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Friday, October 18, 2013

भैयारी (दोसर संस्‍करण)

भैयारी

मैट्रिक परीक्षा दऽ दीनानाथ आगू पढ़ैक आशसँ, संगीओ-साथी आ शिक्षको ऐठाम जा-जा विचार-विमर्श करैत रहए। बिनु पढ़ल-लिखल परिवारक रहने, कौलेजक पढ़ाइक तौर-तरीका नै बुझैत। ओना ओ हाइ स्कूलमे थर्ड करैत मुदा क्लासमे सभसँ नीक विद्यार्थी। सभ विषए नीक जकाँ परीक्षामे लिखने, तँए फेल करैक चिन्ता मनमे एक्को मिसिआ रहबे ने करैए।
मुरूख रहितो माए-बाप बेटाकेँ पढ़बैमे जी-जान अरोपने। ओना घरक दशा नीक नै मुदा पढ़बैक लीलसा दुनूक हृदैमे कूट-कूट कऽ भरल। जहन‍‍ दीनानाथ मैट्रिक परीक्षा दइले दरभंगा सेन्टर जाइक तैयारी करए लगल, तहन‍‍ माए अपन नाकक छक, जे डेढ़ आना माने छह पाइ भरि रहए, बेचि कऽ देलकै। अगर जौं माए-बापक मन बेटा-बेटीकेँ पढ़बैक रहत आ थोड़बो मेहनतिसँ ओ पढ़त तँ लाख समस्याेक बावजूद ओ पढ़बे करत। तहीमे सँ एक दीनानाथो।
काल्हि एगरबजिया गाड़ीसँ परीक्षा दिअए जाएत तँए आइए साँझमे पिता-रामखेलाैन पत्नी सुमित्राकेँ कहलक-
“काल्हि एगारह बजे बौआ गाड़ी पकड़त तँए अखने केकरोसँ आध सेर दूध आनि कऽ पौड़ि दियौ। दहीक जतरा नीक होइ छै।
माएओ मनमे जँचलै। आध सेर दूध पौड़ैक विचार माए केलक आ मोने-मन बरहम बाबाकेँ कबुला केलक जे अहाँ हमरा बेटाकेँ पास करा देब तँ कुमारि भोजन कराएब। संगे हाँइ-हाँइ कऽ चिकनी माटि लोढ़ीसँ फोड़ि अछींनजल पानिमे सानि, दियारी बना, साफ पुरना कपड़ाक टेमी बना, दियारीमे करूतेल दऽ साँझ दिअए बरहम स्थान विदा भेल। रस्तामे मोने-मन बरहम बाबाकेँ कहैत जे हे बरहम बाबा कहुना हमरा बेटाकेँ पास कऽ दिहक। तोरेपर असरा अछि।
स्कूलमे सभसँ नीक विद्यार्थी दीनानाथ, मुदा नीक रहितो क्लासमे थर्ड करैत। एकर कारण रहए जे हाइ स्कूल सेेक्रेट्रीक मातहत चलैत। जइसँ स्कूलक सर्वेसर्वा सेक्रेट्रीए। इज्जतो दुआरे आ फीसोक चलैत स्कूलमे फस्ट सेक्रेट्रीएक लगुआ-भगुआ करैत। जँ कहीं सेक्रेट्रीक समांग नै रहैत तहन‍‍ हेडमास्टरक समांग फस्ट करैत। मुदा ऐ बैचमे सेक्रेट्रीओक समांग आ हेडमास्टरोक समांग। तँए सेक्रेट्रीक समांग फस्ट करैत आ हेडमास्टरक समांग सेकेण्ड आ दीनानाथ थर्ड। जे फस्ट करैत ओकरा पूरा फीस आ सेकेण्ड-थर्डकेँ अदहा फीस माफ होइ छेलै। ओना आन शिक्षक सभकेँ ऐ बातक क्षोभ होन्‍हि‍ मुदा कैयो की सकै छला। किएक तँ आन शिक्षक सबहक गति कोठीक नोकरसँ नीक नै रहनि, सात घंटी पढ़ौनाइ आ डेढ़ सए रूपैआ महि‍ना पौनाइ मात्र रहनि। मुदा तैयो ओ सभ इमानदारीसँ काज करैत रहथि‍। असि‍समेंटक चलनि सेहो रहए। बीस नम्बरक हिसाबसँ सभ विषयक असि‍समेंट होइत। खाली समाजे-अध्ययनक हिसाब अलग रहए। असि‍समेंटक नम्बर परीक्षाक नम्बरमे जोड़ि कऽ रिजल्ट होइत। जे असि‍समेंटक नम्बर सेक्रेट्री आ हेडमास्टरक हाथक खेल रहए। परीक्षाक तीन मासक पछाति‍ रिजल्ट निकलै छल।
मास दिन परीक्षाक बि‍त गेल। दू मास रिजल्ट निकलैमे बाँकी। माघक अंतिम समए। सरस्वती पूजा पाँच दिन पहिने भऽ गेल। शीतलहरी चलैत रहए। जइसँ मिथिलांचल साइबेरिया बनि गेल छल। दिन-राति दुनू एक्के रंग। बर्खाक बून्न जकाँ ओस टप-टप खसैत। सुरूजक दर्शन दू माससँ कहियो ने भेल। दिन-राति कखनि होइ ओ लोक अन्हारेसँ बुझैत। सभ अपन-अपन जान बँचबै पाछू लागल।
खेती-पथारीक काज सबहक बन्न। रब्बी-राइ ठंढ़सँ कठुआएल जइसँ बढ़बे ने करैत। झोली ओढ़ोला पछाति‍ओ माल-जाल थर-थर कँपैत। जहिना महिंसक बच्चा तहिना गाएक बच्चा कठुआ-कठुआ मरैत। बकरी लेल तँ फौतीए आबि गेल। गाछ सभ परहक घोरन सुड्डाह भऽ गेल। चिड़ै-चुनमुनीसँ लऽ कऽ नढ़िया, खिखिर, साँप इत्‍यादि‍ मरि-मरि जेतए-तेतए महकैत।
माघक पूर्णिमासँ दू दिन पहिने रामखेलाैनकेँ लकबा लपकि लेलक। सौंसे देहक अदहा भाग सुन्न भऽ गेलै। क्रियाहीन। बिठुओ कटलापर किछु नै बुझैत। चिड़ै लोल सन टेढ़ मुँह भऽ गेलै। ओना उमेरो कोनो बेसी नै, चालीस बर्खसँ भीतरे छेलै। रतुका समए। शीतलहरीक चलैत अन्हारो बेसी। ओना इजोरिया पख रहए, मुदा भादबक अन्हार जकाँ अन्हार छल। पिताक दशा देखि दीनानाथक मन घबड़ा गेलै। तहिना माएओक। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत दीनानाथ डाक्टर ऐठाम विदा भेल। किछु दूर गेलापर पएर तेना कठुआ गेलै जे चलिए ने होइ। मनमे भेलै, बाबूसँ पहिने अपने मरि जाएब। घरोपर घूमि कऽ नै गेल हएत। बीच पाँतरमे दीनानाथ असगरे। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलै। मनमे एलै, आब की करब? मुदा फेर मनमे एलै, हाथसँ ठेहुन रगड़लापर पएर हल्लुक हएत। सएह करए लगल। जाँघ हल्लुक भेलै। हल्लुक होइते डाक्टर ऐठाम चलल।
डाक्टर ऐठाम पहुँचिते रोगीक भीड़ देखि दीनानाथ फेर घबड़ा गेल। मनमे एलै, सौंसे दुनियाँक रोगी एतै जमा भऽ गेल अछि। असगरे डाक्टर साहैब छथि आ दूटा कम्पाउण्डर छन्‍हि‍, केना सभकेँ देखथिन। मुदा रोगो एकरंगाहे, तँए बेसी मत्था-पच्ची डाक्टरकेँ करै नै पड़नि। धाँइ-धाँइ इलाज करैत जाथि। मुदा मेले जकाँ रोगी एबो करए। थोडे़ काल ठाढ़ भऽ कऽ देखि दीनानाथ सिरसिराइते डाक्टर लगमे जा बाजल-
“डाक्टर साहैब, कनी हमरा एठीम चलिऔ। हमर बाबू एते बि‍मार भऽ गेल छथि जे अबै जोकर नै छथिन।
दीनानाथक बात सुनि डाक्टर कहलखिन-
“बौआ, ऐठाम तँ देखिते छी, केना एते रोगी छोड़ि कऽ जाएब? जे ऐठाम पहुँच‍ गेल अछि ओकरा छोड़ि कऽ जाएब उचित हएत।
“समए रहैत जौं हमरा ऐठाम नै जाएब तँ बाबू मरि जेता।
“अहाँ घबड़ाउ नै तत्खनात दूटा गोटी दइ छी। हुनका खुआ देबनि आ एतै नेने अबियनु।
दीनानाथक मनमे पिताक मृत्यु नाचए लगल। मन मसोसि दुनू गोलि लऽ विदा भेल। मुदा घर दिस बढ़ैक डेगे ने उठए। एक तँ ठंढ़, दोसर मनमे निराशा आ तेसर शीतलहरीसँ रातिओ अन्हार। मुदा तैयो जिबठ बान्हि कऽ विदा भेल। कच्ची रस्ता रहने जेतए-तेतए मेगर आ तैपर सँ केतेठाम टुटलो। जइसँ कए बेर खसबो कएल मुदा तैयो हूबा कऽ उठि-उठि आगू बढ़िते रहल। घरपर अबिते दुनू गोटी पिताकेँ खुऔलक। तैबीच माए गोइठाक घूर कऽ सौंसे देह सेदैत। अपना खाट नै। एते रातिमे केकरा कहतै। मुदा पितियौत भाइक खाट मन पड़लै? मन पड़ि‍ते पितियौत भाय लग जा कहलक-
“भैया, खाटो दिअ आ संगे चलबो करू। एहेन समैमे अनका केकरा कहबै। के जाएत?”
दीनानाथक बात सुनिते पितियौत भाय औगता कऽ उठि खाट नेनइ बढ़ल। खाटपर एक पाँज पुआर बिछा सलगी बिछौलक। दुनू पाइसमे बरहा बान्हि खाट तैयार केलक। खाट तैयार होइते दुनू गोटे रामखेलाैनकेँ उठा ओइपर सुतौलक। बड़हामे बाँस घोंसिआ दुनू गोटे कान्हपर उठा विदा भेल। पाछू-पाछू सुमित्रो विदा भेली। थोड़े काल तँ दीनानाथ किछु नै बुझलक मुदा थोड़े काल पछाति‍ कन्हा भकभकाए लगलै। कान्ह परक छाल ओदरि गेलै। जइसँ बाँस कान्हपर रखले ने होइ। लगले-लगले कान्ह बदलए लगल। मुदा जिबट बान्हि डाक्टर ऐठाम पहुँच‍ गेल।
डाक्टर ऐठाम पहुँचि‍ते डाक्टर साहैब देखलखिन। बि‍मारी देखारे रहए। धाँए-धाँए पाँचटा इन्जेक्शन लगा देलखिन। इन्जेक्शन लगा डाक्टर दीनानाथकेँ कहलखिन-
“हिनका खाटेपर रहए दियनु। बेसी चिन्ता नै करू। तहन‍‍ तँ नम्‍हर बि‍मारी पकड़नइ छन्‍हि‍। किछु दिन तँ लगबे करत।
रामखेलाैनकेँ नीन आबि गेलै। खाटक निच्चाँमे तीनू गोटे -दीनानाथ, पितियौत भाय आ सुमित्रा- बैसल। सुमित्रा मोने-मन सोचैत, समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे बेटा-पुतोहु केकरा देखै छै। जाबे पति जीबैत रहै छै ताबे स्त्रीगण गिरथाइन बनल रहैए। पुरुखकेँ परोछ होइते दुनियाँ अन्हार भऽ जाइ छै। बिनु पुरुखक स्त्रीगण ओहने भऽ जाइए जेहने सुखाएल गाछ। कहलो गेल छै जे साँइक राज अप्पन राज, बेटा-पुतोहुक राज मुँहतक्की। मुदा की करब? अपन कोन साध। ई तँ भगवानेक डाँग मारल छि‍यनि‍। हे माए भगवती, कहुना हिनका नीक बना दियनु। जँ से नै करबनि तँ पहिने हमरे लऽ चलू।
दोसर दिन डाक्टर रामखेलाैनकेँ देखि कहलखिन-
“हिनका घरेपर लऽ जैयनु। ऐठामसँ नीक सेवा घरपर हेतनि। बि‍मारी आब आगू मुहेँ नै बढ़तनि मुदा इलाज बेसी दिन करबै पड़त। हमर कम्पाउण्डर सभ दिन जा-जा सुइओ देतनि आ देखबो करतनि। तैबीच जँ कोनो उपद्रव बूझि पड़त तँ अपनो आबि कऽ कहब।
कहि दूटा सुइआ फेर डाक्टर साहैब लगा देलखिन। दबाइक पुरजा बना देलखिन। एकटा सुइआ आ तीन रंगक गोटी सभ दिन दइले कहि देलखिन। गप-सप्‍प सभ कियो करिते छला आकि तैबीच रामखेलाैन पत्नीकेँ कहलक-
“किछु खाइक मन होइए।
खाइक नाओं सुनिते दीनानाथक मुहसँ हँसी निकलल। लगले दोकानसँ दूध आ बिस्कुट आनि कऽ देलक। दूध-बिस्कुट खुआ दुनू भाँइ खाट उठा विदा भेल।
घरपर अबिते टोल-परोससँ लऽ कऽ गाम भरिक लोक देखए अाबए लगल। शीतलहरी रहबे करै मुदा तैयो लोक अबैक ढबाहि लगल। दू घंटा धरि लोक अबैत रहल। दीनानाथ माएकेँ कहलक-
“माए, बड़ भूख लागल अछि। पहिने भानस कर। भुखे पेटमे बगहा लगैए।
दीनानाथक बात सुनि माए भानस करए विदा भेल। भूख तँ अपनो लागल मुदा कहती केकरा। बेर-बिपति‍मे तँ ऐ ना होइते छै। दीनानाथक बात पितियाइन सेहो सुनलक। वेचारी पितियाइन सोचलक जे सभ भुखाएल अछि। बेरो उनैह गेलै। आब जे भानस करए लगत तँ साँझे पड़ि जेत्तै। तहूमे सभ भुखे लहालोट होइए। से नै तँ घरमे जे चूड़ा अछि से दऽ दइ छिऐ जइसँ तत्खनात तँ काज चलि जेत्तै। सएह केलक।
दीनानाथ आ सुमित्रा चूड़ा भिजा कऽ खाइते छल आकि माम -सुमित्राक भाए- आएल। भाएकेँ देखिते सुमित्राक आँखिमे नोर आबि गेल। बिनु पएर धोनइ मकशूदन बहनोइ लग पहुँच‍ देखए लगला। बहनोइक दशा देखि दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। नोर पोछि वेचारे सोचए लगला जे हम तँ सियान छी तहूमे पुरुख छी। जँ हमहीं कानबै तँ बहि‍न आ भागिनक दशा की हेतै। धैर्य बान्हि बहि‍नकेँ कहला-
“दाइ, ई दुनियाँ अहि‍ना चलै छै। रोग-बि‍आदि‍ सह-सह करैए। जइठीम गर लागि‍ जाइ छै पकड़ि लइए। अपना सभ सेबे करबनि कि‍ने मुदा...। रूपैआ लेल दबाइ- दारूमे कोताही नै होन्‍हि‍। आइ भोरे पता लागल। पता लगिते दौगल एलौं। अपने गाए बिआएल अछि। काल्हि गाएओ आ जहाँ धरि हएत तहाँ धरि रूपैओ आनि कऽ दऽ देबौ। अखनि‍ हम जाइ छी, काल्हि आएब।
चारि दिन पछाति रामखेलाैनक मुँह सोझ भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ सेहो हुअ लगल। मुदा एकटा पएर नीक नै भेलै। कनी-कनी झखाइते डेग उठबैत।
सभ दिन भोरे आबि कऽ कम्पाउण्डर सूइओ दैत आ चला-चला देखबो करैत।
दू मास पछाति‍ दीनानाथक रिजल्ट निकलल। फस्ट डिबीजन भेलै। नम्बरो नीक। छह सए तीन नम्बर। हेडमास्टरक समांगकेँ सेहो फस्ट डिबीजन भेलै। मुदा नम्बर कम। पाँच सए पैंतालिस आएल छेलै। सेक्रेट्रीक समांगकेँ सेकेण्ड डिवीजन भेलै। मुदा नम्बर बढ़ियाँ, पाँच सए चौंतीस। आगू पढै़क आशा दीनानाथ तोड़ि लेलक। किएक तँ घरमे कियो दोसर करताइत नै। एक तँ पिताक बि‍मारी, दोसर घरक खर्च जुटौनाइ, तैपर सँ छोट भाए अठमामे पढै़त। मुदा दीनानाथकेँ अपन पढ़ाइ छोड़ैक ओते दुख नै भेलै जेते परिवार चलौनाइसँ लऽ कऽ पिताक सेवा करैक सुख भेलै। जे बेटा बाप-माएक सेवा नै करत से बेटे की? अपन पढ़ैक आश दीनानाथ छोट भाए कुसुमलालपर केन्द्रित कऽ देलक।
अधिक काल मकशूदन बहिने ऐठाम रहए लगला। गाएओक सेवा आ खेतो-पथारक काज सम्हारए लगला। अपना ऐठामसँ अन्नो-पानि आनि-आनि दिअ लगलखिन। अपना घर जकाँ भार उठा लेलक। अपन दशा देखि रामखेलाैन मकशूदनकेँ कहलखिन-
“हम तँ अबाहे भऽ गेलौं। जाबे दाना-पानी लिखल अछि ताबे जीबै छी। मरैक कोनो ठीक नै अछि तँए अपना जीबैत केतौ दीनानाथक बिआह करा दियौ। बेटा-बेटीक बिआह-दुरागमन कराएब तँ माए-बापक धरम छिऐ। मुदा हम तँ कोनो काजक नै रहलौं। कम-सँ-कम देखियो तँ लेबै।
बहनोइक बात सुनि मकशूदन गुम्म भऽ गेला। मोने-मन सोचए लगला जे समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे नीक मनुख घरमे आनब कठिन भऽ गेल अछि। सभ खेल रूपैआपर चलि रहल अछि। मनुखक कोनो मोले ने रहलै। एहेन स्थितिमे नीक कन्याँ केना भेटत? तहन‍‍ एकटा उपए जरूर अछि जे रूपैआ-पैसाक भाँजमे नै पड़ि, गुनगर कन्याँक भाँज लगाबी। जइसँ घरक कल्याण हेतै। पाहुन जहन‍‍ हमरा भार देलनि तँ हम दान-दहेज नै आनि नीक कन्याँ आनि देबनि। बहनोइकेँ कहलखिन-
“पाहुन, रूपैआक पाछू लोक भँसिआइए। अगर अहाँ हमरा भार दइ छी तँ हम रूपैआक भाँजमे नै पड़ि नीक मनुख आनि कऽ देब। से की विचार?”
मकशूदनक बात सुनि बहि‍न धाँइ दऽ बाजलि-
“भैया, रूपैआ मनुखक हाथक मोलि‍ छिऐ। मुदा मनुख तपस्यासँ बनैए। तँए हमरा नीक पुतोहु हुअए। रूपैआक भुख हमरा नै अछि।
बहि‍नक बात सुनि मकशूदनक मनमे सबुर भेलनि। बजला-
“बहि‍न, जहिना तोरा सबहक पुतोहु तहिना तँ हमरो हएत कि‍ने। के एहेन अभागल हएत जे अपन घर अवाद होइत नै देखत?”
अपन पढ़ाइक आशा तोड़ि दीनानाथ मोने-मन अपना पएरपर ठाढ़ होइक
बाट ताकए लगल। संकल्प केलक जे जहिना नीक रिजल्ट पबैले विद्यार्थी जी-तोड़ मेहनति करैए तहिना हमहूँ परिवारकेँ उठबैले जमि कऽ मेहनति करब।
बिऔहती लड़कीक भाँज मकशूदन लगबए लगला। मुदा मनमे एलनि जे हम तँ वर पक्ष छी तँए लड़की ऐठाम पहिने केना जाएब? कनीकाल गुनधुन करैत सोचलनि जे बेटा-बेटीक बिआह परिवारक पैघ काज होइए तँए एहेन-एहेन छोट-छीन बेवहारपर नजरि नहियेँ देब उचित हएत। तहूमे तँ हम लड़ि‍काक बाप नै माम छी। पाहुन जहन‍‍ भार देलनि तँ नहियोँ करब उचित नै हएत।
अपना गामक बगलेक गाममे लड़कीक भाँज मकशूदनकेँ लगलनि। परिवार तँ साधारणे मुदा लड़की काजुल। काजमे तपल। किएक तँ माए हरिदम ओकरा अपने संग रखि खेत-पथारक, घर-आँगनक काजसँ लऽ कऽ अरिपन लिखब, दुआरिमे पूरनि, फूलक गाछ, कदमक फुलाएल गाछ संग-संग पावनि-तिहारमे गीत गौनाइ सभ सिखबैत। बड़द किनैक बहानासँ मकशूदन भेजा विदा भेला। पहिने दू-चारि गोटेक ऐठाम पहुँच‍ बड़दक दाम करैत कन्यागतक दुआरपर पहुँचला। कन्यागत दुआरपर नै। मुदा लड़की बाल्टीमे पानि‍ भरि अँगना अबैत। लड़कीकेँ देखि मकशूदन पुछलखि‍न-
“बुच्ची, घरवारी केतए छथि?”
बाल्टी रखि‍ सुशीला बाजलि-
“बाड़ीमे मिरचाइ कमाइ छथिन। अपने चौकीपर बैसियौ। बजौने अबै छि‍यनि‍।
बाल्टी अँगनामे रखि‍ सुशीला बाड़ीसँ पिताकेँ बजौने आएल। पड़ोसी होइ दुआरे दुनू गोटे दुनू गोटेकेँ चेहरासँ जानेपहि‍चानक मुदा मुहाँ-मुही गप नै भेने अनचिन्हार। कन्यागत पूछलखि‍न-
“किनकासँ काज अछि?”
मुस्‍कीआइत मकशूदन-
“अखनि‍ दुइए गोटे छी, तँए मनक बात कहै छी। हमरो घर बीरपुरे छी। हमरा भागिन अछि। काल्हि खन पता चलल जे अहाँकेँ बिऔहती बच्‍चि‍या अछि तँए ओइठाम कुटमैती कऽ लिअ।
कुटुमैतीक नाओं सुनि कन्यागत गुम्म भऽ गेला। कनीकाल गुम्म रहि कहलखिन-
“हम गिरहस्त छी। सेहो नम्‍हर नै छोट। ऐठीमक गिरहस्‍तक की हालति‍ अछि से अहाँ जनिते छी। तँए ऐ बेर बेटीक बिआह नै सम्हरत।
कन्यागतक सूखल मुँह देखि मकशूदन कहलखि‍न-
“मनमे जे दहेजक भूत पकड़ने अछि से हटा लिअ। अहाँकेँ जहिना सम्हरत तहिना बिआह निमाहि लेब।
मकशूदनक विचार सुनि कन्यागतक मुँह हरिआए लगलनि। दरबज्जेपर सँ बेटीकेँ हाक पाड़ि अढ़ेलखि‍न-
“बुच्ची, शर्बत बनौने आबह?”
बड़का लोटामे शर्बत आ गिलास नेने सुशीला दरबज्जापर आबि चौकीपर रखए लागलि। तैबीच पिता बजला-
“बुच्ची, ईहो कियो आन नै छथि। पड़ोसीए छिआह। बीरपुरे रहै छथि। दहुन शर्बत।
दुनू गोटे शर्बत पीलनि। शर्बत पीब पिता कहलखिन-
“बुच्ची, चाहो बनौने आबह।
सुशीला चाह बनबए गेल। दरबज्जापर दुनू गोटे गप-सप्‍प करए लगला।
मकशूदन-
“जेने अहाँक कन्याँ छथि तेहने हमर भागिन। अजीब जोड़ा वि‍धाता बना कऽ पठौने छथि। काल्हिए अहूँ लड़ि‍काकेँ देखि लिऔ। संयोग नीक अछि तँए शुभ काजमे बि‍लम नै करू।
मकशूदनक विचारसँ जेते उत्साहित कन्यागतकेँ हेबाक चाहियनि तेते नै होथि‍। किएक तँ मनमे घुरियाइत रहनि‍, कहुना छी तँ बेटीक बिआह छी। फुसलेने काज थोडे़ चलत। मुदा कन्याक माए दलानक भीतक भुरकी देने अढ़ेसँ गप्पो सुनथि‍ आ दुनू गोटेकेँ देखबो करैत रहथि‍न। मोने-मन उत्साहितो होइत जे फँसल शिकार छोड़ब मुरूखपना छी। माए-बापक सराध आ बेटीक बिआहमे केकरा नै करजा होइ छै। जानिए कऽ तँ हम सभ गरीब छी। गरीबकेँ जनमसँ लऽ कऽ मरै धरि करजा रहिते छै। तइले एते सोचै विचारैक कोन काज। करजो हाथे बेटीक बिआह कइए लेब। फस्ट डिवीजनसँ मैट्रिक पास लड़ि‍का अछि। एहेन पढ़ल-लिखल लड़ि‍का थोड़े भेटत। कहबीओ छै जे पढ़ल-लिखल लोक जँ हरो जोतत तँ मुरूखसँ सोझ सि‍ड़ौर हेतै। आइक जुगमे मुरूखो बड़क बाप पचास हजार रूपैआ गनबैए। खुशीसँ मनमे होइ जे छड़पि कऽ दरबज्जापर जा कहियनि जे अगर अहाँ आइए बिआह करए चाही तँ हम तैयार छी। मुदा स्त्रीगणक मर्यादा रोकि दैत। तँए वेचारी अढ़ेमे अहुरिया कटैत। मुदा पतिक मन बदलल। मकशूदनकेँ कहलकनि‍-
“देखू, हम भैयारीमे असगरे छी मुदा गृहिणी तँ छथि। हुनकासँ एक बेर पूछि लइ छि‍यनि‍। किएक तँ हम घरक बाहरक काजक गार्जन छी ने, घरक भीतरी काजक गार्जन तँ वएह छथि। जँ कहीं बेटी बिआह दुआरे किछु ओरिया कऽ रखने होथि तँ कइए लेब।
कन्यागत भोला उठि कऽ आँगन गेला। आँगन पहुँचि‍ते पत्नी झपटि कऽ कहए लगलनि-
“दुआरपर उपकरि कऽ लड़ि‍काबला एलाहेँ तँए अहाँ अगधाइ छी। जहन‍‍ लड़ि‍काक भाँजमे घुमैत-घुमैत तरबा खियाएत आ बेमाएसँ खूनक टगहार चलत तहन‍‍ बुझबै। तीन-तीन साल बेटीबला घुमैए तहन‍‍ जा कऽ केतौ गर लगै छै। जा कऽ कहि दियनु जे अखनि‍ हमर हालत नीक नै अछि मुदा जँ अहाँ तैयार छी तँ हमहूँ तैयार छी। वर देखैक दिन कौल्हुके दऽ दियनु।
पत्नीक बातसँ उत्साहित भऽ भोला आबि कऽ बजला-
“पत्नीक विचार सोलहो आना छन्‍हि‍। मुदा कहबे केलौं जे अखनि‍ हमर हालत बढ़ियाँ नै अछि।
मकशूदन-
“काल्हि अहाँ लड़ि‍का देखि लिऔ। जँ पसिन्न हएत तँ जहिना कुटमैती करए चाहब तहिना कऽ लेब। असलमे हमरा लोकक जरूरत अछि, नै की रूपैआ-पैसाक।
आठे दिनक दिनमे बिआह भऽ गेल। भोलाक बहिनो आ साउसो नीक जकाँ मदति केलकनि। अपना घरसँ खाली एकटा सोनाक सुक्की -नअटा चौवन्नीक छड़- भोलाकेँ निकललनि‍।
पनरह दिनक पछाति‍ दीनानाथ पुबरिया ओसारपर बैस, पितासँ छीपि कऽ माएकेँ कहलक-
“माए, घरक दशा जे अछि से तहूँ देखते छीही। जेना घर चलैए तेना केते दिन चलत। साले-साल खेत बिकाइए। जइसँ किछुए साल पछाति‍ सभ सठि जाएत। छोड़ैबला काज एक्कोटा ने अछि। जहिना कुसुमलालक पढ़ैक खर्च, तहिना बाबूक दबाइ आ पथ्यक। मुदा आमदनी तँ कोनो दोसर अछि नै। लऽ दऽ कऽ खेती। सेहो डेढ़ बीघा। तहूमे, ने पानिक जोगार अपना अछि आ ने खेती करैक लूरि‍। एते दिन तँ बाबू कहुना-कहुना कऽ करै छला, आब तँ सेहो नै हएत। हमहूँ जँ केतौ नोकरी करए जाएब सेहो नै बनत, किएक तँ बाबूक देखभाल सेहो करैक अछि। तहन‍‍ तँ एक्केटा उपए अछि जे घरेपर रहि आमदनीक कोनो काज ठाढ़ करी।
बेटाक बात सुनि माए गुम्म भऽ गेली। जइ घरमे आमदनी कम रहत आ खर्चा बेसी हएत से घर केना चलत। एते बात मनमे अबिते माएक आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। आँचरसँ नोर पोछि बाजलि-
“बौआ, हम तँ स्त्रीगणे छी। घर-अँगनामे रहैवाली। तूँ जँ बच्चो छह तँ पुरुखे छह। जहन‍‍ भगवाने बेपाट भेल छथुन तहन‍‍ तँ किछु करए पड़तह।
दुनू गोटेक -माएओ आ बेटोक- मुँह निच्चाँ मुहेँ खसल छल। ने बेटाक नजरि माए दिस उठैत आ ने माएक नजरि बेटा दिस। जहिना मरुभूमिमे पियासल लोकक दशा होइत, तहिना दुनूक दशा भेल छल। केबाड़ लग ठाढ़ सुशीला दुनूकेँ देखैत। जोरसँ कियो ऐ दुआरे नै बजैत जे रोगाएल पिता वा पति जँ सुनता तँ सोगसँ आरो दुख बढ़ि जेतनि। केबाड़ लगसँ घुसकि ओसारपर आबि सुशीला बाजलि-
“माए चिन्ता केलासँ दुख थोड़े भगतनि। दुखकेँ भगबैले किछु उपए करए पड़तनि। छोटका बौआ बच्चे छथि, बाबू रोगाएले छथि मुदा अपना तीनू गोटे तँ खटैबला छी। खटलासँ सभ कि‍छु होइ छै।
सुशीलाक बात सुनि सासु बजली-
“कनियाँ, कहलिऐ तँ बड़बढ़ियाँ मुदा ओहिना तँ पानि‍ नै डेङाएब।
सासुक बात सुनि पुतोहु बाजलि-
“हमर एकटा पित्ती धानक कुट्टी करै छथि। जहिना अपन परिवार अछि तहूसँ लचड़ल हुनकर परिवार छेलनि। तैपर सँ चारि-चारिटा बेटीओ छेलनि। मुदा जइ दिनसँ धानक कुट्टी करए लगला तइ दिनसँ दिने-दुनियाँ घूमि गेलनि। चारू बेटीओक बिआह केलनि, बेटोकेँ पढ़ौलनि। ईंटाक घरो बनौलनि आ पाँच बीघा खेतो कीनि लेलनि। अखनि‍ हुनकर हाथ पकडै़बला गाममे कियो ने अछि।
पत्नीक बात सुनि दीनानाथक भक्क खुजल। भक्क खुजिते दीनानाथ खुशीसँ उछलि अँगनामे कूदल। दरबज्जापर आबि कागत-कलम निकालि हिसाब जौड़ए लगल। डेढ़ सेर धानमे एक सेर चाउर होइए। ओना धानक बोरा अस्सीए किलोक होइए जहन‍‍ कि चाउरक सए किलोक। चारि सए रूपैए बोरा धान बिकैए तँ पान सए रूपैए क्‍विन्‍टल भेल। एक क्‍विन्‍टल धानक सड़सठि किलो चाउर भेल। दू-चारि किलो खुद्दीओ हएत जेकर रोटी पका कऽ खाएब। एक किलो चाउरक दाम साढ़े दस रूपैआसँ एगारह रूपैआ होइत। ऐ हिसाबसँ एक क्‍विन्‍टल धानक चाउरक लगधग सात सए रूपैआ भेल। पान सएक पूजीसँ सात सएक आमदनी भेल। तैपर सँ तीस किलो गुड़ो। जेकर दाम साठि रूपैआ भेल। खर्चमे खर्च खाली जारनि‍, कुटाइ आ गाड़ीक भाड़ा। बाँकी सभ मेहनतिक फल भेल। अगर जँ एक बोराक कुट्टी सभ दिनक हिसाबसँ करब तँ पाँच हजारक महि‍ना आमदनी जरूर हएत।
हिसाब जोड़ैत-जोड़ैत दीनानाथक मनमे शंका उठल जे हिसाबेमे तँ ने गलती भऽ गेल। कागत-कलम छोड़ि उठि कऽ टहलए लगल। मोने-मन हिसाबो जोड़ैत। मनमे कखनो हिसाब सही बूझि पड़ैत तँ कखनो शंका होइत। आँगन जा पानि पीलक। दू-चारि बेर माथ हसोंथलक। फेर आबि कऽ हिसाब जोड़ए लगल। मुदा हिसाब ओहिना कऽ ओहिना होइ। मनमे बिसवास जगलै। जइसँ काजक प्रति आकर्षण सेहो भेलै। फेर आँगन जा माएकेँ पुछलक-
“एक बोरा धान उसनैमे केते समए लगतौ?”
माए बाजलि-
“एक बोरा धान तँ दसे टीन भेल। दू-चुल्हियापर पाँच खेप भेल आ चरि चुल्हियापर अढ़ाइए खेप भेल। एक्के घंटामे उसनि लेब।
माएक बात सुनि दीनानाथ तँइ केलक जे हमहूँ यएह रोजगार करब। पूजी लेल पत्नीक सोना सुक्कीमे सँ पाँचटा निकालि आ सबा भरि बेचि, धान कीनि कुट्टी शुरू केलक। जइसँ परिवारमे खुशहाली आबि गेलै।
कुशुमलाल बी.ए. पास कऽ मधुबनी कोर्टमे किरानीक नोकरी शुरू केलक। कोर्टेक बड़ाबाबूक बेटीसँ बिआह सेहो केलक। मधुबनीएमे डेरा रखि दुनू परानी रहए लगल। तीन-चारि बर्ख तँ संयमित जीवन बितौलक। खाली वेतनेपर गुजर करैत। मुदा तेकर पछाति‍ पाइ कमाइक लूरि‍ सीखि लेलक। जइसँ खाइ-पीबै संग-संग औरो लूरि‍ भऽ गेलै। घरोवाली पढ़ल-लिखल। जहिना कमाइ तहिना खर्च। शहरक हवामे उधियाए लगल। सिनेमा देखैक, शराब पीबैक, नीक-नीक वस्तु किनैक आदति बढ़ैत गेलै। एक दिन पत्नी कहलकै-
“गाममे जे खेत अछि से अनेरे किए छोड़ने छी। ओइसँ की लाभ होइए। ओकरा बेचि कऽ अहीठाम जमीन कीनि अपन घर बना लिअ।
स्त्रीक बात कुसुमलालकेँ जँचल। रवि दिन छुट्टी रहने गाम आबि भाए दीनानाथकेँ कहलक-
“भैया, हम अपन हिस्सा खेत बेचि लेब। मधुबनीएमे दू कट्ठा खेत ठीक केलौं हेन। से कीनि ओत्तै घर बनाएब। भाड़ाक घरमे तेते भाड़ा लगैए जे एक्को पाइ बचबे ने करैए जे अहूँ सभकेँ देब।
कुसुमलालक बात सुनि दीनानाथ कहलक-
“बौआ, अखनि‍ बाबू-माए जीविते छथुन, तँए हम की कहबह? हुनके कहुन।
दीनानाथक जवाब सुनि कुसुमलाल पिताकेँ कहलक। रोगाएल रामखेलाैन खिसिआ कऽ कहलक-
“डेढ़ बीघा खेत छौ। दस कट्ठा हमरा दुनू परानीक भेल, दस कट्ठा दीनानाथक भेलै आ दस कट्ठा तोहर भेलौ। अपन हिस्सा बेचि कऽ लऽ जो।
खेत किनै-बेचैक दलाल गामे-गाम रहिते अछि। कुसुमलाल जा कऽ एकटा दलालकेँ कहलक। पाँच हजार रूपैए कट्ठाक हिसाबसँ दलाल दाम लगा देलक। कुसुमलाल राजी भऽ गेल। मुदा बेना नै लेलक। तरे-तर दीनानाथो भाँज लगबैत। साँझू पहर जहन‍‍ कुसुमलाल मधुबनी विदा भेल तहन‍‍ दीनानाथ कहलकै-
“बौआ, जेते दाम तोरा आन कियो देतह तेते हमहीं देबह। बाप-दादाक अरजल सम्पति छी, आन कियो जे आबि कऽ घराड़ीपर भट्टा रोपत से केहेन हएत?
मुदा दीनानाथक बात कुसुमलाल मानि गेल। पचास हजारमे जमीन लिखि देलक। मधुबनीएमे कुसुमलाल घर बना लेलक। अपना गामक लोकसँ ओते सम्बन्ध नै रहलै जेते सासुरक लोकसँ। सासुरक दू-चारि गोटे सभ दिन अबिते-जाइत रहैत। आदरो-सत्कार नीक होइ छेलै।
बीस बर्ख पछाति‍ दीनानाथक बेटा मेडिकल कम्पीटीशनमे कम्पीट केलक। बेटी आइ.एस.सी.मे पढ़िते। पढ़ैमे दुनू भाए-बहि‍न ऊपरा-ऊपरी। तँए परिवारक सभकेँ आश रहै जे बेटीओ मेडिकल कम्पीट करबे करत। माए-बापक सेवा आ बेटा-बेटीक पढ़ाइ देखि दुनू परानी दीनानाथक मन खुशीसँ गद-गद। परिवारोक दशा बदलि गेल। मुदा तैयो दीनानाथ धानक कुट्टी बन्न नै केलक। आरो बढ़ा लेलक। मनमे ईहो होइ जे धनकुटिया मील गड़ा ली मुदा समांग दुआरे नै गड़बैत। टाएरगाड़ी कीनि लेलक। जइसँ खेतीओ करए आ भड़ो कमाइत।
कुसुमलालकेँ सेहो दूटा बेटा। दुनू पब्लिक स्कूलमे पढ़ैत। जेठका अठमामे आ छोटका छठामे। मधुबनीएमे डेरा रहितो दुनू होस्टलेमे रहैत। तैपर सँ सभ विषयक ट्यूशन सेहो पढ़ैत। तँए नीक खर्च होइत।
शराब पीबैत-पीबैत कुसुमलालक लीभर गलि गेलै। किछु दिन मधुबनीएमे इलाज करौलक मुदा ठीक नै भेने दरभंगाक अस्पतालमे भर्ती भेल। चारि मास दरभंगोमे रहल मुदा ओतौ लीभर ठीक नै भेलै। तहन‍‍ पटना गेल। पटनोमे ठीक नै भेलै, संगहि शरीर दिनानुदिन खसिते गेलै। अंतमे दिल्लीक एम्समे भर्ती भेल। ओत्तौ ठीक नै भेलै। शरीर एते कमजोर भऽ गेलै जे अपनेसँ उठिओ-बैस ने होइ। हारि-थाकि कऽ मधुबनीक डेरापर आबि गेल। मुदा एते दिनक बि‍मारीक बीच दीनानाथकेँ जानकारीओ ने देलक। सारे-सरहोजि संग घुमैत रहल।
ओछाइनपर पड़ल-पड़ल सौंसे देहमे धाव भऽ गेलै। ढाकीक-ढाकी माछी देहपर सोहरए लगलै। केतबो कपड़ा ओढ़बै तैयो माछी घूसि-घूसि असाइ दऽ दइ। दिन-राति दर्दसँ कुहरैत। हरिदम घरवालीक मन तामसे लह-लह करैत। गरिएबो करैत। दुनू बेटामे सँ एक्कोटा लगमे रहैले तैयार नै। जेठका बेटा कहै-
“पप्पा जी, महकता है।
जहन‍‍ कखनो लगमे अबैत तँ नाक मूनि कऽ अबैत। छोटका बेटा सेहो तहिना। हरिदम बजैत-
“पप्पा जी, अब भूत बनेगा। लगमे रहेंगे तो हमको भी पकड़ लेगा।
जइ आॅफिसमे कुसुमलाल काज करैत ओइ आॅफिसक एकटा स्टाफ दीनानाथकेँ फोनसँ कहलक-
“कुसुमलाल अंतिम दिन गनि रहल छथि‍ तँए आबि कऽ मुँह देखि लियनु।
फोन सुनि दीनानाथ सन्न भऽ गेल। जेना दुनियाँक सभ कि‍छु आँखिक सोझहासँ निपत्ता भऽ गेलै। सुन-मशान दुनियाँ लागए लगलै। मनमे एलै, कियो केकरो नै। दुनू आँखिसँ नोर टधरए लगलै। नोर पोछि सोचए लगल, कियो झुठे ने तँ फोन केलक। फेर मनमे एलै, एहेन समाचार झूठ किए हएत। अनेरे कियो पैसा खर्च कऽ फोन किए करत। एहेन अवस्थामे कुसुमलाल पहुँच‍‍ गेल मुदा आइ धरि किछु कहबो ने केलक। खैर जे हउ, मुदा हमरो तँ किछु धरम अछि। अपना कर्तव्यसँ कियो मनुख ऐ दुनियाँमे जीबैए। अखनि‍ तँ अबेर भऽ गेल। काल्हि भोरुके गाड़ीसँ मधुबनी जाएब। एते विचारि माएकेँ कहलक-
“माए, एक गोटे मधुबनीसँ फोन केने छेला जे कुसुमलाल बहुत दुखित छथि तँए आबि कऽ देखियनु।
दीनानाथक मुँहक बात सुनिते माएक देहमे आगि लागि‍ गेलनि। जरैत मोने बाजलि-
“कुसुमा हमर बेटा थोड़े छी जे मुँह देखबै? उ तँ ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानीकेँ छोड़ि चलि गेल। जँ ऐ धरतीपर धरमक कोनो स्थान हेतै तँ ओइमे हमरो केतौ जगह भेटत। जँ कोनो शास्त्र-पुराणमे पतिव्रता स्त्रीक चर्चा हेतै तँ हमरो हएत। आइ बीस बरखसँ ऐ हाथ-पएरक बले बि‍मार पतिकेँ जीवित रखि अपन चूड़ी आ सिनुरक मान रखने छी।
माएक बात सुनि दीनानाथ मोने-मन सोचलक जे कुसुमलाल अगर हमरा कमा कऽ नहियेँ देलक तँ हमर की बिगड़ल। माएओ-पिताक दर्शन भोरे-भोर होइते अछि, बालो-बच्चा आनंदेसँ अछि। तहन‍‍ तँ एक-वंशक छी जा कऽ देखि लिऐ।
दोसर दिन भोरुके गाड़ीसँ मधुबनी पहुँच‍ दीनानाथ कुसुमलालक डेरापर पहुँचल। बाहरेक कोठरीमे कुसुमलाल पड़ल छल। चद्दरिसँ सौंसे देह झाँपल रहै। मुँह उघारिते कुसुमलाल बाजल-
“भ-इ-अ-अ।
कहि सदा-सदाक लेल आँखि मूनि लेलक।
दीनानाथ-
“बौआ कुसुम, बौआ... बौआ... बउआ।

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