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Saturday, April 7, 2012

दिल्ली - गजेन्द्र ठाकुर



पोस्टमार्टम कएल शरीर सातटा मोटका शिल्लपर, जड़त कनीकालमेगोइठामे आगि जे अनलन्हिहेँ सुमनजी राखि देलन्हि नीचाँ
कनकनाइत पानिमे डूम दऽ गोइठाक आगिसँ आगि लऽ शरीरकेँ गति- सद्गति देबा लेल। आ कऽ देलन्हि अग्निकेँ समर्पित तृण, काठ आ घृत
घुरि गेला सभलोह, पाथर, आगि आ जल नांघि, छूबि; डेढ़ मासक बच्चाकेँ कोरामे लेने छलि माए, तकड़ा छोड़ि
सभ घर घुरैत छथि
दिल्ली।
३१ दिसम्बरक राति। आब एक तारीख भऽ गेलै। रतिका शिफ्टमे हम छी।
कोरियासँ आएल एकटा स्त्री हमरासँ पुछैए, ई नव एयरपोर्ट अछि की? हम कहै छिऐ- हँ। आ पुछै छिऐ- किए?
ओ स्त्री कहैए- नै, हमरा लागल, किएक तँ छह मास पहिने आएल रही।
-हँ पहिने टर्मिनल दू पर अहाँ आएल हएब, ई नव टर्मिनल छिऐ, टर्मिनल- तीन। नीक लागल अहाँकेँ?-– हम पुछै छियन्हि।
-बड्ड नीक लागल। एयरपोर्ट नै, होटल सन लागि रहल अछि। इण्डिया आब मजगूत भऽ रहल अछि।-– महिला बजै छथि।
रतिका शिफ्टमे हम छी। तखने गामसँ एकटा फोन हमर मोबाइलपर अबैए। हमर महिला सहकर्मी हँसी करै छथि- गामसँ फोन आएल हेतन्हि, आब फेर ई मैथिलीमे गप करता, हम सभ भाषा बुझै नै छिऐ, मीठ भाषा छै, तेँ हमर सभक खिधांशो करैत हएब तँ हमरा सभकेँ पता नै चलत।
३१ दिसम्बरक राति छिऐ। आब एक तारीख भऽ गेलै। मुदा दुर्घटना बारह बजे रातिक पहिने भेल छलै। लहाशक जेबीमे मोबाइल रहै। तीन चारिटा अंतिम बेर डायल कएल गेल फोन नम्बरपर पुलिस ओही मोबाइलसँ फोन केलकै आ सूचना देलकै जे जकर फोनसँ पुलिस फोन कऽ रहल अछि, से आब ऐ दुनियाँमे नै रहल।
मध्य रात्रि। एक्स-रे मशीन आ स्निफर डॉगकेँ छोड़ि ऑफिससँ छुट्टी लऽ हम बिदा होइ छी।
ई एयरपोर्ट बाहरसँ कोनो सजल-धजल नवकनियाँ सन लागि रहल अछि। रातिमे बाहरसँ हमहूँ नै देखने रहिऐ ऐ नवकनियाँकेँ। ठीके कहै छल ओ महिला। होटले लागि रहल अछि, प्रकाशमे चमचमाइत।
गाड़ी आगाँ बढ़ि रहल अछि। दिल्लीक रोड एतेक चाकर कोना भऽ गेलै। दिनमे तँ तीन मिनट प्रति किलोमीटरक गति रहै छै ऐ सड़कपर। मुदा रातिमे खाली रहने चकरगर लागि रहल अछि।
मुदा फेर जमुनापार अबैए, रोड पातर होइत जाइए। भजनपुरा, खजूरी खास। दिनमे तँ गाड़ी एतऽ आबियो नै सकितए। बिजली सेहो कटि गेल छै। सड़कक दुनू कात गन्दा पसरल।
गाड़ी गलीक कोनमे लगा कऽ आगाँ बढ़ै छी। गली पार कऽ हिलैत सिरही बाटे अमरजीक घर पैसै छी। कन्नारोहट उठल छै। दिल्ली.. इण्डिया, मजगूत इण्डियाक राजधानीक ईहो एकटा इलाका अछि। कोरियन महिला एतऽ नै आबि सकत। एतुक्के लोक चमचमाइत घर, ऑफिस, आ व्यापारक पाछाँ अछि। अगिला खाढ़ी भऽ सकैए फएदामे रहतै.. तै आसमे।
पता चलैए जे लहाश गुरु तेग बहादुर अस्पतालमे राखल छै।
ओतऽ सँ बिदा होइ छी। बोल भरोस देबा योग्य परिस्थिति नै छै।
गुरु तेग बहादुर अस्पतालक मुर्दाघरमे मोहित बाबूक बेटाक लहास ओकर रक्तसम्बन्धीकेँ देल जेतै। पुलिस कहने रह- पिता जीवित छथिन्ह तखन दोसराकेँ देबाक बाते नै छै, नै जिबैत रहितथिन्ह तखन देल जा सकै छल- उच्च न्यायालयक आदेश छै। पछिला बेर दऽ देल गेल रहै आ जखन असली रक्त-सम्बन्धी आबि कऽ केस कऽ देलकै तँ तीनटा पुलिसबला निलम्बित भऽ गेलै। आ कने काल लेल मानि लिअ जे पुलिस दैयो देत, मुदा डॉक्टर पोस्टमार्टमे नै करत।
अमोदक घरमे हरबिर्रो उठि गेलै। दिल्लीसँ एक बजे रातिमे फोन आएल छै, मोहित बाबूक बेटा अमर मरि गेलै। दिल्लीमे सड़क दुर्घटनामे मरि गेलै।
अमोदक फोनपर फोन आएल छै। अमोद मोहित बाबूकेँ कोना की कहतै। तत्ता-सिहर कटा कऽ एक्केटा बेटा मोहित बाबूकेँ, चारिटा बेटीपरसँ। परुकेँ बियाह भेल छलै।
अमोद मोहित ककाक दरबज्जा लग पहुँचैए। हाक दैए। काकी अबै छथि। मोहित बाबू गाममे छथिये नै। बहनोइक मृत्यु-संस्कारमे भाग लैले गेल छथि। अमोदकेँ ई गप काकी कहै छथिन्ह।
-से की भेलै एतेक रातिमे?- काकी चिन्तित भऽ पुछै छथिन्ह।
-नै भोरमे अबै छी।–काज छल।
अमोद मोहित बाबूक घरसँ पुछारी कऽ बहरा जाइअमोद आगाँ बढ़ि जाइए।
सरवनक दरबज्जापर जाइहँ एकरे कहि दै छिऐ, काकीकेँ भोरमे कहि देतन्हि।
सरवन चौकीपर सूतल अछिअमोद ओकरा उठाबैए आ सभ गप कहै। सरवन भोरमे काकीकेँ कहि देतै आ काकाकेँ सेहो भोरेमे फोन कऽ देतै।
भोरमे भरि गाम हाक्रोस ….। काकी तँ बताह भेल जाइ छथि। मोहित बाबूकेँ फोन गेलन्हि जे जहिना छी तहिना आबि जाउ, काकीक मोन बड्ड खराप छन्हि
मोहित बाबू गामपर लाह तँ दोसरे गप।
दिल्लीमे टोलक बड्ड लोक छै, मुदा पुलिस लहास ककरो नै देतै। रक्त-सम्बन्धीकेँ लहास भेटतै।
मोहित बाबू दिल्ली नै जेताह, संताप देखैले नै जेताह।
मुदा पुलिस लहास दोसराकेँ नै देतै
मोहित बाबूकेँ पंडितजी भरोस दै छथिन्ह। ओतऽ के कोना दाह संस्कार करतै, से पण्डीजी संगे जेताह।
साँझमे पटनासँ दिल्लीक ट्रेनमे रिजर्वेशन भऽ जेतै। विधायक जीसँ अमोद गप कऽ लेने छथि, टिकट कटा, रिजर्वेशन करा कऽ अमोदक भातिज टिकटक संग पटना जंक्शनपर भेटत। दिल्लीमे पीअर बच्चाक बेटा कार लऽ कऽ स्टेशनपर आएत, करोलबागमे कैकटा दोकान छै पीअर बच्चाक बेटाक। सोझे ओतऽसँ मोहित बाबूकेँ मुर्दाघर लऽ अनतन्हि ओ…
पण्डीजी आ मोहित बाबू पटनाक बस पकड़ै छथि। साँझमे दिल्लीक ट्रेन छै। काल्हि भोरमे मोहित बाबू दिल्ली पहुँचि जेताह आ बेटा जे काल्हि धरि जिबिते रहै आ आइ जे लहास बनल दिल्लीक मुर्दाघरमे राखल छै- तकर मृत शरीरकेँ लेताह।
ट्रेन आशाक नगरी दिल्ली पहुँचैबला छै, चिमनीक धुँआ आ फैक्ट्रीसभ खतम भेलै आ बड़का-बड़का स्टेडियम, प्रगति मैदान आ की-की आबि गेलै। मोहित बाबूकेँ ई सभ बौस्तु पहिने नीक लागै छलन्हि दिल्ली हाटमे गमैआ बौस्तु सभक स्टॉलपर बड़का गाड़ीबला सभ उतरि कऽ समान कीनै छल। मोहित बाबूकेँ हँसी लागै छलन्हि। गाममे ई सभ बौस्तु अनेरे पड़ल रहै छै, कियो किननिहार नै। ऐ परदेशी सभकेँ गामक लोक सभ एत्तऽ अनेरे ठकै छै।
मुदा आइ ई दिल्ली हुनका लेल मुर्दाघरक पता बनि गेल छन्हि। गुरु तेग बहादुर अस्पतालक मुर्दाघरमे हुनकर बेटाक लहास ओकर रक्तसम्बन्धीकेँ देल जेतैक।
पिता रक्तसम्बन्धी बनि पहुँचैबला छथि।
मोहित बाबू मुर्दाघर पहुँचि जाइ छथि, पहिने बुझलो नै छलन्हि जे दिल्लीमे सेहो मुर्दाघर होइ छै, बिजली-बत्तीबला शहर दिल्लीमे.....
दिल्ली। के बसेलकै, कोना बसेलकै। अंग्रेज जहिया कलकत्तासँ दिल्ली राजधानी बनेबाक विचार केलक तखन तँ एकोटा गामक लोक एतऽ नै हेतै
आ आब
मोहित बाबू पहुँचि जाइ छथि। हबोढेकार भऽ कानऽ लगै छथि। हम भरि-पाँज कऽ पकड़ि कऽ बैसि जाइ छियन्हि।
-गामक छोड़ू कोन टोलक, कोन घर लोक एत्तऽ नै छै। सड़क दुर्घटना सेहो भेल छै। मुदा बचि-बचि जाइ छलै। अमरो बचि जैतै तँ कत्ते नीक होइतै। अपंगो भऽ कऽ रहितै तँ देखबो तँ करितिऐ। हे कनियाँकेँ आगि नै देबऽ देबै, डेढ़मासक बच्चा छै। बच्चा लीलो भऽ जाएत। नै, हमहीं देबै आगि.. आन देबो करतै तँ अन्तिम दिन तँ उतरी कनियाँक गरामे आबिये जेतै। तेँ हमहीं देबै आगि।  
-एह.. एक्कैसे बरखक तँ छै, छौंकी सन शरीर छै कनियाँक। चारिटा भाइ छै, सभ एकरासँ पैघ। ओकर जीवन कोना बिततै। ऐ बूढ़ शरीरसँ बच्चाकेँ हम कोना पोसबै। कतबो धनीक रहै छै, नोकरी लेल पठबैते छै.. पीअरो बच्चा तँ सेहो पठेने छथि अपन बच्चाकेँ। ओकरसँ बेसी के छै धनीक गाममे? हमरा तँ दस कट्ठा जमीनो नै पुरत... रौ दैब... कहै छलिऐ जे हम नै जाएब दिल्ली...... संताप देखैले की जाएब? मुदा कहलकै जे लाशे नै देत। आ आब आबि गेल छी तँ हमहीं देबै आगि।
-नै से नै हएत, बाप कतौ आगि देलकैहेँ...अहाँकेँ अश्मसानघाटो नै जेबाक अछि। सभ पुरना गप बिसरि जाउ... ओकर पितियौतकेँ देबए दियौ आगि... ऐ परिस्थितिमे पुरान गप बिसरि जाउ।
-नै, से भातिजक प्रति हमरा कोनो तेहन आन भावना नै अछि। ठीक छै... सुमनजी दौ आगि।
एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक अन्तिम रातिक घटना, आ ओकर बादक भोर। मुदा नै छै कोनो अन्तरपहिराबा आ पुरुखपातकेँ छोड़ि दियौमहिला तँ वएह…।
कनकनाइत बसातसँ बेशी मारुखहाड़मे ढुकल जाइत अछिकमला कात नै यमुनाक कातहजार माइल दूर गामसँ आबिमिज्झर होइत अछि खररखवाली काकीक श्वेत वस्त्रसाइठ साल पूर्वक वएह खिस्सा, वएह समाज, मात्र पहिराबा बदलि गेल, मात्र धार बदलि गेल
गोपीचानन, गंगौट, माला, उज्जर नव वस्त्र मुँहमे तुलसीदल, सुवर्ण खण्ड, गंगाजल, कुश पसारल भूमि, तुलसी गाछ लग उत्तर मुँहे पोस्टमार्टम कएल शरीर आनल जाइए। फेर ओतऽसँ यमुना कात…
कनकनी छै बसातमे, हाड़मे ढुकि जाएत ई कनकनी, पोस्टमार्टम कएल शरीर जे राखल अछि, सातटा मोटका शिल्लपर, कमला कात नै यमुनाक कात, जड़त कनीकालमे
सुमनजी सेहो नव उज्जर वस्त्र पहीरि, जनौ, उत्तरी पहीरि, नव माटिक बर्तनक जलसँ, तेकुशासँ पूब मुँहे मंत्र पढ़ै छथि आ ओहि जलसँ मृतककेँ शिक्त करै छथि वामा हाथमे ऊक लऽ गोइठाक आगिसँ धधकबैत छथि तीन बेर मृतकक प्रदीक्षणा कऽ मुँहमे आगि अर्पित होइत अछि। लकड़ी कोना राखल जाए तइपर दू गोटेमे बहसा-बहसी भऽ रहल अछि। लगैए झगड़ा भऽ जेतैपहिल गोटा कहि रहल छथि- एना लकड़ी नै तोपल जाइ छै, कतबो घी कर्पूर देबै आगि नै धरत। मुदा किछु काल आर। सातटा शिल्लपर राखल ओ शरीर, अग्नि लीलि रहल सुड्डाह कऽ रहलएकटा परिवार फेरसँ बनत आ तीस बर्खक बाद देखब ओकर परिणामताधरि हाड़मे ढुकल रहत ई सर्द कनकनी, ऐ बसातक कनकनीसँ बड्ड बेशी सर्द। सभ दिल्लीयेमे रहता, दिल्लीसँ लड़बा लेल, इण्डियाकेँ महाशक्ति बनेबा लेल, अपन प्रगतिक आशामे, अगिला खाढ़ी लेल एतेक तँ बलिदान देबैए पड़त, ई सोचैत।
कपास, काठ, घृत, धूमन, कर्पूर, चानन कपोतवेश मृतकपाँच-पाँचटा लकड़ी सभ दैत छथि
कपोतक दग्ध शरीरावशेष सन मांसपिण्ड भऽ गेलापर, सतकठिया लऽ सातबेर प्रदक्षिणा कऽ, कुरहरिसँ ओहि ऊकक सात छौ सँ खण्ड कऽ, सातो बन्धनकेँ काटि सातो सतकठिया आगिमे फेकि बाल-वृद्धकेँ आगाँ कऽ एड़ी-दौड़ी बचबैत नहाइले जाइ छथि, तिलाञ्जलि मोड़ा-तिल-जलसँ,
बिनु देह पोछने, मृतकक आंगनमे द्वारपर क्रमसँ लोह, पाथर, आगि आ पानि स्पर्श कऽ सभ घर घुरि जाइ छथि। 

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