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Saturday, April 7, 2012

शब्दशास्त्रम् –-गजेन्द्र ठाकुर


शब्दशास्त्रम् –-गजेन्द्र ठाकुर
(ई कथा “जखन तखन” पत्रिका आ “कथा पारस” कथा संकलनमे छपल अछि, मुदा दुनू ठाम संकीर्ण जातिवादी मानसिकताबला सम्पादक लोकनि एकर किछु महत्वपूर्ण भाग काटि देने छथि। एतऽ सम्पूर्ण कथा अविकल रूपमे देल जा रहल अछि।)
सिंह राशिमे सूर्य, मोटा-मोटी सोलह अगस्त सँ सोलह सितम्बर धरि। किछु सुखेबाक होअए तँ सभसँ कड़ा रौद। सिंह राशिमे मितूक पिताक तालपत्र सभ पसरल रहैत छल, वार्षिक परिरक्षण योजना, जे एहि तालपत्र सभमे जान फुकैत छल। आनन्दा मितूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ करैत रहथि। कड़गर रौदमे तालपत्र पसारैत आनन्दा, मितूकेँ ओहिना मोन छन्हि। मितू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। मुदा एहि बरखक सिंहराशि अएलासँ पूर्वहि आनन्दा चलि गेलीह...  आ आब जखन ओ नै छथि तखन जीवनक परिरक्षण कोना होएत। मितूक आ ओहि तालपत्र सभक जीवनक..
भ्रम। शब्दक भ्रम। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।

लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया
तहि तर कोइली घऽमचान हे
कटबै चनन गाछ, बेढ़बै अँगनमा
छुटि जेतऽ कोइली घऽमचान हे
कानऽ लगली खीजऽ लागल, बोन के कोइलिया
टूटि गेलऽ कोइली घऽमचान हे
जानू कानू जानू की, जोबोन के कोइलिया
अहि जेतऽ कोइली घऽमचान हे
जहि बोन जेबऽ कोइली
रहि जेत तऽ निशनमा
जनू झरू नयना से लोर हे
सोने से मेढ़ायेब कोइली तोरो दुनू पँखिया
रूपे से मेरायेब दुनू ठोर हे
जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम
रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे

कोनो युवतीक अबाज चर्मकार टोलसँ अबैत बुझना गेल..आनन्दाक अबाज।
मुदा आनन्दा तँ चलि गेली, कनिये काल पहिने ओकर लहाश देखि आएल छथि बचलू। मितूकेँ समाचार कहि डोमासी घुरि गेल छथि।आनन्दा, ओ तँ बूढ़ भऽ मरलीहेँ। तखन ई अबाज, युवती आनन्दाक। भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि मितूक पिता श्रीकर मीमांसक मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।

I
शब्दशास्त्रम्

गर्दम गोल भेल छल।
अनघोल मचि गेल छलै। बलान धारमे कोनो लहाश बहल चलि जा रहल छल। धोबियाघाट लग कात लागल छल।
कतेक दूरसँ आएल छल से नै जानि। कोनो बएसगर महिलाक लहाश छल। धोबिन लहाशकेँ चीन्हि गेल रहथि। गौआँकेँ कहि दै छथि ओकर नाम आ पता। गौआँ के, ओहि गामक डोमासीक बचलूकेँ। मृतकक घरमे खबरि भऽ गेल छलै। एसकरे एकटा बुढ़ा रहैए ओहि घरमे...मितू।
मितूक टोलबैया गौँआ सभ लहाशकेँ डीहपर आनि लेने छल आ फेर मितू ओकर दाह-संस्कार कऽ देने रहथि।
गाममे अही गपक चर्चा रहै। बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि किछु आर गप। चिन्है छथि ओ ओहि लहाशक मनुक्खकेँ। नवका लोककेँ बहुत रास गप नै बुझल छै।
आनन्दाक लहाश..
-आनन्दा बड्ड नीक रहै। बुझनुक। ओकर बचिया सभ सभटा सुखितगर घरमे छै..बेटा सेहो विद्वान। मितू, आनन्दाक वर सेहो उद्भट..श्रीकर मीमांसकक पुत्र..। मुदा कहियो मितू आकि आनन्दा कोनो खगतामे ककरो आगाँ हाथ नै पसारने छथि।
बचलू सेहो आब बूढ़ भऽ गेल छथि, झुनकुट बूढ़। हिनकासँ पैघ मात्र मितू छथिन्ह। लोक सभ दुनू गोटेकेँ बुढ़ा कहि बजबै छन्हि।
आ एहि बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि ढेर रास गप।
.....
मितू आ श्रीकरक वार्तालाप। किछु बुझिऐ आ किछु नै।
-मितू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे अविद्या जीवपर आश्रित अछि आ विषय बनि गेल अछि। आत्मसाक्षात्कार लेल कोन विधि स्वीकार करब? असत्य कथूक कारण कोना भऽ सकत? कोनो बौस्तुक सत्ता ओकरा सत्य कोना बना देत, त्रिकालमे ओकर उपस्थिति कोना सिद्ध कऽ सकत? जे बौस्तु नै तँ सत्य अछि आ नहिये असत्य आ नै अछि एहि दुनूक युग्मरूप; सैह अछि अनिर्वाच्य। बिना कोनो वस्तु आ ओकर ज्ञान रखनिहारक शून्यक अवधारणा कोना बूझऽमे आओत?
-मितू। कुमारिल कहै छथि आत्मा चैतन्य जड़ अछि, जागलमे बोध आ सूतलमे बोधरहित।
-मितू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।
आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।ई गप मुदा सरिया कऽ बूझबामे आएल रहए हमरा।

....
आमक मास रहै।
बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ।
 “सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि।”
हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग आएल छलै।
आमेक मास रहै। से मितू ओगरबाहीमे लागत आब। आमक टिकुला पैघ भऽ रहल छै। मचान बान्हबाक रहै मितूकेँ। हमहूँ संगमे रहियै। बाँस काटि कऽ अबैत रही।
डबरा कात दऽ कऽ अबि रहल छलहुँ। भोरहरबा छल। अकास मध्य लाल रेख कनेक पिरौँछ भेल बुझना गेल छल।
-लीख दऽ कऽ चलू बचलू।
खेतक बीचमे लीख देने आगाँ बढ़ऽ लागलहुँ।
तखने हम शोणित देखलहुँ। हमर देह शोनित देखि सर्द भऽ गेल।
मुदा निशाँस छोड़लहुँ। बाँसक तीक्ष्ण पात एकटा बालिकाक हाथ आ मुँहकेँ नोछड़ैत गेल रहै। मितूक बाँसक नोछाड़ ओकरा लागल रहै।
मितू हाथसँ बाँस फेकि कऽ ओहि बालिका लग चलि गेल छल।
नोराएल आँखिक ओहि बालिकाक शोणित पोछि मितू ओकर नोछारपर माटि रगड़ि देने रहै।
-की कऽ रहल छी।
-शोनित बन्न भऽ जाएत।
बालिका लीखपर आगाँ दौगि गेल छलीह।
-की नाम छी अहाँक।
-आनन्दा।
-कोन गामक छी।
-अही गामक।
-अही गामक?
हम दुनू गोटे संगे बाजल रही।
हँ, आनन्दा नाम रहै ओकर। आ मितूक पहिल भेँट वैह रहै।
...
मचानो बन्हा गेल रहए। मुदा आनन्दा फेर नै भेटल रहए।
मितू पुछैत रहए।
-कोन टोलक छी ओ। नहिये मिसरटोलीक अछि, नहिये पछिमाटोलीक आ नहिये ठकुरटोलीक।
-डोमासीक रहितए तँ हम चिन्हिते रहितिऐ।
-तखन कोना अछि ओ अपन गामक। आ अपन गामक अछि तँ आइ धरि भेँट किए नै भेल रहए ओकरासँ।
मुदा बिच्चेमे संयोग भेल छल। मितूक टोलमे फुदे भाइक बेटाक उपनयन रहै। बँसकट्टी दिन पिपहीबलाकेँ बजबैले हम गामक बाहर चर्मकार टोल गेल रही।
-हिरू भाइ, हिरुआ भाइ।
-आबै छथि।
कोनो बालिकाक अबाज आएल रहए। अबाज चिन्हल सन।
-अहाँ के छी।
-हम हिरूक बेटी। की काज अछि?
-पिपही लऽ कऽ एखन धरि अहाँक बाबू नै पहुँचल छथि। बजबैले आएल छियन्हि।
-तही ओरियानमे लागल छथि।
-अहाँक नाम की छी?
तखने टाट परक लत्तीकेँ हँटबैत वैह बालिका सोझाँ आबि गेलि।
-हम आनन्दा। हम अहाँकेँ चीन्हि गेल रही। अहाँक की नाम छी?
हम तँ सर्द भेल जाइत रही। मुदा उत्तर देबाके छल।
-बचलू।
-आ अहाँक संगीक।
-मितू, पंडित श्रीकरक बेटा।
मितूक पिताक नाम सेहो हम आनन्दाकेँ बता देलिऐ। पुछने तँ नै छलि ओ, मुदा नै जानि किएक..कहि देलिऐ।
तखने हिरुआ पिपही लेने आबि गेल रहथि। हुनका संगे हम टोलपर आबि गेलहुँ।
रस्तामे हिरुआकेँ पुछलियन्हि- आनन्दा अहाँक बेटी छथि। मुदा कहियो देखलियन्हि नै।
-मामागाममे बेशी दिन रहै छलै। मुदा आब चेतनगर भऽ गेल छै। से गाम लऽ अनने छिऐ।
-फेर मामागाम कहिया जएतीह।
-नञि, आब ओ चेतनगर भऽ गेल अछि। आब संगे रहत।
पंडितजीक बेटा मितू, हमर संगी मितू, ई गप सुनि की होएतैक ओकरा मोनपर। कैक दिनसँ ओकर पुछारी कऽ रहल छल। हम सोचने रही जे भने मामागाम चलि जाए आनन्दा आ कनेक दिनमे मितूक पुछारीसँ हम बाँचि जाएब।
मुदा आब तँ आनन्दा गामेमे रहत आ पंडित श्रीकरक बेटा मितू..
धुर..हमहीं उनटा-पुनटा सोचि लेने छी। ओहिना दू-चारि बेर मितू आनन्दाक विषयमे पुछारी केने अछि। तकर माने ई थोड़बेक भेलै जे..
मुदा जे सैह भेलै तखन ?..
पंडितक बेटा आ चर्मकारक बेटी..
पंडित श्रीकर मानताह?..गौआँ घरुआ मानत?
धुर। फेर हम उनटा-पुनटा सोचि रहल छी। पिपही बाजए लागल रहए आ लीखपर देने हम आ मितू, भरि टोलक स्त्रीगण-पुरुषक संगे बँसबिट्टी पहुँचि गेल रही। रस्तामे ओहि स्थलकेँ अकानने रही। मितू आ आनन्दाक पहिल मिलनक स्थलकेँ- कोनो अबाज लागल अबैत..मात्र संगीत..स्वर नै।
बरुआ बाँस सभपर थप्पा दऽ देने रहै आ सभ बाँस कटनाइ शुरू कऽ देने रहथि। मड़बठट्ठी आइये छै। घामे-पसीने भेने कनेक मोन तोषित भेल। कन्हापर बाँस लेने हम आ मितू ओही रस्ते बिदा भेल रही..ओही लीख देने।
मुदा मितू हमरा सदिखन टोकारा देमए लागल। कारण कोनो काज हम एतेक देरीसँ नञि केने रहिऐ। ओ हमर राम रहए आ हम ओकर हनुमान।
मचानपर एहिना एक दिन हम मितूकेँ कहि देलिऐ-
-मितू, बिसरि जो ओकरा। कथी लेल बदनामी करबिहीं ओकर। हिरुआक बेटी छिऐ आनन्दा। ओना तोहर नाम हमरासँ ओ पुछलक तँ हम तोहर नाम आ तोहर पिताजीक नाम सेहो कहि देलिऐ।
-हमर पिताजीक नाम ओ पुछने रहौ?
-नै पुछने रहए। मुदा..
-तखन किए कहलहीं?
-आइ ने काल्हि तँ पता लागबे करतै..
-जहिया लगितै तहिया लगितै..आब ओ हमरासँ कटत..हमर मेहनति तूँ बढ़ा देलेँ..
-कोन मेहनति। तूँ पंडित श्रीकरक बेटा आ ओ हिरुआ चर्मकारक बेटी। कथीले बदनामी करबिहीं ओकर।
-बियाह करबै रौ। बदनामी किए करबै।
-ककरा ठकै छिहीं ?
-ककरो नै रौ।
एहिना अनचोक्केमे निर्णय लैत छल मितू। श्रीकर मीमांसकक बेटा मितू नैय्यायिक। ओकरा घरमे तालपत्र सभ पसरल रहैत देखने छलिऐ। से भरोस नै भऽ रहल छल।
-गाममे कहियो देखलिऐ नै ओकरा।
-तूँ गाममे रहलेँ कहिया। गुरुजीक पाठशालासँ पौरुकेँ तँ आएल छेँ।
-मुदा तूँहीं कोन देखने रहीं।
-मामा गाम रहै छल ओ।
-फेर मामा गाम घुरि कऽ तँ नै चलि जाएत।
-नै, से पुछि लेलिऐ। आब गामेमे रहत।
पौरुकाँ गामेमे मितूक माएक देहान्त भऽ गेल छलन्हि।
श्रीकर मीमांसक सेहो खटबताह सन भऽ गेल छथि- ई गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल। तालपत्र सभक परिरक्षण कोना हएत एहि सिंह राशिमे? यैह चिन्ता रहन्हि श्रीकरक, आ तेँ ओ खटबताह सन करए लागल रहथि.. ईहो गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल।
...
हिर्र..हिर्र…हिर्र....
डोमासीसँ सूगरक पाछू हम आ मितू हिर्र-हिर्र करैत चर्मकार टोल पहुँचि जाइ छी। आनन्दा मुदा सोझाँमे भेटि गेलीह। सुग्गर संगे हम आगाँ बढ़ि जाइ छी। घुमै छी तँ आनन्दा आ मितूक गप सुनैले कान पाथै छी।
हिर्र..हिर्र
एहि बेर आनन्दा हिर्र कहैत अछि आ हम मुस्की दैत सूगरक आगाँ बढ़ि जाइ छी।
ई घटना कैक बेर भेल आ ई गप सगरे पसरि गेल। हिरू कताक बेर हमरा लग आएल रहथि।
हीरू उद्वेलित रहए लागल रहथि। हीरूक पत्नी बेटीक भाग्यक लेल गोहारि करए लगलीह।
कए कोस माँ मन्दिलबा
कए कोस लुकेसरी मन्दिलबा
कए कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
कए कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
दुइ कोस मन्दिलबा
चारि कोस लुकेसरी मन्दिलबा
पाँचे कोस पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
पाँचे कोस पड़ल दोहाइ

कोन फूल माँ मन्दिलबा
कोन फूल बन्दी मन्दिलबा
कोन फूल पर पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
कोन फूल पर पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
ऐली फूल माँ मन्दिलबा
बेली फूल लुकेसरी मन्दिलबा
गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ
कनी तकबै हे माइ
.........
हिरू डोमासी आबए लागल रहथि।
-की हेतै, कोना हेतै।
-झुट्ठे..
हम गछलियन्हि जे हम हिरु संगे श्रीकर पंडित लग जाएब।
आ हम हिरूकेँ श्रीकर मीमांसक लग लऽ गेल रहियन्हि। श्रीकरक पत्नीक मृत्यु गत बरखक सिंह राशिक बाद भऽ गेल छलन्हि। आ तकर बाद हिरू मीमांसक खटबताह भऽ गेल छथि- लोक कहैत छलन्हि। लोक के? वैह टोलबैय्या सभ। गामक लोक, परोपट्टाक विद्वान लोक सभ तँ बड्ड इज्जत दै छलन्हि हुनका। आँखिक देखल गप कहै छी..
“आउ बचलू। हिरू, आउ बैसू..। ”- गुम्म भऽ जाइत छथि श्रीकर। पत्नीक मृत्युक बाद एहिना, रहैत रहथि, रहैत रहथि आकि गुम्म भऽ जाइत रहथि।
“कक्का, आँगन सुन्न रहैत अछि। कतेक दिन एना रहत। मितूक बियाह किए नै करा दै छियन्हि”?
“मितू तँ बियाह ठीक कऽ लेने छथि”।
“कत्तऽ?” -हम घबड़ाइत पुछै छियन्हि। हिरू हमरा दिस निश्चिन्त भावसँ देखै छथि।
“आनन्दासँ, समधि हीरू तँ अहाँक संग आएल छथिये।”
हाय रे श्रीकर पंडित।
आ बाह रे मितू। पहिनहिये बापकेँ पटिया लेने छल। मुदा बान्हपर जाइत कोनो टोलबैय्याक कान एहि गपकेँ अकानि लेने छल।
हम सभ बैसले रही आकि ओ किछु आर गोटेकेँ लऽ कऽ दलानपर जुमि गेल छल। श्रीकर मीमांसकसँ हुनकर सभक शास्त्रार्थ शुरू भेल। शब्दक काट शब्दसँ।
“श्रीकर, अहाँ कोन कोटिक अधम काज कऽ रहल छी”।
“कोन अधम काज”।
“छोट-पैघक कोनो विचार नै रहल अहाँकेँ मीमांसक?”
“विद्वान् जन। ई छोट-पैघ की छिऐ? मात्र शब्द। एहि शब्दकेँ सुनलाक पश्चात् ओकर शब्दार्थ अहाँक माथमे एक वा दोसर तरहेँ ढुकि गेल अछि। पद बना कऽ ओहिमे अपन स्वार्थ मिज्झर कऽ...”।
“माने छोट-पैघ अछि शब्दार्थ मात्र। आ तकर विश्लेषण जे पद बना कऽ केलहुँ से भऽ गेल स्वार्थपरक”।
“विश्वास नै होए तँ ओहि पदमे सँ स्वार्थक समर्पण कऽ कए देखू। सभ भ्रम भागि जाएत”।
“माने अहाँ मितू आ आनन्दाक बियाह करेबाले अडिग छी”।
“विद्वान् जन। रस्सीकेँ साँप हम अही द्वारे बुझै छी जे दुनूक पृथक अस्तित्व छै। आँखि घोकचा कऽ दूटा चन्द्रमा देखै छी तँ तखनो अकाशक दूटा वास्तविक भागमे चन्द्रमाकेँ प्रत्यारोपित करै छी। भ्रमक कारण विषय नै संसर्ग छै, ओना उद्देश्य आ विधेय दुनू सत्य छै। आ एतए सभ विषयक ज्ञान सेहो आत्माक ज्ञान नै दऽ सकैए। आत्माक विचारसँ अहंवृत्ति- अपन विषयक तथ्यक बोध एहिसँ होइत अछि। आत्मा ज्ञानक कर्ता आ कर्म दुनू अछि। पदार्थक अर्थ संसर्गसँ भेटैत अछि। शब्द सुनलाक बाद ओकर अर्थ अनुमानसँ लग होइत अछि”।
“अहाँ शब्दक भ्रम उत्पन्न कऽ रहल छी। हम सभ एहिमे मितू आ आनन्दाक बियाहक अहाँक इच्छा देखै छी”।
“संकल्प भेल इच्छा आ तकर पूर्ति नै हो से भेल द्वेष”।
“तँ ई हम सभ द्वेषवश कहि रहल छी। अहाँक नजरिमे जातिक कोनो महत्व नै?”
“देखू, आनन्दा सर्वगुणसम्पन्न छथि आ हुनकर आ हमर एक जाति अछि आ से अछि अनुवृत्त आ सर्वलोक प्रत्यक्ष। ओ हमर धरोहरक रक्षण कऽ सकतीह, से हमर विश्वास अछि। आ ई हमर निर्णय अछि”।
“आ ई हमर निर्णय अछि।”- ई शब्द हमर आ हिरूक कानमे एक्के बेर नै पैसल रहए। हम तँ श्रीकर आ मितूकेँ चिन्हैत रहियन्हि, एहिना अनचोक्के निर्णय सुनबाक अभ्यासी भऽ गेल रही। मुदा हिरु कनेक कालक बाद एहि शब्द सभक प्रतिध्वनि सुनलन्हि जेना। हुनकर अचम्भित नजरि हमरा दिस घुमि गेल छलन्हि।
फेर श्रीकर मीमांसक ओहि शास्त्रार्थी सभमेसँ एक ज्योतिषी दिस आंगुर देखबै छथि-
“ज्योतिषीजी, अहाँ एकटा नीक दिन ताकू। अही शुद्धमे ई पावन विवाह सम्पन्न भऽ जाए। सिंह राशि आबैबला छै, ओहिसँ पूर्व। किनको कोनो आपत्ति?”
सभ माथ झुका ठाढ़ भऽ जाइ छथि। श्रीकर मीमांसकक विरोधमे के ठाढ़ होएत?
“हम सभ तँ अहाँकेँ बुझबए लेल आएल छलहुँ। मुदा जखन अहाँ निर्णय लैये लेने छी तखन...।”
मीमांसकजीक हाथ उठै छन्हि आ सभ फेर शान्त भऽ जाइ छथि।
हम आ हीरू सेहो ओतएसँ बिदा भऽ जाइ छी।
हीरू निसाँस लेने रहथि, से हम अनुभव केने रही।
...
ई नै जे कोनो आर बाधा नै आएल।
मुदा ओ खटबताह विद्वान तँ छले। से आनन्दा हुनकर पुतोहु बनि गेलीह। आ हुनक छुअल पानि हमर टोल आकि मितूक टोल मात्र नै सौँसे परोपट्टाक विद्वानक बीचमे चलए लागल।
.....
आनन्दाक नैहरमे विवाह सम्पन्न भेल छल। ओतुक्का गीतनाद हम सुनने रही, उल्लासपूर्ण, एखनो मोन अछि-
पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,
मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे
उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे
पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,
मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे
उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे

कोन फूल  ओढ़ब लुकेसरि के
कोन फूल पहिरन
कोन फूल बान्धिके सिंगार हे

उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे
बेली फूल ओढ़ब बन्दी
चमेली फूल पहिरन
अरहुल फूल लुकेसरि के सिंगार हे
उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे
उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे
....
श्रीकर मीमांसक आनन्दाकेँ तालपत्र सभक परिरक्षणक भार दऽ निश्चिन्त भऽ गेल रहथि। पत्नीक मृत्युक बाद बेचारे आशंकित रहथि।
दैवीय हस्तक्षेप, आनन्दा जेना ओहि तालपत्र सभक परिरक्षण लेल आएल रहथि हुनकर घर। अनचोक्के..
मितू कहि देलक हमरा जे कोना ओ श्रीकर पंडितकेँ पटिया लेने रहए। ब्राह्मणक बेटी सराइ कटोरा आ माटिक महादेव बनबैत रहत आ तालपत्र सभमे घून लागि जाएत..
नै घून लागए देथिन तालपत्र सभमे, आनन्दा आएत एहि घर। श्रीकर मीमांसक निर्णय कऽ लेने रहथि।
मितू तँ जेना जीवन भरि अपन लेल एहि निर्णयक प्रति कृतज्ञ छलाह।
श्रीकरक आयु जेना बढ़ि गेल छलन्हि। श्रीकर आ आनन्दाक मध्य गप होइते रहै छल ओहि घरमे।
आनन्दा बजिते रहै छलीह आ गबिते रहै छलीह।

बारहे बरिस जब बीतल तेरहम चढ़ि गेल हे
बारहे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल हे
ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनियाँ घरसे निकालब हे
ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनियाँ घरसे निकालब हे

अंगना जे बाहर तोहि छलखिन रिनियाँ गे
ललना गे आनि दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे
ललना रे आनी दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे
बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे
बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे
ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे
ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे

बारह हे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल रे
ललना रे सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ
बघिनिया घरसे निकालब रे
सासु मोरा मारथिन अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे
सासु मोरा मारथि अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे
ललना रे गोटनो खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे
ललना रे गोटनऽ खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे

चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे
चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे
धनी हे करबै हे तुलसी के जाग, की धन सभ लुटा देबऽ हे
ललना हे करबै मे पोखरि के जाग, की सभ धन लुटाएब हे

श्रीकर मीमांसक हँसी करथिन- आनन्दा, अहाँकेँ तँ सासु अछि नै, तखन ओ बेचारी अहाँकेँ बघिनियाँ कोना कहतीह?
-तेँ ने गबै छी, सभ चीज तँ भरल-पूरल मुदा..।
आँखि नोरा गेल छलन्हि आनन्दाक। हमरा अखनो मोन अछि।
-हम अहाँकेँ दुःख देलहुँ ई गप कहि कऽ।
-कोन दुःख? सासु नै छथि तँ ससुर तँ छथि।
श्रीकरकेँ प्रसन्न देखि मितूकेँ आत्मतोष होइन्ह।
.......
आ श्रीकर मीमांसकक मृत्युक बादो आनन्दा तालपत्र सभमे जान फुकैत रहैत छलीह।
फेर मितूकेँ दूटा बेटी भेलन्हि वल्लभा आ मेधा।
आनन्दाक खुशी हम देखने छी। नैहर गेल रहथि ओ। ओतहि दुनू जौँआ बेटी भेल छलन्हि-

लाल परी हे गुलाब परी
लाल परी हे गुलाब परी
हे गगनपर नाचत इन्द्र परी
हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी

आ फेर भेलन्हि बेटा। पैघ भेलापर बेटा मेघकेँ पढ़बा लेल बनारस पठेने रहथि मितू।
आ दिन बितैत गेल, बेटी सभ पैघ भेलन्हि आ दुनू बेटी, मेधा आ वल्लभाक बियाह दान कऽ निश्चिन्त भऽ गेल छलाह मितू।
बेटाक परवरिश आ बियाह दान सेहो केलन्हि। मेघ बनारसमे पाठन करए लगलाह। मेघ, मेधा आ वल्लभा तीनू गोटे सालमे एक मास आबथि धरि अवश्य।
लोक बिसरि गेल मारते रास गप सभ।

II
भामती प्रस्थानम्
आनन्दा मितूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ  कऽ रहल छथि। कड़गर रौद, मितूकेँ ओहिना मोन छन्हि।
मितू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। आ आब जखन ओ नै छथि तखन मितूक जीवनक परिरक्षण कोना होएत।.. मितू प्रवचनक बीचमे कतहु भँसिया जाइ छथि।
प्रवचन चलि रहल अछि। मितू गरुड़ पुराण नै सुनताह। मितू मंडनक ब्रह्मसिद्धि सुनताह, वाचस्पतिक भामती सुनताह, जे सुनबो करताह तँ। जँ बेटी सभक जिद्द छन्हिये तँ आत्मा विषयपर कुमारिलक दर्शन सुनताह। आ सैह प्रवचन चलि रहल अछि।
भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि श्रीकर मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। भामती प्रस्थानम् पर। शब्दक अर्थ हम गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।
-गुरुजी। हम पत्नीक मृत्युक बाद घोर निराशामे छी। की छिऐ ई जीवन। कतए होएत आनन्दा।
- मितू। धीरज राखू। ब्रह्मसिद्धिक हमर ई पाठ अहाँक सभ भ्रमक निवारण करत। ब्रह्मसिद्धिमे चारि काण्ड छै। ब्रह्म, तर्क, नियोग आ सिद्धि काण्ड। ब्रह्मकाण्डमे ब्रह्मक रूपपर, तर्ककाण्डमे प्रमाणपर, नियोगकाण्डमे जीवक मुक्तिपर आ सिद्धिकाण्डमे उपनिषदक वाक्यक प्रमाणपर विवेचन अछि।
- मितू। मुक्ति ज्ञानसँ पृथक् कोनो बौस्तु नै अछि। मुक्ति स्वयं ज्ञान भेल। मानवक क्षुद्र बुद्धिक कतहु उपेक्षा मंडन नै केने छथि। कर्मक महत्व ओ बुझैत छथि। मुदा ताहिटा सँ मुक्ति नै भेटत। स्फोटकेँ ध्वनि-शब्दक रूपमे अर्थ दैत मंडन देखलन्हि। से शंकरसँ ओ एहि अर्थेँ भिन्न छथि जे एहि स्फोटक तादात्म्य ओ बनबैत छथि मुदा शंकर ब्रह्मसँ कम कोनो तादात्म्य नै मानै छथि। से मंडन शंकरसँ बेशी शुद्ध अद्वैतवादी भेलाह।
-मितू। मंडन क्षमता आ अक्षमताक एक संग भेनाइकेँ विरोधी तत्व नै मानैत छथि। ई कखनो अर्थक्रियाकृत भेद होइत अछि, मुदा ओ भेद मूल तत्व कोना भऽ गेल। से ई ब्रह्म सभ भेदमे रहलोपर सभ काज कऽ सकैए।
-देखू। वाचस्पतिक भामती प्रस्थानक विचार मंडन मिश्रक विचारसँ मेल खाइत अछि। मंडन मिश्रक ब्रह्मसिद्धिपर वाचस्पति तत्वसमीक्षा लिखने छथि। ओना तत्वसमीक्षा आब उपलब्ध नै छै।
-तखन तत्व समीक्षाक चर्चा कोना आएल।
-वाचस्पतिभामतीमे एकर चर्चा छै।
-मुदा मंडनक विचार जानबासँ पूर्व हमरा मोनमे आबि रहल अछि जे जखन ओ शंकराचार्यसँ हारि गेलाह तखन हुनकर हारल सिद्धान्तक पारायणसँ हमरा मोनकेँ कोना शान्ति भेटत।
-देखियौ, मंडन हारि गेल छलाह तकर प्रमाण मंडनक लेखनीमे नै अछि। मंडन स्फोटवादक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्य स्फोटवादक खण्डन करैत छथि। मंडन कुमारिल भट्टक विपरीत ख्यातिक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्यक जाहि शिष्य सुरेश्वराचार्यकेँ लोक मंडन मिश्र बुझै छथि ओ एकर खण्डन करै छथि।
-से तँ ठीके। मंडन हारि गेल रहितथि तँ हुनकर दर्शन शंकराचार्यक अनुकरण करितन्हि।
-आब कहू जे जाहि सुरेश्वराचार्यकेँ शंकराचार्य श्रृंगेरी मठक मठाधीश बनेलन्हि से अविद्याक दू तरहक हेबाक विरोधी छथि मुदा मंडन अपन ग्रन्थ ब्रह्मसिद्धिमे अग्रहण आ अन्यथाग्रहण नामसँ अविद्याक दूटा रूप कहने छथि। मंडन जीवकेँ अविद्याक आश्रय आ ब्रह्मकेँ अविद्याक विषय कहै छथि मुदा सुरेश्वराचार्य से नै मानै छथि। शंकराचार्यक विचारक मंडन विरोधी छथि मुदा सुरेश्वराचार्य हुनकर मतक समर्थनमे छथि।
.......
बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ। आब हमरा दुआरे गामक लोक महीस पोसनाइ तँ नै छोड़ि देत। बानर आ बनगदहा बड्ड नोकसान कऽ रहल अछि।
“चारिटा बानर कलममे अछि। धऽ कऽ आम सभकेँ दकड़ि देलक। हम गेल रही। साँझ भऽ गेलै तँ आब सभटा बानर गाछक छिप्पी धऽ लेने अछि। साँझ धरि दुनू बापुत कलम ओगरने रही, झठहा मारि भगेलहुँ, मुदा तखन अहाँक कलम दिस चलि गेल”।–- हम मितूकेँ हम कहै छियन्हि।
सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि। करऽ दियौ जखन...”।
“बनगदहा सभ तँ साफ कऽ उपटि गेल छलै। नै जानि फेर कत्तऽ सँ आबि गेल छै। गजपटहा गाममे जाग भेल छलै, ओम्हरेसँ राता-राती धार टपा दै गेल छै”।
“से नै छै। ई बनगदहा सभ धारमे भसिया कऽ नेपाल दिसनसँ आएल छै। आबऽ दियौ जखन...”।
“हम बानर सभ दिया कहने रही”।
“से हेतै”।
“हेतै भाइज, तखन जाइ छी”। हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग निपत्ता भऽ गेल रहै जाहि बरख आनन्दा आ मितूक भेँट भेल रहै। आ आनन्दाक गेलाक बाद बानर आ बनगदहा नै जानि कत्तऽ सँ फेर आबि गेल छै, आनन्दाक मृत्युक पन्द्रहो दिन नै बीतल छै...
.......
बचलू गेलाह आ मितूक कपारपर चिन्ताक मोट कएकटा रेख ऊपर नीचाँ होमए लगलन्हि, हिलकोरक तरंग सन, एक दोसरापर आच्छादित होइत, पुरान तरंग नव बनैत आ बढ़ैत जाइत। अंगनामे सोर करै छथि। “बुच्ची, बुचिया। जयकर आ विश्वनाथ आइ गाछी गेल रहए। आबि गेल अछि ने दुनू गोड़े। सुनलिऐ नै जे बानर सभक उपद्रव भऽ गेल छै। काल्हिसँ नै जाइ जाएत गाछी, से कहि दियौ। आइ बानर सभ कलम आएल छल, से कहबो नै केलहुँ। कहिये कऽ की होएत जखन...”।
“कहि तँ रहल छलहुँ बाबूजी मुदा अहाँ तँ अपने धुनमे रहै छी, बाजैत मुँह दुखा गेल तँ चुप रहि गेलहुँ”।
हँ, धुनिमे तँ छथिये मितू। ई आम सेहो आनन्दाक मृत्युक बाद पकनाइ शुरू भऽ गेल अछि। आ एतेक दिनुका बाद फेर ई बानर आ बनगदहा कोन गप मोन पारबा लेल फेरसँ जुमि आएल अछि।
...
जयकरक माए वल्लभा आ विश्वनाथक माए मेधा। दुनू बहीन कतेक दिनपर आएल छथि नैहर। कतेक दिनपर भेँट भेल छन्हि एक दोसरासँ। आनन्दाक दुनू बेटी आ दुनू जमाए आएल छथि। वल्लभाक पति विशो आ मेधाक पति कान्ह। मेघ अपन पत्नी आ बच्चा सभक संगे आएल छथि।
मितू पत्नीकेँ आनन्दा कहि बजा रहल छथि। फेर मोन पड़ै छन्हि जे ओ आब कत्तऽ भेटतीह। फेर कत्तऽ छी वल्लभा, कत्तऽ छी मेधा, जयकर आ विश्वनाथ कतए छथि..सोर करए लागै छथि।
वल्लभा आ मेधा अबै छथि आ मितू गीत गबए लगै छथि। आनन्दाक गीत। आनन्दा जे गबै छलीह वल्लभा आ मेधा लेल-
लाल परी हे गुलाब परी
लाल परी हे गुलाब परी
हे गगनपर नाचत इन्द्र परी
हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी

रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
हे रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
माँ हे निरधनकेँ धन यै देने परी
माँ हे निरधनकेँ धन जे देने परी

लाल परी हे गुलाब परी
माँ हे रकतमाला दुआरपर अन्धरा खड़ी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी

बाप आ दुनू बेटी भोकार पाड़ए लगै छथि।
...
-मितू। आनन्दाक मृत्यु अहाँ लेल विपदा बनि आएल अछि। अहाँ ब्राह्मण जातिक आ आनन्दा चर्मकारिणी। मुदा दुनू गोटेक प्रेम अतुलनीय। हुनकर मृत्यु लेल दुःखी नै होउ। ब्रह्म बिना दुखक छथि। ब्रह्मक भावरूप आनन्द छियन्हि। से आनन्दा लेल अहाँक दुःखी होएब अनुचित। ब्रह्म द्रष्टा छथि। दृश्य तँ परिवर्तित होइत रहैए, ओहिसँ द्रष्टाकेँ कोन सरोकार। ई जगत-प्रपंच मात्र भ्रम नै अछि, एकर व्यावहारिक सत्ता तँ छै। मुदा ई व्यावहारिक सत्ता सत्य नै अछि।
-मितू। चेतन आ अचेतनक बीच अन्तर छै मुदा से सत्य नै छै। जीवक कएकटा प्रकार छै, आ अविद्याक सेहो कएकटा प्रकार छै। अविद्या एकटा दोष भेल मुदा तकर आश्रय ब्रह्म कोना होएत, पूर्ण जीव कोना होएत। ओकर आश्रय होएत एकटा अपूर्ण जीव। अविद्या तखन सत्य नै अछि मुदा खूब असत्य सेहो नै अछि।
-मितू। एहि अविद्याकेँ दूर करू आ तकरे मोक्ष कहल जाइत अछि। वैह मोक्ष जे आनन्दा प्राप्त केने छथि।
आ मितूक मुखपर जेना शान्ति पसरि जाइ छन्हि।
........
मितू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि।
मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप।
-आनन्दा। अहाँसँ गप करैत-करैत हमरा कनीटा डर मोनमे आबि गेल अछि। पिताक सभसँ प्रधान कमजोरी छन्हि हुनकर तालपत्र सभक परिरक्षण। से ई सभ मोन राखू। पिता जे पुछताह जे ताल पत्रक परिरक्षण कोना होएत तँ कहबन्हि- पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आ स्थूल बन्धनसँ बचा कऽ। छाहरिमे सुखा कऽ। ५००-६०० पातक पोथी सभ। हम कोनो दिन देखा देब। एक पात एक हाथ नाम आ चारि आंगुर चाकर होइ छै। ऊपर आ नीचाँ काठक गत्ता लागल रहै छै। वाम भागमे छिद्र कऽ सुतरीसँ बान्हल रहै छै।
-पिता मानताह।
-नै मानताह किएक। ब्राह्मणक बेटीसँ बियाह कराबैक औकाति छन्हि? हम एक गोटेकेँ दू टाका बएना देने रहियै खेतिहर जमीन किनबा लेल। मुदा पिता जा कऽ बएना घुरा आनलन्हि। एक-एक दू-दू टाका जमा कऽ रहल छथि। ७०० टाका लड़कीबलाकेँ देताह तखन  बेटाक विवाह हेतन्हि आ पाँजि बनतन्हि। आ से ब्राह्मणी अओतन्हि तँ तालपत्रक रक्षा करतन्हि?
मितूक माएक मृत्युक बाद श्रीकर खटबताह भऽ गेल छलाह। टोलबैय्या सभ कहै छथि।
आ फेर बेमारी अएलै, प्लेग। गामक दूटा टोल उपटिये गेल, मिसरटोली आ पछिमाटोली। परोपट्टाक बहुत रास गाममे कतेक लोक मुइल से नै जानि।
मितू पिताकेँ आनन्दासँ भेँट करा देलखिन्ह। श्रीकर तालपत्र परिरक्षणक ज्ञानसँ परिपूर्ण आनन्दामे नै जानि की देखि लेलन्हि।
मितू जीति गेल। नैय्यायिक मितू मीमांसक श्रीकरसँ जीति गेल आ मीमांसक श्रीकर अपन टोलबैय्या सभकेँ पराजित कऽ देलन्हि।
आ आनन्दा आ मितूक विवाह सम्पन्न भेल।
मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप। मितू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि। आनन्दाक मृत्यु भऽ गेल अछि। बलानमे पएर पिछड़ि गेलन्हि आनन्दाक। ओहिना पिछड़ैक चिन्हासी देखबामे आबि रहल अछि।
मितू ओहि चिन्हासीकेँ देखै छथि आ हुनकर मोन हुलसि जाइ छन्हि, पिछड़ि जाइ छथि भावनाक हिलकोरमे..
आनन्दा आ मितूक एक दोसरासँ भेँट-घाँट बढ़ए लागल छल, खेत, कल्लम-गाछी, चौरी आ धारक कातक एहि स्थलपर। आ दुनू गोटे पिछड़ैत छलाह, खेतमे, कल्लम-गाछीमे, चौरीमे आ धारक कातमे सेहो।
धारमे फाँगैत नै छलाह मितू। यएह ढलुआ पिच्छड़ स्थल जे आइ-काल्हिक छौड़ा सभ बनेने अछि, से मितूक बनाओल अछि। एहिपर पोन रोपैत छलाह आ सुर्रसँ मितू धारमे पानि कटैत आगाँ बढ़ि जाइत छलाह।
“हे, कने नै पिछड़ि कऽ तँ देखा।”
“से कोन बड़का गप भेलै।”
“देखा तखन ने बुझबै।”
आनन्दा अस्थिरसँ आगाँ बढ़बाक प्रयास करथि मुदा..हे.हे..हे..
नै रोकि सकलथि ओ अपनाकेँ, नहिये खेतमे, नहिये कल्लम-गाछीमे, नहिये चौरीमे आ नहिये एहि धारक कातमे..
आ की करए आएल होएतीह आनन्दा एतए..जे पिछड़ि गेलीह आ डूमि गेलीह..
कोनो स्मृतिकेँ मोन पड़बा लेल आएल होएतीह..
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 हँ आनन्दा आएल अछि बचलू। देखियौ ई गीत सुनू-

घर पछुवरबामे अरहुल फूल गछिया हे
फरे-फूले लुबुधल गाछ हे
उतरे राजसए सुगा एक आओल
बैसल सूगा अरहुल फूल गाछ हे
फरबो ने खाइ छऽ सुगबा, फुलहो ने खाइ छऽ हे
डाढ़ि-पाति केलक कचून हे
फुलबो ने खाइ छऽ सुगबा, फरहु ने खाइ छऽ हे
डाढ़ि-पाति केलक कचून हे
घर पछुवरबामे बसै सर नढ़िआ हे
बैसल सूगा दिअ ने बझाइ हे

एकसर जोड़ल सोनरिया
दुइसर जोड़ल हे
तेसर सर सूगा उड़ि जाइ हे
सुगबो ने छिऐ भगतिया
तितिरो ने छिऐ
येहो छिऐ गोरैय्या के बाहान हे

-भाइ अहाँ ई गीत नै सुनि पाबि रहल छी की?
-भाइ सुनि रहल छी। देखियो रहल छी। आनन्दा भौजी छथि।
जहिया ओ मुइल छलीह तहियो सुनने रही- वएह रहथि- गाबै रहथि-
लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया
तहि तर कोइली घऽमचान हे

-शब्द भ्रम नै छल ओ।
माँछ-मौस आ सत्यनारायण पूजाक बाद अगिले दिनक गप अछि। ने चानन गाछ कटेने रहथि आ ने अँगना बेढ़ने रहथि आनन्दा।
दोसर दिन ओहि चानन गाछक नीचाँ चर्मकारटोलमे गौआँ सभ दुनू गोटेक लहाश देखलन्हि। आ ईहो शब्द गगनमे पसरि गेल, सौँसे गौँआ सुनलक- आनन्दाक अबाजमे-
जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम
रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे
शब्द भ्रम नै छल ओ।

 (ई कथा “शब्दशास्त्रम्” श्री उमेश मंडल गाम-बेरमा लेल।)

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