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Friday, October 18, 2013

दूटा पाइ (दोसर संस्‍करण)

दूटा पाइ

हलहोरिमे फेकुओ दिल्लीक रैलीमे जाइक विचार केलक। परसू सँझुका गाड़ी सभ पकड़त। दिल्लीक लड्डूक बात फेकुआकेँ बूझल। तँए खाइक मन रहए। अवसर भेटल छेलै। किएक तँ ने गाड़ीमे टिकट लागत आ ने संगबेक कमी। मात्र चारि दिनक खेनाइटा अपन खर्च। गाड़ीमे लोक बेसी खाइतो नै अछि किएक तँ पेशाब-पैखानाक समस्या रहै छै। फेकुआ माएकेँ कहलक-
“माए, परसू दिल्ली जेबौ। बटखर्चाक ओरियान कऽ दिहेँ?”
माए पुछलकै-
“की सभ लेबही?”
“दू सेर चूड़ा लऽ कऽ डाक्टर साहैब-नागेंद्रजी चलैले कहलखिनहेँ। हमरो दू सेर चूड़ा कूटि दिहेँ।
फेकुआक बातक बि‍सवास माएकेँ नै भेलै। मोने-मन सोचलक जे दू सेर चूड़ा तँ एक दिनमे लोक खाइए। चारि दिन केना पुरतै? फेर मनमे एलै, दू सेर चूड़ो आ चारि-दुना आठटा रोटीओ पका कऽ दऽ देबै। कहुना भेल तँ रोटी सिद्ध अन्न भेल।
गाड़ी अबैसँ पहिनइ जुलुस संग फेकुआ स्टेशन पहुँचल। जिनगीक पहिल दिन फेकुआ ट्रेन-गाड़ीमे चढ़त। प्लेटफार्मपर भीड़ देखि फेकुआक मन घबड़ेबो करए आ उत्साहो जगै जे एते लोक चढ़त से हेतै आ हमरा बुते की नै चढ़ि हएत। निर्मली-सकरी बीच छोटी लाइन। गाड़ीओ छोटकीए। मुदा सकरीसँ दिल्ली लेल गाड़ीओ बड़की आ लाइनो बड़की। गाड़ीमे चढ़ि फेकुआ सकरी पहुँचल। दिल्लीक गाड़ी सकरीमे लगले रहए। हाँइ-हाँइ कऽ निर्मलीक गाड़ीसँ उतरि दिल्लीवाली गाड़ीमे सभ चढ़ल। गाड़ी खुजल।
ओना सकरीसँ दिल्ली जाइले चौबीस घंटा लगैत। मुदा आइ से नै भेल। चालीस घंटामे पहुँचल। मुदा चालीस घंटा केना बि‍तल से फेकुआ बुझबे ने केलक। हलहोरिएमे पहुँच‍ गेल। ने एक्को बेर खेलक आ ने पानि पीलक। मुदा तैयो भुख बुझिए ने पड़ैए। गाड़ीसँ उतरै काल फेकुआ खिड़की देने प्लेटफार्म दिस तकलक, जेरक-जेर सिपाही घुमैत। मुदा फेकुआक नजरि केतौ नै अँटकि, मोटका सिपाहीपर अँटकल। ओकर मनही पेटपर नजरि गेलै। तैपर सँ छह आँगुर चाकर ललका बेल्ट। जे बेर-बेर निच्चाँ ससरैत। चानि‍पर सँ पसीनाक टघार। दस किलोक बन्दुक कान्हमे लटकल। मुदा तखने नागेन्द्रजी सेहो अपन छबो संगी संग हाथसँ सभकेँ उतरैक इशारा दैत। औगता कऽ फेकुओ उतरल।
प्लेटफार्म टपि जहाँ फेकुआ मुसाफिर खाना प्रवेश करए लगल आकि ममियौत भायपर नजरि गेलै। ममियौत भाय रतना चरिपहिया गाड़ीक ड्राइवर। अपना मालिककेँ गाड़ी पकड़बैले आएल। भायपर नजरि पड़िते फेकुआ गोड़ लगलक। गोड़ लगि लालकिला मैदान दिसक रस्ता धेलक। पाछूसँ झटकि कऽ आगू बढ़ि रतना फेकुआसँ घरक कुशल पुछलक। कुशलक जवाब नै दऽ फेकुआ कहलक-
“काल्हि साँझ धरि लालकिला मैदानमे रहब तँए ओत्तै अबिहऽ। अखनि‍ नै रूकबह।
“कनी चाहो पीब ने ले?”
“नै अखनि‍ कुछो नै पीबह।
फेकुआ बढ़ि गेल। मुदा रतनाकेँ पाछू घुमैक डेगे ने उठैत। फेकुए दिस तकैत। मोने-मन विचारए लगल, जे हो-ने-हो काल्हि भेँट नै हुअए। ओते लोकमे के केतए रहत तेकर कोन ठीक। तहूमे सँझुका बात कहलक। दिल्ली छिऐ। कोन ठीक जे बिजलीक इजोत रहतै की नै। एते लोकमे तँ दिनोमे अन्हराएले रहत। एक्को दिन मेजमानीओ ने करौलिऐ। गाममे दीदी सुनत तँ की कहत? ओ की कोनो दिल्लीकेँ दिल्ली बुझैत हएत। ओ तँ गामे जकाँ बुझैत हएत। जहिना गाममे सभकेँ सभ चिन्है छै तहिना। मुदा ई तँ दिल्ली छी। भाड़ाक एक कोठरीमे सोहर गाैल जाइ छै आ दोसरमे कन्नारोहट होइ छै...।
विचित्र स्थितिमे रतना पड़ि‍ गेल। आइ धरि रतनाक बुधि‍पर एहेन भार कहियो नै पड़ल। एकाएक मनमे एलै, कौल्हुका छुट्टी लऽ कऽ भोरे फेकुआक भेँट करब। भेँट भेलापर लालकिला, जामा मस्जिद देखा देबै।
दोसर दिन भोरे रतना फेकुआक भेँट करै विदा भेल। लालकिला मैदान पहुँचि‍ते भेँट भऽ गेलै। भेँट होइते दुनू भाँइ गामेक बसिआ रोटी खा पानि पीलक। भरि दिन संगे, रैली समाप्त कऽ दुनू गोटे डेरापर आएल। पैघ सेठक ड्राइवर रतना, तँए डेरो नीक। सभ सुविधा। मुदा रतनाक डेरासँ फेकुआक मनमे खूब खुशी नै भेलै। मन पड़ि गेलै माएक ओ बात जे हरिदम बजैत-
“अनकर पहि‍र कऽ साज-बाज छीनि लेलक तँ बड़ लाज।
अपना जएह रहए ओइसँ सबुर करी। मुदा माएक बात फेकुआक मनमे बेसी काल नै अँटकल। किएक तँ तीन दिनसँ नहाएल नै छल। जइसँ देहमे लज्जतिए ने बूझि पड़ै। रतनाकेँ कहलक-
“भैया, पहिने हम नहेबह। बिनु नहेने मन खनहन नै हएत। ओना ओंघीओ लगल अछि। तँए नहा कऽ खेबह आ भरि मन सुतबह।
फेकुआकेँ रतना बाथरूम देखा देलक। बिजली जरैत, पानि चलैत बाथरूम देखा रतना गैस चुल्हि पजारि भानस करए लगल। भरि मन फेकुआ नहाएल। मन शान्त भेलै। मनमे उठलै, जहन‍‍ दिल्ली आबि गेलौं तँ किछु लइए कऽ जाएब। रतना लग आबि बैसल। भानसमे देरी देखि रतना कहलकै-
“बौआ देखही, ई दिल्ली छिऐ। ऐठाम लोक सोलह-सोलह घंटा खटैए। दरमाहा संग ओभरटाइमोक पाइ भेटै छै। मुदा जिनगी जीबैक लूरि‍ नै रहने सभ चलि जाइ छै। ने गामक कर्जसँ मुक्ति होइ छै आ ने अहीठाम चैनसँ रहैए। भुतलग्गु जकाँ हरिदम बूझि पड़तौ। तोरा ऐ दुआरे कहि दइ छियौ जे तूँ अपन छोट भाए छँह।
रतनाक बात सुनि कनीकाल गुम रहि फेकुआ कहलक-
“भैया, तूँ सभ तरहे पैघ छहक। जहन‍‍ तोरा लग छी तँ तोहीं ने हमर नीक-बेजाए बुझबहक।
फेकुआक बातसँ रतनाकेँ अपन जिम्माक भार बूझि पड़लै। बाजल-
“देखही बौआ, अखनि‍ जे कहलियौ से स्टील फैक्ट्रीक स्टाफक बात कहलिऔ। मुदा सभ एहने अछि सेहो बात नै छै। एहनो लोक अछि जे अपन मेहनति‍ आ लूरि‍सँ गरीब रहितो अमीर बनि गेल। अपने इलाकाक ढोरबा छी। जेकरा हम तँ ढोरबे कहै छिऐ मुदा ओ ढोढ़ाइबाबू बनि गेल। जहन‍‍ गामसँ आएल तँ बौआ-ढहना कऽ चारि दिन पछाति‍ ऐठीम आएल। ओकरा शैलूनमे नोकरी लगा देलिऐ। किछु दिन तँ काज करैमे लाज होइ। किएक तँ ओ धानुक छी। मुदा किछुए दिनक पछाति तेहेन हाथ
बैस गेलै जे लौओकेँ उन्नैस करए लगल। अपनो खूब मन लागए लगलै। दरमहो बढ़ि गेलै। तीन साल पछाति‍ जेना ओकरा ऐठीमसँ मन उचटि गेलै। सोचलक जे जहन‍‍ लूरि‍ भऽ गेल अछि तहन‍‍ केतौ कमा कऽ खा सकै छी। से नै तँ गामेक चौकपर दोकान खोलब। अपना जँ दू पाइ कम्मो हएत तइसँ की, समाजक उपकार तँ हेतै। सएह केलक। ले बलैया
, गामक लोक कियो ठाकुर तँ कियो नौआ तँ कियो हजमा कहए लगलै। घरक जनिजातिकेँ नौआइन कहए लगलै। सभसँ दुखद घटना तहन‍‍ भेलै जहन‍‍ कथा-कुटुमैती आ जातिक काजसँ अलग कएल गेलै। मुदा ऊहो कर्म-योगी। गामकेँ प्रणाम कऽ अपन परिवार संग दिल्ली शहर चलि आएल। वाह रे वनक फूल, ऐठाम आबि कऽ अपन शैलूनक कारोबार ठाढ़ कऽ लेलक।
छअटा स्टाफ रखने अछि अखनि‍। बहिनक बिआह इंजीनियरसँ केलक। हमहूँ बिआहमे रहिऐ।
फेकुआ बाजल-
“हमरो कोनो लाज-सरम नै हएत। जे काजमे लगा देबह, हम पाछू नै हटबह।
रतना-
“परसू रवि छिऐ। हमरो छुट्टी रहत। ताबे दू दिन अरामे कर।
फेकुआ-
“हमरा ओते सूतल नीक नै लगतअ। चलि जेबह बुलैले।
रतना-
“रौ बुड़िबक! गाममे लोक खिस्सा कहै छै जे फल्लां तेहेन काबिल छै जे एक्के पाइमे बेचि लेतौ। मुदा ऐठीम सभ काबिले छै। तँए देखबिही जे ऐठीम सभसँ पैघ कारबार मनुक्खेक खरीद-बिकरीक छै। देहाती बूझि कोइ ठकि कऽ बेचि लेतौ। कहतौ जे हवा-जहाजक नोकरी धड़ा देबौ आ चलि जेमए आन देश।
रतनाक बात सुनि फेकुआ क्षुब्ध भऽ गेल। मुदा मनमे एलै, जेना हम बेदरा रही तहिना भैया कहैए। मुदा किछु बाजल नै। दम साधि कऽ रहि गेल।
तीन दिनक पछाति‍ फेकुआ कपड़ा सिलाइक टेलरमे काज शुरू केलक। दू हजार रूपैआ दरमाहा। भिनसर छह बजेसँ राति नअ बजे धरिक डयूटी। बीचमे एक बेर अदहा घंटा जलखै करैले आ एक घंटा खाइ बेर छुट्टी। फेकुआक मनमे उठल जे ड्यूटी तँ बीसो घंटा कऽ सकै छी मुदा सुतैक जे आठ घंटा छै से केना पुरत। मुदा फेर मनमे एलै, जहन‍‍ दू पाइ कमाए चाहै छी तहन‍‍ तँ सभ सुख-भोग कमबए पड़त...।
दोकानमे आठटा कारीगर। आठो नोकरे। फेकुआ अनारी, तँए दोकानक झाड़-बहारसँ काज शुरू केलक। कपड़ा काटब आ सिलाइ मशीन चलौनाइ सेहो कनी-कनी सीखए लगल।
दुइए माए-बेटा फेकुआ। दस साल पहिनइ बाप मरि गेल। अपने दिल्ली धेलक आ माए गाममे। मुदा माएओ थेहगरि। पुरुखे जकाँ बोनि-बुत्ता करैत। नोकरी होइते फेकुआकेँ माए मन पड़लै। माइए नै गामो मन पड़लै। मन पड़ल गामक स्मृति। माएक ममता जागि‍ मनकेँ खोरए लगलै। मनमे उठलै, परदेशिआ परिवारमे गेटक-गेट कपड़ा.., राशि-राशिक चीज-बौस.., रेडियो, घड़ी, टी.भी, मोबाइल इत्यादि। केकरा नै नीक वस्तुक सि‍हन्ता होइ छै? मुदा ओहेन सिहन्ते की जेकरा पुरबैक ओकातिए ने रहए? दू हजार महि‍ना रूपैआक गरमी फेकुआक मनमे तरे-तर चढ़ि गेल। केना नै चढ़ैत? मुदा आमदनिएक गरमी चढ़ल, खर्चक पानि परबे ने कएल। सोचलक जे सभसँ पहिने माएकेँ चिट्ठी लिखि जना दिऐ।
आठ दिन पछाति‍ फेकुआ रतनाकेँ कहलक-
“भैया, हमरा तँ लिखल-पढ़ल नै होइए। मुदा जहन‍‍ नोकरी लगि गेल तँ माएकेँ जनतब देब जरूरी अछि। किएक तँ ओकरा होइत हेतै जे केतए बौआइ-ढहनाइए।”
रतनोक मनमे जँचल। वी.आइ.पी. बैगसँ पोस्ट-कार्ड निकालि रतना चिट्ठी लिखैले तैयार भेल। पुछलक-
“बाज की सभ दीदीकेँ लिखबीही?”
फेकुआ लिखबए लगल-
स्थान- दिल्ली
ता.- ०५.०६.२००७

माए,
गोड़ लगै छियौ,
भगवानक दया आ तोरा सबहक असीरवादसँ तेहेन नोकरी भेटल जे कहियो मनमे नै आएल छल। दू हजार रूपैआ महि‍नाक तलब। अपना केते खर्च हएत। जे उगड़त से मासे-मास पठा देबौ। बेङबाकाकाकेँ कहियनि जे चिमनीपर जा कऽ ईंटाक दाम बूझि अबैले। पहिने घर बना लेब। अपना कलो नै छौ, सेहो गड़ा लेब। घरक आगू जे मलिकाबाक चौमास छै, ऊहो कीनि लेब।
तोरे फेकुआ।

सात बजे भिनसर। मेघौन समए। कखनो-कखनो सुरूज देखि पड़ैत आ फेर झँपा जाइत। झिहिर-झिहिर पुर्बा हवा चलैत। पान-छह गोटे संग फेकुआक माए रामसुनरि धन-रोपनी करए विदा भेल। किछुए आगू बढ़लापर डाक-प्यूनकेँ देखलक। मुदा आन स्त्रीगण जकाँ रामसुनरि नै जे दिनमे दू बेर मोबाइलसँ तीन पन्नाक चिट्ठी आ तैपर सँ जे समदिया भेटल ओकरा दिया समाद पठौत। मनमे कोनो हलचल नै। रामसुनरिक आगूमे आबि हँसैत डाकप्यून कहलक-
“काकी, फेकुआक चिट्ठी एलौहेँ।
कहि झोरासँ निकालि पोस्ट कार्ड देलक। छबो स्त्रीगण डाकप्यूनकेँ चारू भागसँ घेरि कऽ ठाढ़ भेल। हाथमे पोस्ट-कार्ड अबिते रामसुनरिक मन बिहाड़िमे उड़ैत ओइ सूखल पात जकाँ जे सरंगोलिया उठि अकासमे उड़ैत, तहिना उड़ि गेल। जिनगीक पहिल पत्र। मनमे एलै, पहिने केकरोसँ पत्र पढ़ा ली। ओना डाकप्यून लगमे सँ चलि गेल। मुदा तेकर अपशोच नै भेलै। किएक तँ जाधरि प्यून लगमे छल ताधरि पत्र पढ़ेबाक विचार मनमे आएलो नै छेलै। फेर मनमे एलै, काज कामै नै करब। अखनि‍ खूटमे बान्हि कऽ रखि‍ लइ छी आ जहन‍‍ निचेन हएब तहन‍‍ पढ़ा लेब। सएह केलक।
गोसाँइ डुमैत रामसुनरि निचेन भेल। निचेन होइते चिट्ठी पढ़बै लऽ श्याम ओइठाम विदा भेल। श्यामोक घर लगे। पोस्ट-कार्ड हाथमे लऽ श्‍याम सत्यनारायण कथा जकाँ पढ़ए लगल। मुदा दोसरे पाँति‍- दू हजार रूपैआ महिना तलब- मे रामसुनरि ओझरा गेलि। मोने-मन सोचए लागलि, छौड़ाकेँ घरक सोह एलै। बुधि‍ओ फुटैक उमेर भेल जाइ छै। आब कहिया चेतन हएत। अगिला साल तक बिआहो कइए देबै। असगरे राकश जकाँ अँगनामे रहै छी। लगले विचार बदलि गेलै। बुदबुदाए लागलि- केना लोक कहै छै जे मसोमातक बेटा दुइर भऽ जाइ छै। विचारमे डुमल रामसुनरि। तैबीच श्याम बाजल-
“सभ बात बुझलिऐ ने काकी?”
श्यामक पुछबसँ रामसुनरिक भक्क खुजल। बाजलि-
“बौआ, चिट्ठी पढ़ल भऽ गेलह। की सभ छौड़ा लिखने अछि?”
काकीक मनक बात नै बूझि श्याम खौंझा गेल। मुदा किछु बाजल नै। चिट्ठीकेँ निच्चाँमे रखि‍ श्याम ओहिना मुहजुआनीए कहए लागल। मुदा पोस्ट-कार्डकेँ निच्चाँमे राखल देखि वेचारी रामसुनरिकेँ भेलै जे अपने दिससँ कहैए। जइसँ विश्वासे ने भेलै। मुदा झगड़ो करब उचित नै बुझलक। किएक तँ बेटाक पहिल चिट्ठी छी तँए अशुभ बेवहार नीक नै।
दोसर दिन एकटा पोस्टकार्ड कीनि रामसुनरि चिट्ठी पढ़बैओ आ लिखबैओ लेल सोहन ऐठाम गेलि। दुनू पोस्टकार्ड- लिखलहो आ सदो- रामसुनरि सोहनकेँ दैत कहलक-
“बौआ, पहिने पढ़ि कऽ सुना दैह। तहन‍‍ लिखिओ दिहऽ।
पत्र पढ़ि कऽ सोहन सुना देलकै। समाचार सुनि रामसुनरिक मन खुशीसँ उत्साहित भऽ गेलै। बाजलि-
“बौआ आब चिट्ठी लिखि दियौ। सोहन चिट्ठी लिखए लगल-
परमानपुर
ता. ०३.०७.२००७
फेकू।
असीरवाद।
अखनि‍ हम अपने थेहगर छी तँए हम्मर चिन्ता जुनि कर। रहैले घरो अछिए। एक घैल पानि स्‍कूलबला कलपर सँ लऽ अबै छी वएह भरि दिन चलैए। तँए पानिओक दिक्कत नहियेँ अछि। नहाइले धारो आ पोखरिओ अछि। कहियो-काल बर्खोमे नहा लइ छी। तँए ऐ सभले तूँ चिन्ता किए करै छेँ? अखनि‍ खाइ-खेलाइक उमेर छौ। तँए कमा कऽ जे मन फुड़ौ से करिहेँ। अगिला साल धरि अबिहेँ, बिआहो कऽ देबौ। असगरे अँगनामे नीक नै लगैए।
माए, रामसुनरि।‍

साल भरि बि‍त गेल। जहिना गाममे रामसुनरि अपना काजमे हराएल तहिना दिल्लीमे फेकुओ। साले भरिमे फेकुआ कपड़ा सिलाइक कारीगर बनि गेल। अपना देहक कपड़ा-लत्ता किनैत-किनैत फेकुआक सालो भरिक दरमाहा सठि गेल। माएक जिनगी तँ जहिनाक तहिना रहल मुदा फेकुआक जिनगीमे बदलाउ आएल। दुब्बर-दानर फेकुआ फूटि कऽ जुआन भऽ गेल। कपड़ा सिआइक लूरि‍ भेने आत्मबलो मजगूत भेलै। मुदा गामक जिनगी आ दिल्लीक जिनगीक बीचक संघर्ष फेकुआक मनमे चलिते रहल।
रवि दिन। रतनो आ फेकुओक छुट्टी रहए। सूति उठि दुनू ममियौत-पिसियौत विचारलक जे साल भरिसँ बगेरी नै खेलौं। से नै तँ आइ बगेड़ीए आनब। तैबीच रोडपर देखलक जे पुलिसक गाड़ी इम्हरसँ-इम्हर कऽ रहल छै। दुनू भाँइकेँ कोनो भाँजे ने लगै। कोठरीसँ निकलि रतना चाहबलासँ पुछलक। चाहबलासँ भाँज लगलै जे महल्लासँ एकटा जुआन लड़की आ एकटा सेठक बेटाक अपहरण रातिमे भऽ गेलै। समाचार सुनि दुनू भाँइ डरा गेल। बगेरीक विचार छोड़ि गामक गप-सप्‍प करए लगल।
रतना बाजल-
“बौआ, तोरा साल लगि‍ गेलह। एक बेर गाम जा सबहक भेँट केेने आबह।
गामक नाओं सुनिते फेकुआक मन उड़ि कऽ दोसर दुनियाँमे पहुँच‍ गेलै। मन पड़लै- चिमनीक ईंटा.., चापाकल.., घरक आगूक चौमास...।
मन गामक सीमापर अँटकि गेलै। सीमापर सँ अँगना पहुँचैक साहसे ने होइ। किएक तँ बाटेपर माएकेँ ठाढ़ भेल देखए। की कहैत हएत माए? साल भरि भऽ गेलै, ने एक्कोटा पाइ पठौलक आ ने एक्को खण्ड साड़ी। कहियो काल जे अस्सक पड़ैत हएत तँ के दबाइओ आनि कऽ दैत हेतै। पौरुकाँ जे चिट्ठी आएल, तइ दिनसँ दोसर चिट्ठीओ ने आएल हेन। हमहूँ तँ नहियेँ पठौलिऐ। छुच्छे चिट्ठीए लिखने की हेतै। मोने-मन बुढ़िया सरापैत हएत। कहैत हएत जे छौंड़ा ढहलेलक ढहलेल रहिए गेल। मुदा हमहीं की करब? छुच्छे हाथे गामे जा कऽ की करब? टिकटो जोकर पाइ नइए। चिन्ता आ सोगसँ फेकुआक मन दबा गेल। कोनो बाटे ने सुझैत। मनक भीतर बिर्ड़ो उठि गेलै। बिर्ड़ोक हवामे फेकुआक मन सोंगक तरसँ निकलि गेल। मनमे एलै, गाम तँ गाम छी। जैठाम लोक माघक शीतलहरी आगि तापि कऽ काटि लइए। बिनु कम्मल-सीरकक जाड़ बिता लइए, गाछ तर जेठक रौद काटि लइए। मुदा दिल्लीमे से हएत? साल भरिक कमाइ साल भरिक मौसिमक अनुकूल कपड़ेमे चलि गेल। नै लैतौं तँ सेहो नै बनैत। लेलौं तँ गाम छूटि‍ गेल। जहिना घनघोर वादलक फाँटसँ सुरूजक रोशनी छिटकैत तहिना फेकुओक मनमे भेल। रतनाकेँ कहलक-
“भैया, एकटा चिट्ठी लिखि दैह।
लगेमे रतनाकेँ सभ कि‍छु छेलै। पोस्ट-कार्ड निकालि लिखैले तैयार भेल। फेकुआ लिखबए लगल-
दिल्ली
ता. ११.०८.२००८
माए,
गोड़ लगै छियौ।
मनमे बहुत रहल हेतौ जे तोरो बेटा दिल्लीमे नोकरी करै छौ। मुदा सभ हरा गेल। खाली एक्केटा चीज बँचल जे ऐठाम-दिल्लीसँ, ओइठाम-गाम धरि जीबैक रस्ता धड़ा देत। तँए खुशी अछि। हाथ खाली अछि। गाम केना आएब?
फेकुआ।

चारिए दिनमे चिट्ठी माएक हाथ पहुँचल। चिट्ठी हाथमे अबिते रामसुनरि निङहारि-निङहारि देखए लागलि‍। छौड़ा केतौ अछि जीबैत तँ अछि। बेटा धन छी। केतौ रहऽ। आब तँ फूटि कऽ जुआन भऽ गेल हएत। जहिना चाह-पान खा-पी बड़का लोकक धोधि फूटि जाइ छै, तहिना तँ फेकुओकेँ भेल हएत। किएक तँ ऊहो ने चाह-पान खाइत-पीबैत हएत। गोराइओ गेल हएत। मोछो-दाढ़ी भऽ गेल हेतै। जहिना भगवान घरसँ पुरुख उठा लेलनि, तहिना तँ फेर दैयो देलनि। जुआन बेटापर नजरि पहुँचि‍ते रामसुनरिक मन खुशीसँ नाचि उठलै। मोने-मन बुदबुदाए लागलि‍-
“दस बर्खसँ घरमे पुरुख नै छल तँए कि‍ कोनो पुरुखक घरसँ हमर घर अधला चलल। संतोषे गाछमे मेबा फड़ैए।”
परसुका बात मन पड़लै, चाहक दोकानपर परसू पंडीजी कहैत रहथिन जे ऐ बेर शुरूहे अगहनसँ घन-घनौआ लगन अछि। हमहूँ फेकुआक बिआह कइए लेब। बिआह मनमे अबिते सोचलक, बहुत दिनसँ पाँच गोटेकेँ अँगनामे हाथो नै धुऐलौं। सेहो कइए लेब। समाजक भोजमे तँ नै सकब मुदा जहाँ धरि सकरता हएत, तइमे पाछुओ नै हटब। लोक ई नै बुझै जे मसोमातक बेटाक बिआह होइ छै। डफरा-बौसली हवागाड़ी सेहो लइए जाएब। अनका जकाँ एक ढकियाक मुँह नै पसारब। अपना बेटी-जमाएकेँ जे देत से देत। हम किए मंगिऔ। जे आदमी पोसि-पालि कऽ एकटा मनुख देबे करत तेकरासँ फेर की मंगिऔ? किछु नै मंगबै। लूरि‍ रहत तँ कामधेनु बना कऽ राखब नै तँ माटिक मुरूत रहत। एकाएक रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। पोस्ट-कार्ड निकालि हियासि-हियासि देखए लगली। फुटा-फुटा करिया अक्षर तँ नै बुझैत मुदा कृष्ण जकाँ कारी मुरूत जरूर बूझि पड़ैत। चिट्ठी पढ़ाबै लऽ रामसुनरि विदा भेल। अँगनासँ निकलिते मनमे उठलनि, आब की कोनो पहुलका जकाँ लोककेँ बारह बर्ख कटिया सोन्हबए पड़ै छै। आब तँ साले भरिमे लोककेँ धिया-पुता भऽ जाइए। कहुना भेल तँ हमरो फेकुआ शहरे-बजारक भेल कि‍ने। एते बात मनमे अबिते मुहसँ हँसी निकलल। असगरे। तँए कानकेँ सुनै दुआरे तेना रामसुनरि जोरसँ बजैत जेना दोसरकेँ कहैत होइ। फुसीयाहोक बेटी जुग जितलक। भाग तँ मुँह-कान नीक नै छै। नै तँ जुगमे भूर करैत। बिआहक आठमे मासमे बेटी भऽ गेलै। ई तँ धैनवाद ऐ समाजकेँ दी जे एक सूरे सभ बाजल जे सतमसुआ बच्चा छिऐ। जँ एना बिआहक बि‍दागरीमे हएत तँ केहेन होएत? मुदा ओ बच्चा सतमसुआ नै। समाज झूठो बाजि ओकरा पालन-पोसन कऽ बचेलक।
रविक दरबज्जा लग अबिते रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। रवि दरबज्जेपर बैसि किछु लिखै छल। रामसुनरिकेँ लग अबिते रबि उठि कऽ चौकीपर बैसबैत पुछलक-
“काकी फेकू भैयाक बिआह कहिया करबीही? हमहूँ बरियाती जेबौ?”
रविक बात सुनिते रामसुनरिक मन वृन्दाबनक रास लीलापर पहुँच‍ गेल। कनीए खान कृष्णक रास-लीला देखि घूमि कऽ आबि चिट्ठी पढ़बो आ लिखबो लेल रबिकेँ कहलक। चिट्ठी पढ़ि कऽ रबि सुना देलक। पत्र लिखैले तैयार होइत बाजल-
“की सभ लिखब?”
रामसुनरि लिखबए लागलि-
परमानपुर
ता. १५.०८.२००८
बौआ फेकू।
हम तोरा कमाइक कोनो आशा केने छी जे पाइ नै छौ तँ गाम केना ऐमे? केकरोसँ पैंच-खोंइच लऽ कऽ चलि आ। तीन भुरकुरी धान-गहुम रखने छी, वएह बेचि कऽ दऽ देबै। आब तहूँ चेतन भेलेँ। लोक कलंक जोड़त। हमरो आब ऐ दुनियाँमे नीक नै लगैए। तँए सोचै छी जे अपन काज जल्दी पुरा ली। अगते अगहनमे चलि अबिहेँ। ताबे कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। अखनि‍ हमहूँ थेहगर छी मुदा ऐ जिनगीक कोन ठेकान छै। आब ई परिवारो आ दुनियोँ तोरे सबहक ने हेतौ। समैपर चलि अबिहेँ, जइसँ काज बिथुत ने होउ।
माए ।
माएक पत्र सुनि फेकुआ मोने-मन खूब खुशी भेल। मनमे भेलै, हमरो काज ऐ दुनियाँ, ऐ समाजमे छै। मुदा मनमे खुशी बेसी काल टिकलै नै। लगले माघक कुहेस जकाँ बुधि‍ अन्हरा गेलै। कोन मुँह लऽ कऽ गाम जाएब। साल भरिक कमाइ माएक हाथमे की देबै। ई बात सत्य जे हमरा भरोसे माए नै जीबैए। मुदा हमरा ओकर कोनो दायित्व नै अछि, सेहो तँ नै। हे भगवान कोनो गर सुझाबअ।
पनरहे दिनक पछाति एकटा घटना घटल। फेकुआक नोकरी छूटि गेल। ओना नओ गोटे संग फेकुआ काज करैत। मुदा आठो पुरना कारीगर समयानुसार अपनाकेँ बदलैत जाइत रहए नव-नव डिजानिक कपड़ा सिबैक लूरि‍ सिखैत छेलए। फेकुआ अनाड़ी, तँए शुरूहसँ सिलाइक काज सिखए पड़लै। साल भरिमे कहुना कऽ पुरना दिल्लीक कारीगर बनल। मुदा फैशनमे बिहाड़ि एने फेकुआ उड़ि कऽ कातमे खसल। ओना मालिकोक मनमे बेइमानी घोंसियाएल रहए। बेइमानीक कारण छल पाइबलाक चसकल मन। एकटा अट्ठारह बर्खक लड़की कारीगर दू हजार दरमाहामे भेँट गेलै।
सबा बर्खसँ शहरमे रहैत-रहैत फेकुओक सूतल बुधि‍ जागि‍ कऽ करोट लिअ लगलै। जइसँ आत्मबलोक जनम भऽ चुकल छेलै। मुदा खिच्चा। सक्कत बनिए रहल छेलै। जहिना मालिक नोकरीसँ हटैक बात कहलकै तहिना फेकुआ हिसाब मंगलक। हिसाब लऽ फेकुआ डेरा विदा भेल। पाइ रहबे करैए। रस्तेमे काॅफी पीब डेरा आएल। डेरा आबि पंखा खोलि पलंगपर ओंघरा गेल। ओंघराइते मनमे अाबए लगलै- ई शहर छी, गाम नै। शहरमे जइ तेजीसँ मशीन, फैशन आ जीवन-शैली बदलि रहल अछि, ओइमे हमरा सन-सन मुरूखक कोन बात जे पढ़लो-लिखल लोक ओंघरनियाँ देत। नवका मशीन पुरना इंजीनियरकेँ धक्का देत। पुरना बुधि‍केँ नवका बुधि‍ धक्का देत। मुदा नीक-अधला के बूझत? सभ भोग-विलासक जिनगीक पाछू आन्हर बनि गेल अछि। बाप रे! ई तँ भुमकमक लक्षण छी। फेर मनमे एलै, भरिसक हमर माथ, नोकरी छुटने तँ ने चढ़ि गेल। ओह! अनका विषएमे अनेरे ओझराइ छी। जेकरा भोगए पड़तै ओकरा सुआस बूझि पड़ै छै, तँ हमरे की। ठनका ठनकै छै तँ कियो अपना माथपर हाथ लऽ साहोर-साहोर करैए। फेर मनमे एलै, हमहूँ तँ जूड़शीतलक नढ़िए जकाँ भेल छी। एक दिस चारूभागसँ कुकुर दाँतसँ पकड़ि-पकड़ि तीड़ैए तँ दोसर दिस शिकारी सभ लाठी बरिसबैए। गामक लूरि‍ सीखलौं नै, सीखि लेलौं शहरक लूरि‍। तँ लिअ आब। क्‍विन्‍टलिया बोरामे भरि-भरि रखने जाउ। फेकुआक मन औनाए गेल। दुबट्टिएमे हरा गेल। तिनबटिया-चारिबट्टिया तँ बाँकीए अछि। माएपर तामस उठलै। बुदबुदाए लगल-
“ई बुढ़िया गछा लेलक जे शुरूहे अगहनमे चलि अबिहेँ। कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। बिआह कइए देबौ।
एक दिस केचुआएल कनियाँक बदलैत रूप तँ दोसर दिस माएक सिनेह। समुद्रक पानि जकाँ फेकुआक मनकेँ अस्थिर कऽ देलक। सोचए लगल जे माए नीक छोड़ि कहियो अधला नै केलक आ ने कहियो सोचलक, ओकरापर आँखि उठाएब अनुचित छी। काल्हिए गाम चलि जाएब। बिआहो कइए लेब। दू गोटे पति-पत्नी ओहेन लोक एकठाम हएब जे किछु कऽ सकैए।
फेकुआ दू-पाइक आशा हृदैमे समेटि सँझुका गाड़ी पकड़ि, तेसर दिन गाम पहुँच‍ गेल।

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