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Thursday, April 26, 2012

एकोटा ने :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


बाल कथा
एकोटा ने

पुरमपुर गाममे पुरन कक्काक परि‍वारकेँ गौआेँ आ अनगौआेँ पुनचन परि‍वारसँ जनैत छन्‍हि‍। ओना अस्‍सी बर्खक अवस्‍थामे कहि‍यो पुरन काका कनमा-कनइ नै पढ़लनि‍ मुदा कनमा-कनइ दुनूक कि‍रदानी देखि‍-देखि‍ सदि‍खन क्षुब्‍ध रहै छथि‍। गरे ने बैसै छन्‍हि‍ जे जे वस्‍तु तरजूपर रखि‍ बटि‍खाड़ासँ तौलल जाएत, ओ जँ बँटैत-खोंटैत, पौआ-कनमा होइत रत्ती-माशामे चलि‍ जाएत तँ चलि‍ जाएत, मुदा दुनि‍याँक एते नमहर धरती केना बँटाएत-खोंटाएत कनमा-कनइ-फनै दि‍सि‍ पहुँचि‍ जाइए। बादलक कि‍रदानी की‍ पतालक पानि‍ सोखि‍ लेत? जँ सोखए चाहत तँ राखत कतए? हवा-बि‍हाड़ि‍ केत्तेकाल अँटका कऽ रखि‍ सकैए। खैर जे होउ मुदा पुरन काका करैला लत्तीक मचान जकाँ अपना परि‍वारकेँ बना हरि‍अर, तड़गर खेबे करै छथि‍। जहि‍ना सक्कत-कड़गर बीआ धरती धारण करि‍ते, दीयाक तेल-बत्ती जकाँ अपन ति‍ल-ति‍ल अर्पित करए लगैत अछि‍ तहि‍ना ने करैलोक बीआ केने अछि‍। वएह अंकुर ने धरती धारण करैत ऊपर आबि‍ लत्ती बनि‍ लतड़ए लगल। भलहिं पातर-छीतर कड़चीक आलम संग मचानपर कि‍अए ने पहुँचल हुअए। तँए कि‍ ओ अपन शरीरक रच्‍छा करैत मुँह बँचबैत नै पहुँचल? जरूर पहुँचल अछि‍।
पुरन काकाक परि‍वारोक सभ तेहने छन्‍हि‍ जे अपनामे जे घंघौज होन्‍हि‍ मुदा काका लग पहुँचते मन सकदम भऽ जाइत छन्‍हि‍, कि‍अए तँ सभ बुझैत जे अगि‍आएलमे हँसि‍यो ही-ही-आ कऽ धड़ैत छै। तँए जहि‍ना रस्‍तापर ऐँठैत-जुठैत चलैत साँप बोहरि‍मे प्रवेश करि‍ते सोझ भऽ जाइत तहि‍ना काकाक सोझमे परि‍वारक सदस्‍य। ओना, बि‍नु पएरक चलैबला साँप माटपर चलि‍ केना सकैए। मन-चि‍त्त मारि‍ पुरनो काका राति‍-दि‍न परि‍वारेक पाछू लगल रहै छथि‍। अखनो मनमे ओहि‍ना ओ बात तड़गर बनल छन्‍हि‍ जे वीर भोग्‍या बसुंधरा। जे ऐ धरतीसँ प्रेम करत ओकरे प्रेमी बनि‍ धरति‍यो चुम्‍मा लेत। कखनो माए बनि‍, कखनो भाए-बहि‍न बनि‍।

चेतनसँ बालबोध धरि‍क परि‍वार पुरन काकाक छन्‍हि‍। तालो मेल अजीव छन्‍हि‍। चेतन सभ पुरनकाकाकेँ गार्जन बूझि‍ अपन छुट्टी नेन रहैए तँ बालो-बोध सभ अपन बाबा बूझि‍ अपन सभ कि‍छु बुझैए। परि‍वारक सभसँ छोट बच्‍चा चारि‍ सालक छन्‍हि‍। तालो-मेल नीक छन्‍हि‍। अंगनाक सभ समाचारक समदि‍या रहि‍तो संवाद-बाहकक काज करि‍ते छन्‍हि‍। एहेन चेला भेटबो मोसकि‍ल। मुदा से तँ छन्‍हि‍ये। नवका दोसि‍ति‍यारे तँए बेसीकाल एकठाम रहने चाहो-बि‍स्‍कुट संगे करै छथि‍। काका खुशी जे अपन बात पहि‍ने उसारि‍, भरि‍ दि‍न गप सुनैले तैयार रहैए। आ पोता दीनमा खुशी जे आँखि‍-कान तँ तखने काजक बनत जखन ओकरासँ काज कराएब। नइ तँ गमे-गमे गेड़ी बनि‍ जाएत। मुदा से कहाँ होइ, एक काने सुनै आ दोसर काने उड़ि‍ जाए। उड़ैत-उड़ैत सुतली राति‍मे सभ उड़ि‍ जाए।
वसन्‍तक आगमन भऽ गेल। कि‍छु दि‍न पूर्ब जे जाड़सँ जड़ि‍आएल छल, पालासँ पलाएल छल ओ फुड़फुड़ा कऽ उठल। सुखाएल-सड़ल लत्ती आ कुमही जकाँ पबि‍ते वसन्‍ती हवामे उड़ए लगल। मुदा तैयो बेदरंग भेल धरती, घर-अांगन जकाँ बाहरै-सोहरै ले इशारा दि‍अए लगल। रसे-रसे रस भरल हवाक रमकी रमकए लगल। जहि‍ना सेवा ि‍नवृत्ति‍क समए कोनो अफसरकेँ स्‍वर्ग सुझैत तँ कोनोक आगूमे नांगट नर्कक नाच होइत अछि‍, तहि‍ना शि‍शि‍र -सि‍रसि‍राइत समए- वसन्‍तक बीच होइत। मुदा से बात पुरन काकाक परि‍वारमे नै छन्‍हि‍। कोल्हुक बड़द जकाँ सभ परि‍वारक अपने-अपने नाचक पाछू लागल रहैत छन्‍हि‍।
दि‍न उगि‍ते दीनमा, बाइस खा जत्ताक -माटि‍क बनाओल- दुनू पट्टा दुनू हाथमे नेने दरबज्‍जाक आगूमे बैसि‍, रस्‍ताक धूरा-गरदाकेँ जत्तामे पीसए लगल। बि‍नु देखनौं आशा बनले रहै जे बाबा दरबज्‍जेमे छथि‍। सुतल छथि‍ कि‍ जागल, तइसँ कोन मतलब दीनमाकेँ। ओ तँ अपन काजमे बेहाल। मनमे रहबे करै जे चाहक बेर भऽ गेल अछि‍ माए चाह आनि‍ देबे करतनि‍, हमहूँ पीबे करब। परि‍वारक बोझसँ दबल थोड़े रहै जे नून नै अछि‍ तँ केसक तारीखपर जाए पड़त। जहि‍ना तत्ववेत्ता तत्‍वचि‍न्‍तनमे रमल रहैत तहि‍ना दीनमा अपन काजमे हराएल। कोन मतलब ओकरा रहै जे बुझैत, काजक हराएल अधखड़ुआ रहि‍ जाइए।
माइक हाथक चाह देखि‍ते दीनमा, जत्ता छोड़ि‍ आगूए आगू दरबज्‍जाक ऊपर चढ़ल। दीनमापर नजरि‍ पड़ि‍ते पुरन काका मुस्‍की दैत कहलखि‍न-
की दीनबाबू, चाहो-ताहक बेर भेलैए आकि‍ नै?”
तहि‍ बीच चाह नेने पुतोहु पहुँच गेलनि‍। दीनमाक नजरि‍ देबालमे टँगल हनुमान जीक छातीक रामपर पहुँचि‍ गेल। देबालमे सटल फोटो देखि‍ दीनमा बाजल-
बाबा, उ फोटो उतारि‍‍ दि‍अ।
दीनमाक बात सुनि‍ पोल्हबैत पुरनकाका कहलखि‍न-
बौआ, पहि‍ने चाह पीब लि‍अ, पछाति‍ ई सभ हेतइ?”
जना बुझले रहै तहि‍ना दीनमा बाजल-
पहि‍ने अहाँ पीब ने लि‍अ, पाछू हम‍ पीब।
बहाना पकड़ाइत देखि‍ पुरनकाका कहलखि‍न-
हमरा हाथमे गि‍लास अछि केना उतारल हएत?
चाह पीब, खि‍ड़कीपर राखल खुरपी उतारि‍‍ पुरनकाका बाड़ी-झाड़ी दि‍सि‍ वि‍दा होइक वि‍चार केलनि‍। हाथसँ खुरपी छि‍नैत दीनमा आगू-आगू वि‍दा भेल।
दाड़ि‍मक बाड़ी पहुँचि‍ काका हि‍या-हि‍या हि‍यबए लगलाह। गाछक जड़ि‍मे पानि‍क अभाव बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा गाछक डगडगी आ फूलसँ लदल गाछ देखि‍ मन ललि‍या गेलनि‍। लाल-लाल फूलसँ लदल गाछ। सभ डारि‍मे फूल लागल। खुरपी नेने दीनमा खाधि‍ खुनैक जगह हि‍यबैत। जँ कि‍यो पैघ अफसर नै बनि‍ पाओत तँ कि‍ ओ ओहि‍ना रहि‍ जाएत। हि‍या-हि‍या फूलकेँ देखैत हरि‍आएल-हरि‍आएल फड़ो देखलनि‍। मन भेलनि‍ जे जतबे-ततबे जड़ि‍ सबहक खढ़ उखाड़ि‍ दिएे। मुदा नजरि‍ दाड़ि‍मक काँटपर गेलनि‍। डारि‍ये काँट भऽ जाइए। ऊपर-नि‍च्‍चा सगतरि‍ काँट। जखने अपने खढ़ उखाड़ए लगब तखने इहो -दीनमो- कि‍छु ने कि‍छु करए लगत। तहूमे खुरपी हाथेमे छै। तेहेन झाड़ी अछि‍ जे सुगबा साँप जकाँ माथमे गड़तै कि‍ गरदनि‍मे तेकर कोन ठेकान। जखने काँट गड़तै कि‍ कानब शुरू करत। जखने कानत तखने ओकरा चुप करब आकि‍ गाछक जड़ि‍क खढ़ उखाड़ब। समझौता करैत काज मनमे एलनि‍। काज ई जे फड़क गि‍नती कऽ ली। दीनमा हाथक खुरपी आड़ि‍पर रखि‍, कोरामे उठा काका कहलखि‍न-
बौआ, अहाँकेँ नेने हम टहलब आ अहाँ फड़ गनब।
नव फड़क गि‍नतीक काज देखि‍ दीनमाक मन खुशीसँ आरो खुशि‍या गेल। मुदा कट्टा भरि‍ झाड़ीक बगानमे पचासोसँ ऊपर गाछक फड़ केना गनि‍ लेब। तहूमे बीसे तक गनल होइए। गाछक सभ फड़ अपने हि‍या-हि‍या देखथि‍, जे फड़क बीच कीड़ोक असर भेलहेँ आकि‍ नै। अपने तँ एक्केटा गाछक फड़ देखि‍ अन्‍दाजि‍ लेलनि‍ जे कते हएत? जहि‍ना गोल-गोल, कि‍छु नमती नेने लाल-लाल फूल हरि‍अर होइत अपन जि‍नगीक फल पकड़ि‍ रहल अछि‍, तहि‍ना तँ गोटि‍-पङरा कड़ुआएल आमक आकार सेहो पकड़ि‍ रहल अछि‍। एकसँ दोसर गाछक फड़ गनैमे दीनमा बेर-बेर बि‍सरि‍ जाए। कखनो गि‍नति‍ये छूटि‍ जाइ तँ कखनो अंके बि‍सरि‍ जाए। कखनो बीससँ ऊपर नै बढ़ल। अंतमे काका पुछलखि‍न-
बौआ, कते फड़ भेलह?”
बाबाक प्रश्न सुनि‍ दीनमाक मुँहसँ नि‍कलि‍ गेल-
दसटा।
अच्‍छा बड़बढ़ि‍या। आब एतए आबि‍ के खेलि‍हह। ओगरबाहि‍यो भऽ जेतह आ खेलबो करबह।

नीक फसल भेलनि‍। खेबा जोगर फल हुअए लगल। फड़ फल बनि‍ गेल। ओना सजमनि‍ फड़क-फड़े रहि‍ जाइत। मुदा दाड़ि‍म, आम, लताम इत्‍यादि‍ फड़सँ फल बनि‍ जाइत अछि‍। अंति‍म अवस्‍था अबैत-अबैत तूबि-तूबि‍ फल अपने खसए लगल।
गाछक सभ फल समाप्‍त भऽ गेल। जहि‍ना परसौती जनानाकेँ देख-भालक जरूरति‍ पड़ैत तहि‍ना ने बाड़ि‍यो-झाड़ीक अछि‍। ई सोचि‍ पुरनकाका दीनमाक संगे दाड़ि‍मक गाछ लग पहुँचलाह। जे कहि‍यो फड़ फूलसँ लदल छल ओ सून-सून भेल, अपन बेथा सुना रहल अछि‍। व्‍यथि‍त मने दीनमाकेँ पुछलखि‍न-
बौआ, कते फड़ अछि?”
वि‍चलि‍त होइत दीनमा बाजल-
एकोटा ने।
ऐ लेल वि‍चलि‍त कि‍अए होइ छी। जहि‍ना समए आएल छलइ तहि‍ना फेनो औतै।
केना औतै?”
समए अनुसार एकर ताक-हेरि‍ करबै तँ एबे करतै।

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