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Tuesday, April 10, 2012

आशीष अनचिन्हार- काटल कथा


काटल कथा- आशीष अनचिन्हार


10 जनवरी ( समय भोरक 5.39 मिनट)--- आइ भोरे गंगासागर ट्रेनसँ दड़िभंगा रेलवेस्टेशन उतरलहुँ। किछु डेग चललाक पछाति बुझाएल जेना डाँड़सँ निच्चा पानि झहरैत हो। डाँड़सँ उपर नै, किएक तँ गंजीपरसँ अंगा, अंगापरसँ अधकट्टी सुइटर आ तकरा उपर पूरा बाँहिक जैकेट छल। पूरा माथ गुलबंद महाराजक शरणमे। तँए डाँड़सँ उपर किछु नै बुझना गेल। मुदा डाँड़सँ निच्चा छल मात्र खौरकी हाफ जँघिया आ ताहिपरसँ फूल पैन्ट। तखन पानि की पाथरो बुझेतैक।

आब अहाँ सभ हमरा किछु कहब से हमरा बुझा रहल अछि। अहाँ सभ कश्मीरक पानिकेँ बर्फमे बदलनाइ विश्वास कए सकैत छिऐ मुदा एहि गप्पकेँ नै। कारण--------------- ओना कारण एकर बड्ड सोंझ छै आ अहाँ तँ बुझिते हेबै जे सोंझ गप्प मगजमे बड्ड देरीसँ घुसैत छै। ओना जे होइक एकर कारण, छै मुदा स्वाभाविके। मनुख जाहि वस्तु आ ओकर परिवर्तनकेँ आँखिसँ देखैत छै ओकरेपर ओ विश्वास करैत छै। बिनु आँखिक देखने केओ विश्वास करत ताहि लेल माथक पसेना एड़ीसँ पोछए पड़ैत छै। ओना एहि गप्पक बीचमे हम अपन टाँग अड़ाएब जे किछु गप्प देखबाक नै विश्वास करबाक होइत छै, ओनाहिते जेना की कन्यागत कहै छथिन्ह जे हमर कन्या पवित्र छथि आ वरागतकेँ विश्वास करहे पड़ैत छै। ओना वरागतक विश्वास कोन जौड़सँ बन्हालए रहैत छै से हम नै कहब।

अस्तु कोनाहुतो जाँघ-टाँगसँ पानि झहरबैत वेटिंग रूम एलहुँ, किछु खन बैसलहुँ आ फेर उठि कए चाह बला लग एलहुँ। आब अहाँ सभ अनुमान कए सकैत छिऐ जे ओहि ठाम हम निश्चित रूपेँ चाह पीने हएब आ से स्वाभाविके छै। व्यर्थमे केकरो दोकानपर जा कए ठाढ़ भए जेबै तँ गमजन होइत देरी नै लागत।

गिलासक चाह आधा खत्म भए गेल छल, आधा बाँचले छल ( कृप्या अहाँ लोकनि एकरा दर्शनक विषय नै बूझब ) तखने एकटा विचित्र प्राणीक आगमन भेल। ओना एक गोट विद्वान कहने छथि जे मनुख अपना आपमे एकटा विचित्र प्राणी अछि। आब ओ विद्वान विचित्र प्राणीकेँ देखने होथिन्ह की नै मुदा आइ हम देखि लेलिऐ। आगंतुक प्राणी अहाँकेँ ने पूर्ण रूपेँ पुरुष बुझेताह आ ने स्त्री। जँ गँहिकी नजरिसँ देखबै तँ ओ अहाँकेँ हिजड़ो नै बुझेताह। आब ओ अहाँकेँ जे बुझाथि से बुझैत रहू, मुदा हमरा ऐ प्रसंगसँ उतरि हुनक वयसपर एबाक चाही। ओना ओ देखलासँ साठिक सेहो बुझेताह आ सत्तरिक सेहो, मुदा हुनक वयस चालीससँ उपर नै। आब अहाँ सभ ई नै कहब जे अहाँ कोनो हुनकर टिप्पनि बनेने छिएन्हि ? सत्ते, हम तँ हुनकर टिप्पनि नहिए बनेने छिऐ मुदा जे हम कहलहुँ से सत्य जँ गड़बड़िओ हेतै तँ एकै-दू बर्खक। आब अहाँ सभ चाह बलाक वयस पूछू। अहाँ पूछब तँ हम उत्तर देब जे हुनकर वयस हमरासँ बीस होइन्हि की उन्नीस छलाह हमरे बराबर।
आब अहाँ सभ बोर भए गेल हएब। हफिआइत हएब आ केखनो खिसिआ कए पूछब जे ई इतिहास सुनौलासँ कोन लाभ। हँ बाबू ओना इतिहास सुनेलासँ तँ कोनो लाभ नै छै मुदा इतिहास तँ इतिहासे होइत छै। फेर हम कहाँ भसिया गेलहुँ। केखनो काल कए हम ओनाहिते भसिआ जाइत छी जेना की मुद्रास्फीतिक बाढ़िमे घर आ घरक बजट।

हँ तँ आब सुनू- ओ विचित्र प्राणी चाह बलासँ चाह मगँलकै। चाह बला चाह छानि ओकरा हाथमे देबएसँ पहिने पाइ मँगलकै  आब तँ बाबू कहबीए छै " घर कहाँ दरभंगा, झोड़ामे की छौ अंगा, टिकट कहाँ बाबू भिखमंगा " । आब तँ अहूँ सभ बुझिए गेल हेबै, अबूझ तँ नहिए छी। चाह बला बमकि उठल---------- भाग सार--------मादर---------------फादर--------बहान--------------------सभ विशेषण उझीलि देलकै। बमकैत बाजल--- हम जुआनकेँ भीख नै दैत छिऐ। जो साला बुढ़बा होता है... उसीकेँ माइ को ओही छिन्नी साँइ को भीख देता हूँ।
विचित्र प्राणी पाँच डेग पाँछा हट गेल। चाहो बला पाँच डेग पाँछा हटि गेल। हमरो चाह खत्म भए गेल छल, पाइ देलिऐ आ विदा भए गेलहुँ बस स्टेन्डक लेल।

10 जनवरी ( समय भोरक 6.38 मिनट)--- रेलवे स्टेशनसँ निकलि बाटपर एलहुँ टेम्पू पकड़बाक लेल। किछु खन प्रतीक्षा करए पड़ल। टेम्पूक नै, टेम्पूकेँ आदमीसँ भरबाक लेल। टेम्पू आब चालू भेल। कन-कन बसात आ जर्किनसँ देह परमहंसीय अवस्थामे पहुँचि गेल। ने स्वस्थ जकाँ फुर्तिगर आ ने लकवाग्रस्त जकाँ निष्क्रिय। कहुना बस स्टेन्ड पहुँचलहुँ आ पहुँचिते सूपक भाँटा भए गेलहुँ। बाम-दहिन होइत-होइत पता लागल जे बसक लेल प्रतीक्षा करए पड़त सेहो कतेक तँ पौने एक घंटा। बेस कएले जा सकैए।
आब अहाँ सभ कहबे करब जे अहाँक प्रतीक्षा लेल हम किएक प्रतीक्षा करू। बेस अहाँ प्रतीक्षा किएक करब हम कहिए दैत छी। हँ, ओहि पौन घंटामेसँ जखन शुद्ध कए बिस मिनट बीति गेल तखन एगो कूटक बक्सामे किछु हिन्दी पत्रिका लेने एकटा बच्चा आएल आ सुटसँ आँखिक आगाँमे एगो सरस-सलिल चमका कए बाजल--------
" लिजिएगा हो "
हम प्रतिप्रश्न करैत पुछलिऐ-----
" मैथिली पत्रिका रखैत छहक "
हमर प्रतिप्रश्नक उत्तरमे ओहो प्रतिप्रश्न करैत पुछलक---
" माने का "
हम कहलिऐ-----
" जेना हाल-चाल छै "
ऐ बेर ओ मूड़ी डोलबैत दीर्घ " ओ " केर उच्चारण केलक आ बकसासँ एकटा पोथी निकालि देखबैत बाजल------
" इहे ह"
आ अनचोकेमे भोरे-भोर एकटा जुआन छौंडीक नाङट फोटो आँखिक सोंझा आबि गेल आ संगमे गरमी थोड़ेक सेहो सनसनी आ तनतनीक अतिरिक्त। हम ओकरा फेर पुछलिऐ----
" ई नै हो, ओ जे मणिकांत झा निकालै छथिन्ह से "
ओ छौड़ा चट्ट पोथीकेँ भीतर राखैत बाजल----
" न ऊ सभ हमरे पास नहीं होगा"
आ सरसराइत ओ चल गेल। आ हम ओही ठाम ठंडीमे गरमीक अनुभव करैत रहि गेलहुँ मात्र एकट बसक प्रतीक्षामे।

10 जनवरी ( समय भोरक 7.50 मिनट)--- बस अपना नियत समयसँ लेट भए गेल संगहि-संग कच्छमच्छी सेहो ढ़ूकए लागल। एहने समयमे पता लागल जे हमरा गामक तँ नै मुदा हमर गामसँ तीन गाम पाँछाक बस फल्लाव ठाम लगतै। मोनमे कच्छमच्छीकेँ लेने ओहिठाम पहुँचलहुँ मुदा बस नै आएल छल। ओना ओकर एबाक समयों नै भेल छलै। जे-से फेर हम लगीचक चाहक दोकानमे बैसलहुँ आ चाह पीबाक लेल बाध्य भेलहुँ। चाह खत्म भेल। नियत समय सेहो पूरल। आशचर्य, बस अपना स्थानपर आबि गेल छल। पाइ दैत फुर्तीसँ हम उठलहुँ आ बसमे चढ़ि आगूक सीट दफानलहुँ। आब जँ अहाँ सभ साकांक्ष हएब तँ हमरासँ पूछि सकैत छी जे आगुएक सीट किएक अहाँ बीचोमे तँ बैसि सकै छलहुँ। बंधु ई सत्य जे हम बीचोमे बैसि सकैत छलहुँ मुदा जा धरि कोनो बाध्यता नै हो हमरा अगुअइते नीक लगैए की पछुअइते। अस्तु बसमे लोक मतलब रंग बिरही माल-जाल भरलाक पछाति कंडक्टर ड्राइवरकेँ प्रस्थान करबाक इशारा केलकै। बस तँ प्रस्थान करबे करतै मुदा अहाँ सभ नै प्रस्थान करू। आब हम फेर मतलाबक गप्पपर अबैत छी। बस बाघ मोड़सँ होइत बेला मोड़ आ तकरा बाद दड़िभंगा-जयनगर नेशनल हाइवे पकड़लक आ हनहनाइत चलए लागल। हनहनाइत माने ओतेक तेजी जे की रोडक कंडीशन देकैत क्षम्य छै। हँ तँ लिअ एतबे देरमे बस खिरमा चौक पहुँचि गेल आ अपन गनतव्यसँ मात्र आध घंटाक दूरीपर अछि।
एहि चौकपर एकटा जनानी बसमे चढ़लीह आ हुनक संगमे एकटा बच्चा आ मर्द सेहो। आब जनानी, बच्चा आ मर्दक बीच की संबंध छै से हमरा नै पता। भए सकैत अछि जे ओ दूनू पति-पत्नी होथि वा भाए-बहीनि वा अन्य कोनो--। किछु भए सकैत छै।
एखनो एहन समय छै जँ कोनो युवक-युवती एक संगे देखा गेल तँ लोक ओकर संबंधक व्याख्या प्रेमेक स्तरपर करैत छै। एहि छोड़ि आरो कोनो संबंध भए सकैत छै ई सोचबाक फुरसति केकरो लग नै छै।
ओह, हम फेर भसिआएल जाइत छी। हँ, तँ जखन बस खिरमा चौकसँ आगू बढ़ल तखन बच्चा अपन स्वभावक अनुरूपेँ चारू कात मूँह घुमेनाइ चालू केलक। आ जखन कोनो बच्चा कौतुक करए लागए तँ ओकर आगू-पाछू बलाक मोन सेहो कौतुक करए लागैत छै। चाहे बूढ़ हो की जुआन। आ एकर कारण जे होइक।
तँ बच्चाक देखाँउस एकट अन्य युवक सेहो करए लागल जे पाछूक सीटपर बैसल छल। बच्चा किछु देर धरि देखैत रहल आ एकै बेर भभा कए हँसए लागल। हमर बगलमे बैसल एकटा युवक ऐ क्रियाकलापकेँ देखि बाजल--- देखिऔ घाघकेँ। बच्चाकेँ हँसा ओकर माएकेँ लोभेतै।
हम किछु नै बजलहुँ। जरूरते की छल। मुदा सोचबाक लेल बाध्य छलहुँ। की हँसी खाली स्त्रीकेँ फँसेबाक लेल होइत छै अथवा हँसबाक लेल कोनो विशेषे कारण वा समय होइत छै। हमर मोन नै मानैत छल। मुदा प्रमाण तँ युवक सद्यः देने छलाह जे हँसीक उपयोग मात्र एही सभहँक लेल करैए लोक।अहाँ सभ हमर सोच हमर विचारक खंडन करब जे एहन गप्प नै छै। आ हमहूँ मानैत छी जे एहन गप्प नै छै, मुदा जखन कोनो शोधकर्ता कहलकै जे हँसी जरूरी छै स्वास्थ्यक लेल आ तकरा बाद जे लाफ्टर कल्ब, शो इत्यादि चलल छै तकरा देखि मानए पड़ल जे हँसीक मात्र एकै-दूटा उपयोग छै।
मनुख लग आब स्वाभाविक हँसी नै छै। स्त्री फँसेबाक नामपर वा नीक स्वास्थ्यक नामपर हदसँ बेसी हँसैत लोककेँ देखि ई विश्वास करब कठिन छै जे ऐ ठाम केओ कनितो हेतै। अमीरसँ गरीब सभ हँसि रहल लाफ्टर शोकेँ सहारे मुदा स्वाभाविक नै। एहि मामिलामे पाइ कोनो विभाजक नै।
दूध पिबैत लोक आ माँड़ पिबैत लोक दूनू एकै लाफ्टर शो के देखि हँसैत अछि आ कामना करैत अछि जे भरि दिन भरि राति एहने सुखद हुअए। मुदा से की संभव छै-------।
आ एकै झटकामे बस रूकल संगहि-संग हमर विचार सेहो। बसक गंतव्य आबि गेल छल मुदा हमर नै। हमरा एखन तीन गाम आरो पार कारबाक अछि। मुदा जा धरि हम ऐ तीन गामकेँ पार करैत अपन गाम पहुँची, अहाँ सभ कोनो ने कोनो लाफ्टर शोकेँ देखू, बलजोरीसँ हँसू आ ऐ भ्रममे रहू जे हमर स्वास्थ्य सुधरल जा रहल अछि।



ई कथा रहुआ-संग्राममे आयोजित " सगर राति दीप जरए" मे पढ़ए लेल रहए मुदा ओतए सभ सूति रहल रहथि। तकर विरोध करैत हम ई कथा नै पढ़ने रही।

1 comment:

  1. ई हमरा द्वारा लिखल " लघुकथा " थिक। जकरा पहिने भ्रमवश कथा कहल जाइत छल। कृप्या एकरा लघुकथाकेँ रुपमे लेल जाए।

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