरा रहल अछि। साँझक काल। गोनर भाए कीर्तनमे ढोलकक थापपर थाप लगा रहल छथि।
अनमाना बाबाक गप आब किछु लोको सभ मानलक। ठीके। हनुमानजीक मूर्तिक आगाँ भक्त दूटा गोल बनि गेल अछि। एक गोलक विचार कनेक वैज्ञानिक छैक- अनमाना दीदी जे बाँचल दस कट्ठाक रजिस्ट्री कऽ देलखिन्ह सएह ने पैसा देलकै चिन्ता-फिकिर भातिजक छातीमे। नै सम्हारि सकल अनमाना दीदीक ई आक्रमण ओ। ठीके पाथरमे कोनो शक्ति थोड़बेक होइ छै। मुदा दोसर गोल महावीर हनुमानजीक सिद्ध आ जागृत होएबामे विश्वास कऽ रहल अछि- यौ, चुट्टीकेँ माटि दऽ दियौ तँ ओहो मड़ि जाएत मुदा बिकुटि कऽ जे काटत से छोड़त नै। आ ई माटि अनमना दीदी महावीरजी केँ देलखिन्ह तँ ओ कोना छोड़ि दितथिन्ह।
गोनर भाए कीर्तनमे ढोलकपर थापपर थाप लगा रहल छथि, बुझू सिद्ध महाबीरजीकेँ मनाइये कऽ छोड़ताह, भाँगक गोला असरि कऽ रहल छन्हि, आँखि तँ चढ़ले छन्हि, हाथ सेहो रुकै कऽ नाम नै लऽ रहल छन्हि, आ हुनकर नजरिसँ देखी तँ सिद्ध महावीरक पाथरक मुरुत जागृत भऽ गेल देखा पड़त, जेना ओहिमे जान आबि गेल हो!

1 comment:

  1. मोन राखए योग्‍य कथा सि‍द्ध महावि‍र

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